वे आएंगे जरूर,वे हालात बदल देंगे
नवजातकों के लिए
पलाश विश्वास
इस देश में किसी बदलाव की संभावना इसलिए धूमिल है क्योंकि जाति, धर्म,नस्ल ,वर्ग ,भाषा के वर्चस्ववादी ताकतों के खिलाफ, भूमि माफ़िया के खिलाफ बोलने लिखने में बड़े बड़े क्रांतिकारी,जनवादी चूक जाते हैं तो बहुजन विमर्श के लोग पूंजीवाद,साम्राज्यवाद,कारपोरेट राज,मुक्तबाजार और सैन्यीकरण के मुद्दों पर खामोश हो जाते हैं।
भावनात्मक मुद्दों पर ध्रुवीकरण होता है और बनती हुई जनता फर्जी मुद्दों पर सत्ता के एजेंडे के तहत फंसी रह जाती है। राजनीति सिर्फ मौकापरस्ती है और अर्थशाश्त्र,आर्थिक नीतियों पर कोई सार्वजनिक बात नही होती।
पृथ्वी,पर्यावरण,जलवायु,आपदा प्रबंधन और प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन पर चर्चा किये बिना सिर्फ समता,न्याय और बदलाव के खोखले नारे उछाले जाते हैं। हम अभी मानसिकता के स्तर पर पितृसत्ता के सामंती बर्बर अंधकार युग में है और बाजार की रौनक में हम अंधे हो गए हैं।
किसी सूरज की रोशनी हम तक पहुंचती नहीं है।
मोबाइल की घण्टियों में सारी उड़ानें खत्म हो गयी हैं और पक्षियों के पंख टूट गए हैं।
जंजीरें और कैद मनभावन है क्योंकि तकनीक ने सारी कायनात को छोटे से छोटे पर्दे में से कर दिया है। जहां कोई इंद्रिया काम नहीं करती।
हम देख नहीं सकते।
हम सुन नहीं सकते।
हम बोल नहीं सकते।
हम सूंघ नहीं सकते।
हम छू नहीं सकते।
दिल दिमाग और देह का गणित,रसायन बदल गया है।
जन्म दिन पर प्रिय कवि की स्मृति को नमन।हमारे सपने नहीं मरे। नहीं मरेंगे।इन्हीं सपनों के लिए हम जिएंगे और मरेंगे भी।
उन्होंने जो लिखा,वह चेतावनी याद है?
सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है
सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है...
फिरभी सपना जरूर देखना चाहिए।
ताकि कुछ लोग तो सामने आएं और अभूतपूर्व परिस्थितियों में असाधारण प्रयास से पूरी फिजा बदल दें।
वे अवतार नहीं होंगे। सतह के नीचे किसी महायुद्ध की मोर्चाबंदी कर रहे हैं।
वे आएंगे जरूर। वे हालात भी बदल देंगे।
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