जज साहब आपके होने का क्या फायदा ?
महात्मा गांधी की पुण्यतिथि 30 जनवरी 2011 को मंदाकिनी नदी पर ‘लार्सन एंड टूब्रो’ कंपनी द्वारा बनाई जा रही सिंगोली-भटवाड़ी जल विद्युत परियाजना का विरोध कर रहे दो आन्दोलनकारियों, सुशीला भण्डारी एवं जगमोहन झिंक्वाण को पुलिस प्रशासन ने गिरफ्तार कर लिया था । ये लोग प्रदर्शन कर वापस लौट रहे थे तभी बिना आरोप बताये प्रशासन ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया । सेवानिवृत्त सैनिक जगमोहन झिंक्वाण के साथ पुलिस द्वारा मौके पर तथा थाने में भी मारपीट की गई । सुशीला भण्डारी से फोन छीन लिया, उनको अपने परिजनों से बात तक नहीं करने दी गयी थी । उनकी चप्पलें भी वहीं छूट गयी, वे नंगे पाँव ही जेल में लायी गयीं थी । उन्हें पहले जखोली तथा फिर पौड़ी जेल तक कम्पनी के ही वाहन से ले जाया गया था । जगमोहन को पुरसाड़ी जेल में रखा गया ।
‘लार्सन एंड टूब्रो’ कंपनी शुरू से ही परियोजना से प्रभावित गांवों में बिना अनुमति के जंगल काटने से लेकर गाँवों में फूट डालने तक के सारे अनैतिक व अवैध काम करती आयी है । मंदाकिनी व उसकी सहायक नदियों में 12 जल विद्युत परियाजनायें प्रस्तावित हैं, जिनमें से सिंगोली-भटवाड़ी व फाटा-व्यूँग परियोजना के विरोध में पिछले कई महीनों से ‘केदार घाटी संघर्ष समिति’ के झंडे के नीचे प्रभावित क्षेत्र के 30 गाँवों की जनता उखीमठ पर धरने पर बैठी थी । लालच देकर लाये गये युवाओं के माध्यम से कम्पनी द्वारा की गई तोड़-फोड़ व नेताओं की दलाली के चलते आन्दोलन कई बार टूटा, लेकिन सुशीला भण्डारी के साथ खड़ी सैकड़ों महिलाओं ने संघर्ष की मशाल जलाये रखी ।
इस परियोजना की सुरंग बनाने के लिये किये जा रहे विस्फोट से पूरा इलाका दहल रहा था । रायड़ी तथा अरखुण्ड गाँव के प्रत्येक घर में दरारें पड़ चुकी हैं । जल स्रोत अपना स्थान छोड़कर गहराई में पहुँच रहे हैं । इन सुरंगों के अन्दर मूसलाधार बारिश की तरह सैकड़ों लीटर प्रति सेकेण्ड की दर से गिरते पानी को देखकर सहज अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ खेतों की नमी देर-सवेर समाप्त हो जायेगी । रायड़ी गाँव निवासी गजपाल सिंह नेगी के अनुसार ग्रामीणों के सामने पानी का संकट खड़ा हो रहा है । सुरंग एडिट 3 के मुहाने पर अरखुण्ड तथा एडिट 4 के मुहाने पर रायड़ी गाँव पड़ता है । 27 जनवरी 2011 को कम्पनी ने एडिट 3 पर पुल बनाने के लिये दीवार खड़ी की, जिसे अरखुण्डवासियों ने तोड़ दिया । कम्पनी ने रातों-रात फिर से दीवार खड़ी कर दी । 30 जनवरी 2011 को दोनों गाँवों ने फिर से दीवार को तोड़ डाला ।
उनका कहना था कि कम्पनी हमारी खेती, जंगल व पानी बर्बाद कर रही है, हमारे मकान अब रहने के लिये खतरा बन रहे हैं लेकिन हमें पूछने वाला कोई नहीं । हमें तो मुआवजे के दायरे में तक नहीं रखा गया है । जो भी प्रशासनिक अधिकारी आता है उसके बिकने में एक सप्ताह से अधिक समय नहीं लगता है । आन्दोलन के नाम पर लोगों का नेतृत्व करने कोई नेता आता है तो आन्दोलन से अपना भाव ऊँचा कर आन्दोलन को ही बेच डालता है, ग्रामीण ठगे जाते हैं ।
प्रदेश व देश भर के अनेक संगठनों द्वारा मंदाकिनी के इन आन्दोलनकारियों की गिरफ्तारी के विरोध में धरना व ज्ञापन पर ज्ञापन दिये जा रहे थे , जिनमें माँग की जा रही थी कि इन लोगों की बिना शर्त ससम्मान रिहाई की जाये और सिंगोली भटवाड़ी जल विद्युत परियोजना का सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन वाडिया भूगर्भ विज्ञान संस्थान एवं आई. आई. टी. रुड़की से करवाई जाये । अध्ययन पूरा होने तक परियोजना का काम पूर्ण रूप से बंद रखा जाये । सुशीला व जगमोहन की अदालत में पेशी के दिन बिना शर्त रिहाई को लेकर 11 फरवरी 2011 को रुद्रप्रयाग कलेक्ट्रेट में लगभग एक हजार लोगों ने प्रदर्शन किया ।
महीनों से जेल की सलाखों के पीछे बन्द उस महिला ने जमानत लेने से इनकार कर दिया ?
“सुशीला भण्डारी आप जमानत क्यों नहीं लेना चाहती ?” जज ने हैरान होकर उस महिला से पूछा जो कभी स्कूल नहीं गयी थी, लेकिन पहाड़ के संवेदनशील इकोसिस्टम को शायद कई पर्यावरणविदों जितना समझती थी ।
“सुशीला भण्डारी आप जमानत क्यों नहीं लेना चाहती ?” जज ने हैरान होकर उस महिला से पूछा जो कभी स्कूल नहीं गयी थी, लेकिन पहाड़ के संवेदनशील इकोसिस्टम को शायद कई पर्यावरणविदों जितना समझती थी ।
“जज साहब अगर आपके रहते मुझ निर्दोष को जमानत लेनी पड़े तो आपके होने का फ़ायदा क्या है ?” पैंतालीस साल की सुशीला भण्डारी ने भरी अदालत में कहा था और जज को उस पर लगी तमाम धारायें हटाकर, उसे रिहा करने के आदेश देने पड़े थे l
ये कोई ख्वाब नहीं, कोई कहानी नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में सन 2011 में हकीकत में घटित हुई घटना है, और कोमोबेश इस राज्य में तब तक होता रहेगा जब तक राजनेता और नौकरशाह का नापाक गठजोड़ स्थानीय नागरिकों के हितों की कीमत पर मुनाफाखोर कंपनियों को कानून विरूद्ध फायदा पहुंचाते रहेंगे !
काश ! सुशीला भण्डारी जैसा जीवट अन्य महिलायें भी दिखा पाती, जो कानून की चक्की में बेवजह पिसती है, लेकिन उफ़ तक नहीं करती, और ज्यादा हवा तो समाज के दबाव में टूट कर अपराधियों से समझोते को हाथ बढ़ा देती है l
साभार : “नैनीताल समाचार” एंव एनडी टीवी पत्रकार हृदयेश जोशी की पुस्तक “तुम चुप क्यों रहे केदार” से
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