Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Monday, June 29, 2015

संगे - बुनियाद -1,धूमसिंह नेगी बजरिये राजीव नयन बहुगुणा

संगे - बुनियाद -1,धूमसिंह नेगी बजरिये राजीव नयन बहुगुणा



धूमसिंह नेगी सर्वोदयी कार्यकर्ता हैं।वे और कुंअर प्रसूण माननीयसुंदर लाल बहुगुणा के दांए बांए हाथ रहे हैं।कौन दायां,कौन बायां आज भी हमें मालूम नहीं हैं।नैनीताल में चिपकों के दिनों तीनों जब तब झोला उठाये नैनीताल समाचार आ जाते थे।हम तब छात्र भी थे,चिपको कार्यकर्ता और पत्रकार भी तो रंगकर्मी भी।मूसलादार बरसात में नैनीताल बेहद खूबसूरत हैं इन दिनों।उससे भी खूबसूरत वे बीते दिनों के तमाम कोलाज हैं।
खास बात ये है कि हम लोगों ने पत्रकारिता का बुनियादी पाठ सुंदर लाल बहुगुणा जी से सीखा,पर्यावरण चेतना जो उनने संक्रमित कर दी हमारे बीतर,वह जो हो,सो अलग।

वैकल्पिक मीडिया क्या होता है और जनांदोलन के साथ उसका ताना बाना कितना मजबूत है,सुंदरलाल जी का सबसे अहम सबक यही है।
पहाड़ों में केदार बदरी या गंगोत्री तक कोई हेलीकाप्टर सेवा न थी और न एवरेस्ट और कैलास मानसरोवर के रास्ते रेशम पथ थे।पहाड़ों से आने जाने वाली तमाम सड़के वर्टिकल खड़ी आड़ी तिरछी पगडंडियों का विस्तार थीं तब और पहाड़ को पहाड़ से जोड़ने वाली सड़के तब न थींं।
हालांकि अब डूब हिमालय की देवभूमि उत्तराखंड उर्जा प्रदेश के गढ़वाल से कुमांयू पहाड़ के रास्ते जाने के रास्ते बन चुके हैं.फिर भी देवभूमि हिमाचल से देवभूमि उत्तरखंड तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग आज भी हम नहीं जानते।न इन देवभूमियों से इस धरा पर जो स्वर्ग है,वहां कश्मीर की घाटी या लेह लद्दाख तक आने जाने का रास्ता कोई है या नहीं,हमें मालूम नहीं है।
पहाड़ों में हिल स्टेशनों और तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले राजमार्ग पहाड़ी पगडंडियों के लिए कितनी राह बना पाती है ,अब भी कहना मुश्किल है।अब भू पहाड़ और पहाड़े के बीच दूरियां बहुत है।
अस्कोट आराकोट यात्रा शुरु की थी पहाड़े के ताजादम साथियों ने इन्हीं पहाड़ों को जोड़ने का सिलसिला बनाने के लिए.
लेकिन सुंदर लाल बहुगुणा का सफर तो हिमालय से शुरु होकर कन्याकुमारी तक और फिर कन्याकुमारी से पहाड़ों तक,दुनियाभर में जारी रहा है।अब वे पांव थके हुए खामोश हैं।

खबरों को कैसे पहाड़ के कोने कोने में पहुंचायी जाये,कैसे जल जंगल जमीन और मेहनतकशों के हकहकूक की सांवादिकता हो और कैसे प्रतिबद्ध सामाजिक पर्यावरण कार्यकर्ता को खबरची मुकम्मल होना चाहिए,इसके ज्वलंत उदाहरण हैं सुंदरलाल बहुगुणा और उनके दांए बांए कुंअर प्रसूण और धूम सिंह नेगी।जिनकी हवाओं के से छूत लग जाने से हम भी कलमची पीसी हुए बलि।
कुंअर प्रसूण  नहीं रहे ।नहीं रहे प्रताप शिखर।चंडी प्रसाद भट्ट क्या करते हैं,नहीं मालूम।गिरदा नहीं रहे।शेखर हैं और सक्रिय हैं।राजीव लोचन साह भी।
धूम सिंह नेगी से आखिरीबार जाजल में कुंअर प्रसूण और प्रताप शिखर के साथ मिले थे,जब हम मेरठ जागरण में हुआ करते थे और तब टिहरी भी डूब में शामिल न थी और न गंगा इस तरह बंधी बंधी थी।

आज सुबहोसुबह हमारे मेले में बिछुड़े सगे भाई राजीव नयन बहुगुणा का वाल देखा तो मन मूसलाधार हो गया।

नयन दाज्यू जारी रखें सिलसिला कि धूमिल तस्वीरों से धूल छंटे।
पलाश विश्वास

संगे - बुनियाद -1
---------------
टिहरी गढवाल (उत्तराखंड ) के एक गाँव में रहने वाले धूम सिंह नेगी पिछले 50 वर्षों से यहाँ के सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हैं । 1972 में वह टिहरी ज़िले में शराब बंदी की मांग को लेकर हुए जन आन्दोलन में ज़ेल गये । उस वक़्त वह एक हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक थे । इसके बाद वह नौकरी छोड़ पूरी तरह सार्वजनिक जीवन में समर्पित हो गये । वह चिपको आन्दोलन के प्रारम्भिक नेताओं में एक हैं । हेंवल घाटी में सचमुच का " चिपको " आन्दोलन उन्ही के नेतृत्व में चला , जहाँ वस्तुतः पेड़ों पर चिपकने की नौबत आई ।राज्य के कई महत्व पूर्ण आन्दोलन कारी , यथा कुंवर प्रसून , प्रताप शिखर और विजय जद्धारी आदि उन्हीं की देन हैं , जो कभी उनके छात्र रह चुके थे । धूम सिंह नेगी टिहरी बाँध विरोधी आन्दोलन और बीज बचाओ आन्दोलन के भी प्रथम पंक्ति के नायक रहे । वह ऋषिकेश - गंगोत्री राजमार्ग पर जाजल से करीब 3 किलोमीटर दूर पिपलेथ कालिंदी नामक गाँव में रहते हैं । लगभग 75 वर्षीय धूम सिंह नेगी प्रचार प्रसार और पुरी- पुरजन के कोलाहल से दूर एक छोटे किसान के रूप में जीवन यापन करते हैं ।

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors