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Saturday, December 1, 2012

जब इजराइल समर्थित रोमनी को बहुजन समाज के निर्माण से हराने वाले ओबामा फलस्तीन के हक में खड़े नहीं हो सकते तो इजराइल और अमेरिका के गुलाम हमारे कारपोरेट शासकों से क्या उम्मीद करें?

जब इजराइल समर्थित रोमनी को बहुजन समाज के निर्माण से हराने वाले ओबामा फलस्तीन के हक में खड़े नहीं हो सकते तो इजराइल और अमेरिका के गुलाम हमारे कारपोरेट शासकों से क्या उम्मीद करें?

वैसे भी भारत में पक्ष विपक्ष इजराइल समर्थित उग्रतम हिंदू राष्ट्रवाद की राह पर चल रहा है और गुजरात नरसंहार के मुख्य अभियुक्त भारत के भावी प्रधानमंत्रित्व के मुख्य दावेदार है। हिंदुत्व के पुनरुत्थान और खुले बाजार की अर्थव्यवस्था के मुताबिक अब भारत की विदेश नीति तय होती है, राष्ट्रीय संप्रभुता के हिसाब से नहीं। भारत अमेरिका और इजराइल के आतंक के विरुद्ध युद्ध में मुख्य भागीदार है।भारत अमेरिकी परमाणु समझौते​ ​ के बाद तो हमारा देश अमेरिका और इजराइल की अगुवाई में परमाणु सैन्य गठजोड़ का हिस्सा है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा का कम, बल्कि ग्लबल झिओनिस्ट हथियार बाजार के हित सर्वोपरि है।सोवियत संघ के अवसान के बाद यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए न केवल अमेरिकी इजराइली सैन्य गठबंधन में भारत शामिल हो गया बल्कि विकास के समाजवादी माडल छोड़कर खुले बाजार का​​ नवउदारवाद का आलिंगन कर लिया। संघ परिवार की नीतियां और ग्लोबल हिंदुत्व इजराइल के साथ है। इजराइल के साथ भारत के इस मधुर संबंध के लिए श्रेय भी संघ परिवार को जाता है।कांग्रेस ने तो जवाहर इंदिरा की विदेश नीति को विसर्जित ही कर दिया।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

जब इजराइल समर्थित रोमनी को बहुजन समाज के निर्माण से हराने वाले ओबामा फलस्तीन के हक में खड़े नहीं हो सकते तो इजराइल और अमेरिका के गुलाम हमारे कारपोरेट शासकों से क्या उम्मीद करें?तय हो गया कि ओबामा हो या रोमनी, वैश्विक व्यवस्था पर यहूदी झिओनिस्च वर्चस्व न खत्म होने वाला है और न ही इजराइल की मर्जी ​​के खिलाफ अमेरिकी विदेश नीति चल सकती है। महाशक्तिमान विश्वप्रभु अमेरिका की जब इजराइली आकाओं के आगे घिग्घी बंधती हो तो ​​राष्ट्रीय व आंतरिक सुरक्षा के मामले में इजराइल पर बुरी तरह निर्भर भारत मध्यपूर्व में नरसंहार की निंदा कैसे कर सकता है?क्या हुआ कि फिलीस्तीन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हुए एक ऐतिहासिक मतदान में जबर्दस्त जीत दर्ज की जिससे इस्राइल और उसका प्रमुख समर्थक अमेरिका अलगाव में चले गए और विश्व निकाय में उसका दर्जा बढ़कर गैर सदस्यीय पर्यवेक्षक का हो जाएगा!बहरहाल,संयुक्त राष्ट्र महासभा में फलस्तीन के दर्जे को बढ़ाकर गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राष्ट्र बनाने के प्रस्ताव पर हुई उसकी जीत से नाराज इजरायल ने फलस्तीनी क्षेत्रों में 3,000 अतिरिक्त यहूदी घरों का निर्माण करने की योजना का एलान किया है।इन घरों का निर्माण विवादित इलाकों में भी करने की योजना है जो पश्चिमी तट को विभाजित कर देगा और शांति प्रयासों को बहुत नुकसान पहुंचाएगा। यह परियोजना लंबे समय से स्थगित थी। यदि इस पर अमल हो गया तो उत्तरी और दक्षिणी वेस्ट बैंक की सीमाई निकटता बाधित हो जाएगी। वेस्ट बैंक इजरायल और जार्डन के बीच का वह विवादित क्षेत्र है जिसे माना जाता है कि इजरायल ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है।फलस्तीन के वार्ताकार साएब इरेकत ने इजरायल की इस घोषणा की निंदा की है और कहा है कि इजरायल पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चुनौती दे रहा है और दोनों देशों के विवाद के समाधान को नष्ट करने पर जोर डाल रहा है। उन्होंने कहा कि फलस्तीनी नेतृत्व अपने विकल्पों का अध्ययन कर रहा है। उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को भारत सहित 138 देशों ने फलस्तीन के पक्ष में प्रस्ताव का समर्थन किया था।

वैसे भी भारत में पक्ष विपक्ष इजराइल समर्थित उग्रतम हिंदू राष्ट्रवाद की राह पर चल रहा है और गुजरात नरसंहार के मुख्य अभियुक्त भारत के भावी प्रधानमंत्रित्व के मुख्य दावेदार है। हिंदुत्व के पुनरुत्थान और खुले बाजार की अर्थव्यवस्ता के मुताबिक अब भारत की विदेश नीति तय होती है, राष्ट्रीय संप्रभुता के हिसाब से नहीं। भारत अमेरिका और इजराइल के आतंक के विरुद्ध युद्ध में मुख्य भागीदार है।भारत अमेरिकी परमाणु समझौते​​ के बाद तो हमारा देश अमेरिका और इजराइल की अगुवाई में परमाणु सैन्य गठजोड़ का हिस्सा है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा का कम, बल्कि ग्लबल झिओनिस्ट हथियार बाजार के हित सर्वोपरि है।सोवियत संघ के अवसान के बाद यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए न केवल अमेरिकी इजराइली सैन्य गठबंधन में भारत शामिल हो गया बल्कि विकास के समाजवादी माडल छोड़कर खुले बाजार का​​ नवउदारवाद का आलिंगन कर लिया। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने आज कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री पद के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं।स्वाराज ने वडोदरा हवाईअड्डे पर संवाददाताओं से कहा, नरेंद्र मोदी देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं। सुषमा प्रचार कार्य से यहां लौटी थीं और वह आगे वडोदरा और दभोई शहर में दो चुनाव सभाओं को संबोधित करेंगी।उन्होंने कहा, गुजरात विधानसभा चुनाव में तीसरी बार विजय दर्ज कराकर भाजपा जीत की तिकड़ी बनाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी पराजय का सामना करेगी। संघ परिवार की नीतियां और ग्लोबल हिंदुत्व इजराइल के साथ है। इजराइल के साथ भारत के इस मधुर संबंध के लिए श्रेय भी संघ परिवार को जाता है।कांग्रेस ने तो जवाहर इंदिरा की विदेश नीति को विसर्जित ही कर दिया।

जायोनिसम क्या है ?

जायोनिसम यहूदी लोगों के आत्मनिर्णय की पुर्नस्थापना और इजराइल की जमीन पर यहूदी संप्रभुता की बहाली के लिए आंदोलन है। 70 सीई में रोमनों ने यहूदी लोगों के पवित्र मंदिरों को ध्वस्त और यहूदियों की धार्मिक व प्रशासनिक राजधानी यरुशलम को तबाह कर दिया। यहूदी स्वतंत्रता खत्म हो गई और उसके बाद के दशकों में ज्यादातर यहूदी इजराइल की जमीन से निर्वासित कर दिए गए। लेकिन उन्होंने दोबारा लौटने की उम्मीद कभी नहीं छोड़ी। उन्होंने प्रार्थनाओं और साहित्य के जरिए इस प्रतिबद्धता का इजहार किया। सालाना पासोवर भोज के बाद दुनिया भर के यहूदी इस शपथ को दोहराते हैं- अगले साल यरुशलम में। यहूदी शादियों में दूल्हा कहता है : यरुशलम, अगर मैं तुम्हें भूल जाऊं, मेरा दाहिना हाथ नाकाम हो जाए।

इजराइल की जमीन से यहूदियों का जुड़ाव सिर्फ प्रार्थनाओं में ही परिलक्षित नहीं होता। असल में इतिहास के हर क्षण में इजराइल में यहूदी मौजूदगी रही है।



१९वीं सदी के अंत में, जब यूरोप में राष्ट्रीय आंदोलन आकार ले रहा था और एंटी-सेमिटिज्म बढ़ रहा था, एक ऑस्ट्रियाई-यहूदी पत्रकार थियॉडोर हर्जल ने यहूदी लोगों के राष्ट्रीय आंदोलन को संगठित करना शुरू किया। इस आंदोलन का लक्ष्य एक राजनैतिक समाधान था : यहूदी लोगों के लिए एक स्वतंत्र राज्य। इस राज्य के लिए सबसे नैसर्गिक जगह थी जायोन यानी इजराइल की जमीन, यहूदियों का होमलैंड।

हर्जल ने इस विजन का वर्णन अपनी किताब -यहूदी राज्य- में किया। उन्होंने एक ऐसे विकसित और संपन्न राज्य की परिकल्पना की, जिसके सभी बाशिंदे- यहूदी और गैर यहूदी शांति और सौहार्द के साथ रहते हों। यह सपना और इसका साकार होना ही जायोनिसम है।

भारतीय राजनय की रस्म अदायगी देखिये। इस्राइल और फलस्तीन के बीच की हिंसा में वृद्धि पर ''गंभीर चिंता जताते हुए'' भारत ने आज दोनों पक्षों से अधिकतम संयम बरतने और ऐसा कदम नहीं उठाने का अनुरोध किया जिससे स्थिति और खराब हो जाए। भारत, ब्राजील और दक्षिण अप्रीका के संगठन इब्सा ने पश्चिम एशिया में हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हुए इजराइल द्वारा फलस्तीनियों के खिलाफ शक्ति के बेजा इस्तेमाल की आलोचना की है।इब्सा की ओर से जारी एक वक्‍तव्य में इजराइल का नाम लिए बिना गाजा में अत्यधिक शक्ति प्रयोग तथा जानमाल की हानि पर चिंता व्यक्त की गई है। इन देशों ने गाजावासियों की दुर्दशा के मद्देनजर वहां इजराइल की ओर से लागू नाकेबंदी को खत्म किए जाने का आग्रह किया है।इब्सा ने कहा है कि फलस्तीन समस्या का समाधान केवल कूटनीतिक तरीके से हो सकता है तथा इसके लिए दोनों पक्षों के बीच तुरंत सीधी वार्ता शुरू किए जाने की आवश्यकता है।भारत-इजराइल सम्बन्ध भारतीय लोकतंत्र तथा इजराइल राज्य के मध्य द्विपक्षीय संबंधो को दर्शाता है ! भारत तथा इजराइल के मध्य किसी प्रकार के सम्बन्ध नहीं रहे १९९२ तक इसके मुख्यतः दो कारण थे पहला भारत गुट निरपेक्ष राष्ट्र था जो की पूर्व सोवियत संघ का समर्थक था तथा दुसरे गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की तरह इजराइल को मान्यता नहीं देता था तथा दूसरा मुख्या कारण भारत फिलिस्तीन की आज़ादी का समर्थक रहा! यहाँ तक की १९४७ में भारत ने संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीन (उन्स्कोप) नमक संगठन का निर्माण किया परन्तु १९८९ में कश्मीर में विवाद तथा सोवियत संघ के पतन तथा पाकिस्तान के गैर कानूनी घुसपैठ के चलते राजनितिक परिवेश में परिवर्तन आया और भारत ने अपनी सोच बदलते हुए इजराइल के साथ संबंधो को मजबूत करने पर जोर दिया और नए दौर की शुरुआत हुई १९९२ में ! भारतीय कांग्रेस की हार के बाद भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आते ही भारत और इजराइल के मध्य सहयोग बढ़ा और दोनों राजनितिक दलों की इस्लामिक कट्टरपंथ के प्रति एक जैसे मानसिकता होने की वजह से और मध्य पूर्व में यहूदी समर्थक नीति की वजह से भारत और इजराइल के सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए ! आज इजराइल रूस के बाद भारत का सबसे बड़ा सैनिक सहायक और निर्यातक है !भारत तथा इजराइल में इस्लामिक आतंकवाद के बढ़ने के साथ ही भारत तथा इजराइल के सम्बन्ध भी मजबूत हुए अब तक भारत ने इजराइल के लगभग ८ सैनिक उपग्रहों को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के माध्यम से प्रक्षेपित किया है !

संयुक्त राष्ट्र ने फलस्तीन को गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राष्ट्र का दर्जा दे दिया है। 29 नवंबर को आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस बारे में प्रस्ताव पेश किया गया। 193 में से 138 सदस्य देशों ने प्रस्ताव के समर्थन में और महज 9 सदस्यों ने विरोध में वोट दिया।संयुक्त राष्ट्र महासभा में कुल 188 देशों ने संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन का दर्जा बढ़ाए जाने के प्रस्तवा पर मतदान किया। चीन, फ्रांस और रूस ने इस मसौदे का साथ दिया, जबकि अमेरिका व इज़राइल ने विरोध किया।संयुक्त राष्ट्र महासभा में फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र का पर्यवेक्षक देश बनाने का फैसला किया गया। साथ ही उम्मीद जताई कि सुरक्षा परिषद फिलीस्तीन द्वारा पेश किए गए संयुक्त राष्ट्र का औपचारिक सदस्य बनने के आवेदन की सक्रिय समीक्षा करेगा। महासभा में सभी देशों व संयुक्त राष्ट्र विभागों से फिलीस्तीनी जनता को स्वतंत्रता हासिल करने में मदद देने का आग्रह भी किया गया।

इस निर्णय के बाद फलस्तीन जनता ने विभिन्न गतिविधियां आयोजित कर खुशियां मनाईं।

उधर इज़राइल और अमेरिका ने इस फैसले से इज़राइल-फलस्तीनी शांति प्रक्रिया प्रभावित होने की बात भी कही।

इजराइल और अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से विकसित डेविडस् स्लिंग नामक मध्यम दूरी की मिसाइल रोधी प्रणाली का सफल परीक्षण किया गया है। दक्षिणी इजराइल में हुए पहले परीक्षण में सिस्टम से दागी गई मिसाइल ने सफलतापूर्वक लक्षित मिसाइल पर प्रहार किया। इजराइली रक्षा मंत्रालय के मुताबिक इजराइल की सरकारी सैन्य उद्यम रफएल कंपनी ने हाल ही में यह परीक्षण किया।इस घोषणा में कहा गया है कि इससे जाहिर है कि इजराइली मिसाइल रक्षा संगठन और अमेरिकी मिसाइल रक्षा एजेंसी ने डेविडस् स्लिंग नामक हथियार प्रणाली के अनुसंधान एवं विकास का प्रथम चरण पूरा किया है। इस सिस्टम के अनुसंधान और विकास करने का लक्ष्य एरो मिसाइल रक्षा प्रणाली के अलावा इजराइल को और एक बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा नेटवर्क प्रदान करना है।

दूसरी ओर, भारत ने सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल का सफल परीक्षण किया। भारत में निर्मित यह मिसाइल दुश्मन के बैलिस्टिक मिसाइल को हवा में ही ध्वस्त करने में सक्षम है। परीक्षण ओडिशा के तट पर किया गया।चीन और पाकिस्तान से मिसाइल हमलों के खतरों को देखते हुए मिसाइल रोधी मिसाइल प्रणाली की जरूरत पैदा हुई है। हाल ही में हमास और इजराइल के बीच लड़ाई के दौरान इजराइल की ऐसी ही रक्षा प्रणाली ऑयरन डोम काफी कारगर साबित हुई थी। ऑयरन डोम ने गाजा पट्टी से इजराइल पर दागे गए 300 से अधिक रॉकेटों को हवा में ही नष्ट कर दिया। इजराइल की यह प्रणाली आम तौर पर 80-90 फीसदी तक कामयाब रहती है। गाजा पट्टी से हुए हमलों से निपटने में ऑयरन डोम सबसे कारगर तकनीक साबित हुई है। अमेरिकी की वित्तीय मदद से विकसित इस सिस्टम ने तेल अवीव शहर को रॉकेटों से महफूज रखा। भविष्य में यदि भारत पर इस तरह का कोई मिसाइल या रॉकेट हमला होता है तो हमारी अपनी बनाई हुई यह प्रणाली अहम साबित होगी।


डीआरडीओ के प्रवक्ता रवि कुमार गुप्ता के मुताबिक परीक्षण दोपहर 12 बजकर 52 मिनट पर हुआ। इंटरसेप्टर मिसाइल ने करीब 15 किलोमीटर की उंचाई पर सफलतापूर्वक लक्षित मिसाइल को नष्ट कर दिया। भारत बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली पर विकसित कर रहा है।  रक्षा सूत्रों के मुताबिक इंटरसेप्टर के विभिन्न मानकों की जांच के लिए यह परीक्षण किया गया था।

ओडिशा के बालेश्वर से करीब 15 किलोमीटर दूर चांदीपुर तट के पास के समन्वित परीक्षण रेंज (आईटीआर) से करीब 12 बजकर 52 मिनट पर शत्रु के हथियार के रूप में 'पृथ्वी' मिसाइल को दागा गया। चांदीपुर से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इंटरसेप्टर ने रडार से संकेत मिलते ही करीब चार मिनट के अंदर हवा में ही दागी गई मिसाइल को नष्ट कर दिया।

इस इंटरसेप्टर मिसाइल की लंबाई 7.5 मीटर है और यह अत्याधुनिक कम्प्यूटरों और नेविगेशन सिस्टम से लैस है। यह इस प्रणाली का दूसरा परिक्षण था और फ़रवरी में किया गया इसका पहला परिक्षण भी सफल रहा था।

भारतीय सेना को नाइट विजन डिवाइस सप्लाई करने का ठेका हासिल करने के मामले में एक विदेशी कंपनी के दूसरी कंपनी को करोड़ों का कमीशन देने का खुलासा हुआ है। मामला 2006-09 के बीच का है। दरअसल डिफेंस पीएसयू बेल यानि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड भारतीय सेना को नाइट विजन डिवाइस सप्लाई करने का काम करती है। ये कंपनी बदले में इजरायल की कंपनी प्रिजमटेक से नाइट विजन डिवाइस खरीदती है। दरअसल इसी इजराइली कंपनी ने नाइट विजन डिवाइस का ठेका हासिल करने के लिए एक और कंपनी को कमीशन के तौर पर मोटी रकम दी, जो भारतीय सीमा में डिफेंस उपकरणों की सप्लाई या फिर खरीद-फरोख्त के नियमों के खिलाफ है।

फौज रात में अंधी न हो जाए, दूर तक देखती रहे और दुश्मनों को ढेर करती रहे, इसके लिए इनसास-5.56एमएम राइफल और एलएमजी जैसे अत्याधुनिक स्वचालित हथियारों पर फिट होने वाले नाइट विजन उपकरण विदेश से मंगवाए जाते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र वाली कंपनी बेल यानि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड के साथ रक्षा मंत्रालय ने 30,634 नाइट उपकरण खरीदने के लिए 900 करोड़ का समझौता किया था। लेकिन क्या समझौते के बाद बेल सारे नियमों का पालन कर रही है? बेल दरअसल, नाइट विजन डिवाइसेज के कल पुर्जे इजरायल की कंपनी प्रिजमटेक से खरीदकर भारतीय फौज को सप्लाई करती है। आईबीएन7 के हाथ लगे दस्तावेज इसी कंपनी के बर्ताव को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।कहानी बेल और प्रिजमटेक के बीच की इस डील में आए एक तीसरे किरदार की है। ये किरदार वोलसेल इनवेस्टमेंट नाम की एक स्विस कंपनी है जिसने प्रिजमटेक को बेल से नाइट विजन उपकरणों की सप्लाई का ठेका दिलवाने के एवज में अनुमानित कई सौ करोड़ वसूले यानि दलाली ली।

तो क्या भारतीय फौज रात में देख सकने वाले उपकरण उस कंपनी से खरीद रही है जिसने एक दूसरी कंपनी को ये सौदा दिलवाने के लिए मोटी दलाली दी है? बेल ने उपकरण प्रिजमटेक से खरीदे। प्रिजमटेक खरीद की रसीद पर दर्ज दाम का 14.5 फीसदी हिस्सा कमीशन के तौर पर वोलसेल इनवेस्टमेंट को देगी। इसमें वोलसेल इनवेस्टमेंट ने 14 नवंबर, 2006 को प्रिजमेटिक को दिए गए मोनोकुलर और बाइनोकुलर नाइट विजन डिवाइस के बेल के ऑर्डर के बदले में 19 लाख 13 हजार यूएस डॉलर की मांग की है। ये रकम आरबीएस काउंट्स बैंक, ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड में क्ली सर्विसेज कॉर्प के नाम पर ट्रांसफर करने की बात कही गई है।

साफ है प्रिजमटेक भारत के साथ हुए नाइट विजन डिवाइसेज की खरीद का 14.5 फीसदी पैसा वोलसेल इनवेस्टमेंट को दे रही थी। इसके अलावा आईबीएन7 के पास वोलसेल के स्विस बैंक अकाउंट में प्रिजमेटिक की ओर से ट्रांसफर किए गए तकरीबन 59 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड भी हैं। तो क्या ये रकम दलाली की है, और ये दलाली काफी वक्त से दी जा रही है?

सूत्रों के मुताबिक इस मामले में दलाली की कुल रकम 270 करोड़ के आस-पास हो सकती है। ये सेना के नियमों के खिलाफ है। नियम साफ कहते हैं कि फौज के साजोसामान की खरीद के लिए जिस कंपनी से समझौता होगा वो किसी बिचौलिये के जरिए डील करवाने या डील पर असर डलवाने की कोशिश नहीं कर सकती। तो फिर आखिर ये पैसा क्यों दिया गया। आईबीएन7 ने सेना से पूछा तो सेना ने किसी बिचौलिया कंपनी से दलाली की जानकारी से ही साफ इनकार किया। रक्षा मंत्रालय और इजराइली कंपनी प्रिजमेटिक को भी आईबीएन7 ने ई-मेल किया, लेकिन जवाब नहीं आया। भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड यानि बेल को भी मेल भेजा, कंपनी ने कहा कि ठेके की प्रक्रिया ग्लोबल टेंडर के तहत की गई और उन्हें नहीं पता कि प्रिजमटेक ने ये ठेका हासिल करने के लिए किसी कंपनी को हॉयर कर उसे कमीशन दिया या नहीं।

सवाल ये कि अगर प्रिजमटेक के उपकरण गुणवत्ता की कसौटी पर पूरी तरह से खरा उतरते थे तो फिर उसे ठेका हासिल करने के लिए वोलसेल इन्वेस्टमेंट की मदद क्यों लेनी पड़ी। वोलसेल इन्वेस्टमेंट ने आखिर किसकी मदद से प्रिजमटेक के लिए ठेका हासिल किया? सवाल ये भी क्या रक्षा दलालों ने प्रिजमटेक के लिए ठेका हासिल करने में कोई रोल अदा किया?


इस बीच फिलीस्तीन के मरहूम नेता यासर अराफात का शव मंगलवार को कब्र से निकाला गया, ताकि उनके अवशेष से जहर की जांच के नमूने लिए जा सके। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, फिलीस्तीनी गार्ड के सदस्यों ने कब्र से उनके शव का ताबूत निकाला और इसे फिलीस्तीनी प्रेजीडेंसी के रामल्लाह मुख्यालय स्थित मस्जिद में ले गए।सूत्रों के अनुसार, अवशेष प्लास्टिक के स्ट्रेचर पर मस्जिद ले जाए गए, जहां उसके नमूने लिए जाएंगे।अराफात का शव कब्र से निकाले जाने के मौके पर स्विट्जरलैंड, फ्रांस और रूस के जांचकर्ताओं एवं विशेषज्ञों के अतिरिक्त अराफात की मौत की जांच कर रही फिलीस्तीनी समिति के प्रमुख तौफीक तिरावी भी मौजूद थे।फिलीस्तीन के वरिष्ठ मुफ्ती, फिलीस्तीनी प्रेजीडेंसी के महासचिव और महान्यायवादी भी अराफात का शव कब्र से निकाले जाने के मौके पर मौजूद थे।अराफात का शव जल्द ही पूरे सैन्य सम्मान के साथ एकबार फिर दफना दिया जाएगा। इस प्रक्रिया को गोपनीय रखने के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।अराफात की कब्र से उनके अवशेष इसलिए लिए जा रहे हैं, ताकि यह पता लगाया जा सके कि 11 नवंबर, 2004 को फ्रांस के एक अस्पताल में उनकी मौत किस कारण से हुई थी? कहीं यह जहर की वजह से तो नहीं हुई थी? फिलीस्तीनियों को संदेह है कि इजरायल ने उन्हें जहर दिया था।इस साल की शुरुआत में स्विट्जरलैंड के विशेषज्ञों ने अराफात के निजी समानों, जैसे-अंडरवियर और टूथब्रश की जांच की थी, जिस पर रेडियोएक्टिव पदार्थ पोलोनियम-210 पाए गए थे।अराफात की पत्नी सुहा ने याचिका दायर कर फ्रांस के अस्पताल से अपने पति की मौत की जांच कराने की मांग की थी।

अगर अराफात की हत्या हुई तो किसने की और यह मामला अब तक दबा क्यों है?

फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में गैर सदस्य पर्यवेक्षक राष्ट्र का दर्जा मिलने का मतलब यह नहीं है कि फलस्तीनी खुद-ब-खुद अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष(आईएमएफ) के सदस्य बन जाएंगे।

न्यूज एजेंसी एएफपी के एक सवाल के जवाब में आईएमएफ की एक प्रवक्ता ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र से मान्यता मिलने का आईएमएफ की संभावित सदस्यता पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ेगा। उसने कहा कि सदस्यता पर फैसला लेने के लिए मुदा कोष के अपने नियम हैं। यह इस पर निर्भर करता है कि मुद्रा कोष में वोट देने का अधिकार रखने वाले देश और ब्लॉक आवेदक को बहुमत से एक देश के रूप में मान्यता दें। मतलब यह हुआ कि अगर फलस्तीन को आईएमएफ की सदस्यता चाहिए तो उसे अमेरिका और यूरोप का समर्थन हासिल करना होगा। ये दोनों आईएमएफ के सदस्य हैं और इनके पास सबसे ज्यादा वोटिंग पावर है।

इजरायल के कट्टरपंथी प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने अपने आंतरिक मंत्रिमंडल के साथ सलाह के बाद पूर्वी यरूशलम और पश्चिमी तट पर 3,000 नए भवनों के निर्माण का आदेश दिया है। इसे ई1 नामक क्षेत्र में बनाया जाना है जो यरूशलम को मालेह अदुमि से जोड़ता है।

अगर यह परियोजना पूरी हो जाती है तो उत्तरी और दक्षिणी पश्चिमी तट के बीच सीमा संपर्क टूट जाएगा और भविष्य में फलस्तीनी राष्ट्र के लिए अड़चनें आएंगी।

फलस्तीनी वार्ताकार साएब एरकत ने इजरायल की घोषणा की आलोचना की। गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में हुए एक ऐतिहासिक मतदान में फलस्तीन ने जबर्दस्त जीत दर्ज की, जिससे विश्व निकाय में इसका दर्जा बढ़कर गैर सदस्यीय पर्यवेक्षक का हो गया।

भारत समर्थित इस प्रस्ताव के पक्ष में 138 देशों ने मतदान किया। 193 सदस्यीय महासभा में अब फलस्तीन का दर्जा बढ़कर गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राष्ट्र का हो जाएगा।

यह अमेरिका और इजरायल के लिए बड़ा राजनयिक झटका है जिन्होंने फलस्तीन के प्रयास का कड़ा विरोध किया था। अमेरिका, इजरायल, कनाडा और क्रेच रिपब्लिक सहित नौ देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, जबकि ब्रिटेन समेत 41 देश अनुपस्थित रहे। ब्रिटेन ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह मतदान में भाग नहीं लेगा।

अमेरिका फलस्तीन के प्रस्ताव को 'दुर्भाग्यपूर्ण और विकासविरोधी' बता रहा है जबकि इजरायल ने कहा कि फलस्तीन केवल वार्ता के माध्यम से ही राष्ट्र का दर्जा प्राप्त कर सकता है।

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की स्थाई प्रतिनिधि सुसन राइस ने कहा था,'आज दुर्भाग्यपूर्ण और प्रतिकूल प्रस्ताव पेश किया गया जिससे शांति की राह में और बाधा आ गई है।'उन्होंने कहा,'यह प्रस्ताव फलस्तीनी राष्ट्र की स्थापना नहीं करता है।'

विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने अमेरिकी समकक्ष हिलेरी क्लिंटन को पत्र लिखकर पाकिस्तानी-अमेरिकी आतंकवादी और मुंबई आतंकी हमले के आरोपी डेविड हेडली और उनके साथी तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण के लिए आग्रह किया।

आधिकारिक सूत्रों ने आज यहां कहा कि खुर्शीद ने जनवरी में वहां सजा सुनाये जाने से पहले इन दोनों का प्रत्यर्पण करने के लिए हिलेरी को पत्र लिखा।

सूत्रों के अनुसार, भारत को आशा है कि अमेरिका नवंबर के पहले हफ्ते में भेजे गये आग्रह पर भारत के पक्ष में फैसला लेगा। नयी दिल्ली को वाशिंगटन से प्रतिक्रिया का इंतजार है।

पिछले महीने अपनी यात्रा के दौरान अमेरिका के राजनीतिक मामलों के 'अंडर सेकेटरी' वेंडी शरमैन ने कहा था कि हेडली के प्रत्यर्पण के लिए भारत के आग्रह पर विचार किया जा रहा है और जल्द फैसला किया जाएगा।

भारत को हेडली तक सीमित पहुंच हासिल हुई है लेकिन उसने उसके पाकिस्तानी कनाडाई कारोबारी दोस्त राणा से अब तक पूछताछ नहीं कर पाई है। सूत्रों ने कहा, ''केवल हेडली और राणा हीं नहीं, हम अमेरिका से कई गंभीर मुद्दों पर बात कर रहे हैं।''

भारत और इजराइल के व्यापारिक संबंध हर क्षेत्र में फल-फूल रहे हैं। इनके द्विपक्षीय नागरिक व्यापार में साल 2006 में खासी बढ़ोतरी हुई है। यह पिछले दशक के 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ कर 2.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है। दोनों देशों ने अगले पांच सालों में अपने इस व्यापार को पांच बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।

साल 2002 में आपसी व्यापार के क्षेत्र में आई 43 प्रतिशत की छलांग को अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था की मंदी के कारण आई सुस्ती से उबरने वाला साल माना जाए, तो 2003 और 2004 को दोनों देशों के बीच के व्यापार को मजबूती प्रदान करनेवाले साल कह सकते हैं। 2003 में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी से जहां व्यापार 1.5 बिलियन अमरिकी डॉलर तक पहुंच गया, वहीं साल 2004 में यह द्विपक्षीय व्यापार 36 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 2.15 बिलियन अमरिकी डॉलर तक जा पहुंचा। साल 2006 के दौरान यह आपसी व्यापार 2.7 बिलियन अमरिकी डॉलर का रहा। इस चढ़ते व्यापारिक ग्राफ की बदौलत भारत, एशिया में इजराइल का सबसे बड़ा निर्यातक और दूसरा बड़ा आयातक देश बन गया है।


मौजूदा समय में दोनों देशों के बीच का व्यापार बहुत फैला हुआ है। इसमें हीरे, कीमती पत्थर , रासायनिक पदार्थ तथा टेलिकॉम और खेती में प्रयोग आने वाले उपकरणों से ले कर उच्च तकनीक वाले मेडिकल उपकरण तक शामिल हैं। भारत में फिलहाल सौ से भी अधिक इजराइली कंपनियां या तो स्वतंत्र रूप से या साझेदारी में काम कर रही हैं। एक बड़ी सूची उन कंपनियों की भी है जो अपने आप को यहां स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं।

दोनों देशों के विशेष के प्रतिनिधिमंडल टेलिकॉम, एग्रीकल्चर, कैपिटल वेंचर, पर्यावरण और आंतरिक सुरक्षा सहित अन्य कई क्षेत्रों में व्यापार की संभावनाओं का पता लगाने के लिए एक-दूसरे के यहां बराबर आते-जाते रहते हैं। प्रतिनिधिमंडलों की यह आवाजाही भी दोनों देशों के मजबूत होते संबंधों का सूचक है। 2004 की जनवरी में भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री अरुण जेटली ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए येरुशलम में संयुक्त आर्थिक समिति की तीसरी मीटिंग में शिरकत की थी। इजराइली उप प्रधानमंत्राी एहुद अल्मर्ट ने, जो उद्योग-व्यापार, श्रम तथा संचार मामलों के मंत्री थे, उन्होंने उसी साल दिसंबर 6 से 9 तक एक बड़े व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत का दौरा किया था। 2005 में भारत के साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री कपिल सिब्बल के इजराइली दौरे के समय दोनों देशों ने मिल कर साइंस के क्षेत्र में शोध और विकास को बढ़ावा देने के लिए एक कोश का भी गठन किया। यह कोश संयुक्त व्यावसायिक विकास के लिए निवेशकों और उद्यमियों को सहायता प्रदान करता है।

श्री सिब्बल और श्री अल्मर्ट ने उस समझौते पर भी दस्तखत किए जिसके तहत दोनों पक्ष शुरू में उद्यमियों को जोखिम मुक्त अनुदान देने के लिए एक-एक मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान करेंगे। इसके अलावा दोनों मंत्री समान हितों के पांच अन्य क्षेत्रों में सहयोग करने पर सहमत हुए, जिसमें नैनो टेक्नोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी, जल प्रबंधन, पारंपरिक उर्जा स्त्रोत और स्पेस एयरोनॉटिक्स शामिल हैं।

नवंबर 2005 में जब भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्री कमलनाथ इजराइल गए थे, तब एक ज्वाइंट स्टडी ग्रुप जेएसजी का भी गठन किया गया, ताकि 2005 तक द्विपक्षीय व्यापार को 5 बिलियन डॉलर तक पहुंचाया जा सके। उसी समय व्यापक आर्थिक सहयोग समझौतों के लिए प्रस्तावित एक्च्चन प्लान को भी मंजूरी मिली। इससे आपस में वस्तु और सेवा क्षेत्रों के व्यापार, पारस्परिक निवेच्च एवं शोध और विकास की परियोजनाओं को गति मिलेगी।

भारतीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार ने भी नवंबर 2005 के अपने इजराइली दौरे में यहां के कृषि मंत्री एस्त्राएल कॉज के साथ बैठक में एक ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप यानी जेडब्लूजी के गठन का निर्णय लिया। इसका काम दोनों देशो में स्थित उन संस्थानों का पता लगाना है जो एग्रीकल्चर और साइंस के क्षेत्र में शोध में मददगार साबित हों। रिसर्च में क्रॉप टेक्नोलॉजी, माइक्रो एरिगेच्चन, डेयरी, फूड-प्रोसेसिंग और फूड प्रोडक्ट्स के साझा मार्केटिंग पर विच्चेष ध्यान दिया जाएगा।

मई 2006 में एग्रीटेक प्रदर्च्चनी के अवसर पर भारतीय कृषि मंत्री शरद पवार की अगुवाई में एक बड़े प्रतिनिधिमंडल ने फिर से इजराइल का दौरा किया। इस प्रतिनिधिमंडल में राजस्थान, गुजरात और नागालैंड के मुख्यमंत्रियों के साथ अन्य भारतीय राज्यों के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे। इस यात्रा के दौरान दोनों सरकारों ने कृषि के क्षेत्र में सहयोग के लिए तीन सालों की एक कार्य योजना पर भी हस्ताक्षर किए।

दिसम्बर 2006 में भी दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेच्च संबंधों में मजबूती प्रदान करने के लिए इजराइली उप प्रधानमंत्री और व्यापार, उद्योग एवं श्रम मामलों के मंत्री श्री एलियाउ येच्चाय ने 50 प्रमुख इजराइली उद्यमियों के साथ भारत का दौरा किया और जेएसजी की संस्तुतियों के आधार पर प्रीफेरेंच्चियल टेरेड एग्रीमेंट पीटीए पर बातचीत की इजराइली उपप्रधानमंत्री और परिवहन एवं सड़क सुरक्षा मंत्री श्री शॉल मॉफेज के साथ इजराइली परिवहन मंत्रालय के अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल ने जी मार्च 2007 में भारत का दौरा किया। तब उन्होंने भारतीय रेलमंत्री श्री लालू प्रसाद, नागरिक उड्डयन मंत्री श्री प्रफुल्ल पटेल और सड़क परिवहन, हाइवे तथा जहाजरानी के मंत्री श्री टीआर बालू से भेंट की थी। इस दौरान श्री माफेज प्रमुख इन्फ्रास्टरक्चर कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ मुम्बई मेटरोपॉलिटन रीजन डेवेलपमेंट अथॉरिटी के अधिकारियों से भी मिले थे।

निरस्त्रीकरण के झंडाबरदार, बेच रहे हथियार

विश्व भर में चल रही हथियार बाजार की बहस और घोषणाओं के बीच हथियार बाजार भी बहुत तेजी से अपने पैर पसार रहा है। हथियारों के इस वैश्विक बाजार के संचालक भी वही देश हैं जो निरस्त्रीकरण अभियान के झंडाबरदार हैं। इन देशों में अमेरिका, रूस आदि प्रमुख हैं जो वैश्विक स्तर पर हथियार बेचने का कार्य करते हैं। ''स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च ग्रुप'' के अनुसार विश्व का हथियार उद्योग डेढ़ खरब डॉलर का है और विश्व का तीसरा सबसे भ्रष्टतम उद्योग है। जिसने हथियारों की होड़ को तो बढ़ाया ही है, हथियार माफियाओं और दलालों की प्रजाति को भी जन्म दिया है। विश्व का बढ़ता हथियार बाजार वैश्विक जीडीपी के 2.7 प्रतिशत के बराबर हो गया है। हथियारों के इस वैश्विक बाजार में 90 प्रतिशत हिस्सेदारी पश्चिमी देशों की है, जिसमें 50 प्रतिशत हथियार बाजार पर अमेरिका का कब्जा है।

अमेरिका की तीन प्रमुख कंपनियों का हथियार बाजार पर प्रमुख रूप से कब्जा है- बोइंग, रेथ्योन, लॉकहीड मार्टिन। यह भी एक तथ्य है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक और कश्मीर आदि के मामलों में अमेरिकी नीतियों पर इन कंपनियों का भी व्यापक प्रभाव रहता है। भारत के संबंध में यदि बात की जाए तो सन् 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत को हथियारों को आपूर्ति करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। जिसे अमेरिका की बुश सरकार ने 2001 में स्वयं हटा लिया था, जिसके बाद भारत में हथियारों का आयात तेजी से बढ़ा। पिछले पांच वर्षों की यदि बात की जाए तो भारत में हथियारों का आयात 21 गुना और पाक में 128 गुना बढ़ गया है।

भारत-पाकिस्तान के बीच हथियारों की इस होड़ में यदि किसी का लाभ हुआ है, तो अमेरिका और अन्य देशों की हथियार निर्माता कंपनियों का। दरअसल अमेरिका की हथियार बेचने की नीति अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के ''गन और बटर'' के सिद्धांत पर आधारित है। गरीब देशों को आपस में लड़ाकर उनको हथियार बेचने की कला को विल्सन ने ''गन और बटर'' सिद्धांत नाम दिया था, जिसका अर्थ है आपसी खौफ दिखाकर हथियारों की आपूर्ति करना। भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में भी अमेरिका ने इसी नीति के तहत अपने हथियार कारोबार को लगातार बढ़ाने का कार्य किया है। हाल ही में अरब के देशों में सरकार विरोधी प्रदर्शनों और संघर्ष के दौरान भी अमेरिकी हथियार पाए गए हैं, हथियारों के बाजार में चीन भी अब घुसपैठ करना चाहता है।

हथियारों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता देशों का लक्ष्य किसी तरह भारत के बाजार पर पकड़ बनाना है। जिसमें उनको कामयाबी भी मिली है, जिसकी तस्दीक अमेरिकी कांग्रेस की एक रिपोर्ट भी करती है। अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सन 2010 में विकासशील देशों में भारत हथियारों की खरीदारी की सूची में शीर्ष पर है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने 5.8 अरब डॉलर (लगभग 286.92 रूपये) के हथियार खरीदे हैं। इस सूची में ताइवान दूसरे स्थान पर है, जिसने 2.7 डॉलर (लगभग 133.57 अरब रूपये) के हथियार खरीदे हैं। ताइवान के बाद सऊदी अरब और पाकिस्तान क्रमशः तीसरे और चौथे स्थान पर हैं।
अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट के अनुसार भारत के हथियार बाजार पर अब भी रूस का वर्चस्व कायम है, लेकिन अमेरिका, इजरायल और फ्रांस ने भी भारत को अत्याधुनिक तकनीक के हथियारों की आपूर्ति की है। रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में हथियारों की आपूर्ति के मामले में अमेरिका पहले और रूस दूसरे स्थान पर कायम है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका दक्षिण एशिया में हथियारों की बढ़ती आपूर्ति के प्रति चिंतित है, कैसी विडंबना है कि हथियारों की आपूर्ति भी की जा रही है और चिंता भी जताई जा रही है। अमेरिकी कांग्रेस की यह रिपोर्ट अमेरिकी नीतियों के दोमुंहेपन को उजागर करती है।
हथियारों के बाजार से संबंधित यह आंकड़े विकासशील देशों के लिए एक सबक हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि विकसित देश आतंक के खिलाफ जंग के नाम पर और शक्ति संतुलन साधने के नाम पर अपने बाजारू हितों की पूर्ति करने का कार्य कर रहे हैं। तीसरी दुनिया के वह देश जो भुखमरी और गरीबी से जंग लड़ने में भी असफल हैं, उन देशों में विकसित देशों के पुराने हथियारों को खपाने से क्या उन देशों को विकास की राह मिल सकती है?

भारत के संदर्भ में यदि देखा जाए तो हम आज भी विकसित देशों के पुराने हथियारों को अधिक दामों पर खरीद रहे हैं। इससे सबक लेते हुए हमें अपने बजट को तय करते समय अपने रक्षा अनुसंधान विभाग को भी पर्याप्त बजट मुहैया कराना होगा, ताकि हम रक्षा प्रणाली के माध्यम में आत्मनिर्भर हो सकें। जिससे भारत की सीमा और संप्रभुता की रक्षा हम स्वदेश निर्मित हथियारों से कर सकें।
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भारत और विश्‍व

भारत की विदेश नीति में देश के विवेकपूर्ण स्‍व-हित की रक्षा करने पर बल दिया जाता है। भारत की विदेश नीति का प्राथमिक उद्देश्‍य शांतिपूर्ण स्थिर बाहरी परिवेश को बढ़ावा देना और उसे बनाए रखना है, जिसमें समग्र आर्थिक और गरीबी उन्‍मूलन के घरेलू लक्ष्‍यों को तेजी से और बाधाओं से मुक्‍त माहौल में आगे बढ़ाया जा सकें। सरकार द्वारा सामाजिक- आर्थिक विकास को उच्‍च प्राथमिकता दिए जाने को देखते हुए, क्षेत्रीय और वैश्विक दोनों ही स्‍तरों पर सहयोगपूर्ण बाहरी वातावरण कायम करने में भारत की महत्‍वपूर्ण भूमिका है। इसलिए, भारत अपने चारों ओर शांतिपूर्ण माहौल बनाने के प्रयास करता है। और अपने विस्‍तारित पास-पड़ोस में बेहतर मेल-जोल के लिए काम करता है। भारत की विदेश नीति में इस बात को भली-भांति समझा गया है। कि जलवायु परिवर्तन ऊर्जा उनके समाधान के लिए वैश्विक सहयोग अनिवार्य है।

बीते वर्ष में कई रचनात्‍मक कार्य हुए, कुछ महत्‍वपूर्ण सफलताएं हासिल की गई, और भारत की नीति के समक्ष कुछ नयी चुनौतियां भी सामने आयीं

पड़ोसी देशों के साथ भारत की साझा नीति है। वर्ष के दौरान भूटान में महामहिम के राज्‍यभिषेक और लोकतंत्र की स्‍थापना से इस देश के साथ भारत के संबंधो का और विकास हुआ। भारत ने लोकतांत्रिक राजसत्‍ता में नेपाल के रूपान्‍तरण और बांग्‍लादेश में लोकतंत्र की बहाली का जोरदार समर्थन किया भारत ने अफगानिस्‍तान के निर्माण और विकास में योगदान किया है पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण और घनिष्‍ठ द्विपक्षीय संबंध बनाए रखने के अलावा, भारत ने सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) को एक ऐसे परिणामोन्‍मुखी संगठन के रूप में विकसित करने की लिए भी काम किया है, जो क्षेत्रीय एकीकरण को प्रभावकारी ढंग से प्रोत्‍साहित कर सके।

जनवरी, 2008 में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की चीन की सरकारी यात्रा और जून, 2008 में विदेश मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी की चीन-यात्रा के साथ द्विपक्षीय संबंध और मजबूत हुए। भारत चीन सीमा पर स्थिति शांतिपूर्ण रही जबकि विशेष प्रतिनिधियों द्वारा सीमा विवाद के समाधान के प्रयास जारी रहे। दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग से आपसी विश्‍वास बढ़ाने में मदद मिली चीन ने सितंबर, 2008 में कोलकाता में नए वाणिज्‍य दूतावास की स्‍थापना की और इससे पहले भारत ने जून, 2008 ग्वांझो (Guangzhou) में वाणिज्‍य दूतावास खोला था।

एक प्रमुख उपलब्धि अक्‍टूबर, 2008 में भारत- अमेरिका सिविल परमाणु समझौते पर हस्‍ताक्षर किए जाने के रूप में सामने आयी। इस समझौते से परमाणु क्षेत्र में भारत को व‍ह प्रौद्योगिकी मिलने का रास्‍ता साफ हो गया, जिससे वह पिछले तीन दशक से वंचित था। इस द्विपक्षीय समझौते पर हस्‍ताक्षर होने के बाद भारत ने असैनिक परमाणु सहयोग के बारे में फ्रांस, रूस और कज़ाकिस्‍तान के साथ ऐसे ही समझौते पर हस्‍ताक्षर किए। भारत-अमरीकी महत्‍वपूर्ण भागीदारी को सितंबर 2008 में प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिका यात्रा से और भी बल मिला, जब उन्‍होनें वाशिंगटन में अमरीकी राष्‍ट्रपति जोर्ज डब्‍लू बुश के साथ द्विपक्षीय बैठक और नवंबर में जी-20 शिखर सम्‍मेलन के अवसर पर भी श्री बुश से भेंट की। अमेरिका भारत का सबसे व्‍यापार भागीदार और प्रौद्योगिकी का स्रोत रहा है।

वर्ष के दौरान रूस के साथ भारत की परमंपरागत मित्रता और सामरिक संबंध और मजबूत किए गए। रूसी परिसंघ श्री दिमित्री मेदवेदेव ने दिसंबर 2008 में वार्षिक शिखर बैठक के लिए भारत की सरकारी यात्रा की। वर्ष 2008 को भारत में रूस के वर्ष रूप में मनाया गया वर्ष 2009 रूस में भारत के वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। रूस के साथ अपने सामरिक संबंध एव सांस्‍‍कृतिक संबंधो को और मजबूत करना चा‍हता है तथा इस क्षेत्र के साथ और भी घनिष्‍ठ रूप में जुड़ना चाहता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मध्‍य एशियाई देशों के सहयोग अधिक वास्‍तविक और विविधतापूर्ण हो सके।

भारत ने प्रतिरक्षा और सुरक्षा, परमाणु एवं अंतरिक्ष, व्‍यापार एवं निवेश ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, संस्‍‍‍कृति और शिक्षा जैसे विविध क्षेत्रों में ए‍क महत्‍वपूर्ण भागीदार, यूरोपीय संघ किए है। यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्‍यापारिक भागीदार और निवेश प्रमुख स्रोतों में से एक है।

भारत ने अफ्रीका देशों के साथ अपने पंरपरागत मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्‍मक संबंधों को महत्‍व देना जारी रखा है। इस संदर्भ में अप्रैल, 2008 मे भारत-अफ्रीका मंच का प्रथम शिखर सम्‍मेलन एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें दिल्‍ली घोषणा पारित की गई और स‍हयोग के लिए भारत-अफ्रीका फ्रेमवर्क किया गया ये दोनों दस्‍तावेज भारत और अफ्रीका के बीच सहयोग की भावी रूप-रेखा को परिभाषित करते हैं। विदेश मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने 26 फरवरी,2009 को नई दिल्‍ली में भारत की प्रतिष्टित परियोजना पैन-अफ्रीकन ई-नेटवर्क का उद्घाटन किया।

लैटिन अमरीकी और कैरिबियाई क्षेत्र के देशों के साथ सुदृढ़ संबंध कायम करने के भारत के प्रयासों के हाल के वर्षो में प्रभावशाली परिणाम सामने आये हैं। इन देशों के साथ विभिन्‍न स्‍तरों पर प्रतिनिधिक-क्षेत्रगत वार्ताएं हुई है। और आपसी लाभप्रद सहयोग के लिए संस्‍थागत व्‍यवस्‍था का फ्रेमवर्क तैयार हुआ है।

पश्चिमी एशिया और खाड़ी क्षेत्र के देशों के साथ भारत के सहयोग का स्‍वरूप समसामयिक रहा है, जिसमें बाहरी आंतरिक शांतिपूर्ण उपयोग और भारतीय प्रक्षेपण यानों का इस्‍तेमाल शामिल है। इस क्षेत्र में भारत से जाकर बसे करीब 50 लाख प्रवासी रहते हैं, जिन्‍होंने भारत और खाड़ी क्षेत्र, दोनों के आर्थिक विकास में महत्‍वपूर्ण योगदान किया है।

भारत आसियान और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ सहयोग को 21वीं सदी में अपनी कूटनीति का महत्‍तवपूर्ण आयाम समझता है, जो भारत की लुक ईस्‍ट पॉलिसी यानी पूरब की ओर देखो नीति में स्‍पष्‍ट रूप से झलकता है।

2009 में, भारत ने अपने आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग के नेटवर्क का महत्‍वपूर्ण विस्‍तार किया है। हाल में गठित मंचों, जैसे आईआरसी (भारत-रूस-चीन), ब्रिक (ब्राजील-रूस-भारत-चीन) और इब्‍सा (भारत-ब्राजील-दक्षिण अफ्रीका) में भारत महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करने के लिए तैयार है। भारत ने आसियान पूर्वी एशिया शिखर सम्‍मेलन बीआईएमएसटीईसी (बिम्‍सटेक), मेकांग-गंगा सहयोग, जी-15 और जी-8 जैसे आर्थिक संगठनों के साथ जुड़ने के निरन्‍तर प्रयास किए हैं।

बहुराष्‍ट्रवाद के प्रति सुदृढ़ प्रतिबतद्धता रखते हुए भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा को मजबूत बनाने में योगदान किया है। भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र परिषद में सुधार और यूएनजीए के पुनरूत्‍थान के प्रस्‍तावों का समर्थन किया है। भारत चाहता है कि विकासशील देशों और उभरती ताकतों की उचित आकांक्षाओं को देखते हुए वैश्विक संस्‍थान विश्‍व-व्‍यवस्‍था की नई वास्‍तविकाताओं के अनुरूप बनें।

इन रचनात्‍मक गतिविधियों के साथ-साथ देश के आंतकवाद पीडित स्‍थानों और सीमा-पारी के आंतकवाद से भारत की अस्थिर सुरक्षा सहित राष्‍ट्र की सुरक्षा की दृष्टि से 2008-09 में भारत की विदेशी नीति को नए खतरों का सामना करना पड़ा।

2008-09 में पाकिस्‍तान के साथ समग्र वार्ता पांचवे दौर में पहुची। यह वार्ता पाकिस्‍तान के इस घोषित वायदे पर आधरित थी कि वह किसी भी तरह से भारत के खिलाफ आंतकवाद के लिए अपने नियंत्रण वाली भूमिका का इस्‍तेमाल करने की अनुमति नहीं देगा। किंतु जुलाई, 2008 में काबुल मे भारतीय दूतावास पर और नवंबर, 2008 में मुंबई पर पाकिस्‍तान की धरती से किए गए आंतकवादी हमलों से यह सिद्ध हो गया कि पाकिस्‍तान अपना वायदा निभाने में सक्षम नहीं रहा है। इसे देखते हुए वार्ता प्रक्रिया निलंबित होना स्‍वाभविक थी।

मुंबई हमलों की विश्‍वभर में अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय ने निंदा की। पाकिस्‍तान और पूरी दुनिया के समक्ष इस बात के ठोस सबूत किए गए कि इन हमलों की साजिश में पाकिस्‍तानी नागरिक शामिल थे और उन्‍होंने ही हमलों को अंजाम दिया। किंतु पाकिस्‍तान की परवर्ती कार्रवाइयां विलंबकारी और भ्रम फैलाने वाली रही और यही वजह है कि वह अभी तक हमलों की साजिश रचने वालों को दंडित नहीं करा पाया है अथवा पाकिस्‍तान की धरती से भारत के खिलाफ चलाए जा रहे आंतकवाद के ढ़ाचे को नष्‍ट नहीं कर पाया है।

2008 में श्रीलंका में एलटीटीई की पंरपरागत सैन्‍य क्षमता को समाप्‍त करने के लिए बड़े पैमाने पर सैन्‍य अभियान चलाए गए, जिसमें बड़ा मानवीय संकट पैदा हुआ। भारत न वहां के नागरिकों और आंतरिक रूप में विस्‍थापित व्‍यक्तियों के लिए राहत आपूर्ति तथा चिकित्‍सा सहायता के राजनीतिक संकट में श्रीलंका की सहायता करने के प्रयास भी निरंतर जारी से जातीय समस्‍या के राजनीतिक समाधान में प्रवेश को देखते हुए, भारत एकीकृत श्रीलंका के फ्रेमवर्क के भीतर मुदृदों के ऐसे शांतिपूर्ण समाधान के लिए काम करेगा, जो विशेष रूप से तमिलों सहित देश के सभी समुदायों को स्‍वीकार्य हो।

वर्ष के दौरान अन्‍य चुनौती बिगड़ती हुई अंतर्राष्‍ट्रीय आर्थिक स्थिति थी। अंतराष्‍ट्रीय वित्‍तीय संकट ने आर्थिक संकट का रूप ले लिया क्‍योंकि प्रमुख प्रश्चिमी अर्थव्‍यवस्‍थाओं और बाजारों में मंदी छा जाने से भारत के विकास में सहायक अंतराष्‍ट्रीय माहौल तेजी से बदल गया। इसके बावजूद भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में 2008-2009 के दौरान 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई, और वह विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था में वृद्धि एवं स्थिरता का घटक बनी है। संकट से निबटने के जी-20 देशों जैसे, अंतर्राष्‍ट्रीय प्रयासों में भारत ने सक्रिय भूमिका अदा की, ताकि विकासशील देशों के हितों की रक्षा की जा सके भारत ने य‍ह सुनिश्चित करने का प्रयास भी किया कि वैश्विक आर्थिक मुदृदों के बारे में निर्णय करने वाली अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यवस्‍था लोकतांत्रिक हो जो मौजूदा वास्‍तविकताओं को व्‍यक्‍त करे।

वर्ष 2008 की समाप्ति पर यह स्‍पष्‍ट हो गया कि भारत के भविष्‍य पर दुष्‍प्रभाव डालने वाले प्रमुख अंतर्राष्‍ट्रीय मुदृदों जैसे वैश्विक और स्‍थायी विकास, के हल के लिए सहयागपूर्ण वैश्विक समाधान अनिवार्य है। इन समाधनों को कार्य रूप प्रदान करने के अं‍तर्राष्‍ट्रीय प्रयासों में भारत की सक्रिय एवं भागीदारीपूर्ण भूमिका रही है। भारत उन्‍हें सफल बनाने में निरंतर योगदान करता रहेगा।
http://bharat.gov.in/knowindia/india_world.php


भारतीय विदेश नीति को नया आयाम देने वाले गुजराल...

भारतीय राजनीति में अपने सरल स्वभाव और विनम्रता के लिए अलग पहचान बनाने वाले इंद्र कुमार गुजराल को देश दुनिया में 'गुजराल सिद्धांत' के रूप में विदेश नीति को नया आयाम देने के लिए जाना जाता है और इसकी छाप प्रधानमंत्री के रूप में उनके छोटे कार्यकाल के दौरान भी मिली।

भारत के विदेश मंत्री के रूप में अपने दो कार्यकाल में गुजराल ने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों को व्यापक आधार प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की जिसे भारत में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सराहा गया।

अपने लंबे राजनीतिक जीवन में वे कई मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे और दिवंगत इंदिरा गांधी ने उन्हें उस दौर की महाशक्ति रहे सोवियत संघ में भारत का राजदूत बनाया था। जब 1997 में जनता दल के नेतृत्व में छोटे छोटे क्षेत्रीय दलों की सहयोग से संयुक्त मोर्चे की सरकार बनी तो गुजराल का नाम आश्चर्यजनक रूप से प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आया।

भारत से जुड़े मुद्दों पर कौन कहाँ....

सलीम रिज़वी
न्यूयॉर्क से बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
सोमवार, 22 अक्तूबर, 2012 को 19:52 IST तक के समाचार

अमरीका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव छह नवंबर को होने हैं और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार और वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके प्रतिद्वंद्वी रिपब्लिकन पार्टी के मिट रोमनी के बीच काँटे का मुकाबला माना जा रहा है.

ये चुनाव अमरीकी जनता के लिए तो महत्व रखते ही हैं, भारत जैसे देशों पर भी इनके नतीजों का असर पड़ सकता है.

इसीलिए इस पर भी नज़र डालना ज़रूरी है कि भारत के प्रति आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक मामलों से जुड़े मुद्दों पर दोनों उम्मीदवारों का क्या रूख है, वे भारत के प्रति कैसी नीति अपनाएंगे, वगैरह-वगैरह.

अमरीका के हवाले से भारत और भारतीयों से जुड़े कुछ अहम मुद्दे हैं. भारत और अमरीका के बीच संबंध, जिनमें आर्थिक, सामरिक और अन्य मामलों में दोनों देशों के बीच सहयोग.

इसके अलावा परमाणु संधि, आउटसोर्सिंग, एचवन बी वीज़ा, भारत में आर्थिक सुधार जैसे कई अहम मुद्दे भी हैं.

इन मुद्दों पर दोनों उम्मीदवारों के रूख पर नज़र डालते हैं.

चुनावी मुहिम के दौरान विभिन्न मुद्दों पर बराक ओबामा और मिट रोमनी दोनों ही अपनी-अपनी नीतियों को उजागर कर रहे हैं जिनमें विदेश नीति से जुड़े कई मुद्दों पर दोनों का रूख अलग है.

अहम साथी

लेकिन दोनों ही उम्मीदवार भारत को अमरीका का अहम साथी मानते हैं.

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ही सबसे पहले सरकारी दौरे की दावत दी और खुद ओबामा ने भी भारत का दौरा किया.

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत और अमरीका के बीच सामरिक वार्ता की शुरूआत की और वह दोनों देशों के बीच दीर्घकालीन सामरिक साझेदारी को जारी रखना चाहते हैं.

भारत और अमरीका के बीच सामरिक वार्ता के तहत आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई, परमाणु अप्रसार, साइबर सुरक्षा और पर्यावरण जैसे अहम मुद्दों पर सहयोग जारी है. और दोनों देशों के बीच आर्थिक, सैन्य और विज्ञान के क्षेत्रों में भी सहयोग तेज़ी से बढ़ रहा है.

लेकिन साल 2005 में दोनों देशों के बीच हुई परमाणु संधि को पूरी तरह लागू करने में अभी भी कुछ अड़चनें बाकी हैं.

आर्थिक सुधारों और विदेशी निवेश के मुद्दों पर भी बराक ओबामा भारत द्वारा और सुधार किए जाने की मांग करते हैं.

बराक ओबामा

राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार इस वर्ष 100 अरब डॉलर से अधिक होने की संभावना है, फिर भी ओबामा प्रशासन भारतीय बाज़ारों को और खोले जाने की मांग करता है.


ओबामा आउटसोर्सिंग का विरोध करते रहे हैं
लेकिन अमरीका में आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी बढ़ने के बाद बराक ओबामा आउटसोर्सिंग या नौकरियों को विदेश भेजने की प्रक्रिया का कड़ा विरोध करते हैं. वो कहते हैं कि अमरीकी कंपनियाँ नौकरियों को भारत जैसे देशों में न भेजें.

आउटसोर्सिंग के ज़रिए अमरीका से बहुत सी नौकरियाँ भारत भी भेजी जाती हैं और ओबामा उन कंपनियों को टैक्स में छूट खत्म करने की बात करते हैं, जो नौकरियां अमरीका से बाहर भेजती हैं. इस मामले में वह मिट रोमनी से अधिक कड़ा रूख अपनाते हैं.

इसके अलावा अमरीका में काम करने के लिए एच1बी वीज़ा हासिल करने के मुद्दे पर भी ओबामा के दौर में आईटी और अन्य क्षेत्रों में भारतीय पेशेवरों को मुश्किलें उठानी पड़ रही हैं. ओबामा प्रशासन द्वारा एच1बी और एल1 वीज़ा की फ़ीस काफ़ी बढ़ा दी गई है.

"बराक ओबामा ने कश्मीर के मुद्दे पर बाहरी हस्तक्षेप का विरोध किया है औऱ कहा है कि इस मुद्दे समेत अन्य मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान को आपस में बातचीत जारी रखनी चाहिए."
लेकिन कई सामरिक मामलों में बराक ओबामा की नीतियां भारत के हित में नज़र आती हैं. बराक ओबामा ने कश्मीर के मुद्दे पर बाहरी हस्तक्षेप का विरोध किया है औऱ कहा है कि इस मुद्दे समेत अन्य मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान को आपस में बातचीत जारी रखनी चाहिए.

अफ़गा़निस्तान में शांति बहाली के मुद्दे पर भी बराक ओबामा भारत का अहम किरदार देखते हैं और दोनों देश इस मामले में करीबी सहयोग कर रहे हैं.

लेकिन कुछ जानकार कहते हैं कि भारत को जो सम्मान राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के ज़माने में मिला वह राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में नहीं दिया गया.

मिट रोमनी

राष्ट्रपति पद के चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी ने भारत के हवाले से खासतौर पर अपनी कोई नीति तो नहीं बयान की है, लेकिन विदेश नीति के बारे में उनकी चुनावी मुहिम ने जो बयान जारी किए हैं उनमें भारत को अमरीका का सामरिक साझेदार कहा गया है.


मिट रोमनी चीन के प्रति कड़ा रुख रखते हैं
पिछले महीने रिपब्लिकन पार्टी के चुनावी सम्मेलन में भी पार्टी की ओर से मंज़ूर किए गए प्रस्तावों में भारत को अमरीका का सामरिक और व्यापारिक मामलों में साझीदार करार दिया गया.

यही नहीं, रिपब्लिकन पार्टी के ही राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के दौर में ही भारत और अमरीका के बीच परमाणु संधि पर हस्ताक्षर हुए थे. इस करार को दोनों देशों के बीच रिश्तों को सुदृढ़ करने में अहम कदम माना जाता है.

इसके अलावा मिट रोमनी आउटसोर्सिंग के मुद्दे पर भी भारत के लिए फ़ायदेमंद रूख रखते हैं. वह अमरीका से भारत जैसे देशों में नौकरियां भेजने वाली कंपनियों को दंडित न करने में विश्वास रखते हैं.

बराक ओबामा ने मिट रोमनी पर यह आरोप भी लगाए हैं कि जब वह मैसाच्यूसेट्स राज्य के गवर्नर थे तो राज्य की कुछ सरकारी नौकरियां आउटसोर्सिंग के ज़रिए भारत भी भेजी गई थीं.

अमरीका में काम करने के लिए एच1बी वीज़ा जैसे मुद्दों पर मिट रोमनी मानते हैं कि अमरीकी आप्रवासन कानून में काफ़ी ढील होनी चाहिए जिससे विदेशों से माहिर पेशेवर अमरीका में आकर कंपनियाँ शुरू कर सकें और यहां नौकरियां पैदा हों.

"पाकिस्तान का भविष्य अनिश्चित है और इस अनिश्चितता के कारण यह खतरा बना रहेगा कि पाकिस्तान के पास मौजूद 100 के करीब परमाणु बम कहीं इस्लामी जिहादियों के हाथ न पड़ जाएं"
मिट रोमनी, रिपब्लिकन उम्मीदवार

रोमनी मानते हैं कि अमरीकी यूनिवर्सिटी से विज्ञान, गणित, और इंजीनियरिंग की उच्च डिग्री हासिल करने वाले हर विदेशी छात्र को अमरीकी ग्रीन कार्ड या स्थायी तौर पर अमरीका में रहने और काम करने की इजाज़त दी जानी चाहिए.

जानकारों का मानना है कि मिट रोमनी अगर राष्ट्रपति बन जाते हैं तो भारत के साथ सामरिक और कूटनीतिक मुद्दों जैसे कशमीर, पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान में भारतीय सहयोग जैसे मुद्दों पर बराक ओबामा की ही नीतियां जारी रखने की उम्मीद है.

मिट रोमनी एक चुनावी भाषण में कह चुके हैं, "पाकिस्तान का भविष्य अनिश्चित है और इस अनिश्चितता के कारण यह खतरा बना रहेगा कि पाकिस्तान के पास मौजूद 100 के करीब परमाणु बम कहीं इस्लामी जिहादियों के हाथ न पड़ जाएं."

इसके अलावा मिट रोमनी, जो चीन के खिलाफ़ कड़ा रूख रखते हैं, चीन की ताकत को काबू में रखने के लिए भी भारत को अहम साथी देश मानते हैं.

इस वर्ष चुनाव में अमरीका में रहने वाले बहुत से भारतीय मूल के अमरीकी लोग डेमोक्रेटिक पार्टी को समर्थन दे रहे हैं, लेकिन कुछ भारतीय अमरीकी रिपब्लिकन पार्टी की भी हिमायत कर रहे हैं.

और इनमें से अधिकतर लोग अपना समर्थन देते हुए बराक ओबामा और मिट रोमनी की भारत के प्रति नीतियों को भी ध्यान में रखते हैं.
http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2012/10/121023_international_us_plus_obama_sm.shtml


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