चार साल के पाठ्यक्रम के खिलाफ छात्र संगठन तेज कर रहे हैं आंदोलन
Saturday, 07 June 2014 09:33 |
जनसत्ता संवाददाता
नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के चार साल के पाठ्यक्रम के खिलाफ सभी छात्र संगठन आंदोलन पर उतर आए हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सामने शुक्रवार को प्रदर्शन किया और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(यूजीसी) के अध्यक्ष को ज्ञापन भी दिया, जबकि भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन(एनएसयूआइ) ने विश्वविद्यालय परिसर में बेमियादी अनशन शुरू किया। आइसा ने इसके वैकल्पिक समाधान करने के सुझाव दिए हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में चार साल के स्नातक के पाठ्यक्रमों का शुरू से ही विरोध कर रहे छात्र संगठनों ने एक बार फिर नए सत्र के दाखिले के वक्त इसके खिलाफ कमर कस ली है। संगठनों के पास अब इस पाठ्यक्रम के एक साल के अनुभव व अध्ययन का ब्योरा भी है। छात्र संगठन अपनी दलीलों के साथ इसके असफल होने के दावे कर रहे हैं। वे इसे तानाशाह तरीके से थोपा गया बोझ करार देते हैं। किसी संगठन ने इसके पहले बैच के छात्रों के लिए वैकल्पिक आधार पर राहत देने की मांग कर रहे हैं तो कुछ इसे सिरे से खारिज कर रहे हैं।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद इस पाठ्यक्रम के एक साल के अनुभवों के आधार पर भी इसे खारिज करने की मांग कर रही है। परिषद के नेता राष्ट्रीय मंत्री रोहित चहल की अगुआई में छात्र नेता आइटीओ पर जमा हुए। यहां से वे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग मुख्यालय की ओर गए। छात्रों ने यूजीसी दफ्तर के सामने जोरदार प्रदर्शन किया। छात्र नेता इस पाठ्यक्रम और विश्वविद्यालय कुलपति के खिलाफ नारेबाजी भी कर रहे थे। छात्रों ने इसे तुरंत वापस लेने की मांग की।
यूजीसी अध्यक्ष को दिए ज्ञापन में परिषद नेता ने कहा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में चौतरफा पुरजोर विरोध के बावज्ूाद स्नातक आनर्स के चार साल के पाठ्यक्र म को लागू कर दिया गया, जबकि शिक्षक छात्र और कर्मचारी भी इसके खिलाफ थे और हैं भी। लेकिन इस सब के बावजूद पिछले सत्र से (2013-14)इसे विश्वविद्यालय ने खुद से लागू कर दिया है। इसमें प्रावधान है कि स्नातक आनर्स करने के लिए छात्रों को तीन के बजाय चार साल पढ़ाई करनी होगी। इसके पाठ्यक्रमों की रूपरेखा भी इस तरह से तैयार की गई है कि छात्रों के हित कम निजी कंपनियों के हित ज्यादा पूरे होते दिख रहे हैं। ज्ञापन में आरोप लगाया गया है कि पिछली यूपीए सरकार के इशारे पर कुलपति ने इसकी अवधि बढ़ाने का जो फैसला किया है वह सरकारी ढांचागत शिक्षा व्यवस्था में अस्थिरता पैदा करने के लिहाज से किया गया ताकि निजी शिक्षण संस्थानों को फलने-फूलने का बेहतरीन मौका मिल सके।
आरोप यह भी है कि इस पाठ्यक्रम से अधकचरे व गैरजरूरी पढ़ाई करने वाली नई पौध तैयार होगी। इसके चलते छात्रों को एक साल की अतिरिक्त पढ़ाई व इसके लिए एक साल के अतिरिक्त शुल्क का बोझ भी उन पर पड़ेगा। परिषद ने इस पाठ्यक्रम को लेकर छात्रों के बीच जनमत संग्रह भी कराया गया था। तब छात्रों ने इसका विरोध किया था। कुलपति ने बिना व्यापक चर्चा के ही मनमाने तरीके से इसक ी पाठ्य सामग्री भी तैयार करवाई है। छात्रों ने शिक्षकों की भर्ती और शैक्षणिक माहौल बेहतर करने का मामला भी उठाया है।
उधर कांग्रेस समर्थित छात्र इकाई भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआइ)ने इस पाठ्यक्रम के खिलाफ विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में धरना और बेमियादी अनशन शुरू किया। एसएसयूआइ के प्रवक्ता अमरीष रंजन पांडेय ने कहा है कि तमाम विरोध के बावजूद कुलपति प्रो दिनेश सिंह ने इस मामले को तानाशाही तरीके से उठाया और थोप दिया है। छात्र परेशान हैं। पर उनके विरोध का कोई फरक ही नहीं पड़ रहा है। कुलपति सहित समूचे विश्वविद्यालय प्रशासन के अड़ियल रवैए के चलते कहीं कोई सुनवाई नहीं। पर विश्वविद्यालय प्रशासन के कानों पर मानो जूं नहीं रेंग रही। एसएसयूआइ नेता करिश्मा ठाकुर व डूसू सचिव विकास चिकारा ,वरुण खारी ,विशाल चौधरी,व अन्य नेताओं ने बोमियादी अनशन शुरू किया है। इसकी अगुआई राष्ट्रीय महासचिव मोहित शर्मा ने की।
आइसा ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई है। आइसा ने इस पाठ्यक्रम के पिछले साल के बच्चों के बीच सर्वेक्षण कराया है और इसके हिसाब से सुझाव दिए हैं। कहा है कि वैकल्पिकइंतजाम किए जा रहे हैं। इसके हिसाब से ही कार्रवाई की जाएगी।
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