प्रवासियों ! पहाड़ विकास की बकबास करना बंद कीजिये !
विचार -विमर्श -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
उपरोक्त दो सोचों में अधिक अंतर क्या दर्शाता है ? निष्कर्ष साफ़ कि गांवों में सिंचाई , कृषि , वैकल्पिक कृषि , रोजगार , पलायन पर रोक , उचित शिक्षा , विजली उत्पादन व वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन की कोई सोच है ही नही है। तो फिर हम प्रवासी फोकट में बकबास क्यों करते रहते हैं ?
Copyright@ Bhishma Kukreti 24 /6/2014
विचार -विमर्श -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
जैसे ही पहाड़ों से हम मैदान में उतरते हैं और छोटी -बड़ी नौकरी पाते हैं हम पर अपने गाँव विकास का रणभूत लग जाता है।
क्या मुंबई , क्या दिल्ली अर क्या नार्थ अमेरिका सब जगह पहाड़ी संस्था बनाने में और पहाड़ विकास का नाम पर सेमीनार , गोष्ठी ऊर्यांण में व्यस्त जाते हैं और बहुत से प्रवासी जैसे डा रामप्रसाद जी , डा बलबीर रावत जी जैसे वौद्धिक लोग रोज इंटरनेट पोर्टलों या फेसबुक में रोज हजारों शब्द पहाड़ विकास के नाम पर खर्च करते रहते हैं ।
किन्तु मुझे लगता है प्रवासियों और गाँव में रहने वालों के मध्य पहाड़ विकास बारे में सोच में गहरा अंतर है।
मेरा गाँव जसपुर (ढांगू , पौड़ी गढ़वाल ) एक आम गाँव है जहां खेती बंद हो चुकी है , बच्चों को ऋषिकेश -कोटद्वार में पढ़ाया जाता है
इस बार ग्राम सभा चुनाव में में प्रधान के प्रत्यासी ने एक पैम्फलेट छापा जिसमे प्रत्यासी ने निम्न 15 कामो लिए वोट मांगे हैं -
१-गाँवों में रास्तों का पुनर्निर्माण ,
२- हर परिवार को शुलभ शौचालय दिलवाना
३- मंदिरों के आधे अधूरे कार्य पुरे करवाना
४- वृद्ध -विकलांग लोगों के पेंसन लगवाना
५-गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करना
६- शादी व्याह के लिए टेंट प्रबंध
७- अधिक से अधिक स्ट्रीट लाइट लगवाना
८- पानी की टंकियों की मरम्मत
९- हर घर में पानी पंहुचाना
१०- बरात घर निर्माण
११- गाँव सुंदर व खुशहाल बनाना
१२- बच्चो के लिए कोचिंग क्लास
१३- कन्या धन व गौरी धन दिलवाना
१४-चिकित्सा सेवा सही करवाना
१५-जसपुर सौंदर्यीकरण करना
अधिकतर प्रवासी या संस्थाएं पहाड़ विकास गोष्ठी /लेखों निम्न बाते उठाते हैं -
१- गाव उजड़ रहे हैं कैसे खाली होते हुए गाँवों से पलायन रोका जाय
२- गाँव में रोजगार उपलब्ध किये जायँ
३-खत्म होती कृषि के पुनर्स्थापना। बंजर धरती को कृषि धरती में पुनः कृषि धरती में बदलना
४- जल से /घराटों से लघु स्तर पर विजली उत्पादन
५- बागवानी व फूल उत्पादन
६- वन उत्पादन को रोजगार व लाभ लेना
७-सिंचाई के लिए साधन उपलब्धि
८-शिक्षा में सुधार
९- प्रवासियों को पहाड़ों में बसना
१०- जड़ी बूटियों को आर्थिक स्थिति सुधारने में योगदान
११- चारा उत्पादन वृद्धि
१२-जंगली जानवरों से खेती रक्षा
१३-गाँवों में कम्प्यूटर प्रयोग , पुस्तकालय
१४- ग्रामीण पर्यटन विकास
आदि आदि उपरोक्त दो सोचों में अधिक अंतर क्या दर्शाता है ? निष्कर्ष साफ़ कि गांवों में सिंचाई , कृषि , वैकल्पिक कृषि , रोजगार , पलायन पर रोक , उचित शिक्षा , विजली उत्पादन व वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन की कोई सोच है ही नही है। तो फिर हम प्रवासी फोकट में बकबास क्यों करते रहते हैं ?
Copyright@ Bhishma Kukreti 24 /6/2014
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