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Tuesday, June 3, 2014

चोरीवाड़ो घणों होग्यो रे, कोई तो मुंडे बोलो

चोरीवाड़ो घणों होग्यो रे, कोई तो मुंडे बोलो
भंवर मेघवंशी की आत्मकथा 'हिन्दू तालिबान'

चोरीवाड़ो घणों होग्यो रे, कोई तो मुंडे बोलो

हिन्दू तालिबान -33

आसीन्द अयोध्या बनने की राह पर था

भंवर मेघवंशी
6 अप्रैल 2001 को सूचना के अधिकार के पहले राष्ट्रीय अधिवेशन की रिपोर्टिंग करने के लिए पहुंचा। पत्रकार होने के सम्पूर्ण अहंकार के साथ मैं ब्यावर पहुंचा, सोचा कि मीडिया के बैठने के लिए अलग व्यवस्था होगी, लेकिन वहां तो ऐसा कुछ भी नहीं था, बड़े से मंच पर बहुत सारे लोग बैठे थे, जिनमें से लोकसभा के अध्यक्ष रहे रवि राय, हिंदी पत्रकारिता के दिग्गज प्रभाष जोशी और राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मैं पहचान पाया। बाकी के रंग बिरंगे मंचासीनों को पहली ही बार देखा था। नीचे पंडाल में हजारों लोग मौजूद थे। कई सारे स्टाल लगे हुए थे, जिनमें साहित्य और खाने पीने के सामान बिक रहे थे, मेले का सा दृश्य था।
मैंने संचालन कर रही टीम के पास पहुंच कर बात करने का प्रयास किया। तीन-चार लोग मिलकर मंच चला रहे थे, उनमें एक लड़की भी थी, साड़ी पहने हुए। मैंने उसे अपना परिचय दिया। डायमण्ड इण्डिया की एक प्रति भी दी और प्रेस नोट भेजने का आग्रह किया। उक्त लड़की ने कोई ख़ास रूचि नहीं दिखाई, पत्रिका हाथ में ले ली और हाँ हूँ में जवाब दे कर मुझे वहां से टरका दिया। मुझे अजीब सा लगा, पहले तो मैंने उसे ही अरुणा रॉय समझ लिया था। उसके उपेक्षापूर्ण व्यवहार से मुझे निराशा हुयी। बाद में पता चला कि उन मोहतरमा का नाम सौम्या किदाम्बी है, जो उस दिन किसी घमंड की वजह से नहीं बल्कि अपनी अतिव्यस्तता और काम के अत्यधिक बोझ के चलते मुझसे शीघ्रातिशीघ्र पिंड छुडवाने की कोशिश में थीं। बाद के दिनों में इस पहली मुलाकात को याद करके हम लोग काफी हँसे।
सूचना के अधिकार के इस प्रथम अखिल भारतीय सम्मलेन में शिरकत करना मेरे लिये अच्छा और नया अनुभव था, मैंने प्रचुर मात्रा में वहां से साहित्य खरीदा। कई लोगों से मुलाकात की और भीलवाडा लौट आया। मई के अंक में हमारी कवर स्टोरी थी–‘ चोरीवाड़ो घणों होग्यो रे,कोई तो मुंडे बोलो …’( चोरियां और घोटाले बहुत हो गए हैं, कोई तो इनके खिलाफ मुंह खोलो और जोर लगा कर बोलो ) दरअसल यह एक बहुत ही शक्तिशाली मारवाड़ी गीत था, जिसे मजदूर किसान शक्ति संगठन के लोगों ने मंच से गाया था। गीत गाँव के छोटे चोर से लेकर दिल्ली में बैठे बड़े बड़े घोटालेबाजों का पर्दाफाश करते हुए लोगों से अपनी ख़ामोशी तोड़ने का आह्वान करने वाला था। उफ़्फ़ इतनी ताकतवर प्रस्तुति ! मेरे लिए इसे सुनना एक युग की यात्रा करने जैसा था। राजस्थानी भाषा की मिठास लिए यह गीत मेरे मन और मस्तिष्क पर कई दिनों तक छाए रहा। इतनी कड़वी हकीक़त और नंगी सच्चाई बयान की गयी थी कि उसकी प्रशंसा के लिए मेरे पास कोई शब्द ही नहीं थे, जिन महानुभाव की अगुवाई में इसे गाया गया, उनका नाम शंकर सिंह बताया गया था। ब्यावर के ही निकटवर्ती लोटियाना गाँव के निवासी प्रसिद्ध रंगकर्मी। मैं तो इस आदमी के गाने के तौर तरीके का दीवाना हो कर लौटा। मन ही मन सोच लिया कि इनसे तो फुरसत से फिर मिलना है, कब,कहाँ और कैसे अभी तय नहीं था, लेकिन मिलन की अदम्य लालसा जरुर गहरे में उतर चुकी थी। इसी अधिवेशन में पर पहली बार मंच पर अरुणा रॉय को बोलते सुना और निखिल डे को मंच के नीचे से संचालन करते देखा और उनकी आवाज़ भी सुनी। मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका, कुछ भी हो लेकिन ये लोग बड़े ही पावरफुल अंदाज़ में अपनी बातें पूरी निर्भीकता से रख रहे थे। मैंने वापस आ कर इस अधिवेशन पर 12 पेज की स्टोरी छापी। उस अंक की 10 कॉपी देव डूंगरी नामक गाँव में भेजी जो कि मजदूर किसान शक्ति संगठन ( एम के एस एस ) का मुख्यालय है।
इसी बीच हमने 11 मई को हमारे मित्र घीसूलाल विश्नोई के बुलावे पर दरीबा ग्राम पंचायत की जनसुनवाई कर डाली, जनहित संघर्ष समिति के बैनर तले हुयी इस जनसुनवाई में पैनल मेम्बर के रूप में मैं भी शामिल हुआ। हमें कोई आईडिया तो था नहीं कि जनसुनवाई कैसे की जाती है, फिर भी कर डाली, वो भी रात के वक़्त ! घीसू लाल विश्नोई के घर का चबूतरा ही जन सुनवाई का मंच बन गया। तकरीबन 300 ग्रामीणों की मौजूदगी में तीन घंटे तक यह प्रक्रिया चली। सरपंच बंसीलाल के कार्यकाल में कराये गए विकास कार्यों में हुयी अनियमितताओं की परत दर परत पोल खुलने लगी। रात 11 बजे जनसुनवाई ख़तम करके जब हम लोग विश्नोई के मकान की छत पर बैठ कर खाना खा रहे थे, तब नीचे जनसुनवाई स्थल पर सरपंच समर्थक और सरपंच विरोधी लोगों में लाठी भाटा जंग प्रारम्भ हो गयी। जब वो आपस में लड़ लिए तो उन्हें हमारी याद आई, उन्हें अचानक ज्ञान हो गया कि वहां के लोग तो बर्षों से मिल जुल कर साथ साथ रह रहे हैं, पर हम जैसे बाहरी तत्वों की वजह से गाँव वाले परस्पर लड़ रहे हैं। बाद में पुलिस ने आ कर हमें बचाया और वहां से बड़ी मुश्किल से भीलवाडा पहुंचाया। हालाँकि यह एक जोखिमभरा अनुभव था, लेकिन भ्रष्टाचार के जो मामले उजागर हुए, उनकी विस्तृत रिपोर्ट विकास अधिकारी, पंचायत समिति- सुवाना को कार्यवाही की मांग के साथ हमने भिजवाई, इस रिपोर्ट की एक प्रति मजदूर किसान शक्ति संगठन को भी भेजी गयी।
सूचना के अधिकार अधिवेशन पर कवर स्टोरी वाला डायमण्ड इण्डिया का अंक और दरीबा ग्राम पंचायत की जनसुनवाई रिपोर्ट जब देवडूंगरी पंहुची तो यह मजदूर किसान शक्ति संगठन के लोगों के लिए कौतुहल और आश्चर्य का विषय हो गयी, चर्चा हुयी कि हमारे कार्यक्षेत्र में ये कौन लोग थे जो जातिवाद, भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता के खिलाफ इतने मुखर तरीके से आवाज़ उठाते हुए लिख रहे हैं। मजदूर किसान शक्ति संगठन की सेंट्रल कमिटी ने तय किया कि डायमण्ड इण्डिया निकालने वाले लोगों से कोई कार्यकर्ता जा कर मिले और उनके साथ काम का एक रिश्ता बनाया जाये। दूसरी तरफ हम लोग भी चाह रहे थे कि इन लोगों के साथ मिल कर कुछ काम किया जाये। दोनों तरफ इच्छा थी मिलने मिलाने की, ध्येय भी एक ही था, मंज़िल की ओर सफ़र हम सब लोगों को एक ही तरफ ले जा रहा था, लेकिन राहें अभी तक एक ना थी, अभी तो ढंग से मुलाकात भी नहीं हुयी थी, लेकिन मुलाकात होनी ही थी, उसे कौन टाल सकता था…
खैर, उस वक़्त तो बात आई गयी हो गयी, हम भी अपने आप में मस्त और वो लोग भी अपने काम में व्यस्त, लेकिन मिलन का संयोग जल्दी ही बन गया… और एक साम्प्रदायिक घटना की बदौलत हम मिल गए। हुआ यह कि भीलवाड़ा जिले की आसीन्द तहसील मुख्यालय पर स्थित गुर्जर समाज के अंतर्राष्ट्रीय धर्मस्थल सवाईभोज मंदिर परिसर में 400 साल से मौजूद रही एक ‘कलंदरी मस्जिद‘ को आर एस एस से प्रभावित उग्र गुर्जर युवाओं के एक समूह ने ढहा दिया …आसीन्द अयोध्या बनने की राह पर था ………( जारी )
-भंवर मेघवंशी की आत्मकथा ‘ हिन्दू तालिबान ‘ का तेंतीसवा अध्याय
- See more at: http://www.hastakshep.com/hindi-literature/book-excerpts/2014/06/03/%e0%a4%9a%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a5%9c%e0%a5%8b-%e0%a4%98%e0%a4%a3%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%b9%e0%a5%8b%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b-%e0%a4%b0%e0%a5%87-%e0%a4%95#.U44MYXI70rs

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