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Friday, June 27, 2014

कलाकार का दायित्व है कला को लोगों तक ले जाना - अशोक भौमिक

 कलाकार का दायित्व है कला को लोगों तक ले जाना - अशोक भौमिक 

मूसलाधार बारिश के बीच आज कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी कैंपस के विवेकानंद हॉल के बाहर बरामदे  में मशहूर चित्रकार अशोक भौमिक के १२ चित्रों की प्रदर्शनी और फिर दुपहर में 'भारतीय चित्रकला में प्रगतिशील प्रवर्तियों' पर उनका व्याख्यान हुआ। 
मौका था आपातकाल को आज के समय में याद करने का।  आपातकाल के दौरान अशोक भौमिक उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ शहर में थे। उन्ही दिनों वे मशहूर हिंदी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता 'अँधेरे में ' को भी समझ रहे थे।  मुक्तिबोध की  'अँधेरे में'  और  अन्य कविताओं के प्रभाव में बनाये गए इन चित्रों में पिकासो के गुएर्निका औए गया के चित्रों जैसा प्रभाव दिखता है। प्रदर्शनी में सम्मिलित सभी बारह चित्र १९८० के दशक में बनाये गए हैं.
 
प्रदर्शनी का आयोजन प्रतिरोध का सिनेमा अभियान के कोलकाता चैप्टर और जन संस्कृति मंच के कला समूह 'जन कला समूह ' ने संयुक्त रूप से किया। प्रदर्शनी के उद्घाटन के पूर्व अशोक भौमिक का परिचय देते हुए प्रतिरोध का सिनेमा के कोलकाता चैप्टर की संयोजक कस्तूरी ने कहा कि अशोक जी कला और राजनीति के बीच सम्बन्ध बनाने वाले आज के समय के विरले कलाकार हैं। प्रदर्शनी का उद्घाटन गण संस्कृति परिषद से जुड़े गीतकार ,गायक और संगीतकार नितीश राय ने करते हुए अशोक जी द्वारा प्रगतिशील भारतीय चित्रकारों की पहचान और उनको आम लोगों तक पहुचाने के महत्वपूर्ण प्रयास की भूरि सराहना की और हिंदी के साहित्य समाज में उनके योगदान को कोलकाता के चित्रकार खालिद चौधरी सरीखा बताया।  इस मौके पर दिल्ली से प्रदर्शनी में शामिल प्रतिरोध का सिनेमा अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय जोशी ने प्रगतिशील छात्र संघ (अब आइसा ) के साथ इलाहाबाद में अशोक भौमिक द्वारा रोपे गए सांस्कृतिक राजनैतिक माहौल के महत्व  को रेखांकित किया और हिंदी प्रदेश में उनके द्वारा  शुरू किये गए कविता पोस्टर आंदोलन  और नई तरह की कैलीग्राफी के जनक का श्रेय भी दिया।  इस मौके पर अशोक जी ने उपस्थित दर्शकों को अपने प्रत्येक चित्र के संदर्भों के बारे में विस्तार से परिचित भी करवाया। 

आज के दिन का दूसरा ख़ास आयोजन था अशोक भौमिक द्वारा भारतीय चित्रकला में प्रगतिशील तत्वों की पहचान पर बहुत ही तैयारी के साथ आम लोगों  को चित्रकला की बारीकियों और राजनीति से परिचित करना।  अपनी बात को समझने के लिए उन्होंने पूरे व्याख्यान को कई उपशीर्षकों और विश्व चित्रकला के नमूनों की स्लाइड द्वारा समझाने की कोशिश की।  इस क्रम में आज उन्होंने एक ख़ास बात कही कि " आज चित्रकारों का दायित्व है कि आम जन तक चित्रकला को ले जाएं। "  

भारतीय चित्रकला में प्रगतिशील तत्वों की खोज तक पहुचने से पहले उन्होंने विस्तार से कई खण्डों में अपनी बात रखी।  पहले खंड को उन्होंने शीर्षक दिया " अपने जड़   की तलाश करती आधुनिक भारतीय चित्रकला " . इस खंड में उन्होंने निष्कर्ष दिया कि तथाकथित आधुनिक चित्रकला की  शुरुआत और 'इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ओरिण्टल आर्ट' के गठन को साथ -साथ रखकर देखना होगा।  इस दौर के विभिन्न चित्रकारों यथा अवीन्द्रनाथ ठाकुर , असित हालदार , नन्दलाल बोस , राजा रवि वर्मा , हेमेन्द्र मजूमदार के विभिन्न चित्रों के द्वारा उन्होंने प्रमाणित किया कि हमारी शुरुआती चित्रकला नारी शरीर, राजा रानी और  धर्म की खोज तक सीमित थी।  इस सन्दर्भ में नन्दलाल बोस के चित्र 'सती ' के संदर्भ में सिस्टर निवेदिता  का यह कहना कि " भारतीय नारी का आदर्श सती होना है " भारतीय चित्रकला के शुरुआती विकास पर सटीक टिप्पणी है।  

थोड़ा विषयांतर करते हुए दर्शकों को एक चित्र के कालजयी बनने के कारणों की मीमांसा करते हुए उन्होंने विश्व चित्रकला के खजाने से गोया का चित्र 'फेसिंग द फायरिंग स्क्वाड : द  थर्ड ऑफ़ मे 1808 ' , पिकासो के 1951 के चित्र 'मेस्सेकर इन कोरिया' की  चर्चा की। 

इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने ' विपरीत समय में कला ' खंड में अमरीकी चित्रकार जॉन सिंगर सार्जेंट द्वारा ब्रिटेन के लिए बनाये चित्र 'गैस्सड' की  चर्चा करते हुए बताया कि कैसे जर्मनी द्वारा युद्ध के समय गैस के बेजा इस्तेमाल पर बनाया गया चित्र आज एक बड़े युद्धविरोधी चित्र के रूप में हमारे पास रह जाता है। इसी कर्म में उन्होंने जॉर्ज क्लाउसन के चित्र ' youth mourning ' और  पिकासो के गुएर्निका की चर्चा की।  अशोक भौमिक के लिए 1936 आते -आते पिकासो दवरा गुएर्निका रचते हुए अपने फॉर्म को तोड़कर नए फॉर्म का सृजन करना बहुत महत्वपूर्ण है।  

इन सन्दर्भों के बाद वे भारतीय चित्रकला के नए अवतार पर विस्तार से बोले।  इस खंड को उन्होंने भारतीय चित्रकला का नया चेहरा कहा।  अशोक जी के लिए आजादी के बाद दिल्ली का नए कला बाजार के रूप में बदलना एक महत्वपूर्ण घटना है।  उनके अनुमान के अनुसार ऐसा संभवतया विभिन्न देशों के दूतावासों के कारण भारतीय चित्रकला की खरीद के कारण पनपे नए बाजार की वजह से संभव हुआ।  इस दौर में पुराना पी ए जी भी बदला।  उनके अनुसार इस तथाकथित पीपुल्स आर्ट ग्रुप ने एक तरफ तो पिकासो की अंधाधुंध अनुकृति तैयार की दूसरे तंत्र कला का विकास किया।     
सूजा के चित्रो का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पिकासो की  तरह फॉर्म को भंजित करने का कोई कारण सूजा के पास न था इसलिए उनके चित्रों का वो महत्व भी नहीं  
है। 
भारतीय चित्रकला के नए अवतार को उन्होंने जी आर संतोष , रज़ा और  सोहन क़ादरी के कई एक जैसे चित्रो द्वारा प्रमाणित किया कि कैसे वे तंत्र के बल निरंतर दुहराव रच रहे थे और नए विषयों और लोगों से एकदम दूर थे। 

अपने व्याख्यान के आखिरी से पहले हिस्से 'मेट्रो आर्ट' खंड के जरिये उन्होंने चित्रकला के बहाने हो रहे बेतुके संस्थापनों पर अपनी तीखी टिप्पणी की।  विशेषतौर पर सुबोध गुप्ता के काम के जरिये उन्होंने समझाने के कोशिश की कैसे कला बाजार के नियमों से संचालित हो रही है. जब कला भाव सम्प्रेषित करने की बजाय चमक और विशालता के खेल में फंस गयी। इसलिए अब सुबोध गुप्ता बोतल के शक्ल में Absolute Vodka रच रहे हैं , १ किलों सोने का बटखरा बनाकर उसे कला का दर्जा दे रहे हैं और ठुकराल और टागरा गोल्ड फ्लेक रच रहे हैं।  उन्होंने बहुत अफ़सोस के साथ यह स्वीकारा कि चित्रकला में जितनी बड़ी संख्या में मूर्खों का वास है उतना कहीं नहीं।  इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से आप चित्रकला को खरीद सकते हैं हालांकि आप आज भी कविता और गद्य को नही खरीद सकते। 

अपने व्याख्यान के आखिरी खंड को अशोक भौमिक ने 'अकाल की कला' पर केंद्रित किया।  इस खंड के जरिये ही वे दर्शकों को भारतीय चित्रकला के सच्चे प्रगतिशील तत्वों तक ले जा सके।  इस खंड में उन्होंने ज़ैनुल आबेदीन की  अकाल श्रृंखला , सुधीर खास्तीगर के वुड कट, रामकिंकर, गोबर्धन आश और अतुल बसु के दुर्भिक्ष के चित्रों के साथ -साथ कमरुल हसन , गोपेन राय , सोमनाथ होड़ , देबब्रत मुखोपाध्याय के कामों से परिचित करवाया।  उनके लिए चित्तप्रसाद सही मायनो में भारतीय चित्रकार थे जो बंगाल के अकाल से शुरू करके , तेभागा कृषक आंदोलन , बिरसा मुंडा , कोल्हापुर (महाराष्ट्र ) के दुर्भिक्ष के साथ  -साथ कश्मीर की लड़ाकू जनता तक के चित्र बना रहे थे।  1931 में रवीन्द्रनाथ द्वारा आम आदमी को चित्रकला में जगह देने का सिलसिला के के हेब्बार , बी प्रभा , एन एस बेंद्रे से चलता हुआ सादेकैन और कमरुल हसन तक जाता है।  

अशोक जी  के अनुसार  इसी चेतना की  वजह से विभाजन के बाद ढाका जाने पर ज़ैनुल आबेदीन शासकों की परवाह न करते हुए भी मूर्ति शिल्प की शिक्षा और लड़कियों के लिए कला की शिक्षा को अपने दवरा स्थापित आर्ट कालेज में शुरू कर सके और समय आने पर याह्या खां जैसे शक्तिशाली शासक के खिलाफ ' ऐसे जानवरों की हत्या करनी होगी ' वाला उद्घोष करता पोस्टर बना सके।  

अशोक जी के एक घंटे व्याख्यान का क्रम दर्शकों दवरा पूछे गए सवाल -जवाब के वजह से ४५ मिनट और चला और कई दर्शकों ने यह सहज प्रश्न  किया कि जिन प्रगतिशील कला के सच्चे वारिसों की पहचान अशोक भौमिक कमरुल हसन तक कर पाते है क्या उसकी निरंतरता आज के मेट्रो आर्ट के जमाने में भी वे खोज पा  रहे हैं।  इसके जवाब में उन्होंने कहा कि निश्चय ही मेरे संपर्क में तमाम नए युवा चित्रकार हैं जो अपनी चित्रकला को माल बनने में बदलने से रोक सके हैं और उसपर एक नयी चर्चा जल्द ही वे पेश करेंगे। इस मौके दर्शकों द्वारा कलाकार का जन प्रिय होना और मेट्रो आर्ट सम्बन्धी कई जिज्ञासाओं का भी अशोक जी ने विस्तार से जवाब दिया। व्याख्यान का संचालन प्रतिरोध का सिनेमा की कोलकाता चैप्टर की संयोजक कस्तूरी ने किया।       , 

  प्रस्तुति : संजय जोशी

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