कैंसर की कोशिकाएं भी सोचती होंगी कि पता नहीं ये किस शरीर से पाला पड़ा.
ये शरीर न डरता है न रुकता है. यह तो जीवन के हर क्षण में कई क्षण जीना चाहता है. और उस पर भी हाल यह कि यही बात वह हजारों-लाखों लोगों को बताने में जुटा है कि "कैंसर के साथ भी जीवन है, कैंसर के बाद भी जीवन है." यह कैसा शख्स है जो कॉलेज-कॉलेज घूम कर लड़कियों को कैंसर के बारे में बताता है. अवेयरनेस कैंप चलाता है. लगातार इस बारे में लेख लिखता है. फेसबुक पर पेज चलाता है. यह कैसा शरीर है जो जीवन की अंतिम अवस्था में भी कैंसर क्लिनिक में मरीजों और रिश्तेदारों को कैंसर के साथ जीना सिखाता है.
ये कैसा शरीर है, जो थक जाने पर भी जीने की जिद ठाने हुए है. औरं जीना भी ऐसा, जो घिसटकर न हो. शान से हो, ठाट से हो, बिंदास हो, बेलौस हो, बेख़ौफ़ हो. अनुराधा ने किसी को यह इजाजत नही दी कि कोई उसके प्रति ग़ैरज़रूरी सहानुभूति जता सके. यह कह सके कि - "हाय, तुम्हें यह क्या हो गया." अनुराधा से मिलने वाले सैकड़ों लोगों ने महसूस किया होगा कि उसे अपने प्रति दिखाया गया हर दया भाव नापसंद था. सख्त नापसंद.
अनुराधा का जीवन ऐसा था भी नहीं कि आपको उसके प्रति दया या सहानुभूति जताने की हिम्मत पड़े. (कैंसर के साथ जी रही अनुराधा की हाल के वर्षों की कुछ तस्वीरें देखिए. क्या आप इस शख्सियत के प्रति अपने मन में दया जैसा कोई भाव ला पाएंगे? कोशिश करके देखिए. मुश्किल होगा.)
कैंसर के बारे में जागरूकता और उससे भी हीं ज्यादा औरतों को अपने शरीर और उसमें हो रहे बदलाव के बारे में जागरूक और सजग बनाना अनुराधा के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा. अपनी ही देह के बारे में न जानना कितना खतरनाक होता है, यह हमें अक्सर देर से पता चलता है. खासकर आरतों से तो यही अपेक्षित होता है कि वे अपनी देह को या तो बचाकर रखें या सजा कर रखें. अपनी बीमारी की चर्चा न करें. खासकर स्त्री अंगों में हुई बीमारियों के बारे में तो खुलकर न ही बोलें.
अनुराधा को यह नापसंद था.
उसे उन औरतों से हमेशा शिकायत रही जो अपने स्वास्थ्य पर समय और पैसा इनवेस्ट नहीं करतीं और परिवार के लिए "त्याग" करने के नाम पर अपने शरीर की अनदेखी करती हैं. इस मामले में अनुराधा को अमेरिका, यूरोप और इजराएल की औरतें पसंद थीं. खासकर इजराएल की एक फेसबुक दोस्त, जिनसे वे दैनिक संपर्क में रहीं.
अनुराधा को हमेशा मानना रहा कि अज्ञानी मरीज की तुलना में इनफॉर्म्ड मरीज होना हमेशा अच्छा है. डॉक्टरों के लिए भी ऐसे लोगों का इलाज कर पाना आसान होता है,जो अपने शरीर को और अपनी बीमारी को जानते हैं और उसे डिस्कस कर सकते हैं. लोगों और खासकर औरतों को कैंसर के बारे में इनफॉर्म्ड बनाना अनुराधा के लिए एक मिशन था. उसके जीवन का ज्यादातर समय और माइंड स्पेस इसी काम में लगा.
यह जरूरी काम है. यह पेंडिंग काम है. — with Anuradha Mandal. (11 photos)
ये शरीर न डरता है न रुकता है. यह तो जीवन के हर क्षण में कई क्षण जीना चाहता है. और उस पर भी हाल यह कि यही बात वह हजारों-लाखों लोगों को बताने में जुटा है कि "कैंसर के साथ भी जीवन है, कैंसर के बाद भी जीवन है." यह कैसा शख्स है जो कॉलेज-कॉलेज घूम कर लड़कियों को कैंसर के बारे में बताता है. अवेयरनेस कैंप चलाता है. लगातार इस बारे में लेख लिखता है. फेसबुक पर पेज चलाता है. यह कैसा शरीर है जो जीवन की अंतिम अवस्था में भी कैंसर क्लिनिक में मरीजों और रिश्तेदारों को कैंसर के साथ जीना सिखाता है.
ये कैसा शरीर है, जो थक जाने पर भी जीने की जिद ठाने हुए है. औरं जीना भी ऐसा, जो घिसटकर न हो. शान से हो, ठाट से हो, बिंदास हो, बेलौस हो, बेख़ौफ़ हो. अनुराधा ने किसी को यह इजाजत नही दी कि कोई उसके प्रति ग़ैरज़रूरी सहानुभूति जता सके. यह कह सके कि - "हाय, तुम्हें यह क्या हो गया." अनुराधा से मिलने वाले सैकड़ों लोगों ने महसूस किया होगा कि उसे अपने प्रति दिखाया गया हर दया भाव नापसंद था. सख्त नापसंद.
अनुराधा का जीवन ऐसा था भी नहीं कि आपको उसके प्रति दया या सहानुभूति जताने की हिम्मत पड़े. (कैंसर के साथ जी रही अनुराधा की हाल के वर्षों की कुछ तस्वीरें देखिए. क्या आप इस शख्सियत के प्रति अपने मन में दया जैसा कोई भाव ला पाएंगे? कोशिश करके देखिए. मुश्किल होगा.)
कैंसर के बारे में जागरूकता और उससे भी हीं ज्यादा औरतों को अपने शरीर और उसमें हो रहे बदलाव के बारे में जागरूक और सजग बनाना अनुराधा के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा. अपनी ही देह के बारे में न जानना कितना खतरनाक होता है, यह हमें अक्सर देर से पता चलता है. खासकर आरतों से तो यही अपेक्षित होता है कि वे अपनी देह को या तो बचाकर रखें या सजा कर रखें. अपनी बीमारी की चर्चा न करें. खासकर स्त्री अंगों में हुई बीमारियों के बारे में तो खुलकर न ही बोलें.
अनुराधा को यह नापसंद था.
उसे उन औरतों से हमेशा शिकायत रही जो अपने स्वास्थ्य पर समय और पैसा इनवेस्ट नहीं करतीं और परिवार के लिए "त्याग" करने के नाम पर अपने शरीर की अनदेखी करती हैं. इस मामले में अनुराधा को अमेरिका, यूरोप और इजराएल की औरतें पसंद थीं. खासकर इजराएल की एक फेसबुक दोस्त, जिनसे वे दैनिक संपर्क में रहीं.
अनुराधा को हमेशा मानना रहा कि अज्ञानी मरीज की तुलना में इनफॉर्म्ड मरीज होना हमेशा अच्छा है. डॉक्टरों के लिए भी ऐसे लोगों का इलाज कर पाना आसान होता है,जो अपने शरीर को और अपनी बीमारी को जानते हैं और उसे डिस्कस कर सकते हैं. लोगों और खासकर औरतों को कैंसर के बारे में इनफॉर्म्ड बनाना अनुराधा के लिए एक मिशन था. उसके जीवन का ज्यादातर समय और माइंड स्पेस इसी काम में लगा.
यह जरूरी काम है. यह पेंडिंग काम है. — with Anuradha Mandal. (11 photos)
No comments:
Post a Comment