खिड़की के पार गुलमोहर
आज चेतना जी को मैंने गुलमोहर का किस्सा सुनाया। आप भी सुनना चाहेंगे? किस्सा कुछ यूं है:
चेतना जी, खिड़की से आपको जो हरा-भरा, प्यारा-सा गुलमोहर दिखाई दे रहा है वह मूल रूप से मेडागास्कर का निवासी पौधा है। इसका जन्म वहीं हुआ। हम मनुष्यों के साथ-साथ पेड़-पौधे और पशु-पक्षी भी देश-विदेश की यात्रा करते रहे हैं। गुलमोहर भी मनुष्यों के साथ मेडागास्कर से बाहर आकर दुनिया के तमाम देशों में फैल गया। अरब सौदागरों के साथ यह अबीसीनिया से भारत पहुंचा। यहां यह लगभग सर्वत्र पाया जाता है और अपने सुर्ख फूलों की हंसी बिखेरता लोगों को खुशियां बांटता है। अपनी झपनीली पत्तियों के गहरे हरे रंग से यह जीवन का संदेश देता है और इसके छतनार पेड़ अपनी गहरी छांव में लोगों को शीतलता का सुकून देते हैं।
हम हिंदी और मराठी भाषी इसे गुलमोहर कहते हैं, केरल के लोग अल्लासिप्पू, कर्नाटक में डोडारत्ना-गंधी, तमिलनाडु में माइरकोंड्राइ और आंध्र प्रदेश में एट्टाटुरावी! अंग्रेजी जुबान में पीकाक फ्लावर या गोल्डमोहर कहलाता है। फ्रांसीसी तो इसे स्वर्ग का फूल यानी फ्लेयुर दे पेरादिस कहते हैं। वनस्पति विज्ञानी गुलमोहर को पोइंसियाना रेजिया कहते हैं। उन्होंने इसका नाम वेस्टइंडीज के एक गर्वनर एम. दे पोइंसी के नाम पर पोइंसियाना रखा। वे गर्वनर साहब वनस्पतियों के बड़े प्रेमी थे। इसके नाम के दूसरे शब्द रेजिया का अर्थ है ‘शाही’ या ‘राजसी’ ।
हम हिंदी और मराठी भाषी इसे गुलमोहर कहते हैं, केरल के लोग अल्लासिप्पू, कर्नाटक में डोडारत्ना-गंधी, तमिलनाडु में माइरकोंड्राइ और आंध्र प्रदेश में एट्टाटुरावी! अंग्रेजी जुबान में पीकाक फ्लावर या गोल्डमोहर कहलाता है। फ्रांसीसी तो इसे स्वर्ग का फूल यानी फ्लेयुर दे पेरादिस कहते हैं। वनस्पति विज्ञानी गुलमोहर को पोइंसियाना रेजिया कहते हैं। उन्होंने इसका नाम वेस्टइंडीज के एक गर्वनर एम. दे पोइंसी के नाम पर पोइंसियाना रखा। वे गर्वनर साहब वनस्पतियों के बड़े प्रेमी थे। इसके नाम के दूसरे शब्द रेजिया का अर्थ है ‘शाही’ या ‘राजसी’ ।
अप्रैल-जून में जब यह खिलता है तो चारों ओर लाल-सिंदूरी रंग की बहार आ जाती है। और हां, वर्षा ऋतु का स्वागत करने के लिए जुलाई में यह एक बार फिर खिल उठता है। कभी-कभी तो मानसून को अलविदा कहने के लिए भी इस पर फूलों की बहार आ जाती है। सड़क के दोनों ओर अमलतास के साथ गुलमोहर के पेड़ों पर जब एक साथ बहार आती है तो पीले और लाल रंग की छटा देखते ही बनती है। लगता है वहां जैसे प्रकृति अपनी कूंची से हर रोज इन रंगों को भर रही है।
अविनाश ने अपनी फेसबुक वाल पर बाबा नागार्जुन की सीख का एक यादगार किस्सा सुनाया है। वे दरभंगा में बाबा के साथ जा रहे थे कि सड़के के किनारे गुलमोहर और अमलतास के खिले हुए पेड़ दिखाई दिए। बाबा बोले, ‘‘देखो, देखो, अमलतास, गुलमोहर!’’ अविनाश बोले, ‘‘हां, कई बार देखा है।’’ बाबा उखड़ गए और बोले, ‘‘जिसे हम कई बार देखते हैं, वह हमेशा पुराना नहीं होता। आंखें अभ्यस्त होती हैं, आत्मा नहीं। चहको, चहको, तभी तुम्हारे भीतर गुलमोहर और अमलतास का रंग उतरेगा।’’
तो चेतना जी, खिड़की से गुलमोहर को देखते रहिएगा। बारिश की रिमझिम शुरू हो जाने पर जुलाई में इस पर फिर बहार आ सकती है।
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