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संगिक लग रहे हैं)-
‘‘देश में फिर चुनाव होने वाले हैं। इस बार फिर कुछ चेहरों का गुणगान मुक्तिदाता के रूप में होगा। मानो सिर्फ एक व्यक्ति के राष्ट्र के नेता के रूप में न रहने से सारी समस्याएं बनी रहती हैं। समझाया जाता है कि वह जितना मजबूत होगा, समस्याएं उतनी आसानी से हल होंगी। अवतार का प्रचार शुरू हो चुका है। अखबार देखिए, जानिए, दुनिया के इतिहास में पहली बार परमाणु परीक्षणों से हरियाली छायी और पानी का भंडार मिला। परीक्षणों ने मनुष्य और प्रकृति का कितना नुकसान किया, इसकी सूचना गायब किया जा रहा है। मीडिया की निष्पक्षता और विश्वसनीयता के संकट की चर्चा आम है आजकल।’’
‘‘पिछले दिनों एक सांस्कृतिक आयोजन में वरिष्ठ आलोचक डाॅ. रविभूषण से मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान उन्होंने चिंता व्यक्त की कि हर विधा में इतनी रचनाएं लिखी जा रही हैं, परंतु सत्ता का हिलना तो दूर वह तिलमिला भी नहीं रही है। भला सत्ता तिलमिलाएगी कैसे? भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नेता हों या सांप्रदायिकता को राष्ट्रीयता मानने वाले पाखंडी, दोनों जिन सामाजिक राजनैतिक ताकतों से तिलमिला रहे हैं, उनसे कितने साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों का जुड़ाव है?’’
‘‘जब वाजपेयी सरकार एक वोट से हारी, तब एक मित्र ने नारा लगाया- सिंहासन खाली करो कि......। दूसरे ने काटते हुए कहा- .....कोई दूसरा राजा आता है। तो फिलहाल दिल्ली के सिंहासन पर जनता नहीं जा रही है। जनता की सत्ता का सपना देखने वाले राजनीतिक कार्यकर्ताओं और संस्कृतिकर्मियों को इस जनविरोधी व्यवस्था के खिलाफ संघर्षशील लोगों के पक्ष में अपनी ताकत लगानी होगी।’’
‘‘देश में फिर चुनाव होने वाले हैं। इस बार फिर कुछ चेहरों का गुणगान मुक्तिदाता के रूप में होगा। मानो सिर्फ एक व्यक्ति के राष्ट्र के नेता के रूप में न रहने से सारी समस्याएं बनी रहती हैं। समझाया जाता है कि वह जितना मजबूत होगा, समस्याएं उतनी आसानी से हल होंगी। अवतार का प्रचार शुरू हो चुका है। अखबार देखिए, जानिए, दुनिया के इतिहास में पहली बार परमाणु परीक्षणों से हरियाली छायी और पानी का भंडार मिला। परीक्षणों ने मनुष्य और प्रकृति का कितना नुकसान किया, इसकी सूचना गायब किया जा रहा है। मीडिया की निष्पक्षता और विश्वसनीयता के संकट की चर्चा आम है आजकल।’’
‘‘पिछले दिनों एक सांस्कृतिक आयोजन में वरिष्ठ आलोचक डाॅ. रविभूषण से मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान उन्होंने चिंता व्यक्त की कि हर विधा में इतनी रचनाएं लिखी जा रही हैं, परंतु सत्ता का हिलना तो दूर वह तिलमिला भी नहीं रही है। भला सत्ता तिलमिलाएगी कैसे? भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नेता हों या सांप्रदायिकता को राष्ट्रीयता मानने वाले पाखंडी, दोनों जिन सामाजिक राजनैतिक ताकतों से तिलमिला रहे हैं, उनसे कितने साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों का जुड़ाव है?’’
‘‘जब वाजपेयी सरकार एक वोट से हारी, तब एक मित्र ने नारा लगाया- सिंहासन खाली करो कि......। दूसरे ने काटते हुए कहा- .....कोई दूसरा राजा आता है। तो फिलहाल दिल्ली के सिंहासन पर जनता नहीं जा रही है। जनता की सत्ता का सपना देखने वाले राजनीतिक कार्यकर्ताओं और संस्कृतिकर्मियों को इस जनविरोधी व्यवस्था के खिलाफ संघर्षशील लोगों के पक्ष में अपनी ताकत लगानी होगी।’’
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