हिन्दू तालिबान -32
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डायमण्ड इण्डिया का प्रकाशन
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सूफी दरवेश सरकार सैलानी से मुलाकात के बाद मैंने एक मासिक पत्रिका निकालने की योजना तो बना ली ,लेकिन पैसा ? लोग ? कौन मदद करेगा ? मैंने अपने सहयोगी शिक्षक साथियों से इस बारे में चर्चा की ,एक दिन हम लोग मांडल पंचायत समिति में अपने एक मित्र लक्ष्मण गुर्जर के सरकारी आवास पर जमा हुए ,सात शुरूआती साथी –कान सिंह राठौड़ ,गिरधारी लाल गुर्जर ,बलवीरसिंह गौड़ ,पारस लौहार ,भैरूलाल शर्मा ,पप्पू सिंह चुण्डावत और मैं .मैंने उन्हें नौकरी छोड़ने और अब पत्रकारिता करने के उद्देश्य की जानकारी दी ,उनसे सहयोग की अपेक्षा की ,मेरे इन दोस्तों का मैं जिंदगीभर के लिए शुक्रगुजार हूँ , मैं स्वीकार करता हूँ कि आज जो कुछ भी मैं हूँ ,उसमे इनका सहयोग अविस्मरनीय है ,हमने एक कम्पनी बनाई और उसके स्वामित्व में डायमण्ड इण्डिया की शुरुआत की ,13 और साथी भी इसमे जुड़े ,जिनमे हरीसिंह भाटी, मेवा राम गुर्जर तथा मंजू शर्मा इत्यादि साथी प्रमुख थे , हमने तय किया कि यह पत्रिका जातिवाद ,साम्प्रदायिकता और भ्रष्टाचार का विरोध करेगी तथा प्रेम ,भाईचारे और मानवता का सन्देश देगी ,यह भी तय हुआ कि हम डायमण्ड इण्डिया में किसी भी प्रकार का विज्ञापन नहीं लेंगे और नशाखोरी ,धार्मिक अन्धविश्वास और कपोल कल्पित कहानियां भी नहीं छापेंगे.
14 जनवरी 2001 वो तारीख है जब डायमण्ड इण्डिया का पहला अंक प्रकाशित हुआ ,शुरू शुरू में लोगों को लगा कि यह कोई हीरा पन्ना विक्रेताओं की पत्रिका है ,बिल्कुल व्यावसायिक नाम ,लेकिन अन्दर सारी सामग्री बाज़ार और बाजारीकरण के खिलाफ़ ! इसे जल्दी ही लोकप्रियता हासिल हो गयी ,हमारी टीम के सहज और देशज लेखन को लोगों ने पसंद किया ,हमने कई खोजपरक रिपोर्टें छापी ,घटनाओं परिघटनाओं को दूसरे नज़रिए से देखने की तीसरी दृष्टी को जनता ने हाथोंहाथ लिया ,लोग कहते थे कि जब वे डायमण्ड इण्डिया पढ़ते है ,तो उन्हें लगता है कि वो हमसे बात कर रहे है ,हमने छोटे छोटे गांवों तक इसे पंहुचाया ,यहाँ भी संघ परिवार से पंगा बरक़रार रहा ,राजस्थान में आर एस एस का मुखपत्र ‘ पाथेयकण ‘ गाँव गाँव पंहुचता है ,उसमे संघ अपनी विचारधारा के अनुसार सारा प्रोपेगंडा जन जन तक पंहुचाने में सफल रहता है ,किसी ने भी उसको काउन्टर करने की कोशिस नहीं की ,लेकिन डायमण्ड इण्डिया ने यह करना शुरू किया ,हमने उनके सघन प्रभाव वाले गांवों में अपने लिए बड़ी संख्या में पाठक ढूंढे ,लोगो के पास अब दोनों तरह की आवाज़ें पंहुच रही थी ,इसे एक विकल्प के रूप में भी स्वीकार किया जा रहा था .हमने साम्प्रदायिकता और जातिवाद पर चौट करने में कभी कोताही नहीं बरती. पत्रिका की मांग लगातार बढ़ रही थी ,हम उत्साहित थे ,हमने ‘ डायमण्ड कैसेट्स ‘ नाम से एक ऑडियो डिविजन भी खोल दिया ,उस वक़्त तक कैसेट्स का बड़ा जोर था ,लोग टेप रिकार्ड्स के ज़रिये इन्हें सुनते सुनाते थे ,हमारा पहला कैसेट निकला –भारतपुत्रों जागो .यह एक लम्बा भाषण था ,जो मैंने आर एस एस और अन्य हिन्दू एवं मुस्लिम कट्टरपंथियों के खिलाफ दलित आदिवासी युवाओं के एक कैडर कैम्प में दिया था ,निसंदेह मेरा भाषण काफी उत्तेजक और भड़काऊ किस्म का था ( मैं भी क्या करूँ संघ से मिले कट्टरता के संस्कार मेरा आज तक पीछा नहीं छोड़ रहे है ) इस भाषण के कैसेट ने काफी हंगामा मचाया ,यह वह दौर था जब संघ परिवार द्वारा देश भर में घुमा घुमा कर विषवमन कर रही दो महिला साध्वियों के भाषण काफी तहलका मचाये हुए थे ,मेरे भाषण को उनका जवाब माना गया, मज़ेदार स्थितियां यह थी कि बहुत सारे चौराहों पर एक तरफ फायरब्रांड हिंदुत्व वादी ऋतम्भरा और उमा भारती के कैसेट्स चीख़ते थे तो दूसरी तरफ पान की केबिनों पर मेरा कैसेट चिल्लाता था ,थक हार कर संघ समर्थकों ने अपने कैसेट्स वापस ले लिए ,तो मेरे समर्थकों ने भी मेरा भाषण ‘ भारत पुत्रो जागो ‘ बजाना बंद कर दिया ,इस तरह हमने उग्रपंथी तत्वों को उन्हीं की जबान और भाषा शैली में जवाब दे दिया था ,डायमण्ड इण्डिया के ज़रिये हम मुद्रित अक्षरों के ज़रिये लड़ाई पहले से ही छेड़े हुए थे .
मेरे बाकी के साथियों को विचारधारा इत्यादि से ज्यादा मतलब नहीं था ,वे तो लोगो द्वारा मिल रहे रिस्पोंस से ही बेहद खुश थे ,मगर यह ख़ुशी अस्थाई साबित हुयी ,आर एस एस का जाल इतना फैला हुआ है कि उसका कई बार तो अंदाज़ लगाना ही कठिन हो जाता है ,अब तक उन्होंने मेरी हरकतों को या तो नज़रंदाज़ किया था अथवा उन पर छोटी मोटी प्रतिक्रियाएं दी थी ,लेकिन इस बार उन्होंने संगठित वार किया ,उन्हें मालूम था कि डायमण्ड इण्डिया का पूरा समूह सरकारी नौकरीपेशा है ,इसलिए उन्होंने हमारे बाकी साथियों को पकड़ना प्रारंभ किया ,चूँकि मैं नौकरी छोड़ चुका था ,शेष सभी सरकारी सेवा में थे ,इसलिए चिंता होना स्वाभाविक ही था ,आने वाला समय उनके लिए मुश्किलात भरा हो सकता है ,यही सोच कर हमने तय किया कि पैसा तो सभी साथियों का लगा रहेगा लेकिन नाम हटाये जायेंगे ,ताकि उन पर कोई विप्पति ना आ पड़े .
अब डायमण्ड इण्डिया की पूरी ज़िम्मेदारी मेरे कन्धों पर ही आ गयी थी ,लेकिन बाकी साथी भी गाहे बेगाहे मदद कर देते थे ,दूसरी तरफ संघ परिवार के लोग हमारे प्रकाशन के खिलाफ जगह जगह आग उगलने लग गए थे ,वे लोगो को सदस्य नहीं बनने के लिये भड़काते रहते थे .उनका एक ही उद्देश्य था कि किसी तरह यह पत्रिका बंद हो जाये ..आगे का समय डायमण्ड इण्डिया के लिए काफी कष्टप्रद साबित होने जा रहा था ,अब संघी हमारे विचारों की हत्या करने पर उतारू हो गए थे ,हमारे खिलाफ ऐसा दुष्प्रचार किया गया कि उसका जवाब देते देते हमारी जान निकलने लगी ................
इसी उहापोह में अप्रैल का महीना आ गया ,इस माह का अंक निकाल कर मैं भीलवाडा स्थित ऑफिस में बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था . आज की ‘ राजस्थान पत्रिका ‘ में एक खबर छपी थी कि राजसमन्द की जनावद ग्राम पंचायत में ‘ मजदूर किसान शक्ति संगठन ‘ ने एक जनसुनवाई आयोजित की है जिसमे लाखों रुपये का घोटाला ग्रामीण विकास के कामों में उजागर हुआ है , मुझे जनसुनवाई की इस अद्भुत तकनीक के बारे में और भी जानने की इच्छा पैदा हुयी .खबर के मुताबिक अगले दिन ब्यावर के सुभाष गार्डन में ‘ सूचना के अधिकार पर पहला राष्ट्रीय अधिवेशन ‘ होने जा रहा था ,मैंने इसमें जाने का फ़ैसला किया .कल सुबह जल्दी वहां जाना है ..........( जारी )
-भंवर मेघवंशी
लेखक की आत्मकथा ‘ हिन्दू तालिबान ‘ का बत्तीसवां अध्याय
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डायमण्ड इण्डिया का प्रकाशन
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सूफी दरवेश सरकार सैलानी से मुलाकात के बाद मैंने एक मासिक पत्रिका निकालने की योजना तो बना ली ,लेकिन पैसा ? लोग ? कौन मदद करेगा ? मैंने अपने सहयोगी शिक्षक साथियों से इस बारे में चर्चा की ,एक दिन हम लोग मांडल पंचायत समिति में अपने एक मित्र लक्ष्मण गुर्जर के सरकारी आवास पर जमा हुए ,सात शुरूआती साथी –कान सिंह राठौड़ ,गिरधारी लाल गुर्जर ,बलवीरसिंह गौड़ ,पारस लौहार ,भैरूलाल शर्मा ,पप्पू सिंह चुण्डावत और मैं .मैंने उन्हें नौकरी छोड़ने और अब पत्रकारिता करने के उद्देश्य की जानकारी दी ,उनसे सहयोग की अपेक्षा की ,मेरे इन दोस्तों का मैं जिंदगीभर के लिए शुक्रगुजार हूँ , मैं स्वीकार करता हूँ कि आज जो कुछ भी मैं हूँ ,उसमे इनका सहयोग अविस्मरनीय है ,हमने एक कम्पनी बनाई और उसके स्वामित्व में डायमण्ड इण्डिया की शुरुआत की ,13 और साथी भी इसमे जुड़े ,जिनमे हरीसिंह भाटी, मेवा राम गुर्जर तथा मंजू शर्मा इत्यादि साथी प्रमुख थे , हमने तय किया कि यह पत्रिका जातिवाद ,साम्प्रदायिकता और भ्रष्टाचार का विरोध करेगी तथा प्रेम ,भाईचारे और मानवता का सन्देश देगी ,यह भी तय हुआ कि हम डायमण्ड इण्डिया में किसी भी प्रकार का विज्ञापन नहीं लेंगे और नशाखोरी ,धार्मिक अन्धविश्वास और कपोल कल्पित कहानियां भी नहीं छापेंगे.
14 जनवरी 2001 वो तारीख है जब डायमण्ड इण्डिया का पहला अंक प्रकाशित हुआ ,शुरू शुरू में लोगों को लगा कि यह कोई हीरा पन्ना विक्रेताओं की पत्रिका है ,बिल्कुल व्यावसायिक नाम ,लेकिन अन्दर सारी सामग्री बाज़ार और बाजारीकरण के खिलाफ़ ! इसे जल्दी ही लोकप्रियता हासिल हो गयी ,हमारी टीम के सहज और देशज लेखन को लोगों ने पसंद किया ,हमने कई खोजपरक रिपोर्टें छापी ,घटनाओं परिघटनाओं को दूसरे नज़रिए से देखने की तीसरी दृष्टी को जनता ने हाथोंहाथ लिया ,लोग कहते थे कि जब वे डायमण्ड इण्डिया पढ़ते है ,तो उन्हें लगता है कि वो हमसे बात कर रहे है ,हमने छोटे छोटे गांवों तक इसे पंहुचाया ,यहाँ भी संघ परिवार से पंगा बरक़रार रहा ,राजस्थान में आर एस एस का मुखपत्र ‘ पाथेयकण ‘ गाँव गाँव पंहुचता है ,उसमे संघ अपनी विचारधारा के अनुसार सारा प्रोपेगंडा जन जन तक पंहुचाने में सफल रहता है ,किसी ने भी उसको काउन्टर करने की कोशिस नहीं की ,लेकिन डायमण्ड इण्डिया ने यह करना शुरू किया ,हमने उनके सघन प्रभाव वाले गांवों में अपने लिए बड़ी संख्या में पाठक ढूंढे ,लोगो के पास अब दोनों तरह की आवाज़ें पंहुच रही थी ,इसे एक विकल्प के रूप में भी स्वीकार किया जा रहा था .हमने साम्प्रदायिकता और जातिवाद पर चौट करने में कभी कोताही नहीं बरती. पत्रिका की मांग लगातार बढ़ रही थी ,हम उत्साहित थे ,हमने ‘ डायमण्ड कैसेट्स ‘ नाम से एक ऑडियो डिविजन भी खोल दिया ,उस वक़्त तक कैसेट्स का बड़ा जोर था ,लोग टेप रिकार्ड्स के ज़रिये इन्हें सुनते सुनाते थे ,हमारा पहला कैसेट निकला –भारतपुत्रों जागो .यह एक लम्बा भाषण था ,जो मैंने आर एस एस और अन्य हिन्दू एवं मुस्लिम कट्टरपंथियों के खिलाफ दलित आदिवासी युवाओं के एक कैडर कैम्प में दिया था ,निसंदेह मेरा भाषण काफी उत्तेजक और भड़काऊ किस्म का था ( मैं भी क्या करूँ संघ से मिले कट्टरता के संस्कार मेरा आज तक पीछा नहीं छोड़ रहे है ) इस भाषण के कैसेट ने काफी हंगामा मचाया ,यह वह दौर था जब संघ परिवार द्वारा देश भर में घुमा घुमा कर विषवमन कर रही दो महिला साध्वियों के भाषण काफी तहलका मचाये हुए थे ,मेरे भाषण को उनका जवाब माना गया, मज़ेदार स्थितियां यह थी कि बहुत सारे चौराहों पर एक तरफ फायरब्रांड हिंदुत्व वादी ऋतम्भरा और उमा भारती के कैसेट्स चीख़ते थे तो दूसरी तरफ पान की केबिनों पर मेरा कैसेट चिल्लाता था ,थक हार कर संघ समर्थकों ने अपने कैसेट्स वापस ले लिए ,तो मेरे समर्थकों ने भी मेरा भाषण ‘ भारत पुत्रो जागो ‘ बजाना बंद कर दिया ,इस तरह हमने उग्रपंथी तत्वों को उन्हीं की जबान और भाषा शैली में जवाब दे दिया था ,डायमण्ड इण्डिया के ज़रिये हम मुद्रित अक्षरों के ज़रिये लड़ाई पहले से ही छेड़े हुए थे .
मेरे बाकी के साथियों को विचारधारा इत्यादि से ज्यादा मतलब नहीं था ,वे तो लोगो द्वारा मिल रहे रिस्पोंस से ही बेहद खुश थे ,मगर यह ख़ुशी अस्थाई साबित हुयी ,आर एस एस का जाल इतना फैला हुआ है कि उसका कई बार तो अंदाज़ लगाना ही कठिन हो जाता है ,अब तक उन्होंने मेरी हरकतों को या तो नज़रंदाज़ किया था अथवा उन पर छोटी मोटी प्रतिक्रियाएं दी थी ,लेकिन इस बार उन्होंने संगठित वार किया ,उन्हें मालूम था कि डायमण्ड इण्डिया का पूरा समूह सरकारी नौकरीपेशा है ,इसलिए उन्होंने हमारे बाकी साथियों को पकड़ना प्रारंभ किया ,चूँकि मैं नौकरी छोड़ चुका था ,शेष सभी सरकारी सेवा में थे ,इसलिए चिंता होना स्वाभाविक ही था ,आने वाला समय उनके लिए मुश्किलात भरा हो सकता है ,यही सोच कर हमने तय किया कि पैसा तो सभी साथियों का लगा रहेगा लेकिन नाम हटाये जायेंगे ,ताकि उन पर कोई विप्पति ना आ पड़े .
अब डायमण्ड इण्डिया की पूरी ज़िम्मेदारी मेरे कन्धों पर ही आ गयी थी ,लेकिन बाकी साथी भी गाहे बेगाहे मदद कर देते थे ,दूसरी तरफ संघ परिवार के लोग हमारे प्रकाशन के खिलाफ जगह जगह आग उगलने लग गए थे ,वे लोगो को सदस्य नहीं बनने के लिये भड़काते रहते थे .उनका एक ही उद्देश्य था कि किसी तरह यह पत्रिका बंद हो जाये ..आगे का समय डायमण्ड इण्डिया के लिए काफी कष्टप्रद साबित होने जा रहा था ,अब संघी हमारे विचारों की हत्या करने पर उतारू हो गए थे ,हमारे खिलाफ ऐसा दुष्प्रचार किया गया कि उसका जवाब देते देते हमारी जान निकलने लगी ................
इसी उहापोह में अप्रैल का महीना आ गया ,इस माह का अंक निकाल कर मैं भीलवाडा स्थित ऑफिस में बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था . आज की ‘ राजस्थान पत्रिका ‘ में एक खबर छपी थी कि राजसमन्द की जनावद ग्राम पंचायत में ‘ मजदूर किसान शक्ति संगठन ‘ ने एक जनसुनवाई आयोजित की है जिसमे लाखों रुपये का घोटाला ग्रामीण विकास के कामों में उजागर हुआ है , मुझे जनसुनवाई की इस अद्भुत तकनीक के बारे में और भी जानने की इच्छा पैदा हुयी .खबर के मुताबिक अगले दिन ब्यावर के सुभाष गार्डन में ‘ सूचना के अधिकार पर पहला राष्ट्रीय अधिवेशन ‘ होने जा रहा था ,मैंने इसमें जाने का फ़ैसला किया .कल सुबह जल्दी वहां जाना है ..........( जारी )
-भंवर मेघवंशी
लेखक की आत्मकथा ‘ हिन्दू तालिबान ‘ का बत्तीसवां अध्याय
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