हमारे सामने कोई राजनीतिक विकल्प नहीं है। फरेब में न फंसे।राजीतिक विकल्प सिर्फ सामाजिक संस्कृतिक आंदोलन से ही बनेगा।पार्टी चुनने से नहीं।
जड़ों से,जमीन से पहले जुड़ें,जल जंगल जमीन पृथ्वी,प्रकृति और मनुष्यता के पक्ष में खड़े हों। दलितों,आफ़ीवासियों,स्त्रियों और हाशिये के हर व्यक्ति के लिए समता,स्वतंत्रता और न्याय की लड़ाई में शामिल हों।
किसी उजले या दागी चेहरे के पीछे भागकर सिर्फ सुअरों, बंदरों,मुख्यमंत्रियों,मंत्रियों की संख्या बढ़ेगी और आम जनता की तकलीफें भी।
हम किसी राजनीतिक दल के न समर्थक हैं और न विरोधी। हम सिर्फ किसानों,मेहनतकशों और आम जनता के पक्ष में है।
सत्ता बदलने से राजसत्ता नहीं बदलती।
राजसत्ता तभी बदलेगी,जब समाज बदलेगा।
राजसत्ता तभी बदलेगी ,जब जल जंगल जमीन और प्राकृतिक संसाधनॉन से लेकर शिक्षा और चिकित्सा जैसी बुनियादी सेवाओं और जरूरटन पर जनता का हकहकूक भल होगा।
राजसत्ता तब बदलेगी जब जाति, वर्ण,धर्म,नस्ल की सरहदें खत्म होंगी।
राजसत्ता तब बदलेगी, जब राजनीति और अर्थब्यवस्था बदलेगी और खुद जनता बदलेगी।
सबसे पहले अपनी पांचों इंद्रियों को सक्रिय करें।मरे हुए विवेक को जीवित करें।पढ़ें लिखें और सवाल करना सीखें।सवालों का सही हल निकालना सीखें।
मूक बधिर विकलांग जनता, शराब और पैसे के बदले, छोटे छोटे स्वार्थ के लिए लोकतंत्र की बलि देने वाली जनता कुछ नहीं कर सकती।
जनता को बदलने के लिए ही सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलन सत्ता की राजनीति से बहुत ज्यादा जरूरी है।
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