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Friday, November 8, 2013

बंगाल में आलू दंगा,चावल को लेकर क्या होगा,कोई नहीं जाने आलू कारोबार सरकारी देखरेख में लाने की जिद से कारोबारी और उपभोक्ता आपस में सीधे भिड़ रहे हैं।संकट तो सुलझा नहीं लेकिन तेजी से बाजारों में हिंसा का माहौल बन रहा है और कारोबार का माहौल जो पहले से चौपट है,और चौपट होने लगा है।उपभोक्ताओं का गहित देखने के चक्कार में दीदी किसानों और छोटे कारोबारियों के हित भूल गयीं।चावल संकट हुआ तो हालात एकदम बेलगाम होंगे। ममता बनर्जी पर उमड़ा 'छठ' प्रेम বাঙালির জোড়া 'নিরূদ্দেশ সঙ্কট'-বাজারে আলু অমিল, রাস্তায় বাসের দেখা নেই Potatoes vanish from West Bengal markets as Mamata government slashes price

बंगाल में आलू दंगा,चावल को लेकर क्या होगा,कोई नहीं जाने

आलू कारोबार सरकारी देखरेख में लाने की जिद से कारोबारी और उपभोक्ता आपस में सीधे भिड़ रहे हैं।संकट तो सुलझा नहीं लेकिन तेजी से बाजारों में हिंसा का माहौल बन रहा है और कारोबार का माहौल जो पहले से चौपट है,और चौपट होने लगा है।उपभोक्ताओं का गहित देखने के चक्कार में दीदी किसानों और छोटे कारोबारियों के हित भूल गयीं।चावल संकट हुआ तो हालात एकदम बेलगाम होंगे।

ममता बनर्जी पर उमड़ा 'छठ' प्रेम

বাঙালির জোড়া 'নিরূদ্দেশ সঙ্কট'-বাজারে আলু অমিল, রাস্তায় বাসের দেখা নেই

Potatoes vanish from West Bengal markets as Mamata government slashes price


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


আলুর দাম ও বাসভাড়া। আমজনতার স্বার্থেই দুটি সিদ্ধান্ত নিয়েছেন রাজ্যের মুখ্যমন্ত্রী। জোড়া সিদ্ধান্তে এখন চরম বিপাকে সেই আমজনতাই। অনড় মুখ্যমন্ত্রীর কাছে তাদের আর্জি, বাস্তবসম্মত সিদ্ধান্ত নিক সরকার। জনস্বার্থে আলুর দাম বেঁধে দেওয়া। মানুষের কথা ভেবে বাস ভাড়া না বাড়ানো। খাতায় কলমে সরকারি জনহিতকর এই দুই সিদ্ধান্তই ব্যুমেরাং হয়ে ফিরে এসেছে আমজনতার ঘাড়ে।


আলুর দাম ১৩ টাকায় বেঁধে দেবার পর বাজার থেকে আলু উধাও। বাসভাড়া না বাড়ানোয় রাস্তা থেকে বাস উধাও। পাইকারি বাজারের দামের সঙ্গে মুখ্যমন্ত্রীর ঠিক করে দেওয়া খুচরো বাজারের আলুর দামে সামঞ্জস্য নেই। ফলে লোকসান করে আলু বিক্রির চেয়ে আলু না বিক্রির সিদ্ধান্তে বিক্রেতারা। ডিজেলের দামের সঙ্গে বাসভাড়ার সামঞ্জস্য নেই। ডিজেলের দাম যখন লিটার পিছু ৪০ টাকা ছিল তখনও বাসভাড়া যা, ডিজেলের দাম যখন ৫৫ টাকা, তখনও বাসভাড়া তাই। মাঝে জ্বালানির দাম বেড়েছে ১৩ বার। শেষ বাসভাড়া বেড়েছে ২০১২র অক্টোবরে। এক বছরে জ্বালানি সহ বাস চালানোর খরচ বেড়েছে ৫ গুণ। ফলে বাস চালিয়ে লোকসান গোনার চেয়ে বাস বসিয়ে রাখাই শ্রেয় মনে করছেন বাস মালিকরা।

দুটি ক্ষেত্রেই সরাসরি হস্তক্ষেপ রয়েছে খোদ মুখ্যমন্ত্রীর। কৃষি বিপনন দফতরের দায়িত্ব নিয়েছেন তিনিই। আবার বাসভাড়া বৃদ্ধির সিদ্ধান্ত নেবার দায়িত্ব রয়েছে যে মন্ত্রিগোষ্ঠীর, তারও শীর্ষে রয়েছেন মুখ্যমন্ত্রীই। আমজনতার প্রশ্ন, তাদের নিত্যদিনের যন্ত্রণার অবসান ঘটাবে কে।

http://zeenews.india.com/bengali/kolkata/auto-bus-problem_17679.html


Kolkata:  West Bengal is in the grip of a potato crisis. After prices soared to Rs. 40 rupees a kg last week, Chief Minister Mamata Banerjee pegged the price of the tuber at Rs. 13 a kilo. The net result? The humble potato vanished from the markets across Kolkata.


The government today stepped in to supply potato to markets, but demand far outstripped supply and potato mostly stayed out of sight.


In south Kolkata's Lake Market, you can get anything you want - cucumber, carrots, brinjals, parmals as well as lemon, karela and papaya. But what you cannot get is the humble potato. Shops selling potatoes were shut in the evening. The potato sellers did not even come to open their shops because of lack of supplies.


"Potatoes came in the morning. Each shop got some 5 to 6 sacks. After the potatoes were sold out, they shut shops and left. Everything was over by 12 noon," said a vegetable seller.


"I want to buy but they are nowhere to be found in the market. I can't see anywhere. All the shops are shut," said a customer.


But shopkeepers at Park Circus market were luckier. Some of them got 200 kg of potato in the evening that went real fast at Ms Banerjee's stipulated price of Rs. 13 a kg. And that made people here happy. "She is doing a good thing for the public. We are at least getting some potato, even if we have to line up. We are at least getting it cheap. Yesterday, I bought it at 40 rupees a kilo," said Shabnam Faraz, a housewife.


One of the many unfortunate outcomes of the potato crisis is that Alibaba, a biryani maker which has 19 outlets across the city, has left the potato out of the dish leaving biryani lovers upset. "This is terrible. There is no life left in biryani. If I had known there was no potato in it, I'd have ordered something else," said Md Imtiaz.


Hard times for Kolkata's potato eaters indeed!

http://www.ndtv.com/article/india/potatoes-vanish-from-west-bengal-markets-as-mamata-government-slashes-price-443138


बाजार में आलू की कीमत दो तीन रुपये घटाने के चक्कर में बाजार में सरकारी अभियान से आली सिरे से गायब हो गया है।सरकार अब जनता को आलू पहुंचाने में लगी है।मुख्यमंत्री ने खुद आलू मोरचा संभाल लिया है।आलू लूट,आलू हिंसा और आलू खुदकशी के विभिन्न आयाम खुलने लगे हैं आलू उत्पादक बंगाल में अचानक उत्पन्न अभूतपूर्व आलू संकट के।आलू कारोबार सरकारी देखरेख में लाने की जिद से कारोबारी और उपभोक्ता आपस में सीधे भिड़ रहे हैं।संकट तो सुलझा नहीं लेकिन तेजी से बाजारों में हिंसा का माहौल बन रहा है और कारोबार का माहौल जो पहले से चौपट है,और चौपट होने लगा है।उपभोक्ताओं का गहित देखने के चक्कार में दीदी किसानों और छोटे कारोबारियों के हित भूल गयीं।चावल संकट हुआ तो हालात एकदम बेलगाम होंगे।



लेकिन इससे बड़ा संकट दो कदम दूर मुंह बांए खड़ा है।आलू नीति के उलटवार से सबक न लेकर बंगाल सरकार चावल बाजार को बी नियंत्रित करने की ठान ली है।जिसके तहत आढ़ती या कारोबारी किसानों से धान सीधे खरीद नहीं सकते।धान की सरकारी खरीद ही होगी।इस फतवे से आलू संकट से पहले से तबाह कारोबारी जमात की जान आफत में हैं।सरकारी बंदोबस्त और सरकारी दाम पर चावल बेचने की जिद पर चावल संकट आसन्न है। आलू के बिना तो फिरभी काम चल रहा है,लेकिन चावल संकट हुआ तो जनता क्या करेगी,इसका अंदाजा सिर्फ साठ दशक के खाद्य संकट के मार्फत ही लगाया जा सकता है,जब बंगालियों ने पहलीबार भात के विकल्प के बतौर रोटी काना शुरु किया।


वैसे धान और चावल की खबर कोई अच्छी नहीं है।समुद्री तूफान पिलिन का सीधा अर बंगाल पर हुआ नहीं,लेकिन पिलिन की उलट मार से बंगाल के धान उत्पादक भूगोल के जलप्लावित हो जाने और डीवीसी बांधों से खेतों में जल खड़ा हो जाने से बंगाल में धान की फसल पर आलू की तरह मार पड़ी है। इसके अलावा पड़ोसी आंध्र और ओडीशा में तो खेती पूरी तरह जलमग्न हो गयी है। धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की हालत भी ठीक नहीं है।


देशभर में नकद फसलों पर ज्यादा जोर दिये जाने की वजह से अनाज, दलहन और तिलहन की उपज लगातार घट रही है।अब आलू संकट से निपटने के लिए दूसरे राज्यों को आलू भेजने पर रोक लगाने की दीदी ने जो पहल की है, बंगाल में चावल कम हुआ तो दूसरे राज्य भी मजे मजे में बंगाल को चावल लप्लाई रोक ही सकते हैं।सरकारी विकास कार्यक्रमों के बावजूद देश को इस वर्ष चावल के संकट से जूझना पड़ सकता है।राज्यों से प्राप्त आंकडों के अनुसार देश में गेहूं का बुवाई क्षेत्र बढा है, पर धान का कम हुआ है। इस कारण चावल का उत्पादन कम होने की आशंका है।


मॉनसून के निर्धारित समय पर आगमन के साथ ही पश्चिम बंगाल को इस साल धान के सामान्य पैदावार की उम्मीद थी। तीन सत्रों ऑस, अमन और बोरो में राज्य हरेक साल 1.45 करोड़ टन चावल का उत्पादन करता है।लेकिन बारिश अक्तूबर के ्ंत तक जारी रहने ौर तूफान और बाढ़ की वजह से अब इसके आसार नजर नहीं आते। वैसे राज्य में कुल खरीफ पैदावार में धान की हिस्सेदारी करीब 70 प्रतिशत होती है। विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय (बीसीकेवी) में प्रोफेसर प्रणव चटर्जी के अनुसार इस साल 42-45 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बोआई की उम्मीद है। 2013-14 के खरीफ सत्र में 42 लाख हेक्टेयर में बोआई से राज्य को 11 लाख टन धान उत्पादन की उम्मीद है। पिछले साल मॉनूसन में देरी के बावजूद अधिक पैदावार होने के कारण धान की कीमतें गिर गईं थीं। देश में कुल चावल उत्पादन में पश्चिम बंगाल का योगदान 14-16 प्रतिशत होता है। बोरो सत्र में धान की कीमतें फिसलने के बाद 30 से अधिक किसानों से आत्महत्या कर ली।



बंगाल में आलू संकट अब आलू दंगे में तब्दील होने लगा है। अरुप विश्वास से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कृषि विपणन विभाग छीन लेने के बाद आलू बाजार पहुंचाने की सरकारी कवायद की धूम है।कोलकाता से लेकर जिलों तक बाजारों में सरकारी आलू पहुंच रहा है।इसके बावजूद आलू संकट बेकाबू है। फुटकर विक्रेता स्टोर से जो आलू ला रहे हैं,खरीदी हुई कीमत पर बेचने पर बी परिवहन व्यय मिलाकर उन्हें घाटा उठाना पड़ रहा है।दीदी की चेतावनी के मद्देनजर सरकारी रेट पर आलू बेचने  में असमर्थ फुटकर विक्रेता बाजार से गायब होने लगे हैं।जो फिर भी आलू की टोकरी लेकर बाजार आ रहे हैं,वे सरकारी कीमत से ज्यादा दाम हांकते ही जनता उनपर धावा बोल रही है।उत्तर 24 परगना के खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक के इलाके देगंगा में ही सरकारी रेट से मंहगा आलू बेचने पर क्रेताओं और विक्रेताओं में मारामारी हो गयी है।सरकारी आलू बाजार में जो पहुंच रहा है,वह ऊंट के मुंह में जीरा बराबर है।ऐसी हालत में हिंसा की वारदातें तेज हो जाने की आशंका है।बाहरी राज्यों में भेजे जाने वाले आलू की धरपकड़ जारी है।व्यापारियों में क्षोभ बढ़ता जा रहा है।सरकार पर फुटकर विक्रेताओं का बाजारों में खुल्लमखुल्ला आरोप है कि सरकार उन्हें घाटा उठाने को मजबूर कर रही है।इसी बीच,वर्दमान में एक आलू व्यवसायी ने घाटे के मारे खुदकशी कर ली है तो दूसरी ओर हाड़ोवा बाजार में जनता ने वहां जमा आलू लूट लिया।


सब्जियों के दाम पहले से ही लोगों के जेब में सेंध लगा चुके हैं। सितंबर में महंगाई दर 7 महीने में सबसे ज्यादा रही है। अब चावल की महंगाई भी घरेलू बजट बिगाड़ रही है। धान की खेती वाले इलाकों पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार और आंध्र प्रदेश में भारी बारिश के चलते इसकी कटाई नहीं हो पा रही है। इस वजह से इस साल धान का प्रॉडक्शन कम होने की आशंका बढ़ गई है। इसका असर कीमत पर भी पड़ा है। वैरायटी के आधार पर चावल की कीमत 10-30 फीसदी प्रति किलो तक बढ़ी है।देश में चावल का प्रॉडक्शन 10.43 करोड़ टन होता है। इसमें पूर्वी राज्यों की हिस्सेदारी 5.5 करोड़ टन की है। इसमें से ज्यादातर धान खरीफ सीजन में पैदा होता है। यूपीए सरकार के 'ब्रिंगिंग ग्रीन रिवॉल्यूशन टू ईस्टर्न इंडिया' प्रोग्राम लॉन्च करने के 3 साल के अंदर पूर्वी राज्यों में धान की पैदावार में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस प्रोग्राम को 7 पूर्वी राज्यों में लॉन्च किया गया था। इनमें पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, उड़ीसा, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं।


देश में संघीय ढांचा है. एक राज्य में कोयला है, लोहा है, तो दूसरे राज्य में कुछ भी खनिज नहीं है. एक अगर धान उपजाता है, तो दूसरा कुछ और.महंगी प्याज की मार से लोग उबर भी नहीं पाये थे कि हरी सब्जियों के भाव इतनी तेजी से बढ़े कि लोगों ने सब्जी खानी ही कम कर दी. एकमात्र सहारा था आलू. हरी सब्जी की जगह लोग उसी से काम चला रहे थे. लेकिन ममता बनर्जी की सरकार ने पश्चिम बंगाल से आलू दूसरे राज्यों में भेजने पर रोक लगा दी. इससे झारखंड में आलू का भाव भी तेजी से बढ़ गया है. ऐसी बात नहीं है कि बंगाल से आलू बाहर न भेजने के निर्णय से बंगाल में आलू सस्ता हो गया हो.


वहां किसानों ने आलू बेचना ही बंद कर दिया है. हो सकता है कि ममता बनर्जी ने कीमत को नियंत्रित करने के लिए ही रोक लगायी हो, पर इसका नतीजा उलटा निकला. बंगाल से जिन राज्यों में आलू जाता है, वे राज्य भी देश के हिस्से हैं. अगर बंगाल से आलू दूसरे देश को निर्यात किया जाता, तो उस पर रोक लगाने का विरोध नहीं होता. पर अपने ही देश में अगर ऐसे निर्णय होने लगे तो इसका गंभीर असर पड़ सकता है. देश में संघीय ढांचा है. एक राज्य में कोयला है, लोहा है, तो दूसरे राज्य में कुछ भी खनिज नहीं है. एक अगर धान उपजाता है, तो दूसरा कुछ और.


अगर कोई राज्य यह तय कर ले कि दूसरे राज्य को धान नहीं बेचेंगे, तो क्या होगा? अगर झारखंड तय कर ले कि कुछ भी हो जाये, हम किसी दूसरे राज्य को कोयला-लोहा नहीं देंगे, तो क्या होगा? कोयला-लोहा की बात छोड़ भी दें तो अगर झारखंड यही तय कर ले कि बंगाल को हरी सब्जी झारखंड से नहीं देंगे, तो बंगाल में हरी सब्जी का भाव कई गुना बढ़ जायेगा. बंगाल में झारखंड से ही हरी सब्जी जाती है. ऐसे निर्णय से समाधान नहीं निकलता. किसान को उचित मूल्य मिलना ही चाहिए. अभी जो आलू या हरी सब्जी के भाव बढ़े हैं, क्या उसका लाभ किसानों को मिल रहा है या बिचौलिये पैसा कमा रहे हैं, इसे देखना होगा. ऐसे में सरकार को आगे आना चाहिए. ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे किसानों को भी घाटा नहीं हो और सब्जी आम जनता की पहुंच से बाहर भी न जाये. जिस तेजी से सब्जी के दाम बढ़े हैं, उसका असर यह हुआ है कि लोगों ने हरी सब्जी खानी कम कर दी है. किलो की जगह अब पाव में सब्जी, टमाटर, प्याज खरीद रहे हैं. सरकार-किसान को मिल कर ही इसका कोई रास्ता निकालना होगा.

http://www.pressnote.in/khas-khabar_215987.html#.UnzAtnBHLIc



आलू किसानों के लिए बारिश बनी वरदान

बीएस संवाददाता /  November 07, 2013

भारी स्टॉक से घाटे की चपेट में आए आलू किसान और कारोबारियों के लिए बारिश और बाढ़ वरदान साबित हुई। दरअसल सभी उत्पादक राज्यों में आलू का भंडारण भरपूर था लेकिन घाटे के डर से घबराये आलू किसान और कारोबारियों ने जुलाई महीने से कोल्ड स्टोर से हड़बड़ी में आलू बेचना शुरू कर दिया। इससे सितंबर महीने तक आलू के भाव इतने गिर गए कि उन्हें घाटा होने लगा। इसके बाद कई राज्यों में बारिश और बाढ़ से खरीफ में आलू की फसल खराब होने के साथ ही इसकी मांग अचानक बढ़ गई।

इस बीच बंगाल ने दूसरे राज्यों को आलू बेचना बंद कर दिया। ऐसे में मुख्य आलू उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के आलू की मांग देश भर में बढऩे लगी। लिहाजा आलू के दाम में भी तेजी आने लगी। इस समय भी बारिश से नया आलू आने में देरी होने से किसानों को कोल्ड स्टोर में ज्यादा समय तक आलू रखने का मौका मिलने से आलू में तेजी बरकरार है। जाहिर है कि मौसम की चाल से आलू किसान और कारोबारी तगड़े घाटे से बच गए। वर्ष 2012-13 में 220-225 लाख आलू का भंडारण और करीब 410 लाख टन उत्पादन हुआ है।

आजादपुर आलू-प्याज कारोबारी संघ के अध्यक्ष त्रिलोकचंद शर्मा ने बताया कि इस साल उत्तर प्रदेश में 550 से 650 रुपये और बंगाल में 500 से 600 रुपये के भाव पर आलू का भंडारण हुआ है। इसमें 160-180 रुपये भंडारण किराया, पल्लेदारी, ग्रेडिंग, लदान-उतार और परिवहन का खर्चा जोड़कर आलू की लागत 850-900 रुपये प्रति क्विंटल बैठती है। शर्मा कहते हैं कि भारी स्टॉक के चलते जुलाई में लगने लगा था कि आगे आलू के दाम गिरेंगे।

इस डर से हड़बड़ाहट में कोल्ड स्टोर से आलू तेजी से निकलने के कारण यूपी में सितंबर तक दाम घटकर 800-900 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गए। इस भाव पर 50 रुपये क्विंटल का घाटा हो रहा था। इसके बाद देश भर में बारिश से खरीफ वाला आलू खराब हो गया।

बंगाल सरकार ने कीमतें बढऩे की आशंका में राज्य से आलू बाहर भेजने पर पाबंदी लगा दी। जिससे कर्नाटक, उड़ीसा, असम समेत अन्य राज्यों में यूपी और दिल्ली से आलू की मांग बढऩे से भाव बढ़ गए। इस समय यूपी में स्टोर वाला आलू 1100-1800 रुपये और दिल्ली में 1300-2200 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। नए आलू का भाव 2000-2800 रुपये प्रति क्विंटल है। लिहाजा बीते दिनों में घाटा खा चुके किसान और कारोबारियों को अब मुनाफा हो रहा है।

राष्टï्रीय बागवानी एवं अनुसंधान विकास प्रतिष्ठïान (एनएचआरडीएफ) के निदेशक आर पी गुप्ता भी मानते हैं कि सितंबर तक स्टोर वाले आलू का भाव लागत से नीचे चला गया था। इसके बाद बारिश और बाढ़ से भाव बढ़े। बारिश से नया आलू लगने में 20 से 25 दिन देरी हो गई है। इससे अब किसानों को आराम से आलू बेचने का मौका मिल रहा है। आगरा के आलू कारोबारी दीपक अग्रवाल कहते हैं कि अगर बारिश नहीं होती तो इस समय कोल्ड स्टोर खाली करने के लिए मजबूरी में औने-पौने भाव पर घाटे में आलू बेचना पड़ता।

http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=78386

बंगाल में आलू को लेकर संकट



मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कालीपूजा व दीपावली के मौके पर सस्ती दर पर आलू उपलब्ध कराने की घोषणा की थी। सरकार ने आलू का थोक मूल्य 11 रुपये प्रति किलो व खुदरा बाजार में 13 रुपये प्रति किलो की दर निर्धारित कर दी थी। परंतु, बंगाल में आलू को लेकर संकट बरकरार है। महानगर व पासपड़ोस के जिलों के विभिन्न बाजारों में ज्योति (आलू का एक किस्म) आलू देखने को भी नहीं मिल रहा है। कई बाजारों में सरकार की ओर से भेजे गए आलू कुछ कुछ ही देर में समाप्त हो गया। परिणामस्वरूप क्रेताओं को आलू के बिना लिए ही लौटना पड़ा। आज गड़ियाहाट बाजार में सरकारी आलू नहीं पहुंचा। जिसके चलते खुदरा आलू विक्रेता थोक साहूकार से 13 रुपये से अधिक दर पर आलू खरीदा और उस पर लाभ लेकर बेचा। कार्रवाई व नुकसान के डर से खुदरा आलू बेचने वाले दुकानदार दुकान बंद कर गायब हो गए हैं।

मुख्यमंत्री द्वार निर्धारित दर से आम लोगों को खुले बाजार में आलू मिलना चाहिए था लेकिन वह पर्व-त्यौहार के मौके पर लोगों नहीं मिला। इससे मुख्यमंत्री क्षुब्ध हुईं और उन्होंने आलू व्यवसायियों के खिलाफ कड़ा कदम उठाने का निर्णय किया। उन्होंने महानगर के कुछ बाजारों का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया। बाजारों मे खुद घूम कर स्थिति की समीक्षा करने के बाद उन्हें पता चला कि सरकार द्वारा निर्धारित दर पर लोगों को आलू नहीं मिला। इस पर उन्होंने खेद जताया और कहा कि आलू व्यवसायियों ने उनके साथ विश्वासघात किया है। जनता को सस्ते दर पर आलू उपलब्ध कराने के वादा कर व्यवसायियों ने उसे पूरा नहीं किया। उन्होंने बाजार में कृत्रिम संकट पैदा करनेवाले व्यापारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिया। साथ ही कृषि विपणन विभाग की जिम्मेदारी खुद संभाल ली ताकि व्यवसायियों में भय पैदा हो सके।

सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने इसके पहले आलू का थोक मूल्य जब 11 रुपये प्रति किलो और खुदरा बाजार में 13 रुपये प्रति किलो निर्धारित किया तो अधिकांश आलू व्यवसायी इससे सहमत नहीं थे। हालांकि मुख्यमंत्री के समक्ष किसी ने अपनी असहमति जताने का साहस नहीं दिखाया। आलू व्यवसायियों के एक वर्ग का कहना है कि यदि सरकार दो रुपये बढ़ा कर आलू की दर निर्धारित करती तो उनका कुछ नुकसान नहीं होता। घाटा होने के लेकर व्यवसायी सरकारी दर पर बाजारों में आलू पहुंचाने में उदासीन रहे। इसलिए बाजार में आलू का संकट बना है और चारों तरफ सरकार की आलोचना होने लगी। मुख्यमंत्री को जब इसकी खबर मिली तो वह खुद बाजारों मे गई, लेकिन आलू व्यवसायी मौजूद नहीं थे। मुख्यमंत्री ने स्वीकार भी किया है कि जिन व्यवसायियों ने बाजार में आलू का कृत्रिम संकट पैदा किया वे फरार हैं। उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। उनके व्यवसाय का लाइसेंस भी रद किया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने 30 नवंबर तक सभी कोल्ड स्टोरेजों से आलू निकालने का निर्देश दिया है। व्यवसायी कोल्ड स्टोरेज से आलू निकलाने को तत्पर नहीं हुए तो सरकार खुद हिमघरों को खाली कराने की दिशा में कदम बढ़ाएगी।

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पार्टी स्तर से आलू बेचने को लेकर सवाल

जागरण ब्यूरो, कोलकाता : आलू संकट को समाप्त करने के लिए बाजारों का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद दौरा कर रही हैं। सरकारी स्तर पर भी तत्परता बढ़ी है। बाजारों में सरकार की ओर से आलू भेज कर स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश हो रही है। इन सबके बीच आलू को लेकर राजनीति भी तेज हो गई है। सत्तारुढ़ तृणमूल पर सरकारी दर पर आलू बेचने का आरोप लगा हैं। कुलटी के बाद वीरभूम जिले में तृणमूल पर अंगुली उठी है। गुरुवार को रामपुरहाट, बोलपुर और सिउड़ी बाजार में काउंटर खोला गया था। 13 रुपये किलो दर से आलू लेने के लिए लोगों की लाइन लगी हुई थी। सरकारी काउंटर पर सरकारी कर्मचारी को होना चाहिए था। परंतु, वह उलट था। सरकारी काउंटर पर पार्टी का झंडा लगाकर तृणमूल कर्मी आलू बेचे रहे थे। दूसरी ओर आलू को लेकर पुलिस की छापामारी भी जारी है। दक्षिण 24 परगना जिले के महेशतल्ला इलाके में पुलिस ने छापामार कर छह क्विंटल आलू जब्त किया। हालांकि, बाद में व्यवसायियों द्वारा सरकारी दर पर आलू बेचने को राजी होने पर आलू छोड़ दिया गया।

http://www.jagran.com/west-bengal/kolkata-10846183.html

अमर उजाला, दिल्ली

Updated @ 11:39 AM IST

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भी छठ त्योहार प्रेम उमड़ पड़ा है। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बाकायदा मीडिया में विज्ञापनों के जरिए छठ त्योहार की बधाई दी है।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में रहने वाले लाखों बिहार और उत्तर प्रदेश को रिझाने के लिए विज्ञापन दिया है। विज्ञापन के मुताबिक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बंद्योपाध्याय ने अपने संदेश में लिखा है कि उगते सूरज की रश्मियों में आलोकित हो आने वाले दिन। छठ पूजा के उपलक्ष्य में सभी का हार्दिक अभिनंदन।


यह विज्ञापन पश्चिम बंगाल सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की तरफ से जारी किया गया है। राजनीतिक विशेषज्ञों के मुता‌बिक आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया गया है। सभी राजनीतिक पार्टियों विशेष त्योहार के जरिए करोड़ो लोगों के वोट बैंक पर नजर लगाए रहती हैं।

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  37. State government taking steps to stabilise price of potato

  38. The New Indian Express-05-Nov-2013

  39. As potato price goes through the roof following restriction imposed on inter-State movement of the vegetable by the West Bengal Government, ...

  40. Potato price skyrockets

  41. Calcutta Telegraph-05-Nov-2013

  42. Chief minister Naveen Patnaik today stepped in to ensure smooth supply of potatoesfrom Bengal. Naveen spoke to his Bengal counterpart ...



কলকাতা: এখনও বাজারে জোগান কম জ্যোতি আলুর৷ তবে গত তিনদিনের তুলনায় পরিস্থিতির কিছুটা উন্নতি হয়েছে৷ শুক্রবার শহরের বেশিরভাগ বাজারেই সরকারি আলু ঢোকে৷ তবে আলুর চাহিদা তুঙ্গে থাকায় কিছুক্ষণের মধ্যেই তা শেষ হয়ে যায়৷ ফলে দোকানের সামনে লম্বা লাইনে দাঁড়িয়েও খালি ব্যাগ হাতেই ফিরতে হয় বেশিরভাগ ক্রেতাকে৷

জ্যোতি আলুর থেকে বাজারে চন্দ্রমুখী আলুর জোগান বেশি৷ তবে ব্যবসায়ীদের অভিযোগ, সরকার শুধু জ্যোতি আলুর দর বেঁধে দিলেও পুলিশ প্রশাসনের চাপে চন্দ্রমুখী আলুও ১৩ টাকা কেজি দরে বিক্রি করতে হচ্ছে৷ যার জেরে লোকসানের মুখে পড়তে হচ্ছে বিক্রেতাদের৷ ফলে চন্দ্রমুখী আলু বিক্রি করা বন্ধ করে দিয়েছেন বেশিরভাগ ব্যবসায়ী৷


এখন আলু কেনা কাছে মহাঝক্কির৷ সাতসকালে থলি হাতে বাজারে লাইন দিতে না পারলে আলু মিস৷ ঠিক সময় লাইন দিলেও দোকান পর্যন্ত পৌঁছতে পৌঁছতে আলু ফুরিয়েও যাচ্ছে৷ কিন্তু কবে সমস্যা মিটবে? সেদিকেই তাকিয়ে সাধারণ মানুষ৷


এর মধ্যেই বীরভূমের মহম্মদবাজারে ৩টি আলু বোঝাই লরি আটক করল পুলিশ৷ ৩ লরি আলু ঝাড়খণ্ডে পাঠানো হচ্ছিল বলে পুলিশ সূত্রে খবর৷ মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় রাজ্যের বাজারে আলুর সমস্যার পরিপ্রেক্ষিতে অন্য রাজ্যে আলু পাঠানো বন্ধ রাখতে বলেছেন কিন্তু তা সত্ত্বেও আলু পাচারের চেষ্টা চলছে৷

এদিকে আজ সিউড়ি পাইকারি বাজারে কম দামে আলু বিক্রি নিয়ে অসন্তোষ দেখা দেয় আড়তদারদের মধ্যে৷ আড়তদারের অভিযোগ, পুলিশি চাপে খুচরো ব্যবসায়ীদের বস্তাপিছু ৫৫০টাকা দরে আলু বিক্রি করতে হচ্ছে৷ রামপুরহাট পাইকারি বাজারেও একই ছবি৷ আড়তদারদের বক্তব্য, এভাবে চললে কাল থেকে আলু বিক্রি করা সম্ভব নয়৷ এদিকে বীরভূমের বিভিন্ন বাজারে আজ ৩ লরি সরকারি আলু ঢুকেছে৷ ফলে বেশিরভাগ জায়গাতেই ১৩ টাকা কেজি দরে জ্যোতি আলু পেয়েছেন ক্রেতারা৷

http://www.abpananda.newsbullet.in/state/34-more/43331-2013-11-08-05-27-45




চড়া দামে আলু বিক্রিকে কেন্দ্র করে উত্তেজনা ছড়াল উত্তর ২৪ পরগনার দেগঙ্গায়। অভিযোগ, প্রতি কেজি আলু ২০ টাকার বেশি দরে বিক্রি করছিলেন স্থানীয় ব্যবসায়ীরা। প্রতিবাদ করায় স্থানীয় বাসিন্দাদের সঙ্গে হাতাহাতি শুরু হয় খুচরো ব্যবসায়ীদের। খবর পেয়ে ঘটনাস্থলে পৌঁছয় দেগঙ্গা থানার পুলিস। পরে দাম কমিয়ে আলু বিক্রি করায় পরিস্থিতি নিয়ন্ত্রণে আসে।


মালদার বাজারেও আলুর আকাল। ক্রেতাদের অভিযোগ, সরকারি দামে পাওয়া যাচ্ছে পচা আলু। ভাল আলু কিনতে গেলেই দাম পড়ছে পনের থেকে ১৮ টাকা কেজি। প্রশাসনের নাগের ডগায় এভাবে বেশি দামে আলু বিক্রির অভিযোগ উঠেছে। ক্রেতাদের বক্তব্য, সবকিছু দেখেশুনেও উদাসীন প্রশাসনিক কর্তারা।


অন্যদিকে, পূর্ব মেদিনীপুর-ওড়িশা সীমানায় পাচার হওয়ার পথে আজ সাত ট্রাক আলু আটক হয়েছে। যৌথভাবে অভিযান চালিয়ে দীঘা-রামনগর থানার পুলিস তা আটক করে। এই একশো বারো টন আলু এরপর স্থানীয় বাজারে সরকার নির্ধারিত তেরো টাকা কেজি দরে বিক্রি করে দেওয়া হয়। ঝাড়খণ্ড পাচার হওয়ার পথে বীরভূমের মহম্মদবাজার থানার পুলিসও পাঁচ ট্রাক আলু আটক করেছে।  

আলুতে শিক্ষা হয়নি, নজর ধানেও

নিজস্ব সংবাদদাতা • কলকাতা

কা আলুতে রক্ষা নেই, ধান দোসর!

কৃষি বিপণন দফতরের ভার মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় নিজের হাতে তুলে নিয়েছিলেন বুধবার। কিন্তু বৃহস্পতিবারেও গৃহস্থের বাড়িতে আলু যায়নি বাজার থেকে। বরং সরকারি হুমকি, পুলিশ ও শাসক দলের নেতাদের হম্বিতম্বিতে পরিস্থিতি আরও জটিল হয়েছে বলে অভিযোগ। তারই মধ্যে বৃহস্পতিবার রাজ্য সরকারের আর একটি সিদ্ধান্তে এ বার চালকলগুলিতে ধান ঠিক মতো পৌঁছবে কি না তা নিয়েও সংশয় সৃষ্টি হয়েছে।

বৃহস্পতিবার নবান্নে খাদ্যমন্ত্রী জ্যোতিপ্রিয় মল্লিক জানিয়ে দিয়েছেন, সরকার এ বার চাষিদের কাছ থেকে সরাসরি ধান কিনবে। সেখানে কোনও ফড়েকে বরদাস্ত করা হবে না। সরকারি ধান সংগ্রহ শুরু হওয়ার পরও যদি কোনও আড়তদার চাষির কাছে ধান কেনেন, তা হলে তাঁকে গ্রেফতার করা হবে।

এই নির্দেশ ঘিরে যথারীতি আরও এক বার অশনি সঙ্কেত দেখতে শুরু করেছেন রাজ্যের প্রশাসনিক কর্তা থেকে শুরু করে ধান ব্যবসায়ী এবং কৃষকদের একাংশও। কেন? কারণ, মানুষের স্বার্থ দেখার কথা বলে সরকার ইতিমধ্যেই একাধিক ক্ষেত্রে যে নীতি নিয়েছে এবং নিজে ঝাঁপিয়ে পড়ে তা রূপায়ণ করতে গিয়ে যে জটিলতা ডেকে এনেছে, ধান কেনার ক্ষেত্রেও তারই পুনরাবৃত্তি হতে চলেছে বলে তাঁদের আশঙ্কা।

কী রকম? ক্রেতা-বিক্রেতা সকলেই হাতে গরম উদাহরণ টেনে আনছেন আলু। তাঁদের দাবি, সরকার আলু বিক্রির ব্যাপারে যত জড়াচ্ছে, মানুষের ভোগান্তি তত বাড়ছে। মানুষ বাজার থেকে ১৬ টাকায় আলু কিনছিলেন। রাজ্য সরকার দাম নিয়ন্ত্রণ করে দেওয়ার ফলে বাজার থেকে আলু উধাও। সরকারি দরে আলু যা আসছে, তা প্রয়োজনের তুলনায় নগণ্য। কোথাও কোথাও মানুষকে ২০ থেকে ২২ টাকা দরে কিনতে হচ্ছে আলু। নিট ফল? সাধারণ মানুষ আলু না-পেয়ে সঙ্কটে, অন্য দিকে পুলিশের চাপে সরকারি দরে আলু বিক্রি করতে বাধ্য হয়ে কিছু বিক্রেতা লোকসানের ঠেলায় গলদঘর্ম। কলেজ স্ট্রিট বাজারের এক দোকানির মন্তব্য, "আলু বেচা কি সরকারের কাজ! এতে তো মরবে শত শত খুচরো ব্যবসায়ী। সরকার কি তাঁদের কথা এক বারও ভাববে না?"

বৃহস্পতিবার কোথাও পুরসভার কাউন্সিলর, কোথাও পুলিশ-প্রশাসন, কোথাও বা শাসক দলের কর্মী আলু বিক্রি করতে সক্রিয় ভাবে নেমে পড়েছিলেন সবাই। তবু আলু পাননি মানুষ। যদিও সরকারি এক পদস্থ অফিসারের দাবি, "অভিজ্ঞতা না-থাকায় প্রথম দিকে একটু গোলমাল হবে। দু'এক দিন পরেই সব ঠিকঠাক হয়ে যাবে।"

কিন্তু ঘটনা হল, সরকার হস্তক্ষেপের ব্যাপারে জেদ ধরে থাকায় বাস সমস্যার সমাধান তো হয়ইনি, উল্টে আরও জটিল হয়েছে। লোকসানের বোঝা বইতে না-পেরে বসে গিয়েছে বেসরকারি, এমনকী সরকারি বাসেরও একটা বড় অংশ। ফলে সাধারণ মানুষকে বাসভাড়ার তিন থেকে চার গুণ পয়সা খরচ করে অটো বা অন্য পরিবহণ মাধ্যমে যাতায়াত করতে হচ্ছে। অর্থাৎ যাঁদের উপর থেকে চাপ কমাতে রাজ্য সরকার বাস ভাড়া বাড়াচ্ছেন না, বাস বসে যাওয়ায় তাঁদেরই সব থেকে ভোগান্তি হচ্ছে।

প্রশাসনিক কর্তাদের একটা অংশও স্বীকার করছেন, মুখ্যমন্ত্রীর সদিচ্ছা থাকা সত্ত্বেও দক্ষতা এবং পরিকাঠামোর অভাবেই আলু সঙ্কট মেটানো যাচ্ছে না। এ বার একই ঘটনা ধান বিক্রির ক্ষেত্রেও ঘটবে এবং তাতে আখেরে কৃষকরাই সব থেকে বেশি বিপদে পড়বেন বলে খাদ্য দফতরের কর্তাদের আশঙ্কা।

ধান কেনার ব্যাপারে সরকার কী করতে চায়?

ক্ষমতায় এসেই বিভিন্ন এলাকায় শিবির বসিয়ে সরাসরি চাষিদের কাছ থেকে ধান কেনার সিদ্ধান্ত ঘোষণা করেছিল মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের সরকার। তখন তা সফল হয়নি।

কিন্তু বৃহস্পতিবার ধান-চাল সংগ্রহ সংক্রান্ত মন্ত্রিসভার বিশেষ গোষ্ঠীর বৈঠকের পর রীতিমতো সাংবাদিক সম্মেলন করে খাদ্যমন্ত্রী ঘোষণা করেন, "এ বছর মধ্যস্বত্ত্বভোগীদের জমানা শেষ হবে।"

কী ভাবে? চাষিরা যাতে সরাসরি সরকারি সংস্থাগুলিকে ধান বিক্রি করতে পারেন, সে জন্য খারিফের ধান উঠলেই এক হাজার বিশেষ শিবির করা হবে। ২৮ নভেম্বর থেকেই এই শিবির শুরু হচ্ছে। প্রতি কুইন্টাল ১৩১০ টাকা দরে ৩৫ লক্ষ মেট্রিক টন ধান কেনার লক্ষ্যমাত্রা নিয়েছে সরকার। মন্ত্রীর কথায়, "আড়তদাররা সরকারি মূল্যে ধান কেনেন না। চাষিদের কাছ থেকে কম দামে ধান কিনে তাঁরা চালকলে সরকারি দামে ধান বিক্রি করেন। যে টাকা চাষির প্রাপ্য, সেই টাকা খেয়ে যান আড়তদারদের মতো ফড়েরা।" এই প্রক্রিয়াটাই এ বার বন্ধ করতে চাইছে সরকার।

কিন্তু খাদ্য দফতরের কর্তাদেরই একাংশ বলছেন, রাজ্যের ৩৭ হাজার গ্রামে চাষিদের ঘরে ঘরে গিয়ে ধান কেনা খাদ্য দফতরের পক্ষে সম্ভব নয়। সরকারি সমবায় সংস্থাগুলিকে এ কাজে নামালেও লক্ষ্যপূরণ করা শক্ত। তাই চাষিরা অনেকেই শেষ মুহূর্তে আড়তদারদের কাছে কম মূল্যে চাল বিক্রি করতে বাধ্য হবেন বলেই আশঙ্কা। চাষিরা নিজেরাও জানাচ্ছেন, স্থানীয় আড়তদার ঘরে ঘরে পৌঁছে গিয়ে ধান কেনেন। এটা বন্ধ হয়ে গেলে সমস্যায় পড়তে পারেন অনেক চাষিই। নদিয়ার হোগলবেড়িয়ার চাষি খগেন মণ্ডল যেমন বলেন, "সরকার কী বলেছে, তা আমার জানা নেই। তবে সীমান্তের এই এলাকায় আমরা আড়তদারদের কাছেই ধান বিক্রি করি। এটাই আমাদের কাছে সুবিধাজনক মনে হয়। নিজেরা উদ্যোগী হয়ে অন্যত্র ধান বিক্রি করতে গেলে লাভের থেকে লোকসানই বেশি হয়ে যায়।" কেন লোকসান?

খাদ্য দফতরের এক কর্তার ব্যাখ্যা, রাজ্যের অধিকাংশ চাষির হাতে জমির পরিমাণ সামান্য। ফলে তাদের উৎপাদনের পরিমাণও অল্প। তাই দূরের সরকারি কেন্দ্রে নিয়ে গিয়ে ধান বিক্রি করতে যে পথের খরচ, সেটা তাঁরা কুলিয়ে উঠতে পারেন না। খয়রাশোলের ভাদুলিয়া গ্রামের চাষি রামকৃষ্ণ পাল যেমন সরকারি উদ্যোগের প্রশংসা করেও বলেন, "আমাদের ব্লকে চাল কল নেই। আছে সব থেকে কাছে দুবরাজপুরে, ২৫ কিমি দূরে। এ ক্ষেত্রে ট্রাক্টর বা গাড়ি ছাড়া ধান নিয়ে যাওয়া সম্ভব নয়।"

চাষিদের মতো আশঙ্কায় রয়েছেন আড়তদারেরাও। তাঁদের অনেকেরই বক্তব্য, আড়তদারি তো খারাপ কাজ নয়! বরং এই কাজকে আইনি সিলমোহর দিতে রাজ্যের কাছে আবেদন জানানো হয়েছিল। আড়তদারদের সংগঠন পশ্চিমবঙ্গ ধান্য ব্যবসায়ী সমিতির এক মুখপাত্র বলেন, "আমরা তো সরকারের কাছে বৈধ ব্যবসা করার লাইসেন্স চেয়েছি। কিছু বাড়তি অর্থের সংস্থান করে আমাদের মাধ্যমেই তো সরকার ধান সংগ্রহে নামতে পারে।" আবার বীরভূমের ধান্য ব্যবসায়ী সমিতির আহ্বায়ক প্রফুল্লকুমার গড়াই বলছেন, আড়তদারেরা যদি সরকারি মূল্যের চেয়েও বেশি দাম দেন, তখন চাষিকে বাধা দেওয়ার মানে চাষিরই ক্ষতি!

এই মুহূর্তে ক্রেতা-বিক্রেতাদের বড় অংশ মনে করছেন যে, বাজারের নিজস্ব লেনদেনের মধ্যে সরকার প্রত্যক্ষ হস্তক্ষেপ করেই আলু নিয়ে বিপত্তি ডেকে এনেছে। এ বার ধান নিয়ে পরিস্থিতি কোন দিকে গড়াবে, সেটা ভেবে শঙ্কিত তাঁরা। যদিও মুখ্যমন্ত্রী তথা শাসক দল তা মানতে রাজি নয়। তৃণমূলের সর্বভারতীয় সাধারণ সম্পাদক মুকুল রায় দাবি করেন, "ভারতে কোনও মুখ্যমন্ত্রী নেই যিনি মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের মতো বাজার ঘুরে সব্জির মূল্যবৃদ্ধি রোধে ব্যবস্থা নিচ্ছেন!"

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আত্মঘাতী ব্যবসায়ী, আলু লুঠ হাড়োয়ায়

নিজস্ব সংবাদদাতা • বর্ধমান ও হাড়োয়া

লুর দাম নিয়ে কড়াকড়ি এবং তার জেরে বাজার থেকে আলু উধাও হওয়া নিয়ে তরজার মধ্যেই পরপর দু'টি ঘটনায় অস্বস্তি বাড়ল রাজ্য সরকারের।

প্রথমটি, বর্ধমানে আলু ব্যবসায়ীর 'আত্মহত্যা' যে সরাসরি দামের ওঠা-পড়ার সঙ্গেই যুক্ত প্রশাসন তা মানতে নারাজ। কিন্তু ঘটনাচক্রে সরকার আলুর দাম কমাতে ব্যবসায়ীদের চাপ দেওয়ার পরেই এই মৃত্যুতে প্রশাসন কিছুটা বেকায়দায়। দ্বিতীয়টি সরাসরি হাড়োয়ার বাজারে মজুত আলু লুঠের ঘটনা। আলুর আকালই যে তার এক মাত্র কারণ, তা কোনও মহলই অস্বীকার করতে পারছে না।

বুধবার রাতে বর্ধমান মেডিক্যাল কলেজ হাসপাতালে মারা যান আলু ব্যবসায়ী সুব্রত বন্দ্যোপাধ্যায় (৫০)। বাড়ি বর্ধমান থানারই বেরুগ্রামে। ৩ নভেম্বর বিষক্রিয়া নিয়ে তাঁকে হাসপাতালে ভর্তি করা হয়। পরিবারের দাবি, আলু ব্যবসায় লোকসান হওয়ায় অবসাদের জেরে বাড়িতেই তিনি কীটনাশক খান। ঘটনাচক্রে, তার দিন দুয়েক আগেই রাজ্য সরকার ভিন্ রাজ্যে আলু পাঠানোর উপরে অলিখিত নিষেধাজ্ঞা জারি করে। শুক্রবার আলুর দাম বেঁধে দেওয়া হয়। আলুর ট্রাক আটকানোর প্রতিবাদে শনিবার থেকেই তিন দিনের কর্মবিরতি শুরু করে প্রগতিশীল আলু ব্যবসায়ী সমিতি।

সুব্রতবাবুর ছেলে পুলক ও ভাই হেমন্ত জানান, এ বার হিমঘরে প্রায় দু'হাজার বস্তা (৫০ কেজির) আলু রেখেছিলেন তিনি। যে চাষিদের থেকে আলু কিনেছিলেন, তাঁদের কাছে কয়েক লক্ষ টাকা ধার ছিল। মহাজনের ঋণও শোধ করতে পারেননি। পরিবারের পরিচিত আলু ব্যবসায়ী জিতেন ডকাল বলেন, "এত ধার ছিল, পুজোর সময়ে মাত্র ২০০ টাকায় উনি ৫০ কেজির বস্তা বিক্রি করেন। পরে যখন ৬০০-৬৫০ টাকা দাম উঠল, সেই লাভের সুযোগটা আর নিতে পারেননি।" মৃতের স্ত্রী মায়া বন্দ্যোপাধ্যায় বলেন, "কয়েক দিন ধরেই নাওয়া-খাওয়া বন্ধ। কেমন যেন মূহ্যমান হয়ে ছিলেন।" ঘটনাচক্রে, তখনই আসে সরকারের আলুর দাম বেঁধে দেওয়ার খবর। পরিবারের দাবি, এর পরেই সুব্রতবাবু কীটনাশক খান।

পুলিশ অবশ্য দাবি করছে, পারিবারিক অশান্তির জেরেই এই আত্মহত্যা। কৃষিমন্ত্রী মলয় ঘটকও বলেন, "ব্যবসায়ীরা যথেষ্ট চড়া দামে আলু বিক্রি করছিলেন বলেই তো সরকারকে নিয়ন্ত্রণের রাস্তা নিতে হয়েছে। সে ক্ষেত্রে, কেউ কেন আত্মহত্যা করবেন তার কারণ বোঝা যাচ্ছে না। বিশদে খোঁজ নিচ্ছি।" জেলার আর এক মন্ত্রী স্বপন দেবনাথ বলেন, "আলু ব্যবসায়ীরা ক'দিন আগে পর্যন্তও প্রচুর লাভ করেছেন। আত্মহত্যা করার মতো পরিস্থিতি নেই।" সিপিএম প্রভাবিত কৃষকসভার জেলা সম্পাদক আব্দুর রাজ্জাক মণ্ডল পাল্টা বলেন, "বিজয়া দশমী পর্যন্ত আলুর দাম রোজ কমছিল। তার পরে কী ঘটল যে বাজার আগুন হয়ে গেল? সেই রহস্যের সমাধান না করে রাজ্য সরকার চটক দেওয়ার রাস্তায় হাঁটছে। এই ভ্রান্ত নীতির ফলেই কৃষিক্ষেত্রে বিপর্যয় হয়েছে। এই পরিস্থিতিতে কোনও আলু ব্যবসায়ীর আত্মহত্যাকে বিক্ষিপ্ত ঘটনা হিসেবে দেখা যায় না।"

ইতিমধ্যে রাজ্য জুড়ে আলুর আকাল অব্যাহত। বৃহস্পতিবার দুপুর ১১টা নাগাদ উত্তর ২৪ পরগনার হাড়োয়ায় পশ্চিম বাজারে আলু বিক্রেতাদের ঘেরাও করে ফেলে জনতা। দু'পক্ষের তর্কাতর্কির মধ্যেই বেশ কয়েক বস্তা আলু লুঠপাট করা হয়। খবর পেয়ে হাড়োয়া থানার ওসি এবং বিডিও ঘটনাস্থলে যান। হাড়োয়া পঞ্চায়েত সমিতির সদস্য সঞ্জু বিশ্বাস বলেন, "কয়েক জন আলু ব্যবসায়ী রাজ্য সরকারের নির্ধারিত দামের চেয়ে বেশিতে আলু বিক্রি করায় ক্রেতারা ক্ষোভ দেখাচ্ছিলেন। ওই সময়ে বেশ কয়েক বস্তা আলু লুঠ হয়ে যায়। এখন বাজারে আলু অমিল।" হাড়োয়ার ওসি সুমিত মণ্ডলের বক্তব্য, "বেশি দামে আলু বিক্রির খবর পেয়ে বিডিও এবং আমি কয়েকটি বাজারে যাই। অনেকেই আলু সরিয়ে রাখায় জোগানে সমস্যা দেখা দিয়েছে। তবে আলু লুঠ হয়েছে, এমন কোনও লিখিত অভিযোগ আসেনি।" জেলার নেতা তথা খাদ্যমন্ত্রী জ্যোতিপ্রিয় মল্লিকের দাবি, "বিষয়টি জানি না। খোঁজ নিচ্ছি।"

http://www.anandabazar.com/8raj3.html


এই সময়: 'সরকারি দরে আলু বেচতে আমাদের অসুবিধে নেই৷ কিন্ত্ত ১১ টাকায় আলুর জোগান নিশ্চিত করুক সরকার', গড়িয়াহাট বাজারের আলু ব্যবসায়ী মন্টু মণ্ডল, লক্ষ্মী সাউ বা লেক মার্কেটের রতন সাহা, সকলের এক কথা৷ তাঁদের সাফ কথা, কোনও অবস্থাতেই মহাজনের থেকে বেশি দামে আলু কিনে কম দামে বিক্রি করা সম্ভব নয়৷


গড়িয়া বাজারে বাজার সমিতির তরফে মনোরঞ্জন সাহা খুচরো ব্যবসায়ীদের ১৩ টাকা কেজি দরে আলু বিক্রির কথা বলেছিলেন৷ সুরজিত্‍ গুহ, শ্যামসুন্দর মিত্রর মতো ব্যবসায়ীরা তাঁকে পাল্টা বলে দেন, 'সরকার যদি সরবরাহ নিশ্চিত না করে আমাদের মতো ছোট ব্যবসায়ীদের উপর চাপ সৃষ্টি করে, তা হলে দোকান বন্ধ রাখা ছাড়া আমাদের কিছু করণীয় থাকবে না৷'


ঘটনা হল, বৃহস্পতিবার পরিস্থিতির কিঞ্চিত্‍ উন্নতি হলেও, এখনও স্বাভাবিক হয়নি আলুর বাজার৷ সকালে গড়িয়া, বাঘাযতীন, গড়িয়াহাট, লেক মার্কেট, ল্যান্সডাউন মার্কেট, রাসমণি বাজার, শ্যামবাজার, মার্কাস স্কোয়্যার-- কোনও বাজারেই আলু ছিল না৷ সকাল সাড়ে ন'টার দিকে লেক মার্কেটে আলুর গাড়ি পেঁৗছয়৷ ১১ টাকা কেজি দরে সেই আলু দেওয়া হয় ব্যবসায়ীদের৷ দুপুর বারোটার পরে আলুর গাড়ি পেঁৗছয় গড়িয়া, রানীকুঠি, বাঁশদ্রোণী, বাঘাযতীন, শ্রীকলোনি-সহ অন্যান্য বাজারে৷ তা প্রয়োজনের তুলনায় যথেষ্ট না হলেও, পরিস্থিতির খানিক ভালো হয়৷


তবে সরকার কত দিন এ ভাবে আলু সরবরাহ করতে পারবে, তা নিয়ে সন্দিহান ব্যবসায়ীরা৷ এ ছাড়া গ্রেডেশন না থাকায় নিম্নমানের আলু সরবরাহের অভিযোগ এসেছে কলকাতা এবং লাগোয়া জেলাগুলি থেকে৷ হাওড়ার শিবপুর ব্যবসায়ী সমিতির সদস্য রাজদীপ দাসের অভিযোগ, 'এদিন সকালে জ্যোতি নয়, এস ওয়ান আলু এসেছে৷ ১১ টাকায় সরবরাহ করে বলা হচ্ছে ১১ টাকা ৮০ পয়সায় বিক্রি করতে৷ লাভ কোথায়?' বস্তায় ওজনে কম থাকার অভিযোগও তুলেছেন তিনি৷


দক্ষিণ শহরতলির বাজার ব্যবসায়ী সমিতির মনোরঞ্জন সাহাও জানিয়েছেন, বস্তাগুলিতে ওজনে কম আলু থাকার অভিযোগ করেছেন ব্যবসায়ীরা৷ বেশ কিছু বস্তায় পচা আলুও বেরিয়েছে৷ বস্তায় ওজনে কম আলু থাকার অভিযোগ রয়েছে লেক মার্কেটেও৷ মহাজনদের ঘর থেকে সরাসরি আলু না এলেও, চালান ছাড়া ৮৫০ টাকা বস্তায় আলু বিক্রি করছেন তাঁরা৷


কৃষি বিপণন দপ্তরের সূত্রে খবর, ইতিমধ্যেই ৩০ নভেম্বরের মধ্যে হিমঘর খালি করতে বলা হয়েছে৷ জোগানে ঘাটতির আশঙ্কা করছে না রাজ্য৷ তবে ওয়াকিবহাল মহলের বক্তব্য, এ বছর হিমঘরে রাজ্য সরকারের নিজস্ব আলু না থাকায়, ব্যবসায়ী এবং চাষিদের আলুই হিমঘর থেকে বের করতে হবে৷ কিন্ত্ত রাজ্য সরকার জোর খাটিয়ে তা করতে পারবে না৷ তবে কয়েকজন অসাধু ব্যবসায়ীর অতিরিক্ত মুনাফার লোভে দামবৃদ্ধির কথা স্বীকার করছেন ব্যবসায়ীদেরই একাংশ৷ এই প্রেক্ষিতে সরকার যে সিদ্ধান্ত নিয়েছে, তাকেও সমর্থন জানাচ্ছেন তাঁরা৷ এ নিয়ে ব্যবসায়ীদের ইতিমধ্যেই বিভাজিত৷ একাংশের দাবি, এই বিভাজন কাজে লাগাচ্ছে সরকার৷


নভেম্বরের পর হিমঘরে আলু রাখা যাবে না৷ বাইরে আলু পাঠানোও আপাতত বন্ধ৷ ফলে রাজ্যে আগামী দু'মাসে আলুর জোগানে ঘাটতি হওয়ার কথা নয়৷ এর সঙ্গে রাজ্য আরও দু'টি সিদ্ধান্ত নিয়েছে৷ সরকার মনে করে, বর্তমান পরিস্থিতিতে সাধারণ মানুষ বাড়তি আলু সংগ্রহ করতে পারেন৷ তাই যে সব বাজারে আলু সরবরাহ করা হয়েছে, সেখানকার ব্যবসায়ীদের মাথাপিছু দু'কিলোর বেশি আলু বিক্রি করতে নিষেধ করা হয়েছে৷ পাশাপাশি ব্যবসায়ীদের চাপে রাখতে হিমঘরগুলির লাইসেন্স রিন্যুয়ালের পরিস্থিতি সম্পর্কেও খোঁজখবর শুরু হয়েছে৷


এদিন বিভিন্ন বাজারে ১৩ টাকা কেজি দরে আলু বিক্রির পাশাপাশি ৩৬ টাকায় পেঁয়াজ বিক্রির নির্দেশিকাও দিতে শুরু করেছে প্রশাসন৷ কিন্ত্ত ব্যবসায়ীদের সাফ কথা, ৪০-৫০ টাকায় পেঁয়াজ কিনে তা ৩৬ টাকায় বিক্রির সিদ্ধান্ত কোনও মতেই মানা সম্ভব নয়৷ প্রয়োজনে দোকান বন্ধ রাখতে বাধ্য হবেন তাঁরা৷ উপরমহলে ইতিমধ্যেই এ বার্তা পাঠানো হয়েছে বলে জানিয়েছেন ব্যবসায়ী সংগঠনের প্রতিনিধিরা৷


এই সময়: দর নিয়ে ব্যবসায়ী এবং রাজ্য সরকারের টানাপোড়েনের মধ্যে বর্ধমানের জামালপুরে এক আলু ব্যবসায়ী কীটনাশক খেয়ে আত্মঘাতী হলেন৷ জামালপুরের বেড়ুগ্রামের বাসিন্দা সুব্রত বন্দ্যোপাধ্যায় (৫০) নামে ওই ব্যবসায়ী আলুর ফাটকা বাজারের বলি হয়েই মানসিক অবসাদে আত্মহত্যা করেছেন বলে তাঁর পরিবারের অভিযোগ৷ গত বছর ধানের ন্যায্য দাম না পেয়ে বিভিন্ন জেলায় অনেক চাষী আত্মঘাতী হয়েছিলেন৷ রাজ্য সরকার অবশ্য তা মেনে নিতে রাজি হয়নি৷ মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়-সহ তাঁর সহকর্মীদের দাবি ছিল, একজন ছাড়া বাকি সকলেই পারিবারিক কারণে আত্মহত্যার পথ বেছে নিয়েছেন৷ এক বছর যেতে না যেতেই এবার আলুর বর্তমান সঙ্কটের পরিপ্রেক্ষিতে এই প্রথম কোনও আলু ব্যবসায়ী আত্মঘাতী হলেন৷ সুব্রতবাবুর ছেলে পুলক জানান, তাঁর বাবা প্রতি বছর দেড় থেকে দু'হাজার বস্তা আলু হিমঘরে রেখে ব্যবসা করতেন৷ চাষীদের কাছ থেকে আলু কিনে তা তিনি হিমঘরে রাখতেন৷ সেই আলু বেচে চাষীদের টাকা শোধ করতেন৷ কিন্ত্ত এবারের জটিল পরিস্থিতিতে সেই টাকা শোধ করতে পারেননি৷ তাই কয়েক দিন ধরে তিনি মানসিক অবসাদে ভুগছিলেন৷ রবিবার বাড়িতে কীটনাশক খান৷ আশঙ্কাজনক অবস্থায় তাঁকে বর্ধমান মেডিক্যাল কলেজ হাসপাতালে ভর্তি করা হয়৷ বুধবার বেশি রাতে তিনি মারা যান৷



এদিকে আগের দিন মুখ্যমন্ত্রী আলুর সঙ্কট মোকাবিলার দায় নিজের ঘাড়ে নেওয়ার পর বৃহস্পতিবার সকাল থেকেই জেলায় জেলায় তৃণমূলের নেতা-কর্মীরা রীতিমতো উত্‍সবের মেজাজে বাজারে ঝান্ডা হাতে নিয়ে ১৩ টাকা দরে আলু বিক্রি করতে নেমে পড়েন৷ কোথাও তৃণমূল পরিচালিত পুরসভায়, কোথাও দলের পার্টি অফিসে, আবার কোথাও খোলা রাস্তায় তাঁরা আলু বিক্রি করেছেন৷ তা সত্ত্বেও এদিন বিভিন্ন জেলায় আলুর সঙ্কট অব্যাহত ছিল৷ এর পাশাপাশি মুখ্যমন্ত্রীর নির্দেশমতো পুলিশ এবং এনফোর্সমেন্টের নজরদারিও চলে৷ ঝাড়খণ্ড-আসানসোল সীমান্তে পুলিশ ১৭ ট্রাক আলু আটক করে৷ তার মধ্যেই ভিন রাজ্যে আলু পাচারে কোথাও কোথাও নয়া ফন্দি এঁটেছেন ব্যবসায়ীরা৷ এদিনই গুসকরা থেকে বিহারের লক্ষ্মীসরাইয়ে এক ট্রাক আলু পাচার করতে গিয়ে তার খালাসি এবং চালক গ্রেপ্তার হয়েছেন৷ অভিযোগ, সেই ট্রাকের দুটি চালান ছিল৷ একটি এই রাজ্যের, অন্যটি অন্য রাজ্যের৷ সালানপুরের কাছে পশ্চিমবঙ্গের চালানটি দেখিয়ে সেটি অন্য রাজ্যে যাওয়ার চেষ্টা করছিল৷ পরে পুলিশ সেটিকে আটক করে৷ তখন চালকের কাছে বিহারের লক্ষ্মীসরাইয়ের চালানেরও খোঁজ মেলে৷ পুলিশ সংশ্লিষ্ট ব্যবসায়ীকে খুঁজছে৷


এদিন সকাল থেকে বীরভূম জেলার তিন মহকুমার সমস্ত বড় বাজারের দখল নিয়ে নেন স্থানীয় তৃণমূল নেতা এবং কর্মীরা৷ শাসক দলের পতাকা ও ফেস্টুন লাগিয়ে তাঁরা ১৩ টাকা দরে আলু বেচেন৷ সিউড়ির স্বদেশীবাজারে দাঁড়িয়ে আলু বিক্রি করতে দেখা গেল স্থানীয় তৃণমূল কাউন্সিলার মনিতা মান্নার স্বামী রঞ্জিত মান্নাকে৷ সঙ্গে অনেক দলীয় কর্মী৷ তাঁদের হাঁক পেড়ে বলতে শোনা যায়, 'মুখ্যমন্ত্রীর নির্দেশে ১৩ টাকা দরে আলু বিক্রি হচ্ছে৷ তাড়াতাড়ি নিয়ে যান৷' রঞ্জিতবাবু বলেন, 'দিদি আলুর দাম কমানোর দায়িত্ব নিয়েছেন৷ তাই আমরাও মাঠে নেমেছি৷' মুহূর্তের মধ্যে ১৫ বস্তা আলু বিক্রি হয়ে যায়৷ মজার ঘটনা হল, ওই বাজারের ঠিক উল্টোদিকে কিন্ত্ত আলু বিক্রি হচ্ছিল ২০ টাকা দরেই৷ সিউড়ি পুরবাজারেও সরকারি আলু বিক্রি করেন তৃণমূল নেতারা৷ যদিও সেই বাজারে বেশি দামে আলু বিক্রি বন্ধ করার ক্ষেত্রে তৃণমূল নেতাদের মধ্যে কোনও উদ্যোগ দেখা যায়নি৷


হুগলির বাঁশবেড়িয়া পুর এলাকায় তৃণমূল নেতারা হিমঘর থেকে আলু কিনে তা বাসিন্দাদের কাছে বিক্রি করেন৷ তার নেতৃত্ব দেন বিধায়ক তপন দাশগুপ্ত৷ তিনি বলেন, 'মুখ্যমন্ত্রী নির্দেশ দেওয়ার পরই আমরা পথে নেমেছি৷'


দক্ষিণ ২৪ পরগনার ডায়মন্ড হারবারে কিন্ত্ত এদিন বাজারে ১৩ টাকার আলু চোখে পড়েনি৷ শব্দবাজির মতো লুকিয়ে চুরিয়ে চড়া দামে আলু বিক্রি করেছেন ব্যবসায়ীরা৷ তবে মহেশতলা থানার পুলিশ স্থানীয় ব্যানার্জির হাটে ব্যবসায়ীদের পাশে দাঁড়িয়ে থেকে ১৩ টাকা দরে আলু বিক্রির ব্যবস্থা করেন৷ জেলার বিভিন্ন বাজারে আলুর দোকানের ঝাঁপ ছিল বন্ধ৷ সাধারণ মানুষের অভিযোগ, সরকার এনফোর্সমেন্ট ব্রাঞ্চের নজরদারি চালানোর কথা বললেও কোথাও তাদের দেখা যায়নি৷ ডায়মন্ড হারবারের মহকুমাশাসক মৌমিতা সাহা জানান, এখানে এনফোর্সমেন্টের কোনও অস্তিত্ব আছে বলে মনে হয় না৷ ওদের দেখা যাচ্ছে না বলেই স্থানীয় প্রশাসন এগিয়ে এসেছে৷


সরকার যে ভাবে আলু বিক্রির বন্দোবস্ত করেছে, তাতে বেজায় চটেছেন আলু চাষীরা৷ হুগলির চাষীরা জানাচ্ছেন, এতে তাঁরাই ক্ষতিগ্রস্ত হবেন৷ যাঁরা আলু নিয়ে ফাটকাবাজি করছেন, তাঁদের বিরুদ্ধে সরকার কোনও ব্যবস্থা নিচ্ছে না৷ রমেশ ঘোষ নামে এক আলু চাষীর অভিযোগ, আসলে এঁদের অধিকাংশই শাসক দলের ঘনিষ্ঠ৷ তাই তাঁদের টিকি ধরছে না সরকার৷


সরকারি এই ব্যবস্থাপনার কড়া সমালোচনা করেছেন রাজ্যের বিরোধী দলনেতা সূর্যকান্ত মিশ্রও৷ তিনি বলেন, 'আলুর দাম বাড়ছে৷ আবার তা উধাও-ও হয়ে যাচ্ছে৷ এরকম অবস্থা আগে কখনও দেখিনি৷' তাঁর অভিযোগ, এই পরিস্থিতির জন্য দায়ী মুখ্যমন্ত্রী নিজে৷ তিনি যাতেই হাত দেন, সেটাই উধাও হয়ে যাচ্ছে৷ বিরোধী নেতা বলেন, 'আসলে ব্যবসায়ীরা শাসক দলকে টাকা দিচ্ছেন৷ মুখ্যমন্ত্রী বলছেন, ব্যবসায়ীরা নাকি তাঁর সঙ্গে প্রতারণা করেছেন৷ যদি তাই হয়, তাহলে তিনি ব্যবস্থা নিচ্ছেন না কেন৷ সব মিলিয়ে প্রতারিত হচ্ছেন সাধারণ মানুষ৷'


মমতা নিজেই আসরে, আলু তবু ডুমুরের ফুল

নিজস্ব প্রতিবেদন

হিমঘর উপচে পড়ছে। বাজার খাঁ খাঁ!

আলুর দাম নিয়ন্ত্রণে রাজ্য সরকার কোমর বেঁধে নামার চার দিন পরে ছবি এমনটাই। যে বাজারে যৎসামান্য আলু রয়েছে, সরকারি নির্দেশকে বুড়ো আঙুল দেখিয়ে তার দাম আকাশছোঁয়া। কোথাও ২০ টাকা কেজি তো কোথাও ৩৫ টাকা। ক্রেতা ও বিক্রেতা উভয় পক্ষেরই অভিযোগ, সরকার আলুর দাম বেঁধে দেওয়ার পর থেকেই পরিস্থিতি জটিল থেকে জটিলতর হয়ে উঠছে।

সরকার অবশ্য এখনও নিজের অবস্থানে অনড়। শাসক দলের নেতাদেরও অনেকের বক্তব্য, এক শ্রেণির ব্যবসায়ীর অন্যায় লোভের কারণেই সমস্যা তৈরি হয়েছে। অতএব তা কড়া হাতে মোকাবিলা করাই দরকার। আলু-পরিস্থিতি খতিয়ে দেখতে বুধবার পথে নেমেছিলেন খোদ মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। বস্তুত, দাম নিয়ন্ত্রণের দায়িত্ব যাদের, সেই কৃষি বিপণন দফতরের ভার আপাতত নিজের হাতে নিয়ে নিয়েছেন তিনি। মমতা বলেন, "আমি অরূপকে (কৃষি বিপণনমন্ত্রী অরূপ রায়) বলেছি, তোমার হাতেই দফতর থাকছে। কিন্তু আগামী কিছু দিনের জন্য আমি কাজ দেখভাল করব।"

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আলু বেরোচ্ছে কামারকুণ্ডুর একটি হিমঘর থেকে। বুধবার নিজস্ব চিত্র।

এ দিন কোলে মার্কেট এবং কলেজ স্ট্রিট বাজার পরিদর্শনের পরে নবান্নে ফিরে আলু ব্যবসায়ীদের বিরুদ্ধে কার্যত যুদ্ধ ঘোষণা করেন মুখ্যমন্ত্রী। তাঁর অভিযোগ, প্রচুর আলু থাকা সত্ত্বেও কিছু অসাধু ব্যবসায়ী অতিরিক্ত লাভের আশায় রাজ্যের বাইরে আলু পাঠাচ্ছেন। মুখ্যমন্ত্রী বলেন, "যাঁরা এই কাজ করছেন, তাঁদের আমি জানি। তাঁদের কেউ ঘাটশিলায়, কেউ জালন্ধরে চলে গিয়েছেন। আমি নির্দেশ দিয়েছি, তাঁদের ধরে আনার জন্য।"

ওই সব আড়তদারদের লাইসেন্স বাতিল করা হবে জানিয়ে মুখ্যমন্ত্রী বলেন, "আমি সব জেলার জেলাশাসক, পুলিশ সুপার, এসডিও, বিডিও সকলকেই নির্দেশ দিয়েছি, একটি লরিও যেন রাজ্যের সীমানা অতিক্রম করতে না পারে। সবাইকে ২৪ ঘণ্টা নজর রাখার কথা বলেছি। জেলার পাশাপাশি কলকাতাতেও নজর রাখবে পুলিশ, সিআইডি এবং এনফোর্সমেন্ট শাখা।"

কিন্তু এত কড়াকড়িতেও আলু যে সুলভ হয়নি, বাজারে গিয়ে সেটা হাড়ে হাড়ে বুঝছেন আমজনতা। বাজারে বাজারে আলু পৌঁছে দেওয়ার আশ্বাস দিয়েছিল সরকার। মঙ্গলবার পুরসভা এবং কৃষি বিপণন দফতর মিলিয়ে কলকাতার বাজারে পৌঁছে দিয়েছিল ৬৫ মেট্রিক টন আলু। বুধবার তা বেড়ে ৮২ মেট্রিক টন হলেও সেটা শহরের মোট চাহিদার মাত্র ৪ শতাংশ।

কৃষি বিপণন দফতর সূত্রে মঙ্গলবার বলা হয়েছিল, শ্রমিকের অভাবের কারণেই হিমঘর থেকে আলু বার করা যাচ্ছে না। ফলে বাজারে সরবরাহ মার খাচ্ছে। এই পরিস্থিতির মোকাবিলায় বুধবার থেকে একশো দিনের কাজের শ্রমিকদের এই কাজে লাগানোর পরিকল্পনা হচ্ছে। কিন্তু এ দিনও পরিস্থিতির উন্নতি হয়নি।

ফলে বাজারে গিয়ে আলু না-পেয়ে ক্ষোভ উগরে দিয়েছেন সাধারণ মানুষ। অনেকেই বলছেন, সরকার আসরে নামার আগে ১৫ টাকা কেজি দরে আলু মিলছিল। কিন্তু দাম ১৩ টাকায় বেঁধে দেওয়ার পরে বাজারে পড়ে থাকা সামান্য আলু দেড় থেকে তিন গুণ দাম দিয়ে কিনতে হচ্ছে। অনেকেই এই পরিস্থিতির সঙ্গে বাস ভাড়া না-বাড়ানোর ব্যাপারে সরকারি জেদের মিল পাচ্ছেন। তাঁদের বক্তব্য, বাস ভাড়া কিছুটা বাড়ানো হলে রাস্তায় বাস থাকত। কিন্তু এখন বাস অমিল হয়ে গিয়ে অটোতে যাতায়াত করতে হচ্ছে অনেক বেশি খরচ করে। আলু ব্যবসায়ীদের একাংশের বক্তব্য, সরকার যে দর বেঁধে দিয়েছে, তার থেকে দু'টাকা বেশি ধার্য করলেই তাঁদের পুষিয়ে যেত।

রাজ্য অবশ্য এই যুক্তি মানছে না। তাদের দাবি, দাম বেঁধে দেওয়ার সময় চাষি এবং ব্যবসায়ীদের লাভের কথাও ভাবা হয়েছে। মুখ্যমন্ত্রী এ দিন অভিযোগ করেন, গত বৃহস্পতিবার তাঁর সঙ্গে আলোচনায় আলু ব্যবসায়ীরা ১১ টাকা পাইকারি দরে এবং খুচরো বাজারে ১৩ টাকায় আলু বিক্রি করার আশ্বাস দিয়েছিলেন, কিন্তু "কথার খেলাপ করে রাজ্যের মানুষের সঙ্গে তাঁরা বিশ্বাসঘাতকতা এবং প্রতারণা করছেন। কিছু আড়তদার কৃত্রিম ভাবে এই সঙ্কট তৈরি করছেন। বেআইনি ভাবে চাষিদের কাছ থেকে আলু কিনে মজুত করে রাখছেন।"

যা শুনে এক আলু ব্যবসায়ীর মন্তব্য, "এই দামে আলু বিক্রি করলে লাভের মুখ দেখা কার্যত অসম্ভব। ঘর থেকে পয়সা এনে কে ব্যবসা করতে যাবে? সরকার-ই বরং ভর্তুকি দিয়ে আলু বিক্রি করুক।"

বাস্তবে অবশ্য তা-ই হতে চলেছে। মুখ্যমন্ত্রী এ দিন বলেন, আড়তদাররা যদি নিজেরা হিমঘর থেকে আলু বার করে বিক্রি করেন ভাল, না হলে প্রশাসনই হিমঘর থেকে আলু বার করে বিক্রির ব্যবস্থা করবে। বুধবার রাত থেকেই স্থানীয় প্রশাসনের সহায়তায় হিমঘরগুলি থেকে আলু বের করে বিভিন্ন জেলায় পাঠানো হবে। আলু রাখার জন্য সখেরবাজারে ইতিমধ্যেই গুদাম তৈরি হয়েছে। স্ট্র্যান্ড রোডেও একটি গুদাম করা হবে।

আলু ব্যবসায়ী, আড়তদারদের প্রতি মুখ্যমন্ত্রীর হুঁশিয়ারি, "আগুন নিয়ে খেলা করবেন না। মানুষকে বঞ্চিত করে বাইরের রাজ্যে আলু চালান করলে রাজ্যের সাধারণ মানুষ আপনাদের ক্ষমা করবেন না।" সাধারণ মানুষকেও এ ব্যাপারে সচেতন থেকে বেশি দামে আলু না-কেনার পরামর্শ দিয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী। মুখ্যমন্ত্রী জানান, আজ, বৃহস্পতিবার থেকে কলকাতার ৩৬টি পুর বাজার ছাড়াও মাদার ডেয়ারির বুথে সরকার নির্ধারিত দামে আলু বিক্রি হবে। একই সঙ্গে সরকার নির্দিষ্ট দরে আলু বিক্রি করবে রাজ্যের কৃষি এবং উদ্যানপালন দফতর।

আলু ভিন্ রাজ্যে পাঠানোর উপরে সরকারি নিষেধাজ্ঞা নিয়েও ক্ষোভ রয়েছে আলু ব্যবসায়ীদের মধ্যে। তাঁদের বক্তব্য, এখানে সরকারে বেঁধে দেওয়া দামে আলু বিক্রি করে লাভের মুখ দেখা যাবে না। অন্য রাজ্যে আলু বিক্রি করে লাভ তোলারও কোনও উপায় থাকছে না। সেই কারণেই হিমঘর থেকে আলু বার করতে উৎসাহী হচ্ছেন না তাঁরা।

কংগ্রেস বিধায়ক মানস ভুঁইয়া এ দিন জানান, পশ্চিম মেদিনীপুরের থেকে আলু নিয়ে ওড়িশা যাওয়ার সময় ২২৫টি লরি সরকারি বিধি নিষেধে মগরামপুর, বেলদা সড়কে আটকে রয়েছে। এই লরিগুলিকে ছেড়ে দেওয়ার জন্যেও তিনি সরকারের সংশ্লিষ্ট বিভাগের কাছে দাবি জানিয়েছেন।

মুখ্যমন্ত্রী অবশ্য ভিন্ রাজ্যে আলু পাঠানোর সম্ভাবনা এ দিনও খারিজ করে দিয়েছেন। অসম ও ওড়িশার মুখ্যমন্ত্রী তাঁকে আলু পাঠানোর জন্য ফোন করেছিলেন জানিয়ে তিনি বলেন, "ওঁরা আমার ভাল বন্ধু। কিন্তু আমি ওঁদের বলে দিয়েছি, রাজ্যবাসীকে বঞ্চিত করে আমি আলু রফতানি করব না।"

http://anandabazar.com/archive/1131107/7raj1.html


নেই তাই কুড়ি, পুলিশ এলেই লোকসান বাঁধা

নিজস্ব সংবাদদাতা • কলকাতা

বুধবারই আলুর দাম নিয়ন্ত্রণে কৃষি বিপণন দফতরের ভার অরূপ রায়ের হাত থেকে নিজের হাতে নিয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। বৃহস্পতিবার পোস্তা বাজার মার্চেন্টস অ্যাসোসিয়েশনের জগদ্ধাত্রী পুজোর উদ্বোধনে এসে মঞ্চের নীচে সামনের সারিতে বসে থাকা আলু ব্যবসায়ী গুরুপদ সিংহের দিকে আঙুল তুলে তিনি বললেন, "ওই তো গুরুপদ ওখানে বসে রয়েছে। তিন দিন আলু ছিল না। আলু না বেচে ও (গুরুপদ) ঘাটশিলায় পালিয়ে গিয়েছিল। তিন দিন ও যে লাভ করেছে, তাতে সাধারণ মানুষ, সরকার লোকসানে ছিল। আমি তিন দিন ওর লোকসান করাব।" গুরুপদবাবুর মতো বড় ব্যবসায়ী না হলেও ঘটনাচক্রে বৃহস্পতিবারই আলু বেচতে গিয়ে লোকসানের মুখে পড়েছেন সল্টলেকের ফাল্গুনী বাজারের জনা কয়েক খুচরো বিক্রেতা। এ দিন সকালে ২০ টাকা কেজি দরে চন্দ্রমুখী আলু বিক্রি করছিলেন তাঁরা। আচমকা পুলিশ এসে জানায়, ১৫ টাকা কেজি দরে বেচতে হবে। বিক্রেতারা বলেন, ''আড়তদারদের কাছ থেকে ৫০ কেজির বস্তা কিনেছি ৮৫০ টাকা দিয়ে। মানে কেজি-পিছু ১৭ টাকা। ১৫ টাকায় বেচব কী করে?" অভিযোগ, সেই যুক্তি না শুনে ১৫ টাকাতেই আলু বেচতে বাধ্য করেছে পুলিশ। প্রায় দু'শো টাকা লোকসান দিয়ে ভেঙে পড়া বাসন্তী বিশ্বাস কাঁদতে কাঁদতে বললেন, "পুলিশকে বললাম, আলু বিক্রি করব না। এখনই মাল নিয়ে ফেরত দেব আড়তদারের কাছে। এ বারের মতো ছেড়ে দিন। কিন্তু ওঁরা জোর করে বস্তা থেকে আলু ঢেলে বেচে দিলেন।" আর এক বিক্রেতা শিবদেবী সাউয়ের কথায়, "এ তো জুলুম! ভোর তিনটেয় উঠে বাজারে গিয়ে মাল কিনেছি। আমাদের মতো খুচরো বিক্রেতাদের মেরে কী লাভ? বড় ব্যবসায়ীদের তো কিছু করতে পারছে না সরকার!"

ফাল্গুনী বাজারে যখন পুলিশ ১৫ টাকা দরে চন্দ্রমুখী আলু বিক্রি করাচ্ছে, তখন ঢিল ছোড়া দূরের এফ ডি ব্লক বাজারে জ্যোতি আলু বিক্রি হচ্ছে ১৮ টাকায়। পুলিশের টিকিরও দেখা নেই। বাগুইহাটিতে যত ক্ষণ দোকানের সামনে পুলিশ হাজির, তত ক্ষণ জ্যোতি আলুর দর ১৩ টাকা কেজি। পুলিশ সরে যেতেই ২০।

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আলুর আকালের মধ্যে হাওড়ার বাজারে পচা আলু নিয়েই পসরা দোকানির। ছবি: দীপঙ্কর মজুমদার।

পাড়ায়-পাড়ায় বাজারে-বাজারে নজরদারি যে কার্যত অসম্ভব, তা কবুল করছেন পুলিশ কর্তারাই। এক কর্তার কথায়, "সব কাজ ফেলে কত জায়গায় একসঙ্গে পাহারা দেব? আলু বিক্রি করতে গিয়ে হিমশিম খেতে হচ্ছে। কী করব বুঝতে পারছি না।"

বিপাকে শাসক দলের নেতারাও। মনোহরপুকুর এলাকার বাসিন্দাদের জন্য ১০০ বস্তা আলু তুলেছিলেন কলকাতা পুরসভার মেয়র পারিষদ দেবাশিস কুমার। কিন্তু ওই এলাকায় কোনও সব্জি বাজার নেই। ফলে শেষ পর্যন্ত স্থানীয় ক্লাবের ছেলেদের লাগিয়ে বিক্রির ব্যবস্থা করতে হয়েছে তাঁকে। আর এক মেয়র পারিষদ সুশান্ত ঘোষ পড়েছেন আরও ফ্যাসাদে। কসবায় তাঁর এলাকায় চার-চারটি বাজার। আলু ঠিক মতো পৌঁছেছে কি না, দেখতে চারটি বাজারে চরকির মতো ঘুরতে হয়েছে তাঁকে। বস্তুত, শাসক দলের প্রায় সব কাউন্সিলরই এ দিন অন্য সব কাজ ফেলে আলু বিক্রি নিয়ে ব্যস্ত থেকেছেন। নাম প্রকাশ না-করার শর্তে তাঁদের অভিযোগ, চাহিদার তুলনায় জোগান ছিল যৎসামান্য। প্রশ্ন উঠেছে সরকারি তত্ত্বাবধানে আসা আলুর গুণমান নিয়েও। এ দিন ভোররাতে হাওড়ার কালীবাবুর বাজার, শিবপুর বাজার, রামরাজাতলা বাজার ও কদমতলা বাজারে চার ট্রাক আলু আসে। পুলিশি পাহারায় তা ১৩ টাকা কেজি দরে বিক্রি করেন আড়তদাররা। কিন্তু তাঁদের অভিযোগ, বেশির ভাগ আলুই পচা এবং প্রায় ছ'মাসের পুরনো। সে কথা স্বীকার করে হাওড়ার জেলাশাসক শুভাঞ্জন দাস বলেন, "এ দিন যে আলু এসেছিল তা ভিজে ছিল। তাই আমরা হুগলি থেকে শুকনো আলু আনার চেষ্টা করছি।"

এর পরেও অবশ্য আলু বিক্রি থেকে পিছিয়ে আসছে না সরকার। মুখ্যমন্ত্রীর কৃষি উপদেষ্টা প্রদীপ মজুমদার এ দিন বলেন, "যত দিন না বাজার স্বাভাবিক হচ্ছে, তত দিন আমরা সমস্ত জায়গায় আলু সরবরাহ করব। আশা করছি, আজ, শুক্রবার থেকে পরিস্থিতি স্বাভাবিক হবে।"

আলু নিয়ে বেহাল পরিস্থিতির জন্য এ দিন মুখ্যমন্ত্রীকেই দায়ী করেছেন বিরোধী দলনেতা সূর্যকান্ত মিশ্র। তিনি বলেন, "মুখ্যমন্ত্রী যেখানে হাত দিচ্ছেন, সেখানেই সমস্যা। মুখ্যমন্ত্রী আলুতে হাত দিয়েছেন। বাজার থেকে আলু হাওয়া হয়ে গিয়েছে।" আলু ব্যবসায়ীরা ভোটের সময় তৃণমূলকে টাকা দিয়েছে, তাই ওরা এখন বেশি দামে আলু বেচে সেই টাকা তুলছে এই অভিযোগ করে সূর্যবাবু বলেন, "মুখ্যমন্ত্রী বলছেন, আলু ব্যবসায়ীরা তাঁকে প্রতারণা করেছে। আবার ব্যবসায়ীরা বলছেন, সরকার তাঁদের প্রতারণা করেছে। কে কাকে প্রতারণা করেছে বোঝা মুশকিল।" বাম আমলে ৪০০টি হিমঘর তৈরি হয়েছে দাবি করে সূর্যবাবুর অভিযোগ, তৃণমূলের আড়াই বছরে একটি হিমঘরও তৈরি হয়নি। তাঁর প্রশ্ন, "বাম আমলে হিমঘরে কৃষি বিপণন দফতর আলু রাখত। কিন্তু তৃণমূল সরকার তা করেনি কেন?"

http://www.anandabazar.com/8raj2.html


আলুর সঙ্কট কিছুটা মিটল, ফের হুমকি মমতার

কৌশিক সরকার ও জয় সাহা



মুখ্যমন্ত্রীর হুঙ্কারে আলুর জোগান খানিকটা হলেও বাড়ল৷ কলকাতার বাজারে বুধবার আলু ছিলই না৷ বৃহস্পতিবার কোথাও কোথাও আলুর দেখা মিলেছে৷ তবে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের হুঙ্কার থামেনি৷ পোস্তায় জগদ্ধাত্রী পুজোর উদ্বোধনে গিয়ে 'ষড়যন্ত্রকারী ব্যবসায়ীদের' প্রতি মুখ্যমন্ত্রীর হুঁশিয়ারি, 'যাঁরা এই কয়েকদিনে 'লাভ' করেছেন, তাঁদের আগামী কয়েকদিনে 'লোকসান' করিয়ে দেওয়া হবে৷' নাম করে এক বড় আলু ব্যবসায়ীকে তিনি ভত্‍র্‌সনাও করেছেন৷ গত কয়েক দিন ওই আলু ব্যবসায়ী কেন ঘাটশিলায় বসেছিলেন, সেই প্রশ্নও তোলেন তিনি৷

মুখ্যমন্ত্রীর অভিযোগ, গত বছর রাজ্য সরকার চাষিদের বাঁচাতে ব্যবসায়ীদের যে ১১ কোটি টাকা ভর্তুকি দিয়েছিল, ব্যবসায়ীরা তা অন্য কাজে লাগিয়েছেন৷ এই ব্যবসায়ীদের কাছ থেকে 'চেকে' ক্ষতিপূরণের অর্থ আদায় করা হবে৷

বেলা বাড়ার সঙ্গে সঙ্গে এ দিন সরকারি উদ্যোগে শ্যামবাজারে ১৫০ বস্তা, মানিকতলা বাজারে ৭৫ বস্তা, মার্কাস স্কোয়ারে ৪৮ বস্তা, কোলে মার্কেটে ৫১৮ বস্তা, গড়িয়া বাজারে ৬০ বস্তা, বাঁশদ্রোণীতে ৫০ বস্তা এবং রানিকুঠি বাজারে ২০ বস্তা আলু ব্যবসায়ীরা হাতে পেয়েছেন৷ তবে বাজারে মানুষের হয়রানির চিত্রটা বদলায়নি৷ প্রশাসনিক হস্তক্ষেপে ১৩ টাকা কেজি দরে আলু বিক্রি হলেও চাহিদার তুলনায় তা ছিল বেশ কম৷ তাই সরকারি গাড়ি থেকে বিভিন্ন বাজারে আলু কেনার জন্য লম্বা লাইনের চেনা ছবি এ দিনও ধরা পড়েছে শহরের বিভিন্ন খুচরো ও পাইকারি বাজারে৷

যেমন মার্কাস স্কোয়ার৷ সময় সকাল ৯টা ১৫ মিনিট৷ বাজারের ভিতরে তিন ফুট চওড়া এঁদো গলির ভিতরে আলুর দোকানের সামনে তখন ভিড় জমিয়েছেন শ'দেড়েক মানুষ৷ সবাই কমবেশি বিরক্ত৷ সকাল সাড়ে পাঁচটা থেকে আলু কেনার জন্য লাইন দিয়েছেন মহাজাতি সদন চত্বরের বাসিন্দা মোহন নাইয়া৷ প্রায় চার ঘণ্টা কেটে যাওয়ার পরও আলু না মেলায় উত্তেজিত মোহনবাবুর প্রতিক্রিয়া, 'আলু কেনার জন্য নাওয়া-খাওয়া ফেলে এ ভাবে দাঁড়িয়ে থাকার কোনও মানে হয়, বলুন? পুলিশ মাঝে মাঝে আসছে আর বলে যাচ্ছে আর একটু অপেক্ষা করুন, সরকারি গাড়িতে আলু আসছে৷ অথচ এখনও তার দেখা নেই৷ দাঁড়িয়ে থাকতে থাকতে অনেকেই অসুস্থ হয়ে পড়ছেন৷'

এ দিন সকাল সাড়ে সাতটার সময় শ্যামবাজারে কাঁচা সব্জির বাজারে কোনও আলু দেখা যায়নি৷ ক্রেতারা বাজার ঘুরে আলু না-পেয়ে বাজার সমিতির সহ-সম্পাদকের কাছে জানতে চান, আলু কখন আসবে৷ বাজার সমিতির কর্তারা অসহায়তার সুরে ক্রেতাদের আশ্বস্ত করে বলেন, 'পুলিশ তো কার কত আলু চাই তা লিখে নিয়ে গিয়েছে৷ আমাদের সঙ্গে পুরসভার কর্তাদেরও কথা হয়েছে৷ শুনছি, আলুর গাড়ি নাকি মানিকতলা বাজারে আছে৷ আমরা বলেছি আমাদের ১০০ বস্তা আলু লাগবে, কিন্ত্ত ওরা বলেছে ৪০ বস্তার বেশি আলু দিতে পারবে না৷' পরে অবশ্য শ্যামবাজারে ১৫০ বস্তা আলু পৌঁছেছে৷ মানিকতলা বাজারে পুলিশি নিরাপত্তার মধ্যেই ক্রেতারা অসন্তোষ প্রকাশ করেন৷ লম্বা লাইন পেরিয়ে আলু কিনতে গিয়ে আমহার্স্ট স্ট্রিটের বাসিন্দা তাপস কর্মকার দেখেন, দোকানির কাছে আলু ফুরিয়ে গিয়েছে৷ তাঁর অভিযোগ, 'সকাল থেকে লাইন দেওয়ার পর এখন দেখছি আলু নেই৷ পুলিশকে এখনই আলু নিয়ে আসার বন্দোবস্ত করতে হবে৷'


বাজার সমিতির কর্তারা আশ্বস্ত করে বলেন, 'একটু অপেক্ষা করুন৷ সরকারি গাড়ি আসার কথা৷ ততক্ষণ অপেক্ষা করা ছাড়া উপায় নেই৷' বেলা বাড়তেই মানিকতলাতেও সরকারি আলু পৌঁছেছে৷ অন্য দিকে, রাসমণি বাজারে মোট পাঁচটি আলুর দোকানের মধ্যে এ দিন মাত্র একটি দোকান খোলা ছিল৷ সংশ্লিষ্ট আলুর দোকানের ব্যবসায়ী হরি দাস বলেন, 'সকালে আমি মোট সাড়ে ৫০০ কিলো আলু নিয়ে দোকান খুলি৷ মহাজনের কাছ থেকে ১৬ টাকা কেজি দরে আলু কিনেছি৷ কিন্ত্ত পুলিশ এসে বলে আমায় ১৩ টাকাতেই আলু বেচতে হবে৷ ওই দরে আলু বেচে আমার ব্যাপক ক্ষতি হয়েছে৷ বাজারের অবস্থা ঠিক না হলে কাল থেকে হয়তো আমিও দোকান খুলব না৷'

অন্যদিকে দক্ষিণ কলকাতা ও শহরতলির বিভিন্ন বাজারেও মোটামুটি একই চিত্র দেখা গিয়েছে৷ গড়িয়া, গড়িয়াহাট বাজার, লেক মার্কেট, ল্যান্সডাউন মার্কেট সর্বত্রই সাধারণ ক্রেতারা ক্ষোভ উগরে দিয়েছেন৷ তবে উত্তরের মতো এখানে লম্বা লাইন চোখে পড়েনি৷ জোগান কম থাকায় একজন ক্রেতাকে সর্বাধিক মাত্র দেড় কেজি করে আলু দেওয়াতে চরমে উঠেছে ক্রেতাদের অসন্তোষ৷ যেমন গড়িয়াহাট বাজারের নিয়মিত ক্রেতা পৌলমি সরকার বলেন, 'চন্দ্রমুখী আলু কিছু দোকানে ২০টাকা কেজি দরে বিকোচ্ছে৷ কিন্ত্ত সকাল সকাল বাজারে এসেও দেখা মেলেনি জ্যোতি আলুর৷ সরকারি গাড়িও দেখতে পাইনি৷'

http://eisamay.indiatimes.com/city/kolkata/potatoes-crisis/articleshow/25418497.cms

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