दीदी की एफडीआई जिहाद की असलियत पर भी गौर कीजिए!
अगर ममता एकाधिकारवादी कारपोरेट साम्राज्यवाद के खिलाफ सचमुच लड़ रही होतीं,तो बाजार उनके हक में नहीं होता। विदेशी पूंजी के विरोध में संघ परिवार के स्वदेशी अभियान की तरह यह भी एक लोकलुभावन धमाका है, जिससे कारपोरेट और उद्योग जगत को कोई खास फर्क नहीं पड़ता। बल्कि केंद्र सरकार से अलगाव के कारण विदेशी पूंजी का लाभ लेते हुए सुदारों से बचने की नायाब रणनीति पर अमल कर रही हैं दीदी। ठीक उसी तरह जैसे हिंदुत्व और स्वदेशी का गुणगान करते हुए नरेंद्र मोदी विदेशी पूंजी निवेश के मामले में कांग्रेसी राज्यों से कोसों आगे हैं। नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी दोनों अमेरिकी आइकन हैं। अमेरिका के लिए ममता नरेंद्र मोदी से भी अहम है क्योकि उन्होंने बंगाल में पैंतीस साल से जारी वामशासन का अंत करते हुए विदेशी पूंजी और बाजार दोनों के लिए बंगाल ही नहीं, पूरे पूर्वोत्तर के दरवाजे खोल दिये।कोई अचरज नही कि अगर बहुत जल्दी अमेरिकी मीडिया में प्रधानमंत्रित्व के अगले चेहरे के रुप में नरेंद्र मोदी की जगह दीदी की तस्वीर चस्पां हो जाये।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
ममता की विदेशी पूंजी के खिलाफ जिहाद स्वागत योग्य है, लेकिन उनकी राजनीति के भयंकर अंतर्विरोदों के कारण उनकी इस मुहिम में वोट बैंक साधने और रसौदेबाजी की राजनीति के अलावा कुछ ठोस नजर नहीं आ रहा।ममता बनर्जी विदेशी पूंजी के खिलाफ लड़ाई को दिल्ली तक ले जाने के बाद अब पूरे देश में फैलाने की योजना बना रही हैं। बल्कि हकीकत तो यह है कि राजनीतिक पाखंड के मामले में वे अतिवामपंथी तेवर के वामपंथियों के नक्शेकदम पर चल रही हैं।अपनी दीदी केंद्र सरकार में रहते हुए और राज्य सरकार चलाते हुए, दोनों अवस्थान में पीपीपी माडल की समर्थक हैं और अभीतक अमेरिका, , विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रेकोष या विश्व व्यापार संगठन के खिलाप मुंह नहीं खोला है, जिनके निर्देशन में भारत को खुला बाजार बनाया गया है और कालाधन विदेशी पूंजी की खुल्ला खेल फर्ऱूखाबादी चालू है।यूपीए सरकार से नाता तोड़ चुकी ममता बनर्जी सरकार पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं। उन्होंने सरकार को 'झूठी' और 'लुटेरी' करार देते हुए कहा कि आर्थिक विकास की आड़ में वह गरीबों का शोषण कर रही है।यूपीए सरकार से समर्थन वापसी के बाद ममता बनर्जी ने दिल्ली पहुंचकर जंतर-मंतर से केंद्र सरकार पर जमकर हल्ला बोला। एफडीआई, डीजल, रसोई गैस व उर्वरक के दामों में बढ़ोतरी के खिलाफ रैली कर उन्होंने केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया। रैली में उत्तर प्रदेश और हरियाणा से आए लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। ममता के मंच पर राजग के संयोजक शरद यादव भी पहुंचे। मंच से गरजते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि देश को बेचनेवाली ऐसी सरकार नहीं चाहिए। करीब आधे घंटे के अपने भाषण में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने तृणमूल कांग्रेस को देश बचानेवाली पार्टी और जनता के हित की रक्षा करनेवाली पार्टी करार दिया। उन्होंने कहा कि अब वह इन मुद्दों को लेकर पूरे देश में सभा करेंगी। ममता ने जोर देकर कहा कि तृणमूल अब एक राज्य की पार्टी नहीं रही। सभी राज्यों का दौरा कर पार्टी का जनाधार बढ़ाएंगी। उन्होंने कहा कि वे खुद देश बचाने को अधिक प्राथमिकता देती हैं। हजारों की तादाद में जुटे समर्थकां को देखकर ममता जोश से भर उठीं और ऐलान किया कि काम भी करो और आंदोलन भी। उन्होंने कहा कि अब वे यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को तैयार हैं।
भाजपा ने फैसला किया है कि यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर पार्टी तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी का साथ देगी। शनिवार देर रात भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में यह तय किया गया। बैठक में पार्टी ने केंद्र सरकार को घेरने के मुद्दे पर रणनीति तैयार की।भाजपा ने साफ किया है कि अगर तृणमूल कांग्रेस लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाती है, तो भाजपा तृणमूल का समर्थन करेगी। इसके अलावा बीमा और पेंशन क्षेत्र में एफडीआई के सरकारी फैसले पर भी इस बैठक में चर्चा की गई। बैठक में कर्नाटक संकट को लेकर भी बात हुई, लेकिन इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका।सवाल उठ रहा है कि क्या जेडीयू नेता शरद यादव इस उम्मीद में ममता बनर्जी के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए कि शायद दीदी कभी एनडीए का दरवाजा खटखटाएं? ऐसा दीदी कैसे कर सकती हैं। इससे उनका मुस्लिम वोट बैंक दूर हो सकता है। वैसे दीदी तो सोचती होंगी कि वह क्यों जाएंगी, सारे लोग उनके पास आएं, चाहे वे एनडीए के हों या यूपीए के।
जैसे वामपंथियों ने पहली यूपीए सरकार में रहकर आर्थिक नरसंहार संस्कृति में पुरोहिती की और अमेरिका के साथ परमाणु संधि का कार्यान्वन सुनिश्चित होने के बाद ही उससे नाता तोड़ लिया, उसीतरह ममता बनर्जी ने दूसरी यूपीए का साथ तब तक नहीं छोड़ा, जबतक न कि अगले चुनाव के जनादेश के बारे में उन्हें यह आभास नहीं हो गया कि जनविरोधी मनमोहन सरकार की सत्ता में वापसी अब लगभग असंभव है। वामपंथी जनता को यह समझाने में नाकाम रहे कि परमाणु संधि कैसे और क्यों राष्ट्र के खिलाफ है, लेकिन खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी या फिर सब्सिडी खत्म करने के सवाल पर जनता ऐसे उबल रही है और ऐसी राजनीतिक शून्यता तैयार हो गयी कि वे रातोंरात प्रतिरोध की महानायिका हो गयी। नंदीग्राम और सिंगुर में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जनांदलन के रथ पर सवार उन्होंने सत्ता से वामपंथियों को बेदखल करने में कामयाबी जरूर पायी हों, विदेशी पूंजी के खिलाफ जिहाद का उनका कोई इतिहास नहीं है। इसके उलट इतिहास यह है कि वे राजद की अटलबिहारी सरकार के मंत्रिमंडल में रेलंत्री थीं, जिसमें विनिवेश मंत्रालय के जरिये निजीकरण और विनिवेश, एफडीआई का अभियान शुरू हुआ। इसी सरकार ने डिजिटल बायोमैट्रिक नागरिकता के लिए नागरिकता संशोधन कानून लागू किया और आधार योजना लागू किया, जो आर्थिक सुधारों के जरिये बहिष्कृत जनसमुदायों, बहुसंख्यक निनानब्वे फीसद जनता के कत्लेआम का सबब बना।खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी की योजना भाजपा की ही है हालांकि पांच करोड़ व्यापारी परिवारों के अटूट वोटबैंक की वजह से वह अब इसका ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ रही है। बाकी सुधारों के प्रति वह कांग्रेस से ज्यादा प्रतिबद्ध है और लंबित वित्तीय कानून पास करने में वह सरकार को पूरा सहयोग भी कर रही है। भाजपा सरकार गिराने की कोी कोशिस नहीं कर रही हैं तो ममता जानती है कि उनकी बगावत से सरकार नहीं गिरने जा रही है।
आजकल ममता एफ.डी.आई का काफी विरोध कर रही हैं। और जिसके चलते वे यूपीए से निकल आई। मगर प्रश्न यह है कि क्या वो सचमुच इसके खिलाफ है या नहीं!वैसे तो दीदी पूंजीवादियों के खिलाफ जंग लड़ रही है, ऐसा काफी लोगों को लग रहा है। परन्तु यह एक दिखावा है यह पानी की तरह स्पष्ट है। कैसै ? अगर गौर से देखा जाए तो यह देखा जाएगा कि कोलकाता और बाकी बंगाल में मेट्रो कैश एंड कैरी, स्पेन्सर,बिग बाजार और दूसरी कंपनियां खुदरा कारोबार पर हावी हो रही हैं, सरकारी संरक्षण में।यही नहीं, 'नया बंगाल, उभरता हुआ बंगाल' टैगलाइन के साथ इस फिल्म में राज्य में निवेश की तगड़ी संभावना वाले विभिन्न क्षेत्रों को भी दर्शाया गया है। मसलन, शिक्षा, दवा और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे उन क्षेत्रों का जिक्र किया गया है, जहां निवेश की अच्छी-खासी संभावना है।
विदेशी पूंजी के लिए उनकी सरकार भी लालायित है। कोलकाता में हिलेरिया की सवारी और बाद में अमेरिकी राजदूत नैंसी बहना से उनकी मुलाकातों का ब्यौरा अभी गोपनीय हैं। बंगाल से वामपंथियो को खदेड़ने में बाजार की जो ताकतें ममता के साथ खड़ी थीं, वे आज भी उनके साथ हैं।
अगर ममता एकाधिकारवादी कारपोरेट साम्राज्यवाद के खिलाफ सचमुच लड़ रही होतीं,तो बाजार उनके हक में नहीं होता। विदेशी पूंजी के विरोध में संघ परिवार के स्वदेशी अभियान की तरह यह भी एक लोकलुभावन धमाका है, जिससे कारपोरेट और उद्योग जगत को कोई खास फर्क नहीं पड़ता। बल्कि केंद्र सरकार से अलगाव के कारण विदेशी पूंजी का लाभ लेते हुए सुदारों से बचने की नायाब रणनीति पर अमल कर रही हैं दीदी। ठीक उसी तरह जैसे हिंदुत्व और स्वदेशी का गुणगान करते हुए नरेंद्र मोदी विदेशी पूंजी निवेश के मामले में कांग्रेसी राज्यों से कोसों आगे हैं। नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी दोनों अमेरिकी आइकन हैं। अमेरिका के लिए ममता नरेंद्र मोदी से भी अहम है क्योकि उन्होंने बंगाल में पैंतीस साल से जारी वामशासन का अंत करते हुए विदेशी पूंजी और बाजार दोनों के लिए बंगाल ही नहीं, पूरे पूर्वोत्तर के दरवाजे खोल दिये।कोई अचरज नही कि अगर बहुत जल्दी अमेरिकी मीडिया में प्रधानमंत्रित्व के अगले चेहरे के रुप में नरेंद्र मोदी की जगह दीदी की तस्वीर चस्पां हो जाये।
पश्चिम बंगाल में पिछले 14 महीनों में भूख से 13 लोगों की मौत होने का दावा किया गया है। मजदूर संघों और गैर सरकारी संगठनों ने यह दावा करते हुए शनिवार को जन वितरण प्रणाली में सुधार लाने की मांग की है।
संगठनों ने राय सरकार से यह अनुरोध भी किया कि वह केंद्र सरकार को प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक में कुछ संशोधन करने का सुझाव दे। सर्वोच्च न्यायालय की पश्चिम बंगाल में सलाहकार अनुराधा तलवार ने यहां बताया, राय में मई 2011 से अब तक भूख से 13 लोगों की मौत होने की खबर मिली है। इसका तात्पर्य है कि पश्चिम बंगाल में खाद्य सुरक्षा की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। जन वितरण प्रणाली में सुधार लाने की अत्यंत जरूरत है ताकि इसका वास्तविक लाभ गरीबों व जरूरतमंदों तक पहुंचे। राय के खाद्य मंत्री योति प्रिया मल्लिक ने हालांकि भूख से मौत की खबरों को खारिज किया। मल्लिक ने कहा, भूख से एक भी मौत नहीं हुई है कुछ मामलों में हालांकि अस्वाभाविक मौतें हुई हैं लेकिन भूख या भुखमरी के कारण नहीं। कुछ मौतें सांप के काटने से, जबकि अन्य मौतें बुढ़ापे तथा बीमारी के कारण हुईं। वहीं, तलवार ने मरने वालों के मृत्यु प्रमाणपत्रों का हवाला देते हुए दावा किया कि मौतें भूख के कारण हुईं। तलवार पश्चिम बंग खेत मजूर समिति (एक मजदूर संघ) तथा कई अन्य संगठनों का नेतृत्व करती हैं। उन्होंने जन वितरण प्रणाली का कुप्रबंधन रोकने के लिए इस प्रणाली में सुधार लाने की मांग के समर्थन में रायव्यापी आंदोलन करने की योजना बनाई है।
बंगाल में औद्योगिक क्रांति शुरु हो गयी है। राज्य भर में 179 परियोजनाओं की शुरूआत हो चुकी है। जिसमें एक लाख 32 हजार करोड़ रुपये का निवेश होगा। अब उद्योग लगाने के लिये सरकार से मात्र 15 दिनों में अनुमति मिलेगी। उद्योगपतियों से आसनसोल, दुर्गापुर, पुरुलिया और वीरभूम में अधिक से अधिक निवेश करने को कहा गया है। निवेशकों को कोई परेशानी न हो इसके लिये 4300 किमी सड़क बनायी जायेगी। उक्त बातें राज्य के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने बर्नपुर में कही।
इसी बीच बंगाल सरकार ने अपने प्रचार अभियान में सपनों के सौदागर शाहरुख खान को लगाया है। इसके लिए जो वीडियो तैयार किया गया है उसमें बॉलीवुड मसाला फिल्म के सभी तत्त्व मौजूद हैं। उत्तर बंगाल की पहाडिय़ों के हैरतअंगेज दृश्य, सुंदरवन के जंगल, बंगाल की खाड़ी, बॉलीवुड पाश्र्व गायक शान की आवाज में रवींद्र टैगोर के भावपूर्ण गीत 'बंगलार माटी, बंगलार जलÓ और इन सब के बीच किंग खान की शानदार संवाद अदायगी 'बंगाल कुछ खास है।'
इस प्रचार अभियान का निर्देशन राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म निर्माता अनिरुद्घ राय चौधरी ने किया है। उन्होंने शाहरुख को बैटमैन के अंदाज में अंधेरे से निकलते हुए दर्शाया है, जो बच्चों को सुनहरी जादुई गेंद दे रहे हैं। यही नहीं, 'नया बंगाल, उभरता हुआ बंगाल' टैगलाइन के साथ इस फिल्म में राज्य में निवेश की तगड़ी संभावना वाले विभिन्न क्षेत्रों को भी दर्शाया गया है। मसलन, शिक्षा, दवा और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे उन क्षेत्रों का जिक्र किया गया है, जहां निवेश की अच्छी-खासी संभावना है।
इस अभियान में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भूमिका बहुत गहरी है। उन्होंने सुपरस्टार को समझाने के अलावा, जाहिरा तौर पर दृश्यों के मामले में महत्त्वपूर्ण सलाह भी दी है। पश्चिम बंगाल में शाहरुख की मौजूदगी अब तक केवल इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की कोलकाता नाइट राइडर्स टीम की वजह से रही है। वह इस प्रचार अभियान में मुफ्त योगदान दे रहे हैं।
पश्चिम बंगाल के सूचना एवं सांस्कृतिक मामलों के विभाग की सचिव नंदिनी चक्रवर्ती कहती हैं, 'शाहरुख हमारे ब्रांड ऐंबेसडर हैं। उन्होंने अपने मूल्यवान योगदान के लिए कोई मेहनताना नहीं लिया है।' यह अभियान एक पखवाड़े के भीतर शुरू किया जाएगा, जिसके बाद राज्य की संभावनाओं को दर्शाने के लिए विभाग विशेष विज्ञापनों की एक पूरी शृंखला चलाएगा। लेकिन इस पूरे अभियान पर कितना खर्च किया जाएगा, इसकी जानकारी नहीं दी गई है।
इससे पहले राज्य में वामपंथी दलों की सरकार ने बंगाल के लिए ब्रांड आइडिया विकसित करने की जिम्मेदारी छवि कलाकार वॉली ओलिन्स को सौंपी थी। उस परियोजना पर काम करते हुए ओलिन्स ने कहा था कि ब्रांडिंग आंशिक रूप से प्रलोभन को लेकर था, लेकिन उन्होंने आगाह भी किया था कि विचार वास्तविक होने चाहिए। ओलिन्स ने अपनी परियोजना पूरी की, लेकिन उसे कभी लागू नहीं किया गया क्योंकि बीच में ही सरकार बदल गई। बंगाल में हाल के दिनों में निवेश का कोई बड़ा प्रस्ताव नहीं आया है। कुछ सम्मेलनों के जरिये निवेशकों को लुभाने की राज्य सरकार की कोशिश भी अभी तक पूरी तरह रंग नहीं ला पाई है। अब सरकार को इस नई कवायद से बड़ी उम्मीदें हैं।
भाकपा के वरिष्ठ नेता ए. बी. बर्धन ने आज कहा कि वामपंथी नया मोर्चा बनाना चाहते हैं लेकिन उन्होंने तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को उसमें जगह देने से इंकार किया। बनर्जी को उन्होंने 'छद्म वामपंथी' बताया।
बर्धन ने दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि बनर्जी 'वामपंथी नारे लगा रही' हैं क्योंकि बंगाल के लोग वामपंथ की ओर उन्मुख हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे मुद्दे उठाकर वह ठीक कर रही हैं लेकिन दावा किया कि राज्य की विविधता के कारण वह ऐसा करने को बाध्य हैं। भाकपा नेता ने कहा, 'हम नया मोर्चा बनाना चाहते हैं। ऐसा मोर्चा बनेगा।' यह पूछने पर कि क्या बनर्जी को मोर्चा में जगह मिलेगी तो बर्धन ने कहा, 'मैंने वाम उन्मुख पार्टियों के बारे में कहा। मैंने छद्म वामपंथियों के बारे में नहीं कहा जो वामपंथियों के नारे लगाती हैं लेकिन आवश्यक रूप से वामपंथी नहीं हैं।'
उन्होंने कहा, 'वामपंथियों को हराकर वह सत्ता में आईं। अगर वह वामपंथियों के नारे लगा रही हैं तो इसका कारण है कि बंगाल में जनता वाम उन्मुख है।' उन्होंने कहा कि वामपंथी पार्टियां सरकार की लोक विरोधी नीतियों के खिलाफ लोकतांत्रिक ताकतों से हाथ मिलाएंगी। उन्होंने कहा, 'अब चुनाव शुरू हो गए हैं। हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा को दोनों राज्यों में सत्ता में बरकरार रहने की उम्मीद है। जहां तक हिमाचल का सवाल है, भाजपा हारेगी और कई अन्य पार्टियां उभरेंगी।'
देश के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह दरअसल सिंह नहीं सिंह की खाल में कोई दुर्बल जीव हैं। आर्थिक सुधार की दिशा के नाम पर केंद्र सरकार की जो नीतियां हैं वह पूरी तरह से निंदनीय हैं। शनिवार को बालुरघाट में हुई जनसभा में सीटू के अखिल भारतीय अध्यक्ष श्यामल चक्रवर्ती ने यह टिप्पणी की। वित्तीय सुधारों को लेकर प्रधान मंत्री के लापरवाह कदम व दहाड़ की निंदा में करते हुए उन्होंने सिंह की खाल में सियार की कहानी की याद दिलायी। शनिवार को बालुरघाट शहर में सीटू के जिला सम्मेलन के पहले दिन शाम को हाईस्कूल मैदान में हुई जनसभा को संबोधित करते हुए पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ माकपा नेता श्यामल चक्रवर्ती ने कहा कि यूपीए सरकार की हाल ही में बीमा, पेंशन एवं खुदरा व्यवसाय में विदेशी निवेश की जमकर निंदा की। उन्होंने कहा कि बीमा में 49 प्रतिशत विदेशी निवेश से आमलोग सुरक्षा की कमी महसूस करेंगे। अमेरिका का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि देश में मंदा के समय कई बैंक व बीमा कंपनियां आम लोगों के रुपये वापस किए बिना बंद हो गए। रुपये रखने के लिए सुरक्षित जगह होती है सरकारी संस्था। अब उसमें भी सेंध लग जाएगी। खुदरा व्यवसाय में विदेशी निवेश को लेकर उन्होंने बताया कि दुनिया का बड़ा शॉपिंग माल है व्यवसायी वाल मार्ट। ये देश में खुदरा व्यापार करने पर देश के मोहल्लों में बाजारों में खुदरा व्यवसायियों से कम कीमत पर सामान बेचेंगे। इससे देश के 4 करोड़ 40 लाख खुदरा व्यवसायी प्रतियोगिता में पिछड़ जाएंगे। जिनकी रोजी रोटी बंद हो जाएगी। 20 करोड़ परिवार भूखे मरेंगे। जबकि इन विदेशी पूंजी के व्यापार में केवल 21 लाख लोगों को नौकरी मिलेगी। इसके लिए जिन देशों में व्यापार कर रहे हैं वहां से उन्हें खदेड़ने की व्यवस्था की जा रही है। अमेरिका के प्रेसीडेंट बराक ओबामा ने खुद चुनाव से पहले अपने भाषण में जनता से इन वालमार्ट से सामान नहीं खरीदने व मोहल्लों के खुदरा व्यवसायियों से सामान खरीदने की बात कह रहे हैं। उन्होंने बताया कि देश में कृषि के बाद अधिकतर लोग खुदरा व्यवसाय को जीविका का साधन बनाए हुए हैं। मंदा के बाजार में विदेश में जगह नहीं मिलने से ये कंपनियां नया बाजार पकड़ने के लिए तैयारियां शुरू कर दी है। श्यामल चक्रवर्ती ने बताया कि अमेरिका की एक पत्रिका ने हाल में बताया कि मनमोहन सिंह कोई काम के नहीं हैं, वह सुधार नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में अमेरिका को संतुष्ट करने के लिए ही उन्होंने लापरवाही से खुदरा, बीमा, व्यवसाय व पेंशन में विदेशी पूंजी निवेश का फैसला ले लिया। केंद्र के यूपीए सरकार के अलावा राज्य के सत्ता दल के सुप्रीमो व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि केंद्र में यूपीए सरकार के समय वामपंथियों ने उस मंत्री सभा का समर्थन किया था, लेकिन हमारे 61 सांसदों ने बार बार विदेशी पूंजी निवेश का विरोध कर रोक दिया। वर्तमान में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जब सांसद है उन्होंने कांग्रेस को बचाने के लिए इस मुद्दे पर मतदान में भी भाग नहीं लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि तृकां के राज में राज्य में कानून व्यवस्था टूट चुकी है। लोकतांत्रिक पद्धति से तृकां के विरोध के कारण ही तृकां सरकार उन्हें कई तरह से परेशान कर रहे हैं। शनिवार को जिला सम्मेलन में माकपा के जिला सचिव मानवेश चौधरी, पूर्व मंत्री एवं जिला माकपा नेता नारायण विश्वास, जिला सीटू के सचिव सुषेण सरकार, वाममोर्चा के घटक दल आरएसपी नेता बिमल सरकर व जिला परिषद के सह अध्यक्ष अमित सरकार उपस्थित थे।
Sunday, October 7, 2012
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