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Monday, December 24, 2012

22,000 करोड़ रु मूल्य के रक्षा सौदे,अमेरिकी वर्चस्व के बावजूद, इजराइल की रक्षा क्षेत्र में​​ बढ़ती भागेदीरी के बावजूद रक्षा क्षेत्र में भारत रूस मैत्री जस की तस!

22,000 करोड़ रु मूल्य के रक्षा सौदे,अमेरिकी वर्चस्व के बावजूद, इजराइल की रक्षा क्षेत्र में​​ बढ़ती भागेदीरी के बावजूद रक्षा क्षेत्र में भारत रूस मैत्री जस की तस!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

सोवियत अवसान के बाद भारत अमेरिका परमाणु समझौता और सैन्य सहयोग, अमेरिकी वर्चस्व के बावजूद, इजराइल की रक्षा क्षेत्र में​​ बढ़ती भागेदीरी के बावजूद रक्षा क्षेत्र में भारत रूस मैत्री जस की तस है, मनमोहन पुतिन शिखर बैठक का यह नतीजा है।भारत और रूस के बीच कई अरब डॉलरों का रक्षा समझौता हुआ है। एक दिन के लिए भारत आए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ कई समझौतों पर दस्तखत किए, लेकिन दोस्ती में पुराना और पक्का रंग नहीं दिखा।भारत और रूस ने रविवार को दस बड़े समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें करीब 22,000 करोड़ रु मूल्य के रक्षा सौदे शामिल हैं।दोनों देशों की शिखर बैठक में विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत चर्चा के बाद इन समझौतों पर हस्ताक्षर किए। एक समझौते के तहत रूस भारत को 42 अत्याधुनिक सुखोई- 30एमकेआई लड़ाकू विमान देगा. विमान भारतीय लाइसेंस के मुताबिक बनाएं जाएंगे। भारतीय वायुसेना के पास अभी 150 सुखोई- 30एमकेआई हैं। 2019 तक भारत इनकी संख्या 272 करना चाहता है।रूस भारत को 71 एमआई- 17वी5 लड़ाकू हेलीकॉप्टर भी बेचेगा। विश्लेषकों के अनुसार ये सौदे करीब तीन अरब डॉलर के हैं। भारत की एल्कॉम सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड और रूस की वेरटोलेती रासी कंपनी साझा उपक्रम के तहत भारत में रूसी हेलीकॉप्टर बनाएंगी। भारत अगले 10 साल में अपनी सेना के आधुनिकीकरण पर 100 अरब डॉलर खर्च करने वाला है। अमेरिका, यूरोप और रूस चाहते हैं कि उन्हें भारत के बजट से ज्यादा से ज्यादा रकम मिले। भारतीय सेना के ज्यादातर उपकरण इस वक्त सोवियत संघ के जमाने के हैं।रक्षा सौदों में 71 एमआई-17वी-5 हेलीकाप्टरों की आपूर्ति तथा एसयू-30एमकेआई विमान लाइसेंसशुदा उत्पादन के लिए 42 प्रौद्योगिकीय किटों की आपूर्ति का अनुबंध है। रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने यहां बताया कि शुक्रवार को ब्रह्मोस एयरोस्पेस, रसियन रोसोबोरोनइक्सपोर्ट और सुखोई डिजाइन ब्यूरो ने मिसाइल के हवाई संस्करण विकास के लिये एक समझौता किया। यह मिसाइल 290 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती है।वैसे तो भारत और रूस के सम्बन्ध शुरुआत से ही मैत्रिक बने हुए हैं लेकिन बीता हुआ पिछला साल दो देशों के लिए आसान या सहज नहीं था। अनेक संयुक्त परियोजनाओं को लेकर दोनों देशों के संबंधों को लेकर कई सवाल एकत्र हो गए थें। कई ऐसे समझौते थे जो उस समय पूरे नहीं किये जा सकें थे।समझौतों पर दस्तखत के बाद भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, "अपनी सेना के आधुनिकीकरण और रक्षा की तैयारियों को चौकस करने में रूस हमारा अहम साझेदार है।" भारत अपनी जरूरत के 60-70 फीसदी रक्षा उपकरण रूस से खरीदता है. दोनों देशों के बीच कई संयुक्त उपक्रम भी चल रहे हैं। सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस भी नई दिल्ली और मॉस्को का साझा उपक्रम है। पुतिन के दिल्ली पहुंचने से एक दिन पहले दोनों देशों के लड़ाकू विमानों में तैनात की जा सकने वाली ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइलें बनाने की संधि हुई।आतंकवाद और सीमापार से संगठित अपराधों के ख़िलाफ़ संघर्ष के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के बारे में रूस के राष्ट्रपति के विशेष प्रतिनिधि अलेक्सान्दर ज़्मेयेव्स्की का कहना है कि आतंकवाद, मादक-पदार्थों की तस्करी और अन्य चुनौतियों व ख़तरों के ख़िलाफ़ रूस और भारत के बीच आपसी सहयोग बढ़ता जा रहा है।रूसी वायुसेना के लिए तैयार किए जा रहे पांचवीं पीढ़ी के विध्वंसक विमान के राजकीय परीक्षण मार्च 2013 में आरंभ होंगे| अगले साल के अंत तक आठ विमानों को इन परीक्षणों में लगाया जाएगा| रूसी वायुसेना के प्रधान लेफ्टीनेंट–जनरल विक्टर बोंदारेव ने पत्रकारों को बताया है| इन दिनों विमान का निर्माता कारखाना इसके उड़ान-परीक्षण कर रहा है| इन उड़ान-परीक्षणों का सारा कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न हो रहा है| वायुसेना प्रधान के शब्दों में विमान के राजकीय परीक्षण दो-ढाई साल में पूरे कर लिए जायेंगे| 2015 में या 2016 के शुरू में इस विमान का नियमित उत्पादन होने लगेगा और वायुसेना को ये मिलने लगेंगे| जनरल बोंदारेव ने स्पष्ट किया कि परीक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत विमान को हर तरह से परखा जाएगा| कार्यक्रम में यह निर्धारित किया जा चुका है कि विमान की सभी प्रणालियों को, विमान पर लगे सभी उपकरण-समुच्चयों को और शस्त्रास्त्रों को कैसे जांचा जाएगा, किन गुणों को किस तरह परखा और आँका जाएगा|

भारतीय वायु सेना द्वारा वर्ष 2017 तक कुछ "मिग" विमानों को त्याग दिया जाएगा। इस बात की जानकारी भारतीय वायु सेना के अध्यक्ष नॉर्मन अनिल कुमार ब्राउन ने दी है। उन्होंने बताया कि इन विमानों में मिग-21और मिग-27 वर्ग के विमान शामिल होंगे। लेकिन मिग-29बी/ एस वर्ग के 67 विमानों की सेवाओं से इनकार नहीं किया जाएगा। वायु सेना अध्यक्ष ने बताया कि वर्ष 2022 तक भारतीय वायु सेना के पास मिश्रित वायु बेड़ा होगा। इसमें बहु-उद्देशीय सू-30MKI, 126 "रफ़ाले", मिराज-2000N, "जगुआर", भारत में निर्मित हल्के लड़ाकू विमान "तेजस", एमके-1 और एमके-2 वर्ग के विमान शामिल होंगे। संभव है कि रूस और भारत द्वारा संयुक्त रूप से विकसित 5-वीं पीढ़ी के टी-50 पैक/फा वर्ग के लड़ाके विमानों से भी भारतीय वायु सेना को लैस कर दिया जाएगा। जैसा कि वायु सेना अध्यक्ष ने बताया है, भारत IL-76TD विमान के आधार पर निर्मित अग्रिम चेतावनी देने और नियंत्रण करनेवाले दो अतिरिक्त "फाल्कन" विमान ख़रीदने के लिए इज़रायली कंपनी "इज़राइल एयरक्राफ्ट इंडस्ट्रीज़" के साथ बातचीत कर रहा है। इससे पहले भारत ने इसी वर्ग के तीन विमान सन् 2003 में ख़रीदे थे।

रूस और भारत विमान-निर्माण के क्षेत्र में अपना सहयोग बढाते हुए छह टन तक की वाहन क्षमता वाले एक हलके परिवहन विमान का संयुक्त उत्पादन कर सकते हैं| रविवार को दिल्ली पहुंचे रूसी उप-प्रधान मंत्री दमित्री रोगोजिन ने यह कहा है|

सोमवार को वह दोनों देशों के अंतर्-सरकारी व्यापारिक-आर्थिक, वैज्ञानिक-तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग-आयोग की सह-अध्यक्षता का दायित्व निभाएंगे|

"मैं अपने भारतीय साथियों के सामने यह परियोजना रखना चाहता हूँ," उन्होंने कहा| "यह है इलयूशिन डिज़ाइन ब्यूरो का विमान इल-112| इस विमान की केवल रूप-रेखा ही तैयार नहीं हुई है| इसके लिए सभी तकनीकी दस्तावेज़ भी तैयार हैं, अतः बहुत जल्दी ही विमान का उत्पादन शुरू किया जा सकता है| और यह विमान ऐसा है कि दोनों देशों में इसकी मांग है|"

रूस, भारत और चीन के विदेशमंत्री सन् 2013 में भारत में मुलाक़ात करेंगे। रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन की भारत-यात्रा के परिणामों के बारे में जारी की गई सँयुक्त विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई है।

तीन देशों के विदेशमंत्रियों की पिछली 11 वीं बैठक मास्को में हुई थी, जिसमें यह तय किया गया था कि आपात्कालीन परिस्थिति में तुरन्त कार्रवाई के क्षेत्र में तथा स्वास्थ्य, ऊर्जा, कृषि, व्यापार और अधुनातन तक्नोलौजी व उच्च तक्नोलौजी के क्षेत्र में त्रिपक्षीय सहयोग का विकास किया जाएगा।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि तीन देशों के बीच विदेशनीति के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग की प्रणालियाँ क्षेत्रीय व भूमंडलीय स्तर पर तीनों देशों के नज़रिए को सुदृढ़ करती हैं और विश्व की सामयिक समस्याओं पर एक आम नीति तय करने की संभावना देती हैं।

रूस और भारत ने सोमवार को रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन की भारत-यात्रा के दौरान दुपक्षीय सहयोग से सम्बन्धित कुछ दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किए। रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष और स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया ने दो देशों में एक-दूसरे के प्रत्यक्ष निवेश के बारे में एक स्मरणपत्र पर हस्ताक्षर किए। बात सँयुक्त परियोजनाओं में एक अरब डॉलर के निवेश की हो रही है। इसके अलावा रूसी कम्पनी नीस-ग्लोनास और भारत की 'महानगर टेलिफ़ोन निगम लिमिटेड' ने भी पारस्परिक समझ के एक स्मरणपत्र पर हस्ताक्षर किए।

भारत और रूस के संस्कृति मंत्रालयों ने वर्ष 2013-2015 के लिए सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किए। रूस के शिक्षा और विज्ञान मंत्रालय भारतीय विज्ञान और तकनीक मंत्रालय के साथ विज्ञान, तकनीक और अधुनातन तक्नोलौजी के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग के एक स्मृतिपत्र पर हस्ताक्षर किए।

वर्ष 2013-2014 में दो देशों के विदेश मंत्रालयों के बीच आपसी विचार-विमर्श के बारे में एक प्रोटोकोल पर भी हस्ताक्षर किए गए।

इसके अलावा इस शिखर-सम्मेलन के दौरान रूसी कम्पनी 'वेर्त्यालोती रस्सी' और 'एलकोन सिस्टेम्स प्राइवेट लिमिटेड' नामक भारतीय कम्पनी ने एक सँयुक्त कम्पनी बनाने के बारे में एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए।

इसके अलावा 'फ़ार्म-एको' और 'एल्डेर फ़ार्मास्यूटिकल्स' के बीच पारस्परिक समझ के बारे में एक स्मरणपत्र पर और 'नीस' तथा 'टाटा कन्सल्टिंग सर्विसेज' के बीच रणनीतिक साझेदारी के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

मनमोहन और पुतिन के बीच रक्षा के अलावा बाकी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया. ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा और अफगानिस्तान की स्थिति पर भी चर्चा हुई। रूस और भारत के इस आपसी व्यापार बढ़ता जा रहा है. 2009 में द्विपक्षीय व्यापार 7.5 अरब डॉलर था, जिसके इस साल 10 अरब डॉलर तक जाने की उम्मीद है।

सोमवार को रशिया फाउंडेशन फॉर डायरेक्ट इनवेस्टमेंट और भारतीय स्टेट बैंक के बीच भी आपसी समझौते के इरादे के घोषणा पत्र पर दस्तखत हुए। एमओयू के मुताबिक दोनों संस्थाएं, दोनों देशों में दो अरब डॉलर तक के सीधे निवेश को प्रोत्साहित करेंगी. विज्ञान, सूचना तकनीक, दवा उद्योग और सांस्कृतिक आदान प्रदान को भी बढा़वा देने पर समझौते हुए हैं।

भारत ने अफगानिस्तान में भी भारी निवेश किया है। भारत वहां रेल नेटवर्क, स्कूल और अस्पताल बना रहा है। भारतीय कंपनियों को वहां खनिज निकालने के बड़े ठेके मिले हैं। लेकिन अफगानिस्तान में एक बार फिर कट्टरपंथी मजबूत होते जा रहे हैं। विदेशी सेनाएं अब धीरे धीरे अफगानिस्तान छोड़ रही हैं। 2014 के अंत तक अमेरिकी सेना भी वहां से निकल जाएगी। ऐसे में भारत को अपने निवेश को बचाए रखने की चिंता सता रही है। पुतिन से बातचीत के बाद भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा, "हमने अफगानिस्तान की ताजा स्थिति पर भी चर्चा की और हम इस बात पर सहमत है कि हम कट्टरपंथी तत्वों और ड्रग माफियाओं से पैदा होते खतरे पर साथ काम करेंगे।"

शिखर बैठक में विभिन्न के  मुद्दों में रूसी दूरसंचार कंपनी सिस्तेमा की ओर से भारत में किए गए तीन अरब डॉलर के निवेश से जुड़ा विवाद भी है जिसका मोबाइल सेवा लाइसेंस रद्द कर दिया गया है।

भारत और रूस की दोस्ती बहुत पुरानी है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जमाने से भारत सोवियत संघ का करीबी रहा है। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद भी भारत और रूस के रिश्ते बढ़िया रहे. लेकिन बीते एक दशक में दोनों देशों को कुछ मतभेदों से भी गुजरना पड़ा है।

इसी साल भारत ने कई अन्य देशों से भी बड़े रक्षा सौदे किए। भारत ने फ्रांसीसी कंपनी दासो से 126 लड़ाकू विमान खरीदे और अमेरिकी कंपनी बोईंग से अपनी नौसेना के लिए विमान खरीदे हैं। यूरोप से उसने हवा में ईंधन भरने वाले जहाज खरीदे हैं। बीते एक दशक से भारत इस्राएल से भी बहुत ज्यादा रक्षा उपकरण खरीदने लगा है। भारत के पास विक्रेताओं का अब बड़ा विकल्प मौजूद है। रूस भी इस बात को जानता है। नई दिल्ली में तैनात रूस के राजदूत अलेक्जेंडर कादाकिन कहते हैं, "साफ है कि नई दिल्ली ने हथियार विक्रेताओं में विविधता लाने की राह तय कर दी है। प्रतिद्वंद्विता बढ़ चुकी है. रूस इसके लिए तैयार हैं।"

विमानवाही युद्धपोत एडमिरल गोर्शकोव का सौदा नई दिल्ली को झल्ला रहा है।उम्मीद है कि चार साल की देरी और करीब ढाई गुनी ज्यादा कीमत पर यह पोत भारत को अक्टूबर 2013 में मिलेगा। इसके अलावा नई दिल्ली की यह भी शिकायत है कि रूस से रक्षा उपकरणों के पुर्जे समय पर नहीं मिल रहे हैं। बीते एक-दो साल से रूस के संबंध भारत के कट्टर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से भी बढ़ने लगे हैं। पुतिन की इस यात्रा में भले ही कई समझौते हुए हैं कि लेकिन वे उस उम्मीद से कम के हुए हैं, जिनकी आशा लेकर रूसी राष्ट्रपति नई दिल्ली आए थे।

रक्षा क्षेत्र के अलावा भारत और रूस के कारोबार को लेकर भी एक दूसरे से शिकायतें हैं। भारत की मांग है कि रूस को साइबेरिया में तेल निकाल रही भारतीय कंपनी कंपनी ओएनजीसी की शाखा से कम टैक्स लेना चाहिए। नई दिल्ली का तर्क है कि मौसमी दुश्वारियों के चलते ओएनजीसी को नाम मात्र का मुनाफा हो रहा है। वहीं रूसी कंपनी सिस्टेमा चेतावनी दे चुकी है कि अगर भारत ने उसका टेलीकॉम लाइसेंस रद्द किया तो इसका असर दोनों देशों के संबंधों में पड़ेगा।


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने परमाणु ऊर्जा सहित विभिन्न क्षेत्रों द्विपक्षीय सहयोग की व्यापक समीक्षा की। दोनों नेताओं ने कुडनकुलम में प्रस्तावित तीसरे और चौथे परमाणु बिजली रिएक्टर के लिए समझौता वार्ता में तेजी लाने पर भी चर्चा की।दोनों नेताओं की यह बैठक इंडिया गेट के पास हैदराबाद हाउस में होनी थी लेकिन बाद में यह सात, रेस कोर्स रोड स्थित प्रधानमंत्री के सरकारी आवास पर हुई। पिछले सप्ताह दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद इंडिया गेट के आस-पास युवाओं के व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर बैठक की जगह में परिवर्तन करना पड़ा।

बैठक के दौरान रक्षा, अंतरिक्ष, व्यापार एवं निवेश, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, शिक्षा, संस्कृति एवं पर्यटन सहित सभी प्रमुख द्विपक्षीय मुद्दों पर बैठक में चर्चा हुई। रूसी पक्ष ने सिस्तेमा के मुद्दे पर अपनी चिंता जाहिर की।

आधिकारिक सूत्रों ने बहरहाल केवल यही कहा कि सिस्तेमा के मुद्दे पर चर्चा जरूर हुई है।सूत्रों ने उसका ब्यौरा नहीं दिया।

रूस की प्रमुख दूरसंचार कंपनी सिस्तेमा की 3.1 अरब डॉलर के निवेश के साथ सिस्तेमा श्याम टेलीसर्विसेज में 56.68 प्रतिशत हिस्सेदारी है।उच्चतम न्यायालय ने दो फरवरी को जो लाइसेंस रद्द किए थे उनमें सिस्तेमा श्याम टेलीसर्विसेज के 22 में से 21 लाइसेंस भी है। रूसी कंपनी में रूसी सरकार की 17.14 प्रतिशत हस्सेदारी है और वह इस मामले में चिंता जताते हुए भारत पर सिस्तेमा के निवेश की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए दबाव बनाती रही है।

पुतिन इस समय संक्षिप्त भारत यात्रा पर हैं और वह करीब 18 घंटे भारत में रहेंगे।

पुतिन के साथ बैठक के बाद सिंह ने कहा कि हमने क्षेत्रीय और वैश्विक महत्व के मुद्दों पर भी चर्चा की। इन में से बहुत से मुद्दों पर हमारी सोच एक दूसरे से मिलती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का विकास हमारी रणनीतिक साझीदारी का मुख्य स्तंभ रहा है।

उन्होंने कहा कि कुडनकुलम परमाणु बिजली परियोजना की पहली इकाई का निर्माण अब पूरा हो चुका है और बिजली उत्पादन जल्द ही शुरू होगा। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को दूसरी इकाई का निर्माण अगले साल पूरा होने की उम्मीद है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कुडनकुलम की तीसरी और चौथी इकाइयों के निर्माण की बातचीत में अच्छी प्रगति हुई है। सूत्रों का कहना है कि दोनों देशों ने तीसरी व चौथी इकाई के लिए बातचीत को शीघ्र अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद जताई है।

क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा के संबंध में सिंह ने कहा कि भारत और रूस स्थायी, एकीकृत, लोकतांत्रिक और समृद्ध अफगानिस्तान का उद्देश्य रखते हैं जो कट्टरपंथियों, आतंकवाद और बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त हो।

उन्होंने कहा कि हमने अफगानिस्तान के मौजूदा घटनाक्रमों की समीक्षा की और बाहरी कट्टरपंथियों और मादक पदार्थों के तस्करों से पैदा होने वाले खतरों के खिलाफ मिलकर काम करने को सहमत हुए।

दोनों पक्षों ने जिन समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं उनमें विदेशी मंत्रालय स्तर पर परामर्श का प्रोटोकोल भी है। समझौतों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवोन्मेष, सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्य्रकम के लिए तथा प्रत्यक्ष निवेश बढाने के लिए सहमति पत्र शामिल है।

नई दिल्ली की अपनी सरकारी यात्रा के दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन ने कहा कि रूस और भारत के रिश्ते इतने गहरे हैं कि दोनों देशों के लिए दोनों देश एक-दूसरे के प्राथमिक सहयोगी हैं। दो देशों के सम्बन्धों में चालू वर्ष विशेष महत्त्व रखता है क्योंकि इस साल हम दो देशों के बीच राजनयिक सम्बन्धों की स्थापना की 65 वीं जयन्ती मना रहे हैं। यह शिखर-सम्मेलन पारस्परिक रूप से लाभप्रद हमारे सहयोग का एक और महत्त्वपूर्ण दौर बन गया है।

दिल्ली में हुई बातचीत के दौरान मुख्यतः दुपक्षीय व्यापारिक-आर्थिक सहयोग के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया गया। सन् 2000 के बाद से दो देशों के बीच व्यापार बढ़कर क़रीब छह गुना हो चुका है। यदि सिर्फ़ 2012 के साल को ही लिया जाए तो इस साल जनवरी से अक्तूबर के बीच पिछले साल की इसी अवधि के मुक़ाबले हमारे आपसी व्यापार में एक-तिहाई वृद्धि हुई है। बहुत से विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल रूस और भारत के बीच व्यापार दस अरब डॉलर से ज़्यादा होगा, जो अपने आप मे एक रिकार्ड होगा। रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन ने इस दिशा में हो रहे विकास की चर्चा करते हुए कहा :

सन् 2011 में हमारा आपसी व्यापार क़रीब 9 अरब डॉलर रहा था। इस साल हमें आशा है कि वह बढ़कर 10 अरब डॉलर हो जाएगा और आने वाले वर्षों में हम उसे बढ़ाकर दुगुना कर देंगे। विशेष रूप से उल्लेखनीय बात यह है कि रूसी-भारतीय आयात-निर्यात में दोनों तरफ़ से क़रीब 50 प्रतिशत व्यापार हाई टैक्नोलौजी से जुड़े मालों का होता है। इस साल रूस द्वारा भारत को किए गए मशीनों, उपकरणों और रसायनिक मालों के निर्यात में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हमारे बीच पारस्परिक रूप से निवेश बढ़ाने के बारे में सहमति हो गई है। मुझे विश्वास है कि आज रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष और भारतीय स्टेट बैंक ने जिस स्मरणपत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, उससे हमारे पारस्परिक लाभप्रद सहयोग को और अधिक गति मिलेगी और छोटी कम्पनियों व मध्यम दर्ज़े की कम्पनियों के बीच भी सहयोग बढ़ेगा।

ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग हमारे दो देशों के बीच सहयोग की एक महत्त्वपूर्ण दिशा है। जैसाकि भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा -- यह काम एक बेहद महत्त्वपूर्ण काम है। भारत के प्रधानमंत्री ने कहा -- कुडनकुलम एटमी बिजलीघर के निर्माण में रूसी विशेषज्ञों के सहयोग का भारत ऊँचा मूल्यांकन करता है। रूसी कम्पनी 'रोसएटम' के प्रमुख सेर्गेय किरीयेन्का का कहना है कि रूस ने भी इस परियोजना में एक ऊँची छलाँग लगाई है। सेर्गेय किरियेन्का ने कहा :

फ़ुकुशीमा बिजलीघर में हुई दुर्घटना के बाद नए बिजलीघरों का निर्माण करते हुए आज सुरक्षा के जिन मापदण्डों को लेकर चिन्ता व्यक्त की जा रही है, कुडनकुलम के इस बिजलीघर में हमने उन सभी ख़तरों से बचने की तैयारी कर रखी है। यहाँ तक कि हमने कुडनकुलम में विशेष दबाव-परीक्षण भी करके देखे हैं। यदि कुडनकुलम का यह बिजलीघर तब फ़ुकुशीमा में खड़ा होता तो वह भूकम्प के उन झटकों को और उस सूनामी को बड़ी आसानी से झेल गया होता क्योंकि कुडनकुलम में हमने उच्चस्तरीय स्वाचालित सुरक्षा-व्यवस्था लगा रखी है। बड़ी संख्या में हमने न सिर्फ़ द्रुत सुरक्षा-व्यवस्थाएँ इस बिजलीघर में लगाई हैं, बल्कि अनेक प्रतिरोधक सुरक्षा-व्यवस्थाओं का भी पूरा-पूरा इन्तज़ाम कर रखा है। यदि फ़ुकुशीमा में हुई दुर्घटना के सभी स्तरों को और उनसे पैदा होने वाले ख़तरों को क्रमिक रूप से देखा जाए तो हमने पहले से ही हर स्तर पर हर ख़तरे को रोकने के लिए पूरा प्रबन्ध कर रखा है।

हमारी एक और परियोजना पारस्परिक निवेश से सम्बन्ध रखती है। नई दिल्ली में इस सिलसिले में रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष और स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया ने एक स्मरणपत्र पर हस्ताक्षर किए। रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष के प्रमुख किरील दिमित्रियेव ने कहा :

यह भारत का सबसे बड़ा बैंक है। रूसी भारतीय सँयुक्त परियोजनाओं में हम दोनों ही एक-एक अरब डॉलर लगाएँगे। यह बेहद ज़रूरी है क्योंकि हमें आशा है कि आने वाले पाँच साल में हमारा व्यापार दस अरब डॉलर से बढ़कर बीस अरब डॉलर तक पहुँच जाएगा। हम उन व्यवसायों में निवेश करना चाहते हैं, जो रूस-भारतीय व्यापार में होने वाली वृद्धि की वज़ह से बड़ी तेज़ी से विकसित हो रहे हैं।

इसके अलावा आज दूसरी बड़ी रूसी कम्पनियों को भी भारत में प्रस्तुत किया गया। इस्पात के क्षेत्र में हम पहले ही भिलाई और राउरकेला जैसे कारख़ानों का निर्माण कर चुके हैं। रूसी कम्पनी 'सिवेरास्ताल' भारत के साथ सँयुक्त रूप से एक पूर्णचक्र धातु कारख़ाने का का निर्माण कर रही है। रूसी बीमा कम्पनियाँ 'इनगोसस्त्राख़' और रोसनो भी भारतीय बाज़ार में काम शुरू कर चुकी हैं। इसके अलावा सख़ालिन-1 जैसी तेल व गैस उत्पादन परियोजना भी हमारी एक महत्त्वपूर्ण सँयुक्त परियोजना है।

भारत विशेष रूप से उन समझौतों को बड़ा महत्त्व दे रहा है जो पारस्परिक सैन्य-तकनीकी सहयोग से सम्बन्ध रखते हैं।

इसके अलावा ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन, रूस-भारत-चीन दल, जी-20 जैसे भूमंडलीय दलों और दूसरे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भी हमारे दो देशों के द्वारा उल्लेखनीय स्तर पर बड़ा सहयोग किया रहा है।

वायुसेना को मिले दो 'एडब्ल्यू-101' हेलीकॉप्टर

घूसखोरी के आरोपों की पृष्ठभूमि में भारतीय वायुसेना को दो एडब्यू-101 हेलीकॉप्टर मिल गए हैं, शेष 10 हेलीकॉप्टरों के अगले साल के मध्य तक आने की उम्मीद है।

भारत ने ऐसे तीन इंजनों वाले 12 हेलीकॉप्टरों के लिए साल 2010 में एंग्लो-इतालवी कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड के साथ 3,550 करोड़ रुपये का करार किया था। इन हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री जैसे अतिविशिष्ट लोगों की यात्राओं में किया जाएगा।

वायुसेना के सूत्रों ने बताया कि पहला हेलीकॉप्टर बीते 20 दिसंबर को दिल्ली स्थित पालम सैन्य ठिकाने पर पहुंचा, जबकि दूसरा 22 दिसंबर को लाया गया। सभी 12 हेलीकॉप्टरों को अगले साल मध्य तक आ जाने की उम्मीद है।

उधर, इस मामले में घूसखोरी के आरोप लगने के बाद इतालवी अभियोजक इसकी जांच कर रहे हैं। भारत सरकार भी इसकी जांच पर नजदीकी नजर बनाए हुए हैं।

इस मामले पर रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा था कि कुछ भी गलत पाए जाने पर मंत्रालय की ओर से उचित दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन का 'द हिन्दू' समाचारपत्र में प्रकाशित लेख

इक्कीसवीं सदी में रणनीतिक सहयोग के नए क्षितिज



भारत के एक सबसे प्रभावशाली समाचारपत्र 'हिन्दू' के पाठकों के साथ सीधे संवाद की यह संभावना पाकर मैं बेहद प्रसन्न हुआ हूँ। अपनी दिल्ली-यात्रा की पूर्ववेला में मैं इस लेख के माध्यम से आपको यह बताना चाहता हूँ कि भविष्य में हमें रूस और भारत के बीच रणनीतिक सहयोग का आगे किस तरह से विकास करना है।

इस वर्ष हमारे दो देशों के बीच राजनयिक सम्बन्धों की स्थापना को 65 वर्ष पूरे हो गए। इन बीते दशकों में हमने विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक सफलताएँ प्राप्त की हैं और सँयुक्त रूप से काम करने का हमें काफ़ी अनुभव हो गया है। इस बीच राजनीतिक स्तर पर हालाँकि कई दौर, कई युग बदले हैं, लेकिन हमारे दुपक्षीय सम्बन्धों के सिद्धान्त पूर्ववत बने रहे हैं। ये सिद्धान्त हैं -- समानाधिकार और पारस्परिक विश्वास। यहाँ मैं इस बात पर ज़ोर देना चाहूँगा कि भारत के साथ सहयोग और मैत्री का विकास हमारी विदेश नीति की एक प्रमुख प्राथमिकता है और हम पूरे अधिकार के साथ यह बात कह सकते हैं कि हमारे दो देशों के बीच अनूठे और विशेषाधिकार प्राप्त सम्बन्ध बन गए हैं।

अक्तूबर, 2000 का महीना हमारे रिश्तों में बड़ा महत्त्व रखता है। इसी महीने रूस और भारत ने आपसी रणनीतिक सहयोग के बारे में घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जो हमारे आपसी रिश्तों में उठाया गया एक ऐतिहासिक क़दम बन गया। इक्कीसवीं शताब्दी के पहले दशक में घटी घटनाओं के विकास ने इस क़दम की ज़रूरत और महत्त्व की पुष्टि की क्योंकि आज हमारे सामने, हमारी सभ्यता के सामने भूमंडलीय स्तर पर असमान विकास, आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता, पारस्परिक विश्वास की कमी और सुरक्षा जैसी गम्भीर चुनौतियाँ मुँह उठाए खड़ी हैं।

और इन परिस्थितियों में रूस और भारत अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्तरदायित्त्वपूर्ण नेतृत्त्व और मिलकर कार्रवाइयाँ करने जैसे उदाहरण दुनिया के सामने पेश कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य एक ही है कि इस दुनिया को, जिसमे हम सब रहते हैं, अधिकाधिक न्यायसम्मत, लोकतान्त्रिक और सुरक्षित बनाया जाए तथा पश्चिमी एशिया, उत्तरी अफ़्रीका और अफ़ग़ानिस्तान सहित सारी दुनिया में सभी क्षेत्रीय और भूमंडलीय समस्याओं को हल किया जाए।

यहाँ मैं इस बात का उल्लेख करना चाहूँगा कि ब्रिक्स-दल के अन्तर्गत भी हम अधिकाधिक सक्रियता के साथ सहयोग कर रहे हैं। साल-दर-साल ब्रिक्स-दल की प्रतिष्ठा बढ़ती चली जा रही है। यह तो होना ही था क्योंकि हम जो पहलें पेश करते हैं, वह नई बहुध्रुवीय दुनिया के निर्माण से जुड़ी होती हैं। शंघाई सहयोग संगठन और अन्य सामूहिक मंचों पर भी हम ऐसा ही रचनात्मक नज़रिया और सहयोगात्मक रवैया अपनाते हैं। जी-20 दल में रूस की अध्यक्षता का दौर शुरू होने जा रहा है। हमें आशा है कि जी-20 में भी भारत की तरफ़ से हमें सारगर्भित सहयोग मिलता रहेगा।

हमारे इस पारस्परिक सहयोग का नया गुणात्मक आधार हैं -- अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर हमारे दो देशों के द्वारा मिलकर उठाए जाने वाले क़दम, विश्व-व्यापार के सामान्य नियमों की रचना में सहभागिता तथा कामकाजी, वैज्ञानिक-तकनीकी और मानविकी सम्पर्कों का व्यापक विकास।

अपने दुपक्षीय व्यापार और निवेश सम्बन्धों को हम विशेष महत्त्व देते हैं। भारत और रूस की आर्थिक क्षमताओं का लगातार हो रहा विकास बहुत-कुछ पारस्परिक रूप से सम्बद्ध है। हमारे दो देशो के बीच व्यापार पर भूमंडलीय मंदी का भी कोई असर नहीं पड़ा और हमने सहज ही इस दौर को पार कर लिया। वर्ष 2012 में हमारे दो देशों का आपसी व्यापार कुल मिलाकर दस अरब डॉलर से भी ज़्यादा हो गया और इस तरह वह एक रिकार्ड स्तर पर पहुँच गया है। अब हम यह उद्देश्य उठाने जा रहे हैं कि हमें अपना आपसी व्यापार सन् 2015 तक बढ़ाकर 20 अरब डॉलर के स्तर पर ले जाना है।

इसके लिए हमें अपनी सभी संभावनाओं का उपयोग करना होगा, कामकाजी क्षेत्रों में सीधे सम्बन्ध रखने होंगे तथा ऊर्जा जैसे, बल्कि कहना चाहिए कि परमाणु ऊर्जा जैसे गतिशील संभावित क्षेत्रों में प्रभावशाली, निवेश सम्बन्धी, तकनीकी और औद्योगिक गठजोड़ों का गठन करने की कोशिश करनी होगी।

इस दिशा में कुडनकुलम परमाणु बिजलीघर का निर्माण एक बड़ी विशाल और उत्साही परियोजना है, जिसमें आधुनिकतम और विश्वस्त तक्नोलौजियों और मानकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। कुडनकुलम बिजलीघर के पहले यूनिट के शुरू होते ही भारत के दक्षिणी राज्यों में दिखाई दे रही बिजली की कमी काफ़ी हद तक ख़त्म हो जाएगी, और दूसरे यूनिट के शुरू होने के बाद तो वहाँ इस समस्या से ही पूरी तरह छुटकारा मिल जाएगा। हमें आशा है कि जल्दी ही हम भारत में नए परमाणु बिजलीघरों के निर्माण के बारे में किए गए समझौतों पर भी अमल करना शुरु कर देंगे।

अलौह धातु उद्योग, तेल व गैस की निकासी, मोटर-कार-निर्माण और विमान-निर्माण, रसायन उद्योग, औषधि उद्योग, सूचना-तक्नोलौजी और जैव तक्नोलौजी के क्षेत्र में सँयुक्त रूप से हम जिन दीर्घकालीन योजनाओं पर अमल कर रहे हैं, उनसे भी हमें बड़ा लाभ होगा। वर्ष 2020 तक के लिए विज्ञान, तकनीक और पूँजी निवेश के क्षेत्र में भी हमने गम्भीर योजनाओं वाला दीर्घकालीन कार्यक्रम बना रखा है, जिसका मुख्य उद्देश्य नई तक्नोलौजियों, मशीनों और सामग्रियों का निर्माण करने के लिए हमारे वैज्ञानिकों द्वारा मिलकर आधारभूत और व्यावहारिक अनुसंधान करना है।

हम रूसी भूमंडलीय दिशासूचक उपग्रह व्यवस्था ग्लोनास का भी मिलकर व्यापक रूप से उपयोग कर सकते हैं। इस दिशा में दुपक्षीय सहयोग के दस्तावेजों पर पहले ही हस्ताक्षर किए जा चुके हैं। अब हम इस क्षेत्र में व्यावहारिक तौर पर आपसी सहयोग का विकास करने को तैयार हैं।

रूस और भारत के बीच सैन्य-तकनीकी सहयोग जिन अभूतपूर्व ऊँचाइयों पर पहुँच गया है, वे इस बात का सबूत हैं कि हमारे रिश्ते बड़ा सामरिक महत्त्व रखते हैं। इस सहयोग की एक प्रमुख दिशा यह कि हम सैन्य मालों की सिर्फ़ ख़रीद और बिक्री ही नहीं करते हैं, बल्कि लायसेंस के आधार पर मिलकर उनका उत्पादन करते हैं और आधुनिकतम हथियारों का मिलकर आविष्कार भी करते हैं।

बहुउद्देशीय लड़ाकू-विमान और बहुउद्देशीय मालवाहक विमान के निर्माण को भी सैद्धान्तिक तौर पर बड़ा महत्त्व दिया जा रहा है। हमारे डिजाइनरों द्वारा मिलकर बनाए गए पनडुब्बीनाशक मिसाइल 'ब्रह्मोस' के सभी परीक्षण पूरी तरह से सफल रहे हैं। अब विशेषज्ञ विमानों पर तैनात किए जाने वाले 'ब्रह्मोस' मिसाइलों के निर्माण के काम में लगे हुए हैं।

मुझे विश्वास है कि हमारे दो देशों के बीच यह बहुमुखी सहयोग हमें तमाम हाई टैक्नोलौजी परियोजनाओं के क्षेत्र में न सिर्फ़ सबसे आगे ले जाकर खड़ा कर देगा, बल्कि इस सहयोग से हमें यह संभावना भी मिलेगी कि हम मिलकर तीसरे देशों को भी सँयुक्त रूप से उत्पादित अपने माल सफलतापूर्वक बेच सकेंगे।

रूस और भारत दोनों ही देशों की सांस्कृतिक विरासत अप्रतिम है। हम मानविकी के क्षेत्र में सहयोग करते हुए अपनी इस असीम क्षमता का व्यापक रूप से उपयोग कर सकते हैं। भारत का हज़ारों वर्ष पुराना इतिहास और संस्कृति, दिल्ली, आगरा, मुम्बई आदि शहरों में बने वास्तुकला के महान् स्मारक हर आदमी को चुम्बक की तरह अपनी तरफ़ खींचते हैं। दूसरी तरफ़ भारत के लोग रूसी संगीत, साहित्य और कला से बेहद प्रभावित होते हैं। इस साल हमारे दो देशों में सम्पन्न कला महोत्सवों ने भी इसकी पुष्टि की। भारत में सम्पन्न रूसी कला महोत्सव और रूस में सम्पन्न भारतीय संस्कृति और फ़िल्म महोत्सव में हमारे दो देशों की जनता ने ख़ूब बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की।

मेरा विश्वास है कि हमें शैक्षिक और बौद्धिक परियोजनाओं का भी सक्रिय रूप से विकास करना चाहिए। आपसी पर्यटन को प्रोत्साहन देना चाहिए तथा युवा-वर्ग के प्रतिनिधियों का आदान-प्रदान करना चाहिए। ये सब योजनाएँ हमारे नागरिकों को प्रबुद्ध बनाएँगी और हमारे दुपक्षीय सम्बन्धों को मानवीय आयाम प्रदान करेंगी, जिसकी आज बेहद ज़रूरत है और जिसका महत्त्व आज की दुनिया में लगातार बढ़ता जा रहा है।

नई दिल्ली में होने जा रहे इस शिखर-सम्मेलन के लिए हमने भारी बहुस्तरीय तैयारियाँ की हैं। भविष्य में मिलकर किए जाने वाले कामों की प्रमुख दिशाएँ हमारे सामने पूरी तरह से स्पष्ट हैं। मुझे विश्वास है कि इस शिखर-सम्मेलन के दौरान होने वाली बातचीत हमेशा की तरह रचनात्मक होगी और उसके परिणाम हमारे दो देशों और उनकी जनता के लिए, यूरोशिया में और हमारी इस धरती पर शान्ति और स्थिरता के हित में हमारे रणनीतिक सहयोग को नया प्रोत्साहन, नया आवेग और नई प्रेरणा देंगे।

इक्कीसवीं सदी में रूस और भारत के बीच रणनीतिक सामरिक सहयोग की संभावनाएँ कुल मिलाकर मैं इस रूप में देखता हूँ -- मैत्री और पारस्परिक विश्वास की ठोस ऐतिहासिक परम्पराओं के आधार पर वैज्ञानिक दिशाओं में सहयोग का विकास, सँयुक्त रूप से उत्पादित मालों की अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रस्तुति और प्रोत्साहन, आपसी व्यापार का विकास तथा उसमें ऐसे मालों को शामिल करना जिनसे बड़ा लाभ पाना संभव हो, अन्तर्राष्ट्रीय कामकाज में प्रभावशाली ढंग से रूसी भारतीय सहयोग और उसकी बढ़ती हुई भूमिका तथा साँस्कृतिक और मानविकी सम्पर्कों के क्षेत्र में पारस्परिक क्षमता का अधिकतम प्रस्फुटन।

अपनी मित्र भारतीय जनता के लिए मैं हार्दिक शुभकामनाएँ व्यक्त करता हूँ और उसके लिए शान्ति, समृद्धि और नई प्रभावशाली सफलताओं की कामना करता हूँ।

केंद्रीय एशिया – रूस और अमरीका के बीच

अमरीका की परिवहन सेना के प्रधान जनरल विलियम फ्रेज़र हाल ही में अफगानिस्तान की सीमा से लगे केंद्रीय एशिया के देशों – तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान की यात्रा पर गए| ज़ाहिर है इस यात्रा की ओर विशेषज्ञों का ध्यान गया|

प्योत्र गोंचारोव टिपण्णी करते हैं|

अफगानिस्तान से अमरीका और नाटो की फौजें पूरी तरह हटाये जाने में सिर्फ दो साल का समय बचा है| यह कोई बहुत अधिक समय नहीं है| नाटो के उच्च अधिकारी यह कहते नहीं थकते कि अफगानिस्तान के राष्ट्रीय बलों का देश के दो तिहाई भाग पर नियंत्रण है, लेकिन सभी समझते हैं कि यह नियंत्रण नाटो के सहयोग से ही बना हुआ है, भले ही नाटो इसमें सीधे भाग न लेता हो|

2014 के उत्तरार्द्ध में नाटो और अमरीका के सैनिकों की बड़े पैमाने पर अफगानिस्तान से वापिसी होगी| इसके लिए बहुत ज़रुरी है कि वापिसी के विश्वसनीय रास्ते पहले से तैयार कर लिए जाएँ| बहुत मुमकिन है कि जनरल फ्रेज़र ने ऐसे रास्ते तैयार करने के लिए ही, इन देशों में किर्गिजस्तान के मनस परिवहन आवाजाही केन्द्र जैसे केन्द्र बनाने की बातचीत करने के लिए ही इन देशों की यात्रा की हो| मास्को का इस पर क्या नजरिया है? क्या वह इनकी वजह से केंद्रीय एशिया में अपना प्रभाव खो सकता है? रूस के रणनीतिक अनुसंधान केन्द्र के विशेषज्ञ, केंद्रीय एशिया की समस्याओं के एक सबसे बड़े जानकार अझ्दर कुर्तोव के मत में रूस की स्थिति, खास तौर पर व्यापारिक-आर्थिक क्षेत्र में काफी मजबूत है|

अगर हम आर्थिक क्षेत्र के मूल भूत आंकड़ों को देखें तो केंद्रीय एशिया में रूस की स्थितियां बुरी नहीं हैं – कोई भले कुछ भी कहे| इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि केंद्रीय एशिया के देशों का रूस के साथ व्यापार किसी भी अन्य देश के साथ उन के व्यापार से कहीं अधिक है| अमरीका के साथ उनके आर्थिक संबंधों में तो कोई न कोई पेचीदगी आती ही रहतीहै|

जी हां, विशेषज्ञ से बहस करना व्यर्थ है| रूस और केंद्रीय एशिया के बीच व्यापारिक-आर्थिक संबंध सैकड़ों साल से चले आ रहे हैं| और प्रायः इतने ही समय तक ये देश एक ही देश के अंश रहे हैं| मगर दूसरी ओर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अमरीका केंद्रीय देशों के मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप की नीति का बड़ी चतुराई से उपयोग करतता है| कुछ हद तक वह इस मामले में सफल भी हुआ है| हां, यह अलग सवाल है कि किस हद तक| और क्या बात केंद्रीय एशिया में अमरीका के फौजी अड्डे बनने तक पहुंचेगी?

इस क्षेत्र में रूस का भूराजनीतिक प्रभाव सर्वोपरि नहीं, तो दूसरों से अधिक तो है ही, अझ्दर कुर्तोव कहते हैं| वस्तुतः सभी केंद्रीय एशियाई देशों के लिए उनकी भूराजनीतिक प्राथमिकता में रूस ही सबसे आगे है, यहां के राजनीतिक नेता अपनी वाशिंगटन यात्रा के समय भले ही कुछ भी कहते रहें|

विशेषज्ञ के इन शब्दों में कुछ बातें और जोड़नी चाहिए जो इन देशों को रूस से जोड़ने की नज़र से बहुत मायने रखती हैं| केंद्रीय एशिया के अधिकांश देश सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन के सदस्य हैं, सिवाय तुर्कमेनिस्तान के और कुछ हद तक उज्बेकिस्तान के, जिसने अपनी सदस्यता फ़िलहाल निलंबित कर दी है| दिसंबर 2011 में अस्ताना में इस संगठन के शिखर सम्मलेन में एक समझौते पर हताक्षर किए गए थे जिसके अंतर्गत सदस्य देशों में किसी तीसरे देश का फौजी अड्डा सर्वसम्मति से ही बन सकता है| ब्रसल्स और वाशिंगटन मे यह बात भली-भांति ज्ञात है|

नए भारतीय युद्धपोत और उनपर तैनात क्रूज-मिसाइल

रूस के कालिनिनग्राद प्रदेश में स्थित पोत निर्माण कारख़ाने 'यन्तार' ने भारतीय नौसेना को मिसाइलों से लैस 'तरकश' नामक युद्धपोत संख्या 11356 सौंप दिया। यह युद्धपोत उन तीन युद्धपोतों में से दूसरा युद्धपोत है, जिन्हें बनाने का आर्डर सन् 2010 में भारत ने दिया था। इससे पहले भी सन् 2000 में रूस इसी क़िस्म के तीन युद्धपोत बनाकर भारत को सौंप चुका है, जो सेंट पीटर्सबर्ग के जहाज़-निर्माण कारख़ाने में बनाए गए थे।

रूस के रणनीतिक और तकनीकी विश्लेषण केन्द्र के विशेषज्ञ वसीली काशिन का कहना है कि तब सेंट पीटर्सबर्ग में बनाए गए उन तीन युद्धपोतों और कालिनिनग्राद में अब बनाए गए युद्धपोतों में सबसे बड़ा फ़र्क यह है कि इस बार भारत को सौंपे जा रहे युद्धपोतों पर भारी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल 'ब्रह्मोस' लगे हुए हैं। इन छोटे युद्धपोतों में 300 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाले ये जो रॉकेट लगे हुए हैं, वे बड़े युद्धपोतों पर लगी हवामार तोपों से बचकर हमला करने में सक्षम हैं। पोत निर्माण कारख़ाने 'यन्तार' ने इस साल के शुरू में 'तेग नामक जो युद्धपोत भारत को सौंपा था, वह खुले समुद्र में 'ब्रह्मोस' राकेट का एक बार सफल परीक्षण कर भी चुका है।

चीन ने भी अपने युद्धपोतों पर भारी क्रूज मिसाइल लगाने शुरू कर दिए हैं। लेकिन चीन इन मिसाइलों को 052 डी० क़िस्म के बड़े युद्धपोतों पर तैनात कर रहा है। इससे पहले सन् 2012 में ही दक्षिणी कोरिया ने भी यह जानकारी दी है कि वह भी अपने युद्धपोतों के लिए मध्यम दूरी के क्रूज-मिसाइलों का निर्माण कर रहा है। इससे भी पहले ताइवान ने ह्योंग-फ़ेंग-2 नामक रॉकेट अपने युद्धपोतों पर लगा लिए थे। ताइवान मध्यम दूरी के इन रॉकेटों को हमले को रोकने वाले रणनीतिक साधन के रूप में देखता है, जिनका उपयोग तब किया जाएगा, यदि चीन और ताइवान के बीच कोई संकट पैदा होगा या यदि ख़ुद ताइवान को शंघाई जैसे चीन के किसी शहर पर नुक़सानदेह हमला करना होगा।

यहाँ इस बात का भी उल्लेख किया जाना चाहिए कि रूस और भारत द्वारा मिलकर बनाए गए ब्रह्मोस रॉकेट या चीन के वाई०जे०--62 रॉकेटों के अलावा जो युद्धपोतों को डुबोने के लिए हैं और कम दूरी पर मार कर सकते हैं, इन रॉकेटों के ऐसे मॉडल भी उपलब्ध हैं जो ज़मीन पर स्थिर खड़े निशानों पर भी चोट करने में सक्षम हैं। लेकिन चूँकि रूस रॉकेट तक्नोलौजी पर नियंत्रण की व्यवस्था के नियमों से बँधा हुआ है, और ब्रह्मोस रॉकेटों का निर्माण रूसी-भारतीय सँयुक्त कम्पनी करती है, इसलिए ब्रह्मोस रॉकेटों की मारक-दूरी सिर्फ़ 300 किलोमीटर तक सीमित रखी गई है। परन्तु इस रॉकेट की कई दूसरी ख़ासियतें हैं, जैसे दुनिया में अब तक जो भी क्रूज-मिसाइल बनाए जाते हैं, उनमें ब्रह्मोस रॉकेट सबसे तेज़ गति से मार करने वाला रॉकेट है।

इस रॉकेट की मारक-दूरी बढ़ाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों को आगे ख़ुद काम करना है। इसमें समय लगेगा, लेकिन यह काम ज़रूर किया जाएगा। इसके अलावा भारत आवाज़ की गति से उड़ने वाले मध्यम दूरी के 'निर्भय' नामक रॉकेट का भी निर्माण कर रहा है।

चीन के ऊपर शुरू से ही इस तरह के कोई प्रतिबन्ध नहीं हैं। चीन के नए युद्धपोतों पर 2000 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाले क्रूज-मिसाइल लगाए जा सकते हैं।

इस इलाके की हर आर्थिक-महाशक्ति यह कोशिश कर रही है कि उसके पास मध्यम दूरी के ऐसे रॉकेट हों, जिन्हें ज़मीन से, समुद्री युद्धपोतों से और हवा में उड़ते लड़ाकू विमानों से भी छोड़ा जा सके। इन देशों के पास इस तरह के रॉकेटों के कितने भंडार हैं, उनसे ही इन देशों के बीच पारस्परिक रणनीतिक सम्बन्धों का स्तर तय होगा। उसी समय, इन देशों को क्रूज-मिसाइलों से लेकर हवामार-रॉकेटों तथा आधुनिक लड़ाकू विमानों से बचने के लिए व्यवस्था के निर्माण पर भी बड़ा खर्च करना होगा।

रूस के रणनीतिक और तकनीकी विश्लेषण केन्द्र के विशेषज्ञ वसीली काशिन का कहना है कि एशिया में रॉकेट तकनोलौजी पर नियंत्रण की व्यवस्था धीरे-धीरे अर्थहीन होती जा रही है। कम से कम छोटे युद्ध-पोतों पर लगाए जाने वाले क्रूज-मिसाइलों के सिलसिले में तो यह बात पूरी तरह से सच है।

हिन्द-प्रशान्त महासागर के इलाके में भारत का बढ़ता प्रभाव

भारत के प्रधानमंत्री डॉ० मनमोहन सिंह ने इधर एक नई राजनीतिक पारिभाषिक-शब्दावली का अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में इस्तेमाल करना शुरू किया है। ये शब्द हैं -- हिन्द-प्रशान्त महासागरीय इलाका या 'इन्डो-पैसेफ़िक रीजन'। हाल ही में दिल्ली में हुए भारत-एसियान शिखर-सम्मेलन में बोलते हुए उन्होंने इन शब्दों का इस्तेमाल किया। ये राजनीतिक पारिभाषिक शब्द एशियाई-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र के अर्थ को और ज़्यादा व्यापक बनाते हैं और इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती हुई दिलचस्पी को स्पष्ट रूप से सामने रखते हैं।

यह शिखर-सम्मेलन अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण रहा। सन् 1991 में भारत ने घोषणा की थी कि उसकी 'पूर्व पर नज़र' नीति यानी 'लुक ईस्ट पॉलिसी' नीति उसकी विदेश रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होगी। उसके बाद फिर 1992 में, यानी आज से पूरे बीस साल पहले, भारत और दक्षिण-पूर्वी एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन यानी एसियान ने आपसी सहयोग के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन तब से अब तक सभी भारत-एसियान शिखर सम्मेलन सिर्फ़ एसियान के शिखर-सम्मेलनों के अन्तर्गत ही होते रहे यानी दक्षिण-पूर्वी एशिया की राजधानियों में होने वाले सम्मेलनों में ही भारत भी भाग लेता रहा। अब भारत में यह इस तरह का पहला शिखर-सम्मेलन हुआ है।

भारत में हुए इस शिखर सम्मेलन के दौरान आम तौर पर आर्थिक सवालों की ही चर्चा की गई। इस शिखर सम्मेलन की मुख्य उपलब्धि यह रही कि सम्मेलन के दौरान खुले व्यापार के बारे में उस समझौते को और व्यापक बना दिया गया जो दो साल पहले किया गया था। अब यह समझौता न सिर्फ़ माल-व्यापार पर ही लागू होगा, बल्कि पारस्परिक निवेश और सेवाओं के क्षेत्र में भी इस समझौते के आधार पर काम करना सम्भव होगा। जैसाकि भारत के विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा -- अब इस समझौते में कोई ऐसा कील-काँटा बाक़ी नहीं रह गया है, जो चुभने वाला हो। लेकिन फिर भी इस दिशा में कुछ समस्याएँ और बाक़ी रह गई हैं, जैसे फ़िलिपिन और इण्डोनेशिया ने अपने लिए कुछ विशेष नियमों की माँग की है क्योंकि ऐसा लग रहा है कि वे इस बात से घबराए हुए हैं कि भारत उनके बाज़ारों में बड़ी सक्रियता के साथ घुसता चला जा रहा है।

रेडियो रूस के विशेषज्ञ और रूस के सामरिक अनुसंधान संस्थान के सहकर्मी बरीस वलख़ोन्स्की का कहना है -- खास बात तो यह है कि शिखर-सम्मेलन में आर्थिक सवालों पर अपना ध्यान केन्द्रित रखने के बावजूद शिखर-सम्मेलन के सहभागियों ने व्यापक रूप से दूसरे सवालों पर भी चर्चा की। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा :

ये सवाल सबसे पहले तो प्रशान्त महासागर और हिन्द महासागर के उस इलाके में सुरक्षा से सम्बन्ध रखते हैं, जहाँ दोनों महासागरों का संगम होता है। विशेष रूप से दक्षिणी चीन सागर का इलाका इसमें प्रमुख स्थान रखता है। हालाँकि शिखर-सम्मेलन की बातचीत और भाषणों में 'चीन' शब्द का उच्चारण क़रीब-क़रीब नहीं किया गया, लेकिन शिखर-सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी देशों के नेता और पर्यवेक्षक इस बात को समझ रहे थे कि चीन के साथ सम्बन्ध ही वह प्रमुख तत्त्व है, जो इस इलाके में आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा सम्बन्धी समस्याओं को तय करता है।

शिखर-सम्मेलन में फ़िलिपिन और वियतनाम के प्रतिनिधियों ने दक्षिणी चीन सागर में बढ़ते जा रहे तनाव की ओर ध्यान आकर्षित किया। लेकिन भारत इस समस्या पर चर्चा करने से पीछे हट गया। भारत के विदेशमंत्री सलमान ख़ुर्शीद ने कहा कि कुछ ऐसे आधारभूत सवाल हैं, जिनमें भारत के हस्तक्षेप की कोई ज़रूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी भी इलाके पर किस देश की प्रभुसत्ता है, इस से जुड़े सवाल उस इलाके से जुड़े देशों को ख़ुद तय करने चाहिए।

फिर भी, चीन का नाम लिए बिना ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सागर-क्षेत्र में सुरक्षा को बनाए रखने के लिए सहयोग के महत्त्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा -- समुद्री-तटवर्तीय देशों के रूप में भारत और एसियान (के देशों) को समुद्री-सुरक्षा के क्षेत्र में अपनी भूमिका बढ़ानी चाहिए ताकि जहाजरानी के रास्ते सभी के लिए खुले रहें और अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के आधार पर सीमा सम्बन्धी या प्रभुसत्ता सम्बन्धी सभी विवादों को हल किया जा सके।

बरीस वलख़ोन्स्की का कहना है कि भारत और उसके सहयोगी एसियान देशों के इस तरह के नज़रियों में ही इस इलाके की स्थिति और उसकी सभी तीखी समस्याओं के प्रति पूरा अन्तर्विरोध उभरकर सामने आ जाता है। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा :

एक तरफ़ तो भारत और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के लिए चीन उन सभी का प्रमुख व्यापारिक साझेदार है, इसलिए उसे नाराज़ करना उचित नहीं है, दूसरी तरफ़ भारत और एसियान संगठन के सदस्य देश अपने राष्ट्रीय हितों के क्षेत्र में चीन की लगातार बढ़ रही घुसपैठ और उसकी विस्तारवाद की नीति देखकर परेशान और चिन्तित हैं।

इनमें से कोई भी देश, यहाँ तक कि कुल मिलाकर पूरा एसियान संगठन भी चीन की इस घुसपैठ और विस्तारवाद की नीति का सामना करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए किसी को अपना सहयोगी बनाने और संगठित होने का सवाल सभी के सामने मुँह उठाए खड़ा है। ऐसा लगता है कि अमरीका इस दिशा में एक अच्छा और ताक़तवर सहयोगी हो सकता है। अमरीकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता विक्तोरिया नूलैंड तो साफ़-साफ़ यह इशारा भी दे चुकी हैं कि वाशिंगटन इस इलाके की समस्याओं को तय करने के लिए सहयोग करने को तैयार है। लेकिन अमरीका की छवि पहले ही बहुत ख़राब है, ख़ासकर इराक, अफ़ग़ानिस्तान और लीबिया में अमरीकी कार्रवाइयों के बाद उस पर विश्वास करने की इच्छा नहीं होती। दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों की स्मृति में अभी वियतनाम युद्ध की यादें भी ताज़ा हैं, जिनका सीधा असर वियतनाम के पड़ोसी देशों लाओस और कम्बोजिया पर भी पड़ा था और इस इलाके के बाक़ी देश भी उस लड़ाई के असर से अछूते नहीं रहे थे।

लेकिन भारत की छवि ऐसी नहीं है। इस तरह एक नई वास्तविकता उभरकर सामने आ रही है कि भूमंडलीय स्तर पर दो महाशक्तियों के बीच आपसी ज़ोर आजमाइश के बावजूद ताक़त का एक नया तीसरा केन्द्र उभर कर सामने आ रहा है, जो ज़ोर आजमाइश में तो भाग नहीं ले रहा, लेकिन आज की अशान्त परिस्थिति में वास्तविक संतुलन पैदा कर रहा है।





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