भाजपा का दायित्व-भाव और दलित
एच एल दुसाध
भारत और दुनिया भर में फैले विरोधियों का लोहा मनवा चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के जरिये राष्ट्र के पुनर्निर्माण का अपना दस सूत्रीय एजेंडा प्रस्तुत कर अपने सरकार की प्राथमिकताएं तय कर दिया है.किन्तु राष्ट्र व विभिन्न वर्गों के लिए अपने एजेंडे की घोषणा करने वाले मोदी ने दलितों के लिए अलग से कोई एजेंडा घोषित नहीं किया है.जबकि सोलहवीं लोकसभा चुनाव में दलितों की ओर से मिले विपुल समर्थन का प्रतिदान देने के लिए नए सिरे से उन वादों को अमल लाने की कार्ययोजना पेश करना चाहिए था जिसकी घोषणा भाजपा लम्बे समय से करती रही है.इस विषय में यह लेखक प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.संजय पासवान द्वारा’नई सोच नई उम्मीद:दलित विमर्श’ शीर्षक से तैयार उस 12 पृष्ठीय पुस्तिका की ओर आकर्षित करना चाहेगा जो जनवरी,2014 में चार राज्यों का चुनाव परिणाम सामने आने के बाद प्रकाशित हुई थी.
पुस्तिका की प्रस्तावना में विभिन्न तथ्यों के आधार पर दलितों की वर्तमान दुरावस्था के लिए गैर-भाजपाई दलों ,विशेषकर कांग्रेस को जिम्मेवार ठहराते और दलितोत्थान में भाजपा की भूमिका पर रोशनी डालते हुए डॉ.पासवान ने दावे के साथ कहा है –‘भाजपा अनुसूचित जाति(दलितों) के विकास और उत्थान के प्रति समर्पित रही है.’भाजपा अन्य दलों के मुकाबले दलितों के विकास और उत्थान के प्रति ज्यादा समर्पित रही है,इसका साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए पुस्तिका के पृष्ठ 3-10 पर लोकसभा चुनाव 1984,1989,1991,1996,1998, 1999१,2004 और 2009 के उसके घोषणा-पत्र में दलित समुदाय के प्रति किये गए वादों का विस्तृत उल्लेख है.इसके बाद भाजपा दलित समुदाय से क्या प्रत्याशा करती है,उस पर पृष्ठ 11=12 पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए अंत में कहा गया है.
‘हमारे दल में बड़ी संख्या में एमपी,एमएलए तो होते रहे मगर हमें आज तक 20 प्रतिशत से ज्यादा आपका समर्थन नहीं मिला.दलित समाज के वोट का एक बड़ा हिस्सा गफलत में,मुगालते या बरगलाने में हमारी पार्टी से दूर रहा है.हमें आपका सर्वाधिक समर्थन एवं सहयोग चाहिए ताकि हमारी ताकत हमारे दल में बढ़े और आप की ताकत देश में बढ़े.बारी-बारी से आपने कांग्रेस एवं तीसरे मोर्चे को सत्ता दिया.इस बार हमें अगर आपका शत-प्रतिशत वोट मिलता है जिसकी हम पूरा अहर्ता रखते हैं तो निश्चित तौर पर हम आप को सत्ता,संपत्ति,सम्मान,सुरक्षा एवं स्वाभिमान के नये आयामों से जोकर आपका चौमुखी विकास यथा आर्थिक विकास,शैक्षणिक विकास एवं राजनैतिक विकास की नई ऊँचाइयों पर ले जाने में कामयाब होंगे.अभी संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में हमें दलित समाज का 80 प्रतिशत वोट मिला,जिस कारण राजस्थान,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हम अपार बहुमत से जीते हैं.हमें उम्मीद ही नहीं,बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में आपके इसी किस्म के पुरजोर समर्थन से केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब होंगे.’
बहरहाल दलित समाज ने 2013 में अनुष्ठित चार राज्यों के विधान सभा चुनाओं में भाजपा को दिए प्रचंड समर्थन को लोकसभा चुनाव-2014 में बरकरार रखते हुए गेंद पूरी से तरह उस के पाले में डाल दिया है.डॉ.पासवान हों या भाजपा का अन्य नेता,कोई भी यह सोच नहीं सकता था कि 79 में से 50 सीटें दे कर दलित समुदाय मोदी के पीएम बनने में कल्पनातीत योगदान कर सकता है.अनुसूचित जाति के सीटों पर भाजपा के सहयोगी दलों को मिली सफलता को जोड़ दिया जाय तो यह प्रतिशत 70 के आसपास बैठता है.जो उत्तर प्रदेश दलित राजनीति का गढ़ है एवं जहाँ से हो कर ही सत्ता का रास्ता दिल्ली की ओर जाता है,वहां 17 में से 17 सुरक्षित सीटें भाजपा को देकर दलित समाज ने अपना योगदान शत-प्रतिशत कर दिया है.किन्तु जिस दलित समाज की बदहाली के लिए सर्वाधिक दोषारोपड़ डॉ.पासवान जैसे लोग कांग्रेस पर लगाते हैं,उस कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में दलितों का सामान्य समर्थन पा कर भी लोकसभा का स्पीकर,गृह-मंत्री,रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों के साथ अन्य कई पद दलित नेताओं को दिया था.पर,विपुल समर्थन के बावजूद मोदी सरकार में दलितों को जो नहीं के बराबर स्थान मिला है,उससे यह समाज कितना आहत है,इसकी कल्पना कोई भी कर सकता है.बहरहाल भाजपा अगर सत्ता,सम्पति,सम्मान एवं स्वाभिमान के आयामों से जोड़कर दलित समुदाय के चौमुखी विकास के प्रति गंभीर है तो वह 2004 और 2009 के घोषणा-पत्र में जारी दो वादों को अमली जामा पहनाने पर खासतौर से विचार करें.यह वादे डॉ.पासवान द्वारा जारी पुस्तिका के पृष्ठ 9 और 10 पर लिपिबद्ध हैं.
2004 के घोषणा-पत्र में कहा गया था ‘–भाजपा ने हमेशा अनुसूचित जाति के सामाजिक न्याय की हिमायत की है.इस अहम् मसले पर पारंपरिक पैरवी से आगे बढ़ते हुए हमने हमेशा दो सम्बंधित बातों पर जोर दिया है-(अ) आर्थिक न्याय एवं राजनीतिक सशक्तिकरण के बिना सामाजिक न्याय अधूरा है.(ब) सामाजिक न्याय को पूरी तरह से प्रभावी बनाने के लिए सामाजिक समरसता अत्यावश्यक है.इन विचारों को आगे बढाने के लिए भाजपा कटिबद्ध है कि आरक्षण नीति के क्रियान्वयन में उल्लिखित प्रावधानों का पालन कठोरता से किया जाय.अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रिक्त पदों को भरने एवं पदोन्नति करने के लिए मुहिम चलाई जाय .निजी क्षेत्र के संस्थानों को अनुसूचित जाति के लिए रोजगार अवसर मुहैया कराने हेतु बढ़ावा दिया जाय.’स्मरण रहे यह भाजपाई प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे जिन्होंने 19 दिसंबर 2003 को एससी/एसटी के सांसदों को संबोधित करते हुए सबसे पहले इन वर्गों के लिए निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग उठाई थी.बहरहाल मोदी चाहें तो इसे नजरंदाज भी कर दें कितु 2009 के घोषणा–पत्र के वादे की हरगिज अनदेखी न करें.
भाजपा ने लोकसभा चुनाव-2009 के अपने घोषणा-पत्र के पृष्ठ 29 पर लिखा था -‘भाजपा सामाजिक न्याय तथा सामाजिक समरसता के प्रति प्रतिबद्ध है.पहचान की राजनीति,जो दलितों अन्य पिछड़े वर्गों और समाज के अन्य वंचित वर्गों को कोई फायदा नहीं पहुचाती का अनुसरण करने के बजाय ठोस विकास एवं सशक्तिकरण पर ध्यान केन्द्रित करेगी.हमारे समाज के दलित ,पिछड़े एवं वंचित वर्गों के लिए उद्यमशीलता एवं व्यवसाय के अवसरों को इस तरह बढ़ावा दिया जायेगा ताकि भारत की सामाजिक विविधता पर्याप्त रूप से आर्थिक विविधता में प्रतिबिम्बित हो.’2009 में भाजपा के घोषणापत्र का उपरोक्त अंश विशुद्ध क्रांतिकारी था.भूमंडलीकरण के दौर में दलित बुद्धिजीवियों की सबसे प्रमुख मांग यही रही कि पार्टियाँ/सरकारें दलित-बहुजनों को पारंपरिक आरक्षण(महज सरकारी नौकरियों)से आगे बढ़ कर उद्योग–व्यापार में भागीदार बनाने पर विचार करें.सामाजिक विविधता को आर्थिक विविधता में प्रतिबिम्बन का मतलब यह हुआ कि समस्त आर्थिक गतिविधियों-सप्लाई,डीलरशिप,ठेको ं,ट्रांसपोर्टेशन इत्यादि में जिसकी जीतनी संख्या भारी-उसकी उतनी भागीदारी.भाजपा की वह घोषणा सिर्फ लोकसभा चुनाव-2009 तक ही सीमित नहीं रही,उसने लगभग वही बातें बिहार विधानसभा चुनाव-2010 में और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2012 में दोहराते हुए सामाजिक विविधता को आर्थिक विविधता में तब्दील करने की घोषणा किया.भाजपाइ दावा करते हैं कि वे दलितों के प्रति दया-भाव नहीं,बल्कि दायित्व-बोध से काम करते हैं,अगर ऐसा है तो मोदी सरकार दलित समुदाय से मिले अप्रत्याशित समर्थन के प्रतिदान मे सामाजिक विविधता को आर्थिक विविधता में तब्दील करने की कार्ययोजना पेश करे.अगर ऐसा नहीं करती है तो आजाद में लगातार छला जा रहा यह समाज एक बार फिर छले जाने की पीड़ा का शिकार हो जायेगा.
दिनांक:20 जून,2014. (लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)
एच एल दुसाध
भारत और दुनिया भर में फैले विरोधियों का लोहा मनवा चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के जरिये राष्ट्र के पुनर्निर्माण का अपना दस सूत्रीय एजेंडा प्रस्तुत कर अपने सरकार की प्राथमिकताएं तय कर दिया है.किन्तु राष्ट्र व विभिन्न वर्गों के लिए अपने एजेंडे की घोषणा करने वाले मोदी ने दलितों के लिए अलग से कोई एजेंडा घोषित नहीं किया है.जबकि सोलहवीं लोकसभा चुनाव में दलितों की ओर से मिले विपुल समर्थन का प्रतिदान देने के लिए नए सिरे से उन वादों को अमल लाने की कार्ययोजना पेश करना चाहिए था जिसकी घोषणा भाजपा लम्बे समय से करती रही है.इस विषय में यह लेखक प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.संजय पासवान द्वारा’नई सोच नई उम्मीद:दलित विमर्श’ शीर्षक से तैयार उस 12 पृष्ठीय पुस्तिका की ओर आकर्षित करना चाहेगा जो जनवरी,2014 में चार राज्यों का चुनाव परिणाम सामने आने के बाद प्रकाशित हुई थी.
पुस्तिका की प्रस्तावना में विभिन्न तथ्यों के आधार पर दलितों की वर्तमान दुरावस्था के लिए गैर-भाजपाई दलों ,विशेषकर कांग्रेस को जिम्मेवार ठहराते और दलितोत्थान में भाजपा की भूमिका पर रोशनी डालते हुए डॉ.पासवान ने दावे के साथ कहा है –‘भाजपा अनुसूचित जाति(दलितों) के विकास और उत्थान के प्रति समर्पित रही है.’भाजपा अन्य दलों के मुकाबले दलितों के विकास और उत्थान के प्रति ज्यादा समर्पित रही है,इसका साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए पुस्तिका के पृष्ठ 3-10 पर लोकसभा चुनाव 1984,1989,1991,1996,1998,
‘हमारे दल में बड़ी संख्या में एमपी,एमएलए तो होते रहे मगर हमें आज तक 20 प्रतिशत से ज्यादा आपका समर्थन नहीं मिला.दलित समाज के वोट का एक बड़ा हिस्सा गफलत में,मुगालते या बरगलाने में हमारी पार्टी से दूर रहा है.हमें आपका सर्वाधिक समर्थन एवं सहयोग चाहिए ताकि हमारी ताकत हमारे दल में बढ़े और आप की ताकत देश में बढ़े.बारी-बारी से आपने कांग्रेस एवं तीसरे मोर्चे को सत्ता दिया.इस बार हमें अगर आपका शत-प्रतिशत वोट मिलता है जिसकी हम पूरा अहर्ता रखते हैं तो निश्चित तौर पर हम आप को सत्ता,संपत्ति,सम्मान,सुरक्षा एवं स्वाभिमान के नये आयामों से जोकर आपका चौमुखी विकास यथा आर्थिक विकास,शैक्षणिक विकास एवं राजनैतिक विकास की नई ऊँचाइयों पर ले जाने में कामयाब होंगे.अभी संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में हमें दलित समाज का 80 प्रतिशत वोट मिला,जिस कारण राजस्थान,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हम अपार बहुमत से जीते हैं.हमें उम्मीद ही नहीं,बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में आपके इसी किस्म के पुरजोर समर्थन से केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब होंगे.’
बहरहाल दलित समाज ने 2013 में अनुष्ठित चार राज्यों के विधान सभा चुनाओं में भाजपा को दिए प्रचंड समर्थन को लोकसभा चुनाव-2014 में बरकरार रखते हुए गेंद पूरी से तरह उस के पाले में डाल दिया है.डॉ.पासवान हों या भाजपा का अन्य नेता,कोई भी यह सोच नहीं सकता था कि 79 में से 50 सीटें दे कर दलित समुदाय मोदी के पीएम बनने में कल्पनातीत योगदान कर सकता है.अनुसूचित जाति के सीटों पर भाजपा के सहयोगी दलों को मिली सफलता को जोड़ दिया जाय तो यह प्रतिशत 70 के आसपास बैठता है.जो उत्तर प्रदेश दलित राजनीति का गढ़ है एवं जहाँ से हो कर ही सत्ता का रास्ता दिल्ली की ओर जाता है,वहां 17 में से 17 सुरक्षित सीटें भाजपा को देकर दलित समाज ने अपना योगदान शत-प्रतिशत कर दिया है.किन्तु जिस दलित समाज की बदहाली के लिए सर्वाधिक दोषारोपड़ डॉ.पासवान जैसे लोग कांग्रेस पर लगाते हैं,उस कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में दलितों का सामान्य समर्थन पा कर भी लोकसभा का स्पीकर,गृह-मंत्री,रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों के साथ अन्य कई पद दलित नेताओं को दिया था.पर,विपुल समर्थन के बावजूद मोदी सरकार में दलितों को जो नहीं के बराबर स्थान मिला है,उससे यह समाज कितना आहत है,इसकी कल्पना कोई भी कर सकता है.बहरहाल भाजपा अगर सत्ता,सम्पति,सम्मान एवं स्वाभिमान के आयामों से जोड़कर दलित समुदाय के चौमुखी विकास के प्रति गंभीर है तो वह 2004 और 2009 के घोषणा-पत्र में जारी दो वादों को अमली जामा पहनाने पर खासतौर से विचार करें.यह वादे डॉ.पासवान द्वारा जारी पुस्तिका के पृष्ठ 9 और 10 पर लिपिबद्ध हैं.
2004 के घोषणा-पत्र में कहा गया था ‘–भाजपा ने हमेशा अनुसूचित जाति के सामाजिक न्याय की हिमायत की है.इस अहम् मसले पर पारंपरिक पैरवी से आगे बढ़ते हुए हमने हमेशा दो सम्बंधित बातों पर जोर दिया है-(अ) आर्थिक न्याय एवं राजनीतिक सशक्तिकरण के बिना सामाजिक न्याय अधूरा है.(ब) सामाजिक न्याय को पूरी तरह से प्रभावी बनाने के लिए सामाजिक समरसता अत्यावश्यक है.इन विचारों को आगे बढाने के लिए भाजपा कटिबद्ध है कि आरक्षण नीति के क्रियान्वयन में उल्लिखित प्रावधानों का पालन कठोरता से किया जाय.अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रिक्त पदों को भरने एवं पदोन्नति करने के लिए मुहिम चलाई जाय .निजी क्षेत्र के संस्थानों को अनुसूचित जाति के लिए रोजगार अवसर मुहैया कराने हेतु बढ़ावा दिया जाय.’स्मरण रहे यह भाजपाई प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे जिन्होंने 19 दिसंबर 2003 को एससी/एसटी के सांसदों को संबोधित करते हुए सबसे पहले इन वर्गों के लिए निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग उठाई थी.बहरहाल मोदी चाहें तो इसे नजरंदाज भी कर दें कितु 2009 के घोषणा–पत्र के वादे की हरगिज अनदेखी न करें.
भाजपा ने लोकसभा चुनाव-2009 के अपने घोषणा-पत्र के पृष्ठ 29 पर लिखा था -‘भाजपा सामाजिक न्याय तथा सामाजिक समरसता के प्रति प्रतिबद्ध है.पहचान की राजनीति,जो दलितों अन्य पिछड़े वर्गों और समाज के अन्य वंचित वर्गों को कोई फायदा नहीं पहुचाती का अनुसरण करने के बजाय ठोस विकास एवं सशक्तिकरण पर ध्यान केन्द्रित करेगी.हमारे समाज के दलित ,पिछड़े एवं वंचित वर्गों के लिए उद्यमशीलता एवं व्यवसाय के अवसरों को इस तरह बढ़ावा दिया जायेगा ताकि भारत की सामाजिक विविधता पर्याप्त रूप से आर्थिक विविधता में प्रतिबिम्बित हो.’2009 में भाजपा के घोषणापत्र का उपरोक्त अंश विशुद्ध क्रांतिकारी था.भूमंडलीकरण के दौर में दलित बुद्धिजीवियों की सबसे प्रमुख मांग यही रही कि पार्टियाँ/सरकारें दलित-बहुजनों को पारंपरिक आरक्षण(महज सरकारी नौकरियों)से आगे बढ़ कर उद्योग–व्यापार में भागीदार बनाने पर विचार करें.सामाजिक विविधता को आर्थिक विविधता में प्रतिबिम्बन का मतलब यह हुआ कि समस्त आर्थिक गतिविधियों-सप्लाई,डीलरशिप,ठेको
दिनांक:20 जून,2014. (लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)
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