जादू की छड़ी उनके पास है नहीं। पर रोजगार और विकास के लिए छड़ी घुमा रही हैं दीदी!
पलाश विश्वास
बंगाल की मां माटी सरकार की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वृहस्पतिवार नदिया के तेहट्टा में तृणमुल कांग्रेस आयोजितत एक जनसभा में कहा कि पश्चिम बंगाल में इस वक्त एक करोड़ से ज्यादा बेरोजगार है। दीदी ने इस आंकड़े के लिए किसी सूत्र का हवाला नहीं दिया। उन्होंने सरकार की नौकरी देने की असमर्थता बताते हुए इन बेरोजगारों को निजी क्षेत्र में रोजगार दिलाने का वायदा किया।उन्होंने कहा कि केवल बड़े उद्योग ही रोजगार सृजन का एकमात्र जरिया नहीं हैं। इससे पहले पिछले १० अक्तूबर को मुख्यमंत्री ने तमलुक की एक जनसभा में राज्य एक करोड़ रोजगार के सृजन का वायदा किया था।औद्योगिक नगरी हल्दिया के धानसेरी में नई पेट्रोकेमिकल्स इकाई के उद्घाटन के दौरान ममता बनर्जी ने कहा कि हम लघु उद्योगों के जरिए एक करोड़ रोजगार के अवसरों का सृजन करेंगे। बहुत से छोटे समूह बनाएंगे और उन्हें विदेशी बाजारों से जोड़ेंगे। उन्होंने राज्य में दो बंदरगाह बनाने के साथ-साथ रोजगार सृजन को लेकर अपनी योजना के बारे में बात की।ममता ने कहा कि केवल बड़े उद्योग ही रोजगार सृजन का जरिया नहीं हैं। मझले और लघु उद्योग भी इसका एक महत्वपूर्ण जरिया बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि मैं निजी तौर पर लघु उद्योगों को प्राथमिकता देती हूं और बंगाल में इस क्षेत्र में ढेरों संभावनाएं हैं।ममता ने रिटेल में एफडीआई को लेकर किसानों को सचेत करते हुए उससे होने वाले खतरे बताए।यही नहीं, राज्य में करीब सत्तर लाख बेरोजगारों को रोजगार दिलाने के मकसद से दीदी ने एक आनलाइन एम्प्लायमेंट बैंक भी खोला है। जंगलमहल में माओवादी समस्या से निपटने के लिए भी उन्होंने बेरोजगारी मिटाने का कार्यभार तय करते हुए एम्प्लायमेंट बैंक के जरिये सबको रोजगार दिलाने का वायदा किया था पिछले अक्तूबर में ही।आंकड़ों में स्वयं दीदी की ज्यादा आस्था नहीं है।इसलिए आंकड़ों में जबरदस्त अंतरविरोध को नजरअंदाज कर भी दिया जाये तो एक करोड़ रोजगार सृजन का लक्ष्य घोषित किये जाने के बाद रोजगार के मामले में उनकी ओर से हथियार डाल देने और फिर निजी क्षेत्र में रोजगार दिलाने का वायदा करने की पैंतरेबाजी पहेली जैसी लग रही है। चुनाव से पहले बाहैसियत विपक्ष की नेता दीदी ने राज्य में पचपन हजार से ज्यादा बंद कल कारखाने दोबारा खोलने का वायदा किया था। फिर परिवर्तन की सरकार बनने के बाद उनकी सरकार ने स्वरोजगार का बीड़ा उठाया। कुटीर उद्योग और मंझोले उद्योगों को प्रोत्साहन देकर बेरोजगारी की समस्या सुलझाने के सपने दिखाये। सरकार ने भूमि अधिग्रहण के बदले नौकरी देने का वायदा भी किया। इस मामले में रेल मंत्रालय उनके हाथों में तुरुप का पत्ता था, पर एफडीआई जिहाद के चलते केंद्र सरकार से हटने के बाद नये रेल राज्य मंत्री बने राज्य के ही वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने जमीन के बदले रेलवे में नौकरी दोने की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया। वैसे तृणमुल राज में रेलवे में बंगाल के कितने बोरोजगारों को नौकरी मिली , इसका कोई आंकड़ा अभी उपलब्ध नहीं है।
प्रथमिक शिक्षकों की ३४ हजार रिक्तियों को भरने की प्रक्रिया शुरु करके सरकार ने बहरहाल बड़े पैमाने पर रोजगार की उम्मीद जगायी थी, जो अब अदालती पचड़े में खटाई में है। राज्य सरकार की माली हालत इतनी खस्ती है कि मौजूदा कर्मचारियों को वेतन देने में कुल राजस्व आय नाकाफी है।कर्मचारियों को वेतन बाजार की उधारी पर निर्भर है। जाहिर है रिक्तियों को भरने की हैसियत में ही नहीं है सरकार। नये पदों का सृजन तो एकदम असंभव है। देर से ही सही, जादू की छड़ी घुमाकर एक करोड़ रोजगार सृजन के वायदे की असलियत को दीदी शायद समझने लगी हैं। पर निजी क्षेत्र में नौकरियां कहां से आयेंगी?तृणमूल कांग्रेस ने संसद के दोनों सदनों में इसका कड़ा विरोध किया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में एफडीआइ का प्रवेश हरगिज होने नहीं देगी।
निवेश की कमी से जूझ रहे पश्चिम बंगाल में खुदरा क्षेत्र बेरोजगारी दूर करने में अहम भूमिका निभा रहा है। रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार ममता बनर्जी के प्रदेश में इस क्षेत्र ने करीब 40,000 युवाओं को रोजगार मुहैया करवाया है। इन लोगों को लगभग 6,000-10,000 रुपये प्रति माह मिल रहे हैं। कोलकाता बिग बाजार, स्पेंसर्र्स, मोर और इसी तरह के कई अन्य खुदरा कंपनियों के आउटलेट से पटा पड़ा है। इतना ही नहीं, ये अब उन क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं जहां पर इनकी पहुंच कम है।चूंकि दीदी खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी के विरोध मे हैं. यह आंकड़ा उनके काम का नहीं है। वे रीटेल में रोजगार सृजन के बारे में सोच भी नहीं सकतीं।रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार खुदरा क्षेत्र में रोजगार सालाना 15-20 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। हालांकि राजगोपालन इस बात से सहमत हैं कि प्रवेश स्तर पर अपेक्षित वेतन नहीं मिलता है। पिछले साल इस क्षेत्र में 3.5 लाख नई नौकरियां आई हैं। हालांकि यह अलग बात है कि कुछ राजनेताओं का मानना है कि विदेशी खुदरा कंपनियां ये नौकरियां लील जाएंगी। राजगोपालन कहते हैं, 'खुदरा क्षेत्र में प्रवेश स्तर पर मोटे वेतन की उम्मीद नहीं की जाती है। हालांकि अनुभवी लोगों की यहां सख्त कमी है। ऐसे भी मौके आए हैं जब महज स्नातक पास लोग क्षेत्रीय प्रमुख के स्तर तक पहुंचे हैं।' बहु-ब्रांड खुदरा में पर्याप्त प्रावधान नहीं होने की स्थिति में एफडीआई की अनुमति से रिटेल, लॉजिस्टिक्स, एग्रीकल्चर और मैन्युफैक्चरिंग से बड़े पैमाने पर लोगों का विस्थापन होगा।
बंगाल में बेरोजगारी की समस्या कोई नयी नहीं है। वाममोर्चा राज में करीब पचपन हदजार औद्योगिक इकाइयों के बंद हो जाने और नये उद्योग न लगने की वजह से सअतिति और गंभीर हो गयी। हालत यह हो गयी कि साछ और सत्तर के दशक की तरह सरकारी नौकरी की तलाश में मारे मारे भटकने वाले बेरोजगार पीढियों ने स्वरोजगार का रास्ता अपना लिया। अब रोजगार कार्यालयों में पंजीकरण के लिए वैसी मारामारी भी नहीं होती।
दीदी के बयान से जाहिर है कि पंजीकृत बेरोजगारों की तुलना में राज्य में बेरोजगारों की असली संख्या दस बीस गुमा ज्यादा है। पर कामरेड ज्योति बसु ने अपने राजकाज के दौरान कैडरों और पार्टीबद्ध समर्थकों के खाने कमाने के रास्ते तो बना दिये, रोजगार सृजन की कोशिश नहीं की। उलटे चाली पचपन हजार औद्योगिक इकाइयां बंद हो जाने से बेरोजगारी की समस्या विकराल हो गयी। बुद्धदेव भट्टाचार्य ने गद्दी संभालते ही इस समस्या के सामाधान के लिए अंधाधुंध शहरीकरण, औद्योगीकरण और पूंजीवादी विकास का विकल्प अपनाया। पार्टी भी उनके साथ खड़ी हो गयी। लेकिन उद्योगों ौर कारोबार पर राजनीतिक वर्चस्व खत्म करने की कोई पहल ही उन्होंने नहीं की। विकास के लिए पार्टी के जनाधार और कैडर वाहिनी पर भरोसा ज्यादा किया। उन्होंने सलेम को बुलाकर रोजगार पैदा करने की कोशिश की। सिंगुर में टाटा मोटर्स का कारखाना लगाने की परियोजना शुरु की। नन्दीग्राम में कैमिकल हब बनाने और राज्यभर में पुराने उद्योगों को पुनर्जीवित किये बिना नये उद्योग लगाने के लिए सेज अभियान चलाया। विधानसभा में निरंकुश बहुमत के जरिये जनभावना की परवाह न करते हुए विकास के लिए उन्होंने दमन का रास्ता अपनाया। जिससे न विकास हुआ और न रोजगार सृजन। वामशासन का ही अंत हो गया। अतिवादी दृष्टि से उद्योग और कारोबार का जनाधार बनाये बिना बंगाल में ौद्योगिक क्रान्ति का दांव उलटा पड़ गया। चूंकि जमीन अधिग्रहणविरोधी आंदोलन के मारफत उनका राजतिलक हुआ, इसलिए अपना जनाधार बनाये रखने के लिए वे जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत पर नहीं करेंगी। इसके बजाय वे माकपाइयों की तरह ही अपने जनसमर्थन और विधानसभा में बहुमत के दम पर विकास और रोजगार की समस्याएं सुलझाने का अतिवादी दृष्टि लेकर चल रही हैं।
वाममोर्चे की सरकार ने, न सिर्फ बुद्धदेव बल्कि अपने कार्यकाल के आखिरी दौर में दिवंगत ज्योति बसु ने भी राज्य में निवेश के लिे खूब प्रयत्न किये थे। लेकिन राजनीतिक वर्चस्व खत्म करके उद्योग और कारोबार के लिए अनुकूल माहौल बनाने में वे नाकाम हो गये। अब दीदी भी पूरी ताकत से राज्य में निवे आकर्षित करने की कोशिश कर रही है। पर मुख्मंत्री के बजाय जिहादी औरर आंदोलनकारी तेवर की वजह से उद्योग जगत उनपर भरसा करने को तैयार नहीं है। सिंगुर से टाटा की वापसी उनके लिए सरदर्द का सबब बन गया है। अब तो सिंगुर के अनि्च्छुक किसान भी मुआवजा लेकर सिंगुर में कारखाना चाहते हैं।
पूरे देश में सरकारी नौकरी की संभावना लगभग शून्य है। खुला बाजार की अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के अलावा नौकरी का विकल्प है ही नहीं। दूसरे राज्यों के नेता इस हकीकत को समझते हुए आर्थिक नीतियं के विरोध के बावजूद अर्थ व्यवस्था की रीति के मुताबिक अपने अपने राज्य में रोजगार सृजन का अवसर बनाने में लगे हुए हैं। वाममोर्चा की आर्थिक नीतियों के विपरीत बुद्धदेव ने भी अर्थव्यवस्था के मुताबिक रोजगार और विकास के रास्ते खोजने शुरू किये और अंततः राजनीतिक भूलभूलैय्या में फंसकर रह गये। आशंका है कि दीदी की नियति भी उन्हें उसी दिशा में ले जा रही है। जादू की छड़ी उनके पास है नहीं। वे खुद भी वक्त बेवक्त इसे मान लेती हैं। पर विकास और रोजगार की समस्याओं के यथार्थवादी समाधान के बजाय वे हवाई जादू की छड़ी घुमाने से परहेज भी नहीं कर रही हैं।
पूरे भारत में सबसे अधिक पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या पश्चिम बंगाल में ही है। इसे 34 साल की वाममोर्चा सरकार की "महत्वपूर्ण उपलब्धि" कहा जा सकता है। प. बंगाल में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या लगभग 64 लाख है। यह आंकड़ा केन्द्रीय श्रम मंत्रालय ने प्रस्तुत किया है। आंकड़ों के अनुसार 31 मई, 2010 तक प. बंगाल के रोजगार केन्द्रों में दर्ज किए गए बेराजगारों की संख्या 63 लाख 96 हजार 900 है। राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में केन्द्रीय श्रम मंत्री मल्लिकार्जुन खडगे ने यह जानकारी दी है। उनके द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार सन् 2007 से 2009 तक पश्चिम बंगाल में कुछ 13,000 से कुछ कम बेरोजगारों को रोजगार मिला। सन् 2007 में 5,300, सन् 2008 में 5,100 एवं सन् 2009 में 2900 बेरोजगारों को नौकरी मिली। इसकी तुलना में बेरोजगारों को काम दिलवाने में बंगाल से बहुत आगे है गुजरात। मजदूरों की सरकार का दावा करने वाली प. बंगाल सरकार से एकदम अलग और लगातार विरोधियों के निशाने पर रहने वाली गुजरात सरकार की प्रशंसा तो अब हर कोई कर रहा है। केन्द्रीय श्रम मंत्रालय के अनुसार गुजरात राज्य सरकार ने 2007 में 1 लाख 78 हजार 300, 2008 में 2 लाख 17 हजार 700 एवं 2009 में 1 लाख 53 हजार 500 लोगों को रोजगार प्रदान किया गया। द्रमुक के सांसद कानीमोजी द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में केन्द्रीय श्रममंत्री ने बताया कि पूरे देश के रोजगार केन्द्रों में नाम दर्ज कराने वाले बेरोजगारों की संख्या 3 करोड़ 78 लाख 86 हजार 500 है। प. बंगाल के बाद दूसरे नम्बर पर तमिलनाडु में 55 लाख 65 हजार, केरल में 42 लाख 75 हजार, महाराष्ट्र में 30 लाख 14 हजार 300, उत्तर प्रदेश में 20 लाख 18 हजार, मध्य प्रदेश में 19 लाख 46 हजार 100 और आन्ध्र प्रदेश में 19 लाख 4 हजार 700 बेरोजगार हैं।
भारत में स्व रोजगार (सेल्फ एंप्लॉइड) को तवज्जो देने वालों की तादाद बढ़ रही है। दुनियाभर में छाई आर्थिक मंदी का असर भारत में नौकरियों पर भी पड़ा है। लेबर ब्यूरो ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में बेरोजगारी दर 3.8 फीसदी है। रिपोर्ट से सामने आईं जानकारियों पर एक नजर:-
बिहार, बंगाल बेरोजगारी में अव्वल
बिहार में सबसे ज्यादा बेरोजगार हैं। इसके बाद आता है पश्चिम बंगाल का नंबर। बिहार में प्रति हजार 83 लोग बेरोजगार हैं, जबकि बंगाल में यह संख्या 78 है।रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में बेरोजगार ज्यादा हैं। देशभर के आंकड़े देखें तो जहां हजार में 20 पुरुष बेरोजगार हैं, वहीं महिलाओं की संख्या 69 है।
सेंटर फार एजुकेशन एंड कम्युनिकेशन, दिल्ली और प. बंगाल के चाय बागानों के मजदूर संगठनों ने मिलकर एक सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण के अनुसार मार्च, 2002 से फरवरी, 2004 तक केवल 24 महीनों में उत्तरी बंगाल के चार चाय बागानों में 300 मजदूरों की मौत हुई। 27 चाय बागान तो पूरी तरह उजड़ गए हैं, वहां मजदूरों के लिए कोई काम ही नहीं बचा है। बाकी बचे 23 चाय बागानों में भी पिछले दस महीने से कोई काम न होने के कारण हजारों की संख्या में मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। उत्तरी बंगाल में लगभग 350 चाय बागान संगठित क्षेत्र में आते हैं, जिनमें दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी और दिनाजपुर जिले के चाय बागान शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि प. बंगाल भारत का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है। यहां इस उद्योग से तीन लाख से ज्यादा मजदूरों की रोजी-रोटी चलती है, इनमें से अधिकांश वनवासी हैं। उक्त सर्वेक्षण में कहा गया है कि आज जबकि हिन्दुस्तान लीवर, वारेन, डंकन, गुडरिक जैसी बड़ी-बड़ी कम्पनियां चाय बागानों से भारी मुनाफा कमा रही हैं, छोटे चाय बागानों की स्थिति दयनीय होती जा रही है। उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
Friday, December 21, 2012
जादू की छड़ी उनके पास है नहीं। पर रोजगार और विकास के लिए छड़ी घुमा रही हैं दीदी!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Followers
Blog Archive
-
▼
2012
(6784)
-
▼
December
(170)
- Fiscal cliff deadline looms after weekend of talks...
- ধর্ষণ আটকাতে হলে ত সবার আগে বন্ধ করতে হয় বাজারের আ...
- Fwd: [initiative-india] Thousands of Mumbaiwallas ...
- Fwd: Massive Demonstrations have Caused Great Pani...
- Fwd: AID Mourns the Death of Amanat and Calls for ...
- Fwd: Michel Chossudovsky: "Wiping Countries Off th...
- Imminent Massive Earthquake in the Himalayan Region
- आने दो भूकंप को , किसे परवाह है? लहूलुहान हिमालय ...
- Scientists have warned of more great earthquakes -...
- बंगाल में बलात्कार के अपराधी पकड़े नहीं जाते, बारा...
- মেয়েরক্তস্নাত এই উপমহাদেশ, মোমের আলোয় মুছে যাবে কি...
- Fwd: [initiative-india] Fwd: Celebration of strugg...
- दिवालिया सरकार का गंगासागर में करोड़ों के खर्च से ...
- बंगाल में अब लाटरी से शिक्षा!
- जॉब मार्केट में अब भी मायूसी! बीमा , भविष्य निधि औ...
- http://basantipurtimes.blogspot.in/ ভারতবর্ষ কি শে...
- Terrorism Investigation: Unbiased Approach ISP IV ...
- Fwd: : Silent March from Mandi House to Jantar Man...
- Fwd: [initiative-india] As we Mourn her Death, Str...
- सत्ता की राजनीति बलात्कार संस्कृति ही तो है और यह ...
- राष्ट्रपति बनने के बाद भी प्रणव मुखर्जी आर्थिक सुध...
- Final attempt to hammer a deal and the final hamme...
- গণধর্ষণেই সীমাবদ্ধ তথ্য জানানোর দায়, অন্যদিকে সাধা...
- Fwd: No DM, SP in Naxal-hit Sonbhadra
- Fwd: [initiative-india] Fwd: Join Stormy struggle ...
- Fwd: Ismail Salami: Washington's Dilemma - The "Go...
- रतन टाटा रिटायर हो गये!साइरस मिस्त्री ने संभाली कमान।
- डीजल होगा बेहद मंहगा! सुधारों के लिए बेहद जरुरी तम...
- দেশের সার্বিক উন্নয়নের লক্ষ্যে আরও বেশকিছু দাওয়াই ...
- Fwd: TODAY DECEMBER XXV, DR. AMBEDKAR AND THE BURN...
- Fwd: [initiative-india] Fourth Day of Indefinite f...
- Fwd: (हस्तक्षेप.कॉम) This is victory of CIA & “mis...
- Fwd: 8 yrs old Traumatized for drawing Hindu Swast...
- 22,000 करोड़ रु मूल्य के रक्षा सौदे,अमेरिकी वर्चस्...
- দিল্লীতে গণধর্ষণ নিয়ে কংগ্রেস বিজেপি জোটের গট আপ গ...
- आंदोलन के साझा खेल में बुरी फंसी कांग्रेस!जो सरकार...
- अभी और कड़े कदम!निवेशकों की संपत्ति 27 प्रतिशत इजाफा।
- 'কত হাজার ধর্ষণ হলে মানবে তুমি শেষে?'বিপ্লব হল বাঙ...
- Fwd: Fw: Bandhs won't help . . . mobilize masses t...
- Fwd: Fw: Why should Indian farmers commit suicide ...
- DHARNA ANDOLAN IN MAHARASHTRA 17 DEC 2012
- कैसे निकले कोई गंगा कहीं से?
- কর্তৃত্ব ও শাসকশ্রেনী, পেশীশক্তি, ক্ষমতা, মুক্ত বা...
- बीमा पर शेयर बाजार के शिकंज के खिलाफ उद्योग मंडल व...
- जहां रेल यात्रा रोजमर्रे की नरक यंत्रणा है!
- शिक्षा अंधायुग में अंधेरनगरी, टका सेर पास टका सेर ...
- अमेरिकी फिस्कल क्लिफ का साया गहराने लगा!भारतीय अर्...
- जादू की छड़ी उनके पास है नहीं। पर रोजगार और विकास ...
- বিগত দুদশক উদার অর্থনীতির দোসর যে উগ্রতম জাতীয়তাবা...
- Fwd: सुनेगी जो सच , तिलमिलाएगी दिल्ली !
- Fwd: James F. Tracy: The Newtown School Tragedy: M...
- Fwd: बनास जन-4
- खुदरा में अंदेशे क्यों हैं
- मोदी की शह और मात
- क्या कांग्रेस भाजपा के खेल में मायावती भी शामिल?
- Modi could not be stopped as Indian politics has n...
- শিক্ষাক্ষেত্রে নিরন্কুশ দলবাজী, পেশীশক্তি ধনবলের আ...
- सुधारों पर सर्वदलीय सहमति के बावजूद बाजार के लिए आ...
- রাজ্যসভায় পাশ সংরক্ষণ বিল, তফসিলিদের জীবন যাত্রা ...
- ধর্ষণে দু’নম্বরে, নারী নির্যাতনে শীর্ষে বাংলা
- Fwd: दुआ गौहर रज़ा
- सुधार के एजंडे को लागू करने में अंबेडरकरवादी बड़े ...
- Reservation politics turned the tide as expected.L...
- অথচ সারা দেশে নারী কোথাও নিরাপদ নয়, যেহেতু পুরুষতা...
- Fwd: आखिर उग्रतम हिंदू राष्ट्रवाद चाहता क्या है?
- Fwd: [initiative-india] Dec 18 : A Discussion on D...
- Fwd: Michel Chossudovsky: Military Escalation, Dan...
- अब लाबिइंग इसके लिए तेज है कि भारत में भी कारपोरेट...
- पहचान की राजनीति मजबूत करने में आखिर उग्रतम हिंदू ...
- যে অস্ত্রসম্ভার মার্কিন অর্থব্যবস্থার মুল ভিত্তি, ...
- Fwd: Babri Demolition: Two Decades Lateer ISP III ...
- अब हम इस मृत्यु उपत्यका से भागकर जाये तो कहां जा...
- We, the mango people have so many saviours! The Aa...
- প্রশ্ন হল, সত্যিই কি তিনি আর্থিক সংস্কারের বিরুদ্ধ...
- पूरी युवा पीढ़ी प्राथमिक शिक्षक की नौकरी से ही वंच...
- आर्थिक सुधार की गाड़ी यहीं नहीं रुकने वाली!कड़वी दव...
- Chidambaram prescribes bitter medicines as Mamata ...
- প্রাথমিক শিক্ষক নিয়োগ সন্ক্রান্ত বিভ্রান্তির জন্য ...
- भूमि अधिग्रहण विधेयक को हरी झंडी! सवाल है कि अब क्...
- Infra Boost!Speedy clearance to projects of Rs 1,0...
- পন্ডিত রবিশন্কর আমাদের ধরা ছোঁযার জগতের বাইরে। বাঙ...
- Fwd: 8 yrs old Traumatized for drawing Hindu Swast...
- Fwd: Palash , I've joined...
- Fwd:
- Fwd: Julie Lévesque: Fabricating WMD "Evidence": I...
- Fwd: Press note & memorendom of dharna in Azamgarh...
- सरकारी आंकड़ों के चमत्कार का यह अद्भुत नजारा!बैंकि...
- সর্বনাশের, অভূতপূর্ব হিংসার অশনিসংকেত চারিদিকে।ডার...
- किसके लिए बना उत्तराखण्ड ?
- Fwd: बिहार के कैमूर भभुआ जिले के बडवान पंचायत में ...
- Fwd: FW: Why developed economies are suffering
- Fwd: Felicity Arbuthnot: Secret Meeting in London ...
- Fwd: [initiative-india] Sangharsh invites to a One...
- WELCOME TO WWB Forget world wrestling federation, ...
- Government to dole out Rs 99,000 cr for flagship s...
- विकास की मरीचिका
- खुला बाजार और बंद दिमाग
- Sitar maestro and Bharat Ratna Pandit Ravi Shankar...
- बंगाल विधानसभा में हिंसा आकस्मक नहीं है, अभूतपूर्व...
- Corporate lobbying is now institutional in India t...
-
▼
December
(170)
No comments:
Post a Comment