Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Thursday, March 6, 2014

लोक शब्दों का कारखाना है TaraChandra Tripathi

लोक शब्दों का कारखाना है. यहाँ युग की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न अर्थहीन से लगने वाले ध्वनिपुंजों के संयोग से नये और अर्थवान शब्द ढाले जाते रहते हैं. उनका पुनर्गठन, रूपान्तरण, आमेलन ही नहीं किया जाता अपितु आवश्यकता पड़्ने पर उन्हें विशिष्ट अभिप्रायों से मण्डित भी किया जाता है जहाँ इनसे काम नहीं चलता, वहाँ दूसरी भाषाओं से उधार लेकर काम चलाया जाता है. और इस प्रकार वे किसी वस्तु या भाव की स्पष्ट पहचान के वाहक बन जाते हैं. 

किसी भी अनुभूति के विविध रूपों के लिए बोलियों में जितने भिन्न-भिन्न शब्द मिलते हैं, उतने दुनिया की किसी भी नागर भाषा में नहीं मिलते. उदाहरण के लिए दुर्गन्ध शब्द को लें. नागर भाषा में यह अकेला शब्द है पर लोक में दुर्गन्ध के विविध प्रकारों के लिए अलग-अलग शब्द हैं जैसे कुमाऊनी में खौसैनी (मिर्च के जलने की दुर्गन्ध), किहड़ैनी (ऊन जलने की दुर्गन्ध) चुरैनी (शौचालय की दुर्गन्ध) सिमरैनी ( पानी के जमा होने और सड़्ने की दुर्गन्ध), बोकड़ैनी ( किसी व्यक्ति की काँख से निकलने वाली दुर्गन्ध, बथड़ैनी ( कुल्ला न करने वाले व्यक्ति के मुह से निकलने वाली दुर्गन्ध), भुबैनि ( अधपके चिचंडा आदि की गंध) आदि. 

लोक केवल गन्ध विश्लेषक शब्दों का सृजन नहीं करता, दृश्यमान जगत को रूपायित करने वाले शब्दों का भी सृजन करता है. उदाहरण के लिए कुमाऊनी में सूर्योदय से पहले के प्रकाश के लिए भुर-भुर उज्याव, और खिली चाँदनी के लिए फूल-फटक ज्यूनि, घने अँधेरे लिए घुप्प अन्यार, लज्जा के कारण रोकने का प्रयास करने पर ओठों पर उभर आने वाली मुस्कान के लिए मुल-मुल-हँसी, और किसी घटना की जीवन्त अभिव्यक्ति के लिए ध्वन्यात्मक शब्दों यथा कुमाऊनी में प्या्च्च पिचक गया, क्याच्च काट दिया पट्ट ( किसी ठोस जमीन पर) गिर गया. बद्द ( किसी बिछी हुई या कोमल भूमि पर) गिर गया, लोटि गो (गिर गया) भथड़्क्क ( किसी मोटे व्यक्ति का गिरना) गिर गया, फसड़्क्क फिसल गया शब्द लोक कि सहज और निर्बाध सृजन क्षमता के ऐसे प्रतीक है जो किसी भी नागर भाषा में दुर्लभ होते हैं. 

कुमाऊनी में एक शब्द है 'निमैल' . हिन्दी का गुनगुना या गुनगुनी शब्द इसके निकट होते हुए भी "निमैल' की गहराई तक नहीं पहुँचते. बाहर कड़ाके की ठंड से या ठंडे पानी से नहाने के बाद थोड़ी देर बिस्तर पर ओढ़ कर लेट जाइए, या अंगीठी के पास बैठ जाइए. कुछ देर में आप निमैल का अनुभव करने लगेंगे. नागर भाषा का कोई अकेला शब्द इतनी विशिष्ट व्यंजना दे सकता है. इस में संदेह है. उद्धवशतक के गहबरि आयो गरो भभरि अचानक त्यों, प्रेम पर्यो चपल चुचाई पुतरीनी सों में तो 'भभरि' और 'चुचाइ' जैसा जीवन्त विम्ब-विधान भी लोक की ही देन है.

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors