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Saturday, May 31, 2014

दलित बहुजन राजनीतीं की ओर

मसीहियत बदला लेने में नहीं बल्कि माफ़ करने में विश्वास करती है, इसलिए तुम भी उन्हें माफ़ कर दो

हिन्दू तालिबान -26

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दलित बहुजन राजनीतीं की ओर
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दलित सेना से निकाले जाने के बाद मेरे लिए अगला स्वाभाविक ठिकाना बहुजन समाज पार्टी और उस जैसी सोच रखने वाले संस्था ,संगठन थे ,मैं अपने आपको अब वैचारिक रूप से इन्हीं के करीब पाता था ,मैंने सोच रखा था कि किसी दिन अगर मैं सक्रीय राजनीती का हिस्सा बनूँगा तो उसकी शुरुआत बसपा से ही होगी ,बसपा उन दिनों मेरे लिए एक सामाजिक आन्दोलन थी ,मेरे एक मित्र आर पी जलथुरिया के घर बहुजन संगठक नामक अख़बार आता था ,मैं उसे नियमित रूप से पढता था ,बसपा सुप्रीमों मान्यवर कांशी राम के प्रति मन में बहुत अधिक सम्मान भी था ,उनके द्वारा सोयी हुयी दलित कौमों को जगाने के लिए किये जा रहे प्रयासों का मैं प्रशंसक और समर्थक था, तिलक तराजू और तलवार को जूते मारने की बात मुझे अपील करती थी. उस वक़्त का मीडिया आज जितना ही दलित विरोधी था ,मान्यवर मीडिया के इस चरित्र का बहुत ही सटीक और सरल विश्लेषण करते हुए कहते थे कि मीडिया कभी भी बहुजन समर्थक नहीं हो सकता है ,उसमे बनिए का पैसा और ब्राहमण का दिमाग लगा हुआ है ,अगर हम देखें तो हालात अब भी जस के तस ही है ,अभी भी अधिकांश मीडिया हाउस के मालिक वैश्य है और संपादक ब्राह्मण .
कांशीराम को तत्कालीन मीडिया अक्सर एक अवसरवादी और जातिवादी नेता के रूप में पेश करता था ,अवसरवाद पर बोलते हुए उन्होंने एक बार कहा था - हाँ मैं अवसरवादी हूँ और अवसर ना मिले तो मैं अवसर बना लेता हूँ समाज के हित में .....और वाकई उन्होंने बहुजनों के लिए खूब सारे मौके बनाये ,उनके द्वारा दिए गए नारों ने उन दिनों काफी हलचल मचा रखीथी ,मनुवाद को उन्होंने जमकर कोसा ,जयपुर में हाईकोर्ट में खड़े मनु की मूर्ति को हटाने के लिए भी उन्होंने अम्बेडकर सर्कल पर बड़ी मीटिंग की ,हम भीलवाडा से पूरी बस भर कर लोग लाये ,मान्यवर की पुस्तक 'चमचा युग ' भी पढ़ी ,उसमे चमचों के विभिन्न प्रकार पढ़ कर आनंद आया, चमचों का ऐसा वर्गीकरण शायद ही किसी और ने किया होगा ,वाकई कांशीराम का कोई मुकाबला नहीं था .बाबा साहब आंबेडकर के बाद उन्होंने जितना किया ,उसका आधा भी बहन कुमारी कर पाती तो तस्वीर आज जितनी निराशाजनक तो शायद नहीं होती ,पर दलित की बेटी दौलत की बेटी बनने के चक्कर में मिशन को ही भुला बैठी ...
मुझे मान्यवर से 5 बार मिलने का अवसर मिला ,उनकी सादगी और समझाने के तरीके ने मुझे प्रभावित किया ,वे जैसे थे ,बस वैसे ही थे ,उनका कोई और चेहरा नहीं था ,तड़क भड़क से दूर ,मीडिया की छपासलिप्सुता से अलग ,लोगों के बीच जा कर अपनी बात को समझाने का उनका श्रमसाध्य कार्य मेरी नज़र में वन्दनीय था ,मैं उनकी बातों और नारों का तो दीवाना ही था ,ठाकुर ब्राहमण बनिया को छोड़ कर सबको कमेरा बताना और इन्हें लुटेरा बताने का साहस वो ही कर सकते थे ,ये मान्यवर कांशीराम ही थे जिन्होंने कांग्रेस को सांपनाथ ,भाजपा को नागनाथ ,जनता दल को सपोला और वामपंथियों को हरी घास के हरे सांप निरुपित किया था ,बसपा सपा गठबंधन सरकार के शपथ ग्रहण के वक़्त लगा नारा -' मिले मुलायम कांशीराम,भाड में जाये जय श्रीराम ' उस वक़्त जितना जरुरी था , आज भी उसकी उतनी ही या उससे भी अधिक जरुरत महसूस होती है .
चूँकि मेरा प्रारम्भिक प्रशिक्षण संघी कट्टरपंथी विचारधारा के साथ हुआ इसलिए चरमपंथी विचारधारा मुझे तुरंत लुभा लेती थी ,उदारवादी और गांधीवादी टाइप के अम्बेडकरवादियों से मुझे कभी प्रेम नहीं रहा ,समरसता ,समन्वयन और भाईचारे की फर्जी बातों पर मेरा ज्यादा यकीन वैसे भी नहीं था ,इसलिए मान्यवर जैसे खरी खरी कहने वाले व्यक्ति को पसंद करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं थी ,एक और बात जो उनकी मुझे पसंद आती थी वो यह थी कि वे कभी किसी की चमचागिरी नहीं करते दिखाई पड़े ,याचक सा भाव नहीं ,बहुजनों को हुक्मरान बनाने की ललक और उसके लिए जीवन भर का समर्पण ..इसलिए मैं सदैव ही कांशीराम को पसंद करता रहा और आज भी अपनी सम्पूर्ण चेतना के साथ उन्हें आदर देता हूँ .
मेरी उनसे आखिरी मुलाकात चित्तोडगढ के डाक बंगले में हुयी ,वे गाड़िया लोहारों के सम्मलेन को संबोधित करने आये थे ,उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूँ की राजस्थान में कोई मेघवाल मुख्यमंत्री बने ,मैं उन्हें राजा बनाने आया हूँ ,लेकिन मान्यवर की इस इच्छा को परवान चढाने के लिए बसपा कभी उत्सुक नहीं नज़र आई ,जो लीडरशिप इस समुदाय से उभरी शिवदान मेघ ,भोजराज सोलंकी अथवा धरमपाल कटारिया के रूप में ,उसे भी किसी न किसी बहाने बेहद निर्ममता से ख़तम कर दिया गया ,मैंने देखा कि ज्यादातर प्रदेश प्रभारी बहन जी उतरप्रदेश से ही भेजती है ,जिनका कुल जमा काम राजस्थान से पार्टी फण्ड ,चुनाव सहयोग और बहन जी के बर्थ डे के नाम पर चंदा इकट्ठा करना रहता है .,
जब तक मान्यवर कांशीराम जिंदा और सक्रिय रहे, तब तक बसपा एक सामाजिक चेतना का आन्दोलन थी ,उसके बाद वह जेबकतरों की पार्टी में तब्दील होने लगी ,जिधर नज़र दौड़ाओ उधर ही लुटेरे लोग आ बैठे ,बातें विचारधारा तथा मिशन की ..और काम शुद्ध रूप से लूट- पाट ,सेक्टर प्रभारी से लेकर बहनजी तक जेब गरम ही बसपा का ख़ास धरम हो गया ,धन की इस वेगवान धारा में विचारधारा कब बह कर कहाँ जा गिरी ,किसी को मालूम तक नहीं पड़ा ,आज भी यह प्रश्न अनुतरित है कि बसपा नमक विचारधारा का आखिर हुआ क्या ?
तिलक तराजू और तलवार को चार चार जूते मारने वाले उन्हीं तिलकधारियों के जूते और तलुवे चाटने लग गए ,बसपा का हाथी अब मिश्रा जी का गणेश था ,मनुवाद को कोसने वाले अब ब्राहमण भाईचारा सम्मेलनों में शंखनाद कर रहे थे और पूरा बहुजन समाज बहनजी की इस कारस्तानी को सामाजिक अभियांत्रिकी समझ कर ढपोरशंख बना मूक दर्शक बना हुआ था ,किसी की मजाल जो दलित समाज की नयी नवेली इस तानाशाह के खिलाफ सवाल उठाने की हिम्मत करता ?बसपा अब द्विजों को जनेऊ बांटने का गोरखधंधा भी करने लगी थी ,दलितों को बिकाऊ नहीं टिकाऊ होने की नसीहत देने वाली पार्टी के चुनावी टिकट सब्जी मंडी के बैगनों की भांति खुले आम बिकने लगे ,पैसा इकट्ठा करना ही महानतम लक्ष्य बन चुका था ,बर्थ डे केक ,माथे पर सोने का ताज़ और लाखों रुपए की माला पहन कर बहनजी मायावती से मालावती बन बैठी ,बहुजन समाज स्वयं को ठगा सा महसूस करने लगा ,सामाजिक परिवर्तन के एक जन आन्दोलन का ऐसा वैचारिक पतन इतिहास में दुर्लभ ही है ,मैं जिस उम्मीद के साथ बसपा में सक्रिय हुआ ,वैसा कोई काम वहां था ही नहीं ,वहां कोई किसी की नहीं सुनता है ,बहन जी तो कथित भगवानों की ही भांति अत्यंत दुर्लभ हस्ती है ,कभी कभार पार्टी मीटिंगों में दर्शन देती ,जहाँ सिर्फ वो कुर्सी पर बिराजमान होती और तमाम बहुजन कार्यकर्ता उनके चरणों में बैठ कर धन्य महसूस करते ,बसपा जैसी पार्टी में चरण स्पर्श जैसी ब्राह्मणवादी क्रिया नीचे से ऊपर तक बेहद पसंद की जाती है ,जो जो चरनागत हुए वो आज तक बहन जी के शरानागत है ,शेष का क्या हाल हुआ ,उससे हर कोई अवगत है ,जो भी बहन जी को चमकता सितारा लगा ,उसकी शामत आ गयी ,बोरिया बिस्तर बन्ध गए ,सोचने समझने की जुर्रत करने वाले लोग गद्दार कहे जा कर मिशनद्रोही घोषित किये गए और उन्हें निकाल बाहर किया गया ,हालत इतने बदतर हुए कि हजारों जातियों को एकजुट करके बनी 'बहुजन समाज पार्टी ' सिर्फ 'ब्राहण चमार पार्टी ' बन कर रह गयी ,
मान्यवर कांशीराम रहस्यमय मौत मर गए और धीरे धीरे बसपा भी अपनी मौत मरने लगी ,उसका मरना जारी है ..सामाजिक चेतना के एक आन्दोलन का इस तरह मरना निसंदेह दुख का विषय है पर किया ही क्या जा सकता है ,जहाँ आलोचना को दुश्मनी माना जाता हो और कार्यकर्ता को पैसा उगाहने की मशीन ,वहां विचार की बात करना ही बेमानी है ,मैं बसपा का सदस्य तो रहा और मान्यवर ने मुझे राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए भी नामित किया ,लेकिन मैं कभी भी आचरण से बसपाई नहीं हो पाया ,मुझमे वो क्षमता ही नहीं थी ,यहाँ भी लीडर नहीं डीलर ही चाहिए थे ,जिन कारणों ने पासवान जी से पिंड छुड्वाया ,वे ही कारण बहनजी से दूर जाने का कारण बने ,दरअसल जिस दिन कांशीराम मरे ,उस दिन ही समाज परिवर्तन का बसपा नामक आन्दोलन भी मर गया ,मेरे जैसे सैंकड़ो साथियों के सपने भी मर गए ,उस दिन के बाद ना मुझे बसपा से प्यार रहा और ना ही नफरत .................( जारी )
- भंवर मेघवंशी 
आत्मकथा ' हिन्दू तालिबान ' का छब्बीसवा सर्ग

मैने अपने दोस्त से पूछा ! मान लिजिए /आपके बहन के साथ /सामुहिक बलात्कार हुआ है तो आप क्या करेगे? दोस्त ने छूटते ही कहा/मै बलात्कारियो को धन्यवाद दूगाँ/क्यो कि / आज बलात्कार /नैतिक बल है/कही कुछ भी करो /डरो नही /आपकेसाथ पुलिस दल है~


मैने अपने दोस्त से पूछा ! मान लिजिए /आपके बहन के साथ /सामुहिक बलात्कार हुआ है तो आप क्या करेगे? दोस्त ने छूटते ही कहा/मै बलात्कारियो को धन्यवाद दूगाँ/क्यो कि / आज बलात्कार /नैतिक बल है/कही कुछ भी करो /डरो नही /आपकेसाथ पुलिस दल है~


May 29 
 

ये तस्वीर किसी तालिबानी इलाके की नहीं जनाब, ये अपने हिन्दुस्तान की है। जिसे देखकर आप भी ये सोचने के लिए मजबूर हो जाएंगे कि क्या वाकई ये हिन्दुस्तान ही है। जानिए कैसे गैंगरेप के बाद पेड़ से टांग दी गईं नाबालिग बहनें...

http://www.bhaskar.com/article/UP-sisters-killed-after-alleged-gang-rape-in-up-bjp-slams-sp-government-4629355-NOR.html

धारा 370 के बारे में कई भ्रांतियां हैं, एक भ्रांति दूसरे राज्य के नागरिकों द्वारा कश्मीर में जमीन नहीं खरीदने के बारे में भी है. ऐसा लगता है कि यह प्रावधान कश्मीरी अलगाववादियों की देन है, मगर हकीकत में यह प्रावधान 1846 से ही लागू है, जब डोगरा राजा गुलाब सिंह ने अंग्रेजों से 75 लाख में कश्मीर को खरीदा था. राजा की शर्त थी कि जब सारा कश्मीर हमारा है तो बाहरी यहां जमीन क्यों खरीदे. बाद में संविधान सभा ने धारा 370 में इसे इस वजह से शामिल कर लिया कि कश्मीर जैसे खूबसूरत राज्य में जितनी कम भीड़ हो उतना अच्छा है. यह खास तौर पर नेहरू जी की सलाह थी, जिनका गृह राज्य कश्मीर है.

आप दोनों वक़्त पेट भरकर खाना खाते होंगे, दुनिया में बहुत से ऐसे बच्चे हैं जो एक वक़्त खाना खाकर भी पेट नहीं भर पाते!

कृपया खाना बरबाद ना करें, ये कोई एक पेट भरने के काम आ सकता है! — with Yash Bairagi and 48 others.
Unlike ·  · 
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संघ और मैं- फिर आमने सामने

संघ और मैं- फिर आमने सामने
भंवर मेघवंशी की आत्मकथा 'हिन्दू तालिबान'

संघ और मैं- फिर आमने सामने


हिन्दू तालिबान-29

भंवर मेघवंशी

इस दौरान भले ही दलित बहुजन राजनीति और विचारधारा के लिये अलग अलग प्रयास मैंने किये लेकिन साम्प्रदायिकता से संघर्ष के मिशन को कभी भी आँखों से ओझल नहीं होने दिया। जब ओडिशा में फादर ग्राहम स्टेंस और उनके दो मासूम बच्चों को संघी विचार से प्रभावित दारा सिंह नामक दुर्दान्त दरिन्दे ने जिन्दा जला दिया तब हमने भीलवाड़ा में उसके खिलाफ में हस्ताक्षर अभियान चलाया, प्रेस में ख़बर दी, हमारी उग्र भाषा को कभी भी स्थानीय मीडिया ने पसंद नहीं किया, लेकिन हमने अपनी बात को उतनी ही धारदार तरीके से कहना जारी रखा, लिख लिख कर तथा गाँव गाँव जाकर संघ परिवार को बेनकाब करना और दलित एवं आदिवासी युवकों को संगठित करना हमारा प्रमुख कार्य था।

संघ के निचले स्तर के लोग अक्सर निम्न स्तर पर उतर आते थे। गाँव में आमने सामने हो जाते, बहस करते और मारपीट करने, हाथ पांव तोड़ देने की गीदड़ भभकियाँ देते, पर मैंने कभी इनकी परवाह नहीं की। मेरे मन में सदैव से ही एक बात रची बसी हुई है कि अगर मेरे हाथ पांव टूटने है तो टूटेंगे ही, चाहे हिन्दू हुडदंगियों के हाथों टूटे या दुर्घटना में …और अगर ये नहीं होना है तो कोई भी कितनी भी कोशिश कर ले वह सफल नहीं हो सकते हैं। रही बात मरने की तो उसकी भी सदैव तैयारी है। मैं किसी अस्पताल में खांसते हुए मरने का इच्छुक कभी नहीं रहा। मौत जिन्दगी का अंतिम सत्य है, उसे जब आना है, आये, स्वागत है। बस ऐसी ही भावना के साथ स्वयं को निर्भय रहने का हौसला देते हुये हर रोज जीता हूँ, इसलिये जब अकेले संघर्ष शुरू किया तब भी संघी फौज से कभी नहीं डरा और आज हजारों साथी है, तब भी कोई डर नहीं। मैं सदैव ही जमीनी स्तर पर उनसे दो दो हाथ करने का इच्छुक रहा हूँ और आज हूँ। इसीलिये सदैव ही संघ के विषाक्त विचारों और मारक क्रियाकलापों को बेनकाब करने के काम को मैंने जारी रखा। बाद में जब मैं राजकीय पाठशाला में बतौर शिक्षक नियुक्त हुआ, तब यह लड़ाई और सघन हो गई क्योंकि हिंदी पट्टी के प्राथिमक शिक्षकों को तो आरएसएस ने जकड़ ही रखा है।

जब मुझे शिक्षक प्रशिक्षण हेतु मांडल बुलाया गया तब मैंने सोचा कि अब से थोडा शांत रहूँगा, अपने काम से मतलब रखूँगा, नेतागिरी नहीं करूँगा, सिर्फ शिक्षण के अपने दायित्व को निभाऊंगा। यही सोच कर 30 दिवसीय इस प्रशिक्षण में मैं पहुंचा। जून 1999 की बात थी, जाते ही पहली भिड़न्त हो गई प्रार्थना सभा से भी पहले। हुआ यह कि तिलक लगा कर स्वागत किया जा रहा ।था प्रशिक्षनार्थियों का वैसे राजस्थान में पगड़ी और तिलक से सम्मान किये जाने की सामाजिक परम्परा है। लेकिन मुझे इस तिलक से वैचारिक द्वन्द् पैदा हो गया। आप अपने घर में कुछ भी करो लेकिन सार्वजनिक आयोजनों में तिलक विलक क्यों ? इसलिये सरकारी शिक्षकों के प्रशिक्षण में तिलक लगाने पर मैंने सवाल खड़ा कर दिया। मेरी बात का कुछ मुस्लिम व दलित साथियों ने भी समर्थन किया। हमने कहा हम नहीं लगायेंगे तिलक। दक्ष प्रक्षिशकों को तो बड़ा आश्चर्य हुआ कि सरस्वती के मंदिर में ऐसे उज्जड गंवार किस्म के लोग कहाँ से आ गये ?

तिलक हमें नहीं लगवाना था, नहीं लगवाया। फिर ' वीणावादिनी वर दे' प्रार्थना हुई। मैंने कहा 'तू ही राम है तू रहीम है, तू करीम,कृष्ण, खुदा हुआ, तू ही वाहे गुरु, तू ही यीशु मसीह,हर नाम में तू समा रहा' की प्रार्थना क्यूँ नहीं ? यह सर्वधर्म की प्रार्थना है, वीणावादिनी हमें क्या वर देगी ? उसने कौन सी किताब या मंत्र अथवा श्लोक रचा है, विद्या की देवी तो शायद खुद ही अनपढ़ थी, वो हमें क्या वरदान दे सकती है। भाई, मेरा इतना कहना था कि जो प्रतिक्रिया हुयी उससे एक बारगी तो यह लगा की शायद मुझ से कोई काफिराना हरकत हो गई है। शिविराधिकारी की त्योरियां चढ़ गईं। उनका गुस्सा देखते ही बनता था, गजब तो तब हुआ जब मैंने "चन्दन है इस देश की माटी, तपो भूमि हर ग्राम है- हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है" गाने से साफ़ इंकार करते हुए उन्हें कहा कि ये संघ की शाखा नहीं है कि आप आरएसएस के गीत हमे गवावो। हम शिक्षक प्रशिक्षण हेतु आये हैं तथा आप की शैक्षणिक योजना व मोड्यूल में वर्णित गीत प्रार्थना ही हम से गवाई जाये तो बेहतर होगा, नहीं तो शिकायत ऊपर की जायेगी।

इस प्रतिरोध से ये हुआ कि जप माला छापा तिलक नदारद, सर्वधर्म प्रार्थना शुरू हुई और संघ के गीत गाने बंद किये गये, लेकिन मैं निशाने पर आ गया। मेरे दस्तावेज खंगाले गये। इधर-उधर से पूछ ताछ की गई कि यह बदतमीज लड़का कौन है जो प्रशिक्षण शिविर के अनुशासन को भंग कर रहा है। शिविराधिकारी एवं दक्ष प्रशिक्षकों के मध्य लम्बी मंत्रणा चली। मुझे बुलाकर पूछा गया- नेतागिरी करने आये हो या प्रशिक्षण लेने ? ऐसे नहीं चल सकता। मैंने उन्हें अपना विस्तृत परिचय दिया और स्पष्ट किया कि आप चाहे तो मुझे आज ही घर भेज सकते हैं मगर मैं इस प्रशिक्षण को संघ की शाखा नहीं बनने दूंगा। आप सब की शिकायत की जाएगी। मीडिया तक भी बात जायेगी। बेचारे दक्ष प्रशिक्षक डर गये। अंततः हमारे बीच समझौता हो गया, ना वे संघ समर्थक कोई बात, गीत या नारा लगायेंगे और ना मैं उनके विरोध में लोगों को उकसाऊंगा। लेकिन इस घटना से मेरी नेतागिरी यहाँ भी चालू हो गई। बाद में दो शैक्षणिक सत्रों तक मैंने प्राथमिक शाला शिक्षकों के मध्य जम कर नेतागिरी की। हम 99 लोगों का एक बैच था, उनके जरिये में मांडल तहसील के गाँव गाँव तक पहुंचा और अन्तत: हम 7 शिक्षक मित्रों ने मिलकर साम्प्रदायिकता, जातिवाद और भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनवरी 2001 से एक मासिक पत्रिका "डायमंड इंडिया" का प्रकाशन प्रारंभ किया, जिसे भारत को हीरा बनाने की एक पंथनिरपेक्ष पहल के रूप में, सर्वत्र सराहना मिली। लेकिन प्रशंसा ज्यादा टिकती नहीं है, जैसे ही डायमंड इंडिया के जरिये सच्चाई लिखी जाने लगी, जातिवादी, साम्प्रदायिक और भ्रष्ट तत्वों ने मिलकर हमारी मुखालफत शुरू कर दी। इस विरोध में संघ से जुड़े और बरसों से मेरे से चिढ़े हुए लोग सबसे आगे थे, और इस तरह एक बार फिर संघ और मैं आमने सामने हो गये थे। लड़ाई लड़ने का आनंद ही अब आने वाला था ….(जारी….)

-भंवर मेघवंशी की आत्मकथा 'हिन्दू तालिबान' का उन्तीसवां पाठ

About The Author

भंवर मेघवंशी, लेखक स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

इन्हें भी पढ़ना न भूलें

- See more at: http://www.hastakshep.com/hindi-literature/book-excerpts/2014/05/31/%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%98-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%82-%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%b0-%e0%a4%86%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%87#.U4pOOnI70rs

Status Report of state SC Commissions !!!!!!!!

Status Report of state SC Commissions !!!!!!!!
At this juncture of time when lot of discussion and debate on atrocity against Dalits is going on due to recent gang rape & murder of two Dalit girls in Badaun (UP), it become important that we have to look in to the status of state commissions of scheduled caste .

A status report on state commissions of scheduled caste has been released by PACS-India & PRIA (Society for Participatory Research In Asia), India, N Delhi.

Please see these video documented by PMARC ! :

Status of State Commissions- Dr Alok Pandey

https://www.youtube.com/watch?v=_3Z7uD7cTjU

 

We are Watch Dog's

https://www.youtube.com/watch?v=JhRChNYVOrA&list=UUHvoAhfbMy7MklsByHdMcHw

 

Violence of Dalit Human Rights Dr Narendr Kumar

https://www.youtube.com/watch?v=EJVAkj_AajE&list=UUHvoAhfbMy7MklsByHdMcHw

 

Toothless Tigers-Vidyanad Vikal

https://www.youtube.com/watch?v=DwoykX1XUjo&list=UUHvoAhfbMy7MklsByHdMcHw

 

Question Hour 1st Session-2nd Day 14.02.20104

https://www.youtube.com/watch?v=3vILi66AyWo&list=UUHvoAhfbMy7MklsByHdMcHw

 

Way Forward- Paul Diwakar

https://www.youtube.com/watch?v=vMf_YqhV2eI&list=UUHvoAhfbMy7MklsByHdMcHw


Warm Regards !

ARUN KHOTE
PMARC

UP govt recommends CBI probe into Badaun gangrapes

Dalits Media Watch
News Updates 31.05.14

UP govt recommends CBI probe into Badaun gangrapes - The Hindu
Tsundur Case: HC Verdict to be Challenged in Apex Court - The Indian Express
No SC, ST takers for XLRI course on entrepreneurship - The Times Of India
MUKTSAR VILLAGE RAPE CASE - The Tribune
Police crackdown fails to deter protesting villagers

The Hindu
UP govt recommends CBI probe into Badaun gangrapes

PTI
Under attack from Opposition parties, Uttar Pradesh Chief Minister Akhilesh Yadav on Saturday decided to recommend a CBI probe into the gangrape and murder of two dalit sisters in Badaun.
“The Chief Minister has decided to recommend a CBI probe into Badaun incident as demanded by family members of the victims,” an official release said here.

“The formalities in this regard will be completed soon,” it added.

The family of two murdered teenage girls had demanded a CBI probe into the incident saying they had no faith in local police which was “hand in glove” with the accused.

Congress leader Rahul Gandhi, who visited the village of the two dalit sisters on Saturday, also supported the family’s demand for a CBI probe.

A team of National Commission for Women (NCW) had also faulted the local police.

The Chief Minister had on Friday ordered constitution of a fast track court to ensure justice to the victims’ family and announced a compensation of Rs five lakh each to them.

BSP supremo Mayawati too had pressed for a CBI probe in the matter while demanding of imposition of President’s rule in the State over alleged failure of the Samajwadi Party Government to maintain law and order.

Union Women and Child Welfare Minister Maneka Gandhi had on Friday said that if the family members of the girls wanted, she would recommend a CBI probe into the incident.

The two teenage dalit sisters, who were cousins aged 14 and 15 years, were allegedly gangraped and murderd with their bodies found hanging from a mango tree in Katra village.

The girls went missing on May 27 and their bodies were found hanging on May 28.

All the five named in the FIR including constables Sarvesh Yadav, Chhatrapal Yadav and three brothers Pappu Yadav, Awadhesh Yadav and Urvesh Yadav have been arrested. The FIR was registered against seven including two unnamed.

While services of Sarvesh and Chhatrapal have been terminated, sub—inspector Ram Vilas Yadav had been suspended.

The Indian Express
Tsundur Case: HC Verdict to be Challenged in Apex Court

By Express News Service
HYDERABAD: To bring the atrocities committed on Dalits and marginalised communities to the fore, civil society and political parties should jointly build a nationwide movement, CPM Politburo member BV Raghavulu has said.

Speaking at a ‘maha dharna’ organised by the Struggle Committee for Justice to Tsunduru Dalits at Indira Park here on Friday, the CPM leader took exception to the High Court’s verdict acquitting the 21 accused in the case. Judgments such as those would not augur well for a democratic country like India, he said.

CPI former state secretary K Narayana said there was enough circumstantial evidence to prove the guilt of the accused.

Struggle Committee chairman Bojja Tarakam said that a dharna would be staged outside the collector’s office in every district in the state on June 16 to protest against the “undemocratic” judgment delivered by the High Court.

The HC verdict would be challenged in the SC after the summer vacation, he announced.

The Times Of India
No SC, ST takers for XLRI course on entrepreneurship

B Sridhar,TNN | May 26, 2014, 12.01 PM IST

JAMSHEDPUR: Three years have passed since the launch of the ambitious entrepreneurship development module at XLRI School of Business and Human Resources to promote first generation entrepreneurial talents of the Scheduled Caste (SC) and Scheduled Tribe (ST) community. Despite the best efforts of the business cradle, the response to the course has been unimpressive so far.

"The institute had made special arrangements to attract ST and SC students in a bid to encourage them to become first-generation entrepreneurs. But we have failed to find even three students from each of the respective communities so far," said Prabal K Sen, chairperson, EDC.

The B-school has approached the state government and a few voluntary groups to help spread word about the benefits of the Entrepreneurship Development Centre (EDC) course to the weaker sections of society with special emphasis on SC and ST communities.

In the 60 seats module, 50% of the seats are reserved for local students. The response of general and OBC category students is encouraging, but the response of students from the ST and SCcategory has been far from encouraging. "Lack of awareness about the ongoing entrepreneurship course and difficulty in arranging capital for pursing the programme have been identified as the main reasons behind the poor response of the target communities)," explained Sen.

In a bid to enlighten the prospective EDC students, particularly SC/ST candidates who cannot avail of bank loans, the cradle has announced to further strengthen the course on banking policy for the 2014 EDC batch.

"Students will be familiarized with the latest policy framework available with banks, including the Credit Guarantee Trust Fund for Micro and Small Enterprises and such other initiatives, which envisage extension of collateral-free loans by banks to small entrepreneurs. We want students face banks with confidence so as to avail financial support from the latter without hassles," said Sen.

He also said that without holistic approach, which involves greater engagement of the state monitoring agencies, strength of the ST/SC students in the EDC course shall not increase.

The Tribune
MUKTSAR VILLAGE RAPE CASE
Police crackdown fails to deter protesting villagers

Archit Watts, Tribune News Service
Muktsar, May 30 Their elders in jail, the families protesting the delay in the arrest of the main accused in a rape case are facing several hardships. A minor Dalit of Gandhar village was raped in January. But the key accused, Gurlal Singh, has yet to be arrested.

Rajvir Kaur and Harvir Kaur of Gandhar village have sought the help of their relatives. Their mother Swarnjit Kaur has been arrested and their father Sukhdeep Singh is in Gujarat where he works as a farmhand.

“With our parents away, it was difficult to live alone in the house. So we asked our maternal uncle and his family to live with us,” explained the girls.

They said instead of going after the accused, who was a proclaimed offender, the police had arrested those demanding his arrest.

Ram Swaran Lakhewali, a social activist, said of the 34 arrested for lodging a protest, eight were from Muktsar district.

Lachhman Singh Sewewala, state general secretary of the Khet Mazdoor Union, said they would continue to protest till the accused was held.

The SSP, Muktsar, Kuldeep Chahal, said: “I have instructed the SHO concerned to start the process of attaching the property of the key accused.”

News monitored By Girish Pant, PMARC

.Arun Khote
On behalf of
Dalits Media Watch Team
(An initiative of “Peoples Media Advocacy & Resource Centre-PMARC”)

Pl visit on FACEBOOK : https://www.facebook.com/DalitsMediaWatch 
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Peoples Media Advocacy & Resource Centre- PMARC has been initiated with the support from group of senior journalists, social activists, academics and  intellectuals from Dalit and civil society to advocate and facilitate Dalits issues in the mainstream media. To create proper & adequate space with the Dalit perspective in the mainstream media national/ International on Dalit issues is primary objective of the PMARC.
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