प. बंगाल में पार्टी और वामपंथी आंदोलन की रक्षा करो
पश्चिम बंगाल में सी पी आइ (एम)
यह कोई चुनाव की पृष्ठभूमि में झगड़े की या हिंसा की अलग-थलग या यहां-वहां होने वाली घटनाओं का मामला नहीं है। यह तो सी पी आइ (एम) के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं पर नियोजित तथा निशाना बनाकर हमले किए जाने का मामला है। ये हमले ऐसे जमीनी कार्यकर्ताओं पर हो रहे हैं, जो मजबूती से वाम मोर्चा के साथ खड़े रहे हैं और जिन्होंने चुनाव में वाम मोर्चा उम्मीदवारों के पक्ष में काम किया था तथा उनके समर्थन के लिए तथा उन्हें वोट देने के लिए, जनता को गोलबंद किया था। यहां तक कि सी पी आइ (एम) या वाम मोर्चा के साथ खड़े होने वाले और उनके पक्ष में वोट डालने वाले आम लोगों तक को इस आतंक मुहिम का निशाना बनाया जा रहा है।
इस तरह आज हम तृणमूल कांग्रेस की ओर से इसकी सुनियोजित तथा जघन्य कोशिश से दो-चार हैं कि दमन तथा हिंसा के जरिए, एक संगठन के रूप में सी पी आइ (एम) को खत्म किया जाए और वाम मोर्चा को कुचला जाए। इस कोशिश में, पुलिस तथा प्रशासन का खुलकर इस्तेमाल किया जा रहा है और वे पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। हमलों के शिकार होने वालों पर हजारों झूठे मुकद्दमे थोप दिए गए हैं, जबकि हमले करने वाले छुट्टा घूम रहे हैं।
प. बंगाल के कुछ हिस्सों में तो, 2008 के पंचायत चुनाव के बाद से ही इस तरह के हमलों की शुरूआत हो गयी थी। 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद से इन हमलों ने राज्यव्यापी रूप ले लिया था। 2009 की मई में हुए लोकसभा चुनाव और 2011 की मई में हुए विधानसभाई चुनाव के बीच ही तृणमूली गिरोह 388 वामपंथी नेताओं, कार्यकर्ताओं व समर्थकों को मौत के घाट उतार चुके थे। हो यह रहा है कि हर चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस, ऐसे क्षेत्रों की निशानदेही करती है जहां सी पी आइ (एम) तथा वाम मोर्चा का जनसमर्थन बना हुआ है और उनके कार्यकर्ताओं ने जनता के बीच काम किया होता है। छांट-छांटकर ऐसे इलाकों को और ज्यादा हिंसा का निशाना बनाया जाता है ताकि सी पी आइ (एम) के संगठन को नष्ट किया जा सके। वे इस तरह से मजदूरों, किसानों तथा मेहनतकश जनता के संगठित आंदोलन को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं।
2011 की मई में हुए विधानसभाई चुनाव के बाद चंद हफ्तों में ही वाम मोर्चा के 30 नेताओं व कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतारा जा चुका था, जिनमें से 28 सी पी आइ (एम) से थे और 2 आर एस पी से। 23 महिलाओं को राजनीतिक बलात्कार का शिकार बनाया जा चुका था और 508 को जोर-जबर्दस्ती का। 3,785 को घायल कर अस्पतालों में पहुंचाया जा चुका था। 40 हजार लोगों को अपने घर-द्वार छोड़ने के लिए मजबूर किया जा चुका था। सी पी आइ (एम) तथा वामपंथ का खात्मा करने की इस मुहिम में पार्टी, ट्रेड यूनियनों तथा जनसंगठनों के 758 कार्यालयों पर जबरन कब्जे किए जा चुके थे।
2013 की जुलाई में हुए राज्य के पंचायत चुनाव के बाद भी यही पैटर्न दोहराया गया। 3 जून से 25 जुलाई के बीच ही सी पी आइ (एम) के 24 कार्यकर्ताओं तथा समर्थकों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस लोकसभा चुनाव के बाद से सी पी आइ (एम) और वाम मोर्चा को निशाना बनाकर छेड़ी गयी हिंसा की मुहिम में भी वही पैटर्न अपनाया जा रहा है। पार्टी के दफ्तरों पर हमले किए जा रहे हैं, उन्हें तोड़ा-फोड़ा जा रहा है और नष्ट किया जा रहा है। और तृणमूल कांग्रेस की धमकियों को अनसुना करने वालों और वाम मोर्चा उम्मीदवारों के लिए काम करने की जुर्रत करने वालों को शारीरिक हमले कर और यहां तक कि उनकी हत्याएं तक कर के इसकी ‘सज़ा’ दी जा रही है।
हिंसा के लोकसभाई चुनाव के बाद के ताजा दौर में मारे गए तीन लोगों में एक 65 वर्षीया महिला, बेला डे भी हैं। नदिया जिले की यह बुजुर्ग महिला उस समय बुरी तरह से घायल हो गयी, जब उसने अपने दो बेटों की जान बचाने की कोशिश की, जिन्हें चुनाव में सी पी आइ (एम) के लिए काम करने के जुर्म के लिए हत्यारे हमले का निशाना बनाया गया। बाद में वृद्ध महिला ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस सूची में एक और नाम सी पी आइ (एम)
कार्यकर्ता काजल मल्लिक का है, जिसे बर्द्धवान जिले के अंतर्गत मेटेश्वर में पीट-पीटकर मार दिया गया। तीसरी हत्या हुई है, अश्मीरा बेगम की। वह सी पी आइ (एम) की ओर से पंचायत की निर्वाचित सदस्य रही थीं और हिम्मत के साथ तृणमूल कांग्रेस की धमकियों को अनसुना करते हुए उन्होंने, बर्द्धवान जिले के अंतर्गत केटुग्राम के अपने गांव में, जनता को वाम मोर्चा उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने के लिए गोलबंद किया था। तृणमूली गुंडों ने उनके घर पर हमला किया और छुरा घोपकर उनकी हत्या कर दी। इन तीन मौतों के साथ, 2011 के विधानसभाई चुनाव के बाद से तृणमूल की इस हत्यारी मुहिम की भेंट चढ़े वामपंथी कार्यकर्ताओं व समर्थकों की संख्या 157 हो गयी है।
अश्मीरा बेगम जैसे हजारों कार्यकर्ताओं तथा समर्थकों ने, तृणमूली गुंडों की धमकियों तथा दाब-धौंस को अनसुना करते हुए, साहस के साथ सी पी आइ (एम) और वाम मोर्चा के लिए चुनाव प्रचार किया था। इन्हीं बहादुर कामरेडों पर हमले किए जा रहे हैं और उनके रोजी-रोटी के साधनों को नष्ट किया जा रहा है। एक और तरह का हमला, सी पी आइ (एम) तथा वाम मोर्चा कार्यकर्ताओं के रोजी-रोटी के साधनों पर हो रहा है। कुछ जगहों पर उन्हें असंगठित क्षेत्र में अपने काम पर नहीं जाने दिया जा रहा है। बहुत सी जगहों पर किसानों तथा खेत मजदूरों को अपने खेतों में काम करने से जबरन रोका जा रहा है। अन्य मामलों में कार्यकर्ताओं की दूकानों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों को लूटा या तोड़ा-फोड़ा गया है।
पश्चिम बंगाल में आज जो देखने को मिल रहा है, सिर्फ जनतंत्र पर भारी हमला ही नहीं है बल्कि यह हिंसा तथा आतंक के जरिए, सी पी आइ (एम) तथा वामपंथ को कुचलने की एक सुनियोजित फासीवादी कोशिश है। इस हिंसा की सबसे ज्यादा मार उन मेहनतकशों को झेलनी पड़ रही है, जो हमारी पार्टी तथा लाल झंडे के प्रति वफादार बने रहे हैं-ग्रामीण गरीब, खेत मजदूर, आदिवासी और महिलाएं।
आज सबसे पहला काम यह है कि प. बंगाल में पार्टी की रक्षा की जाए और उसके कार्यकर्ताओं व समर्थकों की हिफाजत की जाए। पार्टी के राज्य तथा केंद्रीय नेतृत्व को फौरन, इस दिशा में कदम उठाने होंगे। यह बहुत ही जरूरी है कि जनतंत्र पर हो रहे इन हमलों के खिलाफ जनता को गोलबंद किया जाए और प्रतिरोध संगठित किया जाए। यह अकेले प. बंगाल में सी पी आइ (एम) और वामपंथ की ही लड़ाई नहीं है बल्कि समूची पार्टी की और देश भर के वामपंथी आंदोलन की लड़ाई है। इन फासीवादी हमलों के खिलाफ संघर्ष के साथ एकजुटता जताने तथा इस संघर्ष का समर्थन करने के लिए, देश भर में तमाम जनतांत्रिक ताकतों को गोलबंद किया जाना चाहिए।
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