कारगिल दोहराना चाहता है भारतीय कारपोरेट नेतृत्व, पर दक्षिण चीन सागर कारगिल तो कतई नहीं है। एक और बात है कि चीन समुद्र में जापान के साथ मिलकर अमेरिका भी हस्तक्षेप करने के मूड में है। इजराइल के भरोसे अमेरिकी इशारे पर भारत महाशक्ति की तरह बात करने लगा है। जैसे एक और बांग्लादेश युद्ध जीतना तय है। इससे अमेरिका कितना खुश होगा कहा नहीं जा सकता, सचमुच संघर्ष की हालत में अमेरिका और इजराइल हमारी पटे में अपनी अपनी टांगें अड़ायेगाया नहीं , यह भी कहना मुश्कल है , पर धार्मिक राष्ट्वाद की अनिवार्य शर्त आक्रामक धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता के उभार की चुनावी कवायद में पिछले छह दशक की राजनयिक कोशिशें बरबाद जरूर हो गयीं।चीनी अंतरिक्ष वैज्ञानिक आने वाले भविष्य में चांद या मंगल ग्रह पर सब्जियां उगाने की योजना बना रहे हैं। अंतरिक्ष में जाने वाले वैज्ञानिकों को सब्जियां और आक्सीजन मुहैया कराने के लिए इस योजना पर काम किया जा रहा है।तो क्या हम चांद या मंगल ग्रह पर सब्जियां उगाने की घोषणा कर देंगे? वैसे सत्तावर्ग की मूर्खताओं को देखते हुए ऐसी किसी घोषणा पर अचरज करने की गुंजाइश नहीं है।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
राजनय की हवा निकाल दी धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता की राजनीति में, फिर १९६२ की दस्तक!चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस ने उग्रतम हिंदुत्व का सहारा लिया तो संघ परिवार ने इकानामिस्ट के चिदंबरम की दावेदारी की धमक के साथ उग्रतम हिंदुत्व के महानतम आइकन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व की दावेदारी का पांसा फेंक दिया। धर्मनिरपेक्षता के बहाने कांग्रेस को समाजवादियों, अंबेडकरवादियों और वामपंथियों का समर्थन मिलना तय है। संसद में दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों को लागू करने करने का फार्मूला भी ईजाद हो गया और बाजार खुशी के मारे १९हजार की चोटी तक छलांग लगा गया। पर लगता है कि चिदंबरम की ताजा दावेदारी और सुधार अभियान में उसकी आक्रामकता से प्रणव मुखर्जी के मुकाबले खतरनाक होते समीकरण से ज्यादा झटका लगा है। तभी तो जब बीजिंग में सीमा विवाद सुलझाने के लिए चीन के नय़े नेतृत्व से बातचीत कर रहे हो भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन, तभी पंडित जवाहर लाल नेहरु केछह दशक पुराने तेवर की याद दिलाते हुए नौसेना प्रमुख डीके जोशी ने कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो चीन से लगी सीमा पर नौसेना को तैनात करेंगे। भारतीय नौसेना ने साफ़ किया है कि अगर ज़रूरत पड़ी तो दक्षिण चीन सागर में अपने तेल ब्लॉक को बचाने के लिए नौसेना तैनात करने में उसे कोई परहेज़ नहीं होगा। दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के समुद्री किनारे पर भारतीय कंपनियां तेल निकाल रही हैं और इसी वजह से भारत और चीन के बीच तनाव है।यानी कारगिल दोहराना चाहता है भारतीय कारपोरेट नेतृत्व, पर दक्षिण चीन सागर कारगिल तो कतई नहीं है। एक और बात है कि चीन समुद्र में जापान के साथ मिलकर अमेरिका भी हस्तक्षेप करने के मूड में है। इजराइल के भरोसे अमेरिकी इशारे पर भारत महाशक्ति की तरह बात करने लगा है। जैसे एक और बांग्लादेश युद्ध जीतना तय है। इससे अमेरिका कितना खुश होगा कहा नहीं जा सकता, सचमुच संघर्ष की हालत में अमेरिका और इजराइल हमारी पटे में अपनी अपनी टांगें अड़ायेगाया नहीं , यह भी कहना मुश्कल है , पर धार्मिक राष्ट्वाद की अनिवार्य शर्त आक्रामक धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता के उभार की चुनावी कवायद में पिछले छह दशक की राजनयिक कोशिशें बरबाद जरूर हो गयीं।दक्षिण चीन सागर में विवादास्पद क्षेत्र पर चीन के दावों के मद्देनजर अमेरिका ने बीजिंग और इस क्षेत्र के अन्य देशों से कहा है कि वे इस क्षेत्र में तनाव बढ़ाने वाला कोई भी कदम न उठाएं।
दक्षिणी चीन सागर चीन के दक्षिण में स्थित एक सीमांत सागर है। यह प्रशांत महासागर का एक भाग है, जो सिंगापुर से लेकर ताईवान की खाड़ी लगभग ३५,००,००० वर्ग किमी में फैला हुआ है। पाँच महासागरों के बाद यह विश्व के सबसे बड़े जलक्षेत्रों में से एक है। इस सागर में बहुत से छोटे-छोटे द्वीप हैं, जिन्हें संयुक्त रूप से द्वीपसमूह कहा जाता है। सागर और इसके इन द्वीपों पर, इसके तट से लगते विभिन्न देशों का संप्रभुता की दावेदारी है। इन दावेदारियों को इन देशों द्वारा इन द्वीपों के लिए प्रयुक्त होने वाले नामों में भी दिखाई देती है।
चीनी अंतरिक्ष वैज्ञानिक आने वाले भविष्य में चांद या मंगल ग्रह पर सब्जियां उगाने की योजना बना रहे हैं। अंतरिक्ष में जाने वाले वैज्ञानिकों को सब्जियां और आक्सीजन मुहैया कराने के लिए इस योजना पर काम किया जा रहा है।तो क्या हम चांद या मंगल ग्रह पर सब्जियां उगाने की घोषणा कर देंगे? वैसे सत्तावर्ग की मूर्खताओं को देखते हुए ऐसी किसी घोषणा पर अचरज करने की गुंजाइश नहीं है।
बीजिंग स्थित चीनी एस्ट्रोनोट रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर के उप निदेशक देंग यीबिंग ने सफल लैब परीक्षणों के बाद कहा कि हालिया परीक्षण आक्सीजन, कार्बन डाईआक्साइड और जल को आधार बनाकर किए गए।उन्होंने बताया कि एक 300 क्यूबिक मीटर के केबिन में दो लोगों को हवा, जल और खाद्य आपूर्ति के साथ रखा गया। केबिन में मौजूद दोनों लोगों को आक्सीजन उपलब्ध कराते हुए और कार्बन डाई आक्साइड ग्रहण करते हुए चार प्रकार की सब्जियां उगायी गयीं। ये दोनों व्यक्ति अपने भोजन के लिए ताजा सब्जियां भी उगा सकते थे। शिन्हवा संवाद समिति ने यह खबर दी है।देंग ने बताया कि चीन में अपनी किस्म का यह पहला परीक्षण था और देश के मानव युक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम के दीर्घकालिक विकास की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण भी रहा।
चीनी नौसेना के तेजी से आधुनिकीकरण पर 'गंभीर चिंता' जताते हुए नौसेना प्रमुख एडमिरल डीके जोशी ने सोमवार को स्पष्ट किया कि दक्षिण चीन सागर में भारत अपने हितों की रक्षा करेगा, भले ही इसका अर्थ वहां बल भेजना हो।
दक्षिण चीन सागर को लेकर पड़ोसी मुल्कों से बीजिंग की तनातनी के बीच चीनी नौसेना के आधुनिकीकरण ने भारत की भी नींद उड़ा दी है। नौसेना प्रमुख एडमिरल डीके जोशी ने चीन की नौसेना की बढ़ती ताकत को बड़ी चिंता बताते हुए कहा है कि दक्षिण चीन सागर में भारत अपने हितों की रक्षा करेगा, फिर चाहे इसका मतलब सेना भेजना ही क्यों न हो। इस विवादित क्षेत्र में तेल एवं गैस उत्खनन और जहाजों की बेरोकटोक आवाजाही भारत की प्राथमिक चिंता है।गौरतलब है कि वियतनाम के दक्षिण तट पर ओएनजीसी विदेश के तेल एवं गैस ब्लाकों को लेकर चीन और भारत के बीच कूटनीतिक जंग जारी है। चीन खनिज संपदा से संपन्न पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है और यहां सैन्य मौजूदगी बढ़ा रहा है। चीन के पड़ोसी फिलीपींस, मलेशिया और वियतनाम एवं सिंगापुर भी अपनी दावेदारी जता रहे हैं। हालांकि, भारत का दक्षिण चीन सागर पर स्वामित्व को लेकर चीन से कोई विवाद नहीं है, लेकिन वहां नई दिल्ली के व्यावसायिक हित जरूर हैं।
इससे पहले थलसेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह ने चीन की सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों की तैयारियों और नॉर्थ ईस्ट में सुरक्षा स्थिति का जायजा लिया। रक्षा प्रवक्ता की ग्रुप कैप्टन टी. के. सिंह ने बताया कि ईस्टर्न कमांड प्रमुख ले. जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने थलसेना प्रमुख को तैयारियों और पूर्वोत्तर क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति से अवगत कराया। कोलकाता से पूरब और अरुणाचल प्रदेश तक चीन की सीमा से लगे क्षेत्रों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सेना की वेस्टर्न कमांड की है। भारत पूर्वी सीमा पर अपनी रक्षा तैयारियों को पुख्ता कर रहा है। इसके लिए वह अधिक संख्या में जवानों के अलावा बड़े हथियारों को भी तैनात कर रहा है। ब्रह्मोस और दूसरे मिसाइल भी यहां तैनात किए जा रहे हैं।
इसी बीच चीनी स्टेट काउन्सलर दाय बिंगक्वो ने 3 दिसंबर को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन से मुलाकात की। दोनों ने पिछले दस सालों में चीन-भारत आदान प्रदान व सहयोग की कामयाबियों पर प्रकाश डाला। चीन के सरकारी वार्ताकार दाय बिंगक्वो ने सोमवार को कहा कि चीन और भारत के आपसी सम्बंध अफवाहों से प्रभावित नहीं होने चाहिए।
दाय बिंगक्वो ने कहा कि गत् दस वर्षों में चीन-भारत संबंधों का तेज़ विकास हुआ। आर्थिक-व्यापारिक, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, शिक्षा, संस्कृति व पर्यटन आदि क्षेत्रों में दोनों देशों के सहयोग में समृद्ध कामयाबियां हासिल हुई हैं। चीन भारत का पहला बड़ा व्यापारिक साझेदार बना, जबकि भारत भी चीन का महत्वपूर्ण व्यापार भागीदार बना। दोनों देशों के बीच व्यापार वर्ष 2002 के 4 अरब 90 करोड़ डॉलर से बढ़कर वर्ष 2011 में 73 अरब 90 करोड़ डॉलर तक पहुंच चुका है। साथ ही द्विपक्षीय नागरिकों के बीच आवाजाही भी घनिष्ठ हो रही है।उन्होंने यह भी कहा कि चीन भारत के विकास का स्वागत करता है। चीन और भारत को इस पर यकीन करना चाहिए कि चीन और भारत का समान विकास व सहयोग हो सकता है। दोनों के बीच मतभेद तो हैं, लेकिन प्रतिस्पर्धा की तुलना में सहयोग की संभावना ज़्यादा है। उन्हें विश्वास है कि चीन और भारत द्विपक्षीय संबंधों की दिशा संभाल सकते हैं, ताकि उभय जीत और मैत्रीपूर्ण सहयोग हो सके।
चीन के सरकारी समाचार पत्र 'पीपुल्स डेली' ने एक लेख में लिखा है कि चीन पड़ोसी तथा विकासशील देशों के साथ बेहतर सम्बंध चाहता है और इस दिशा में कोशिश की जाएगी। लेख में लिखा है कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के 18वें राष्ट्रीय अधिवेशन में जो भी कूटनीतिक विचार पेश किए गए, वे पिछले 30 साल में देश के सफल अनुभव हैं।
समाचार पत्र में कहा गया है कि ये विचार नए समय में विदेश मामलों के दिशा-निर्देश और चीन के कूटनीतिक अनुभवों तथा नई बातों की एकरूपता की अभिव्यक्ति है, जिनका मुख्य जोर समय के साथ तालमेल बनाने, नए रास्ते बनाने तथा नए कूटनीति विचारों का प्रदर्शन करने पर है। समाचार पत्र के मुताबिक, यह चीन के वैश्वीकरण की भावना को प्रदर्शित करता है।
इसमें यह भी कहा गया है कि दुनिया में शांति तथा समृद्धि के लिए चीन बड़े देशों के साथ भी बेहतर सम्बंध बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। लेख में कहा गया है, ''बड़े देशें को दुनिया में शांति, स्थिरता, समृद्धि तथा आर्थिक विकास के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए।''
दूसरी ओर, दक्षिण-चीन सागर को लेकर चीन के दावों के मद्देनजर अमेरिका ने बीजिंग समेत अन्य देशों को कड़ी हिदायत दी है। उसने कहा है कि क्षेत्र में तनाव बढ़ाने वाला कोई कदम न उठाएं। अमरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता विक्टोरिया नूलैंड ने संवाददाताओं को बताया कि हमने सभी पक्षों को आगाह किया है कि कोई भी विवादास्पद और एक पक्षीय कदम न उठाएं जिससे तनाव बढ़े। उन्होंने बताया कि हम स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। साथ ही चीन के विदेश मंत्रालय से भी संपर्क बनाए हुए हैं। उधर, अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने भी अंतरराष्ट्रीय जलसंधि के पालन की अपील दोहराई है। पेंटागन के प्रेस सचिव जार्ज लिटिल ने संवाददाताओं से कहा कि जल क्षेत्र के निकट स्थित किसी भी देश के लिए उसके प्रयोग की स्वतंत्रता अपरिहार्य है। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि अमेरिकी रक्षा सचिव लियोन पेनेटा ने सभी पक्षों से समुद्री विवादों के निस्तारण के लिए निर्धारित आचार संहिता का पालन करने की अपील की थी। पनेटा ने आसियान आचार संहिता को और मजबूत करने की भी वकालत की थी। चीन लंबे समय से दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में आने वाले जल क्षेत्र पर अपना दावा जताता रहा है। उसके द्वारा जारी होने वाले ई-पासपोर्ट पर भी विवादित क्षेत्र को दर्शाए जाने की वियतनाम और फिलीपींस ने निंदा की है।
नौसेना दिवस की पूर्व संध्या पर सोमवार को एडमिरल जोशी ने कहा, दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में हमारी आवाजाही बेहद कम है, लेकिन ओएनजीसी के तेल ब्लाक जैसे मामलों में भारतीय हितों को देखते हुए अगर जरूरत पड़ी तो हम वहां जाने को तैयार हैं, लेकिन सरकार की मंजूरी जरूरी होगी। दक्षिण चीन सागर में चीन के मौजूद जहाजों और गश्ती नौकाओं का भारतीय नौसेना कैसे सामना करेगी, इस सवाल पर एडमिरल जोशी का जवाब था कि हमारी प्रतिक्रिया नियमों के मुताबिक होगी। जहां कहीं भी आत्मरक्षा के अधिकार की जरूरत पड़ती है तो हमारे पास कुछ विकल्प होते हैं। चीन द्वारा एयरक्राफ्ट कैरियर को निशाना बनाने वाली डोंग फेंग श्रेणी की मिसाइलें विकसित करने पर जोशी का जवाब था कि हम ऐसी ही क्षमता या प्रतिरोधी ताकत हासिल करने पर विचार कर रहे हैं। भारत और चीन के पड़ोसियों के लिए सबसे बड़ी चिंता साम्यवादी देश की मीडिया में आईं हालिया खबरें हैं। मीडिया के अनुसार, एक जनवरी से लागू नए नियमों के तहत चीनी प्रांत हैनान की पुलिस को देश के समुद्री क्षेत्र में प्रवेश करने वाले विदेशी जहाजों पर नियंत्रण व कब्जे का अधिकार मिल जाएगा।
उन्होंने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा,'हां, आप सही हैं। चीनी नौसेना का आधुनिकीकरण वाकई आकर्षक है। वास्तव में यह हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है, हम इसका सतत मूल्यांकन करते हैं और अपने विकल्प तथा रणनीति तैयार करते हैं।'
नौसेना प्रमुख दक्षिण चीन सागर में भारतीय हितों की रक्षा और चीनी नौसेना के आधुनिकीरण के संबंध में पूछे गए सवालों का जवाब दे रहे थे।
दक्षिण चीन सागर के बारे में पूछे गए विभिन्न सवालों के जवाब में नौसेना प्रमुख ने कहा कि उस समुद्री क्षेत्र में भारतीय पोतों का 'अक्सर आना-जाना नहीं रहता है' और उसके हित निर्बाध परिवहन और वहां के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन जैसे हैं। दक्षिण चीन सागर को लेकर भारत एवं चीन के बीच विवाद है।
जोशी ने कहा कि उस क्षेत्र में भारत की उपस्थिति बहुत नियमित नहीं है। लेकिन ओएनजीसी विदेश जैसे देश के हितों से जुड़ी स्थिति हो तो हमें वहां जाने की जरूरत होगी और हम उसके लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि क्या उस प्रवृत्ति का अभ्यास कर रहे हैं, इसका संक्षिप्त उत्तर है..हां। दक्षिण चीन सागर में भारतीय हितों के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम इसमें नौवहन की आजादी शामिल है।
उन्होंने कहा कि न सिर्फ हमारा बल्कि हर किसी का यह मानना है कि मामलों को अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के तहत संबंधित पक्षों के साथ हल करना होगा। इस व्यवस्था का जिक्र संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि में किया गया है।
यह पूछे जाने पर कि क्या दक्षिण चीन सागर में नौसेना ओएनजीसी विदेश की संपत्तियों को सुरक्षा मुहैया कराएगी, एडमिरल जोशी ने कहा कि इसके लिए सरकार से अनुमति की जरूरत होगी।
उन्होंने कहा कि कुछ खास क्षेत्रों में ओएनजीसी विदेश के खास हित हैं उसके पास तीन ऊर्जा उत्खनन ब्लॉक हैं। इसके भारतीय हितों से जुड़े होने के कारण नौसेना जरूरत पड़ने पर तैयार रहेगी। उन्होंने हालांकि कहा कि ऐसी जरूरत आती है तो वह आश्वस्त हैं कि हमें वह मंजूरी मिल जाएगी।
चीनी नौसेना द्वारा दक्षिण चीन सागर में पोतों की तलाशी लिए जाने की स्थिति में भारत की प्रतिक्रिया के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि उस उद्देश्य के लिए बातचीत के नियम वहीं रहेंगे। एडमिरल जोशी ने कहा, 'सर्वप्रथम, हमें उम्मीद नहीं है कि ऐसी स्थिति आएगी जब बातचीत का नियम लागू करना पड़े। दूसरा, बातचीत का नियम स्थिर है, वे क्षेत्र के हिसाब से बदल नहीं जाते।'
उन्होंने कहा कि दक्षिण चीन सागर में नौवहन की आजादी सहित भारत के कुछ हित हैं पूर्वी और पश्चिमी बोर्ड में नौसेना की उपस्थिति के बीच संतुलन के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि हाल में बेड़े में शामिल किए गए पोत सिर्फ बंगाल की खाड़ी में तैनात किए गए हैं।
नौसेना प्रमुख ने कहा कि हाल में बेड़े में शामिल आईएनएस सहयाद्रि, सतपुड़ा और शिवालिक को वहीं तैनात किया गया है। इसके अलावा आईएनएस जलाश्व भी वहीं तैनात है। परमाणु संचालित पनडुब्बी आईएनएस चक्र भी वहीं से काम कर रही है और आईएनएस अरिहंत भी वहां जाएगा।
पूर्वी समुद्री बोर्ड चीन पर नजर रखता है जबकि पश्चिमी समुद्री बोर्ड पाकिस्तान की ओर ध्यान देता है।विमानवाहक पोतों को निशाना बनाने के लिए चीन द्वारा दोंग फेंग शृंखला की मिसाइलें विकसित किए जाने के बारे में पूछे जाने पर एडमिरल जोशी ने कहा कि निश्चित रूप से यह महत्वपूर्ण क्षमता है।उन्होंने कहा कि हम उसका अपने संदर्भ में मूल्यांकन कर रहे हैं और जो भी उचित कदम हो, उठा रहे हैं।
चीन द्वारा त्वरित गति से विमानवाहक पोत तैयार किए जाने के बारे में उन्होंने कहा कि हालांकि इसके लिए उसने पोतों और विमानों के निर्माण कर लिए हैं लेकिन दोनों को समेकित किए जाने की प्रक्रिया अभी बाकी है।
नौसेना प्रमुख एडमिरल डी के जोशी ने आज कहा कि वर्तमान समय में रूस में परीक्षणों के दौर से गुजर रहे बहुप्रतिक्षित विमानवाहक पोत एडमिरल गोर्शकोव को अगले साल के अंत तक भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया जायेगा ।
एडमिरल जोशी ने वाषिर्क नौसेना दिवस पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुये कहा कि घरेलू स्तर पर विकसित की जा रही परमाणु इर्ंधन चालित पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत के संबंध में 'देश के लिये अच्छी खबर है'। इसे 'बहुत जल्द' बना लिया जायेगा ।
उन्होंने कहा, आईएनएस विक्रमादित्य (एडमिरल गोर्शकोव) को सौंपे जाने में देरी है जिसने हाल के दिनों में 100 दिनों तक समुद्री यात्रा की है और इसने अपने ज्यादातर उपकरणों का और विमानन परीक्षण पूरा कर लिया है । इस विमानवाहक पोत को सौंपे जाने का पुनरीक्षित कार्यक्रम वर्ष 2013 की अंतिम तिमाही है। एडमिरल जोशी ने आईएनएस अरिहंत की वर्तमान स्थिति के बारे में कहा, हमें आशा है कि जल्द ही देश को अच्छी खबर मिलेगी। अरिहंत को जल्द ही समुद्री परीक्षण के लिये उतारा जा सकता है ताकि भारत के परमाणु त्रय को पूरा किया जा सके और विश्वसनीय तथा अभेद्य जवाबी हमले की क्षमता को हासिल किया जा सके।
एडमिरल जोशी ने स्वीकार किया कि घरेलू विमानवाहक पोत के विकास में विलंब हुआ है और कहा कि यह परियोजना अंतत: कोच्चि पोत निर्माण कारखाने में 'गति पकड़ रही है ।' अगले एक साल में नौसेना में शामिल किये जाने वाले हथियारों के बारे में उन्होंने कहा, ''वर्ष 2013 में हम एक कोलकाता श्रेणी के डेस्ट्रायर, एक पी-28 पनडुब्बी रोधी लड़ाकू युद्धपोत, एक सर्वेक्षण जहाज, एक अपतटीय निगरानी जहाज और 16 फास्ट इंटरसेप्टर क्राफ्ट को शामिल कर सकते हैं ।'' जोशी ने कहा कि नौसेना जितने जहाजों को सेवा से हटा रही है उसकी तुलना में ज्यादा जहाजों को शामिल कर रही है । उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि उसकी पनडुब्बियां पुरानी है फिर भी उनमें काफी क्षमता है और उन्हें समय समय पर उन्नत किया जा रहा है ।
उन्होंने कहा कि ज्यादातर पनडुब्बियों को उन्नत किया जा चुका है और उनमें वह क्षमतायें शामिल की गई हैं जो उनमें अब तक नहीं थीं । भारतीय विमानवाहक पोत-2 परियोजना के बारे में नौसेना प्रमुख ने कहा, ''हम इस पर :आईएसी-2: अभी कुछ वषरे से काम कर रहे हैं । हमें आशा है कि अगले साल किसी समय इसे अनुमति मिल सकती है ।''
उल्लेखनीय है कि भारत और रूस ने वर्ष 2004 में 45 हजार टन वजन वाले गोर्शकोव के लिये 94 करोड़ 70 लाख डालर का समझौता किया था । इस समझौते को बाद में पुनरीक्षित कर इसे 2.3 अरब डालर का कर दिया गया । कीव श्रेणी के इस विमानवाहक पोत को वर्ष 2008 में शामिल किया जाना था लेकिन तब से इसे सौंपे जाने में देरी हो रही है । एडमिरल जोशी ने कहा कि नौसैनिकों की संख्या बढ़ाये जाने की योजना है । इसके तहत तीन साल के अंदर अधिकारी कैडर की संख्या आठ हजार से 10 हजार की जाएगी और नाविकों की संख्या भी इसी तरह से बढ़ाई जायेगी ।
उन्होंने कहा कि स्कार्पियन पनडुब्बी के निर्माण में आ रही बाधाओं को खत्म करने के लिये प्रयास किये जा रहे हैं । अमेरिका की बोइंग कंपनी से लंबी दूरी तक निगरानी करने वाले विमानों पी8-आई के हासिल किये जाने के बारे में जोशी ने कहा कि इसे अगले साल शामिल किये जाने का कार्यक्रम है ।
नौसेना के लिये तटीय सुरक्षा को एक बड़ी जिम्मेदारी रेखांकित करते हुये उन्होंने कहा कि सागर प्रहरी बल में पहले ही एक हजार जवानों को शामिल किया जा चुका है जो फास्ट इंटरसेप्टर क्राफ्ट पर तैनात होंगे ।
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राजनय - विकिपीडिया
- hi.wikipedia.org/wiki/राजनय
- प्राचीन भारत के राजवंशों व राज्यों में राजनय की सुदीर्घ परंपरा रही है। स्टेटक्राफ्ट व राजनय पर प्राचीनतम रचना अर्थशास्त्र है, जिसका श्रेय कौटिल्य (अपि च चाणक्य नाम से ख्यात) को जाता है, जो कि चन्द्रगुप्त मौर्य, मौर्य राजवंश के संस्थापक ...
भारतीय राजनय की कामयाबी की मिसाल - - Navbharat Times
- navbharattimes.indiatimes.com/.../1437441.cms
- 3 मार्च 2006 – विदेश सचिव श्याम शरण के नेतृत्व में भारतीय वार्ताकारों ने सहमति के समझौते कोभारत के पक्ष में झुकाने में बड़ी कामयाबी हासिल की है। देखिए कैसे। (एक) भारत को 2014 तक कई चरणों में यह तय करना है.
लातीन अमेरिका के साथ भारत के व्यापार राजनय में ...
- navbharattimes.indiatimes.com/.../445615.cms
- 26 जन 2004 – दक्षिण अमेरिका के चार देशों के संगठन मकोर्सुर के साथ भारत ने वरीयता व्यापार का समझौता कर अपने व्यापार राजनय को नया आयाम दिया है.
पूंछ हिलाने लगी भारतीय राजनय अमेरिकी आका की
- unitedblackuntouchablesworldwide.blogspot.com/.../...
- 27 जुलाई 2012 – पूंछ हिलाने लगी भारतीय राजनय अमेरिकी आका की जीहुजूरी में!अमेरिका में भारतीय राजदूत निरुपमा राव ने वाशिंगटन में साफ किया है कि भारत आर्थिक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ता रहेगा। इस संबंध में पीछे हटने का सवाल ही नहीं है।
नेपाल में भारतीय राजनय के लिए परीक्षा की घड़ी
- oyepages.com/blog/.../508bab4054c8816214000007
- 27 अक्तू 2012 – इतिहास के पन्नों पर दर्ज कुछ तथ्यों पर ध्यान दें तो औपनिवेशिक मुक्ति के बाद और आधुनिक भारत का निर्माण होने से पहले, नेपाल के कुछ वर्गों या दलों की तरफ से भारत में विलय की इच ¥...
राजनय - Indian Defence News
- www.bharatdefencekavach.com/.../h_diplomacy.html
- राजनय. ओबामा की जीत से भारत-अमेरिका आर्थिक सम्बंध मजबूत होगा · भारत और ब्रिटेन के बीच वार्ता गुरुवार को · पाकिस्तान ने भारत के साथ हुए उदारीकृत वीजा करार को दी मंजूरी · इजराइल में मानसिक स्वास्थ्य केंद्र के 70 कर्मचारी गिरफ्तार ...
विश्व राजनय में अग्नि बाण का प्रभाव
- www.drishtipat.com/index.php?...
- 25 अप्रैल 2012 – वैसे , अग्नि पांच का अंतराष्टीय राजनय में अपना महत्त्व है, परिवर्तित विश्व में अब अमेरिका ,भारत मुखापेक्षी है , चीन ,उसके लिये बाज़ार हो सकता है लेकिन लोकतंत्र और विश्वास के लिये उसे भारत को साथ देने ही पड़ेंगे | राजनय के ...
Deshbandhu : भारत के राजनय से उम्मीदें कुछ और हैं:डॉ ...
- www.deshbandhu.co.in/newsdetail/3048/10/0
- उल्लेखनीय है कि मनमोहन सिंह ने ब्रिक्स के अध्यक्ष के रूप में जो गतिशीलता दिखाई उससे कुछ समय के लिए भारतीय राजनय का कद तो बढ़ता दिखा है, लेकिन भारतीय राजनय इससे कोई लाभ प्राप्त कर लेगा, यह नहीं कहा जा सकता। अब सवाल यह उठता है कि क्या ...
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भारतीय राजनीतिक माहौल
संसद में चर्चा और मत विभाजन से पहले संप्रग को बाहर से समर्थन दे रहे बसपा और सपा ने आज भी खुदरा एफडीआई मुद्दे पर समर्थन देने को लेकर सरकार को भ्रम की स्थिति में रखा है।
लोकसभा में इस मुद्दे पर कल से चर्चा शुरू होगी। चर्चा का समापन होने के बाद एफडीआई मुद्दे पर मत विभाजन बुधवार को होगा। बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अब तक मिले जुले संकेत दिये हैं लेकिन सरकार को यकीन है कि उसके पास बहुमत है और वह सदन पटल पर जीतने में कामयाब होगी।
मायावती ने एक प्रेस कांफ्रेंस में संकेत दिया कि वह एफडीआई नीति का समर्थन कर सकती हैं क्योंकि इसमें कुछ सकारात्मक बातें भी हैं लेकिन उन्होंने अपनी रणनीति का खुलासा करने से इंकार कर दिया।
उन्होंने कहा कि मत विभाजन के मुद्दे पर बसपा का फैसला सदन पटल पर ही जानने को मिलेगा, जब इस मुद्दे पर मत विभाजन होगा। एफडीआई नीति की एक ही सकारात्मक बात है कि यदि कोई राज्य इसे लागू नहीं करना चाहता तो इसे जबरन किसी राज्य पर नहीं थोपा जाएगा।
मायावती ने कहा कि हमारी पार्टी ने इस बात को गंभीरता से लिया है। हमारी पार्टी यह भी गंभीरता से विचार कर रही है कि उन दलों के साथ खडा हुआ जाए या नहीं, जो सांप्रदायिक शक्तियों को प्रोत्साहित करते हैं।
बसपा के लोकसभा में 21 और राज्यसभा में 15 सदस्य हैं। उधर सपा के लोकसभा में 22 और राज्यसभा में नौ सदस्य हैं। मायावती की आज की टिप्पणी को सरकार पर यह दबाव डालने की कडी के रूप में देखा जा रहा है कि वह अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक को जल्द पारित कराने का आश्वासन दे। सपा हालांकि इसका कडा विरोध कर रही है। संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने हालांकि बसपा को लुभाने की कोशिश में ऐलान किया है कि सरकार संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए प्रतिबद्ध है।
उधर मुलायम ने भी अपने पत्ते खोलने से इंकार कर दिया। '' हम एफडीआई का विरोध करेंगे, जो सबको पता है। आप क्यों चाहते हो कि मैं बोलूं। मुझे जो कहना है लोकसभा में कहूंगा। '' राज्यसभा में इस मुद्दे पर छह और सात दिसंबर को चर्चा होनी है ।
लोकसभा में सरकार के पास 265 सदस्यों का समर्थन है, जिनमें 18 सदस्य द्रमुक के हैं । लोकसभा में कुल सदस्य संख्या 545 है । ऐसे में यदि सभी सदस्य मौजूद रहे तो सरकार को आधा आंकडा पार करने के लिए 273 मत चाहिए । यदि सपा और बसपा सरकार का समर्थन करते हैं तो सरकार 300 का आंकडा पार कर जाएगी ।
राज्यसभा में संप्रग के पास बहुमत नहीं है। उच्च सदन में सदस्य संख्या 244 है। संप्रग और उसके सहयोगियों की संख्या 94 है। दस सदस्य मनोनीत हैं और वे सरकार के पक्ष में मतदान कर सकते हैं। सात निर्दलीय सदस्यों में से तीन या चार सरकार का समर्थन कर सकते हैं। सत्ताधारी गठबंधन को बाहर से समर्थन दे रहे बसपा और सपा को मनाना पड सकता है, जिनके सदस्यों की संख्या क्रमश: 15 और नौ है। यदि दोनों दल मान गये तो सरकार की मुश्किलें कम हो सकती हैं।
वाम दलों ने हालांकि सपा और बसपा की आलोचना करते हुए दावा किया है कि ऐसा लगता है कि सरकार ने थोक कारोबार के जरिए मतों का इंतजाम कर लिया है।
खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का पुरजोर विरोध कर रहे वाम दलों ने आज कहा कि केवल संसद में मत विभाजन से ही इस मुद्दे पर संप्रग सरकार के साथ संघर्ष खत्म नहीं होगा बल्कि यह लडाई तब तक सडकों पर जारी रहेगी, जब तक एफडीआई पर नीति को वापस नहीं ले लिया जाता।
वाम दलों ने सपा और बसपा की भी आलोचना की, जिन्होंने अभी तक एफडीआई को लेकर होने वाले मत विभाजन के बारे में रूख स्पष्ट नहीं किया है। वाम दलों का आरोप है कि लगता है 'थोक कारोबार' के जरिए सरकार ने वोटों की व्यवस्था कर ली है।
मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के खिलाफ आयोजित एक सम्मेलन में चारों वाम दलों के नेताओं ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले संप्रग से कहा कि वह विदेशी विनिमय प्रबंधन कानून (फेमा) में संशोधनों को लेकर एक अन्य दौर का संघर्ष झेलने के लिए तैयार रहे।
माकपा महासचिव प्रकाश कारात ने कहा कि संसद में मत विभाजन के साथ ही यह मुद्दा समाप्त नहीं होगा। एफडीआई नीति का विरोध सभी विपक्षी दल कर रहे हैं। यहां तक कि संप्रग के ही कुछ सहयोगी इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ नहीं हैं।
भाकपा महासचिव ए बी बर्धन ने एक कदम और आगे की बात करते हुए कहा कि संसद में वोट जीतने के लिए देखिये सरकार कितने लोगों को खरीदेगी। इस संबंध में सपा और बसपा की ओर से कोई साफ बात नहीं किये जाने पर बर्धन ने उनकी आलोचना की। उन्होंने कहा कि सपा और बसपा संसद के बाहर एफडीआई का विरोध करते हैं लेकिन इसे लेकर मतदान के बारे में स्पष्टता नहीं बरत रहे हैं।
बर्धन ने कहा कि देखते हैं कि मुलायम और मायावती क्या करते हैं। मायावती कहती हैं कि वह नीति के खिलाफ हैं। मुलायम इस मुद्दे पर हुए प्रदर्शन में हमारे (बर्धन के) साथ जेल भी गये। अब हम देख सकेंगे कि वे (मुलायम-माया) क्या करते हैं । माकपा पोलितब्यूरो सदस्य सीताराम येचुरी ने मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के खिलाफ सम्मेलन में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संप्रग पर प्रहार करते हुए कहा कि संसद की कार्यवाही में पांच दिन तक बाधा पड़ने के लिए सरकार जिम्मेदार है क्योंकि सरकार इतने दिनों एफडीआई पर मत विभाजन वाले नियम के तहत चर्चा कराने से भागती रही।
उन्होंने कहा कि हमने एफडीआई पर मत विभाजन वाले नियम के तहत चर्चा की मांग की थी। पांच दिन तक सरकार ने हमारी बात नहीं मानी । सरकार ने संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी। पांच दिन कार्यवाही में बाधा के लिए सरकार जिम्मेदार है।
येचुरी ने कहा कि सरकार ने पांच दिन बाद यह मांग स्वीकार की। उसे मतों की व्यवस्था करने के लिए पांच दिन चाहिए थे। हमारे साथ एफडीआई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में सडकों पर उतरे सपा, तेदेपा और जद-एस जैसे दल यदि एफडीआई के खिलाफ मतदान करें तो सरकार परास्त हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि एफडीआई का विरोध करने वाले सपा या बसपा यदि मत विभाजन के समय अनुपस्थित रहते हैं या फिर सरकार के पक्ष में मतदान करते हैं तो सरकार विजयी होगी।
झामुमो रिश्वत कांड और वोट के बदले नोट मामले का जिक्र करते हुए येचुरी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस को पता है कि मत कैसे अपने पक्ष में किये जाते हैं। कारोबार हो रहा है। शायद थोक कारोबार हो रहा है। कांग्रेस को इसका अनुभव है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, जद-एस नेता एच डी देवगौडा और तेदेपा नेता एन चंद्रबाबू नायडू ने खुदरा एफडीआई के खिलाफ हुए प्रदर्शन में वाम नेताओं के साथ गिरफ्तारी दी थी।
येचुरी ने कहा कि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है और वह वहां हार सकती है। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि यही वह पार्टी है जो अविश्वास प्रस्ताव लायी लेकिन बाद में सर्वदलीय बैठक में कहा कि एफडीआई पर वोटिंग के लिए वह दबाव नहीं डालेगी। '' पार्टियों को इस मुद्दे पर ईमानदारी से वोट करना चाहिए। येचुरी ने संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ की इस बात को फिजूल बताया कि एफडीआई पर मत विभाजन में केवल एक ही सदन में विजयी होना है। उन्होंने कहा कि वाम दल कमलनाथ की इस बात को नहीं मानते। दोनों ही सदनों में सरकार को जीतना होगा।
सपा पर परोक्ष प्रहार करते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने आज कहा कि संप्रग का समर्थन करने वाली सभी पार्टियां यदि सरकार के खिलाफ मतदान करें तो खुदरा एफडीआई का निर्णय परास्त हो सकता है ,लेकिन लगता है कि सरकार ने 'थोक कारोबार' के जरिए वोटों की व्यवस्था कर ली है।
माकपा पोलितब्यूरो सदस्य सीताराम येचुरी ने मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के खिलाफ सम्मेलन में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संप्रग पर प्रहार करते हुए कहा कि संसद की कार्यवाही में पांच दिन तक बाधा पड़ने के लिए सरकार जिम्मेदार है क्योंकि सरकार इतने दिनों एफडीआई पर मत विभाजन वाले नियम के तहत चर्चा कराने से भागती रही।
उन्होंने कहा कि हमने एफडीआई पर मत विभाजन वाले नियम के तहत चर्चा की मांग की थी। पांच दिन तक सरकार ने हमारी बात नहीं मानी। सरकार ने संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी। पांच दिन कार्यवाही में बाधा के लिए सरकार जिम्मेदार है।
येचुरी ने कहा कि सरकार ने पांच दिन बाद यह मांग स्वीकार की। उसे मतों की व्यवस्था करने के लिए पांच दिन चाहिए थे। हमारे साथ एफडीआई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में सडकों पर उतरे सपा, तेदेपा और जद-एस जैसे दल यदि एफडीआई के खिलाफ मतदान करें तो सरकार परास्त हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि एफडीआई का विरोध करने वाले सपा या बसपा यदि मत विभाजन के समय अनुपस्थित रहते हैं या फिर सरकार के पक्ष में मतदान करते हैं तो सरकार विजयी होगी।
झामुमो रिश्वत कांड और वोट के बदले नोट मामले का जिक्र करते हुए येचुरी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस को पता है कि मत कैसे अपने पक्ष में किये जाते हैं। कारोबार हो रहा है। शायद थोक कारोबार हो रहा है। कांग्रेस को इसका अनुभव है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, जद-एस नेता एच डी देवगौडा और तेदेपा नेता एन चंद्रबाबू नायडू ने खुदरा एफडीआई के खिलाफ हुए प्रदर्शन में वाम नेताओं के साथ गिरफ्तारी दी थी। येचुरी ने कहा कि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है और वह वहां हार सकती है।
उन्होंने तृणमूल कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि यही वह पार्टी है जो अविश्वास प्रस्ताव लायी लेकिन बाद में सर्वदलीय बैठक में कहा कि एफडीआई पर वोटिंग के लिए वह दबाव नहीं डालेगी। '' पार्टियों को इस मुद्दे पर ईमानदारी से वोट करना चाहिए।'' येचुरी ने संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ की इस बात को फिजूल बताया कि एफडीआई पर मत विभाजन में केवल एक ही सदन में विजयी होना है। उन्होंने कहा कि वाम दल कमलनाथ की इस बात को नहीं मानते। दोनों ही सदनों में सरकार को जीतना होगा।
बसपा अध्यक्ष मायावती द्वारा खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति के मौजूदा स्वरूप पर आपत्ति जताने के बीच सरकार ने आज उन्हें संतुष्ट करने के प्रयास में सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को तरक्की में आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक के प्रति प्रतिबद्धता जताई।
संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ से जब एफडीआई के मुद्दे पर सरकार का समर्थन करने को लेकर मायावती के रुख के बारे में पूछा गया तो उन्होंने संवाददाताओं से कहा, सरकार संविधान संशोधन विधेयक के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि सरकार खुद संसद में यह विधेयक लाई थी।
उन्होंने कहा, हमने राज्यसभा में इसे पेश किया। आज कार्यसूची में हमने इसे पहले नंबर पर सूचीबद्ध किया। लोकसभा में 21 सदस्यों वाली बसपा विधेयक को पारित करने के मुद्दे पर संसद में आवाज उठाती रही है वहीं उसकी धुर विरोधी समाजवादी पार्टी इसके विरोध में है।
एफडीआई के मुद्दे पर भाजपा के अलावा वामदल भी विरोध जता रहे हैं। कमलनाथ ने इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों से आग्रह किया कि 'भाजपा की राजनीति' को खारिज कर दें।
उन्होंने कहा, हम जिस बारे में चर्चा करने जा रहे हैं। यह विशुद्ध राजनीति है। मैं सभी राजनीतिक दलों से आग्रह करता हूं कि इस चर्चा के पीछे की राजनीति को समझना चाहिए...और सदन को इस मामले में भाजपा की राजनीति को खारिज कर देना चाहिए। कमलनाथ ने कहा कि संसद में मत-विभाजन से तय नहीं होगा कि राज्यों में एफडीआई को लागू किया जाए या नहीं। उन्होंने कहा, इस बारे में राज्यों को तय करना है।
कमलनाथ ने विश्वास जताया कि सरकार एफडीआई के मुद्दे पर संसद में सफल रहेगी। लोकसभा में एफडीआई के मुद्दे पर कल और परसों चर्चा होगी वहीं राज्यसभा में इस विषय पर छह और सात दिसंबर को चर्चा होगी।
सरकार को 545 सदस्यीय लोकसभा में फिलहाल करीब 265 सांसदों का समर्थन हासिल है जिनमें 18 द्रमुक के हैं। अगर सपा के 22 और बसपा के 21 सदस्य भी सरकार के साथ रहते हैं तो सत्तारूढ़ गठबंधन को मत-विभाजन में 300 से अधिक सदस्यों का समर्थन मिल जाएगा जो 273 के जरूरी आंकड़े से काफी ज्यादा है।
भारत-चीन युद्ध
http://hi.wikipedia.org/s/bpy
मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से भारत - चीन युद्ध | |||||||||
शीत युद्ध का भाग | |||||||||
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योद्धा | |||||||||
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सेनानायक | |||||||||
* ब्रिज मोहन कौल जवाहरलाल नेहरु वी. के. कृष्ण मेनन प्राण नाथ थापर | * जहाँग गुओहुआ माओ ज़ेडोंग लिऊ बोचेंग लिन बिओं ज्होउ एनलाई | ||||||||
शक्ति/क्षमता | |||||||||
10,000–12,000 | |||||||||
मृत्यु एवं हानि | |||||||||
1,383 मृत्यु[4] 1,047 घायल[4] 1,696 लापता[4] 3,968 बंदी[4] | 722 मृत्यु.[4] |
भारत - चीन युद्ध जो भारत चीन सीमा विवाद के रूप में भी जाना जाता है, चीन और भारत के बीच 1962 में हुआ एक युद्ध था। विवादित हिमालय सीमा युद्ध के लिए एक मुख्य बहाना था, लेकिन अन्य मुद्दों ने भी भूमिका निभाई। चीन में 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं का की एक श्रृंखला शुरू हो गयी। भारत ने फॉरवर्ड नीति के तहत मैकमोहन रेखा से लगी सीमा पर अपनी सैनिक चौकियों रखी जो 1959 में चीनी प्रीमियर झोउ एनलाई के द्वारा घोषित वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूर्वी भाग के उत्तर में थी।
चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किये. चीनी सेना दोनों मोर्चे में भारतीय बलों पर उन्नत साबित हुई और पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में तवांग पर कब्ज़ा कर लिया. जब चीनी ने 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम और साथ ही विवादित क्षेत्र से अपनी वापसी की घोषणा की तब युद्ध खत्म हो गया.
भारत चीन युद्ध कठोर परिस्थितियों में हुई लड़ाई के लिए उल्लेखनीय है| इस युद्ध में ज्यादातर लड़ाई 4250 मीटर (14,000 फीट) [7] से अधिक ऊंचाई पर लड़ी गयी. इस प्रकार की परिस्थिति ने दोनों पक्षों के लिए रसद और अन्य लोगिस्टिक समस्याएँ प्रस्तुत की. भारत चीन युद्ध चीनी और भारतीय दोनों पक्ष द्वारा नौसेना या वायु सेना का उपयोग नहीं करने के लिए भी विख्यात है.
[संपादित करें]स्थान
चीन और भारत के बीच एक लंबी सीमा है जो नेपाल और भूटान के द्वारा तीन अनुभागो में फैला हुआ है. यह सीमा हिमालय पर्वतों से लगी हुई है जो बर्मा एवं तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान (आधुनिक पाकिस्तान) तक फैली है. इस सीमा पर कई विवादित क्षेत्रों अवस्थित हैं. पश्चिमी छोर में अक्साई चिन क्षेत्र है जो स्विट्जरलैंड के आकार का है| यह क्षेत्र चीनी स्वायत्त क्षेत्र झिंजियांग और तिब्बत (जिसे चीन ने 1965 में एक स्वायत्त क्षेत्र घोषित किया) के बीच स्थित है. पूर्वी सीमा पर बर्मा और भूटान के बीच वर्तमान भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश ( पूर्व में नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) स्थित है. 1962 के संघर्ष में इन दोनों क्षेत्रों में चीनी सैनिक आ गए थे|ज्यादातर लड़ाई ऊंचाई पर जगह हुई थी. अक्साई चिन क्षेत्र लगभग 5,000 मीटर की ऊंचाई (समुद्र तल से) पर साल्ट फ्लैट का एक विशाल रेगिस्तान है और अरुणाचल प्रदेश एक पहाड़ी क्षेत्र है जिसकी कई चोटियाँ 7000 मीटर से अधिक ऊँची है. सैन्य सिद्धांत के मुताबिक आम तौर पर एक हमलावर को सफल होने के लिए पैदल सैनिकों के 3:1 के अनुपात की संख्यात्मक श्रेष्ठता की आवश्यकता होती है. पहाड़ी युद्ध में यह अनुपात काफी ज्यादा होना चाहिए क्योंकि इलाके की भौगोलिक रचना दुसरे पक्ष को बचाव में मदद करती है. चीन इलाके का लाभ उठाने में सक्षम था और चीनी सेना का उच्चतम चोटी क्षेत्रों का कब्जा था. दोनों पक्षों को ऊंचाई और ठंड की स्थिति से सैन्य और अन्य लोजिस्टिक कार्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और दोनों के कई सैनिक जमा देने वाली ठण्ड से मर गए. [8]
[संपादित करें]परिणाम
[संपादित करें]चीन
चीन की सरकारी सैन्य इतिहास के अनुसार, युद्ध उसके पश्चिमी सेक्टर में सीमा की रक्षा के चीन की नीति के लक्ष्यों को हासिल की है, क्योंकि चीन ने अक्साई चिन का वास्तविक नियंत्रण बनाए रखा. युद्ध के बाद भारत फॉरवर्ड नीति को त्याग दिया और वास्तविक नियंत्रण रेखा वास्तविक सीमाओं में परिवर्तित हो गयी.जेम्स केल्विन के अनुसार, भले ही चीन ने एक सैन्य विजय पा ली परन्तु उसने अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि के मामले में खो दी. पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका, को पहले से ही चीनी नजरिए, इरादों और कार्यों का शक था. इन देशों ने चीन के लक्ष्यों को विश्व विजय के रूप में देखा और स्पष्ट रूप से यह माना की सीमा युद्ध में चीन हमलावर के रूप में था.[7] चीन की अक्तूबर 1964 में प्रथम परमाणु हथियार परीक्षण करने और 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान को समर्थन करने से कम्युनिस्टों के लक्ष्य तथा उद्देश्यों एवं पूरे पाकिस्तान में चीनी प्रभाव के अमेरिकी राय की पुष्टि हो जाती है [7].
[संपादित करें]भारत
युद्ध के बाद भारतीय सेना में व्यापक बदलाव आये और इसने भविष्य में इसी तरह के संघर्ष के लिए तैयार रहने की जरुरत की. युद्ध से भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पे दबाव आया जिन्हें भारत पर चीनी हमले की आशंका में असफल रहने के लिए जिम्मेदार के रूप में देखा गया. भारतीयों देशभक्ति में भारी लहर उठनी शुरू हो गयी और युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के लिए कई स्मारक बनाये गए. यकीनन, मुख्य सबक जो भारत ने युद्ध से सीखा है वह है अपने ही देश को मजबूत बनाने की जरूरत और चीन के साथ नेहरू की "भाईचारे" वाली विदेश नीति से एक बदलाव की. भारत पर चीनी आक्रमण की आशंका की अक्षमता के कारण, प्रधानमंत्री नेहरू को चीन के साथ होने शांतिवादी संबंधों को बढ़ावा के लिए सरकारी अधिकारियों से कठोर आलोचना का सामना करना पड़ा. [15] भारतीय राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने कहा कि नेहरू की सरकार अपरिष्कृत और तैयारी के बारे में लापरवाह था. नेहरू ने स्वीकार किया कि भारतीय अपनी समझ की दुनिया में रह रहे थे. भारतीय नेताओं ने आक्रमणकारियों को वापस खदेड़ने पर पूरा ध्यान केंद्रित करने की बजाय रक्षा मंत्रालय से कृष्ण मेनन को हटाने पर काफी प्रयास बिताया. भारतीय सेना कृष्ण मेनन के "कृपापात्र को अच्छी नियुक्ति" की नीतियों की वजह से विभाजित हो गयी थी, और कुल मिलाकर 1962 का युद्ध भारतीयों द्वारा एक सैन्य पराजय और एक राजनीतिक आपदा के संयोजन के रूप में देखा गया. उपलब्ध विकल्पों पे गौर न करके बल्कि अमेरिकी सलाह के तहत भारत ने वायु सेना का उपयोग चीनी सैनिको को वापस खदेड़ने में नहीं किया. सीआईए (अमेरिकी गुप्तचर संस्था) ने बाद में कहा कि उस समय तिब्बत में न तो चीनी सैनिको के पास में पर्याप्त मात्रा में ईंधन थे और न ही काफी लम्बा रनवे था जिससे वे वायु सेना प्रभावी रूप से उपयोग करने में असमर्थ थे. [34] अधिकाँश भारतीय. चीन और उसके सैनिको को संदेह की दृष्टि से देखने लगे. कई भारतीय युद्ध को चीन के साथ एक लंबे समय से शांति स्थापित करने में भारत के प्रयास में एक विश्वासघात के रूप में देखने लगे. नेहरू द्वारा "हिन्दी-चीनी भाई, भाई" (जिसका अर्थ है" भारतीय और चीनी भाई हैं ") शब्द के उपयोग पर भी सवाल शुरू हो गए. इस युद्ध ने नेहरू की इन आशाओं को खत्म कर दिया कि भारत और चीन एक मजबूत एशियाई ध्रुव बना सकते हैं जो शीत युद्ध गुट महाशक्तियों की बढ़ती प्रभाव प्रतिक्रिया होगी. [2]सेना के पूर्ण रूप से तैयार नहीं होने का सारा दोष रक्षा मंत्री मेनन पर आ गया, जिन्होंने अपने सरकारी पद से इस्तीफा दे दिया ताकि नए मंत्री भारत के सैन्य आधुनिकीकरण को बढ़ाबा दे सके. स्वदेशी स्रोतों और आत्मनिर्भरता के माध्यम से हथियारों की भारत की नीति इस युद्ध ने पुख्ता किया गया. भारतीय सैन्य कमजोरी को महसूस करके पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी जिसकी परिणिति अंततः 1965 में भारत के साथ दूसरा युद्ध से हुआ. हालांकि, भारत ने युद्ध में भारत की अपूर्ण तयारी के कारणों के लिए हेंडरसन-ब्रूक्स-भगत रिपोर्ट का गठन किया था. परिणाम अनिर्णायक था, क्योंकि जीत का फैसला पर विभिन्न स्रोत विभाजित थे. कुछ सूत्रों का तर्क है कि चूंकि भारत ने पाकिस्तान से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, भारत स्पष्ट रूप से जीता था. लेकिन, दूसरों का तर्क था कि भारत महत्वपूर्ण नुकसान उठाना पड़ा था और इसलिए, युद्ध का परिणाम अनिर्णायक था. दो साल बाद, 1967 में, चोल घटना के रूप में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच एक छोटी सीमा झड़प हुई. इस घटना में आठ चीनी सैनिकों और 4 भारतीय सैनिकों की जान गयी.
- ↑ Webster's Encyclopedic Unabridged Dictionary of the English language: Chronology of Major Dates in History, page 1686. Dilithium Press Ltd., 1989
- ↑ H.A.S.C. by United States. Congress. House Committee on Armed Services — 1999, p. 62
- ↑ War at the Top of the World: The Struggle for Afghanistan, Kashmir, and Tibet by Eric S. Margolis, p. 234.
- ↑ 4.0 4.1 4.2 4.3 4.4 4.5 The US Army [1] says Indian wounded were 1,047 and attributes it to Indian Defence Ministry's 1965 report, but this report also included a lower estimate of killed.
- ↑ Mark A. Ryan; David Michael Finkelstein; Michael A. McDevitt (2003). Chinese warfighting: The PLA experience since 1949. M.E. Sharpe. pp. 188–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780765610874. अभिगमन तिथि: 14 April 2011.
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
- नेहरु की विदेशनीति की भयंकर भूल - चीन और पाकिस्तान (लालकृष्ण आडवाणी)
- पृष्ठभूमि : तिब्बत बचाओ (जागरण)
- चीनी कुचक्र से सावधान (भारतीय पक्ष)
- चीनी छल का इतिहास (पांचजन्य)
- Sino-Indian Border Dispute (Top Secret CIA report, 1964, Declassified 2007)
- Sino-Indian War (1962)
- Remembering a War: The 1962 India-China Conflict — Rediff.com.
- Neville Maxwell: Henderson Brooks Report
- 1962 Sino-Indian War, Hindustan Times
- Why India lost the 1962 border war? – Tejas Patel
- War in the Himalayas: 1962 Indo-Sino Conflict (includes official war history) from History Division, Ministry of Defence, Government of India
- Critical Asian Studies Article: Sino Indian War 1962
- India, China to speed up border dispute talks: 2005 Xinhuanet
- The Rediff Special/Claude Arpi
- 1962 War and Its Implications For Sino-India Relations
- History of Sino-India Border War साँचा:Cn icon
- Historical maps of the Sino-Indian border साँचा:Cn icon
- Conflict in Kashmir: Selected Internet Resources by the Library, University of California, Berkeley, USA; University of California, Berkeley Library Bibliographies and Web-Bibliographies list
- Frontier India India-China Section
- Why China is playing hardball in Arunachal by Venkatesan Vembu, Daily News & Analysis, 13 May 2007
- China, India, and the fruits of Nehru's folly by Venkatesan Vembu, Daily News & Analysis, 6 June 2007
भारत-चीन सम्बन्ध
http://hi.wikipedia.org/s/nzu
मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से* | यह लेख अंग्रेज़ी भाषा में लिखे लेख का खराब अनुवाद है। यह किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखा गया है जिसे हिन्दी अथवा स्रोत भाषा की सीमित जानकारी है। कृपया इसअनुवाद को सुधारें. मूल लेख "अन्य भाषाओं की सूची" में "अंग्रेज़ी" में पाया जा सकता है। |
Indian Prime Minister Manmohan Singhwith Chinese Premier Wen Jiabao at theGreat Hall of the People in Beijing.
चीन व भारत विश्व के दो बड़े विकासशील देश हैं। दोनों ने विश्व की शांति व विकास के लिए अनेक काम किये हैं। चीन और उसके सब से बड़े पड़ोसी देश भारत के बीच लंबी सीमा रेखा है। लम्बे अरसे से चीन सरकार भारत के साथ अपने संबंधों का विकास करने को बड़ा महत्व देती रही है। इस वर्ष की पहली अप्रैल को चीन व भारत के राजनयिक संबंधों की स्थापना की 55वीं वर्षगांठ है।वर्ष 1949 में नये चीन की स्थापना के बाद के अगले वर्ष, भारत ने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। इस तरह भारत चीन लोक गणराज्य को मान्यता देने वाला प्रथम गैरसमाजवादी देश बना। चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंधों की औपचारिक स्थापना के बाद के पिछले 55 वर्षों में चीन-भारत संबंध कई सोपानों से गुजरे। उनका विकास आम तौर पर सक्रिय व स्थिर रहा, लेकिन, बीच में मीठे व कड़वी स्मृतियां भी रहीं। इन 55 वर्षों में दोनों देशों के संबंधों में अनेक मोड़ आये। आज के इस कार्यक्रम में हम चीन व भारत के राजनीतिक संबंधों का सिंहावलोकन करेंगे।
प्रोफेसर मा जा ली चीन के आधुनिक अंतरराष्ट्रीय संबंध अनुसंधान संस्थान के दक्षिणी एशिया अनुसंधान केंद्र के प्रधान हैं। वे तीस वर्षों से चीन व भारत के राजनीतिक संबंधों के अनुसंधान में लगे हैं। श्री मा जा ली ने पिछले भारत-चीन संबंधों के 55 वर्षों को पांच भागों में विभाजित किया है। उन के अनुसार, 1950 के दशक में चीन व भारत के संबंध इतिहास के सब से अच्छे काल में थे। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने तब एक-दूसरे के यहां की अनेक यात्राएं कीं और उनकी जनता के बीच भी खासी आवाजाही रही। दोनों देशों के बीच तब घनिष्ठ राजनीतिक संबंध थे। लेकिन, 1960 के दशक में चीन व भारत के संबंध अपने सब से शीत काल में प्रवेश कर गये। इस के बावजूद दोनों के मैत्रीपूर्ण संबंध कई हजार वर्ष पुराने हैं। इसलिए, यह शीतकाल एक ऐतिहासिक लम्बी नदी में एक छोटी लहर की तरह ही था। 70 के दशक के मध्य तक वे शीत काल से निकल कर फिर एक बार घनिष्ठ हुए। चीन-भारत संबंधों में शैथिल्य आया , तो दोनों देशों की सरकारों के उभय प्रयासों से दोनों के बीच फिर एक बार राजदूत स्तर के राजनयिक संबंधों की बहाली हुई। 1980 के दशक से 1990 के दशक के मध्य तक चीन व भारत के संबंधों में गर्माहट आ चुकी थी। हालांकि वर्ष 1998 में दोनों देशों के संबंधों में भारत द्वारा पांच मिसाइलें छोड़ने से फिर एक बार ठंडापन आया। पर यह तुरंत दोनों सरकारों की कोशिश से वर्ष 1999 में भारतीय विदेशमंत्री की चीन यात्रा के बाद समाप्त हो गया। अब चीन-भारत संबंध कदम ब कदम घनिष्ठ हो रहे हैं।
इधर के वर्षों में चीन-भारत संबंधों में निरंतर सुधार हो रहा है। चीन व भारत के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच आवाजाही बढ़ी है। भारत स्थित भूतपूर्व चीनी राजदूत च्यो कांग ने कहा, अब चीन-भारत संबंध एक नये काल में प्रवेश कर चुके हैं। इधर के वर्षों में, चीन व भारत के नेताओं के बीच आवाजाही बढ़ी। वर्ष 2001 में पूर्व चीनी नेता ली फंग ने भारत की यात्रा की। वर्ष 2002 में पूर्व चीनी प्रधानमंत्री जू रोंग जी ने भारत की यात्रा की। इस के बाद, वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेई ने चीन की यात्रा की। उन्होंने चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ के साथ चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये। इस घोषणापत्र ने जाहिर किया कि चीन व भारत के द्विपक्षीय संबंध अपेक्षाकृत परिपक्व काल में प्रवेश कर चुके हैं। इस घोषणापत्र ने अनेक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समस्याओं व क्षेत्रीय समस्याओं पर दोनों के समान रुख भी स्पष्ट किये। इसे भावी द्विपक्षीय संबंधों के विकास का निर्देशन करने वाला मील के पत्थर की हैसियत वाला दस्तावेज भी माना गया। चीन व भारत के संबंध पुरानी नींव पर और उन्नत हो रहे हैं।
[विदेश नीति]] पर चीन व भारत बहुध्रुवीय दुनिया की स्थापना करने का पक्ष लेते हैं, प्रभुत्ववादी व बल की राजनीति का विरोध करते हैं और किसी एक शक्तिशाली देश के विश्व की पुलिस बनने का विरोध करते हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मौजूद वर्तमान विवादों का किस तरह निपटारा हो और देशों के बीच किस तरह का व्यवहार किया जाये ये दो समस्याएं विभिन्न देशों के सामने खड़ी हैं। चीन व भारत मानते हैं कि उनके द्वारा प्रवर्तित किये गये शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के उन लक्ष्यों तथा सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करते हैं, जिनका दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा पालन किया जाना चाहिए।
शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत यानी पंचशील चीन, भारत व म्येनमार द्वारा वर्ष 1954 के जून माह में प्रवर्तित किये गये। पंचशील चीन व भारत द्वारा दुनिया की शांति व सुरक्षा में किया गया एक महत्वपूर्ण योगदान है,और आज तक दोनों देशों की जनता की जबान पर है। देशों के संबंधों को लेकर स्थापित इन सिद्धांतों की मुख्य विषयवस्तु है- एक-दूसरे की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखंडता का सम्मान किया जाये, एक- दूसरे पर आक्रमण न किया जाये , एक-दूसरे के अंदरूनी मामलों में दखल न दी जाये और समानता व आपसी लाभ के आधार पर शांतिपूर्ण सहअस्तित्व बरकारार रखा जाये। ये सिद्धांत विश्व के अनेक देशों द्वारा स्वीकार कर लिये गये हैं और द्विपक्षीय संबंधों पर हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों व दस्तावेजों में दर्ज किये गये हैं। पंचशील के इतिहास की चर्चा में भारत स्थित पूर्व चीनी राजदूत श्री छन रे शन ने बताया, द्वितीय विश्वॉयुद्ध से पहले, एशिया व अफ्रीका के बहुत कम देशों ने स्वतंत्रता हासिल की थी। लेकिन, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, उपनिवेशवादी व्यवस्था भंग होनी शुरू हुई। भारत व म्येनमार ने स्वतंत्रता प्राप्त की और बाद में चीन को भी मुक्ति मिली। एशिया में सब से पहले स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले देश होने के नाते, उन्हें देशों की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखंडला का कायम रहना बड़ा आवश्यक लगा और उन्हें विभिन्न देशों के संबंधों का निर्देशन करने के सिद्धांत की जरुरत पड़ी। इसलिए, इन तीन देशों के नेताओं ने मिलकर पंचशील का आह्वान किया।
पंचशील ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों की सैद्धांतिक व यथार्थ कार्यवाइयों में रचनात्मक योगदान किया।, पूर्व भारतीय राष्ट्रपति नारायणन ने पंचशील की महत्वता की चर्चा इस तरह की। पंचशील का आज भी भारी महत्व है। वह काफी समय से देशों के संबंधों के निपटारे का निर्देशक मापदंड रहा है। एक शांतिपूर्ण दुनिया की स्थापना करने के लिए पंचशील का कार्यावयन करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इतिहास और अंतरराष्ट्रीय यथार्थ से जाहिर है कि पंचशील की जीवनीशक्ति बड़ी मजबूत है। उसे व्यापक जनता द्वारा स्वीकार किया जा चुका है। भिन्न-भिन्न सामाजिक प्रणाली अपनाने वाले देश पंचशील की विचारधारा को स्वीकार करते हैं। लोगों ने मान लिया है कि पंचशील शांति व सहयोग के लिए लाभदायक है और अंतरराष्ट्रीय कानूनों व मापदंडों से पूर्ण रूप से मेल खाता हैं। आज की दुनिया में परिवर्तन हो रहे हैं। पंचशील का प्रचार-प्रसार आज की कुछ समस्याओं के हल के लिए बहुत लाभदायक है। इसलिए, पंचशील आज भी एक शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था का आधार है। उस का आज भी भारी अर्थ व महत्व है और भविष्य में भी रहेगा।
शांति व विकास की खोज करना वर्तमान दुनिया की जनता की समान अभिलाषा है। पंचशील की शांति व विकास की विचारधारा ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के स्वस्थ विकास को आगे बढ़ाया है और भविष्य में भी वह एक शांतिपूर्ण, स्थिर, न्यायपूर्ण व उचित नयी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना में अहम भूमिका अदा करेगी।
दोनों देशों के संबंधों को आगे विकसित करने के लिए वर्ष 2000 में पूर्व भारतीय राष्ट्रपति नारायणन ने चीन की राजकीय यात्रा के दौरान, पूर्व चीनी राष्ट्राध्यक्ष च्यांग ज मिन के साथ वार्ता में भारत और चीन के जाने-माने व्यक्तियों के मंच के आयोजन का सुझाव प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव पर श्री च्यांग ज मिन ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। दोनों सरकारों ने इस मंच की स्थापना की पुष्टि की। मंच के प्रमुख सदस्य, दोनों देशों के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक व तकनीक तथा सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों के जाने माने व्यक्ति हैं। मंच के एक सदस्य श्री च्यो कांग ने मंच का प्रमुख ध्येय इस तरह समझाया, इस मंच का प्रमुख ध्येय दोनों देशों के विभिन्न क्षेत्रों के जाने-माने व्यक्तियों द्वारा द्विपक्षीय संबंधों के विकास के लिए सुझाव प्रस्तुत करना और सरकार को परामर्श देना है। यह दोनों देशों के बीच गैरसरकारी आवाजाही की एक गतिविधियों में से एक भी है। वर्ष 2001 के सितम्बर माह से वर्ष 2004 के अंत तक इसका चार बार आयोजन हो चुका है। इसके अनेक सुझावों को दोनों देशों की सरकारों ने स्वीकृत किया है। यह मंच सरकारी परामर्श संस्था के रूप में आगे भी अपना योगदान करता रहेगा।
हालांकि इधर चीन व भारत के संबंधों में भारी सुधार हुआ है, तो भी दोनों के संबंधों में कुछ अनसुलझी समस्याएं रही हैं। चीन व भारत के बीच सब से बड़ी समस्याएं सीमा विवाद और तिब्बत की हैं। चीन सरकार हमेशा से तिब्बत की समस्या को बड़ा महत्व देती आई है। वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चीन की यात्रा की और चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ के साथ एक संयुक्त घोषणापत्र जारी किया। घोषणापत्र में भारत ने औपचारिक रूप से कहा कि भारत तिब्बत को चीन का एक भाग मानता है। इस तरह भारत सरकार ने प्रथम बार खुले रूप से किसी औपचारिक दस्तावेज के माध्यम से तिब्बत की समस्या पर अपने रुख पर प्रकाश डाला, जिसे चीन सरकार की प्रशंसा प्राप्त हुई।
इस के अलावा, चीन व भारत के बीच सीमा समस्या भी लम्बे अरसे से अनसुलझी रही है। इस समस्या के समाधान के लिए चीन व भारत ने वर्ष 1981 के दिसम्बर माह से अनेक चरणों में वार्ताएं कीं और उनमें कुछ प्रगति भी प्राप्त की। वर्ष 2003 में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की सफल यात्रा की। चीन व भारत ने चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। चीन व उसके पड़ोसी देशों के राजनयिक संबंधों के इतिहास में ऐसे ज्ञापन कम ही जारी हुए हैं। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों द्वारा सम्पन्न इस ज्ञापन में दोनों देशों ने और साहसिक नीतियां अपनायीं, जिन में सीमा समस्या पर वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधियों को नियुक्त करना और सीमा समस्या का राजनीतिक समाधान खोजना आदि शामिल रहा। चीन और भारत के इस घोषणापत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश चीन का एक अभिन्न और अखंड भाग है। सीमा समस्या के हल के लिए चीन व भारत के विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर सलाह-मश्विरा जारी है। वर्ष 2004 में चीन और भारत ने सीमा समस्या पर यह विशेष प्रतिनिधि वार्ता व्यवस्था स्थापित की। भारत स्थित पूर्व चीनी राजदूत च्यो कांग ने कहा, इतिहास से छूटी समस्या की ओर हमें भविष्योन्मुख रुख से प्रस्थान करना चाहिए। चीन सरकार ने सीमा समस्या के हल की सक्रिय रुख अपनाई है। चीन आशा करता है कि इसके लिए आपसी सुलह औऱ विश्वास की भावना के अनुसार, मैत्रीपूर्ण वार्ता के जरिए दोनों को स्वीकृत उचित व न्यायपूर्ण तरीकों की खोज की जानी चाहिए। विश्वास है कि जब दोनों पक्ष आपसी विश्वास , सुलह व रियायत देने की अभिलाषा से प्रस्थान करेंगे तो चीन-भारत सीमा समस्या के हल के तरीकों की खोज कर ही ली जाएगी।
इस समय चीन व भारत अपने-अपने शांतिपूर्ण विकास में लगे हैं। 21वीं शताब्दी के चीन व भारत प्रतिद्वंदी हैं और मित्र भी। अंतरराष्ट्रीय मामलों में दोनों में व्यापक सहमति है। आंकड़े बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ में विभिन्न सवालों पर हुए मतदान में अधिकांश समय, भारत और चीन का पक्ष समान रहा। अब दोनों देशों के सामने आर्थिक विकास और जनता के जीवन स्तर को सुधारने का समान लक्ष्य है। इसलिए, दोनों को आपसी सहयोग की आवश्यकता है। अनेक क्षेत्रों में दोनों देश एक-दूसरे से सीख सकते हैं।
चीन-भारत संबंधों के भविष्य के प्रति श्री मा जा ली बड़े आश्वस्त हैं। उन्होंने कहा, समय गुजरने के साथ दोनों देशों के बीच मौजूद विभिन्न अनसुलझी समस्याओं व संदेहों को मिटाया जा सकेगा और चीन व भारत के राजनीतिक संबंध और घनिष्ठ होंगे। इस वर्ष मार्च में चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ भारत की यात्रा पर जा रहे हैं। उनके भारत प्रवास के दौरान चीन व भारत दोनों देशों के नेता फिर एक बार एक साथ बैठकर समान रुचि वाली द्विपक्षीय व क्षेत्रीय समस्याओं पर विचार-विमर्श करेंगे। श्री मा जा ली ने कहा, भविष्य में चीन-भारत संबंध और स्वस्थ होंगे और और अच्छे तरीके से आगे विकसित होंगे । आज हम देख सकते हैं कि चीन व भारत के संबंध लगतार विकसित हो रहे हैं। यह दोनों देशों की सरकारों की समान अभिलाषा भी है। दोनों पक्ष आपसी संबंधों को और गहन रूप से विकसित करने को तैयार हैं। मुझे विश्वास है कि चीन-भारत संबंध अवश्य ही और स्वस्थ व मैत्रीपूर्ण होंगे और एक रचनात्मक साझेदारी का रूप लेंगे।
भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति नारायण ने कहा, मेरा विचार है कि चीन और भारत को द्विपक्षीय मैत्रीपूर्ण संबंधों को और गहरा करना चाहिए। हमारे बीच सहयोग दुनिया के विकास को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका अदा कर सकेंगे।
[संपादित करें]संदर्भ
Xuanzang in India:
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