गरम रोला मज़दूर आन्दोलन नये पड़ाव पर, पुलिसिया दमन की आशंका के बावजूद मज़दूरों ने विशाल मज़दूर सत्याग्रह की तैयारी की
‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ के नेतृत्व में कारखाना गेटों पर कब्ज़ा शुरू
29 जून- ज्ञात हो कि 6 जून से 27 जून तक चली वज़ीरपुर गरम रोला मज़दूरों की हड़ताल के बाद मालिकों ने 27 जून की शाम को सारी शर्तें मानते हुए समझौता किया। लेकिन अगले दिन ही वे इस समझौते से मुकर गये और फिर मज़दूरों ने कारखाना गेटों को जाम कर दिया। इसके बाद एक 8 घण्टे लम्बी चली वार्ता के बाद कल यानी कि 28 जून को मालिक फिर से सभी शर्तों को मान गये और 29 जून की सुबह से कारखाने चालू करने का और सभी श्रम कानूनों को मानने का आश्वासन दिया। लेकिन 29 जून को मालिक एक बार फिर से आना-कानी कर रहे हैं।
नतीजतन, ‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ के नेतृत्व में मज़दूरों ने कारखानों के गेटों को बन्द कर उस पर अपना ताला लगाना शुरू कर दिया है। मज़दूरों के घरों की औरतें और बच्चे भी हज़ारों की संख्या में कारखाना गेटों पर एकत्र हो रहे हैं और ‘मज़दूर सत्याग्रह’ की तैयारी कर रहे हैं। समिति ने कल ही एलान किया था कि अगर मालिक कानूनी समझौते को मानने से और श्रम कानूनों का पालन करते हुए कारखाने चलाने से इंकार करते हैं, तो उन्हें कारखाने पर कब्ज़े का कोई अधिकार नहीं है। साथ ही मालिकों की इस ग़लती के कारण श्रम विभाग को भी तालाबन्दी करने का कोई हक़ नहीं है क्योंकि मालिकों की ग़लती की सज़ा मज़दूरों को नहीं मिलनी चाहिए। ऐसे में, मज़दूरों के पास स्वयं कारखानों पर कब्ज़ा करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता है। फिलहाल मज़दूर कारखानों पर कब्ज़ा नहीं कर रहे हैं, बल्कि गेटों पर कब्ज़ा कर रहे हैं। लेकिन अगर मालिक अब भी नहीं माने तो मज़दूर कारखानों पर कब्ज़ा करके कारखाने चलाएँगे। ‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ के सनी ने बताया कि कारखाना अधिनियम, 1948 में मालिकों या उसके प्रतिनिधि को केवल ‘ऑक्युपायर’ कहा गया है और इस ‘ऑक्युपायर’ के लिए श्रम कानूनों और कारखाना कानूनों का पालन करना बाध्यताकारी है। ऐसे में, यदि ‘ऑक्युपायर’ ये कानून नहीं लागू करता और सरकार भी इन कारखानों को टेक-ओवर करके नहीं चलाती तो यह मज़दूरों का संवैधानिक और नैतिक अधिकार बनता है कि वे कारखानों को चलायें। जहाँ तक मालिकाने हक़ की बात रही तो मज़दूर मालिकों को कानूनी रूप से तय लाभांश भी दे देंगे। लेकिन मालिकों की ग़लती की वजह से सरकार और श्रम विभाग मज़दूरों को दण्डित नहीं कर सकते।
‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ के रघुराज ने बताया कि मालिकों को यह समझ लेना चाहिए कि वे अब मज़दूरों को लॉकआउट की धमकी से नहीं डरा सकते हैं। वज़ीरपुर का मज़दूर जाग गया है और अगर मालिक चेतते नहीं तो फिर उनके परजीवी वर्ग की इस औद्योगिक क्षेत्र में प्रासंगिकता को समाप्त कर दिया जायेगा। समिति की कानूनी सलाहकार शिवानी ने बताया कि मालिक इन्तज़ार कराने का खेल खेल रहे हैं और 20 जून को हड़ताल से भगाये गये ‘इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र’ के दलालों की अफवाहों से उन्हें यह उम्मीद बँधी है कि मज़दूर इन्तज़ार से टूट जायेंगे। लेकिन मज़दूर अपने आन्दोलन को और अधिक उत्साह और साहस के साथ एक नयी ऊँचाई तक ले जा रहे हैं। शिवानी ने कहा कि जब तक मालिक श्रम कानूनों का पालन करते हुए कारखाने नहीं चलाते और जब तक सरकार ‘टेक-ओवर’ करने को तैयार नहीं है, तब तक कारखानों को मज़दूरों की समिति को सौंप दिया जाना चाहिए और मज़दूर प्रबन्धन के हवाले कर दिया जाना चाहिए। कारखानों को बन्द करना कोई विकल्प नहीं है और मज़दूर ऐसा कभी नहीं होने देंगे।
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क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ,
आपके सहयोग के इन्तज़ार में,
रघुराज, सनी
(सदस्य, लीडिंग कोर)
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