सिंगुर मे भी बैरकपुर जैसा हाल!दो मंत्रियों रवीन्द्र नाथ भट्टाचार्य और बेचाराम मान्ना के समर्थकों के विवाद से पार्टी वहां दो फाड़!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
जिस सिंगुर की भूमि आंदोलन से तृणमूल कांग्रेस सत्ता तक पहुंची, वहां के अनिच्छुक किसानों को जमीन वापस दिलाने की सर्वोच्च प्राथमिकता के तहत कानून पास करवा कर भी दीदी कुछ खास नहीं कर पायी। अब उसी सिगुर में तृणमूल कांग्रेस में भारी मारकाट मची हुई है। राज्य के दो मंत्रियों रवीन्द्र नाथ भट्टाचार्य और बेचाराम मान्ना के समर्थकों के विवाद से पार्टी वहां दो फाड़ है। हद तो तब हो गयी जबकि मान्ना समर्थकों ने बुजुर्ग मंत्री भट्टाचार्य के घर पर जोरदार प्रदर्शन किया। शीर्ष नेतृत्व की ओर से सिंगूर भूमि आंदोलन के दो नेताओं के मतभेद को सुलझाने की कोशिश नही हुई तो वहां भी देर सवेर बैरकपुर जैसे हालात बनने के प्रबल आसार है। जिसतरह बैरकपुर शिल्पांचल में सांसद मुकुल राय और दबंग विधायक अर्जुन सिंह के वर्चस्व के खिलाफ वहां बगावत की हालत है, कुछ वैसा ही नजारा सिंगुर में भी दिखने लगा है। मान्ना पहले भट्टाचार्य को ही नेता मानते थे। पर नाराज भट्टाचार्य के मंत्री पद छोड़ देने की धमकी के बाद मान्ना को सिंगुर का चेहरा बनाने के मकसद से मंत्री बना दिया गया। बाद में भट्टाचार्य तो मंत्रिमंडल में बहाल हो गये, लेकिन सिंगुर का समीकरण बदल गया। वहां शिक्षक भट्टाचार्य के बदले अब मान्ना की ही तूती बलती है। इससे सिंगुर में अब विस्फोटक स्थिति बन गयी है। सिंगुर में तृणमूल के लिए विपक्ष की ओर से कोई चुनौती नहीं है, बल्कि पार्टी अंतर्कलह से जूझने में लगी है और वहां जनाधार तेजी से खिसकने लगा है।
फिलहाल विवाद इस लिए है कि भट्टाचार्य के नजदीकी माणिक दास को जिला परिषद के लिए उम्मीदवार बनाया गया है। मान्ना समर्थकों ने मान्ना अनुगामी निमाई मल्लिक को दास के बदले उम्मीदवार बनाने की मांग लेकर भट्टाचार्य के घर पर धावा बोल दिया। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में प्रत्याशियों के चयन को लेकर दोनों पक्षों ने सिंगुर को कुरुक्षेत्र में बदल दिया है।बैरकपुर में तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों और पार्टी समर्थित बदमाशों ने शुक्रवार को एबीपी न्यूज के एक पत्रकार को जिंदा जलाने की कोशिश की जबकि चार अन्य पत्रकारों पर हमला कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया। ये पत्रकार हत्या के बाद हुई हिंसा की घटना को कवर करने गए थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस के दो गुटों के बीच हुए फसाद में एक व्यक्ति की हत्या हो गई थी।
हालांकि रवीद्रनाथ भट्टाचार्य ने अपने घर कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन की खबर से साफ इंकार कर दिया है और दावा किया है कि कार्यकर्ता अपनी बात कहने आये थे, जिसका उन्हें पूरा हक है। लेकिन इसके साथ उन्होंने यह सवाल भी किया कि अगर मंत्री बेचाराम मान्ना की पत्नी कावेरी मान्ना को जिला परषद के लिए प्रत्याशी बनाया गया है तो निमाई दास प्रत्याशी क्यों नहीं हो सकते!
पिछले दिनों राज्य मंत्रिमंडल में हुए पहले बड़े फेरबदल में ममता ने सिंगुर के विधायक रवींद्रनाथ भट्टाचार्य से कृषि मंत्रालय छीन लिया गया। सिंगुर आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले शिक्षक रवींद्रनाथ इस फेरबदल से इतने नाराज हुए कि उन्होंने अपना नया मंत्रालय ही नहीं संभाला और एक सप्ताह के मान-मनौव्वल के बावजूद राज्य सचिवालय आने के लिए तैयार नहीं हुए। इससे पहले भी उनका मंत्रालय एक बार बदला जा चुका था। फेरबदल के बाद उन्होंने अपनी सरकारी कार लौटा दी और सिंगुर में अपने घर पर ही जमे रहे। उन्हें मनाने की ममता की तमाम कोशिशें नाकाम ही साबित हुर्इं। रवींद्रनाथ की नाराजगी का ध्यान रखते हुए ममता ने हुगली जिले के विकास कार्यों का जायजा लेने के लिए सिंगुर में ही प्रशासनिक बैठक का आयोजन किया। लेकिन रवींद्रनाथ उसमें शामिल नहीं हुए। बार-बार बुलावा भेजने के बावजूद उन्होंने उसी दिन राजनीति से संन्यास का भी एलान कर दिया। यही नहीं, उन्होंने अब पार्टी में कमीशनखोरी का मुद्दा उठा कर सनसनी फैला दी ।तब भट्टाचार्य ने यह आरोप भी लगाया कि पार्टी में तमाम नेता भ्रष्टाचार में डूबे हैं और सिंगुर में स्कूली शिक्षकों की बहाली में जम कर कमीशन का लेन-देन हुआ । भट्टाचार्य के मुद्दे पर सिंगुर के लोग भी दो गुटों में बंट गए हैं। सिंगुर आंदोलन में सक्रिय रहे बेचाराम मान्ना पिछले फेरबदल में मंत्री बनने के बाद जब पहली बार सिंगुर पहुंचे तो उनको स्थानीय लोगों के विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। कभी सिंगुर आंदोलन का चेहरा रहे बेचाराम अब अपने ही इलाके में बेचारे बन कर रह गए।
फिर भट्टाचार्य को दीदी ने आखिर कार मना ही लिया लेकिन तब तक देरी हो चुकी थी। पिछले विधानसभा चुनाव से अब तक माहौल काफी बदल चुका है।स्थानीय लोगों का आरोप है कि सिंगुर आंदोलन के सहारे सत्ता में आई दीदी ने अब तक लोगों के लिए कुछ भी नहीं किया। नैनो परियोजना के लिए ली गई जमीन भी वापस नहीं मिल सकी है। कभी तृणमूल कांग्रेस के लिए मक्का-मदीना रहा सिंगूर आज उससे बहुत दूर हो चुका है और ममता बनर्जी की लोकप्रियता इलाके में सतह पर पहुंच चुकी है। मोर्चा के कार्यकाल में टाटा मोटर्स की नैनो परियोजना के लिए हुए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ ममता ने वर्ष 2006-2008 के दौरान व्यापक आंदोलन चलाया था। लेकिन जब 2011 में वह सत्तारूढ़ हुईं तब वही सिंगूर उनके लिए चिढ़ाने वाला मुद्दा बन गया। भूमि अधिग्रहण विरोधी किसानों को जमीन वापस दिलाने का उन्होंने वादा किया था। मोटर निर्माता के साथ कानूनी लड़ाई शुरू होने के कारण वादा पूरा नहीं हो पाया और इससे किसान असंतुष्ट हैं। जिन किसानों ने वाम मोर्चा सरकार से भूमि के बदले चेक स्वीकार नहीं किया था वे अब गंभीर आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हैं।
पंचायत चुनाव से पहले यहां रैली भी कर चुकी हैं दीदी और किसानों को फिर आश्वस्त भी किया है कि उनकी अधिगृहित जमीन वापस की जायेगी। लेकिन उनके ही सिपाहसालार उनके किये कराये पर पानी फेरने लगे हैं।सिंगूर के किसानों को दीदी एक हजार रुपये मासिक भत्ता देने का एलान कर चुकी है. किसान पूछ रहे हैं कि क्या एक हजार में महीना काटा जा सकता है! पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सिंगूर की तुलना श्मशान से की है!
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