विकास की कीमत पर विवाद
असग़र वजाहत
लोकसभा चुनाव में भाजपा और नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक विजय ने यह सिद्ध कर दिया है कि जनता एक सशक्त और काम करने वाली सरकार के पक्ष में है। नरेंद्र मोदी की छवि एक कर्मठ और अनुशासन प्रिय नेता के रूप में स्थापित हो चुकी है। उनके शपथ समारोह ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि मोदी उप-महाद्वीप के एक बड़े नेता हैं। देश की जनता भयावह समस्याओं से त्रस्त है। मोदी के रूप में उसे आशा की एक किरण दिखाई दे रही है।
अधिकतर लोग मानते हैं कि मोदी ही देश की समस्याओं का समाधान करेंगे, लेकिन नरेंद्र मोदी के सत्ता में आते ही विकास पर न होकर अनुच्छेद 370 पर बहस शुरू हो गई है। 370 को समाप्त करना भाजपा के एजंडे का एक प्रमुख मुद्दा रहा है। इसके तहत जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को संविधान ने विशेष अधिकार दिए हैं। विशेष अधिकार देने के विशेष कारण भी रहे हैं। भाजपा यह कहती आई है कि इन विशेष अधिकारों को समाप्त होना चाहिए। इन विशेष अधिकारों में कश्मीर के लोगों को एक अधिकार यह भी है कि भारत या देश के बाहर का कोई नागरिक कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकता। अनुच्छेद 370 समाप्त होता है तो कश्मीरवासियों का यह अधिकार भी समाप्त हो जाएगा। कहा जाता है कि यदि अनुच्छेद 370 समाप्त हो जाता है तो पूरी कश्मीर घाटी उत्तर भारत के सेठ खरीद सकते हैं। यदि ऐसा हो गया तो कश्मीर का किसान भूमिहीन हो जाएगा और वह मजदूर या कारीगर के स्तर पर पहुंच जाएगा। इसके अतिरिक्त 370 समाप्त होने के बाद कश्मीरवासियों को और भी हानियां होंगी।
यह संवैधानिक बहस है कि क्या अनुच्छेद 370 समाप्त भी किया जा सकता है या नहीं? लेकिन इतना तय है कि सशक्त भारत सरकार यदि चाहे तो किसी न किसी तरह इसे समाप्त कर सकती है।
370 को समाप्त किए जाने के पीछे भाजपा की धारणा यह है कि एक देश में एक तरह का कानून होना चाहिए। कश्मीर भारत का अविभाज्य भाग है तो उसे अन्य प्रदेशों की तरह एक प्रदेश होना चाहिए। भाजपा एकरूपता की पक्षधर है। वह इसे देश की एकता और अखंडता के लिए आवश्यक मानती है। इसी सिद्धांत के अंतर्गत भाजपा मुसलिम पर्सनल लॉ का भी विरोध करती है।
यदि ‘एक देश एक कानून’ के सिद्धांत को स्वीकार किया जाता है तो कश्मीर के अतिरिक्त देश के अन्य दस राज्य जिन्हें विशेष दर्जा प्राप्त है, अपने विशेषाधिकारों से वंचित हो जाएंगे। ‘एक देश एक कानून’ के अंतर्गत राज्यों को वह स्वतंत्रता नहीं रहेगी जो आज है। क्या राज्यों के विशेषाधिकार समाप्त करके एकता स्थापित हो सकती है? आजादी के बाद से भारत सरकार ने अपने साम्राज्यवादी सोच के अंतर्गत यह माना या किया है कि राज्यों को, विशेष रूप से सीमावर्ती राज्यों को पूरी तरह केंद्र के आधीन लाया जाए।
एकरूपता के सिद्धांत के आधार पर क्या उन सभी कानूनों को एकरूपता दी जाएगी जो अलग-अलग समुदायों की आवश्यकताओं, परंपराओं, विश्वासों और इतिहास को सामने रख कर बनाए गए थे? उदाहरण के लिए क्या आदिवासी समूहों के स्वायत्त क्षेत्रों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए जाएंगे? क्या संयुक्त हिंदू परिवारों को आयकर में मिलने वाली छूट को समाप्त कर दिया जाएगा? क्या निजी और सामुदायिक विश्वासों के स्थान पर कानूनी प्रणाली लागू की जाएगी? क्या हिंदू, मुसलिम, सिख या ईसाई विवाह पद्धतियों के स्थान पर केवल कानूनी विवाह को ही मान्यता दी जाएगी? क्या गोहत्या पूरे देश में गैरकानूनी होगी?
भारतीय गणतंत्र में भारत सरकार को छोड़कर और कुछ भी भारतीय नहीं है। न कोई भारतीय धर्म है, न कोई भारतीय भाषा है, न भारतीय संगीत है, न भारतीय पहनावा है, न भारतीय आचार-व्यवहार है। लद्दाख से कन्याकुमारी और राजस्थान से मिजोरम तक भारतीय गणतंत्र विभिन्न धर्मों, भाषाओं, सांस्कृतिक परंपराओं में बंटा हुआ है। कुछ मान्यताएं तो इतनी अलग हैं कि वे एक दूसरे के विरोध में खड़ी दिखाई देती हैं। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि हम किसे भारतीय कहें? उत्तर यही हो सकता है कि इस भू-भाग में अपनी तमाम विविधताओं सहित जो कुछ है वह भारतीय है। और उसकी रक्षा करना कम से कम हर उस आदमी का धर्म है जो भारतीय होने का दावा करता है।
इस संदर्भ में यह ध्यान देने योग्य है कि भारतीय संविधान के निर्माता अच्छी तरह जानते थे कि वे एक विविधताओं से भरे देश का संविधान बनाने जा रहे हैं और उन्होंने संविधान में प्रत्येक विविधता को मान्यता और स्थान दिया था। जो भारतीय संविधान की विविधताओं पर विश्वास नहीं करता और उन्हें समाप्त करना चाहता है वह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में भारत की एकता, अखंडता के लिए खतरा माना जाएगा।
अनुच्छेद 370 और ऐसे अन्य मुद्दों को हवा देने वाले दरअसल सरकार को अपना एजंडा बदलने पर मजबूर कर रहे हैं। मोदी को जन-समर्थन 370 या रामजन्म भूमि के मुद्दों पर नहीं बल्कि विकास और सुशासन के मुद्दों पर मिला है। आज जनता की यह मांग है कि नई सरकार बढ़ती महंगाई को रोके, रोजगार के अवसर प्रदान करे, सामाजिक असमानता को दूर करे, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में नई पहल करे।
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