नदी जोड़ो योजना देश के खिलाफ
उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश की नदियों को लेकर नई पहल
रामगढ़ (नैनीताल )। हरित स्वराज की तरफ से उतराखंड में दो दिन देश के विभिन्न हिस्सों से आए सामाजिक कार्यकर्त्ता, शिक्षाविद और पत्रकार रामगढ़ में बैठे और लोकसभा चुनाव के साथ आगे की योजना पर चर्चा हुई। अंत में ‘नदी संवाद‘ मंच का गठन करने का फैसला किया गया जो पहाड़ और मैदान की नदियों पर मंडरा रहे संकट को लेकर ठोस पहल करेगा। नदी संवाद की अगली बैठक अगस्त के अंतिम हफ्ते में लखनऊ में रखी गई है।
पहले दिन की चर्चा लोकसभा चुनाव और सामाजिक कार्यकर्ताओं के सामने आने वाली नई चुनौतियों पर हुई। बैठक में यह भी राय आई कि मौजूदा हालात में सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्ताओं के लिए अब ज्यादा बड़ी चुनौती आने वाली है क्योंकि सत्तारूढ़ दल विरोध में उठने वाली आवाज को ज्यादा ताकत से दबाने का प्रयास करेगा। इसके संकेत भी मिलने लगे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं को दबाने के लिए उन पर माओवादी होने का आरोप चस्पा करना बहुत आसान है। अल्मोड़ा में इस तरह की घटना सामने आ चुकी है इसलिए ऐसे हालात के लिए सभी को तैयार रहना होगा।
इस मौके पर शमशेर सिंह बिष्ट ने नदी जोड़ो अभियान को पर्यावरण की दृष्टि के साथ राज्यों और राष्ट्रों के सह सम्बन्ध के भी खिलाफ
बताया।
दूसरे दिन पर्यावरण खासकर हिमालय और नदियों के सवाल पर चर्चा हुई। हिमालय क्षेत्र के साथ मैदानी इलाकों में नदियों पर संकट गहराता जा रहा है। पहाड़ हो या मैदान सभी जगह गर्मी आते ही नदियों का पानी ख़त्म होने लगता है। पहाड़ के बहुत से जिलों में यह संकट गहराता जा रहा है।
दूसरे दिन की बैठक पूरी तरह पर्यावरण के सवाल पर थी। हिमालय और नदियाँ विषय पर हुई इस बैठक के पहले सत्र की अध्यक्षता नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन शाह ने की तो मुख्य वक्ता महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति विभूति नारायण राय थे।
विभूति नारायण राय ने कहा कि जो मौजूदा हालात हैं उसमें भारत अडानी अंबानी के लिए ही महाशक्ति बनने जा रहा है आम आदमी के लिए नहीं। ऐसे में हालात और गंभीर होगे। साथ ही उन्होंने पर्यावरण के सवाल पर संतुलित व व्यावहारिक नजरिया अपनाने पर जोर दिया। पर्यावरण को लेकर के बार सामजिक कार्यकर्त्ता पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर ऐसे अभियान से जुड़ जाते है जिससे नुकसान होता है। पानी के सवाल पर राजस्थान में उन्होंने यह अनुभव किया है। इसलिए पर्यावरण की चिन्ताओं को निष्पक्षता और ईमानदारी से समझना चाहिए।
एनडीटीवी के पत्रकार दिनेश मनसेरा ने कहा कि विकास के नाम पर पहाड़ में जिस तरह सड़कों और सुरंगों को बनाने के लिए जिस तरह डाइनामाइट और जेसीबी मशीनों का इस्तेमाल किया गया है उसने पहाड़ की चट्टानों को और कमजोर किया है। अब तो सड़क कोई इंजीनियर नहीं बल्कि जेसीबी का ड्राइवर बनता है। इससे पहाड़ धसकने का खतरा बढ़ रहा है। यह सब पूंजीपतियों के दबाव में हो रहा है जिनका ज्यादा जोर बिजली परियोजनाओं और सड़कों पर है। अब पर्यटन के नाम पर हेलीकाप्टर का बेतहाशा इस्तेमाल और खतरनाक साबित हो रहा है। साफ़ है कि राजनैतिकों के नजरिए से पर्यावरण का संरक्षण संभव नहीं है।
एडवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ताहिरा हसन ने कहा-पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान तो बड़े कारपोरेट घराने पहुंचा रहे है जो प्राकृतिक संसाधनों की लूट में जुटे है। फिर इन कारपोरेट घरानों की ताकत पर जो सरकार सत्ता में आई है उससे कोई उम्मीद रखना बेमानी है। हमें तो आशंका है कि अब यह लूट कहीं और तेज ना हो जाए।
पत्रकार राजीव लोचन शाह ने कहा की जल विद्युत् परियोजनाएं मनुष्यों की लालच का परिणाम है। उन्होंने केदारनाथ का उदाहरण देते हुए कहा कि इस हादसे के पीछे विकास का मॉडल और लालच ही प्रमुख कारण था। अब समूचा उतराखंड ठेकेदारों के सिंडिकेट द्वारा संचालित हो रहा है। यह पूरे हिमालय के लिए खतरनाक है। जंगल पर
जनता का सीधा अधिकार होना चाहिए। मनुष्य को जंगल से दूर रखना हिमालय के लिए घातक है।
डॉ. सुनीलम ने कहा कि मुख्य बहस अमेरिकी, यूरोपीय विकास के मॉडल का विकल्प देने की है। उन्होंने कहा कि नदी जोड़ो अभियान न तो तकनीकी तौर पर उपयुक्त है न ही भारत सरकार के पास इतनी बड़ी धनराशि उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि नदियों को लेकर दक्षिण से लेकर उत्तर के राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर जबरदस्त विवाद है।नदी जोड़े जाने के बाद ऐसे विवाद देश के सभी उनतीस राज्यों के बीच खड़े होंगे जिसका राष्ट्रीय एकजुटता पर विपरीत असर पड़ेगा। बंगला देश नेपाल भूटान और चीन के साथ भी तनाव बढ़ेगा। विश्व के तमाम देश पर्यावरणीय असर के चलते नदी जोड़ो मॉडल को नकार चुके हैं।
सामाजिक कार्यकर्त्ता और चिपको आन्दोलन के कार्यकर्त्ता भुवन पाठक ने कहा -समूचा पहाड़ पानी के संकट से जूझ रहा है। पानी का यह संकट कुछ वर्षों में ज्यादा बढ़ा है। भुवन ने कहा- हम बचपन में जिस कोसी नदी में तैरते थे अब उस नदी में मछलियों के लायक पानी नहीं बचा है। तब नदी ही हमारा खेल का भी मैदान होती पर अब सब नष्ट होता जा रहा है। तब घराट होते थे और ये घराट पहाड़ की संस्कृति को भी संजोते थे। घराट के आसपास ही धार्मिक सांस्कृतिक आयोजन होते थे। घराट ख़त्म हुए तो नदी भी बदहाल हो गई। डीजल और बिजली की आटा चक्कियों ने न सिर्फ घराट को ख़त्म किया बल्कि पहाड़ के लिए भी खतरा पैदा कर दिया।
भुवन पाठक ने आगे कहा कि ये नदियों को पहाड़ और मैदान को फिर से एक सूत्र में बाँधने का काम कर सकती हैं क्योंकि ये नदी पहाड़ से उपजाऊ मिटटी गाद मैदान तक ले जाती रही हैं। अब विकास की नई अवधारणा के बाद बाँधों के चलते ये नदियाँ मिट्टी भी नहीं ले जा पाएंगी जिससे पहाड़ और मैदान दोनों का नुकसान होगा। ऐसे में नदी संवाद जैसा मंच पहाड़ और मैदान के बीच सेतु का काम कर सकता है। इसके लिए एक टीम का गठन किया गया जिसमें भुवन पाठक, दिनेश मनसेरा, राजीव लोचन शाह, शमशेर सिंह बिष्ट, डॉ. सुनीलम, अंबरीश कुमार, विजय शंकर चतुर्वेदी, आशुतोष सिंह, ताहिरा हसन और विभूति नारायण राय के नाम का प्रस्ताव किया गया और इस टीम को अगली बैठक की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस मौके पर तीन नदियों रिहंद, सोन और कनहर के संकट पर विजय शंकर चतुर्वेदी की लिखी पुस्तक का विमोचन राजीव लोचन शाह ने किया।
बहराइच से आए संजीव श्रीवास्तव ने नेपाल की गेरुआ नदी पर एक रपट पेश की।
दो दिन की इस चर्चा में शमशेर सिंह बिष्ट, पीसी तिवारी, भुवन पाठक, राजीव लोचन साह, बटरोही, पूर्व कुलपति विभूति नारायण राय, डॉ. सुनीलम, ताहिरा हसन, अंबरीश कुमार, दिनेश मानसेरा, रवि एकता, विजय शंकर चतुर्वेदी, आशुतोष सिंह, संजीव श्रीवास्तव, सनत सिंह, राजेश द्विवेदी, पूर्व राजदूत शशांक, ओवैस खान समेत कई लोग शामिल थे।
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