बिजली परियोजनाओं ने बढ़ाई तबाही
सीताराम बहुगुणा
जल विद्युत परियोजनाओं के दुष्परिणामों को भाँपने वाले जानकार एवं जनसरोकारों से जुड़े लोग लम्बे समय से उत्तराखंड में इन परियोजनाओं का विरोध करते आये हैं। लेकिन यहाँ की सरकारों ने उनकी मांग को दरकिनार करते हुए ऐसे लोगों को विकास विरोधी करार दिया और सैकडों की संख्या में बिजली परियोजनाएं लगाने की अनुमति दे दी। उत्तराखंड हिमालय से निकलने वाली नदियों में आयी विनाशकारी बाढ़ से हुई तबाही में इन परियोजनाओं की असलियत को साबित कर दिया है कि पहाड़ में बिजली परियोजनाएं लगाने का विरोध करने वाले लोगों की मांग कितनी जायज थी और सरकारें जनता के हित के लिए नहीं बल्कि बिजली कंपनियों के फायदे के लिए काम कर रही है।
अलकनन्दा नदी में आयी विनाशकारी बाढ़ ने श्रीनगर में भी अपना तांडव दिखाया। नगर के एक बड़े हिस्से को पूरी तरह से बर्वाद कर दिया। बाढ़ से एसएसबी अकादमी व आईटीआई परिसर बुरी तरह तबाह हो गया। 70 आवासीय भवनों में रहने वाले सौ से अधिक परिवार बेघर हो गये हैं। इन मकानों में दस से बारह फीट तक मिट्टी भर गयी है। घर का कोई भी सामान काम का नहीं रह गया है। 1970 में बेलाकूची की बाढ़़ की रिर्पोटिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार डॉ उमाशंकर थपलियाल का कहना है कि उस समय भी श्रीनगर में अलकनंदा नदी में लगभग इतना ही उफान था लेकिन तबाही इतनी नहीं हुई थी। तो फिर प्रश्न ये उठता है कि इस बार तबाही इतनी क्यों हुई। दरअसल श्रीनगर में मची भीषण तबाही के लिए निर्माणाधीन श्रीनगर जल विद्युत परियोजना जिम्मेदार है। परियोजना का निर्माण करवा रही जीवीके कंपनी ने डैम साइट कोटेश्वर से किलकिलेश्वर तक नदी किनारे लाखों ट्रक मिट्टी डंप की। इस कारण इस क्षेत्र में नदी की चौड़ाई कम हो गयी। गत 16 एवं 17 जून को आयी बाढ़ ने इस मिट्टी को काटना शुरू किया जिससे नदी के जलस्तर में दो मीटर तक की बढ़ोतरी हो गयी। एसएसबी क्षेत्र में जहाँ बाढ़ ने तांडव मचाया वहीं श्रीयंत्र टापू से नदी अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर "N" आकार में बहती है, और उससे आगे नदी की चौड़ाई अचानक कम हो जाती है। इस कारण उस दिन जब बाढ़ के साथ श्रीनगर परियोजना की मिट्टी आयी तो वह उतनी मात्रा में आगे नहीं जा पायी जितनी की बाढ़ प्रभावित क्षेत्र तक आयी थी। फलस्वरूप पानी के साथ आयी यह मिट्टी एसएसबी, आईटीआई तथा शक्ति विहार क्षेत्र में जमा होने लगी।
जब बाढ़ का पानी उतरा तो लोगों के होश उड़ गये। क्षेत्र के 70 आवासीय भवन एसएसबी अकादमी का आधा क्षेत्र, आईटीआई, खाद्य गोदाम, गैस गोदाम, रेशम फार्म में 12 फीट तक मिट्टी जमा हो गयी। कई आवसीय भवन तो छत तक मिट्टी में समा गये हैं। इन घरों में रहने वाले लोगों की जीवन भर की पूँजी जमीदोज हो गयी। प्रभावित विनोद उनियाल का कहना है कि इस बाढ़ में उनके घर के अंदर कमरों में आठ फीट तक मिट्टी जमा हो गयी है। जीवन भर की कमाई का सारा सामान बर्वाद हो चुका है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि जीवन अब कैसे चलेगा। शक्ति विहार मोहल्ले में किराना की दुकान से आजीविका चलाने वाले संतोष चन्द्र नौटियाल पर तो इस आपदा की दोहरी मार पड़ी है। मकान के साथ इनकी दुकान का सारा सामान मलबे में दफ्न हो गया है। जिससे उनके सामने रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है। एससबी अकादमी के निदेशक एस बंदोपाध्याय की मानें तो अकेले अकादमी को लगभग सौ करोड़ का नुकशान हुआ है। इस हिसाब से देखा जाय तो श्रीनगर क्षेत्र में कुल नुकशान का आंकड़ा तीन सौ करोड़ तक जा सकता है। इसके अलावा देवप्रयाग में भी जलविद्युत परियोजनाओं की मिट्टी से कई सरकारी एवं आवसीय भवन अटे पड़े हैं।श्रीनगर जल विद्युत परियोजना द्वारा नदी किनारे अवैघ रूप से डंप की गयी मिट्टी अब गायब है। और नदी क्षेत्र पूर्व की तरह दिखायी देने लगा है। परियोजना समर्थकों का दावा है कि अकेले यह मिट्टी ही इस तबाही के लिए जिम्मेदार नहीं है। तो फिर श्रीकोट में इस तरह की तबाही क्यों नहीं हुई, वहाँ भी तो नदी किनारे बहुत से मकान हैं। दरअसल श्रीकोट के कुछ आगे चौरास झूला पुल से किलकिलेश्वर तक परियोजना की ज्यादातर मिट्टी डंप की गयी थी। इस कारण श्रीकोट इस तबाही से बच गया।
भू वैज्ञानिक डॉ एसपी सती का कहना है कि उत्तराखंड में बाड़ से हुई तबाही में यहाँ बन रही जल विद्युत परियोजनाओं का बहुत बड़ा हाथ है। इस समय राज्य में 70 छोटी बड़ी जल विद्युत परियोजनएं निर्माणाधीन हैं। इन परियोजनाओं ने अपनी सारी मिट्टी नदी किनारे डंप की है। यदि एक परियोजना से औसतन दो लाख घनमीटर मिट्टी निकली तो कुल 140 लाख घनमीटर मिट्टी नदियों में गिरायी गयी या डंप की गयी। श्रीनगर जल विद्युत परियोजना से पाँच लाख घनमीटर मिट्टी अलकनंदा के किनारे डंप की गयी। जब नदी में बाढ़ आयी तो उससे तेजी से यह मिट्टी पानी के संपर्क में आयी और इससे नदी का आकार एकाएक बढ़ गया। क्योंकि यह मिट्टी श्रीनगर के ठीक सामने थी इसलिए यह बाढ़ के कारण श्रीनगर के निचले इलाकों में जमा हो गयी और तबाही का कारण बनी।
नगर पालिका श्रीनगर के वार्ड मेम्बर सुधांशू नौडियाल का कहना है कि सरकार श्रीनगर जल विद्युत परियोजना का निर्माण करा रही कंपनी जीवीके को श्रीनगर में हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार माने, और कंपनी को इस नुकसान की भरपायी का आदेश दे। श्री नौडियाल का कहना है कि यदि सरकार ने ऐसा नहीं किया तो वह इस बारे में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करेंगे।
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