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Wednesday, December 10, 2014

ट्राय विध्वंस का वह काठ का घोड़ा अब हिंदुत्व का राजकाज है और उसके पेट से विदेशी सेनाएं हमें खत्म करने को निकल रही हैं।

ट्राय विध्वंस का वह काठ का घोड़ा अब हिंदुत्व का राजकाज है और उसके पेट से विदेशी सेनाएं हमें खत्म करने को निकल रही हैं।



अश्वत्थामा के जख्मों की तरह अमर है द्रोपदी की देह और आत्मा भी,हालांकि यह किसी महाकाव्य या पवित्र ग्रंथ में नहीं लिखा है।द्रोपदी की देह और आत्मा दोनों सत्ता शतरंज की चालों में जीती मरती हैं और मर मरकर जीती है।


मुक्त बाजार के राजकाज में गीता को राष्ट्रीय धर्म ग्रंथ बनाया जाना  उसी बलात्कार संस्कृति का धारक वाहक है,जो मुक्त बाजार की सांढ़ संस्कृति भी है।


देश और देश की जनता नीलामी पर है।नीलामी पर है प्रकृति और मनुष्यता।


हमने इसीलिए देशभर में इसबार संविधान दिवस मनाने की अपील की थी,जो मनाया भी गया।लेकिन संवैधानिक प्रावधानों के लिए,जल जंगल जमीन आजीविका नागरिक मानवाधिकार प्रकृति और पर्यावरण के हक हकूक के लिए जब तक आम जनता सड़क पर नहीं उतरती,इस संविधान का दो कौड़ी मोल नहीं रहने वाला है।




पलाश विश्वास


ओस्लो में आज भारत के लिए गौरव का दिन है। भारत के लिए सम्मान का दिन है क्योंकि एक भारतीय को मिल रहा है नोबेल पुरस्कार। मुझे नहीं मालूम कि वे हमें जानते होंगे या नहीं।हमारी लिस्ट में तो वे दशकभर से हैं।


आज के रोजनामचे की शुरुआत उनको बधाई के साथ।


दुनिया भर में बाल मजदूरी और बाल शोषण के खिलाफ अद्भुत काम करने वाले कैलाश सत्यार्थी को आज नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में आज एक भव्य कार्यक्रम में दुनिया की मशहूर हस्तियों के बीच कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।


इस सम्मान को पाकर पूरा भारत देश गर्व से फूला नहीं समा रहा है।

अब हमारे तकनीकी समृद्ध लोगो की प्राथमिकता पर गौर करें और समझें कि देश क्यों मुक्त बाजार में गा गा ग्लाड है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मुकेश अंबानी इस साल देश के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति रहे। ऑनलाइन सर्च कंपनी याहू इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है।

ऑनलाइन सर्च की संख्या और पैटर्न के आधार पर साल 2014 के लिए जारी वार्षिक समीक्षा रिपोर्ट में याहू इंडिया ने देश के 50 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में अंबानी दूसरी बार शीर्ष स्थान बनाने में कामयाब रहे हैं। इस सूची में उनके बाद टाटा समूह के नए चेयरमैन साइरस मिस्त्री हैं जबकि अडानी समूह के मुखिया गौतम अदानी तीसरे स्थान पर हैं। खास बात यह है कि सूची में पहले पांच स्थानों पर सिर्फ उद्योगपति ही हैं। जिनमें ए.एम. कुमार मंगलमचौथे और रतन टाटा पांचवें पायदान पर हैं।



कैलाश के अलावा शांति का नोबेल पुरस्कार पाकिस्तानी समाजसेवी और पूरे विश्व में महिला शिक्षा के लिए आवाज बनने वाली मलाला युजुफई को भी मिलेगा। मलाला युजुफई पाकिस्तान से हैं और तालिबान के खिलाफ खड़े होकर खुद लड़कियों की शिक्षा के लिए एक आवाज बन गईं।


इसी के साथ इस पर भी गौर करें कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) और मेक्सिको की सरकारी पेट्रोलियम कंपनी पेमेक्स के बीच तेल उत्खनन को लेकर समझौता हुआ है। समझौते के मुताबिक रिलायंस इंडस्ट्रीज मेक्सिको में तेल और गैस उत्खनन के लिए पेमेक्स को सहयोग देगी और दोनों कंपनियां आपस में मिलकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में साझा अवसर तलाशेंगी। रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और पेमेक्स अपनी एक्सपर्टीज़ और स्किल का इस्तेमाल गहरे पानी में तेल और गैस की खोज जैसे क्षेत्रों में इस्तेमाल करेंगी।

भारत के पूर्वी तट पर रिलायंस की शानदार कामयाबी और अमेरिकी शेल गैस में रिलायंस इंडस्ट्रीज के अनुभव को भी समझौते के मुताबिक पेमेक्स के साथ इस्तेमाल किया जाएगा। रिलायंस इंडस्ट्रीज पेमेक्स को टेक्नीकल मदद भी देगी। पर्यावरण और सामाजिक जिम्मेदारी के मोर्चे पर भी दोनों कंपनियां आपस अपने अनुभव साझा करेंगी। इस एमओयू पर समझौते से पेमेक्स और रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के पुराने रिश्ते और मजबूत हुए हैं। पेमेक्स के साथ रिलायंस का ये समझौता कंपनी की विकास रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत कंपनी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने कारोबार का विस्तार करती है।


रिर्जव बैंक के ब्याज दरों को यथावत बनाए रखने के बाद निजी क्षेत्र के दो बड़े बैंकों आईसीआईसीआई और एचडीएफसी बैंक ने जमा दरों में 0.50 प्रतिशत तक की कटौती करने की घोषणा की है।

एचडीएफसी बैंक ने विभिन्न परिपक्वता अवधि वाली जमा दरों में 0.50 प्रतिशत तक की कमी की है। वह ग्राहकों को जमा राशि पर अधिकतम 8.75 प्रतिशत दर से ब्याज देगी।


इसी के मध्य राज्य सभा सेलेक्ट कमिटी ने इंश्योरेंस पर रिपोर्ट सौंप दी है। चंदन मित्रा के नेतृत्व में बनी सेलेक्ट कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में री-इंश्योरेंस की परिभाषा में बदलाव का सुझाव दिया है। सेलेक्ट कमिटी ने 49 फीसदी की सीमा सभी तरह के एफडीआई और एफपीआई पर लागू करने की सिफारिश की है। सेलेक्ट कमिटी ने नई इक्विटी के जरिए कैपिटल बेस बढ़ाने की सिफारिश की है। हेल्थ इंश्योरेंस के लिए 100 करोड़ रुपये की पूंजी अनिवार्य करने की सिफारिश की है। आईआरडीए और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को हेल्थ इंश्योरेंस नियम बनाने की सिफारिश की है।



अश्वत्थामा के जख्मों की तरह अमर है द्रोपदी की देह और आत्मा भी,हालांकि यह किसी महाकाव्य या पवित्र ग्रंथ में नहीं लिखा है।द्रोपदी की देह और आत्मा दोनों सत्ता शतरंज की चालों में जीती मरती हैं और मर मरकर जीती है।


याद करें कि गीता के उपदेश कुरुक्षेत्र का युद्ध शुरु होने पहले स्वजनों का वध करने से इंकार करने वाले अर्जुन को दिये गये,जिसने उस द्रोपदी को स्वयंवर में जीता जो कुरुवंश के ध्वंस के लिए राजा द्रुपद ने जो यज्ञ किया,उसकी अग्नि से निकली।कुरुवंश के राजकुमारों में सुलह हो भी गयी थी और इंद्रप्रस्थ देखने चले भी आये थे दुर्योधन, लेकिन मायामहल में जल को स्थल समझने के विभ्रम के शिकार दुर्योधन की जो ङंसकर खिल्ली उड़ायी द्रोपदी ने,वहीं से शुरु हो गया था महाभारत।कुरुक्षेत्र युद्ध के अंत पर विधवा विलाप से गूंजते महाभारत में सबसे मार्मिक क्रंदन फिर वहीं अट्टहास करने वाली रमणी द्रोपदी का ही,जिसके पांचों पुत्र कुरुक्षेत्र हारने के अपराध में मार दिये गये।


कुरुक्षेत्र की वजह द्रोपदी तो कुरुक्षेत्र की अंतिम परिणति भी उसके ही खिलाफ जो एकमुशत पांच भाइयों की पत्नी है और वह भी उसके पूर्व जन्म की तपस्या का फल।


गीता उदेस का सार भी वहीं कर्मफल सिद्धांत जो जाति व्यवस्था के नाम पर शाश्वत रंग भेद और आर्य आक्रामक वर्चस्व को वैधता देने का सबसे बड़ा उपकरण है।


लालकिले पर गीता महोत्सव इसलिए नये सिरे से कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र में देश के तब्दील हो जाने का परिदृश्य है,इसे जो देख नहीं पा रहे हैं,उनपर कर्मफल का वही लिद्धांत लागू होना है।जैसी करनी वैसी भरनी।


अयोध्या काशी मथुरा के बाद अब तमाम इतिहास और भूगोल के केसरियाकरण की बारी है और ताज महल पर दावा हो चुका है,लालकिले की बारी है।


इसी के साथ शुध्धकरण अभियान के तहत घर वापसी का खेल शुरु हो चुका है।घर लौटने वासलों की जाति क्या होगी और उनकी नई जाति के प्रतिमान क्.ा है ,हालांकि संघ परिवार ने इसका खुलासा नहीं किया है।


संघ परिवार के प्रवक्ता बतौर देश की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने गीता के राष्ट्रीयधर्म ग्रंथ बनाये जाने का ऐलान कर दिया है जैसे शिक्षा मंत्री ने संसक्ृत को अनिवार्य पाट बना देने का अभियान छेड़ा हुआ है।


इसी बीच,हमारे पुरातन मित्र कैथालिक संगठने के जान दयाल  ने पूछा है कि देश में पहले से ही एक राष्ट्रीय धर्मग्रंथ है,जो भारतीय संविधान है,तो दूसरे ग्रंथ की जरुरत क्यों है।उनका सवाल वाजिब है।


यह शायद साबित करने की कोई जरुरत नहीं है कि धर्मग्रंथों को पवित्र मानने वाली और पवित्रता के सिद्धांतच के तहत नस्ली नरसंहार को अभ्यस्त सत्ता पक्ष के लिए भारतीय संविधान कोई पवित्र ग्रंथ नहीं है।


जान दयाल जी,संघ परिवार तो  तो मनुस्मृति अनुशासन लागू करना चाहता है और इसीलिए गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ बनाने की यह कवायद है।


हांलांकि आनंद तेलतुंबड़े का कहना है कि इस संविधान का आजतक सत्ता पक्ष के हित में ही इस्तेमाल हुआ है,उसकी बुनियादी फ्रेम में वर्तनी में भी बिना किसी बदलाव के।



बाकायदा संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध और संवैधानिक फ्रेम को तोड़ते हुए तमाम कायदे कानून बदले जा रहे हैं मनुस्मृति शासन के हिंदू साम्राज्यवाद के हित में।


मौलिक अधिकार और नागरिकता तक खतरे में है।


लोकतंत्र और राष्ट्र का वजूद ही नहीं है।


सबकुछ मुक्तबाजार है।


देश और देश की जनता नीलामी पर है।नीलामी पर है प्रकृति और मनुष्यता।


हमने इसीलिए देशभर में इसबार संविधान दिवस मनाने की अपील की थी,जो मनाया भी गया।लेकिन संवैधानिक प्रावधानों के लिए,जल जंगल जमीन आजीविका नागरिक मानवाधिकार प्रकृति और पर्यावरण के हक हकूक के लिए जब तक आम जनता सड़क पर नहीं उतरती,इस संविधान का दो कौड़ी मोल नहीं रहने वाला है।


अभी इस संविधान की मनचाही व्याख्याएं संभव है और मनचाहा इस्तेमाल संभव है।वरना जैसे केसरिया कारपोरेट सत्ता ने योजना आयोग को कूड़ेदान में फेंक दिया,भारतीयसंविधान का भी वही हश्र हुआ रहता।


गीता को राष्ट्रीय ग्रंध बनाने का दांव इस बाबा अंबेडकर के अनुयायियों को वध्य बनाने का आयोजन है।जिसके तहत भारत अब सही मायने में हिंदुस्तान है और यहां गैर हिंदुओं को रहने की इजाजत नहीं है।


गैरनस्ली हिंदुओं की भी शामत है ,जो सारे बहुजन हैं।


सांप्रदायिक दंगों से बी खतरनाक होने जा रहा है संघ परिवार का घर वापसी अभियान।इतिहास का बदला चुकाने का वक्त है यह केसरिया समय।

इतिहास गवाह है कि नारी उत्पीड़न ही धर्म अध्रम का सबसे बड़ा केल है और धर्मांतरण का अचूक हथियार भी वही।


भारत विभाजन के वक्त ,बांग्लादेश युद्ध के समय़ लाखों औरतों की जो अस्मत लुटी गयीं और उस लुटी हुई अस्मत की लाश पर हम अब तक सीमाओं के आर पार आजादी काजश्न मना रहे हैं,इस इतिहास पर गौर करने की जरुरत है क्योंकि हिंदू साम्राज्यवाद फिर वहीं इतिहास दोहरा रहा है और उसके धनुर्दरों की निगाह में हम सारे लोग निमित्तमात्र वध्य ही हैं।


बांग्लादेश की विवादास्पद बना दी गयी मानवाधिकारवादी लेखिका तसलिमा नसरीन ने अपने ताजा फेसबुक पोस्ट पर लिखा हैः


১৯৭১ সালে পশ্চিম পাকিস্তানের হানাদার বাহিনীর বিরুদ্ধে ন'মাস যুদ্ধ করে জিতেছিল পূর্ব পাকিস্তানের মানুষ। ভারত সাহায্য করেছিল যুদ্ধে জিততে। ওই সাহায্যটা না করলে বাংলাদেশের পক্ষে যুদ্ধে জেতা সম্ভব হত বলে আমার মনে হয় না। বাংলাদেশের জন্ম আমাদের বুঝিয়েছিল, ভারত ভাগ যাঁরা করেছিলেন, দূরদৃষ্টির তাঁদের খুব অভাব ছিল। তাঁরা ভেবেছিলেন 'মুসলমান মুসলমান ভাই ভাই, হোক না তারা বাস করছে হাজার মাইল দূরে, হোক না তাদের ভাষা আর সংস্কৃতি আলাদা, যেহেতু ধর্মটা এক, বিরোধটা হবে না।' ভুল ভাবনা। ভারত ভাগ হওয়ার পর পরই বিরোধ শুরু হয়ে গেল। পশ্চিম পাকিস্তানি শাসকগোষ্ঠী শোষণ করতে শুরু করলো পূর্ব পাকিস্তানের মুসলমানদের । নিজেদের ভাষাও চাপিয়ে দিতে চাইলো। আরবের ধনী মুসলমানরা যেমন এশিয়া বা আফ্রিকার গরীব মুসলমানদের তুচ্ছতাচ্ছিল্য করে, মানুষ বলে মনে করে না, পশ্চিম পাকিস্তানী শাসকরা ঠিক তেমন করতো, বাঙালিদের মানুষ বলে মনে করতো না। পূর্ব পাকিস্তান ফসল ফলাতো, খেতো পশ্চিম পাকিস্তান। পুবের ব্যবসাটা বাণিজ্যটা ফলটা সুফলটা পশ্চিমের পেটে। এ ক'দিন আর সয়! মুসলমানে মুসলমানে যুদ্ধ হল। শেষে, বাঙালি একটা দেশ পেলো। ভীষণ আবেগে দেশটাকে একেবারে ধর্মনিরপেক্ষ, সমাজতান্ত্রিক, গণতান্ত্রিক ইত্যাদি চমৎকার শব্দে ভূষিত করলো। ক'জন মানুষ ওই শব্দগুলোর মানে বুঝতো তখন? এখনই বা কতজন বোঝে? বোঝেনি বলেই তো চল্লিশ বছরের মধ্যেই দেশটা একটা ছোটখাটো পাকিস্তান হয়ে বসে আছে। ইসলামে থিকথিক করছে দেশ। টুপিতে দাড়িতে, হিজাবে বোরখায়, মসজিদে মাজারে চারদিক ছেয়ে গেছে। মানুষ সামনে এগোয়, বাংলাদেশ পিছোলো। চল্লিশ বছরে যা পার্থক্য ছিল বাংলাদেশে আর পাকিস্তানে, তার প্রায় সবই ঘুচিয়ে দেওয়া হয়েছে। সমান তালে মৌলবাদের চাষ হচ্ছে দু'দেশের মাটিতে। বাংলাদেশ মরিয়া হয়ে উঠেছে প্রমাণ করতে, যে, 'মুসলমান মুসলমান ভাই ভাই। দ্বিজাতিতত্ত্বের ব্যাপারটা ভুল ছিল না, ঠিকই ছিল'।

দেশের সংবিধান বদলে গেছে। পাকিস্তানি সেনাদের আদেশে উপদেশে যে বাঙালিরা বাঙালির গলা কাটতো একাত্তরে, পাকিস্তান থেকে আলাদা হতে চায়নি, দেশ স্বাধীন হওয়ার পর খুব বেশি বছর যায়নি, দেশের তারা মন্ত্রী হয়েছে, দেশ চালিয়েছে। আমার মতো গণতন্ত্রে সমাজতন্ত্রে সমতায় সততায় বিশ্বাসী একজন লেখককে দেশ থেকে দিব্যি তাড়িয়ে দেওয়া হয়েছে কিছু ধর্মীয় মৌলবাদীকে খুশি করার জন্য। যারা তাড়ালো, যারা আজও দেশে ঢুকতে দিচ্ছে না আমাকে, সেই রাষ্ট্রনায়িকারা ওপরে যা-ই বলুক, ভেতরে ভেতরে নিজেরাও কিন্তু মৌলবাদী কম নয়।

বিজয় উৎসব করার বাংলাদেশের কোনও প্রয়োজন আছে কি? আমার কিন্তু মনে হয় না। আসলে ঠিক কিসের বিরুদ্ধে বিজয়? পাকিস্তান আর বাংলাদেশের নীতি আর আদর্শ তো এক! সত্যিকার বিরোধ বলে কি কিছু আছে আর? পাকিস্তানের ওপর নয়, বরং বাংলাদেশের বেশিরভাগ মানুষের রাগ একাত্তরের মিত্রশক্তি ভারতের ওপর। বিজয় দিবস করে খামোকাই নিজের সঙ্গে প্রতারণা না করলেই কি নয়! ১৬ ডিসেম্বরে নয়, বাংলাদেশ বরং ১৪ই আগস্টে

উৎসব করুক। পাকিস্তানের জন্মোৎসব করুক ঘটা করে। পাকিস্তানের সঙ্গে মিলে মিশে রীতিমত জাঁকালো উৎসব। মুসলমানের উৎসব। বিধর্মীদের থেকে মুসলমানদের আলাদা করার ঐতিহাসিক উৎসব। বিজয় উৎসব।

तसलिमा नसरीन ने भारत विभाजन के जिम्मेदार लोगों के विजन पर सवाल उठाये हैं पहलीबार ,यह गौर तलब है और उनने जो पूछा है यह सवाल कि बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी ,लोकतांत्रीक राष्ट्र का मतलब कितने लोग समझते हैं,उन सवालों का जवाब हम भी सोच लें तो बेहतर।तसलिमा ने बांग्लादेश के छोटा पाकिस्तान बन जाने के हालात बयां किये हैं और बताया है कि मातृभाषा को राष्ट्रीयता बनाकर जिस देश को भारत की सकरियमदद से आजादी मिला है,वह किस तरह इस्लामी बांग्लादेशी राष्ट्रीयता में तब्दी ह गयी है और इसके नतीजे क्या निकल रहे हैं।


बांग्लादेश की जगह भारत को रखें और इस्लामी की जगह हिंदू राष्ट्रवाद को रखें तो भारत में क्या चल रहा है,वह तस्वीर निकल कर आयेगी।


सच तो यह है कि अमन चैन के बिना बाजार का विस्तार भी नहीं होता।केसरिया के चलते कारपोरेट राज भी आकुल व्याकुल होने लगा है।


विडंबना यह है कि मुक्त बाजार का स्थाई भाव लेकिन अभूतपूर्व हिंसा है।परिवार,समाज भाषा संस्कृति लोक जनपद आजीविका प्रकृति पर्यावरण समेत इतिहास भूगोल के विरुद्ध एकाधिकारवादी काारपरेट आक्रमण से कानून का राज खतम है और सांढ़ संस्कृति मेंं अपराधी निरंकुश हैं।


ऐसे परिवेश में तात्कालिक तौर पर मुक्तबाजाकर को त्वरा जरुर मिलती है लेकिन गीता महोत्सव से जो निरंकुश अराजकता फैलने वाली है वह आखिरकार मुक्त बाजार और अमेरिकी हितों के ही विरुद्ध है।


खलबली इतनी है कि मुक्त बाजार के सिपाहसालार तमाम कारपोरेट दिलो दिमाग जो अब तक केसरिया कार्निवाल के मुख्य आयोजक हैं,वे सर धुनने लगे हैं।


आज के इकानामिक टाइम्स की इस खबर को जरुर पढ़े और उस पर गौर भी करेंः




At closed-door CII meet, top industrialists voice concern over apparent lack of enough efforts to kick start growth

Six months after Modi Sarkar assumed power amidst great expectations, India Inc is worried.

At a closed door, barred-to-media session of the Confederation of Indian Industry last Saturday (December 6), some of India Inc's most prominent voices asked whether the government is doing enough to kickstart growth, unlock infrastructure and spur fresh investment.

Some of the sharp comments made at the meeting include: "This government has moved us from despair to hope…but now I think that hope is waning"; "Somehow I thought this government would be politically bolder"; "Is this government's stress on freebies becoming detrimental to growth?"; "India is a little behind on the growth curve…and tax reforms".

Members were invited by CII to share their "frank views" and were also told that the government was "keen to hear feedback from industry".

Biocon Chairperson & MD Kiran Mazumdar-Shaw, who attended the CII meeting, told ET: "A lot of industry members talked about (at the meeting) how much reforms this government can actually bring in."

ET spoke to several other people familiar with the discussions at CII's National Council meeting on Saturday . Many of them spoke on the condition they not be identified.

When asked about the meeting, Ajay Shriram, CII president, who presided over the discussions, told ET that "industry appreciates that changing the system is not possible `overnight' and is waiting for the next Budget".

He also said, "CII has always been saying that infrastructure projects worth lakhs of crores still awaiting environmental and forest clearances must take off on the ground and start production."

नवभारत टाइम्स में अनुवाद भी छपा हैछ

मोदी सरकार बड़ी उम्मीदों के बीच 6 महीने पहले सरकार में आई थी। इंडस्ट्री को लग रहा था कि पिछले कुछ साल से इकनॉमी पर जो काले बादल छाए थे, वे जल्द ही छंट जाएंगे और देश फिर से तेजी से तरक्की की राह पर आगे बढ़ेगा। हालांकि, अब यह आस टूट रही है।

कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज की पिछले शनिवार को बंद कमरे में एक मीटिंग हुई थी। इसमें इंडिया इंक के कुछ जाने-माने दिग्गजों ने यह सवाल पूछा कि क्या सरकार ग्रोथ तेज करने, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और नए इनवेस्टमेंट को प्रमोट करने के लिए वो कदम उठा रही है, जिनकी जरूरत है। इस मीटिंग की मीडिया को भनक नहीं लगने दी गई थी। मीटिंग में कई तल्ख कमेंट्स आए- 'इस सरकार ने मायूसी के बाद उम्मीदों का दीया जलाया था, लेकिन अब मुझे लग रहा है कि यह आस टूट रही है।' 'मुझे लग रहा था कि शायद यह सरकार बोल्ड फैसले ले सकती है।' 'सरकार रियायतों पर जोर दे रही है, क्या उससे ग्रोथ को नुकसान नहीं पहुंचेगा?' 'भारत अभी भी ग्रोथ और टैक्स रिफॉर्म के मामले में पीछे है।'

सीआईआई ने इंडस्ट्री दिग्गजों को खुलकर अपनी बात कहने के लिए बुलाया था। उनसे कहा गया था कि सरकार 'इंडस्ट्री का फीडबैक जानना चाहती है।' बायोकॉन की चेयरपर्सन और मैनेजिंग डायरेक्टर किरण मजूमदार शॉ भी सीआईआई की मीटिंग में शामिल हुई थीं। उन्होंने ईटी को बताया, 'इंडस्ट्री से जुड़े कई लोगों ने यह कहा कि नई सरकार वास्तव में कितना रिफॉर्म कर सकती है।' शनिवार को सीआईआई की नेशनल काउंसिल मीटिंग में हुई बातचीत की जानकारी रखने वाले कई लोगों से ईटी ने बात की। इनमें से कई ने नाम नहीं बताने की शर्त पर जानकारी दी। जब सीआईआई के प्रेसिडेंट अजय श्रीराम से मीटिंग के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'इंडस्ट्री को पता है कि रातोंरात सिस्टम को बदला नहीं जा सकता और वह अगले बजट का इंतजार कर रही है।' उन्होंने यह भी कहा, 'सीआईआई हमेशा कहती रही है कि लाखों करोड़ के इंफ्रा प्रोजेक्ट्स अभी भी एनवायरमेंटल और फॉरेस्ट क्लीयरेंस का इंतजार कर रहे हैं। इन्हें शुरू करना जरूरी है।'

मीटिंग की शुरुआत में श्रीराम ने इंडस्ट्री दिग्गजों को सरकार के परफॉर्मेंस पर खुलकर अपनी राय बताने के लिए कहा। उनसे कहा गया कि फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली इंडस्ट्री सर्कल में क्या चर्चा चल रही है, यह जानना चाहते हैं। ईटी को पता चला है कि भारती ग्रुप के चेयरमैन सुनील मित्तल ने कई मेंबर्स की आलोचना और फिक्र सुनने के बाद कहा कि 'इंडस्ट्री को संयम से काम लेना चाहिए और रिफॉर्म में कुछ साल लग सकते हैं।' उन्होंने यह भी कहा कि यह सरकार इंडस्ट्री को लेकर सही अप्रोच रखती है।




गौरतलब है कि यह खबर सिर्फ आर्थिक सुधारों और सहूलियतों के बाबत नहीं है जैसे कि अक्षरशः पढ़ने से लगता है।जो धर्मोन्माद और धर्मांतरण का खुल्ला केल फर्रूखाबादी शुरु हुआ है, उससे मुक्तबाजार को बाट ही लगने वाली है।


अल कायदा और तालिबान के जरिये मध्यएशिया के तल कब्जावने का दांव उलटा पड़ गया है तो हिंदू तालिबान और हिंदू अलकायदा से अमेरिका और इजराइल पर भी घात लगना तय है।


तेल के कारोबार से विश्व व्यवस्था के सरगना बने अमेरिका की हुक्म उदूली करने लगा है औपेक और तेल गिरते गिरते पैसठ डालर पर पहुंच गया।डालर की तो अब ऐसी की तैसी होने वाली है।


जाहिर है किडालर के जरिये अमेरिकी कंपनियों को अपना कारोबार सौंपने वाले भारतीय उद्योग जगत का हाल भी वही होना है जो भारतीय कृषि,उत्पादन प्रणाली और खुदरा बाजार को हुआ है।


हम आम भारतीयों की तरह बुरबक नहीं हैं पैसा बनाने वाले।


पैसे डूबने के खतरे हों तो उनके त्रिनेत्र खुल जाते हैं।


वह त्रिनेत्र खुलने ही वाला है।


उद्योग जगत के लिए यह खतरे की घंटी है कि धर्मोन्माद का यह दावानल कहीं जनादेश प्रयोजन और आर्तिक सुधारों और टैक्स होलीडे,कमीशन वगैरह के अलावा उनका आशियाना ही न जला दें।


सारे कानून बदले जा रहे हैं।फिर कारपोरेट बेचैनी का सबब क्या है,समझने वाली बात है।

भूमि अधिग्रह्ण के नये संशोधन के तहत नेशनल हाईवे पर जमीन कोने वालों को धेला तक नहीं मिलने वाला है।कोलकाता में उद्योगपति आदि गोदरेज कल ही बोले कि जमीन की हदबंदी सिरे सेहटा देनी चाहिए।


जाहिर है,वह प्रक्रिया शुरु हो गयी है।भूमि सुधार के घोषित लक्ष्य के बदले जमीन की यह कारपोरेटचकबंदी का जमाना है।


जैसे ब्रिटेन में बाड़ेबंदी हुई,वैसा ही कुछ नजारा है।


कल कारपोरेट जमावड़े सके साथ सुंदरवन में बाघ देखने गयी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और लौटते हुए उनकी बाट जोह रही सुंदरवन की विधवाओं की ओर देखा तक नहीं।



भारत भर की स्त्रियों की उसी विधवा दशा और वृंदावन परिणति ही गीता के मनुसमृति अनुशासन का आशय है।



हमारे गुरुजी तारा चंद्र त्रिपाठी सत्तर के दशक में कहते थे कि यह देश सेक्स का भूखा है। इतनी वर्जनाें है कि जब ये वर्जनाें टूटेंगी तो कयामत ही समझो।


हम लोग तब टीनएजर थे और उनकी कड़ी निगाह रहती थी कि हम लोग सेक्स के तिलिस्म में फंस न जायें कहीं।


आज वह तिलिस्म ही यह भारत देश है और मुक्तबाजार की देहमुक्ति सुगंद में वर्जनाएं सारी एकमुश्त टूटने लगी है,रिश्तों की मर्यादाएं भंग हैं।


खबरों पर गौर भी कीजियेगा,हम उदाहरण नहीं गिना रहे हैं कि कहां क्या हो रहा है।सबकुछ खुलेआम हो रहा है और हिंदुत्व के कार्निवाल के तहत हो रहा है।  


सारी वर्जनाएं टूट रही हैं और कयामत हमारे दरवज्जे खड़ी मुस्कुरा रही है और हम खुल्ला ताला तोड़कर रासलीला में निष्मात है और रासलीला भी उन्हीकी,जिनका वह पवित्र गीता उपदेश है।


हमारे युवा मित्र अभिषेक ने कल रात हमारे उबेर समूह के जरिये अमेरिकी निवेश की दिल्ली बलात्कार कांड में भूमिका पर लिखे अंग्रेजी आलेख पर फेसबुक पर टिप्पणी कर दी कि क्या यह कांस्पिरेसी थ्योरी का एक्जाजरेशन तो नहीं है।


कोई दूसरा होता तो मटिया देता और नजरअंदाज कर जाता या ज्यादा गंभीर होता,तो सीधे जवाब दे देता।


हमने तुरंत ही फोन लगाया।उसने उठाया नहीं।


समझ गये हम पट्ठा घोड़ा बेचकर सो गया।


हम तो भोर चार पांच बजे तक पीसी के साथ होते हैं।


अभी हम गहरी नींद में थे कि अभिषेक का फोन आ गया।मतलब तो समझबे करै है ससुरा।बोला,कि नई दिल्ली में बलाताकार का मामला इंडिविजुअल केस है जबकि निवेश का फेनामेनन दूसरा होता है।


इसपर हमने कहा कि यह महज कानून व्यवस्था का मामला नहीं है।


उबेर ग्लोबल कंपनी है और उसका निवेश भी ग्लोबल है।


दुनियाभर में नईदिल्ली की प्रतिरक्रिया हो रही है।उसको जो छूट दी गयी है,उसीका नतीजा यह बलात्कार है।


अगर उबेर अमेरिकी कंपनी नहीं होती तो यादवज्यू का यह करिश्मा देखने को नहीं मिलता।



हम दरअसल कानून व्यवस्था की बात ही नहीं कर रहे हैं।


गौरतलब है कि अमेरिका के पापकर्म के खुलासा वाले तमाम दस्तावेजों को उत्तर आधुनिक विमर्श वाले कांस्पिरेसी थ्योरी कहकर मटिया देते हैं।


इलुमिनेटी परिवार का शताब्दियों का इतिहास भी,हथियारों का कारोबार भी,मस्तिष्क नियंत्रण विचार नियंत्रण तंत्र भी,तेल युद्ध भी और सारा अमेरिकी इजराइली पाप कर्म कांसपिरेसी थ्योरी कहा जाता है।


अभिषेक से कमसकम दस पंद्रह सालों का अपनापा ही नहीं है ,बल्कि वह हमारा भविष्य भी है और हम उसे यह कह नहीं सकते कि यह मंतव्य करके वह अमेरिका से सावधान समेत हमारा अभ तक का रोज रोज का लिखा सबकुछ खारिज किये जा रहा है एक झटके से।क्योंकि हम अतच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा आशय उसका नहीं है।


उसने कहा कि अर्थव्यवस्था की बात हम समझ रहे हैं लेकिन आपने जो लिखा है ,उससे तो लगता है कि बलात्कार के लिए ही अमेरिका ने निवेश किया है।


खुदै अभिषेक लिख मारो हैःभलेमानुस अर्जुन को अपने रिश्‍तेदारों-संगियों-प्रियजनों पर तीर चलाने में संकोच हो रहा था। तब श्रीकृष्‍ण ने उसे युद्धभूमि में एक लंबा लेक्‍चर दिया। इस लेक्‍चर से वह अपने भाई-बंधुओं को मारने के लिए प्रेरित हुआ। कालांतर में इस लेक्‍चर को गीता का नाम दिया गया। गीता मूलत: ''युद्ध का दर्शन'' है।

अभिषेक ने आगे लिखा हैःवे चाहते हैं कि इस देश के सारे भलेमानुस अर्जुन बन जाएं। अपने भाइयों को मारें-काटें। आपस में लड़ें। सिविल वॉर हो जाए। भारत में एक और महाभारत हो। चूंकि लोग मोटे तौर पर सभ्‍य हो चुके हैं और साम्‍प्रदायिक नफ़रतों का डोज़ उनके बहुत काम नहीं आ रहा, इसलिए गीता को राष्‍ट्रीय पुस्‍तक बनाना उनके लिए इकलौता विकल्‍प रह गया है।



यह सही है कि हम भौंकने वाले कम हैं।

हम विशेषज्ञ भी नहीं हैं।जो विशेषज्ञ हैं वे सत्ता पक्ष में हैं ही नहीं।


हमारी समझ में जो आता है,उसे साझा करने की कोशिश करते हैं और कारपोरेट मीडिया के विपरीत हम लोग वैकल्पिक मीडिया में हर सूचना को साझा करते हैं और तत्काल करते हैं।यह फास्ट फूड जैसा करतब ही समझिये।भाषा और शैली की अपनी सीमाये हैं और हम शायद पूरी बात सही तरीके से समझा नहीं पा रहे हैं।


लेकिन हमने अभिषेक को बता दिया कि अनमेरिका निवेश का आशय वही बलात्कार है।

अंतथः मुक्तबाजार का निर्णायक शिकार वही स्त्री है,जिसकी देह और आत्मा पर लिखा होता है हर विजेता का इतिहास।


द्रोपदी की तरह तमाम यूनानी मिथक हेलेन से जुड़ते हैं।ट्राय के युद्ध में सारे देव देवियां पक्ष विपक्ष में थीं और उनके मिथक ही यूरोपीय साहित्य,संस्कृति के मुहावरे हैं।


ठीक वैसे ही जैसे हमरा महाकाव्यों रामायण और महाभारत के तमाम मिथक हमारी भाषाओं और लोक के मुहावरे हैं।


हेलेन को भी ट्राय के युद्ध का कारण बताया जाता है।


ट्राय का वह युद्ध भी हेलेन की देहमुक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध था।जो उसकी देह और आत्मा पर लड़ा गया,जैसा महाभारत द्रोपदी की देह और आत्मा पर।


इलियड में तो पीड़ित वह अकेली स्त्री हेलेन है।


महाभारत के गर्भनाल से जुड़े हैं भागवत गीता और भागवत पुराण।जहां राधा से लेकर द्रोपदी हर स्त्री अबाध यौन शोषण की शिकार है।


गंगा, सत्यवती, अंबा, अंबिका, अंबालिका, कुंती,  माद्री के सारे मिथक स्त्री देह के साथ पुरुषतांत्रिक व्याभिचार को वैधता देते हैंय़यौनता के अबाध कार्निवाल की घटना और परिणाम का उत्तरदायी स्त्री मन और शरीर ,यही हमारा सनातन धर्म है,धर्मांतर में या से कुछ फर्क नहीं पड़ता है।


रंग बिरंगे पुरोहितों मुखियों का फतवा ही स्त्री नियति है।यह नियति मुक्त बाजार में बदली नहीं है,और भयंकर हो गयी है।


मुक्त बाजार के राजकाज में गीता को राष्ट्रीय धर्म ग्रंथ बनाया जाना  उसी बलात्कार संस्कृति का धारक वाहक है,जो मुक्त बाजार की सांढ़ संस्कृति भी है।


ट्राय विध्वंस का वह काठ का घोड़ा अब हिंदुत्व का राजकाज है और उसके पेट से विदेशी सेनाएं हमें खत्म करने को निकल रही हैं।


रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे जो कामकला का प्रदर्शन है खुल्ल खुल्लम,फ्रीसेक्स का जो खुल्ला आमंत्रण है और जो फ्री सेक्स बाजार है,जो कंडोम के निर्लज्ज विज्ञापन पल छिन पल छिन हैं,जो वियाग्रा जापानी तेल और सेक्सी सुगंध के अलावा सौंदर्य बाजार है,

वाहां बलात्कारियों को पांसी देकर बलात्कार रोकने का रियाज बेमतलब है।


क्योंकि अभिषेक के कहे मुताबिक कानून व्यवस्था का यह कोई इकलौता मामला नहीं है,सीधे तौर पर निवेस का मामला है,जिस निलेश के हितों की हिफाजत के लिए जघन्य से जघन्यअपराधी को शह दी जाती है कानून व्यवस्था और लोकतंत्र की धज्जियां उधेड़कर और कारपोरेटपूंजी के दम पर युद्ध अपराधियों को सत्ता की बागडोर सौंप दी जाती हैं,जो स्त्री अस्मिता को कुचलकर ही राजसूय का आयोजन करते हैं।


हजारों साल से सेक्स से वंचित देश में हीनताग्रंथियों से लैस समाज में, नस्ली और जाति भेदभाव,धार्मिक अनुशासन की वजह से पश्चिम के विपरीत सेक्स के लिए समानता के अधिकार से वंचित बहुसंख्य जनसंख्या के मध्य पुरुषतांत्रिक समाज में जहां स्त्री दरअसल वही द्रोपदी है,घटना की जिम्मेदार भी वह और परिणाम भी उसे भुगतने हैं,जो शूद्र भी है और पुरुषतंत्र में जो सिर्फ भोग्या,नरकद्वार है,शास्त्रों के मुताबिक उसकी सर्वत्र पूजा पूजा पंडालों में ही संभव है ।


पूजा पंडालों से बाहर फिर वह या तो सती है या फिर वेश्या।


स्त्री देह ही अब मुक्त बाजार है।


ऐसे में बलात्कार जैसी घटनाओं के आशय सीधे अर्थव्यवस्था से जुड़ते हैं,सारे के सारे बलात्कारियों को भले ही आप फांसी दे दो,बलात्कार रुकेंगे नहीं कि क्योंकि मुक्तबाजारी समाज में अपने घर में भी स्त्री सुरक्षित नहीं है।



हमारे मित्रों,परिजनों और खासतौर पर सविता को हमारी सेहत के लिए फिक्र लगी रहती है और उनकी हिदायते मानना मेरे लिए नामुमकिन है।


हम तो जानते हैं कि अपने रचे हुए नरक को भोगे बिना नरक की मेहरबानी भी नहीं मिलती और कयामत सी जिंदगी का बोझ ढोना ही होता है।रोज जी जीकर मरकर जीना होता है।


हम जो मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था के तिलिस्म को तोड़ नहीं सकें तो इसका पूरा मजा लिए बिना मरना भी मुश्किल है।


इस भारत देश का राजकाज राजकाज नहीं कारोबार है अमेरिकी।


नई दिल्ली में उबेर वेब टैक्सी के गोरखधंदे के खुलासे के बाद साफ हो गया है कि अमेरिकी हितों के लिए सरकार अमेरिकी कंपनियों की कोई निगरानी करना तो दूर,उनपर किसी तरह का अंकुश भी नहीं रखती।


भारतीय कंपनियों को जो नाना प्रकार के कर उपकार भरने पड़ते हैं,अमेरिकी और दूसरी विदेशी कंपनियों को वह झमेला झेलना ही नहीं है।


अबाध पूंजी प्रवाह का बीज मंत्र यह है।


सेज और औद्योगिक गलियारों में टैक्स होलीडे का प्रावधान है।


उबेर प्रकरण से साफ है कि सेज गलियारा के अलावा राजधानी नई दिल्ली में भी अमेरिकी पूंजी के लिए टैक्स होली डे है।


हमारे हितैषी हमारे लिखे से भी परेशान हो जाते हैं।लेकिन हम जैसे दो चार भौकने वाले कुत्तों की परवाह इस मुक्तबाजार को नहीं है क्योंकि उन्हें मालूम है कि हमारी कोई सुनवाई नही है।


वे यकीनन हमें फोकस पर लाने की गलती नहीं कर  सकते। इसलिए लिखने वालों से निवेदन है कि बिंदास लिखिये,जो हाल है,उससे बुरा कुछ भी हो नहीं सकता।फिलहाल इस देश में हमारी कोई भूमिका नहीं है।


इसी बीच संसद में हो हल्ला का दौर फिर शबाब पर है और आगरा में मुस्लिम समाज के 57 परिवारों के धर्म परिवर्तन के मामले ने राजनीतिक रंग अख्तियार कर लिया है। राज्यसभा में बीएसपी की नेता मायावती ने लालच के आधार पर लोगों को फुसलाने के आरोप लगाए। राज्यसभा में विपक्षी सांसदों ने इस मामले में प्रधानमंत्री के बयान की मांग करते हुए कहा कि सरकार इस मामले में दखल दे। वहीं सरकार ने कहा कि यह राज्य सरकार का मामला है।


गौरतलब है कि आगरा में सोमवार को घर वापसी के नाम पर करीब 57 मुस्लिम परिवारों का धर्म परिवर्तन कराया गया। इसके बाद अब अलीगढ़ में भी ऐसा ही एक और कार्यक्रम होने जा रहा है। आयोजकों ने बताया कि 25 दिसंबर से पहले अलीगढ़ में कई ईसाई परिवार स्वेच्छा से हिन्दू धर्म को अपनाएंगे।


बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि यह गंभीर मामला है। इसमें लालच की बात सामने आ रही है। समाजवादी पार्टी की सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। यह बीजेपी और उसके सहयोगी संगठनों का काम है। सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश है। यूपी के साथ देशभर में आग फैलाएंगे।

कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि यह कौन से दल ने किया ये बात आप भूल जाइये, प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन करना आपराधिक जुर्म है।


वहीं इस मामले में बजरंग दल के एक कार्यकर्ता के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज किया गया है। बजरंग दल के कार्यकर्ता किशोर बाल्मीकि पर आरोप है कि उसने जबरन धर्म परिवर्तन कराया। यह शिकायत हिन्दू बनाए गए इस्माइल ने दर्ज कराई है। इस्माइल का आरोप है कि किशोर एक महीने से उन पर दबाव डाल रहा था। धर्म परिवर्तन करने वालों में से कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उन्होंने दबाव और लालच में आकर ऐसा किया है।


वहीं समाजवादी पार्टी का कहना है कि उनकी सरकार मामले को गंभीरता से ले रही है और इसकी जांच करेगी। आगरा से बीजेपी सांसद का कहना है कि लोगों ने स्वेच्छा से अपना धर्म बदला है। कोई दबाव नहीं था।

गडकरी का बयान भी पढ़ लें

परिवहन मंत्री नितिन गडकरी कैब में हुई दुष्कर्म की घटना के बाद उस सेवा को बंद करने के विरोध में हैं। उन्होंने मंगलवार को कहा कि कैब सर्विस पर बैन लगाना गलत है। अपनी इस बात को साबित करने के लिए गडकरी ने जो बयान दिया है वो और भी गैरजिम्‍मेदाराना है। गडकरी ने कहा कि रेल में रेप हो तो क्या रेल सेवा बंद कर दें? गाड़ियों को बंद करना ठीक नहीं है।


केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने उबर टैक्सी सेवा पर बैन को गलत बताया है। उन्होंने कहा कि ये घटना ड्राइविंग लाइसेंस में गड़बड़ी के कारण हुई है। नितिन गडकरी ने कहा कि वो मोटर व्हीकल एक्ट में बदलाव लाएंगे और अमेरिका, ब्रिटेन की तरह का एक सेंट्रल रिकॉर्ड सिस्टम तैयार करवाएंगे जिसमें ड्राइवरों की सारी जानकारियां मौजूद होंगी। नितिन गडकरी के मुताबिक टैक्सी सर्विस पर बैन लगाना समस्या का समाधान नहीं है बल्कि सिस्टम की कमजोरियों को दूर करना चाहिए।


आपको बता दें कि केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी आज शाम 6 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने मोटर व्हीकल एक्ट में बदलाव लाने के लिए प्रेजेंटेशन प्रस्तुत करेंगे।


वहीं दिल्ली में उबर टैक्सी में रेप के बाद मुंबई पुलिस ने ऑटो और टैक्सी ऑपरेटरों को ड्राइवरों का पुलिस वेरिफेकेशन अनिवार्य कराने के आदेश दिए हैं। पुलिस ने सभी ड्राइवरों के पास्ट रिकॉर्ड चेक करने के भी आदेश दिए हैं। इसके अलावा सभी ऑटो और टैक्सी में ड्राइविंग सीट के पीछे ड्राइवर का नाम, फोटो, परमिट नंबर और पुलिस हेल्पलाइन नंबर लिखना भी अनिवार्य होगा। आदेश का पालन नहीं करने वालों को कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।


वहीं उबर समेत टैक्सी एग्रीगेटर्स पर सरकार की सख्ती के बाद आज दिल्ली में रेडियो टैक्सी ऑपरेटर्स का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था ने भरोसा दिलाने की कोशिश की कि उनकी सर्विस में यात्रियों की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था है।


देश के 18 रेडियो टैक्स ऑपरेटर्स की तरफ से एसोसिएशन ऑफ रेडियो टैक्सीज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए साफ किया कि वो हर राज्य के यातायात नियमों को पूरी तरह मानते हुए काम करते हैं। उन्होंने कहा कि वेब आधारित टैक्सी सर्विस देने वाली कंपनियां या टैक्सी एग्रीगेटर्स को भी सभी नियम-कानून के दायरे में लाना चाहिए।


जेटली का दांव

दुनियाभर में तोल की कीमतें गिर रही है और केसरिया भारत सरकार गैस की नकद सब्सिडी बैंक से जोडने की अनिवार्यता के साथ असंवैधानिक गैरकानूनी दुनियाभर के नागरिकों की नाटो निगरानी की कारपोरेटआधार योजना को वैधता देते हुए अमेरिकी तेल कारोबार के मुनाफे का इंतजाम कर रही है।तो दूसरी ओर पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाए जाने से मौजूदा वित्तवर्ष में सरकार को 10,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा।ऐसा कारपोरेटवकील वित्तमंत्री का दावा है।

गौरतलब है कि उद्योग संगठन एसोचैम ने सरकार से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम गिरने के बावजूद देश में पेट्रोल, डीजल और गैस के दाम ऊंचे बनाए रखने की सिफारिश की है।


केंद्र सरकार को भेजे गए एक नोट में एसोचैम ने सलाह दी है कि देश में तेल और गैस की कीमत एक विशेष स्तर पर स्थिर कर देनी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय बाजार की गिरावट और देश में ऊंची कीमत का अंतर एक खास कोष का गठन कर उसमें जमा करनी चाहिए जिसका इस्तेमाल घरेलू स्तर पर कच्चे तेल के खोज के काम के लिए किया जा सके। उसने हाल ही में सरकार द्वारा कच्चे तेल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाए जाने का भी स्वागत किया।



वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि 12 नवंबर तथा 2 दिसंबर को उत्पाद शुल्क में की गई बढ़ोतरी से सरकार को चालू वित्तवर्ष के शेष महीनों में क्रमश: 6000 करोड़ तथा 4500 करोड़ रुपये का राजस्व मिलेगा।


उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट के चलते सरकार ने दो चरणों में इन दो पेट्रोलियम उत्पादों पर शुल्क में बढ़ोतरी की थी।


वहीं, जेटली ने यह भी दावा किया कि पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाए से इनके खुदरा दामों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।


कच्चे तेल की कीमतों में हो रही है। यूरोप और जापान की इकोनॉमी की हालत खराब है। चीन में भी ग्रोथ की रफ्तार धीमी होने के संकेत मिल रहे हैं। और ग्लोबल डिमांड में भी और कमी आने का खतरा बढ़ गया है। जिसकी वजह से कच्चे तेल के भाव के 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जाने की आशंका है।


कच्चे तेल के भाव के 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जाने से अमेरिका में शेल ऑयल का उत्पादन बंद हो जाएगा और शेल में निवेश करने वाली कंपनियों के बंद होने का खतरा पैदा हो जाएगा। इसके अलावा ऐसा होने पर दुनियाभर में एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश रुक जाएगा। कच्चे तेल के भाव के 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जाने से फाइनेंशियल सेक्टर पर भी असर हो सकता है।


कच्चे तेल के भाव के 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जाने से अमेरिका में ग्रोथ पर दबाव आएगा जिसका असर भारत पर भी दिखेगा। इस स्थिति में भारत की घरेलू इकोनॉमी के लिए भी चिंताएं बढ़ सकती हैं। ग्लोबल ग्रोथ धीमी होने से भारत के एक्सपोर्ट में कमी आ सकती है। भारत के नजरिए से देखें तो क्रूड के सस्ते होने से होने वाली बचत की तुलना में एक्सपोर्ट में कमी से कहीं अधिक नुकसान होगा। कच्चे तेल के सस्ता होने से इंपोर्ट पर निर्भरता बढ़ जाएगी जिससे देश में ऑयल-गैस एक्सप्लोरेशन गतिविधियां अस्थाई रूप से रुक सकती हैं।


कच्चे तेल की गिरती कीमतों पर क्रिसिल के चीफ इकोनॉमिस्ट डीके जोशी का कहना है कि कच्चे तेल की गिरावट से कुछ तेल उत्पादक कंपनियों को नुकसान हो सकता हैं। लेकिन भारत जैसे क्रूड के इंपोर्ट पर निर्भर देश के लिए कच्चे तेल का सस्ता होना पॉजिटिव है। अब सरकार को इस अवसर का फायदा पेट्रोलियम सेक्टर में किए जाने वाले रिफार्म के लिए उठाना चाहिए।


डीके जोशी ने कहा कि अमेरिका में तेल के भाव घटने से अमेरिका के निजी उपभोग में बढ़त होगी। अमेरिका में निजी उपभोग के बढ़ने से भारत के एक्सपोर्ट में बढ़ोतरी होगी। उन्होंने कहा कि कच्चे तेल के दाम में गिरावट से भारत के जीडीपी में बढ़त हो सकती है। डीके जोशी के मुताबिक अगले साल कच्चे तेल का भाव 80 डॉलर प्रति डॉलर के आसपास रहेगा।


इन्फोसिस के सह-संस्थापकों ने बेचे एक अरब डॉलर के शेयर, निवेशकों को दो अरब डॉलर की हानि

एनडीटीवी कीकबर है यह कि नारायणमूर्ति और नंदन निलेकणि समेत इन्फोसिस के चार सह-संस्थापकों के परिवारों ने सोमवार को एक अरब डॉलर (6,484 करोड़ रुपये) से अधिक मूल्य के शेयर बेचे दिए। मूल प्रवर्तकों के बाहर निकलने तथा पहली बार किसी बाहरी व्यक्ति विशाल सिक्का के मुख्य कार्यपालक अधिकारी बनने के कुछ महीनों के भीतर ये शेयर बेचे गए हैं।


गौरतलब है कि आदार कार्ड योजना के सौजन्य से नंदन निलेकणि की कंपनी इफोसिस मंदी के दौर में भी लगातार मुनाफा कमाता रहा है।


इन चार सह-संस्थापकों में पूर्व सीईओ एसडी शिबूलाल तथा के. दिनेश शामिल हैं। चारों ने अपनी कुछ हिस्सेदारी - उद्यमशीलता तथा परोपकार से जुड़ी गतिविधियों के लिए - बेची है, लेकिन इसके कारण इन्फोसिस का शेयर करीब पांच प्रतिशत तक नीचे आ गया और उसके बाजार पूंजीकरण में दो अरब डॉलर का नुकसान हुआ।


नारायणमूर्ति, निलेकणि और दिनेश के तथा उनके परिवार के कुछ सदस्यों एवं सह-संस्थापक एसडी शिबूलाल की पत्नी ने 6,484 करोड़ रुपये में इन्फोसिस के 3.26 करोड़ शेयर बेचे, जो कंपनी में 5.5 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी के बराबर है। इन्फोसिस का बाजार पूंजीकरण 2.25 लाख करोड़ रुपये है। इसका गठन उक्त चारों समेत सात इंजीनियरों ने वर्ष 1981 में 250 डॉलर एकत्रित कर किया था। पिछली तिमाही के अंत में प्रवर्तकों की कुल हिस्सेदारी 15.92 प्रतिशत थी।


ड्यूश इक्विटीज इंडिया के एक बयान के अनुसार शेयर औसत मूल्य 1,988.87 करोड़ रुपये प्रति इक्विटी के भाव पर घरेलू तथा संस्थागत निवेशकों को बेचे गए।


राज्यसभा सेलेक्ट कमिटी ने इंश्योरेंस पर रिपोर्ट सौंपी

राज्यभा सेलेक्ट कमिटी ने इंश्योरेंस पर रिपोर्ट सौंप दी है। सेलेक्ट कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में री-इंश्योरेंस की परिभाषा में बदलाव का सुझाव दिया है। सेलेक्ट कमिटी ने 49 फीसदी की सीमा सभी तरह के एफडीआई और एफपीआई पर लागू करने की सिफारिश की है।


सेलेक्ट कमिटी ने नई इक्विटी के जरिए कैपिटल बेस बढ़ाने की सिफारिश की है। हेल्थ इंश्योरेंस के लिए 100 करोड़ रुपये की पूंजी अनिवार्य करने की सिफारिश की है। आईआरडीए और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को हेल्थ इंश्योरेंस नियम बनाने की सिफारिश की है। इंश्योरेंस एक्ट में कंट्रोल की परिभाषा को जरूरी बताया है। वहीं नियमों के आधार पर आईआरडीए को हेल्थ इंश्योरेंस रेगुलेशन तैयार करने की सिफारिश की है।


बजाज फिनसर्व के संजीव बजाज के मुताबिक नए कानून के आने से इश्योरेंस सेक्टर को लंबी अवधि में काफी सुविधा होगी। मौजूदा कानून में काफी जटिलताएं हैं, जबकि नए कानून में कई तरह की सहूलियत है। वहीं एपी एडवाइजर्स के अश्विन पारिख का कहना है कि नए कानून के आने से इंशोरेंस सेक्टर में नए दरवाजे खुलेंगे।



हनुमान बने रामजी की कृपा ईटेलिंग पर


केंद्र सरकार ने देश में बढ़ते ऑन लाइन कारोबार और डायरेक्ट सेलिंग पर निगरानी के लिए एक नियामक की स्थापना पर विचार करने के लिए अंतर मंत्रालय समिति का गठन किया है। रामविलास पासवान ने आज फिक्की की ओर से आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि उनका मंत्रालय ऑन लाइन कारोबार और डायरेक्ट सेलिंग पर सभी पक्षों की हितों की सुरक्षा के लिए एक नियामक गठन के पक्ष में है। उन्होंने कहा कि हाल ही में इस संबंध में एक अंतर मंत्रालय समिति गठित की गई है जो डायरेक्ट सेलिंग को लेकर नियम बनाएगी।

पासवान ने कहा कि योग्य लोगों और सस्ता श्रम होने के बावजूद सामान स्तरीय नहीं होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में नहीं ठहर पाता है। उन्होंने कहा कि असली निर्माता और धोखाधड़ी करने वालों में अंतर करना जरूरी है जो एक नियामक कर सकता है। इसके साथ ही वह उपभोक्ताओं के हितों को भी प्राथमिकता देगा।


64,000 करोड़ रुपये में से अपने हिस्से का पैसा निकाल लें

नवभारत टाइम्स कीखबर है यह।


इंश्योरेंस कंपनियों, बैंकों, कॉरपोरेट हाउस, म्यूचुअल फंड्स और डिपार्टमेंट ऑफ पोस्ट के पास 37,500 करोड़ रुपये अनक्लेम्ड पड़े हैं। अगर आप इसमें EPFO के बंद पड़े प्रॉविडेंट फंड के 26,497 करोड़ रुपये भी जोड़ दें तो इंटरेस्ट बगैर भी कुल रकम 64,000 करोड़ रुपये हो जाती है। इन पर 8.5 पर्सेंट नॉमिनल ब्याज के हिसाब से इनवेस्टर्स हर साल उनको लगभग 5,500 करोड़ का नुकसान हो रहा है। इस अनुमान में उन स्मॉल सेविंग्स स्कीमों को शामिल नहीं किया गया है जिसके डेटा उपलब्ध नहीं हैं।


एक अपुष्ट अनुमान के मुताबिक PPF के बंद पड़े अकाउंट्स में 22,000 करोड़ रुपये अनक्लेम्ड पड़े हैं। यह अविश्वसनीय नहीं है। इस साल जुलाई में गुड़गांव के एक एक्टिविस्ट असीम टक्यार की RTI पिटीशन के जवाब में डिपार्टमेंट ऑफ पोस्ट्स ने बताया था कि इंदिरा विकास पत्र की मैच्यॉरिटी का 896 करोड़ रुपये सरकारी खजानों में अनक्लेम्ड पड़ा है। तीन महीने पहले सरकार ने यह पता लगाने के लिए RBI के डिप्टी गवर्नर एच आर खान की अगुवाई में एक कमिटी बनाई थी कि पोस्टल डिपार्टमेंट और पीएसयू बैंकों में कितना डिपॉजिट अनक्लेम्ड है। कमिटी की रिपोर्ट 31 दिसंबर तक आ जाने की उम्मीद है।


पोस्ट ऑफिस स्कीमें ही अकेला अंधा कुआं नहीं है, जिसमें इनवेस्टर्स का पैसा समाया है। लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों के पास 5,849 करोड़ रुपये का अनक्लेम्ड बेनेफिट है। यह रकम पिछले दो साल में दोगुनी हो गई है। 58 साल पुरानी लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन के पास सबसे ज्यादा 1,548 करोड़ रुपया अनक्लेम्ड है। 1502 करोड़ रुपये की अनक्लेम्ड रकम के साथ रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस भी पीछे नहीं है।


बैंकों के पास भी बहुत अनक्लेम्ड फंड है। इनके पास अभी 5,125 करोड़ रुपये हैं जो डिपॉजिटर और अकाउंट होल्डर्स के क्लेम का इंतजार कर रहे हैं। बैंकों के पास पड़ी अनक्लेम्ड रकम हाल के वर्षों में बढ़ी है क्योंकि उन्होंने बंद पड़े अकाउंट्स पर RBI के गाइडलाइंस को 2009 से ही लागू करना शुरू किया है।


इनके बाद कॉरेपोरेट हाउसेज की बारी आती है। इनके पास भी 3,454 करोड़ रुपये के अनपेड डिविडेंड, अनक्लेम्ड डिबेंचर और डिपॉजिट हैं। इनके अलावा म्यूचुअल फंड हाउस के पास 770 करोड़ रुपये से ज्यादा रकम अनक्लेम्ड डिविडेंड और रिडेम्पशन के तौर पर पड़ी है।


EPFO के पास इनऑपरेटिव अकाउंट्स में कुल 26,496 करोड़ रुपये पड़े हैं। 3 साल से ज्यादा वक्त तक डिपॉजिट नहीं होने पर अकाउंट इनऑपरेटिव हो जाता है। 2011 में बने नए नियम के हिसाब से इनऑपरेटिव अकाउंट में बैलेंस पर कोई ब्याज नहीं दिया जाएगा। यह सरकार को मिले इंटरेस्ट फ्री लोन जैसा है।


इन अकाउंट्स के होल्डर्स को 8.75 पर्सेंट सालाना के हिसाब से ब्याज का नुकसान हो रहा है जो सालाना 2300 करोड़ रुपये बनता है। EPFO के ऑफिसर्स का कहना है कि बहुत से इनऑपरेटिव अकाउंट उन लोगों के हैं जिन्होंने नौकरी चेंज कर ली लेकिन पुराने अकाउंट से पैसा ट्रांसफर नहीं किया है। सेंट्रल प्रोविडेंट फंड कमिश्नर कृष्ण कुमार जालान कहते हैं कि यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (UAN) से इन अकाउंट्स के ओनर्स का पता लगाने में मदद मिलेगी।


अपने पैसे पर कैसे करें क्लेम


कंपनियों, बैंकों या म्यूचुअल फंड के पास सात साल से अनक्लेम्ड रहा फंड सेबी के इनवेस्टर एजुकेशन ऐंड प्रोटेक्शन फंड (IEPF) में ट्रांसफर कर दिया जाता है। इनको क्लेम करने के लिए इनवेस्टर्स फंड हाउस, कंपनी या रजिस्ट्रार के पास जा सकते हैं। लैडर7 फाइनैंशल एडवाइजरीज के सर्टिफाइड फाइनैंशल प्लानर और फाउंडर के मुताबिक, 'आप उनसे संपर्क करके एड्रेस अपडेट कर सकते हैं और KYC डॉक्युमेंट्स सबमिट कर सकते हैं।'

RBI ने भी डिपॉजिटर एजुकेशन ऐंड अवेयरनेस फंड (DEAF) बनाया हुआ है जहां 10 साल इंतजार करने के बाद इनऑपरेटिव अकाउंट में अनक्लेम्ड डिपॉजिट और बैंक बैलेंस ट्रांसफर कर दिया जाता है। इन पर क्लेम यहां पैसा ट्रांसफर होने के बाद भी किया जा सकता है। अगर अकाउंट होल्डर आइडेंटिटी प्रूफ देता है तो बैंक वह रकम ब्याज सहित वापस कर देगा।


बैंकों को अपनी वेबसाइट पर इनऑपरेटिव अकाउंट्स और अनक्लेम्ड डिपॉजिट डिस्प्ले करने के लिए भी कहा गया है। इंश्योरेंस रेग्युलेटरी ऐंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी (IRDA) ने फंड क्लेम करने में पॉलिसीहोल्डर्स की मदद के लिए गाइडलाइंस का नोटफिकेशन जारी किया है। जनवरी 2015 से पॉलिसीहोल्डर्स यह जानने के लिए इंश्योरेंस कंपनियों की वेबसाइट विजिट कर सकेंगे कि क्या कंपनी पर उनका कुछ बकाया भी है। यह जानकारी ऑथेंटिकेशन के लिए नाम और जन्म तिथि या पैन या पॉलिसी नंबर दिए जाने के बाद एक्सेस की जा सकती है। वेरिफिकेशन के बाद इंश्योरेंस कंपनी डिस्बर्सल प्रोसेस शुरू करेगी।

http://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/rs-64000-crore-idle-wealth-lying-unclaimed-heres-how-you-can-claim-it/articleshow/45447703.cms


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