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इस बार अप्रैल-जून 1999 के इस अंक का आवरण राकेश दिवाकर की पेंटिंग से बना था। उस समय वे सिस्टम सीरिज पर काम कर रहे थे। इस अंक में चित्रकला के सरोकार पर राकेश दिवाकर का एक लेख भी छपा था- चिनगारी एक राख में दबी हुई। पेश है उस लेख का फोटो।
इस अंक में सिरिल मैथ्यू का नाटक ‘हर शाख पर उल्लू बैठे हैं’, जितेंद्र कुमार का लेख ‘भारतीय क्रांति की जद्दोजहद और पाश की कविताएं’ भी छपा था। मदन कश्यप की काव्यकथा ‘सरसो के सात दानों की कथा’, गोविंद निहलानी पर सी.भास्कर राव का लेख, शिवमूर्ति का उपन्यास अंश- पगडंडियां, राजबल्लभ मिश्र की कहानी ‘एक झंडे के तले’ तथा कामतानाथ से अनिल सिन्हा की बातचीत के अलावा सुरेंद्र स्निग्ध की दो कविताएं भी इस अंक का आकर्षण थीं। निलय उपाध्याय ने रामधारी सिंह दिवाकर के उपन्यास ‘मखान पोखर’ की बेहतरीन समीक्षा की थी, गांव को जन्म देने की कोशिश शीर्षक से। (यादों के गलियारे से)
इस अंक में सिरिल मैथ्यू का नाटक ‘हर शाख पर उल्लू बैठे हैं’, जितेंद्र कुमार का लेख ‘भारतीय क्रांति की जद्दोजहद और पाश की कविताएं’ भी छपा था। मदन कश्यप की काव्यकथा ‘सरसो के सात दानों की कथा’, गोविंद निहलानी पर सी.भास्कर राव का लेख, शिवमूर्ति का उपन्यास अंश- पगडंडियां, राजबल्लभ मिश्र की कहानी ‘एक झंडे के तले’ तथा कामतानाथ से अनिल सिन्हा की बातचीत के अलावा सुरेंद्र स्निग्ध की दो कविताएं भी इस अंक का आकर्षण थीं। निलय उपाध्याय ने रामधारी सिंह दिवाकर के उपन्यास ‘मखान पोखर’ की बेहतरीन समीक्षा की थी, गांव को जन्म देने की कोशिश शीर्षक से। (यादों के गलियारे से)
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