मौजूदा कानून अगर न्याय नहीं दिला सकता तो और सख्त कानून किस काम का?समता और सामाजिक न्याय के बिना क्या कानून का राज संभव है ?और लिंगभेद का क्या?
पलाश विश्वास
मौजूदा कानून अगर न्याय नहीं दिला सकता तो और सख्त कानून किस काम का?दिल्ली गैंगरेप के खिलाफ देशभर में गुस्सा भड़कने के बावजूद बलात्कार की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है।समाचार चैनलों पर बलात्कार की खबरें लगातार चल रही है। अचानक से ऐसी खबरों की बाढ़ आ गयी है। पश्चिम बंगाल से लेकर गुजरात तक यानी देश के चप्पे – चप्पे से दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म के नए – नए मामले सामने आ रहे हैं।
देश के तमाम राज्यों से रिश्तों को तारतार कर होने वाली बलात्कार की घटनाओं की खबरें हैं। कहीं बाप ने बेटी तो कहीं भाई ने बहन को हवस का शिकार बनाया है। यूपी में नाबालिग छात्रा से गैंगरेप हुआ है तो बंगाल में महिला की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। के कर्नाटक, मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों में बलात्कार की शर्मनाक घटनाएं सामने आई जबकि गुजरात में ढाई साल की एक बच्ची के साथ उसके मामा ने कथित तौर पर बलात्कार कर उसे झाड़ियों में फेंक दिया, जिससे मंगलवार को उसकी मौत हो गई। दिल्ली गैंगरेप पीड़िता की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई कि देश के कई अन्य हिस्सों से रेप की सात घटनाएं सामने आई हैं। पंजाब में चार, बिहार, राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश में रेप की एक-एक घटनाओं से देश का सिर शर्म से एक बार फिर झुक गया है।
समता और सामाजिक न्याय के बिना क्या कानून का राज संभव है?
और लिंगभेद का क्या?
महिलाओं के प्रति अपराध के खिलाफ केंद्र सरकार सख्त कानून बनाने जा रही है। इससे ऐसे दरिंदों को कानून के दायरे में लाकर सख्त सजा मिल सके। इसके लिए जस्टिस वर्मा कमेटी बनाई गई है। क्या नये कानून से महिलाएं सचमुच सुरक्षित हो जायेंगी?दिल्ली गैंग रेप के बाद सेक्शुअल असॉल्ट के मामले में सख्त कानून के लिए बढ़ते दबाव के बीच सरकार हरकत में आ गई है। विपक्षी पार्टियों द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की जा रही है। ऐसे में सरकार रेपिस्टों के खिलाफ सख्त कानून के लिए बजट सेशन से पहले ही अध्यादेश ला सकती है। सरकार इस पर गंभीरता से काम भी कर रही है।
देश भर में जो पुरुष स्त्री की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, मोमबत्तियां जला रहे हैं, कानून बदलने के लिए आंदोलन करने सड़क पर उतर रहे हैं, पितृसत्तात्मक मनुसमृति व्यवस्था बदलने के लिए वे कितने तैयार हैं? अपने घर और समाज में स्त्री को क्या वे आजाद कर देंगे?
दिल्ली पुलिस ने सामूहिक बलात्कार कांड में एक हजार पन्नों का आरोप पत्र तैयार किया है। यह गुरुवार को कोर्ट में पेश होगा। सख्त कानून की मांग पर सरकार ने कहा संसद के सत्र पर फैसला वर्मा कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद होगा।गौरतलब है कि 16 दिसंबर को दिल्ली में चलती बस में छह लोगों ने 23 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार करने के साथ ही क्रूरता की सारी हदें पार कर उस हमला भी किया था। करीब एक पखवाड़े तक जूझने के बाद छात्रा ने शनिवार तड़के सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में दम तोड़ दिया। पिछले दिनों राष्ट्रीय राजधानी में हुए सामूहिक बलात्कार कांड के विरोध में प्रदर्शनों का सिलसिला अब भी जारी है। देश की बेटी की को इंसाफ दिलाने के लिए 15 दिनों से प्रदर्शन और आंदोलन का दौर जारी है। दिल्ली के जंतर-मंतर पर भी एक आंदोलन चल रहा है। बलात्कारियों को फांसी की मांग को लेकर दो शख्स भूख हड़ताल पर बैठे हैं। इनमें से एक 9 दिनों से अनशन पर है और उसकी हालत लगातार बिगड़ रही है लेकिन सरकार इनकी सुध नहीं ले रही। दरअसल नौ दिन गुजर चुके हैं। दिल्ली के जंतर-मंतर पर आमरण अनशन कर रहे राजेश गंगवार की हालत अब बिगड़ने लगी है। भूख और प्यास का असर दिखने लगा है। जिस्म जवाब देने लगा है लेकिन जज्बा लाजवाब है। बरेली का ये बेटा हिंदुस्तान की तमाम बेटियों के हक की लड़ाई लड़ रहा है। पीड़ित लड़की की अस्थियां मंगलवार को उत्तर प्रदेश में उनके पैतृक जिले बलिया में गंगा में प्रवाहित कर दी गईं।
एफडीआई के खिलाफ जिहादी राजनीति का तमाशा अभी खत्म हुआ नहीं है। कालाधन के खिलाफ अराजनीतिक धर्मयुद्ध तो जारी है ही। अब बलात्कारियों को नपुंसक बना देने और उन्हें पांसी देने पर सर्वसम्मति बन रही है। सवाल है कि किस किस को फांसी देंगे? आप सवाल है कि जो बलात्कार के मामलों में सचमुच निरपराध होंगे और झूठे मामले में जिन्हें फंसाया जा रहा है, न्याय के बाजार में पहुंच और पैसा न हो पाने से क्या वे ही नयी व्यवस्था के सबसे बड़े शिकार नहीं होंगे? आपसी दुश्मनी के मामलों में अक्सर रेप केस डालने का जो रिवाज है, उसका क्या करेंगे? क्या पूंजी और सत्ता को नपुंसक बनाने का कोई रसायन ईजाद हो गया है?महिलाएं खुशफहमी में हैं। महिला आरक्षण विधेयक अभी लंबित हैं और संसद की पुरुषसत्ता किसी भी हाल में इसे पास कराने को तैयार नहीं है। जब अल्पमत सरकार बाजार के हित में आर्थिक सुधार की जनविरोधी नरसंहार एजंडा को लागू करने के लिए एक के बाद एक विधेयक संसद में पास करा लेती है, तो क्यों रुक जाता है महिलाओं को आरक्षण का बिल और अनुसूचितों को पदोन्नति का विधेयक?
इस देश में नारी को देवा कहा जाता है। धार्मिक आस्था के मुताबिक हर सिर देवीमाता के चरणों में झुक जाता है। इस देश में इंदिरा गांधी जैसी नेता न सिर्फ भारत की प्रधानमंत्री रही, विश्वनेतृत्व में भी शामिल रही आजीवन। अब भी सत्ता पक्ष की नेता सोनिया गांदी और विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज है। जिस दिल्ली को बलात्कार की राजधानी कहा जाता है, वहां मुख्यमंत्री शीला दीक्षित है।मायावती, जयललिता और ममता बनर्जी जैसी नेता हैं। पर महिलाओं का सशक्तीकरण क्यों नहीं हुआ क्यों देश भर में महिलाओं पर अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं उपभोक्ता संस्कृति में बाजार की चीज बनाकर सख्त कानून से अगर स्त्री को हम देहमुक्त करना चाहते हैं, तो वह समाज यथार्थ से भिन्न परिसर है। जब भोग ही एकमात्र सामाजिक मूल्य है और हर हाथ में मोबाइल और इंटरनेट से जुड़ा हर पुरुष हों, स्त्री आखेट की मानसिकता कला, साहित्य, संस्कृति और धर्म की बुनियाद हो, तो सख्त कानून से दो चार बलात्कारियों को सजा हो जायेगी ,जैसे कि अब तय है कि दिल्ली बलात्कारकांड के खलनायकों के बचने की कोई सूरत नहीं है, लेकिन इससे न बलात्कार रुकनेवाला है और न देहव्यापार। नहीं रुकेगा बाजार और सत्ता के हित में स्त्रीदेह का अबाध इस्तेमाल, जो अबाध पूंजी प्रवाह का दूसरा पहलू है। कानून बनाने से क्या यौन उत्पीड़न रुक जायेगा? फतवे बंद होंगे?खाप पंचायतें खत्म हो जायेंगी? सम्मान के लिए हत्याएं नहीं होंगी ?रुक जायेंगी भ्रूण हत्याएं? घर की चहारदीवारी में अपनों से सुरक्षित हो जायेगी स्त्री? बंद हो जायेगा दहेज उत्पीड़न? खत्म होगी स्त्री को निशाना बनाकर बेदखली की व्यवस्था?
हाल यह है कि संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि वह भारत में बढ़ती सामूहिक बलात्कार की घटनाओं को लेकर बेहद चिंतित है । साथ ही उसने कहा कि देश में महिलाओं और लड़कियों के संबंध में विचारों में बदलाव आना चाहिए । पैरा-मेडिकल छात्रा के सामूहिक बलात्कार और मौत की आलोचना करते हुए यूनिसेफ की भारत शाखा ने कहा कि यह चौंकाने वाली बात है कि भारत में प्रत्येक तीन में से एक बलात्कार पीड़िता बच्ची है । यूनिसेफ ने कहा कि महिलाओं और लड़कियों के प्रति विचारों में बदलाव लाने की आवश्यकता है । यूएन ने कहा कि भारत को इस कानून में बदलाव लाने की जरूरत है।तो दूसरी ओर, भारत में अपने तालिबानी तर्ज पर फरमान जारी करने वाली खाप पंचायत ने अब गैंगरेप के दोषियों को फांसी की सजा दिलवाए जाने का विरोध किया है। केंद्र सरकार द्वारा इस घटना के आरोपियों को कोर्ट में फांसी देने की मांग करने पर पंचायत ने नाराजगी जाहिर की है। हिसार में हुई खाप पंचायत में कहा गया कि सरकार जल्दबाजी में कोई भी ऐसा कानून न बनाए जिसका दुरुपयोग होने की संभावना हो। खाप नेता सूबे सिंह ने यहां के एक गांव में कहा कि अधिकारियों को गैंगरेप के मामले पर जारी जन विरोधों और इसके आरोपियों के लिए मौत की सजा की मांग को देखते हुए भावनाओं में नहीं बहना चाहिए।
बंगाल में २००७ से लेकर २०११ तक १३ हजार से ज्यादा बलात्कार के मामले अदालतों में लंबित है। इनमें से चार हजार मामलों में पुलिस अभी चार्जशीट ही दाखिल नहीं कर पायी। राजनीतिक हरी झंडी न मिलने पर न थाने में एफ आईआर दर्ज हो पाता है और न निष्पक्ष जांच होती है। तफतीश शुरु होने से पहले पुलिस को अपनी खाल बचाने की फिक्र लगी होती है। पुलिस जांच शुरु करें , इससे पहले कोई मंत्री या फिर मुख्यमंत्री मामले को फर्जी बता देती हैं।अपराध कर्म राजनीतिक संरक्षण के बिना नहीं होता। गुजरात में तो एक नहीं, दो नहीं, बीस बीस बलात्कारी राजनीतिक दलों के टिकट पर चुनाव लड़े। कोलकाता में जब दिल्ली सामूहिक बसात्कार के खिलाफ मोमबत्ती जुलूस निकल रहा था तभी डायमंड हारबर और बारासात में बलात्कार के बाद हत्या की वारदातें हुईं। राज्यभर में ऐसी वारदाते होती रहती हैं। पर उन मृतकाओं और पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए कहीं कोी मोमबत्ती नहीं जलाया जाता। और कार्रवाई, बारासात कांड के दोदिन बीत जाने के बावजूद पुलसे यह बताने की हालत में नहीं है कि बलात्कार हुआ है कि नहीं। चूंकि लाश बरामद हो गयी है , तो अब यह तो कह नहीं सकते कि हत्या भी नहीं हुई। बारासात कोलकाता से सटे उत्तर चौबीस परगना का जिला मुख्यालय है और तेजी से बलात्कार नगरी के नाम पर कुख्यात होता जा रहा है।यहीं १४ परवरी को शाम को पुलिस मुख्यालय के पास शाम को कोलकाता से नौकरी करके लौट रही दीदी को गुंडों से बचाने के लिए उसके भाई माध्यमिक परीक्षार्थी राजीव दास को अपनी जान गवानी पड़ी। इस कांड पर रघुवीर यादव की भूमिका समेत एक फिल्म भी बन चुकी है पर बारासात के हालात नहीं बदले।
बहरहाल मीडिया के हंगामे की वजह से गनीमत है कि कम से कम इस मामले में चार्जशीट दाखिल हो गयी।इसी तरह मीडिया में छपी खबरों के कारण २ अगस्त को बारासत जिलाधीश कार्यालय को एक पुलिस परिवार के खिलाफ यौन आक्रमण के मामले में भी चार्जशीट दाखिल हो गयी।२७ अप्रैल २०१२ को एक छात्रा का अपहरण हुआ और फिरौती के बदले उसे छुड़ा लिया गया। इस मामले में अभीतक चार्जशीट दाखिल नहीं हुई। २७ जुलाई को बारासात रेलवे स्टेशन पर ही एक छात्रा से छेड़खानी हहुई, विरोध करने पर गुंडों ने उसके पिता को धुन डाला। २० अगस्त २०१२ को फिर बारासात में एक किशोरी सेछेड़छाड़ की वारदात दर्ज की गयी।२१ अगस्त २०१२ बारासात के बगल में ही वामूनगाछी में एक बार डांसर से बलात्कार हुआ।३१ अगस्त२०१२ को बारासात में बेटी से छेड़छाड़ करने का विरोध करने पर मांकी पिटाई हो गयी। इस मामले में चार्जशीच तक दाखिल नहीं हो सकी।३ सितंबर को छेड़खानी का विरोद कर रहे चिकित्सक की हत्या हो गयी बारासात में।फिर २९ दिसंबर को बारासात के पास ईंट भट्ठे में एक ४५ साल की महिला की उसके पति के सामने ही सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या हो गयी। पति को बलात्कारियों ने तेजाबी जहर जबरन पिला दी और वह अस्पताल में मौत से जूझ रहा है। पुलिस अभी यह बताने की हालत में नहीं है कि बलात्कार हुआ भी या नहीं। यह बंगाल के एक जिला मुख्यालय की कथा व्यथा है। बाकी देश में भी कमोबेश यही हालत है। बारासात में अभी किसी मामले में मौजूदा कानून के तहत सजा नहीं हो सकी। तो सख्त कानून का क्या कीजियेगा?औरतें अपने-अपने खोलों से निकल कर बाहर आ रही हैं। वे दफ्तरों, दुकानों और फैक्टरियों में आदमियों के साथ काम करने लगी हैं। ऐसे में बलात्कार के मामले बढ़ेंगे ही, जब तक हम अपने कानून में जबर्दस्त बदलाव नहीं करते।यह जरुरी है , लेकिन मसले का हल नहीं है। मौजूदा कानून को ही बिना किशी बेदबाव या संरक्षण के सबके मामले में समान रुप से सख्ती के साथ लागू किया जाये, तो हालात ,जरूर बदलेंगे। कानून सख्त से सख्त हो और मामला दर्ज ही न हो, जांच राजनीतिक हो तो ऐसे कानून से क्या होगा? आखिरकार हत्यारों को मिलने वाली मौत की सजा से हत्याओं में कोई कमी नहीं आई है।इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की कठोर सजा दी जानी चाहिये, लेकिन सजा तो घटना के घटित होने के बाद का कानूनी उपचार है। हम ऐसी व्यवस्था पर क्यों विचार नहीं करना चाहते, जिसमें बलात्कार हो ही नहीं। हमारे देश में केवल स्त्री के साथ ही बलात्कार नहीं होता है,बल्कि हर एक निरीह और मजबूर व्यक्ति के साथ हर दिन और हर पल कहीं न कहीं लगातार बलात्कार होता ही रहता है!
भारतीय दंड विधान में बलात्कार के दोषी को धारा 376 के तहत सजा दी जाती है। इस धारा के अंतर्गत बलात्कार के केस दर्ज होते हैं। इस धारा के अंतर्गत पीड़ित महिला सीधे थाने में जाकर आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करा सकती है। यदि पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है तो पीड़ित महिला कोर्ट की शरण लेकर भी आरोपी के खिलाफ केस रजिस्टर्ड कर सकती है।धारा 376 में सजा : अधिकतम सजा उम्रकैद है। केस की स्थिति के अनुसार अदालत 7 और 10 साल की सजा सुनाती है। पीड़िता की मौत होने पर फांसी की सजा भी हो सकती है।क्या इस कानून को सक्ती के साथ अमल में लाया जाता है?
कानून पर अमल कैसे होता है? मिसाल के तौर पर बहुप्रचारित ''यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण अधिनियम'' (POCSO) 14 नवंबर 2012 से अस्तित्व में आया। अधिनियम के कार्यान्वयन के समय महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमति कृष्णा तीरथ ने दावा किया था कि यह अधिनियम देश में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की संख्या में वृद्धि के कारण पैदा हुईं सभी समस्याओं का हल निकालने में सक्षम है। इस अधिनियम के पारित होने के करीब 50 दिन बाद भी जमीनी स्तर पर अधिक बदलाव नहीं आया है। दिल्ली के नरेला में गत 25 नवंबर को चार वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार किया गया। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता वंश सलूजा ने रियल न्यूज को बताया कि जब यह मामला आम आदमी पार्टी के स्वयंसेवकों के संज्ञान में आया तो उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाया कि बच्ची का चिकित्सा परीक्षण कराया जाए। लेकिन उनके भरपूर प्रयासों के बावजूद पुलिस ने बच्ची की चिकित्सा जांच नहीं कराई। इस से बुरा यह हुआ कि एक दिसंबर को जब आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जांच के लिए पुलिस पर दबाव बनाने की चेष्टा की तो उनपर लाठियां भांजी गईं।
गौरतलब है कि आजादी के बाद इस देश में गरीबों, अनुसूचितों, आदिवासियों, बस्तीवासियों की तरफ से हर मामले में एफआईआर दर्ज नहीं होता।फूलन देवी का जैसा वृतांत सबूत बतौर उपलब्ध है कि थानों में स्त्री के साथ पुलिस क्या सलू क करती है। फिर हर मामले को लेकर मीडिया खबर नहीं बनाता। घर के अंदर हुई वारदातों की कानोंकान खबर तक नहीं होती। इस पर तुर्रा यह कि भारत में न्याय प्रणाली और संविधान शास्त्रसम्मत मनुस्मृति विधान के मुताबिक बनाने का अभियान जोरों पर है। बलात्कार की सजा सजाए मौत भी मध्यपूर्व के धर्मराज्यों के कानून के मुताबिक बैठता है।
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने बलात्कार को लेकर सख्त सजा के प्रावधान की पैरवी करते हुए कहा है कि उनकी सरकार केंद्र से कानून में जरूरी बदलावों का आग्रह करेगी, ताकि ऐसे अपराधों में शामिल लोगों को मृत्युदंड की और रसायन का इस्तेमाल कर नपुंसक बनाने की सजा दी जा सके।मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार से आग्रह किया जाएगा कि बलात्कार के मामलों में शामिल लोगों को मौत और रसायन का इस्तेमाल कर नपुंसक बनाने की सजा देने के लिए कानूनों में संशोधन किया जाए।उन्होंने कहा कि राज्य में गुंडा एक्ट को संशोधित करने और त्वरित महिला अदालतें स्थापित करने के लिए कदम उठाएं जाएंगे। जयललिता ने कहा कि सभी सरकारी इमारतों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे, ताकि महिलाओं को परेशान करने वालों की पहचान हो सके।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार की निंदा की। अगर पश्चिम बंगाल में बलात्कार और छेड़खानी की घटनाएं होती हैं, तो मैं उन्हें भी निंदनीय मानती हूं। ममता बनर्जी ने आज कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों से निपटने के लिए उनकी सरकार राज्य भर में 65 महिला पुलिस थाने स्थापित कर रही है।जलपाईगुड़ी के पास रैली को संबोधित करते हुए ममता ने कहा, 'बंगाल में 65 महिला पुलिस थाने होंगे जिनमें सभी महिला पुलिसकर्मी होंगी। इनमें से 10 पहले ही स्थापित किये जा चुके हैं।' आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि प्रत्येक थाने में स्वीकृत पदों के तहत एक निरीक्षक, आठ उप निरीक्षक, आठ सहायक उप निरीक्षक और 30 कांस्टेबल होंगे। उन्होंने कहा कि 19 मानवाधिकार अदालतें और 158 फास्ट ट्रैक अदालतें भी स्थापित की गई हैं।उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) अध्यक्ष मायावती ने दिल्ली में सामूहिक बलात्कार कांड की पीड़ित की सिंगापुर के अस्पताल में मृत्यु पर दुख व्यक्त करते हुए महिलाओं के प्रति अपराधों के खिलाफ सख्त से सख्त कानून बनाने और इसके लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की।मायावती ने संवाददाताओं से कहा कि केंद्र सरकार को सामूहिक बलात्कार की वारदात को गंभीरता से लेते हुए महिलाओं की सुरक्षा के लिए मौजूदा कानून में व्यापक परिवर्तन करने की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए। इस काम में ढुलमुल रवैया नहीं अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा कानून बनाया जाना चाहिए जिससे अपराधी बलात्कार जैसी वारदात को अंजाम देने से पहले 10 बार सोचे।मायावती ने कहा कि उन्होंने इस सिलसिले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र भी लिखा था। उन्होंने कहा कि मैंने प्रधानमंत्री से गुजारिश की है कि वह बलात्कार के मामलों में कानून में बदलाव करने में कोई देर न करें और इसे लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए। अगर फांसी की सजा तय होती है तो बीएसपी उसका स्वागत करेगी।बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शांता कमार ने दिल्ली गैंग रेप मामले से उठे मुद्दे पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र तुरंत बुलाने की मांग की।
महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के खिलाफ सख्त कानून बनाने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग के बीच सरकार ने सोमवार को कहा कि वह जस्टिस वर्मा कमिटी की रिपोर्ट के आने के बाद इस पर विचार करेगी। यह कमिटी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए कड़े कानून बनाने के बारे में ही विचार कर रही है।
दिल्ली गैंगरेप के बाद देश भर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाने की मांग के बीच कांग्रेस ने एक सख्त कानून बनाने के लिए बिल का ड्राफ्ट बनाना शुरू कर दिया है। इंग्लिश न्यूज पेपर इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार रेपिस्टों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए कांग्रेस जस्टिस वर्मा कमिटी को सुझाव के तौर पर यह ड्राफ्ट पेश करेगी। इसके ड्राफ्ट के तहत बलात्कार के दोषियों को 30 साल तक कैद की सजा की सिफारिश की जाएगी। इसके अलावा इस ड्राफ्ट बिल में रेपिस्टों को केमिकली बधिया करने और 90 दिन की डेडलाइन के साथ फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का सुझाव भी शामिल है।
यह ड्राफ्ट बिल करीब करीब तैयार है और इसे यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी दिखाया जा चुका है। सोनिया ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ते क्राइम को देखते हुए पार्टी को सख्त कानून बनाने को लेकर सक्रियता दिखाने का निर्देश दिया था। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जे. एस. वर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमिटी गठित की जो सारे पहलुओं की स्टडी के बाद महिलाओं अपराध के खिलाफ कड़े कानून बनाने पर सुझाव देगी। वर्मा कमिटी दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा और पीड़ित को तुरंत न्याय दिलाने को लेकर 30 दिनों की डेडलाइन में काम कर रही है। इसके लिए कमिटी ने 5 जनवरी तक देश भर के लोगों से सुझाव मांगे हैं।
सूत्रों के मुताबिक जस्टिस वर्मा कमिटी के सुझावों के बाद कांग्रेस पार्लियामेंट का विशेष सत्र बुलाने के बजाय सरकार पर नोटिफिकेशन जारी करने का दबाव डालेगी। इसके बाद ऑल पार्टी मीटिंग के जरिए कांग्रेस इस पर सभी दलों से उनका रुख जानकर कड़े कानून के लिए सलाह-मशविरा करेगी।
सरकार ने राजनीतिक पार्टियों से महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों में सख्त सजा का प्रावधान करने और त्वरित न्याय के लिए कानून में संशोधन करने को लेकर गठित न्यायमूर्ति जेएस वर्मा समिति को अपने विचार देने को कहा है।
दिल्ली में चलती बस में 23 वर्षीय छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मद्देनजर सभी राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को लिखे अपने पत्र में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि सरकार ने महिलाओं के खिलाफ क्रूर प्रकृति के यौन उत्पीड़न से जुड़े मौजूदा कानून की समीक्षा की जरूरत को लेकर अपने व्यग्र विचार प्रकट किए हैं।
गौरतलब है कि सरकार ने फौजदारी कानून में संभावित संशोधन पर गौर करने के लिए 23 दिसंबर को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत) वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी ताकि इस तरह के मामलों में त्वरित सुनवाई हो और सख्त सजा मिल सके।
शिंदे ने अपने पत्र में कहा है, 'यदि आप इस मुद्दे पर अपने विचार समिति को देते हैं तो मैं आपका शुक्रगुजार होउंगा। इससे समिति अपनी सिफारिशें करने के लिए इन पर विचार कर सकेगी। मैं आपसे यथाशीघ्र अपने विचार देने का अनुरोध करता हूं क्योंकि समिति को शीघ्रता से अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने को कहा गया है।'
तीन सदस्यीय इस समिति को 30 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपने को कहा गया है। समिति के अन्य सदस्य हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं न्यायमूर्ति (सेवानिवृत) लीला सेठ तथा सॉलीसीटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम हैं।
न्यायमूर्ति वर्मा समिति पूरी तरह से अपने कार्य में जुट गई है और यह नई दिल्ली में विज्ञान भवन एनेक्सी में स्थित है। इससे टेलीफोन नंबर 011-23022031 और ईमेल पता 'जस्टिस डॉट वर्मा एट द रेट ऑफ निक डॉट इन' पर संपर्क किया जा सकता है।
मौजूदा कानून के तहत बलात्कार के मामले में अधिकतम सजा के रूप में उम्र कैद का प्रावधान है लेकिन 16 दिसंबर की घटना के चलते हुए राष्ट्रव्यापी जनाक्रोश के बाद बलात्कारियों के लिए मौत की सजा की मांग की जा रही है।
इस पीड़िता ने बीते शनिवार को सिंगापुर के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों पर सख्त कानून के लिए और इस घटना को अंजाम देने वालों को सख्त सजा देने के लिए सरकार को कुछ अहम सुझाव दिए हैं।
भाजपा ने भी इस तरह के जघन्य अपराध को अंजाम देने वालों को मौत की सजा दिए जाने की हिमायत की है और कानून में संशोधन के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है।
हालांकि सरकार ने संसद का अविलंब सत्र बुलाने की विपक्ष की मांग को खारिज करते हुए कहा है कि न्यायमूर्ति वर्मा समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद ही इस मुद्दे पर कोई फैसला किया जाएगा।
महिलाओं पर नेतावाणी, सभी दलों की एक कहानी!
दिल्ली गैंगरेप पर पूरे देश में आक्रोश है। केंद्र की यूपीए सरकार चारों ओर से घिर चुकी है। वैसे ये पहला मौका नहीं है जब देश में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर हाहाकार मचा हो, लेकिन राजनीतिक दलों की इच्छा शक्ित और छोटी सोच के कारण कभी ठोस कदम नहीं उठाया जा सका। फिर चाहे कोई पार्टी सत्ता पक्ष में हो या पक्ष में। राजनेताओं ने समय समय पर बताया कि ये जमात कितनी संवदेनहीन हो चुकी है। दुर्भाग्य ये है कि राजनीति में शामिल महिलाएं भी देश की बेटियों के जख्म कुरेदने में पुरुष राजनेताओं के कंधे से कंधा मिला रही हैं। हाल में सीपीएम के नेता ने पश्चिम बंगाल की सीएम से कहा, 'आप अपना रेप कराने का कितना मुआवजा लोगी।' एक प्रदेश की सीएम के लिए एक विधायक ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहा है तो आम महिला की स्थिति का अंदाजा खुद लगाया जा सकता है। ये हाल सिर्फ एक पार्टी का नहीं है, क्या कांग्रेस और क्या सपा, क्या टीएमसी और क्या बसपा सभी एकदूसरे से आगे दिखना चाहते हैं। आइए जानते हैं महिलाओं के बारे में और रेप के मामलों पर हमारे देश के प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं ने किस भाषा में अपने विचार प्रकट किए?
तृणमूल कांग्रेस नेता काकोली घोष का बयान: तृणमूल कांग्रेस की नेता काकोली घोष ने पश्चिम बंगाल के पार्क स्ट्रीट रेप केस के बारे में कहा कि ये मामला बलात्कार का नहीं है। ये केस महिला और क्लाइंट के बीच विवाद का नतीजा है यानी घोष के कहने का मतलब ये था कि बलात्कार की शिकार लड़की जिस्मफरोशी करती है। ऐसा पहली बार नहीं है जब रेप की शिकार लड़कियों पर ऐसी बयानबाजी हुई हो। दुर्भाग्य की बात ये है कि ऐसे बयान देने में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं।
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी: पहले लड़के-लड़कियां अगर एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते थे तो उनके माता-पिता उन्हें पकड़ लेते थे, डांटते थे पर अब सब कुछ खुला है। खुले बाज़ार में खुले विकल्पों की तरह। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने महिलाओं के साथ बलात्कार की बढ़ती संख्याओं पर अपने फेसबुक पर ये टिप्पणी दर्ज की थी, उनकी इस टिप्पणी पर महिला संगठनों ने काफी आपत्ति जताई थी।
सीपीएम के विधायक का बयान: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी की महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी को लेकर बवाल अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि पश्चिम बंगाल के एक और नेता नया विवाद खड़ा कर दिया। ताजा विवाद सीपीएम के विधायक अनिसुर रहमान के बयान पर हो रहा है। रहमान ने दीनापुर में एक रैली के दौरान प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भद्दी टिप्पणी की। रैली के दौरान सरकार की नाकामी गिनाते हुए रहमान ने कहा, 'ममता बनर्जी अगर तुम्हारा रेप हो जाए तो तुम कितना पैसा लोगी।'
राष्ट्रपति का बेटा बोला, ये औरतें तो...: राष्ट्रपति के पुत्र और कांग्रेस के सांसद अभिजीत मुखर्जी ने गैंगरेप के खिलाफ प्रदर्शन कर रही छात्राओं और महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं का मजाक उड़ाया। उन्होंने कहा कि पहले कैंडल मार्च निकाला जाता है और उसके बाद प्रदर्शनकारी डिस्को चले जाते हैं। अभिजीत यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि मैं भी छात्र रहा हूं। मैं जानता हूं कि छात्र कैसे होते हैं। वो बहुत सुंदर महिलाएं, जो मेकअप से पुती हुई और सजी-धजी हैं, टीवी पर इंटरव्यू दे रही हैं वो छात्राएं नहीं हैं।
सोनिया बोलीं, हरियाणा ही नहीं पूरे देश में हो रहे रेप: हरियाणा में एक के बाद एक हो रही बलात्कार की घटनाओं के बीच पीड़ितों से मिलने यूपीए चेयरपर्सन और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी यहां पहुंची। जींद में सोनिया ने बलात्कार की शिकार लड़की के परिजनों से मुलाकात की। मुलाकात के बाद पत्रकारों से सोनिया ने कहा कि इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं लेकिन ऐसा सिर्फ हरियाणा में नहीं देश के सभी राज्यों में हैं।
कांग्रेस के नेता संजय बोले, तू तो ठुमके लगाती है: दिल्ली गैंगरेप को लेकर सभी पार्टियों के नेता एक से बढ़कर एक बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं, लेकिन हकीकत में वो खुद महिलाओं की इज्जत नहीं करते तो देश में महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल कैसे पैदा होगा। इस बात का ताजा उदाहरण हमें तब देखने को मिला जब एक नेशनल टीवी पर लाइव बहस के दौरान कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय निरुपम ने भाजपा नेता और अभिनेत्री स्मृति ईरानी पर अभद्र टिप्पणी की। निरुपम ने ईरानी से कहा, तू तो टीवी पर ठुमके लगाती थी और चुनाव विश्लेषक बन गई है।
कांग्रेसी नेता बोला 'लड़की खुद चाहती है कि रेप हो': हरियाणा में बलात्कारी ही महिलाओं के साथ बलात्कार नहीं कर रहे है बल्कि उनके बचाव में नेताओं द्वारा नए-नए तर्क गढ़े जा रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सदस्य धर्मवीर गोयत ने कहा कि हरियाणा में सामने आए बलात्कार के ज्यादातर मामले दरअसल सहमति से सेक्स के मामले हैं। गोयत ने कहा कि अगर अपहरण और बलात्कार के मामलों की तह तक जाएं तो पता चलता है कि 90 फीसदी मामलों में पीड़ित और आरोपी भागे हुए प्रेमी जोड़े हैं यानी ये सहमति है।
सोनिया से बोले रामदेव, आपकी बेटी से रेप होता तो...: बाबा रामदेव ने सोनिया के इस बयान की निंदा करते हुए कहा, 'सोनिया गांधी हरियाणा की कांग्रेस का बचाव कर रही हैं। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि अगर उनकी बेटी के साथ ऐसा हुआ होता, क्या तब भी वह ऐसी ही बात कहतीं।'यह पूरा मामला सोनिया गांधी के उस बयान से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने कहा था, 'बलात्कार की घटनाएं सिर्फ हरियाणा नहीं बल्कि पूरे देश में बढ़ रही हैं।'यूपीए चेयरपर्सन ने जींद में बलात्कार की शिकार लड़की के परिवार से मिलने के बाद यह बात कही थी।
रेणुका बोलीं, क्या रेप की शिकार बाबा की बेटी है?: बाबा रामदेव का यह बयान आग लगाने के लिए कम नहीं था, लेकिन बात जब सोनिया गांधी की हो तो कांग्रेसी भी कहां पीछे रहने वाले थे। बुधवार को कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी ने बाबा पर उन्हीं के अंदाज में पलटवार कर दिया। रेणुका ने कहा, 'बाबा इस मामले पर इतनी संवेदनशीलता क्यों दिखा रहे हैं? क्या बलात्कार की शिकार लड़कियां उनकी बेटियां लगती हैं?'आपा खो बैठीं रेणुका ने आगे कहा, 'रामदेव योग गुरु हैं या जो भी उन्होंने कभी आईने में अपना चेहरा देखा?'दूसरी ओर कांग्रेस के अन्य नेता हरीश रावत ने बाबा के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।
मुलायम सिंह बोले थे, रेपी पीडि़ता को देंगे नौकरी: कुछ महीने पहले संपन्न यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह ने वादा किया था वो बलात्कार की शिकार लड़कियों को नौकरी देंगे। उनके इस बयान पूरे देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी।
`लड़की को बस से कुचलने की कोशिश की गई`
दिल्ली गैंगरेप मामले में नया खुलासा हुआ है। सूत्रों के मुताबिक मुताबिक गैंगरेप पीड़ित लड़की को बस से कुचलने की कोशिश की गई थी लेकिन उसके दोस्त ने उसे पहिए के नीचे आने से बचाया। छह आरोपियों में से एक आरोपी रामसिंह ने लड़के की लोहे के रॉड से पिटाई की।
जानकारी के मुताबिक तीन जनवरी को दाखिल की जानेवाली चार्जशीट में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कड़ी धाराएं लगाई हैं। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ डकैती की धारा को भी जोड़ा है। आईपीसी की धारा 396 यानी डाका डालने के अलावा हत्या की धारा 302 भी लगाई गई है।
सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक हादसे की रात यानी 16 दिसंबर को पीड़ितों को बस से कुचलने की भी कोशिश की गई थी। पुलिस के मुताबिक बस में तीन आरोपी मुसाफिरों की तरह बैठे थे। इससे पीड़ितों को भी उनके मुसाफिर होने की गलतफहमी हो गई। बस में पीड़ितों के बैठने के बाद राम सिंह ने झगड़े की शुरुआत की।
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इस आरोप पत्र में 16 दिसंबर की घटना के संबंध में 30 गवाहों का हवाला दिया गया है। गौरतलब है कि पीड़िता छात्रा की शनिवार सुबह सिंगापुर के एक अस्पताल में मौत हो गई।
जांचकर्ताओं ने कहा कि वे इस मामले के अभियुक्तों के खिलाफ मौत की सजा की मांग करेंगे। साकेत की अदालत में दायर किए जाने वाले आरोप पत्र में इस घटना में शामिल पांच लोगों की भूमिका विस्तार से दर्ज होगी और मामले में कथित तौर पर शामिल नाबालिग लड़के की सुनवाई के लिए किशोर न्याय बोर्ड को अलग से एक रिपोर्ट सौंपी जाएगी।
अधिकारी ने बताया कि आरोप पत्र में घटनाक्रम, इलाज, पीड़िता को सिंगापुर के एक अस्पताल में भेजने और उसकी मौत का पूरा ब्योरा दिया जाएगा। पुलिस ने अभियुक्तों के खिलाफ बलात्कार, हत्या और अन्य आरोप लगाए हैं।
महिला सुरक्षा से जुड़े मुद्दों की समीक्षा के लिए कार्यबल गठित
केंद्रीय गृह सचिव की अगुवाई में एक विशेष कार्यबल गठित किया गया है जो हर पखवाड़े राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दों की समीक्षा करेगा।
गृह मंत्रालय से मंगलवार को जारी एक बयान के अनुसार यह 13 सदस्यीय कार्यबल नियमित तौर पर दिल्ली पुलिस की कार्य पद्धति की समीक्षा करेगा। यह कार्यबल महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर पुलिस और दिल्ली सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की भी नियमित समीक्षा करेगा।
कार्यबल इस मुद्दे पर चर्चाओं के दौरान संसद सदस्यों की ओर से दिए गए सुझावों पर भी विचार करेगा।
इस कार्यबल के सदस्य दिल्ली के मुख्य सचिव, दिल्ली के पुलिस आयुक्त, दिल्ली पुलिस विशेष आयुक्त (यातायात), विशेष आयुक्त (कानून एवं समीक्षा) और दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष होंगे।
कार्यबल के अन्य सदस्य नई दिल्ली नगर परिषद् (एनडीएमसी) के अध्यक्ष, यातायात आयुक्त, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार, पूर्वी, उत्तरी एवं दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के आयुक्त, उत्पाद आयुक्त और गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव (यूटी) हैं।
बयान में कहा गया है कि कार्यबल ऐसे किसी सदस्य को भी शामिल कर सकता है जिसे वह उपयुक्त समझता है।
`गैंगरेप पीड़ता के नाम पर हो बलात्कार विरोधी कानून का नाम`
केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने मंगलवार को यह कहते हुए सामूहिक बलात्कार कांड की पीड़ित 23 वर्षीय छात्रा की पहचान सार्वजनिक करने की वकालत की कि उसका नाम गुप्त रखने से कौन सा हित सध रहा है। उनके इस बयान से विवाद खड़ा हो सकता है।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री थरूर ने यह भी कहा कि यदि पीड़िता के माता-पिता को आपत्ति न हो तो संशोधित बलात्कार विरोधी कानून का नाम उसी के नाम पर रखा जाए।
थरूर ने ट्विटर पर कहा,'आश्चर्य होता है कि दिल्ली के सामूहिक बलात्कार कांड की पीड़िता का नाम गुप्त रख कर 'पता नहीं' कौन सा हित सधा है। क्यों न एक ऐसे वास्तविक व्यक्ति के रूप में उसका नाम लिया जाए और उसे सम्मान दिया जाए जिसकी अपनी एक पहचान है।'
अपने मन की बात रखने के लिए मशहूर केंद्रीय मंत्री ने कहा,'यदि उनके अभिभावक को आपत्ति न हो तो उसे सम्मानित किया जाए और उसी के नाम पर संशोधित बलात्कार विरोधी कानून का नाम रखा जाए। वह एक मनुष्य थी जिसका अपना नाम था न कि वह एक प्रतीक थी।'
कानून के तहत बलात्कार पीड़िता का नाम उद्घाटित नहीं किया जा सकता है। बलात्कार पीड़िता का नाम प्रकाशित करने या उससे नाम को ज्ञात बनाने से संबंधित कोई अन्य मामला आईपीसी की धारा 228 ए के तहत अपराध है।
थरूर का बयान ऐसे वक्त में आया है जब दिल्ली पुलिस ने ऐसी सामग्री प्रकाशित करने पर एक अंग्रेजी दैनिक के खिलाफ मामला दर्ज किया है जिससे पीड़िता की पहचान सार्वजनिक हो सकती है।
थरूर के बयान से ट्विटर पर बहस छिड़ गई है। जहां कुछ लोगों ने उनका समर्थन किया है, वहीं कुछ अन्य ने इस सुझाव पर प्रश्न खड़ा किया है।
चिरदीप नामक एक व्यक्ति ने पूछा है,'अपराध न्याय प्रणाली में असल परिवर्तन करने के बजाय सम्मान प्रदान करने, मूर्ति बनाने मंदिर बनाने जैसी बातें क्यों कर रहे हैं आप।' एक अन्य व्यक्ति अनिल वनवारी ने लिखा है,'एक अच्छा सुझाव है। यही बात मैंने चार दिन पहले कही थी।'
उल्लेखनीय है कि 16 दिसंबर को एक चलती बस में छह व्यक्तियों ने लड़की का सामूहिक बलात्कार किया था और उस पर इस कदर दरिंदगी की थी कि लगभग एक पखवाड़े तक जिन्दगी और मौत के बीच झूलने के बाद उसने 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया।
सामाजिक कार्यकर्ता किरण बेदी ने ट्विटर पर कहा,'मैं बलात्कार पर नया कानून का नाम उसके असली नाम पर या 'निर्भया' नाम पर रखने के थरूर के सुझाव का समर्थन करती हूं। ऐसा अमेरिका में हो चुका है। ऐसा कर हम बलात्कार के कृत्य को नहीं बल्कि संघर्ष एवं जिंदगी जीने की उसकी इच्छा को अमर कर देंगे। इस तरह हम दाग हटा सकते हैं।'
Tuesday, January 1, 2013
मौजूदा कानून अगर न्याय नहीं दिला सकता तो और सख्त कानून किस काम का?समता और सामाजिक न्याय के बिना क्या कानून का राज संभव है ?और लिंगभेद का क्या?
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