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Thursday, November 22, 2012

जब डालरों की बरसात हो रही हो तो बाजार का विरोध क्या?

जब डालरों की बरसात हो रही हो तो बाजार का विरोध क्या?

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

जब डालरों की बरसात हो रही हो तो बाजार का विरोध क्या?विदेशी निवेश के सवाल पर संसदीय शोर शराबे के बावजूद राजनीति पूंजी का जश्न मनाने से परहेज नहीं कर रही है।कमजोर रुपये के बावजूद भारतीय बाजारों में एफआईआई निवेश बढता जा रहा है। 2012 में एफआईआई निवेश पिछले 14 सालों में सबसे ज्यादा हुआ है। 2012 में अब तक एफआईआई 19 अरब डॉलर का निवेश कर चुके हैं। उभरते बाजारों में सबसे ज्यादा विदेशी पैसा भारतीय बाजारों में आ रहा है। अगर अमेरिका में फिस्कल क्लिफ की चिंता से डॉलर नीचे आता है तो भारतीय रुपये को इसका फायदा देखने को मिल सकता है। भारतीय बाजार में अगले 6-9 महीने तक एफआईआई निवेश जारी रहने का अनुमान है।बाजार का ध्यान सरकार के कदमों से धीरे धीरे हट रहा है क्योंकि रिफॉर्म के एलान होने के बाद भी इसमें और प्रगति नजर नहीं आ रही है। रिटेल में एफडीआई के लिए फैसला तो लिया गया लेकिन अभी भी कंपनियो को राज्यों की सहमति जरूरी होगी जो एक बड़ी बाधा है। कह सकते हैं कि सरकार की रिफॉर्म की घोषणाएं केवल कागजी नजर आ रही हैं।सरकार विनिवेश के लक्ष्य को पूरा करने के लिए कोशिशें कर रही है और इसी लिए एलआईसी को कंपनियों में 30 फीसदी निवेश करने की इजाजत दी गई है। इससे विनिवेश के लक्ष्य को पूरा करने में एलआईसी जैसी कंपनी की मदद मिलेगी।

जानकारी के मुताबिक सरकार हिंदुस्तान कॉपर में 155 रुपये प्रति शेयर के भाव पर विनिवेश कर सकती है।सरकार हिंदुस्तान कॉपर का 4 फीसदी हिस्सा बेचेगी और इसके जरिए 900 करोड़ रुपये जुटाए जाएंगे। हिंदुस्तान कॉपर का विनिवेश 2 चरणों में होगा। कंपनी का करीब 5.5 फीसदी हिस्सा बाद में बेचा जाएगा।सरकार के मुताबिक दो हिस्से में विनिवेश से शेयर की सही कीमत पता चल पाएगी। इसके अलावा सरकार का 20 दिसंबर के पहले ऑयल इंडिया और एनएमडीसी में भी हिस्सा बेचने का इरादा है।

रिटेल में एफडीआई को लेकर मचे बवाल को देखते हुए इंश्योरेंस एफडीआई पर सरकार का रुख नरम पड़ सकता है। सूत्रों से मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक इंश्योरेंस में 49 फीसदी एफडीआई के प्रस्ताव से सरकार पीछे हट सकती है। दरअसल इंश्योरेंस बिल को पास दिलाने के लिए सरकार एफडीआई सीमा में कटौती का फैसला कर सकती है।सूत्रों का कहना है कि सरकार इंश्योरेंस में प्रस्तावित 49 फीसदी एफडीआई सीमा को कम कर 26 फीसदी कर सकती है। साथ ही इंश्योरेंस में एफडीआई के प्रस्ताव को लेकर बीजेपी के साथ चर्चा को भी तैयार हो सकती है। सरकार की तरफ से संसद के शीतकालीन सत्र में इंश्योरेंस बिल को मंजूरी के लिए लाया जाएगा।सूत्रों की मानें तो इंश्योरेंस बिल के तहत सरकार जनरल इंश्योरेंस कंपनियों को बाजार से पूंजी जुटाने को मंजूरी दे सकती है। हालांकि इंश्योरेंस बिल में हेल्थ इंश्योरेंस के लिए कोई खास प्रस्ताव शामिल नहीं किया गया है।

इसी बीच कोयला घोटाले पर संसद के मानसून सत्र के धुलने के बाद गुरुवार शुरू हुए शीतकालीन सत्र की शुरुआत भी हंगामे से हुई। लोकसभा और राज्यसभा विपक्ष के हंगामे के चलते नहीं चल सके। एफडीआइ पर तृणमूल कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव का साथ न देकर विपक्ष भले ही बिखरा हुआ दिख रहा हो, लेकिन उसके तेवरों को देखते हुए सरकार की राह आसान नहीं है। सांसदों वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को अविश्वास प्रस्ताव के लिए जरूरी 54 सांसद ही नहीं मिले। उसके समर्थन में सिर्फ 3 सांसदों वाली बीजद ही खड़ी नजर आई। लोकसभा नियम 184 और राज्यसभा में नियम 168 के तहत चर्चा कराने पर अड़ी भाजपा को माकपा का साथ मिला। गतिरोध तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ने सोमवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। जानकारों का मानना है कि घरेलू बाजारों में विदेशी पैसा आना जारी रहेगा।निवेश सलाहकार आर बालकृष्णन का कहना है कि भारतीय बाजार में निवेश के लिए विदेशी निवेशकों का रुझान सकारात्मक बना हुआ है। भारत में एफआईआई निवेश जारी रहेगा। अगर अमेरिका में फिस्कल क्लिफ की चिंता से डॉलर नीचे आता है तो भारतीय रुपये को इसका फायदा देखने को मिल सकता है। भारतीय बाजार में अगले 6-9 महीने तक एफआईआई निवेश जारी रहने का अनुमान है।

सरकार बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) का दायरा बढ़ाने की तैयारी कर रही है। कैबिनेट समिति की ओर से मंजूर बुनियादी ढांचे की नई परिभाषा के तहत कुछ अन्य क्षेत्रों को भी ईसीबी के दायरे में लाया जाएगा। इस कदम से शिक्षा और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा क्षेत्र के तहत आएंगे, जो ईसीबी के जरिये कर्ज जुटाने में सक्षम हो सकेंगे।मामले से जुड़े सूत्र ने बताया कि वित्त मंत्रालय इस प्रस्ताव पर भारतीय रिजर्व बैंक के साथ विचार-विमर्श कर रहा है और अगले हफ्ते तक इस पर निर्णय होने की उम्मीद है। आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम के नेतृत्व में बाह्यï वाणिज्यिक उधारी पर गठित उच्च स्तरीय समिति की बैठक 30 नवंबर को प्रस्तावित है जिसमें बुनियादी ढांचा क्षेत्र की नई परिभाषा के तहत नए क्षेत्रों को शामिल करने की योजना को मंजूरी दी जा सकती है। इसके बाद आरबीआई इस बारे में अधिसूचना जारी कर सकता है।कैबिनेट समिति ने इस साल मार्च में बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के मकसद से नए क्षेत्रों की सूची को मंजूरी दी थी। मुख्य सूची में 5 मुख्य क्षेत्र और 29 उपक्षेत्रों को शामिल किया गया था। पांच मुख्य क्षेत्रों में परिवहन, ऊर्जा, जल स्वच्छता, संचार और सामाजिक एवं वाणिज्यिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को शामिल किया गया था। बुनियादी ढांचा क्षेत्र का दर्जा मिलने के बाद इस क्षेत्र की कंपनियों को सस्ते विदेशी कर्ज जुटाने में आसानी होगी, वहीं कंपनियां करमुक्त बॉन्ड जारी कर सकती है और कर रियायत की हकदार हो सकती हैं। शिक्षण संस्थान, अस्पताल, तीन सितारे या उच्च श्रेणी के होटल, शीत भंडार गृह, मृदा परीक्षण प्रयोगशाला आदि सामाजिक और वाणिज्यिक बुनियादी ढांचा क्षेत्र के तहत आएंगे।

धीमी जीडीपी ग्रोथ और औद्योगिक विकास की आशंकाओं के बावजूद भारत में डॉलर की बारिश हो रही है। विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की नजर में भारत अभी भी निवेश के लिए नंबर वन ठिकाना है। साल 2012 में अब तक एफआईआई ने 19 अरब डॉलर का निवेश किया है, जो इमर्जिंग देशों में सबसे ज्यादा है। यही नहीं, ये पिछले 14 सालों में दूसरा सबसे ज्यादा एफआईआई निवेश है।भारत के बाद दूसरे नंबर पर है दक्षिण कोरिया, जहां एफआईआई ने करीब 12 अरब डॉलर का निवेश किया है। इसके बाद इंडोनेशिया, जापान और ताइवान का नंबर है। इसके अलावा भारत रेमिटेंसेस यानि प्रवासी भारतीयों के पैसे भेजने के मामले में भी पूरी दुनिया में सबसे आगे है।वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2012 में विदेशों में बसे भारतीय देश में करीब 70 अरब डॉलर की रकम भेजेंगे, जो पिछले साल के मुकाबले करीब 9.5 फीसदी ज्यादा होगा। इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर चीन है, जहां 66 अरब डॉलर की रकम रेमिटेंसेस के जरिए आएगी। वर्ल्ड बैंक की लिस्ट के मुताबिक भारत और चीन के बाद फिलीपींस, मेक्सिको और नाइजीरिया का नंबर है, लेकिन दोनों अव्वल देशों के मुकाबले यहां प्रवासियों की रकम उतनी ज्यादा नहीं होगी।

वर्तमान वर्ष में भारत को रेमिटेंस (अनिवासी भारतीयों द्वारा गृह देश में अपने परिवारजनों को भेजी जाने वाली कमाई) से 70 अरब डॉलर तक मिलने की उम्मीद है जो किसी भी अन्य देश को मिलने वाले रेमिटेंस से ज्यादा है।विश्व बैंक ने बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया। रिपोर्ट के मुताबिक चीन को रेमिटेंस से 66 अरब डॉलर मिलेगा। रेमिटेंस का मतलब उस राशि से होता है, जो देश के नागरिक विदेशों में काम करने के दौरान अपने परिवारों को भेजते हैं।

रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर बीती तिमाही में 5.5 फीसदी से थोड़ी अधिक रहने का अनुमान है। एजेंसी ने कहा कि हाल में हुए सुधार से निवेशकों में आया उत्साह थम गया है और भारत की व्यवस्थागत समस्या का सच दिखने लगा है।

मूडीज ने कहा कि सरकार द्वारा प्रस्तावित सुधार से अर्थव्यवस्था के प्रमुख जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है लेकिन इससे निकट भविष्य का दृष्टिकोण बेहतर नहीं हो सकता है। अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर अपनी दीर्घकालिक संभावनाओं से बहुत कम है। हालांकि एजेंसी ने कहा कि वृद्धि दर मौजूदा नरमी के चक्र के निचले स्तर पर होगा। भारत की दूसरी तिमाही की वृद्धि दर की घोषणा अगले सप्ताह 30 नवंबर को होनी है।


मूडीज ने कहा कि इस तिमाही में वृद्धि दर सालाना स्तर पर 5.4 फीसदी से थोड़ी अधिक होगी जो लगभग 2012 की पहली दो तिमाहियों के बराबर ही होगी लेकिन साल भर पहले की वृद्धि दर के स्तर से बहुत कम होगी। रेटिंग एजेंसी ने कहा, 'इससे अर्थव्यवस्था की चुनौतियां रेखांकित होती हैं और इसे फिर से अपनी रफ्तार पकडऩे में थोड़ा वक्त लगेगा। हमारा अनुमान है कि आने वाली तिमाहियों में वृद्धि में थोड़ी तेजी आएगी और 2014 की दूसरी तिमाही तक यह अपनी रफ्तार पकड़ेगी।'


भारत की वृद्धि दर वर्ष 2008 की वैश्विक वित्तीय नरमी से पहले आठ से नौ फीसदी थी। वित्त वर्ष 2011-12 में वृद्धि दर घटकर नौ साल के न्यूनतम स्तर 6.5 फीसदी पर आ गई। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 5.5-5.6 फीसदी होनी चाहिए। मूडीज ने कहा, 'हालिया आर्थिक आंकड़ा आम तौर पर हमारे अनुमान के मुताबिक है। कॉरपोरेट क्षेत्र अर्थव्यवस्था का सबसे कमजोर हिस्सा है।'

शीतकालीन सत्र पर एफडीआइ की बर्फ जमने के पूरे लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं। हालांकि, सरकार पर बड़ा संकट भी नहीं दिख रहा है। मुख्य विपक्षी गठबंधन राजग और सत्ताधारी संप्रग के बीच एफडीआइ पर चर्चा किस नियम के तहत हो, इस पर ठन गई है। सरकार वोटिंग के नियम के तहत चर्चा कराने को तैयार नहीं है। इस गतिरोध को तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ने सोमवार सर्वदलीय बैठक बुलाई है।इससे पहले रात को उन्होंने भाजपा नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता सुषमा स्वराज और अरुण जेटली से रात्रिभोज पर भी चर्चा की। मगर रिटेल में एफडीआइ पर मत विभाजन के नियमों के तहत दोनों सदनों में चर्चा की मांग से पार्टी पीछे हटने को तैयार नहीं है।संसद में मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के मुद्दे पर जारी गतिरोध को तोड़ने के मकसद से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को रात्रि भोज पर हुई बातचीत बेनतीजा रही।संसद का शीलकालीन सत्र शुरू होने के पहले ही दिन केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के लिए मुश्किलों का दौर शुरू हो गया। शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन संप्रग के पूर्व घटक दल तृणमूल कांग्रेस ने खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निदेश (एफडीआई) के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया। लेकिन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने इसकी अनुमति नहीं दी क्योंकि तृणमूल प्रस्ताव के लिए आवश्यक 50 सदस्य संख्या नहीं जुटा पाई। बहरहाल इस मुद्दे पर विपक्ष और सरकार के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई और हंगामे के कारण दोनों ही सदनों में प्रश्नकाल नहीं हो सका। राज्यसभा की बैठक एक बार तो लोकसभा की कार्यवाही 3 बार के स्थगन के बाद दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई।तृणमूल नेता सुदीप बंद्योपाध्याय ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस पेश किया और तृणमूल सदस्यों के अलावा बीजद के 3 सदस्यों ने इसका समर्थन किया।  मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और वाम दलों ने मत विभाजन के प्रावधान वाले नियम के तहत एफडीआई पर चर्चा कराने की जोरदार मांग की लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई। सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी विभिन्न मुद्दों पर कार्यवाही बाधित की।

भाजपा मत विभाजन के प्रावधान वाले नियम के तहत चर्चा के लिए अड़ी हुई है। भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि हमने तय किया था कि पहले नियम 184 के तहत चर्चा कराके पता लगाया जाए कि सरकार एफडीआई के मुद्दे पर कितने पानी में है, उसके बाद अविश्वास प्रस्ताव पर रणनीति बनाई जा सकती है। उधर, भाजपा के सहयोगी जदयू ने कहा कि एफडीआई मुद्दे पर किसी भी नियम के तहत चर्चा हो सकती है। जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने कहा, 'चर्चा चाहे नियम 184 के तहत हो या 193 के तहत, चर्चा होनी चाहिए और ऐसा तभी हो सकता है जब सभी दल मिल जुलकर मुद्दों पर चर्चा करें।'

बसपा ने एफडीआई को लेकर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। मायावती ने कहा, 'सरकार को पहले तय करना चाहिए कि वह संसद में किस नियम के तहत चर्चा चाहती है। फिर हम सदन पटल पर अपना रुख स्पष्ट करेंगे।' इस बीच तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं करने वाले दलों की आलोचना की और दावा किया कि 'सरकार के तारणहारों' की पोल खुल गई है।

भाजपा की लोकसभा में नियम 184 और राज्यसभा में 168 यानी मत विभाजन के तहत चर्चा कराने की मांग को सरकार ने दोनों सदनों में यह कहकर खारिज कर दिया कि सरकार के कार्यकारी फैसलों पर वोटिंग के तहत चर्चा नहीं होती रही है। मगर उनकी इस दलील को माकपा नेता सीताराम येचुरी ने खारिज कर दिया। उन्होंने मत विभाजन के तहत एफडीआइ पर चर्चा पर जोर दिया और कहा कि पहले बाल्को के विनिवेश पर वोटिंग के नियम के तहत चर्चा हो चुकी है। मत विभाजन के नियम के तहत माकपा के राजग के साथ होने से तय है कि सरकार के लिए सदन में विपक्ष से पार पाना संभव नहीं होगा।

हालांकि, सरकार की तरफ से संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ और कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने स्पष्ट कर दिया कि मत विभाजन के तहत चर्चा नहीं होगी। नियम 193 पर सरकार लोकसभा में चर्चा करने को राजी है। दरअसल, मत विभाजन के हारने पर सरकार गिरने का संकट नहीं है, लेकिन उस पर नैतिक दबाव बढ़ जाएगा। सपा और बसपा और संप्रग के घटक द्रमुक जैसे दलों के लिए भी एफडीआइ पर सरकार के पक्ष में वोट देना मुश्किल होगा। इसीलिए, सरकार इस पर राजी नहीं है।

वैसे भी सपा और बसपा ने साफ कर दिया है कि वे भाजपा के साथ कहीं खड़े नहीं होंगे। अलबत्ता सदन में भी सरकार के खिलाफ जरूर वे दिखे, लेकिन बसपा जहां उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की मांग पर नारेबाजी करती रही, वहीं सपा ने सिलेंडर की सीमा तय करने पर हंगामा काटा। लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही तीन बार स्थगित हुई और सदन नहीं चल सका। इसके बाद एफडीआइ पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने स्पष्ट कह दिया कि यह केंद्र पर है कि वह किस नियम के तहत चर्चा कराए। इसी तरह सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा कि हम शुरू से एफडीआइ के खिलाफ हैं, लेकिन भाजपा का किसी मुद्दे पर साथ नहीं देंगे।

रिटेल में एफडीआई को लेकर राजनीतिक तूफान मचा हुआ है। बीजेपी समेत करीब पूरे विपक्ष का कहना है कि इससे किसानों, छोटे किराना कारोबारियों और कंज्यूमर तीनों को नुकसान होगा। जबकि कांग्रेस के मुताबिक ये सबके लिए विन विन सिचुएशन है। लेकिन हकीकत क्या है इस पर जानते हैं अमेरिका की कोलंबिया युनिवर्सिटी के प्रोफेसर जगदीश भगवती की राय। जिन्होंने दुनिया भर में मल्टीब्रैंड रिटेल में खासी रिसर्च की है।प्रोफेसर जगदीश भगवती का कहना है कि मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई आने से लोगों को सस्ती चीजें मिलेंगी और प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। साथ ही छोटे किराने की दुकान चलाने वालों को बड़े रिटेलर्स से बड़ी प्रतिस्पर्धा का डर नहीं रहेगा। छोटे स्टोर आसानी से बड़े रिटेल स्टोर का मुकाबला कर पाएंगे। रिटेल में एफडीआई से उपभोक्ताओं को काफी फायदा मिलेगा। साथ ही किसानों को भी उनके उत्पादन की अच्छी कीमत मिलेगी।

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज तथा राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए भोज में शामिल हुए। पहले यह भोज 17 नवंबर को होना था, लेकिन शिवसेना के नेता बाला साहेब ठाकरे के निधन के कारण इसे टाल दिया गया था।भाजपा सूत्रों ने बताया कि पार्टी नेताओं ने एफडीआई के मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में मतविभाजन के प्रावधान वाले नियमों के तहत चर्चा की मांग दोहराई।

उल्लेखनीय है कि सरकार बिना मतविभाजन के प्रावधान वाले नियम 193 के तहत लोकसभा में चर्चा के लिए राजी है। दूसरी ओर इस गतिरोध के मद्देनजर संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने सोमवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम एचुरी तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता डी राजा के अनुसार कमलनाथ ने राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में बताया कि सोमवार को वह सर्वदलीय बैठक बुलाएंगे।

वामपंथी दल भी एफ डी आई के मुद्दे पर दोनों सदनों में मतदान के प्रावधान वाले नियमों के तहत चर्चा चाहते हैं। उन्होंने इसके लिए नोटिस भी दिए हैं। समझा जाता है कि प्रधानमंत्री संसद के शीतकालीन सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए भाजपा नेताओं से सहयोग मांगेंगे। वह इससे पहले संप्रग के घटक दलों के नेताओं तथा समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती से भोज पर मिल चुके है।

संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने के मौके पर प्रधानमंत्री ने देश के सामने मौजूद समस्याओं और चुनौतियों को हल करने में सभी दलों से सहयोग की अपील करते हुए कहा कि सरकार संसद में किसी भी मुद्दे पर चर्चा को तैयार है। इस बीच डॉ सिंह ने गुरुवार को एक वक्तव्य में कहा कि इस सत्र में विधाई कामकाज का भारी एजेंडा है। उन्होंने कहा कि देश इस समय कई समस्याओं और चुनौतियों का सामना कर रहा है ऐसे में वह सभी सांसदों से एकजुट होकर इनका सामना करने का अनुरोध करते है। सरकार सभी मुद्दों पर संसद में चर्चा कराने को तैयार है।

उन्होंने कहा कि सरकार हो या विपक्ष सभी को एकजुट होकर काम करना चाहिए ताकि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था देश के सामने मौजूद समस्याओं और चुनौतियों का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सके।

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