---------- Forwarded message ----------
From: rajiv yadav <rajeev.pucl@gmail.com>
Date: 2012/10/7
Subject: कचेहरी सीरियल बम विस्फोट कांड
To: Shah Nawaz <shahnawaz.media@gmail.com>
शासन में विशेष सचिव राजेंद्र कुमार द्वारा जिलाधिकारियों को भेजे गए
पत्र में बाराबंकी कोतवाली में दर्ज अपराध संख्या-1891/2007, फैजाबाद
कोतवाली में दर्ज अपराध संख्या 3398/2007, लखनऊ के वजीरगंज थाने में दर्ज
अपराध संख्या 547/2007, गोरखपुर के कैंट थाने में दर्ज अपराध संख्या
812/2007 का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इन जिलों में आतंकवाद के नाम
पर निर्दोष मुस्लिम युवकों तारिक कासमी, खालिद मुजाहिद आदि पर दर्ज
अभियोगों की वापसी के संदर्भ में शासन को सूचना चाहिए। कचेहरी सीरियल बम
विस्फोट कांड के अभियुक्तों की रिहाई अब आसान होती नजर आ रही है क्योंकि
प्रदेश सरकार ने उक्त केस को वापस लेने का मन बना लिया है. वहीँ ए टी एस
व एस टी ऍफ़ के उच्च अधिकारी लखनऊ में बैठ कर अपने क्र्त्यों को छिपाने
के लिये विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपना रहे हैं और इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट
मीडिया के माध्यम से अपने पक्ष में समाचार प्रकाशित करा रहे हैं.
कचेहरी सीरियल बम विस्फोट कांड के अभियुक्तों की रिहाई अब आसान होती नजर
आ रही है क्योंकि प्रदेश सरकार ने उक्त केस को वापस लेने का मन बना लिया
है. वहीँ ए टी एस व एस टी ऍफ़ के उच्च अधिकारी लखनऊ में बैठ कर अपने
क्र्त्यों को छिपाने के लिये विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपना रहे हैं और
इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया के माध्यम से अपने पक्ष में समाचार
प्रकाशित करा रहे हैं.
प्रदेश में 23 नवम्बर 2007 को लखनऊ, बनारस, फैजाबाद की कचेहरियों में बम
विस्फोट हुए थे और अधिवक्ताओं और जनता के दबाव में तत्कालीन सरकार के
कारिंदों ने अपने को बचने हेतु फर्जी तरीके से उक्त कसे का खुलासा कर
तारिख काशमी को आजमगढ़ से 12 दिसम्बर 2007 को एस टी ऍफ़ द्वारा अपहरण कर
लिया था. जिसकी रिपोर्ट आजमगढ़ में दर्ज हुई बताई जाती है और 16 दिसम्बर
2007 को खालिद मुजाहिद को मडियाहू बाजार जिला जौनपुर से गिरफ्तार किया
गया था जिसकी सूचना सभी प्रमुख अख़बारों ने प्रकाशित किया था कि खालिद
मुजाहिद का अपहरण कुछ सफ़ेद पोश व्यक्तियों ने कर लिया था. बाद में सूचना
अधिकार अधिनियम के तहत छेत्रधिकारी मडियाहू ने लिखित रूप से दिया था कि
16 दिसम्बर 2007 को खालिद मुजाहिद को गिरफ्तार कर लिया था. घटना में नया
मोड़ आया जब बाराबंकी जिला प्रशासन को बगैर सूचित किये बाराबंकी रेलवे
स्टेशन पोर्टिको से खालिद मुजाहिद व तारिक काशमी की गिरफ्तारी 22 दिसम्बर
2007 को भरि बम विस्फोटकों के साथ दिखा दी गयी. जबकि वास्तविकता यह है कि
कोई बरामदगी हुई ही नहीं थी. एस टी ऍफ़ द्वारा कंप्यूटर चिक तैयार कर
बाराबंकी कोतवाली में जबरदस्ती मुहर लगवा ली गयी थी. जबकि रेलवे परिसर
में गिरफ्तारी होने पर जीआरपी थाने में दर्ज होनी चाहिए थी. तत्कालीन
विवेचना अधिकारी दयाराम सरोज को कथित गिरफ्तारी के बाद पहले रिमांड जिला
कारागार बाराबंकी में पेश करना बताया गया था जबकि 22 दिसम्बर 2007 को
दयाराम सरोज को जेल के अन्दर जाना नहीं बताया जाता है.
खतरनाक विस्फोट सामग्री कभी भी न्यायालय के समक्ष पेश नहीं की गयी और न
ही मीडिया के समक्ष पेश की गयी. वाद वापसी के लिये प्रदेश सरकार को किसी
भी पूछताछ की आवश्यकता नहीं है क्यूंकि दोनों कथित आतंकी व्यक्तियों की
गिरफ्तारी के सवाल को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने न्यायमूर्ती आर.डी
निमेष की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित किया था. उन्होंने अपनी रिपोर्ट
प्रदेश सरकार को पिछले माह दे डी. सरकार जांच कमीशन रिपोर्ट का तुरंत
अवलोकन करे और उसी के आधार पर अपना निर्णय ले ले तो कथित आतंकियों को
न्याय अवश्य मिल जायेगा. लेकिन सरकार द्वारा फर्जी व्यक्तियों की रिहाई
के सवाल को लेकर ए टी एस की कलाई खुल रही है जिससे लखनऊ में बैठे ए टी एस
के उच्च अधिकारी अपने करती के पक्ष में अभियोजन अधिकारीयों से लेकर
रिपोर्ट भेजने वाले अधिकारीयों पर दबाव बना कर केस वापस नहीं होने देना
चाहते हैं इसके लिये वह प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा अपने
समर्थन में अख़बारों में समाचार प्रकाशित करा रहे हैं.
रणधीर सिंह सुमन
एडवोकेट
बाराबंकी
From: rajiv yadav <rajeev.pucl@gmail.com>
Date: 2012/10/7
Subject: कचेहरी सीरियल बम विस्फोट कांड
To: Shah Nawaz <shahnawaz.media@gmail.com>
शासन में विशेष सचिव राजेंद्र कुमार द्वारा जिलाधिकारियों को भेजे गए
पत्र में बाराबंकी कोतवाली में दर्ज अपराध संख्या-1891/2007, फैजाबाद
कोतवाली में दर्ज अपराध संख्या 3398/2007, लखनऊ के वजीरगंज थाने में दर्ज
अपराध संख्या 547/2007, गोरखपुर के कैंट थाने में दर्ज अपराध संख्या
812/2007 का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इन जिलों में आतंकवाद के नाम
पर निर्दोष मुस्लिम युवकों तारिक कासमी, खालिद मुजाहिद आदि पर दर्ज
अभियोगों की वापसी के संदर्भ में शासन को सूचना चाहिए। कचेहरी सीरियल बम
विस्फोट कांड के अभियुक्तों की रिहाई अब आसान होती नजर आ रही है क्योंकि
प्रदेश सरकार ने उक्त केस को वापस लेने का मन बना लिया है. वहीँ ए टी एस
व एस टी ऍफ़ के उच्च अधिकारी लखनऊ में बैठ कर अपने क्र्त्यों को छिपाने
के लिये विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपना रहे हैं और इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट
मीडिया के माध्यम से अपने पक्ष में समाचार प्रकाशित करा रहे हैं.
कचेहरी सीरियल बम विस्फोट कांड के अभियुक्तों की रिहाई अब आसान होती नजर
आ रही है क्योंकि प्रदेश सरकार ने उक्त केस को वापस लेने का मन बना लिया
है. वहीँ ए टी एस व एस टी ऍफ़ के उच्च अधिकारी लखनऊ में बैठ कर अपने
क्र्त्यों को छिपाने के लिये विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपना रहे हैं और
इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया के माध्यम से अपने पक्ष में समाचार
प्रकाशित करा रहे हैं.
प्रदेश में 23 नवम्बर 2007 को लखनऊ, बनारस, फैजाबाद की कचेहरियों में बम
विस्फोट हुए थे और अधिवक्ताओं और जनता के दबाव में तत्कालीन सरकार के
कारिंदों ने अपने को बचने हेतु फर्जी तरीके से उक्त कसे का खुलासा कर
तारिख काशमी को आजमगढ़ से 12 दिसम्बर 2007 को एस टी ऍफ़ द्वारा अपहरण कर
लिया था. जिसकी रिपोर्ट आजमगढ़ में दर्ज हुई बताई जाती है और 16 दिसम्बर
2007 को खालिद मुजाहिद को मडियाहू बाजार जिला जौनपुर से गिरफ्तार किया
गया था जिसकी सूचना सभी प्रमुख अख़बारों ने प्रकाशित किया था कि खालिद
मुजाहिद का अपहरण कुछ सफ़ेद पोश व्यक्तियों ने कर लिया था. बाद में सूचना
अधिकार अधिनियम के तहत छेत्रधिकारी मडियाहू ने लिखित रूप से दिया था कि
16 दिसम्बर 2007 को खालिद मुजाहिद को गिरफ्तार कर लिया था. घटना में नया
मोड़ आया जब बाराबंकी जिला प्रशासन को बगैर सूचित किये बाराबंकी रेलवे
स्टेशन पोर्टिको से खालिद मुजाहिद व तारिक काशमी की गिरफ्तारी 22 दिसम्बर
2007 को भरि बम विस्फोटकों के साथ दिखा दी गयी. जबकि वास्तविकता यह है कि
कोई बरामदगी हुई ही नहीं थी. एस टी ऍफ़ द्वारा कंप्यूटर चिक तैयार कर
बाराबंकी कोतवाली में जबरदस्ती मुहर लगवा ली गयी थी. जबकि रेलवे परिसर
में गिरफ्तारी होने पर जीआरपी थाने में दर्ज होनी चाहिए थी. तत्कालीन
विवेचना अधिकारी दयाराम सरोज को कथित गिरफ्तारी के बाद पहले रिमांड जिला
कारागार बाराबंकी में पेश करना बताया गया था जबकि 22 दिसम्बर 2007 को
दयाराम सरोज को जेल के अन्दर जाना नहीं बताया जाता है.
खतरनाक विस्फोट सामग्री कभी भी न्यायालय के समक्ष पेश नहीं की गयी और न
ही मीडिया के समक्ष पेश की गयी. वाद वापसी के लिये प्रदेश सरकार को किसी
भी पूछताछ की आवश्यकता नहीं है क्यूंकि दोनों कथित आतंकी व्यक्तियों की
गिरफ्तारी के सवाल को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने न्यायमूर्ती आर.डी
निमेष की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित किया था. उन्होंने अपनी रिपोर्ट
प्रदेश सरकार को पिछले माह दे डी. सरकार जांच कमीशन रिपोर्ट का तुरंत
अवलोकन करे और उसी के आधार पर अपना निर्णय ले ले तो कथित आतंकियों को
न्याय अवश्य मिल जायेगा. लेकिन सरकार द्वारा फर्जी व्यक्तियों की रिहाई
के सवाल को लेकर ए टी एस की कलाई खुल रही है जिससे लखनऊ में बैठे ए टी एस
के उच्च अधिकारी अपने करती के पक्ष में अभियोजन अधिकारीयों से लेकर
रिपोर्ट भेजने वाले अधिकारीयों पर दबाव बना कर केस वापस नहीं होने देना
चाहते हैं इसके लिये वह प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा अपने
समर्थन में अख़बारों में समाचार प्रकाशित करा रहे हैं.
रणधीर सिंह सुमन
एडवोकेट
बाराबंकी
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