यह चुनाव प्रणाली किसके हक में है
धर्मेंद्रपाल सिंह
जनसत्ता 31 मई, 2014 : लोकसभा चुनाव में तीस बरस बाद किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला, अच्छी बात है। केंद्र में पहली बार अपने बूते एक गैर-कांग्रेसी दल ने सरकार बनाने का दम दिखाया है, और भी अच्छी बात है। यहां हम 1977 के चुनाव की विजेता जनता पार्टी को नहीं गिन रहे, क्योंकि वह एक दल नहीं, अनेक पार्टियों के विलय से बना गठबंधन था। लेकिन ताजा चुनाव के जश्न में डूबी जनता को निम्न तथ्यों पर भी गौर करना चाहिए। आज से पहले स्पष्ट बहुमत पाने वाली पार्टी को कभी भी चालीस फीसद से कम वोट नहीं पड़े। इस बार महज इकतीस प्रतिशत वोट पाकर भारतीय जनता पार्टी ने दो सौ बयासी सीटें जीत ली हैं।
सोलहवीं लोकसभा में दागी और करोड़पति सांसदों की संख्या में खासी वृद्धि हुई है। देश की सबसे बड़ी पंचायत में स्थान पाने वाले जनप्रतिनिधियों में बयासी प्रतिशत करोड़पति और चौंतीस फीसद दागी हैं। ये आंकड़े चौंकाते हैं। बताते हैं कि हमारी संसद का चेहरा कैसा है। अब से दस बरस पहले लोकसभा में तीस फीसद सांसद करोड़पति और चौबीस प्रतिशत आपराधिक मामलों के आरोपी थे। मतलब यह कि दस साल में करोड़पति सांसदों की संख्या में बावन प्रतिशत और दागियों की जमात में दस फीसद का इजाफा हो गया है। संकेत खतरनाक हैं।
मोदी सरकार के तीस फीसद मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं और इक्यानबे प्रतिशत करोड़पति हैं। सार्वजनिक जीवन में शुचिता की समर्थक बिरादरी को ये आंकड़े निराश करते हैं। एसोसिएशन आॅफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) ने नई सरकार के छियालीस में से चौवालीस मंत्रियों के हलफनामे का जायजा लेने के बाद उक्त जानकारी सार्वजनिक की। प्रकाश जावडेकर और निर्मला सीतारमण संसद के किसी सदन के सदस्य नहीं हैं, इस कारण उनके बारे में फिलहाल कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
एडीआर के अनुसार, चौवालीस में से आठ मंत्रियों (अठारह प्रतिशत) के विरुद्ध हत्या के प्रयास, सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने, अपहरण और चुनाव नियमों के उल्लंघन जैसे गंभीर आरोप हैं। मोदी की मंत्रिपरिषद के सदस्यों की औसत संपत्ति 13.47 करोड़ रुपए है। सबसे ज्यादा दौलत वित्तमंत्री अरुण जेटली (एक सौ तेरह करोड़ रुपए) के पास है, जबकि सबसे कम, जनजाति मामलों के मंत्री मनसुख भाई धनजीभाई वसावा (पैंसठ लाख रुपए) के पास।
संसद को देश की जनता का प्रतिबिंब माना जाता है। जब राष्ट्र की लगभग एक चौथाई आबादी कंगाल (गरीबी रेखा के नीचे) हो और तीन चौथाई से ज्यादा लोग दो जून की रोटी के लिए खटते हों, तब सांसदों की औसत संपत्ति करोड़ों में होने को क्या माना जाए? यह बात दावे से कही जा सकती है कि भारत की एक तिहाई जनता के खिलाफ पुलिस थानों में मामले दर्ज नहीं हैं। फिर क्या कारण है कि इस बार चुनाव जीतने वाले एक तिहाई से ज्यादा सांसद दागी हैं? विजयी सांसदों में से अनेक के खिलाफ तो हत्या, डकैती, अपहरण जैसे गंभीर आरोप हैं।
आम चुनाव में धनबल और बाहुबल के बढ़ते प्रभाव को मापने के लिए कुछ और बातें बताना जरूरी है। इस बार चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या में अप्रत्याशित पचास फीसद की वृद्धि हुई। 2009 में जहां 5435 उम्मीदवार खड़े हुए, वहीं 2014 में उनकी संख्या बढ़ कर 8163 हो गई; इनमें से 2208 (सत्ताईस फीसद) करोड़पति थे, जबकि जीतने वाले करोड़पतियों की संख्या बयासी प्रतिशत है। इसी प्रकार कुल 1398 (सत्रह प्रतिशत) दागियों ने चुनावी दंगल में भाग्य आजमाया, लेकिन विजयी दागियों का आंकड़ा चौंतीस फीसद रहा। इसका अर्थ यही हुआ कि धनबल और बाहुबल से चुनाव जीतने की संभावना भी बढ़ जाती है।
एडीआर के अनुसार, चुनाव में साफ-सुथरी छवि के प्रत्याशियों के मुकाबले दागियों की विजय की संभावना दुगुनी होती है। इसी प्रकार धनपतियों की अपेक्षा मामूली हैसियत वाले उम्मीदवार के हारने का आंकड़ा काफी ऊंचा है।
टिकट बांटते समय अब हर पार्टी अपने प्रत्याशी की जीत की संभावना को प्राथमिकता देती है। जीत के लिए जाति और धर्म के साथ-साथ धनबल और बाहुबल भी तोला जाता है, इसलिए ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ता अक्सर पार्टी टिकट पाने की दौड़ में पिछड़ जाते हैं। साफ-सुथरी राजनीति का दावा करने वाली देश की दोनों बड़ी पार्टियां भी दागियों और धनपतियों के मोह में बुरी तरह जकड़ी हैं। हालिया चुनाव जीतने वाले भाजपा के एक तिहाई से ज्यादा सांसद दागी हैं और उनमें से बीस फीसद के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। कांग्रेस के अठारह प्रतिशत विजयी प्रत्याशी दागी हैं और उनमें से सात फीसद के खिलाफ थानों में गंभीर अपराध से जुड़े मामले दर्ज हैं। क्षेत्रीय दलों की स्थिति तो और भी बुरी है।
राजग के शत-प्रतिशत सांसद दागी हैं, जबकि शिवसेना के अठारह में से पंद्रह और राकांपा के पांच में से चार सांसद दागी हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसद चुनने में उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र अव्वल हैं। लेकिन धनी जनप्रतिनिधि चुनने में इस बार आंध्र प्रदेश ने सबको पीछे छोड़ दिया है। वहां तेलुगू देशम, टीआरएस और वाइएसआर कांग्रेस जैसे क्षेत्रीय दलों से चुने गए सांसदों की औसत संपत्ति पचास करोड़ रुपए से अधिक है। संसद के निचले सदन में आए कांग्रेस के चौवालीस सांसदों की औसत संपत्ति सोलह करोड़ रुपए और भाजपा के टिकट पर जीते दो सौ बयासी सांसदों की ग्यारह करोड़ रुपए है।
सबसे कम संपत्ति मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (औसत उन्यासी लाख रुपए) के सांसदों की है। यहां एक और दिलचस्प तथ्य बताना जरूरी है। अध्ययन से पता चलता है कि दुबारा चुनाव लड़ने वाले सांसदों की संपत्ति में पांच साल के भीतर 289 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है जो बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों को चौंकाती है। आज किसी धंधे में इतना मुनाफा नहीं दिखता। हम यहां हलफनामे में घोषित संपत्ति का जिक्र कर रहे हैं। यह बात खुला भेद है कि हमारे ज्यादातर जनप्रतिनिधि जितनी संपत्ति घोषित करते हैं, उससे कई गुना ज्यादा अघोषित दौलत उनके पास है।
इस चुनाव की एक और विसंगति का जिक्र जरूरी है। परिणाम बताते हैं कि महज इकतीस फीसद वोट के साथ भाजपा ने स्पष्ट बहुमत पा लिया है, जबकि 19.3 प्रतिशत वोट पाने के बावजूद कांग्रेस को केवल चौवालीस सीटें मिली हैं। इन आंकड़ों की गहराई में जाएं तो पता चलता है कि भाजपा ने एक तिहाई से कम जन-समर्थन के बावजूद लोकसभा की लगभग बावन फीसद सीटों पर कब्जा कर लिया, जबकि कुल वोटों का पांचवां हिस्सा पाने के बावजूद कांग्रेस को मात्र आठ फीसद सीटें मिलीं। मौजूदा चुनाव व्यवस्था में जिस प्रत्याशी को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं वह विजयी घोषित कर दिया जाता है। कई बार जब मैदान में अनेक उम्मीदवार होते हैं तब मात्र बीस फीसद मत पाने वाला उम्मीदवार जीत जाता है।
इस दोषपूर्ण व्यवस्था को समझने के लिए कुछ और उदाहरण देना जरूरी है। ताजा चुनाव में मायावती की पार्टी बसपा ने उत्तर प्रदेश में अच्छे-खासे बीस प्रतिशत वोट पाए, लेकिन उसका एक भी सांसद नहीं चुना गया। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने साढ़े सात प्रतिशत वोट पाकर भी दो सीटें और अपना दल ने महज एक प्रतिशत वोट के साथ दो सीटें जीत लीं। भाजपा और कांग्रेस के बाद राष्ट्रीय स्तर पर बसपा 4.1 प्रतिशत वोट के साथ तीसरे नंबर की पार्टी है, लेकिन मौजूदा लोकसभा में उसका एक भी सांसद नहीं है।
ऐसी विचित्र स्थिति अन्य राज्यों में भी दोहराई गई है। तमिलनाडु में द्रमुक 23.6 फीसद वोट पाने के बावजूद एक भी सीट नहीं पा सकी। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे ने तीस प्रतिशत जन-समर्थन पाया, लेकिन उसके दो ही सांसद जीते। कांग्रेस ने मात्र 9.6 प्रतिशत वोट पाए, लेकिन उसके चार उम्मीदवार जीत गए, जबकि भाजपा 16.8 प्रतिशत वोट पाने के साथ दो सीटें जीती।
बिहार में लालू यादव की पार्टी राजद 20.1 प्रतिशत वोट पाने के बावजूद मात्र चार सीट जीत पाई, जबकि रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को महज 6.4 प्रतिशत वोट मिले और उसके छह प्रत्याशी जीते। नीतीश कुमार की पार्टी जद (एकी) 15.8 फीसद वोट पाने के बावजूद केवल दो प्रत्याशी जिताने में कामयाब रही। दिल्ली की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। यहां अरविंद केजरीवाल की पार्टी को वोट तो तैंतीस प्रतिशत मिले, लेकिन सीट एक भी नहीं मिल पाई। 44.6 प्रतिशत वोट के साथ भाजपा ने सौ फीसद (सातों) सीटें जीत लीं।
उक्त तथ्यों से पता चलता है कि हमारे लोकतंत्र की बुनियाद कितनी कमजोर हो गई है। आज चुनावी राजनीति पर धनबल और बाहुबल हावी है। आम चुनाव में खर्च की अधिकतम सीमा सत्तर लाख रुपए है, जबकि बड़े दलों के उम्मीदवार इससे पंद्रह से बीस गुना ज्यादा पैसा खर्च करते हैं। कहने को संविधान प्रत्येक नागरिक को चुनाव लड़ने का अधिकार देता है, लेकिन हकीकत में आम आदमी इस अधिकार को आजमाने की कल्पना भी नहीं कर सकता।
मौजूदा व्यवस्था में उसका काम वोट डालना भर रह गया है। चुनाव लड़ने का साहस कुछ दल और उनके असरदार नेता ही कर सकते हैं। अनुमान है कि इस चुनाव पर लगभग पचास हजार करोड़ रुपए फूंके गए, जिसका अधिकतर हिस्सा औद्योगिक घरानों से मिला। बिना कॉरपोरेट जगत के सहयोग के किसी पार्टी का चलना या चुनाव लड़ना अब लगभग असंभव हो गया है।
हमने चुनाव की जो प्रणाली अपनाई है वह सत्तारूढ़ पार्टी या बड़े दलों को ही भाती है। हमारी व्यवस्था में जो प्रत्याशी सर्वाधिक मत पाता है वह जीत जाता है। वास्तव में यह प्रणाली ही समस्त चुनावी बीमारियों की जड़ है। इसके कारण धनबल और बाहुबल को बढ़ावा मिला है और अनेक बार अच्छे-खासे वोट पाने वाली पार्टियों का एक भी उम्मीदवार संसद में नहीं पहुंच पाता है।
आज यूरोप के अधिकतर देशों में आनुपातिक चुनाव (प्रोपोरशनल रिप्रजेंटेशन) व्यवस्था लागू है। इस प्रणाली में जिस पार्टी को चुनाव में जितने प्रतिशत वोट मिलते हैं, उसके उतने ही प्रतिनिधि संसद में होते हैं। इसमें मतदान किसी प्रत्याशी के लिए नहीं, पार्टी के पक्ष में होता है। उदाहरण के लिए, चुनाव में अगर भाजपा को इकतीस, कांग्रेस को उन्नीस, बसपा को चार और वाम मोर्चे को चार प्रतिशत वोट पड़े तो इसी अनुपात में उनके सांसद चुने जाएंगे।
इस व्यवस्था को अपनाने से गलाकाट चुनावी स्पर्धा से मुक्ति मिल जाती है और धनबल और बाहुबल से जीतने वाले प्रत्याशियों पर अंकुश लग जाता है। साथ ही संसद में देश और समाज के हर तबके को उसकी संख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व मिल जाता है। धर्म और जाति की राजनीति करने वाले दल भी अंतत: निरर्थक हो जाते हैं। आशा है सरकार और समस्त दल इस प्रणाली को अपनाने पर विचार करेंगे।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta
|
Saturday, May 31, 2014
यह चुनाव प्रणाली किसके हक में है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Followers
Blog Archive
-
▼
2014
(1962)
-
▼
May
(153)
- दलित बहुजन राजनीतीं की ओर
- मैने अपने दोस्त से पूछा ! मान लिजिए /आपके बहन के स...
- संघ और मैं- फिर आमने सामने
- Status Report of state SC Commissions !!!!!!!!
- UP govt recommends CBI probe into Badaun gangrapes
- Dance of Demonocracy Anand Teltumbde
- বাংলায় বামেদের নেতা নেই,পিঠ বাঁচাতে বিজেপি ছাড়া উ...
- वाम नपुंसकता के मुकाबले बंगाल में तृणमूली संत्रास ...
- Mother Didn't Kill My Father. Investigate the Murd...
- জাতের নামে বজ্জাতি হল ক্ষমতার রাজনীতি,ধর্ম বদল হলে...
- Two teenage Dalit girls gang-raped and hanged in I...
- यह चुनाव प्रणाली किसके हक में है
- गरीबी और प्रधानमंत्री मोदी
- उत्तराखंड की चेतावनी
- सुविधा के सवाल
- Footsoldiers in Search of an Icon Subhash Gatade
- जाति मजबूत होने से हिंदुत्व मजबूत होता है जो सामाज...
- Askot aarakot abhiyan 2014 was in narayannagar on ...
- নরেন্দ্র মোদীর প্রধান মন্ত্রী রূপে রাজ-অভিষেকের পর...
- এই ভারতবর্ষে বাংলায় কথা বলা রীতিমত বিপজ্জনক।ওপার ব...
- Amnesty International India's Prisoner of Conscien...
- यह तस्वीर अगर वास्तव में हमारे देश-काल पर कोई वी...
- इसके लिए उन्होंने तीन विकल्प दिए थे- अक्षरधाम मं...
- It is the bad-eiffect of great ?Hindu mythology
- पक्के हरामजादे है हमारे मसीहा आजकल
- লাল আলো নিভলে সবুজ আলো কিন্তু জ্বলছে না,গ্রামকে শহ...
- (मज़दूर बिगुल के मई 2014 अंक में प्रकाशित लेख। अंक...
- विद्रोही व नक्षलवादी यांच्यातील सीमारेषास्पष्ट करण...
- ঝাড়খন্ডের পরে বাংলাতেও বাংলাদিশি অনুরপ্রবেশকারিরা...
- सिंगुर में भाजपा ने संभाली आंदोलन की बागडोर,वामनेत...
- भाई ~भाई मे/ कितना प्यार है /यह तब जाहिर होता है ...
- বাংলায় 2016 এর আগে কেন্দ্রীয় মন্ত্রিত্ব অবশ্যই হবে...
- कितना लोटा पानी चढेगां ? मालूम नही /पर घंटे~घङियाल...
- मसीहियत बदला लेने में नहीं बल्कि माफ़ करने में विश्...
- न सूरज डूब गया है, न अंधेरा ने सभ्यता को लील लिया ...
- रुश्दी और तस्लीमा पर हल्ला मचाने वाले नंदी पर खामो...
- न सूरज डूब गया है,न अंधेरा ने सभ्यता को लील लिया ह...
- नून / तेल /लकङी / साथियो /कितनी बङी समस्या है/इस द...
- Cong pins blame on Mossad
- ‘दलितों के पास जमीन होती तो उनका उत्पीड़न नहीं होता’
- परिदृश्य : दलित-जातिवादी राजनीति बनाम हिंदुत्व
- बदलाव नहीं बदला लेने की इच्छा
- खुशी की बात है कि अब ऐसे हमलों का शिकार लडकियां मि...
- ভারতবর্ষের ইতিহাস চর্চায়,বিশষকরে বৈদিকী সাহিত্যনিয়...
- दहकते अंगारे- दोस्त हो तो दौलतराज जैसा…
- बहुत कर चुके नमो विरोध.. अब होइए गिरफ्तार..
- पिता इल्तुतमिश के तरह/गर हर पिता सोचे कि मेरी बेटी...
- सबकुछ तो सत्ता के लिए है,जनता के लिए क्या है,फिर फ...
- ভ্রান্তিবিলাস
- मज़दूरों-मेहनतकशों के नायक को चुराने की बेशर्म ...
- 16वाँ लोकसभा चुनाव: पंचवर्षीय ख़र्चीला पूँजीवादी ज...
- केजरीवाल की आर्थिक नीति: जनता के नेता की बौद्धिक क...
- Silence: A Crime
- हम तो ई भी सुन रहे हैं कि ओबमवा बड़ा परेसान है और क...
- अभी-अभी अस्कोट आराकोट अभियान के यात्रियों को विदा ...
- इन दिनो/ हमारे आसपास फुसफुसाहट/ कुछ अधिक हो गयी है...
- न मैं ब्राह्मण बन सका और न ही वो इन्सान बनने को रा...
- वाम वापसी नहीं,कांग्रेस भी साइन बोर्ड लेकिन इस ध्र...
- हम साहित्यकार अनंतमूर्ति को हिन्दुत्ववादी गिरोह...
- Call for a neo-Dalit movement to overthrow feudali...
- An open letter to Narendra Modi Gopalkrishna Gandhi
- 22 मई 1987, मेरठ के हाशिमपूरा मोहल्ले से PAC के जव...
- 'इंकलाब एक संघर्ष' नाम और 23 हजार लाइक देख कर ही द...
- समकालीन आदिवासी कवियों को पढते हुए भी हम एक अलग अ...
- चुनाव जीतती है/महिलाये/पर परधानी करते है/मरद और इस...
- पंजाब में दलितों का पानी बन्द करने वाली पोस्ट पर...
- Those who joined NAMO train directly or indirectly...
- कृपया हिंदू राष्ट्र और कारपोरेट राज की खिलाफत का प...
- লড়াইটা তাহলে ঘাসফুল আর পদ্মে,বাম অবাম জমানা শেষ শ...
- হিন্দু রাষ্ট্র গরীবের জন্য,গরীবের জন্যেই এই কান্না...
- Modi Wins 2014 Elections: Victory of Development o...
- Silence Is Deafening, Are My Fears Unfounded? My g...
- BJP, Congress guilty of taking foreign funds: Delh...
- Documentary on Industrial accidents - Maut aur May...
- কাকে কাকে রেজ্জাক সোমনাথ বানাবেন কামরেড,লাল দুর্গে...
- किस किस को निकालोगे कामरेड,बंगाल केसरिया हुआ जाये!
- Thinking About Adam Ajmeris' In Saffron Times By S...
- Death Of A Missionary By Vidya Bhushan Rawat
- India: The Next Five Years Or More By Mukul Dube
- मोदी की जीत और मज़दूर वर्ग के लिए इसके मायने आने वा...
- কোটিপতি সাংসদরা ভুখা জনতার কি মঙ্গল করতে পারেন? পল...
- अब जनम क्या,मरण क्या,कुछ खेती की सेहत का बंदोबस्त ...
- अब जनम क्या,मरण क्या,कुछ खेती की सेहत का बंदोबस्त ...
- রাম রাজত্বে জোড়া অন্তর্জলি যাত্রা,বামপন্থা এবং বহ...
- Ambani, Adani lead group Gainers FIIs were not...
- Modi Wave Uproots BSP, SP
- How BJP Cracked Uttar Pradesh How did BJP go from ...
- Modi's Magical Brandobast
- Modi to be the Only Sarkar in New Govt
- SENSEX RISES 1470 PTS, BUT FALLS 1200 ON PROFIT-BO...
- हत्यारे को अब हत्यारा मत कहना क्योंकि भीड़ ने उसकी...
- आदरणीय येचुरी जी/करात साहब/बर्धन जी/एक्स-वाई-ज़ेड ज...
- प्रगतिशीलता और वाम को केवल साम्प्रदायिकता विरोध पर...
- Bihar chief minister Nitish Kumar resigns
- Defiance to a 'victorious' Mass Murderer. Photos f...
- Ambani Raj All the Way! Palash Biswas
- How Modi can transform economy in 6 months
- How Amit Shah swept Uttar Pradesh for BJP
- Live: Modi in Delhi
- म्हारा देश केसरिया, संघरामराज आयो! लेकिन हम लड़ेंग...
-
▼
May
(153)
No comments:
Post a Comment