सेकुलरवाद एक विचारधारा से अधिक मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में करने का एक घटिया जरिया बन गया था और इसके निरंतर हो रहे राजनीतिकरण ने इसे इतना विकृत कर दिया था कि यह अपना मूल अर्थ ही खो बैठा था। सेकुलर भाव-विचार हमें आधुनिकता की ओर अग्रसर करते हैं। नेहरु-आम्बेडकर की वैचारिकी आदर्श सेकुलर वैचारिकी है और इससे हम आज भी सीखना चाहते हैं। लेकिन जो नेता खुद अपने भाव-विचारों में आधुनिक सोच का नहीं है, वह किस तरह सेकुलर हो सकता है ? लालू प्रसाद या मुलायम सिंह यादव के सेकुलर होने के क्या आधार हैं ? लेकिन सेकुलर-राजनीति का प्रसाद तो यही बांट रहे थे। इसी पर इनकी राजनीतिक दुकानें भी चल रही थीं। इन्होंने अपने भाषणों, बयानों और कार्यकलापों से मुसलमानों को मानसिक तौर पर और पिछड़ा बनाया। इनका ध्यान उनके बीच जज्बाती ख्याल उभारने पर ज्यादा होता था, क्योंकि इसी से उनके वोट इन्हें आसानी से मिल सकते थे। बौद्धिक सेकुलरवादियों ने भी मुसलमानों के बीच सामाजिक जागरण या सुधार भाव जाग्रत करने का प्रयास नहीं किया। उन लोगों ने भी कबीर से अधिक अकबर व दाराशिकोह की वैचारिकी को रेखांकित किया। मुसलमानों के एक खास तबके के लिए ऐसे सेकुलर विचार बहुत काम के थे। यह तबका था मुसलमानों का उच्च तबका। दरअसल इस तबके ने इस सेकुलरवाद को मुसलमानों के दस्तकार-कामगार तबके को अपनी पकड़ में रखने का माध्यम बनाया। इसके द्वारा उन्हें बुनियादी जरूरतों की अनदेखी करने के लिए मजबूर किया गया। उन्हें भय और असुरक्षा के ख्यालों के बीच रखा गया। इससे एक तरफ आतंकवाद को बल मिला तो दूसरी तरफ मुस्लिम ब्राह्मणवाद अर्थात मुल्लावाद को। सेकुलरवादी राजनीति ने मुसलमानों के माली और तालीमी हालात पर कम से कम विचार किया। उनका ज्यादा ध्यान उनके विचित्र से लगने वाले पहनावे, उनकी मध्ययुगीन भाषा अरबी-फारसी, उनके कब्रिस्तानों के रखरखाव और हज यात्राओं पर अधिक सुविधा देने पर लगाया गया। डॉ. आम्बेडकर, जवाहरलाल नेहरु और राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं ने जिस समान नागरिक संहिता की वकालत की थी, उसे ठंडे बस्ते में डालना सेकुलर राजनीति का सर्वप्रमुख एजेंडा बन गया। इस सेकुलर राजनीति के तहत मुसलमानों के बीच से अपराधी और नालायक तत्वों को आगे किया गया। बिहार में लालू प्रसाद और एक समय रामविलास पासवान ने भी ओसामा बिन लादेन की एक हमशक्ल को साथ लेकर चुनावी सभाएं कीं। ऐसी कितनी मूर्खताएं हुईं, इसका हिसाब लगाना बहुत आसान नहीं होगा।
- प्रेमकुमार मणि, फारवर्ड प्रेस, जुलाई, 2014 अंक की कवर स्टोरी में।
- प्रेमकुमार मणि, फारवर्ड प्रेस, जुलाई, 2014 अंक की कवर स्टोरी में।
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