सुविधा के सवाल
सर्वप्रिया सांगवान
जनसत्ता 31 मई, 2014 : कई लोगों के लिए यह हैरानी का विषय था जब स्मृति ईरानी को केंद्रीय मंत्री बनाया गया। जब से भाजपा सत्ता में आई है और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तभी से कई विरोधाभास देखने को मिल रहे हैं। लेकिन फिलहाल स्मृति ईरानी की शिक्षा सोशल मीडिया पर लोगों के लिए बहस का मुद्दा बनी हुई है। विरोध करने वाले और पक्ष में अपनी राय रखने वाले, दोनों ही अपनी बातों में आमतौर पर कुतर्कों का सहारा ले रहे हैं। सवाल है कि क्या यह तर्क पर्याप्त है कि कुछ महान लोग पढ़े-लिखे नहीं थे, पर उन्होंने महान काम किए? और उन्होंने महान कार्य किए तो क्या यह दलील काफी है कि अगर आप पढ़े-लिखे नहीं हैं तो भी चलेगा? तब फिर क्या सारे साक्षरता अभियान खत्म कर दिए जाएं इसी तर्क पर! इस हिसाब से आप अपना शिक्षा से संबंधित हलफनामा कहीं भी जमा नहीं करवाइए। इसकी जरूरत क्या है कॉलेज में दाखिला लेने के लिए भी? लेकिन ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि यह एक ‘फिल्टर’ की तरह काम करता है। भारत की शिक्षा पद्धति की खामी ही यही है कि आप किसी के बौद्धिक स्तर या उसकी समझ को उसकी डिग्री या उसके नंबरों से नहीं आंक सकते। देखते हैं कि स्मृति ईरानी इस पद्धति में कितना अंतर ला पाएंगी। वे मंत्री हैं। सच यह है कि उन्हें जनता ने कभी सांसद बनने या अपना प्रतिनिधित्व करने के लायक मत नहीं दिया। लेकिन प्रधानमंत्री ने उन्हें देश के मानव संसाधन मंत्री के तौर पर चुना है।
अब मुझे कहीं भी ‘लोकतंत्र’ या ‘बहुमत के फैसले’ का हवाला देने वाले लोगों की आवाजें नहीं सुनाई दे रहीं। मुझे मेरे मित्र नितिन की कही हुई बात याद आ रही है कि यह लोकतंत्र नहीं, ‘लोकतांत्रिकनुमा सिस्टम’ है। हमने मनमोहन सिंह को नहीं चुना था, उन्हें सोनिया गांधी ने चुना था। हमने सोनिया गांधी को भी कांग्रेस की अध्यक्ष के रूप में नहीं चुना था, जो सरकार के फैसलों पर मुहर लगाती रहीं। यही सिलसिला जारी है, बदली हुई सरकार में भी! लेकिन स्मृति ईरानी को ही क्यों घेरा जा रहा है शिक्षा के मसले पर? क्या भारत की राजनीति में ऐसे उदाहरण और नहीं हैं? कितने ही सांसद हैं जिन्हें जनता ने चुना है, उनकी शिक्षा और यहां तक कि तमीज का स्तर देखे बिना! क्या ताजा विवाद का कारण यह है कि वे महिला हैं? हो सकता है। उनकी पृष्ठभूमि एक मॉडल की है। कुछ समय पहले कांग्रेस के एक नेता संजय निरुपम एक टीवी चैनल पर बहस के दौरान स्मृति ईरानी की पृष्ठभूमि को कर छिछली टिप्पणी कर चुके हैं। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर उनकी शैक्षिक डिग्री को लेकर सवाल खड़े करते रहे हैं। यहां तक कि उनकी पृष्ठभूमि और वे क्या काम करती थीं, इस मसले को भी वक्त-बेवक्त उछाला जाता रहा है।
लेकिन क्या यह लोगों के तर्कों का ही मसला है? एडीआर संस्था की वेबसाइट पर लोकसभा चुनाव 2004 के आंकड़ों को आप खंगालेंगे तो पाएंगे कि स्मृति ईरानी स्नातक, यानी बीए हैं। उन्होंने यही हलफनामा दिया है। लेकिन 2014 चुनावों के हलफनामे के अनुसार स्मृति ईरानी स्नातक नहीं हैं। उन्होंने वाणिज्य से स्नातक, यानी बीकॉम में पढ़ाई की है जो कि कोई डिग्री नहीं है और इसे वहां लिखे जाने की भी जरूरत नहीं थी। क्या यह फर्जीवाड़ा नहीं है? क्या मंत्री के नीतियों के चुनाव को आप इस बात का संज्ञान लेकर नहीं देखेंगे?
एक समय था जब स्मृति ईरानी धरने पर बैठी थीं और नरेंद्र मोदी का इस्तीफा मांग रही थीं। लेकिन बाद में पार्टी के दबाव के कारण उन्होंने धरना खत्म कर दिया था। तब तक कोई अदालत का फैसला नहीं आया था। मीडिया में जितना प्रचार चाहिए था, वह मिल गया था। लेकिन फिर राजनीतिक भविष्य बचाए रखने के लिए पलटी मार दी थी। आज के समय में इसे ‘ड्रामा’ कहा जाता है। तब इसे ‘धरना’ कहा जाता था। मध्यवर्ग इस मुद्दे को उछालता रहा है कि निरक्षर और कम पढ़े-लिखे लोग क्यों हमारे देश को चला रहे हैं। मुझे जनता के सोच पर अब ज्यादा भरोसा नहीं रहा, क्योंकि अगर नरेंद्र मोदी सचिन तेंदुलकर को मंत्री बना देते तो उनकी शिक्षा के बारे में नहीं पूछा जाता। किस मंत्रालय के लायक हैं या नहीं, यह भी नहीं पूछा जाता।नजरिए को अच्छे और बुरे की श्रेणी में मत बांटिए, क्योंकि नजरिया सिर्फ अच्छा या बुरा नहीं होता। यह किसी के लिए अच्छा और किसी के लिए बुरा होता है। यह तो आप देख ही रहे होंगे!
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