शेर की पीठ से तो उतरो, दीदी!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
शेर की पीठ पर सवार तो हो गयी बंगाल की अग्निकन्या, पर उतरने की जमीन उन्हें नसीब नहीं हुई।जिस सिंगुर जनविद्रोह की लहर को उनहोंने चुनावी जीत में तब्दील करके बाजार के खुले समर्थन से, वामविरोधी ताकतों की ग्लोबल मोर्चाबंदी के जरिये पैंतीस साल के वामशासन का अंत करने में ऐतिहासिक कामयाबी हैसिल की है, उसे बतौर मुख्यमंत्री अपने ठोस जनाधार में तब्दील करके मां माटी मानुष की सरकार की पूंजी में तब्दील नहीं कर पा रही। बल्कि सिंगुर जनविद्रोह की निरंतरता, सिविल सोसाइटी के पालतू बन जाने के बावजूद जारी है। जिसके धमाके भूमि अधिग्रहण के राज्य भर में विरोध की घटनाओं में लगातार सुनायी पड़ते रहे हैं। लेकिन सिंगुर के अनिच्छुक किसानों की समस्या को सुलझाने की विफलता उन्हें भारी प्रतिक्रिया की सुनामी में लपेटते जा रही है।जिस तरह वाम मोर्चा सरकार ने तेभागा आंदोलन की विरासत को भूमि सुधार कार्यक्रम में स्थानातंरित करके बंगाल में मजबूत जनाधार बनाने में स्थाई कामयाबी हैसिल की है, उसके मुकाबले सिंगुर जनविद्रोह उनकी घटती लोकप्रियता और साख के साथ साथ बाहैसियत मुख्यमंत्री नीति निर्धारण प्रक्रिया में उनकी दुविधा और बतौर प्रशासनिक मुखिया उनकी अक्षमता का प्रतीक बनती जा रही है। अनिच्छुक किसानों की मांगों को लेकर विपक्ष की राजनीति करते हुए इच्छुक किसानों के सपनों का तो वे ख्याल ही नहीं रख पायी, पर जमीन लौटाने की कवायद में फेल होकर दो रुपए किलो चावल और मासिक भत्ता देकर समस्या को लटकाये रखने की उनकी रणनीति भी पूरी तरह नाकाम हो रही है।गौरतलब है कि अभी पिछले दिनों टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा ने सिंगुर परियोजना से जुड़ी सभी कड़वी यादों को भुलाते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल में टाटा मोटर्स की वापसी हो सकती है।लेकिन सिंगुर की गुत्थी जैसी उलझती जा रही है, उससे तो यही लगता है कि टाटा की वापसी हो या नहीं, बंगाल में सिंगुर तो क्या कहीं भी विकास, आमम आदमी की जरुरतें और समस्याओं, राज्य का स्वार्थ राजनीति से ऊपर नहीं है और यह राजनीति महज विरोध की निरंतरता और अराजकता की राजनीति है।यहीं नहीं, कानून व्यवस्था और भूमि अधिग्रहण नियमों के कारण बिगड़े औद्योगिक माहौल से जूझ रहे पश्चिम बंगाल के लिए एबीजी हल्दिया बल्क टर्मिनल (एचबीटी) का अलविदा कहना सरकार के जख्मों पर नमक रगडऩे से कम नहीं है।ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार लोकतंत्र की बहाली और राज्य में निवेश अनुकूल वातावरण बनाने के अपने चुनावी वादों को पूरा न कर पाने के लिए व्यापक आलोचनाओं का सामना कर रही है।
पूंजीवादी विकास के राजमार्ग पर अंधी दौड़ लगाते हुए अंधाधुंध शहरीकरण और औद्यौगीकरण के वास्ते जमीन अधिग्रहण बिना लोकतांत्रिक पद्धति के जारी रखने और विरोध प्रतिरोध को क्रूरता पूर्वक निपटाने का खामियाजा तो वाममोर्तचा ने भुगत ही लिया। पर राज्य में जमीन अधिग्रहणकी मनाही करके दीदी ने जो अड़ियल रुख अख्तियार कर लिया है, रोजगार सृजन, पूंजी निवेश और औद्योगीकरण की रोज होती घोषणाओं के बावजूद उनका कार्यान्वयन इसलिए रुका हुआ है क्योंकि इसके लिए बेहद जरुरी जमीन का अधिग्रहण संभव नहीं है।सिंगुर को एक औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित करने की पूर्व मुख्यमंत्री बुद्घदेव भट्टाचार्य की योजना के उलट सिंगुर राज्य में तीन दशक पुराने वामपंथी शासन का अंत सुनिश्चित करने वाला अखाड़ा बन गया। भट्टाचार्य की जगह प्रदेश की सत्ता संभालने वाली ममता बनर्जी को भी अब स्थानीय विधायक रवींद्रनाथ भट्टाचार्य से जुड़े विवाद के बाद शायद सिंगुर जनविद्रोह का भाजन बनना पड़े! किसानों का कहना था कि अगर उन्हें मालूम होता कि उन्हें उनके भाग्य के सहारे छोड़ दिया जाएगा, तो वे टाटा नैनो परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं होते।बंगाल के नए कृषि राज्यमंत्री बीआर मन्ना को बुधवार को सिंगूर में भूमि गंवाने वाले किसानों के आक्रोशपूर्ण विरोध का सामना करना पड़ा।मालूम हो कि टाटा मोटर्स को सिंगूर जमीन मामले पर सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने टाटा की अर्जी पर सुनवाई करते हुए किसानों को जमीन लौटाने पर रोक लगा दी है। इससे ममता को जबर्दस्त झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मामले की अभी सुनवाई चल रही है इसलिए फैसला आने के बाद ही जमीन का आवंटन किया जा सकता है।
टाटा मोटर्स ने नैनो का निर्माम गुजरात से शुरु कर दिया है पर सिंगुर की अधिगृहित जमीन पर कब्जा नहीं छोड़ा है। नया कानून बनाकर मुख्यमंत्री ने शपथ लेने के तुरंत बाद जमीन अनिच्छुक किसानों को लौटाने की जो प्रक्रिया शुरु की थी, वह अदालती सुनवाई में लगातार लंबित हो रही है और बेरोजगार सिंगुर के किसानों के सामने भुखमरी की नौबत है।टाटा बंगाल में फिर कारोबार शुरु करने के विरोध में नहीं है, पर सरकार की ओर से अदालत से बाहर इस समस्या के समाधान की कोई पहल ही नहीं हुई। इतनी अवधि में जमीन का चरित्र बदल गया है और अब उसे फिर कृषि भूमि में तब्दील करना असंभव नहीं तो बहुत कठिन है। अनिच्छुक किसानों के पुनर्वास, रोजगार और मुआवजे का वाजिब इंतजाम करके विकास के बंद दरवाजे खोलने के लिए सरकार के पास मौके हैं, जिनकी वह कतई इस्तेमाल नहीं करना चाहती। सरकार यह भी नहीं समझ रही कि सिंगुर का मसला हल किये बिना राज्य में नये सिरे से न जमीन अधिग्रहण संभव है और न ही पूंजी निवेश का माहौल बनना है। उलट इसके सिंगुर जनविद्रोह की निरंतरता और समस्या के लगातार जटिल होते जाने पर संक्रमण बंगाल के विकास के सारे रास्ते बाधित कर सकते हैं। जिसके राजनीतिक नतीजे भी बेहद खतरनाक हो सकते हैं। कृषि मंत्री रवींद्र नाथ भट्टाचार्य के विभाग बदलने के बाद सिंगुर में हालात लगातार दीदी और उनकी पार्टी के नियंत्रण से बाहर होती जा रही है, यह उनकी पार्टी, सरकार के साथ साथ राज्य के लिए खतरे की घंटी है।अधिग्रहीत भूमि वापसी के लिए कानून राष्ट्रपति की सहमति के बिना राज्य सरकार ने जिस आनन फानन में कानून बना डाला। उसी का खामियाजा आज भुगतना पड़ा है। पहले से ही कानून के जानकार इसे सही फैसला नहीं बता रहे थे। सरकार इतनी जल्दबाजी में थी कि विधानसभा चलने के दौरान ही अध्यादेश ले आई। बाद में उसे बदल कर बिल लाया गया।कानून के जरिए टाटा की नैनो कार के लिए अधिग्रहीत 997 एकड़ जमीन में चार सौ एकड़ जमीन अनिच्छुक किसानों को देने की बात है। विपक्ष यानी माकपा को पता था कि जमीन लौटाना आसान नहीं है। ऐसी स्थिति में विपक्ष के साथ भी सरकार सलाह करने की जरूरत क्यों नहीं समझी? और माकपा नेताओं द्वारा उठाए गए मुद्दे पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया? बाद में बीते वर्ष विधान सभा का मानसून सत्र शुरू होने के ठीक पहले बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भी इस मसले पर रायशुमारी की कोशिश हुई। जिसमें माकपा नेता सूर्यकात मिश्रा ने कुछ आपत्ति भी व्यक्त की थी। और, सरकार को इस पर ध्यान भी केंद्रित कराया था। इन सबके बावजूद ममता सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है और उन्होंने सिंगुर विधेयक पास करा लिया।
सिंगुर आंदोलन के बुजुर्ग नेता पूर्व मंत्री पार्टी पर वसूली के आरोप लगा रहे हैं,और जिस सिंगुर से दीदी की उड़ान शुरु हुई, वहीं भूमि आंदोलन के ही दूसरे नेता के मंत्री बनाये जाने पर उनके खिलाफ भड़के जनाक्रोश के बाद दीदी सिंगुर में जाकर अपने करिश्मे और चमत्कार से हालात भले ही नियंत्रित कर सकती है, पर इससे सिंगुर समस्या के समाधान की अनिवार्यता खत्म नहीं हो सकती। राजनीति को अगर छोड़ दें तो बेसिक सवाल यही है कि आखिर सिंगुर के किसानों को नैनो के विरोध और बंगाल से रतन टाटा को खदेड़ने से क्या मिला? किसानों को फायदा नहीं हुआ और वे आज भुखमरी के कगार पर हैं तो इस आंदोलन से किसका भला हुआ? ये सवाल सिंगुर की जमीन से उठने लगे हैं और दीदी को देर सवेर आज या कल इन सवालों के जवाब देने ही होंगे!हालांकि तृणमूल कांग्रेस को कबीर सुमन और दिनेश त्रिवेदी जैसे सांसदों की बगावत झेलनी पड़ी है लेकिन यह विद्रोह उसके लिए भारी झटका है। यहां तक कि भट्टाचार्य ने मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया है कि उन्होंने पार्टी नेताओं को 'वसूली' की इजाजत दे दी है। सिंगुर हाईस्कूल के सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक भट्टाचार्य यहां 'मास्टरमोशाय' के नाम से मशहूर हैं जो यहां के लोगों के लिए न केवल विधायक हैं बल्कि वह यहां के उन किसानों के बीच बड़ी पहचान रखते हैं जिनकी वजह से किया गया आंदोलन सुर्खियों में छा गया। हाल में बनर्जी ने अपने मंत्रिमंडल में व्यापक स्तर पर फेरबदल किया जिसमें उन्होंने भट्टाचार्य से कृषि विभाग वापस लेकर उन्हें सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय का प्रभार सौंपा। भट्टाचार्य ने अपनी नई जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया। हालांकि पड़ोस की हरिपाल सीट से विधायक और आंदोलन का एक और चेहरा बेचाराम मन्ना को कृषि विभाग में कनिष्ठï मंत्री बनाकर संतुलन साधने की कोशिश की गई है लेकिन सिंगुर में मन्ना को 'बाहरी' माना जाता है। बहरहाल तृणमूल में अपनी स्थिति को लेकर भट्टाचार्य अभी कुछ ज्यादा नहीं कह रहे हैं। उन्होंने सिर्फ यही कहा, 'मैं अब भी सिंगुर से तृणमूल का विधायक हूं। हर किसी की जिंदगी में ऐसा वक्त आता है जब उसे कुछ मसलों पर फैसला लेना पड़ता है। मैं इन मुद्दों पर गंभीरता से सोचूंगा और तब अंतिम फैसला लूंगा।' बहरहाल इस पूरे वाकये में सिंगुर के लोग ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
वर्ष 2006 में टाटा नैनो परियोजना की वजह से अपनी 11 बीघा जमीन गंवाने वाले महादेव दास कहते हैं, 'अगर टाटा के खिलाफ आंदोलन के दौरान सिंगुर के लोग तृणमूल के साथ खड़े रहे तो इसकी वजह मास्टरमोशाय ही थे। उन्होंने हमें भरोसा दिलाया कि हम आंदोलन के जरिये अपनी जमीन वापस हासिल कर सकते हैं। अगर अभी तक कुछ लोगों में धीरज बना हुआ है तो यह मास्टरमोशाय की वजह से ही है।' सिंगुर आंदोलन की वजह से ही दास सिंगुर विकास खंड में तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए। मगर हाल में ही दास ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और वह उसकी वजह बताने से भी इनकार करते हैं। वैसे दास अकेले नहीं हैं। हाल में सिंगुर पंचायत समिति की अध्यक्ष सुलेखा मलिक और आनंदनगर ग्राम पंचायत के अध्यक्ष प्रेम अधिकारी को भी हटा दिया गया। इन सभी ने सिंगुर की लड़ाई में बनर्जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया था और ये सभी मास्टरमोशाय के के करीबी माने जाते हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उद्योगपतियों से पश्चिम बंगाल में निवेश का आह्वान किया।लेकिन साथ ही किसी तरह की रियायतें देने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा ''मेरा दिल आपके साथ है लेकिन मेरे हाथ बंधे हुए हैं।'' राज्य में शहरी बुनियादी सुविधा से जुड़ी परियोजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लाने के लिये राज्य मंत्रिमंडल की शहरी ढांचागत परियोजना समिति बनाई गई जिसमें कुछ वरिष्ठ मंत्रियों को शामिल किया गया है।
ममता बनर्जी ने शहरी ढांचागत सुविधा विकास पर आयोजित एक सम्मेलन में उद्योगपतियों को संबोधित करते हुये कहा ''जो मुंबई, दिल्ली, गुजरात और चेन्नई दे सकते हैं, हम नहीं दे सकते हैं क्योंकि हमारी स्थिति इनसे अलग है।'' उन्होंने कहा ''हम (वामपंथी शासन) के 35 साल के शासन से विरासत में मिले कर्ज बोझ सामना कर रहे हैं। सरकार कर्ज संकट में फंसी हुई है, इसलिये हमारी स्थिति दूसरों से अलग है।''
मुख्यमंत्री ने कहा ''ढांचागत क्षेत्र में काम करने वाली उद्योगों की मांग उचित है लेकिन वित्तीय तंगी की वजह से हमारे सामने सीमित विकल्प हैं।'' उन्होंने कहा स्थिति इतनी खराब है कि राज्य सरकार को अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन देने के लिये भी सोचना पड़ता है।
ममता ने रीएल्टी और शहरी ढांचागत क्षेत्र की परियोजनाओं में निवेश का आह्वान करते हुये उद्योगपतियों से कहा कि बंगाल में आयें यहां दूसरे स्थानों की अपेक्षा निवेश की व्यापक संभावनायें हैंv ''मेरा दिल आपके साथ है लेकिन मेरे हाथ बंधे हैं।'' उन्होंने कहा वित्तीय तंगी के बावजूद राज्य ढांचागत सुविधाओं के विकास में 4,000 करोड़ रुपये की निवेश परियोजनाओं के साथ आगे बढ़ रहा है।
रीएल एस्टेट कंपनियों ने राज्य में निवेश से पहले आवासीय इकाईयों पर कर कम करने की मांग रखी है। ममता ने रीएल एस्टेट डेवलपर्स की संस्था क्रेडाई की शहरी भूमि हदबंदी कानून को निरस्त करने की मांग पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।
पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को बनर्जी सरकार को झटका देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सिंगुर कानून को अवैध घोषित कर दिया। न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष और न्यायमूर्ति मृणाल कांति चौधरी की दो सदस्यीय उच्च न्यायालय की पीठ ने एकल पीठ के फैसले को रद्द करते हुए कानून को असंवैधानिक करार दिया। 28 सितंबर, 2011 को कानून को वैध ठहराते हुए लागू करने पर दो महीने की रोक लगा दी थी ताकी दूसरे पक्ष (टाटा मोटर्स) को किसी उच्च अदालत में अपील करने का मौका मिल सके। 3 नवंबर, 2011 को उच्च न्यायालय की पीठ ने मामले के निस्तारण तक कानून को लागू किये जाने पर रोक लगा दी।
माइक्रोसेक कैपिटल ने इस फैसले से जुड़े दस प्रमुख तथ्य जुटाए-
1. सरकार में रहते हुए वाम मोर्चा ने सिंगुर में टाटा मोटर्स को देश की सबसे सस्ती कार नैनो बनाने के लिए 997 एकड़ जमीन दी।
2. जमीन का अधिग्रहण 13,000 मालिकों से किया गया था।
3. इनमें से 2,000 लोगों ने अपनी 400 एकड़ जमीन के बदले मुआवजा लेने से मना कर दिया।
4. ममता बनर्जी ने किसानों को उनकी जमीन वापस दिलाने का वादा किया।
5. वामपंथी पार्टियों को हराकर मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने 14 जून, 2011 को सिंगुर भूमि पुर्नसुधार और विकास कानून, 2011 पारित कराया। जिसके जरिये सरकार को विवादित भूमि वापस लेने का अधिकार मिल गया। टाटा मोटर्स को बाकी बचे 600 एकड़ जमीन पर ही फैक्ट्री बनाने के लिए कहा गया।
6. टाटा मोटर्स ने कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख किया। कानून पारित होने के एक हफ्ते बाद ही कंपनी ने कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी।
7. अपने फैसला सुनाते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मुखर्जी ने कानून को वैध करार दिया। टाटा मोटर्स ने एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी। इसके बाद मामले को खंडपीठ को सौंपा गया लेकिन इसके पास भी ऐसे मामले में सुनवाई करने का अधिकार नहीं था।
8. इसके बाद मामले को मौजूदा पीठ को सौंपा गया।
9. टाटा मोटर्स का तर्क था कि कंपनी के लिए 600 एकड़ में फैक्ट्री का निर्माण कर पाना संभव नहीं और अक्टूबर 2008 में नैनो परियोजना को गुजरात स्थानांतरित कर दिया।
10. टाटा मोटर्स का दावा है कि सिंगुर में कंपनी ने 1,500 करोड़ रुपये का निवेश किया और हर्जाने की मांग की है।
सिंगुर में 400 एकड़ भूमि लौटाएगी सरकार
कोलकाता, शुक्रवार, 20 मई 2011
पश्चिम बंगाल की नई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने पहले बड़े नीतिगत फैसले के तहत शुक्रवार को घोषणा की कि उनकी सरकार सिंगूर में 400 एकड़ भूमि किसानों को लौटाएगी। यह भूमि टाटा मोटर्स के कारखाने के लिए अधिग्रहीत की गई थी।
उन्होंने राइटर्स बिल्डिंग्स में मंत्रिमंडल की पहली बैठक के बाद यह घोषणा की। उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल ने पहला फैसला सिंगूर में टाटा मोटर्स के बंद पड़े कारखाना स्थल से 400 एकड़ भूमि लौटाने का किया है। उन्होंने कहा कि अगर टाटा ग्रुप चाहे तो अपना कारखाना 600 एकड़ भूमि पर लगा सकता है।
टाटा ग्रुप तथा पूर्ववर्ती वाम मोर्चा सरकार के बीच हुए समझौते को सार्वजनिक किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमने समझौते की प्रति मांगी है। इस समझौते को सार्वजनिक किया जाएगा। मैं पारदर्शिता में विश्वास करती हूं। वहीं टाटा के प्रवक्ता ने राज्य सरकार की घोषणा के बारे में संपर्क करने पर किसी टिप्पणी से इनकार किया। (भाषा)
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