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Thursday, December 27, 2012

रतन टाटा रिटायर हो गये!साइरस मिस्त्री ने संभाली कमान।

रतन टाटा रिटायर हो गये!साइरस मिस्त्री ने संभाली कमान।
बंगाल में सिंगुर कारखाना न लगा पाना रतन टाटा जैसे कामयाब उद्योगपति के लिए रिटायर होते हुए शायद अफसोस और सरदर्द का सबसे बड़ा कारण रहा हो!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


पेशे से सिविल इंजीनियर साइरस मिस्त्री के लिए भारतीय कॉरपोरेट जगत के शिखर पुरुष रतन टाटा का स्थान लेना ही सबसे बड़ी चुनौती है। जिंदगी के 75 वर्ष पूरे कर चुके रतन टाटा अपने पद से रिटायर हो गये।बंगाल में सिंगुर कारखाना न लगा पाना रतन टाटा जैसे कामयाब उद्योगपति के लिए रिटायर होते हुए शायद अफसोस और सरदर्द का सबसे बड़ा कारण रहा हो।उनका विदा होना टाटा ग्रुप के लिए एक युगांतकारी घटना है।वो करीब 50 साल से टाटा ग्रुप में है और 21 सालों से चेयरमैन की जिम्मेदारी संभाल रहे थे।रतन टाटा की छवि एक इमानदार बिजनेसमैन के तौर पर रही है और उनके कार्यकाल में न सिर्फ टाटा ग्रुप ने पहली देसी कार इंडिका बनाई बल्कि देश-विदेश में बड़ी कंपनियां भी खरीदीं। इनमें टेटली और जैगुआर-लैंड रोवर का अधिग्रहण प्रमुख है।निश्चित तौर पर वह अपनी इस बात पर कायम रहेंगे कि गलियारे में भटकते भूत की तरह उनकी परछाईं बॉम्बे हाउस पर नहीं मंडराएगी, मगर यह भी पक्का है कि 75 वर्षीय रतन टाटा की रफ्तार कम नहीं होगी। और वह कोलाबा में अपने अपार्टमेंट से महज 40 मीटर की दूरी पर अरब सागर में उठती लहरों को देखने से संतुष्ट नहीं होंगे। रतन टाटा के पूर्ववर्ती जेआरडी टाटा ने 1991 में टाटा संस के चेयरमैन पद और ट्रस्टों पर अपना नियंत्रण छोड़ दिया था, मगर रतन ऐसा नहीं करेंगे। रतन टाटा ट्रस्टों पर नियंत्रण रखेंगे जहां सेवानिवृत्ति की कोई उम्र नहीं है।  यह वो मौका है, जब पूरा भारतीय कॉपरेरेट जगत उनके अनोखे योगदान को याद कर उपयोगी सीख ग्रहण कर सकता है। रतन टाटा ने 1991 में एक ऐसे ग्रुप की कमान संभाली, जिसमें साझा रणनीतिक नजरिए की कमी थी। यह कंपनियों का एक ढीला-ढाला समूह था। रतन टाटा ने अलग-अलग क्षेत्र की कंपनियों को क्षत्रपों से मुक्त कर पूरे ग्रुप को सुसंगत एवं समन्वित रूप दिया। टाटा ने सुनिश्चित किया कि उनके वारिस साइरस मिस्त्री को समूह में ऐसे विरोध का सामना नहीं करना पड़े। इसलिए उन्होंने समूह के कारोबारी राष्ट्रमंडल मॉडल को पहले ही समाप्त कर दिया। इसी मॉडल की वजह से टाटा को अपना काफी समय समूह के भीतर की लड़ाई में गंवाना पड़ा। टाटा समूह के नए वरिस को अपने पूर्ववर्ती का कई बातों के लिए धन्यवाद करना पड़ेगा।वे 21 साल तक टाटा समूह के अध्यक्ष रहे और कई मायनों में उनका कार्यकाल ऐतिहासिक है। टाटा के लिए यह पद संभालना एक चुनौती थी क्योंकि उनके पहले जेआरडी टाटा जैसा विराट व्यक्तित्व टाटा समूह पर छाया हुआ था। टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी के बाद सबसे विख्यात टाटा जेआरडी ही थे और उनकी विरासत को आगे ले जाना और सबकी उम्मीदों पर खरा उतरना बहुत मुश्किल था। टाटा को चुनौती रूसी मोदी जैसे नामी लोगों से भी थी जो एक नए अध्यक्ष को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाए। रतन टाटा कामयाब हुए इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि 1991 में टाटा समूह का कुल कारोबार दस हजार करोड़ रुपये का था जो अब 4,75,000 करोड़ का है यानी लगभग 48 गुना। रतन टाटा तब अध्यक्ष बने जब भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की शुरुआत ही हुई थी। सिर्फ समाजवादी रुझान के लोग ही नहीं, कई उद्योगपति भी यह सोच रहे थे कि उदारीकरण के बाद विदेशी उद्योग व्यापार समूह, भारतीय उद्योगों को खत्म कर देंगे। रतन टाटा ने उदारीकरण को खतरा नहीं, बल्कि संभावना माना और टाटा को एक भारतीय उद्योग समूह से एक विशाल बहुराष्ट्रीय समूह बना दिया। टाटा ने यह पहचाना कि भारत में उद्योगों के विस्तार की अपनी सीमाएं हैं और उदारीकरण का फायदा उठाकर विदेशों में पैर जमाए जा सकते हैं।यह रतन की काबिलियत का ही कमाल है कि आज टाटा समूह करीब पांच लाख करोड़ रुपये [100.09 अरब डॉलर] के कारोबार वाला औद्योगिक घराना बन गया है। वर्ष 1991 में जब उन्होंने जेआरडी टाटा से चेयरमैन का पद संभाला था तब समूह का कारोबार 10 हजार करोड़ रुपये का था। इस ऊंचाई पर पहुंचने के लिए रतन टाटा ने जहां उन कारोबारों को बेचने का फैसला किया जो समूह के पोर्टफोलियो में सटीक नहीं बैठ रहा था। वहीं ब्रिटेन की बेवरेज कंपनी टेटली, लग्जरी कार कंपनी जगुआर लैंडरोवर और एंग्लो डच स्टील कंपनी कोरस के अधिग्रहण ने समूह का कारोबार बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।

टाटा मोटर्स का पंतनगर में 976 एकड़ प्लांट है जहां वर्तमान में कामर्शियल वाहन टाटा ऐश व मैजिक का निर्माण होता है। 2008 में जब नैनो निर्माण के लिए बनाए जा रहे पश्चिम बंगाल के सिंगुर में बखेड़ा होने पर रतन टाटा ने वहां परियोजना बंद करने का कठोर निर्णय लिया तो इस लखटकिया कार को तयशुदा समय पर मुहैया कराने के लिए उन्होंने पंतनगर प्लांट को इसकी जिम्मेदारी सौंपी थी। पंतनगर प्लांट कामर्शियल व्हीकल प्लांट था इसके बावजूद नैनो जैसी पैसेंजर कार को लोगों की उम्मीदों के अनुरूप मुहैया कराने की चुनौती टाटा ने स्वीकार की थी। स्थानीय प्लांट में बेहद गोपनीय तरीके से कार का निर्माण शुरू हुआ।जब टाटा इस प्लांट के दौरे पर आए तो उनका खास ध्यान नैनो के निर्माण पर ही था। उन्होंने अधिकारियों की बैठक लेते हुए कहा था कि नैनो से आम आदमी की उम्मीदें जुड़ी हुई हैं लिहाजा उम्मीदों के अनुरूप इस कार को मुहैया कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। उस दौरान वैश्रि्वक मंदी का दौर चल रहा था, उन्होंने मंदी से न घबराने तथा टाटा उद्योग समूह के मानकों तथा लक्ष्य के अनुरूप उत्पादन जारी रखने पर जोर दिया था।यह अलग बात है कि नैनो निर्माण के लिए टाटा ने बाद में गुजरात के सांणद को चुना।

हाल में तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने उद्योगपतियों के साथ एक बैठक की थी, जिसमें हीरो समूह के संयुक्त प्रबंध निदेशक सुनील मुंजाल बैठक को बीच में ही छोड़कर चले गए थे। इसके बाद औद्योगिक संगठन टाटा समूह को सिंगुर में फिर से लाकर बनर्जी से नरम रुख अपनाने की मांग कर रहे हैं।  सेवानिवृत्त हो रहे टाटा समूह के चैयरमैन रतन टाटा ने कुछ दिन पहले ही सिंगुर की घटना को निराशाजनक बताते हुए पश्चिम बंगाल में फिर से आने का संकेत दिया था। उद्योग संगठनों इसके बाद ही यह मांग की है। वाणिज्य और उद्योग संघ (एसौचेम) मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक पत्र लिखने पर विचार कर रहा है, जिसमें उनसे उद्योग का विश्वास हासिल करने के लिए टाटा को वापस लाने के लिए कहा जाएगा। जबकि बंगाल चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री और भारतीय उद्योग महासंघ (सीआईआई) भी टाटा के साथ मामले का निपटारा चाहते हैं। बनर्जी द्वारा आयोजित एक औद्योगिक बैठक के एक दिन बाद औद्योगिक संगठनों ने यह बात कही है। इस औद्योगिक बैटक में करीब 42 सीईओ और सीएमडी ने हिस्सा लिया था। इसमें हीरो समूह के संयुक्त प्रबंध निदेशक सुनील मुंजाल ने खुदरा में एफडीआई पर टिप्पणी की थी, जिस पर बनर्जी की सुस्त प्रतिक्रिया रही। इस पर मुंजाल के बैठक को छोड़कर जाने के बाद यह काफी चर्चित रही।बैठक से मुंजाल के जाने और सिंगुर में टाटा की वापसी की उद्योग की मांग पर बनर्जी के निकट सहयोगी और सांसद सौगत राय ने कहा, 'पश्चिम बंगाल में मुंजाल द्वारा कोई उद्योग नहीं है, इसलिए हम एफडीआई पर उनकी टिप्पणी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। वहीं अभी हम सिंगुर मसले पर टाटा के साथ न्यायालय के बाहर समझौता करने पर बातचीत नहीं कर रहे हैं।' इस घटना के बाद मुंजाल द्वारा यह कहने की बात कही जा रही है कि उनकी कंपनी की पश्चिम बंगाल में निवेश करने की कोई योजना नहीं है। यह पूछे जाने पर कि क्या संगठन सरकार को एक पत्र लिख रहा है, एसौचेम के महासचिव डी एस रावत ने कहा, 'इससे बंगाल के उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा, क्योंकि टाटा की वापसी से ही राज्य की छवि सुधारी जा सकती है।' बंगाल चैंबर के अध्यक्ष कल्लोल दत्त सिंगुर मसले का न्यायालय से बाहर निपटारा चाहते हैं। दत्त ने कहा, 'राज्य को टाटा के साथ बातचीत शुरू करनी चाहिए और न्यायालय के बार समझौता करने पर विचार करना चाहिए। अन्यथा बंगाल की छवि नहीं सुधारी जा सकती है।'

साइरस को पिछले साल रतन टाटा का उत्तराधिकारी चुना गया था और आधिकारिक तौर पर इस माह की शुरुआत में चेयरमैन नियुक्त कर दिया गया था। शापुर जी पालोन जी ग्रुप के साइरस मिस्त्री की टाटा संस में करीब 18 फीसदी हिस्सेदारी है। देश के विशाल कारोबारी साम्राज्य टाटा समूह की सम्पूर्ण बागडोर रतन टाटा से शुक्रवार को अपने हाथ में लेने जा रहे साइरस मिस्त्री को जानने वालों का कहना है कि वह सादगी पसंद और मामले की तह तक जाने वाले व्यक्ति हैं, जो इतने बड़े कारोबारी साम्राज्य को चलाने के लिए आवश्यक चारित्रिक विशेषता मानी जा सकती है। ब्रिटेन के प्रभावशाली कारोबारी और वारविक मैन्यूफैक्चरिंग के संचालक लॉर्ड सुशांत कुमार भट्टाचार्य, प्रतिष्ठित वकील शिरीन भरुचा और एनए सूनावाला (टाटा संस के उपाध्यक्ष) ने 18 महीने तक की खोज के बाद रतन टाटा के वारिस के रूप में मिस्त्री का चुनाव किया।देश के सबसे बड़े औद्योगिक समूह टाटा संस के नए मुखिया साइरस मिस्त्री को निवर्तमान प्रमुख रतन टाटा से विरासत में अन्य चीजों के अलावा फलता-फूलता साम्राज्य मिला है। विरासत में क्या मिला: मुख्यालय: मुंबई स्थित बॉम्बे हाउस संचालन: छह से अधिक महाद्वीपों एवं 80 से अधिक देशों में. 85 देशों को निर्यात. समूह की कुल आय: 475,721 करोड़ रुपये। 58 फीसदी आय विदेशों से। क्षेत्र: सात प्रमुख क्षेत्र- सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार, इंजीनियरिंग, सेवा, ऊर्जा, केमिकल्स एवं उपभोक्ता उत्पाद. बाजार संचालन: 32 कंपनियां सूचीबद्ध. संयुक्त बाजार पूंजीकरण 88.82 अरब डॉलर।


टाटा टी ने प्रसिद्ध ब्रिटिश चाय कंपनी टेटली के अधिग्रहण का साहसिक फैसला किया जो 50 से ज्यादा देशों में कारोबार करती थी और जिसका आकार टाटा टी से लगभग तीन गुना था। इसी तरह टाटा ने कोरस जैसी बड़ी इस्पात कंपनी को खरीदा। घाटे में चल रही जैगुआर लैंडरोवर को खरीदा और उसे मुनाफे में ला दिया। उन्हें यह भी श्रेय जाता है कि बहुत प्रतिस्पद्र्धी कार बाजार में उन्होंने एक भारतीय कार उद्योग को खड़ा करने का जोखिम लिया और आज टाटा की बनाई कारें दुनिया के कई बाजारों में बिक रही हैं। रतन टाटा के व्यक्तित्व और कारोबार में उस तरह की आक्रामकता है जैसी नए जमाने के अंतरराष्ट्रीय उद्योग -व्यापार के माहौल में चाहिए लेकिन उनमें टाटा नाम के साथ जुड़ी शालीनता भी है। 2जी घोटाले के जुड़े खुलासों में जब टेलीफोन पर बातचीत के टेप सार्वजनिक हुए तो उनमें रतन टाटा की नीरा राडिया की बातचीत भी थी और उससे टाटा की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचा लेकिन शायद टाटा जैसे उद्योग समूह को भी भारत के आर्थिक माहौल में कुछ समझौते करने ही पड़ते हैं।

ऐसे एकाध अपवाद को छोड़कर रतन टाटा ने टाटा समूह की प्रतिष्ठा और सफलता दोनों को इस बदलाव के युग में बखूबी बनाए रखा जब भारतीय अर्थव्यवस्था ने सरकारी नियंत्रण के दौर से उदारीकरण के दौर में कदम रखा। उदारीकरण के बाद कई नामी उद्योग समूह बुरी तरह नाकाम हुए जो लाइसेंस परमिट राज से उबर नहीं पाए, लेकिन बड़े वे उद्योग समूह सफल हुए जो नए जमाने की संभावनाओं के मुताबिक खुद को ढाल पाए। इस दौर में कई नए बड़े उद्योगपति भी आए जिनमें एक तरफ एयरटेल के मित्तल जैसे लोग थे दूसरी तरफ नारायणमूर्ति जैसे लोग थे जिन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी की संभावनाओं को पहचाना। टाटा को इस नए माहौल में भी सम्मान मिला, उन्होंने जहां सूचना प्रौद्योगिकी और सेवा क्षेत्र के साथ भारी उद्योगों में भी में बड़े पैमाने पर अपने उद्योग समूह का विस्तार किया। टाटा समूह अपनी व्यावसायिक श्रेष्ठता और कामयाबी के साथ मूल्यों और मर्यादाओं के लिए भी जाना जाता है और रतन टाटा ने इस परंपरा को आगे ही बढ़ाया है।

टाटा समूह की कंपनियों के बुजुर्ग दिग्गजों से लेकर सिंगुर विवाद का सामना करने वाले रतन टाटा ने कई लड़ाइयां लड़ीं और उनका बखूबी मुकाबला किया। उद्योग जगत और बॉम्बे हाउस के भीतर आरएनटी के नाम से मशहूर टाटा प्रतिकूल परिस्थितियों और चुनौतियों से कभी पीछे नहीं हटे। मन की बात और वह भी सार्वजनिक तौर पर कहने के लिए मशहूर आरएनटी को अपने कार्यकाल में उद्योग जगत, मंत्रियों और मीडिया से कई बार मतभेदों का सामना करना पड़ा।

लंदन के अखबार फाइनैंशियल टाइम्स में हाल में प्रकाशित उनका साक्षात्कार उनके सोचने के तरीके का पुख्ता उदाहरण है। आरएनटी ने उनके हवाले से छपी टिप्पणियों से इनकार किया और अखबार पर भारत में कारोबारी माहौल के मुद्दे को ज्यादा संवेदनशील बनाकर पेश करने का आरोप लगाया। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब उन्होंने मीडिया पर अपनी टिप्पणियों को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाया है। पिछले साल द टाइम्स, लंदन को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई थी कि क्यों अरबपति मुकेश अंबानी दक्षिण मुंबई में 1 अरब डॉलर के घर में रहना चाहेंगे। अपनी जानी-पहचानी शैली में उन्होंने इस टिप्पणी का बाद में खंडन किया।

भारतीय उद्योग जगत के कई लोगों का मानना है कि रतन टाटा का मामला थोड़ा हटकर है। उनका कहना है कि वह यह तय नहीं कर सकते कि उन्हें नए युग के आक्रामक कारोबारी समूहों जैसे रिलायंस या अदाणी की तरह काम करना है या टाटा समूह के पुराने ढर्रे पर ही काम करना है। राज्य सभा सदस्य राजीव चंद्रशेखर कहते हैं, 'टाटा समूह किसी अन्य कारोबारी समूह की तरह अपने पूंजी निवेश पर अधिक से अधिक प्रतिफल अर्जित करना चाहता है, वहीं दूसरी ओर पुराने ढर्रे पर सहजता से कारोबार भी करना चाहता है। समूह इन दोनों के बीच में फंसा है।'

दूसरे उद्योग समूहों के प्रमुख अपने प्रतिस्पर्धियों से निपटने में संयमित रवैया अपनाते हैं वहीं आरएनटी अपने विरोधियों से सीधे निपटते हैं। टाटा से जुड़े कुछ ऐसे बड़े विवादों की चर्चा नीचे की गई है :

पुराने धुरंधरों से लड़ाई
1991 में जेआरडी की विरासत संभालने के बाद उनकी पहली लड़ाई समूह के भीतर ही हुई। टाटा समूह के चेयरमैन पद के लिए आरएनटी अकेले उम्मीदवार नहीं थे। इस पद के लिए उन्हें चुनौती देने वालों में रूसी मोदी, अजित केरकर और दरबारी सेठ जैसे दिग्गज भी होड़ में थे। जेआरडी के कार्यकाल के दौरान टाटा समूह उन कंपनियों का एक कमजोर संगठन था जिनके प्रमुख अपनी कंपनी का स्वतंत्र प्रभार संभालते थे। चूंकि, रूसी मोदी चेयरमैन पद की होड़ में आरएनटी से पिछड़ गए थे इसलिए वह नए चेयरमैन के तहत काम करने के लिए तैयार नहीं थे। इन बुजुर्ग क्षत्रपों से मिल रही चुनौतियों को समाप्त करने के लिए आरएनटी ने कार्यकारी चेयरमैन की सेवानिवृत्ति उम्र 65 वर्ष तय कर दी।

दूरसंचार विवाद
आरएनटी ने जितनी लड़ाइयां लड़ी हैं उनमें दूरसंचार विवाद सबसे कठिन रहा है। उस समय टाटा और रिलायंस जैसे बड़े समूहों ने इस कारोबार में कदम रखने का फैसला किया जबकि इस क्षेत्र में पहले से मौजूदा कंपनियां अच्छा कारोबार कर रही थीं। इस कारोबार में शामिल होने से लेकर तकनीक के चयन तक टाटा को जीएसएम खेमे से लड़ाई लडऩी पड़ी।   

सिंगुर विवाद
पश्चिम बंगाल के औद्योगीकरण में नैनो परियोजना नया अध्याय साबित होने वाली थी लेकिन यह परवान नहीं चढ़ पाई। 3 अक्टूबर 2008 को टाटा समूह ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के विरोध के बाद राज्य से कूच करने का फैसला किया।

बिजली क्षेत्र
दूरसंचार क्षेत्र की तरह बिजली क्षेत्र में भी टाटा को कई कारोबारी समूहों से दो-दो हाथ करने पड़े। इस कारोबार में उन्हें अनिल अंबानी की बिजली कंपनियों से विरोध का सामना करना पड़ा। चाहे बात मुंबई के उपभोक्ताओं की हो या अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट्स की, आरएनटी ने इस कारोबार में अपने विरोधियों से निपटने के लिए कानून का सहारा लिया। रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने टाटा पावर पर अपने ग्राहकों को लुभाने का आरोप लगाया जबकि टाटा पावर ने कई साल से जमा बकाया रकम की मांग की।

नीरा राडिया टेप विवाद
आरएनटी की नजदीकी और जनसंपर्क कंपनी वैष्णवी कम्युनिकेशंस की मालिक नीरा राडिया की कुछ पत्रकारों और सरकारी अधिकारियों से बातचीत का टेप सार्वजनिक होने के बाद वह विवाद में घिर गए। टेप सार्वजनिक होने का मुद्दा राष्ट्रीय बन गया जिसके बाद आरएनटी ने कहा कि 2जी विवाद से ध्यान हटाने के मकसद से ऐसा किया गया है।

रतन टाटा की अगुवाई में टाटा समूह के मुख्य पड़ाव - रतन टाटा के 21 साल के कार्यकाल में टाटा समूह का राजस्व 14,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 4.75 लाख करोड़ रुपये हो गया। आज छह महादेशों के 80 देशों में समूह की एक सौ से ज्यादा कंपनियां हैं।

मार्च 1991 रतन टाटा ने टाटा समूह के चेयरमैन के तौर पर कार्यभार संभाला
1996 टाटा टेलीसर्विसेज की स्थापना के साथ समूह का टेलीकॉम सेक्टर में प्रवेश

1998 भारत की पहली घरेलू स्तर पर डिजाइन और तैयार की गई कार इंडिका लांच। इसी के साथ समूह का पैसेंजर कार सेगमेंट में प्रवेश

2000 टाटा टी (अब टाटा ग्लोबल बेवरेजेज) ने यूके की कंपनी टेटली ग्रुप का अधिग्रहण किया

2001 टाटा ग्रुप और एआईजी के बीच जेवी के जरिए समूह का बीमा क्षेत्र में प्रवेश

2002 टाटा संस ने वीएसएनएल (अब टाटा कम्युनिकेशंस) में बहुमत हिस्सेदारी खरीदी

2003 टीसीएस एक अरब डॉलर के राजस्व वाली पहली भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनी बनी

2004 टाटा मोटर्स की न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टिंग, द. कोरिया की देवू मोटर्स का अधिग्रहण, टीसीएस 1.2 अरब डॉलर का आईपीओ लेकर आई

2005 टाटा स्टील ने सिंगापुर की नेटस्टील का अधिग्रहण किया

2006 टाटा स्काई लांच, टाटा केमिकल्स ने ब्रुनर मोंड ग्रुप, यूके का अधिग्रहण किया, मल्टीब्रांड आउटलेट चेन क्रोमा लांच

2007एंग्लो-डच कंपनी कोरस का अधिग्रहण कर टाटा स्टील दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी स्टील उत्पादक कंपनी बनी, टीसीएस ने चीन में रखे कदम, टाटा कैपिटल के जरिए फाइनेंस सेक्टर में उतरा समूह

2008 आम आदमी की कार टाटा नैनो 10 जनवरी को लांच। टाटा मोटर्स ने फोर्ड मोटर कंपनी से जगुआर एवं लैंडरोवर ब्रांड खरीदा

2009 नैनो की कॉमर्शियल लांचिंग, टाटा टेली. ने देशभर में जीएसएम सेवा शुरू की, जगुआर लैंडरोवर के प्रीमियम रेंज भारत में लांच

2010 पश्चिम बंगाल में विरोध के बाद गुजरात के साणंद में नैनो का नया प्लांट

23 नवं 2011 साइरस मिी टाटा समूह के नए चेयरमैन चुने गए, इसके साथ ही उन्हें टाटा संस के डिप्टी चेयरमैन का पदभार सौंपा गया

28 दिसं 2012 रतन टाटा की रिटायरमेंट, समूह की जिम्मेदारी साइरस मिी के हाथों में

शीर्ष की ओर
* 1962 : जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील के प्लांट में काम शुरू किया
* 1981 : जेआरडी टाटा ने रतन टाटा को टाटा इंडस्ट्रीज का चेयरमैन नियुक्त किया
* 1991 : रतन टाटा को टाटा समूह का चेयरमैन नियुक्त किया गया
* 28 दिसंबर 2012 50 वर्षों के लंबे कार्यकाल पर रतन टाटा ने विराम लगाया

साइरस मिी की चुनौतियां
* समूह के 80 देशों में फैले 100 अरब डॉलर से अधिक के कारोबार को आगे बढ़ाना।
* वित्त वर्ष 2006 से 2012 के दौरान रतन टाटा समूह के बिजनेस को 96.7 हजार करोड़ से 4.75 लाख करोड़ तक ले गए। यानी लगभग पांच गुना। साइरस के लिए इसे दोहराना मुश्किल होगा।
* टीसीएस को चीन, जापान, लैटिन अमेरिका, यूरोप में स्थापित करने की चुनौती।
* पैसेंजर कार सेगमेंट में टाटा मोटर्स का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है, इसे सुधारने की चुनौती।
* कोरस के अधिग्रहण के बाद से टाटा स्टील कर्ज के भारी दबाव में है। अभी कर्ज 12 अरब डॉलर के करीब है, विश्व आर्थिक संकट के मद्देनजर इसे निपटाने की चुनौती।
* महंगे आयातित कोयले के कारण मंूदड़ा में टाटा पावर का यूएमपीपी अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। लागत बढऩे के साथ मिी बिजली टैरिफ बढ़वा पाते हैं या नहीं।
* बिजली जैसे अत्यधिक पूंजी वाले सेक्टर के लिए पैसे जुटाना भी एक चुनौती है। खासकर ऐसे माहौल में जब बैंक और वित्तीय संस्थान बिजली कंपनियों को कर्ज देने से कतरा रहे हैं।
* ताज ब्रांड के तहत आने वाले ज्यादातर होटलों की लाभप्रदता दबाव में है। इसे सुधारने की चुनौती।
* समूह का रिटेल और हाउसिंग बिजनेस अपेक्षाकृत नया है, इसे आगे ले जाने की चुनौती।

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