सरकार अल्पमत में है तो क्या, कौन रोकेगा उसे पूंजी का कार्निवाल रचने से?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सरकार अल्पमत में है तो क्या, कौन रोकेगा उसे पूंजी का कार्निवाल रचने से?मल्टीब्रांड रीटेल एफडीआई के संसदीय विरोध से निपटने में कारपोरेट हिंदुत्ववादी सरकार की रणनीति साफ थी। संख्या के बारे में पूरा इंतजाम के बाद ही मतदान के लिे सरकार इसलिए तैयार हुई कि इससे आर्थिक सुधारों को लागू करने में जरूरी कानून संसद में पास करा लिया जाये। सरकार मतदान में हार भी जाती और राज्यसभा में अब भी जिसकी संभावना है, तो भी सरकार गिरती नहीं। संसद चालू रखकर विपक्ष को हिंदुत्व के हथियार से तितर बितर करके अपना काम निकालने में संघ परिवार से मीलों आगे है कांग्रेस। वैसे भी खुला बाजार में नैतिकता गैरप्रासंगिक है, लोकल्याण दिखावा है, असली एजंडा है पूजी का ्बाध प्रवाह, काले धन की सुरक्षा,भ्रष्टाचार की खुली छूट और मुनाफा। विपक्ष कुछ भी आरोप लगाये, बाजार को कुश कर दिया सरकार ने। बाजार खुश है तो जनादेश की दखलदारी से ुसे कोई रोक नहीं सकता।विपक्ष के हाथ भी बंधे हैं। बाजार के खिलाफ जाकर राजनीति असंभव है। सत्ता चाहिे तो बाजार को कुश करना चाहिेए। बाकी उलझनें सुलझती चली जाएंगी। नरसिंह राव की सरकार भी अल्पमत में है। तब सेलेकर अब तक अल्पमत सरकारे ही एक के बाद एक जनविरोधी कानून पास करके आम आदमी के नाम का जाप करते हुएम आदमी का वजूद मिटा रही है। इसके खिलाफ प्रतिरोध के लिए जिन उत्पादक व सामाजिक शक्तियों को एकजुट होना चाहिे, उनमें पूट और वैमनस्य की नींव पर ही राजनीति चलती है। कारपोरेट चंदे के लिए मारामारी है। सामजिक आंदोलन और अराजनीति की एक्टिविज्म करने वाले लोग बी अब एक के बाद एक राजनीतिक दुकान खोल रहे हैं। ऐसे में बस, आगे आगे देखते रहिए कि कैसे कहर बरपा होती चली जाती है।मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई ) लाने के खिलाफ लोकसभा में पेश विपक्ष का प्रस्ताव बुधवार को गिर गया। प्रस्ताव पर मत विभाजन से पहले ही सरकार को राहत देते हुए सपा और बसपा सदस्य सदन से वाकआउट कर गये। मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के खिलाफ विपक्ष के प्रस्ताव को लोकसभा द्वारा नामंजूर किये जाने पर कांग्रेस ने बुधवार को कहा कि यह सुधारों की जीत है।एकदम सही!सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने लोकसभा द्वारा विपक्ष के प्रस्ताव को नामंजूर किये जाने के बारे में संवाददाताओं से कहा कि यह रिफार्म की जीत है । सदन ने सरकार के फैसले की जो पुष्टि की है उससे अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। किसानों को फायदा होगा। उन्होंने विपक्ष से अनुरोध किया कि वह अपनी जिद छोड़कर सरकार के इस रचनात्मक कदम पर पुनर्विचार करे।
भारतीय उद्योग जगत ने बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को लोकसभा की मंजूरी का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे विदेशी निवेशकों को मजबूत संकेत जाएगा और सरकार को आर्थिक सुधारों को आगे और बढ़ाने में मदद मिलेगी।उद्योग मंडल फिक्की के अध्यक्ष आर वी कनोड़िया ने कहा, यह एक स्वागत योग्य घटनाक्रम है। हम इस मुद्दे पर सरकार का पूरा समर्थन करते हैं। देश को आगे बढ़ना है। हमें विदेशी निवेशकों को मजबूत संकेत देना है।इसी तरह की राय जाहिर करते हुए सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा, यह एक महत्वपूर्ण बात है। इससे सरकार को महत्वपूर्ण सुधारों को लागू करने का विश्वास मिलेगा। इस कदम निश्चित रूप से सरकार को और सुधारों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने भी इसे एक बड़ा सकारात्मक कदम बताया। एसोसिएशन के सीईओ कुमार राजगोपालन ने कहा, यह उन लोगों के लिए एक और उत्साहजनक कदम है जो भारत में निवेश की तैयारी में हैं। पैंटालून रिटेल इंडिया के संयुक्त प्रबंध निदेशक राकेश बियाणी ने कहा कि यह एक स्वागत योग्य घटनाक्रम है। हमें उम्मीद है कि जल्द ही इस फैसले को लागू किया जाएगा। भारतीय खुदरा क्षेत्र के लिए एफडीआई अच्छा कदम है।
संसद में मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई पर वोटिंग होने के पहले ब्रैंड हाउस, शॉपर्स स्टॉप, प्रोवोग, प्रोजोन, कैंटाबिल, कूटॉन्स रिटेल, पैंटालून रिटेल 8-3.5 फीसदी उछले।मजबूत अंतर्राष्ट्रीय संकेतों की वजह से बाजारों में तेजी का रुझान नजर आया। सेंसेक्स 44 अंक चढ़कर 19392 और निफ्टी 11 अंक चढ़कर 5900 पर बंद हुए। 13 अप्रैल 2011 के बाद पहली बार निफ्टी 5900 के ऊपर बंद हुआ।दिग्गजों के मुकाबले छोटे और मझौले में ज्यादा तेजी आई, लेकिन पिछले कुछ दिनों का जोश गायब दिखा। शेयरों मिडकैप और स्मॉलकैप शेयर 0.5 फीसदी चढ़े।लिक्विडिटी की वजह से बाजार में तेजी जारी रहेगी। भारतीय बाजारों में अमेरिका और यूरोप से पैसा आता रहेगा।2012 में बाजार में 20 अरब डॉलर का एफआईआई निवेश हुआ है। आगे भी एफआईआई निवेश लगातार बने रहने के आसार हैं। वित्त वर्ष 2013 में ही बाजार नई ऊंचाइयों को छूएंगे।मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई मामले पर बाजार को पूरा भरोसा है कि सरकार की जीत होगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो बाजार को भारी निराशा होगी।बाजार को अमेरिका के फिस्कल क्लिफ को लेकर चिंता है।
इसी बीच महाराष्ट्र सरकार ने आज घोषणा की कि मुंबई में इंदु मिल को हटाकर वहां बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का स्मारक बनाया जाएगा। केंद्र सरकार ने भीम राव अंबेडकर स्मारक के निर्माण के लिए महाराष्ट्र सरकार को इंदु मिल के हस्तांतरण का आदेश दे दिया है। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के नेता रामदास अठावले ने बाबा साहेब अंबेडकर के स्मारक के निर्माण के लिए इंडिया यूनाइटेड (इंदु) मिल की जमीन सौंपने के संबंध में केंद्र की घोषणा का स्वागत किया। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा द्वारा आज लोकसभा में दिए गए बयान पर अठावले ने केंद्र का शुक्रिया अदा करते हुए कहा, 'अंबेडकर के लाखों अनुयायियों की लंबे समय से लंबित मांग पूरी हो गई।' तो हो गया जाति उन्मूलन? मनुस्मृति शासन का अंत? हो गयी सामाजिक न्याय और समता की जीत? बहुजन समाज की स्थापना? अंबेडकर के नाम पर जाति की पहचान मजबूत करते हुए मायावती तो जनविरोधी मनुस्मृति व्यवस्ता के लिए आक्सीजन सिलिंडर बनी हुई हैं, वहीं महाराष्ट्र में अठावले शिवशक्ति भीमशक्ति के दम पर उछलते हैं! सपा और बसपा की मदद से खुदरा कारोबार [रिटेल] में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] कारास्ता लगभग साफ हो गया है। मायावती और मुलायम सिंह ने ऐन मौके पर सदन से किनारा किया और विदेशी निवेश के विरोध का प्रस्ताव लोकसभा में 253 के मुकाबले 218 मतों से गिर गया। ताजा संकेतों के मुताबिक राज्यसभा में भी ये दोनों दल सरकार की मदद करते नजर आएंगे।बहुमत के प्रति आश्वस्त सरकार, बहस के दूसरे दिन ज्यादा संतुलित थी जबकि पराजय निश्चित जानकर भाजपा ने संप्रग और सहयोगी दलों के अंतर्विरोधों को उभारा। मुलायम व मायावती के वाकआउट को निशाना बनाते हुए सुषमा स्वराज बोलीं कि सीबीआइ का खौफ एफडीआइ से ज्यादा बड़ा है। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने भाजपा को इस तथ्य से असहज किया कि 2002 में भाजपा सरकार रिटेल में शत प्रतिशत विदेशी निवेश का प्रस्ताव तैयार चुकी थी। कुछ उखड़े यशवंत सिन्हा ने कहा कि इसे खारिज कर दिया गया था। भाजपा ने इस मामले पर अपना नजरिया बदला है, यह बात अपने भाषण के दौरान मुरली मनोहर जोशी ने भी स्वीकार की।वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा की पूरी सफाई इस तथ्य पर केंद्रित थी कि सरकार ने यह फैसला करने से पहले राज्यों के मुख्यमंत्रियों, किसान व उपभोक्ता संगठनों से बात की थी और 21 में 11 राज्यों ने इसका समर्थन व सात ने विरोध किया। इसलिए इस फैसले को राज्यों पर छोड़ा गया है। अलबत्ता वामदल, जदयू, तृणमूल और भाजपा यह मान रहे थे कि सरकार ने देश पर फैसला थोपा है।
दुनिया भर का अनुभव है कि रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] को बढ़ावा देने से छोटी दुकानें बंद हो गई हैं। सरकार इसके बावजूद इस तरफ बढ़ रही है। इससे न सिर्फ भारत का घरेलू खुदरा व्यापार खत्म हो जाएगा बल्कि किसानों को भी कोई फायदा नहीं होगा। यह विकास की सीढ़ी नहीं विनाश का गढ्डा है।खुदरा में विदेशी निवेश देश के हित में नहीं है। इससे खुद व्यापार से जुड़े पांच करोड़ परिवारों के 25 करोड़ लोग बेरोजगार हो जाएंगे। यह जनता के साथ सीधी धोखाधड़ी है।रिटेल में एफडीआइ से रोजगार के अवसर बढ़ने के बजाय बेरोजगारी बढ़ेगी।पिछले साल सरकार ने जब रिटेल में एफडीआइ खोलने का फैसला किया था तब उसका चारों तरफ विरोध हुआ था। विपक्ष समेत सरकार के अपने सहयोगी दलों तृणमूल, द्रमुक, सपा, बसपा ने भी इसका विरोध किया था। तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने उस वक्त सर्वदलीय बैठक में भरोसा दिया था कि इस पर सबसे बातचीत के बाद फैसला होगा। सात दिसंबर को लोकसभा में रिटेल में एफडीआइ के फैसले को निलंबित करने की घोषणा करते हुए इससे जुड़े सभी पक्षों से विचार-विमर्श का आश्वासन दिया था। लेकिन, सरकार ने मुख्य विपक्षी दल से कोई बातचीत तो दूर पत्राचार, फोन तक नहीं किया। संभवत: संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब सरकार ने संसद में दिए अपने आश्वासन को ही पलट दिया।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव बताता है कि सारे बड़े रिटेलर कीमतें तय करने में एक खास रणनीति अपनाते हैं। पहले दाम इतने कम करते हैं कि सभी छोटी दुकानें बंद हो जाती हैं। जब छोटी दुकानें प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाती हैं उसके बाद ये रिटेलर अपने दाम बढ़ा देते हैं और इतने बढ़ाते हैं कि उपभोक्ता भी बेहाल हो जाते हैं।
विदेशी अनुभव ही बताते हैं कि विदेशी रिटेल कंपनियां अगर दाम कम रखने के लिए किसानों से कम दाम पर उसकी उपज खरीदती हैं, तो लोगों को कम वेतन देती हैं। इससे किसानों का लाभ कैसे होगा? अब तक का अनुभव रहा है कि पेप्सी, मैकडोनाल्ड जैसी विदेशी कंपनियों तक ने किसानों को भरमाया है। फसल खरीदने का वादा कर बाद में ये कंपनियां तकनीकी आधार पर अपने वादों से मुकर गई।
सरकार का तर्क है कि रिटेल में एफडीआइ आने से बिचौलिया तंत्र खत्म हो जाएगा। आढ़त प्रणाली में बीसियों दोष होंगे, लेकिन किसान और आढ़ती के बीच विश्वास का रिश्ता होता है। आढ़ती किसान का पारंपरिक एटीएम होता है। लेकिन वॉलमार्ट, टेस्को, कारफू के आने से लगता है नई एजेंसियां खड़ी होंगी और नए बिचौलिये बनेंगे।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को भाजपा के एक सांसद के लिए कहे गए असंसदीय शब्द को वापस लेना पड़ा। खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के पक्ष में बोलने के लिए खड़े हुए लालू, भाजपा सांसदों की टिका टिप्पणी से अपना आपा खो बैठे और एक सांसद के लिए असंसदीय शब्द 'जमूरे' का प्रयोग कर दिया था।लालू के असंसदीय भाषा के प्रयोग का कड़ा विरोध करते हुए भाजपा सांसदों ने उनसे माफी की मांग की। काफी देर तक लालू प्रसाद अपने शब्द को असंसदीय मानने के लिए तैयार ही नहीं हुए। दूसरी ओर इस शब्द को कार्यवाही से निकालने के लिए लोकसभा अध्यक्ष के बार-बार आश्वासन के बाद भी भाजपा सांसद माफी से कम पर शांत होने के लिए राजी नहीं थे। हंगामे के कारण संसद की कार्यवाही भी 10 मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी। दोबारा कार्यवाही शुरू होने पर लालू यादव को बताया गया कि उन्होंने जो कहा था वो असंसदीय शब्दों की सूची में शामिल है। इसके बाद लालू यादव ने यह कहते हुए अपना शब्द वापस ले लिया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। लोकसभा में बहस का एजेंडा तो था मल्टीब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] का, लेकिन यह इसी तक सीमित नहीं रह सका। सपा ने तो खुले तौर पर कांग्रेस को चुनावी नफा-नुकसान का गणित बता दिया। नेता विपक्ष सुषमा स्वराज ने इसी बहाने केंद्र में कांग्रेसी सरकारों के इतिहास की ही फाइल खोल दी। साफ है, नजरें सबकी अगले लोकसभा चुनाव पर हैं। लिहाजा, दिल की बात जुबां पर आनी ही थी।वैसे तो एफडीआइ पर बहस में भाजपा की वरिष्ठ नेता व लोकसभा में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज ने सदन में सबसे ज्यादा मजमा लूटा, लेकिन निशाने पर सोनिया गांधी को रखा। एफडीआइ पर कांग्रेस की दिल्ली में हुई रैली में सोनिया गांधी के भाषण के हिस्से, 'अब तक केंद्र की किसी भी सरकार ने इतने कम समय में इतना काम नहीं किया' को ही हथियार बना लिया। सदन में प्रधानमंत्री की मौजूदगी में उन्होंने सोनिया से पूछा, 'देश में 1952 से लेकर 2012 तक 60 साल के इतिहास में 50 साल कांग्रेस की ही सरकार रही है। आप क्या अपने नाना ससुर [जवाहरलाल नेहरू], अपनी सास [स्वर्गीय इंदिरा गांधी] या फिर अपने पति [राजीव गांधी] को चुनौती दे रही थीं। 50 में 30 साल तो नेहरू-गांधी परिवार की ही सरकार रही है। क्या आपका कहना है कि मनमोहन सिंह की सरकार इन सबसे ऊपर हो गई है।'
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को कहा कि बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) लाने के फैसले को सदन की मंजूरी मिल गई है। खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के फैसले के विरोध में विपक्ष के प्रस्ताव को लोकसभा में हार मिलने के बाद प्रधानमंत्री ने संवाददाताओं से कहा कि एफडीआई को लोकसभा की मंजूरी मिल गई है।सिंह ने कहा कि सरकार राज्य सभा में आंकड़े को लेकर निश्चिंत है। उन्होंने कहा कि हमें राज्य सभा के आंकड़े पर विश्वास है। राज्य सभा में इस विषय पर छह और सात दिसम्बर को चर्चा होगी और सात दिसम्बर को मतदान होगा। राज्यसभा में गुरुवार को बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर चर्चा शुरू होगी। बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सांसदों ने अपनी-अपनी मांगों को लेकर हंगामा किया जिसके कारण सदन की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित करनी पड़ी। इसे देखते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित विपक्ष को कल चर्चा के दौरान हंगामे के आसार हैं, जहां सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है। भाजपा नेता अरुण जेटली ने आरोप लगाया कि केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार और इसे समर्थन देने वाली पार्टियां जानबूझकर राज्यसभा की कार्यवाही बाधित कर रही हैं और इसकी वजह खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेशी (एफडीआई) पर राज्यसभा में मतदान को लेकर सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल का नहीं होना है। भाजपा ने कहा कि अब इस बात पर भी शंका है कि सरकार गुरुवार को सदन में खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर चर्चा होने देगी।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता जेटली ने संवाददाताओं से कहा कि पहले दिन से ही सरकार खासकर राज्यसभा में कामकाज को लेकर गम्भीर नहीं है।
जेटली ने कहा कि मुझे लगता है कि सरकार इस बात को लेकर अनिश्चित है कि राज्यसभा में किस तरह मतदान होगा। इसलिए वह सदन की कार्यवाही नहीं चलने दे रही। मुझे संदेह है कि सत्तारूढ़ पार्टी तथा इसके समर्थक गुरुवार को भी एफडीआई पर बहस होने देंगे या नहीं?राज्यसभा में चर्चा एवं मतदान नियम 167 एवं 168 के तहत होगी।
सरकार को 244 सदस्यीय सदन में एफडीआई पर विपक्ष के प्रस्ताव को खारिज करने के लिए बहुमत के लिए 123 मतों की जरूरत होगी।
कांग्रेस एवं उसके सहयोगियों की संख्या 89 ही पहुंचती है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद), लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट, नागालैंड पीपल्स फ्रंट और सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के कुल छह सदस्य सरकार का समर्थन कर रहे हैं। इस प्रकार सदन में सरकार के पक्ष में कुल आंकड़ा 96 तक ही पहुंचता है।
भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के कुल 65 सदस्य हैं। इसके अलावा वामदलों के 14 एवं तृणमूल कांग्रेस के नौ सदस्य भी विपक्ष के साथ हैं।
उम्मीद की जा रही है कि बीजू जनता दल के सात, असम गण परिषद के दो, एआईएडीएमके के पांच एवं तेदेपा के पांच सदस्य भी सरकार के विरोध में मतदान करेंगे। इसे मिलाकर विपक्षी सदस्यों की संख्या 107 पहुंच जाती है।
खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लोकसभा की मंजूरी मिलने से केंद्र सरकार फूले नहीं समा रही है। दूसरी ओर, इस मसले पर विपक्षी दल ने कहा है कि यह सीबीआई की एफडीआई पर जीत है।बीएसपी व एसपी ने दिलाया फायदा विपक्षी दलों का इशारा समाजवादी पार्टी (सपा) व बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की ओर था। लोकसभा में एफडीआई के विरोध में विपक्ष का प्रस्ताव 253 के मुकाबले 218 मतों से गिर गया। 'वॉकआउट की व्यवस्था की गई' बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि यह केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की जीत है।सदन में मतदान से पहले बहिर्गमन करने वाली सपा के प्रमुख मुलायम सिंह यादव एवं बसपा की प्रमुख मायावती के खिलाफ सीबीआई कई मामलों में जांच कर रही है।
जोशी ने कहा कि इसकी व्यवस्था की गई थी। यह सीबीआई की जीत है न कि एफडीआई की। भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि भले ही एफडीआई पर प्रस्ताव गिर गया हो लेकिन यह हार उनके लिए नैतिक जीत है।
नेता विपक्ष स्वराज ने सपा एवं बसपा को बहिर्गमन पर निशाना बनाते हुए कहा कि कुछ लोगों ने हमारे साथ भाषण दिया लेकिन मत उन्हें दिया। इससे उनके कथनी एवं करनी में अंतर उजागर होता है। उन्होंने अपरोक्ष रूप से एफडीआई को समर्थन दिया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के नेता गुरुदास गुप्ता ने भी इसे सरकार की हार की संज्ञा दी क्योंकि उसके पास सदन में बहुमत है।
तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने लोकसभा में बुधवार को एफडीआई के मुद्दे पर संप्रग सरकार की 35 मतों के अंतर से जीत पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह अल्पमत सरकार है।
फेसबुक पर टिप्पणी में ममता ने कहा कि यह शर्मनाक है। बुधवार का जनादेश साबित करता है कि संप्रग-2 सरकार अल्पमत सरकार है। सदन की कुल संख्या के आधार पर बहुमत के 271 के आंकड़े की बजाय स्वार्थी लोगों की सभी कोशिशों के बावजूद केवल 253 सदस्यों का ही समर्थन मिला। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। उन्हें जनता से नये सिरे से जनादेश हासिल करना चाहिए।
विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की ओर से रखे गये इस प्रस्ताव कि ये सभा सरकार से सिफारिश करती है कि वह मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में 51 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति देने संबंधी अपने निर्णय को तत्काल वापस ले कि के पक्ष में 218 जबकि विरोध में 253 मत पडे।
सदन ने इसके साथ ही तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय की ओर से रखे गये विदेशी मुद्रा प्रबंध कानून ( फेमा ) में कुछ संशोधन किये जाने संबंधी प्रस्ताव को भी 254 के मुकाबले 224 मतों से नामंजूर कर दिया।
विपक्ष का प्रस्ताव गिरने पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सदन के बाहर संवाददाताओं से बातचीत में प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि सरकार के इस फैसले को अब सदन की मंजूरी भी मिल गयी है।
विपक्ष के इस प्रस्ताव को परास्त करने में 22 सदस्यों वाली सपा और 21 सदस्यों वाली बसपा की बडी भूमिका रही। दोनों पार्टियों ने हालांकि एफडीआई का विरोध किया लेकिन मत विभाजन से पहले ही सदन से वाकआउट कर गये।
इससे पहले खुदरा एफडीआई पर दो दिन चली चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने विपक्ष के इन आरोपों को गलत बताया कि सरकार की ओर से सदन में दिए गए इस आश्वासन का उल्लंघन किया गया है कि एफडीआई के बारे में अंतिम निर्णय करने से पूर्व सभी राजनीतिक दलों, मुख्यमंत्रियों और अन्य संबद्ध पक्षों से विचार विमर्श किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस बारे में सभी राजनीतिक दलों से बातचीत या पत्र व्यवहार किया गया। देश भर के किसानों के 12 मान्य संगठनों तथा उपभोक्ताओं के 17 संगठनों को इस बारे में पत्र लिखा गया और इन सभी किसानों और उपभोक्ता संगठनों ने खुदरा क्षेत्र में एफडीआई पर सरकार के फैसले का समर्थन किया था।
शर्मा ने कहा कि इसके अलावा 21 राज्यों में से 11 कृषि प्रधान राज्यों ने सरकार के एफडीआई फैसले का समर्थन किया तथा केवल सात राज्यों ने विरोध किया।
सुषमा ने चर्चा का जवाब देते हुए सरकार से सवाल किया कि जब मुख्य विपक्षी दल भाजपा एफडीआई के सरकार के फैसले से सहमत नहीं हुआ तो वह आम सहमति बनने का दावा कैसे कर सकती है।
उन्होंने दलील दी कि सदन में इस दो दिन की चर्चा में भी जिन 18 दलों ने हिस्सा लिया उनमें से सपा और बसपा सहित 14 ने एफडीआई का विरोध किया है और अगर उन 14 दलों के सदस्यों की संख्या जोड़ ली जाए तो उनकी संख्या 282 हो जाती है जो बहुमत से कहीं अधिक है जबकि जिन दलों ने इसका समर्थन किया है उनकी संख्या केवल 224 होती है।
निर्दलीय हसन खान ने भी फेमा पर पेश अपना संशोधन वापस ले लिया। उन्होंने कहा कि वह सरकार के जवाब से संतुष्ट हैं। अपना प्रस्ताव गिरने के बाद संसद परिसर में प्रतिक्रिया देते हुए सुषमा ने कहा कि जोड तोड से सरकार ने संसद में संख्या जरूर जुटा ली और अब चुनाव में उनको असली जवाब देगी। उन्होंने कहा कि तकनीकी दृष्टि से सरकार सदन में जीती है लेकिन नैतिक रूप से उसकी हार हुई है।
इससे पहले सुबह चर्चा को आगे बढाते हुए माकपा ने बासुदेव आचार्य ने सरकार के इस दावे को गलत बताया कि खुदरा क्षेत्र में एफडीआई लाने से किसानों और खुदरा क्षेत्र के लोगों को लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि इसके विपरीत एफडीआई से किसानों और छोटे दुकानदारों का ही सबसे अधिक अहित होगा।
जदयू के शरद यादव ने एफडीआई के विरोध में हुए बंद में शामिल होने वाले कुछ दलों की ओर से अब सदन में इस मुद्दे पर सरकार का साथ दिए जाने की स्थिति में उन्हें आगाह किया कि इतिहास इसके लिए उन दलों को माफ नहीं करेगा।
एफडीआई के मसले पर सरकार द्वारा सर्वसम्मति कायम नहीं किए जाने पर एतराज जाहिर करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने सत्ता पक्ष के इन आरोपों को गलत बताया कि भाजपा ने कभी खुद केंद्र की सत्ता में रहते हुए एफडीआई का समर्थन किया था।
उल्लेखनीय है कि शीतकालीन सत्र की शुरूआत से ही भाजपा मत विभाजन वाले नियम के तहत एफडीआई पर चर्चा कराने की मांग पर अड गयी और लगातार पांच दिन दोनों ही सदनों की बैठक बाधित रही। अंतत: सरकार ने विपक्ष की मांग मान ली। राज्यसभा इस मुद्दे पर छह और सात दिसंबर को चर्चा करेगी। उच्च सदन में मत विभाजन सात दिसंबर को होगा।
भ्रष्टाचार पर काबू पाने के मामले में भारत की छवि में कोई सुधार नहीं आया है और ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में भारत को 176 देशों में 94वें स्थान पर रखा गया है।
यद्यपि गत वर्ष भारत का स्थान 95वां था, अंतरराष्ट्रीय निगरानी संस्था ने कहा कि उसने इस वर्ष से स्थिति का मूल्यांकन एक अलग सूत्र से करना शुरू किया है और इसलिए इस वर्ष के स्थान की तुलना पिछले वर्ष से नहीं की जा सकती। हालांकि गत वर्ष के 95वें स्थान का यदि नये सूत्र से मूल्यांकन किया जाए तो वह 96 होगा जिसका मतलब है कि सूचकांक में हल्का सुधार हुआ था।
इस वर्ष शून्य (उच्च भ्रष्ट) से 100 (बहुत भ्रष्ट) वाले पैमाने पर भारत को 100 में से 36 अंक मिले हैं जो कि 10 अध्ययनों के औसत का परिणाम है जिसमें विश्व बैंक के देश प्रदर्शन एवं संस्थागत मूल्यांकन तथा ग्लोबल इनसाइट कंट्री रिस्क रेटिंग्स शामिल है।
वर्ष 2007 में पहली बार भारत को 180 देशों में 72वें स्थान पर रखा गया था और उसके बाद से देश के स्थान में गिरावट दर्ज की जा रही है। वर्ष 2010 में भारत का स्थान जहां 87वां था वर्ष 2011 में यह 95वां था। इस वर्ष भारत का स्थान श्रीलंका और चीन से नीचे है जबकि सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों में भ्रष्टाचार के मामले में अफगानिस्तान, ईरान, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश का प्रदर्शन भारत से ज्यादा खराब है।
तीन दशक तक गृहयुद्ध झेलने के बाद श्रीलंका सामान्य स्थिति की ओर लौट रहा है और वह 79वें स्थान पर जबकि चीन 80वें स्थान पर है।
डेनमार्क 90 अंक के साथ शीर्ष स्थान पर है जबकि उसके बाद फिनलैंड और न्यूजीलैंड का स्थान है। दोनों देशों का प्रदर्शन आसपास है। निचले स्थान पर रहले वाले देशों में म्यामां, सूडान, अफगानिस्तान, सोमालिया और उत्तर कोरिया हैं।
नियमगिरि मामले में सुनवाई आज
ओडिशा में वेदांत की रिफाइनरी बंद होने के एक दिन बाद अब सबकी निगाहें उच्चतम न्यायालय पर टिक गई हैं। न्यायालय गुरुवार को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करेगा। मंत्रालय ने वेदांत और ओडिशा सरकार के एक संयुक्त उद्यम को नियमगिरि में खनन की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। यह याचिका ओडिशा खनन निगम ने पर्यावरण और वन मंत्रालय के खिलाफ दायर की है।
मंत्रालय ने अगस्त 2010 में नियमगिरि पहाडिय़ों में बॉक्साइट खनन के लिए दूसरे चरण की अनुमति ले ली थी जिसके बाद यह याचिका दायर की गई थी।
विधि जानकारों का कहना है कि न्यायालय के फैसले से न केवल वेदांत की नियमगिरि परियोजना और लांजीगढ़ रिफाइनरी के भविष्य का फैसला होगा बल्कि इस क्षेत्र में पोस्को की इस्पात परियोजना और झारखंड में सेल की चिरिया खान परियोजना सहित कई अन्य परियोजनाओं का भी भविष्य निर्धारित होगा। दरअसल पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) की परिभाषा विस्तृत कर दी है जिस वजह से उच्चतम न्यायालय का फैसला इन परियोजनाओं के लिए अहम होगा।
दुनियाभर में 11 हजार कर्मचारियों की छंटनी करेगा सिटीग्रुप
पुनर्गठन की बड़ी प्रक्रिया के तहत वैश्विक बैंकिंग समूह सिटीग्रुप ने दुनियाभर में 11 हजार नौकरियां समाप्त करने की घोषणा की है। समूह को उम्मीद है कि इससे 2014 से वह सालाना 1.1 अरब डॉलर की बचत कर सकेगा। सिटीग्रुप के भारत में जन्मे सीईओ विक्रम पंडित द्वारा पद छोड़ने के दो माह बाद ही यह कदम उठाया गया है। सिटीग्रुप की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि इस पुनर्गठन से वैश्विक स्तर पर 11 हजार कर्मचारियों की छंटनी होगी। समूह ने इसे एक तर्कसंगत कदम बताया है।
वन अधिकार अधिनियम की विस्तृत परिभाषा के अनुसार अधिनियम के तहत दो तरह के लोगों को संरक्षण मिलता है। इसमें एक अनुसूचित जाति है जो परंपरागत तौर पर जंगलों में रहते हैं और दूसरे वे लोग हैं जो 5 दिसंबर 2005 से पहले तीन दशकों तक जंगलों में प्रवास करते रहे हैं या अपनी आजीविका के लिए जंगल पर निर्भर रहे हैं। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का कहना है कि संरक्षित व्यक्तियों को तब तक नहीं हटाया जा सकता है जब तक वे राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्यों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नहीं रह रहे हैं। परियोजनाओं को ग्राम सभा की अनुमति लेनी होगी और वे सामुदायिक अधिकारों की चर्चा करेंगे। चूंकि, नियमगिरि वन क्षेत्र में आता है इसलिए मंत्रालय के रुख से परियोजना का भविष्य एक तरह से समाप्त हो गया है।
इससे भारत में कई खनन परियोजनाएं भी प्रभावित होंगी क्योंकि इनमें ज्यादातर वन क्षेत्रों के करीब स्थापित हैं। जब इस बारे में ओडिशा खनन निगम के प्रबंध निदेशक से संपर्क साधा गया तो उन्होंने मामले को विचाराधीन बता टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल रोहिंग्टन नरीमन से भी संपर्क साधने की कोशिश की गई लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।
दूसरी तरफ ओडिशा सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि नियमगिरि क्षेत्र में वन अधिकार अधिनियम का पालन किया गया था जहां स्थानीय जनजातियों के वन अधिकार दावों को पंजीकृत करने के लिए फरवरी-मार्च 2008 में ग्राम सभाएं आयोजित हुई थीं। अधिकारी ने कहा कि अगस्त 2008 में उच्चतम न्यायालय का आदेश, जिसके तहत अनुमति दी गई थी, जनवरी में वन अधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद आया था।
Wednesday, December 5, 2012
सरकार अल्पमत में है तो क्या, कौन रोकेगा उसे पूंजी का कार्निवाल रचने से?
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