हमारे उत्तराखंडी बंगाली समाज के दो डॉक्टर भाई, इनमें से एक रिटायर्ड सीएमओ
तृतीय पुरुष स्त्री क्यों,प्रथम क्यों नहीं? आप भी लिखें तो पूरी होंगी सारी अधूरी कथाएं
पलाश विश्वास
पश्चिम बंगाल के भद्रलोक बंगाली बंगाल से बाहर देश के 22 राज्यों में बसे 11 करोड़ बंगालियों को बंगाली नहीं मानते और वे बंगाल के इतिहास भूगोल के बाहर हैं।
विभाजन के शिकार बंगालियों से उनकी वैसी कोई स
हानुभूति कभी नहीं रही, जैसे सिंधी,भूटानी, तमिल, कश्मीरी,पंजाबी और सिख शरणार्थियों से इन सभी समुदायों के लोगों की रही है।
इन सभी 22 राज्यों में राजनीति चाहे जो हो,स्थानीय समुदायों के सहयोग और समर्थन से बंगाली समुदाय बंगाल के लोगों के मुकाबले हर मामले में आगे बढ़ रहे हैं,मातृभाषा, बांग्ला संस्कृति, पहचान और आरक्षण से वंचित होने के बावजूद।
ताज़ा उदाहरण रुद्रपुर,उत्तराखण्ड के मनोज सरकार हैं,जिनका पैरा ओलिम्पिक पदक उत्तराखण्ड और 22 राज्यों के विभाजन शिकार बंगालियों के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि हैं।
उन्हें बंगाल के भद्रलोक बंगाली बंग संतान और बंगाल का बताते हुए जश्न तो मना रहे हैं लेकिन उन्हें उत्तराखण्ड के बजाय बंगाल का बता रहे हैं।
वैसे ही सुष्मिता सेन के विश्व सुंदरी बनने पर बंगाली अखबारों ने उनकी तसवीर और बंग ललना की विश्वजय शीर्षक से मुखपन्ने पर एक ही खबर छापी थी। सुष्मिता दिल्ली की थी।
उसीतरह जैसे कवि और हिन्दू मानने से भी इंकार करने वाला बंगाली भद्रलोक समाज ने अस्पृश्य रवींन्द्र नाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार पाने के बाद बंगाली अस्मिता का प्रतीक बना लिया।
असम, त्रिपुरा,ओडीशा,बिहार,झारखण्ड में भी बंगला साहित्य रचा जाता है,जिसे कभी मान्यता नहीं मिलती।
विभाजन के शिकार बंगाली भी मनोरंजन व्यापारी किन्त्रः साहित्यकार हैं।
बड़े बड़े पत्रकार हैं। फिल्मकार,संगीतकार, अभिनेता, रंगकर्मी, आईएएस,आईपीएस अफसर, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर,वकील, वगैरह हैं। बंगाल की मदद के बिना। बनागल के लोगों को यह हजम नहीं होता।
दिनेशपुर के गांव सुंदरपुर में ऐसे हो दो डॉक्टर भाई हैं- डॉ अरविंद मण्डल और डॉ जगदीश मण्डल। दोनों हमारे भी भाई हैं।
जिनमे से डॉ जगदीश मण्डल बगेश्वरबके सीएमओ पड़ से रिटायर हुए तो डॉ अरविंद हाल के कोरोनकाल तक राजधानी नई दिल्ली में अपना अस्पताल और क्लीनिक चलाते हुए आम जनताबकी सेवा करते रहे हैं।
दोनों मुझसे छोटे हैं।
अरविंद बड़ा है। जब मैं डीएसबी से एमए कर रहा था,तब वह बीएससी कर रहा था। उनके घर हम बचपन से आते जाते रहे हैं। दोनों मुझे बड़ा भाई मानते रहे हैं।
डॉ जगदीश गरीब बच्चों की पढ़ाई का बोझ उठाते हैं और दिनेशपुर में आ लोगों का इलाज करते हैं। दिनेशपुर नें ही उन्होंने अपना घर बना लिया है। दोनों भाइयों की बेटियां भी अस्पतालों में कार्यरत हैं। जो हमारी भी बेटियाँ हैं।
इन दिनों सविता जी थोड़ी अस्वस्थ चल रही हैं और डॉ जगदीश उनका इलाज कर रहे हैं। परसो जब मैं उनके लिए दवा लेने गया तो बोले कि डॉ अरविंद अस्वस्थ हैं और उन्होंने दिल्ली छोड़ दिया है।गांव में हैं और आपको खूब याद कर रहे हैं।
तभी से बेचैन था। दोपहर बाद रिटायर्ड पोस्ट मास्टर समीर मिलने आये इस शिकायत के साथ कि हम सामाजिक परिवर्तन के बारे में उनके विचारों के बारे में नहीं लिखते।
हमने उन्हें बताया कि हमारा कोई इतिहास नहीं है,साहित्य नहीं है, हमारे विचार हैं क्योंकि हम अपनी बात खुद नहीं कहते।खुद नहीं लिखते। हम हमेशा चाहते हैं कि दूसरे लिखे। दूसरे लिख भी दें तो यह उनकी बात होगी।
तृतीय पुरुष या होकर जीते रहे हैं हम,प्रथम पुरुष या स्त्री कब बनेंगे?
हमने बताया कि मेरे पिताजी कक्षा दो तक पढ़े थे और कहते थे कि ये हमारे लोग हैं।इनके लिए कोई बाहरी कुछ नहीं करेगा। जो कुछ करना है,मुझे करना है। जो कहना लिखना है ,मुझे लिखना है।चाहे मुझमें काबिलियत हो या न हो,यह अनिवार्य कार्यभार है। इसके लिए जो भी योग्यता,दक्षता जरूरी हैं ,मुझे हासिल करने ही हैं।
हम हर किसी से यही कहते हैं।
यही प्रेरणा अंशु का मिशन भी है।
हर व्यक्ति अपनी बात खुद कहें,खुद लिखें, हम उनकी हर सम्भव मदद करेंगे।
इसके बाद डॉ अरविंद के बारे में बताया तो तुरन्त मुझे लेकर रवाना हो गया सुंदरपुर।
बरसों बाद उनके घर गए, जहां अक्सर जाना होता था।वही खेत,वही हरियाली,वही आकाश।
उसकी पत्नी से बात हुई तो वह मकरंदपुर की बेटी निकली। उसके परिवारवाले भी हमारे परिजन निकले।
हर किसीके बारे में न मैं जानता हूँ और न लिख सकता हूँ। ज़िन्दगी बहुत छोटी होती है। अपनी कथा कभी पूरी भी नहीं होती।हर कथा अधूरी छूट जाती है।
आप लोग भी लिखें तो पूरी होगी सारी कथाएं भी।
No comments:
Post a Comment