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Friday, November 9, 2012

Fwd: ARTICLE BY EX-CEC MEMBER, CHAMANLAL



---------- Forwarded message ----------
From: barve siddarth <barves@bharatpetroleum.in>
Date: Fri, Nov 9, 2012 at 10:33 AM
Subject: ARTICLE BY EX-CEC MEMBER, CHAMANLAL
To:


 

From: chaman lal [mailto:chamanlal_moolnivasi@yahoo.com]
Sent: Thursday, November 08, 2012 3:51 PM
To: barve siddarth
Cc: spsomkuwar@gmail.com
Subject: corrupt Mulnivasi Leadership

 

Pl. find attached article uploaded on Facebook.

Jai Mulnivasi!

Chaman Lal

 

*********************
"Those who can afford to criticize themselves have the moral authority to criticize others"

– Chaman lal

लोगों को यत्न करक समाज क नाम पर मर्ख बनाया जा सकता है लेककन लम्बे समय तक




नह ीं! समाज क आन्दोलन क नाम पर लोगों को मुर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा करने का



हुनर हमारे वतखमान सामाजजक नेतावों ने ब्राह्मणों से ह सीर्ा है! फले -अम्बेडकर आन्दोलन

को चलाने वाले नेता महाराष्ट्र में गल -गल में पाये जाते हैं कफर भी वहाीं पर बहुजन

आन्दोलन अपने लोगों की सामाजजक, आर्थखक और राजनननतक समस्यावों क समाधान करने


में ववफल रहा है!

इसकी ववफलता का जो मौललक कारण मझे समझ में आता है वह यह की मूलननवासी बहुजन


समाज क चालाक लोगों ने फले-अम्बेडकर ववचारधारा का इसक उद्देश्य को प्राप्त करने क





ललए नह ीं बजल्क अपने अपने स्वाथख को ध्यान में रर्कर इस-ववचारधारा का प्रचार- प्रसार

ककया जजसका यह नतीजा हुवा की मूलननवासी समाजक अन्दर और ज्यादा स्वाथी लोग पैदा

हुवे जजन्होंने कफर आगे चलकर इस ववचारधारा को अपने स्वाथख को ध्यान में रर्कर इसका

माकट ग ककया! आधुननक भारत में चूँूकक महाराष्ट्र ववचारधारा की जन्मस्थल है इसी कारण
े ीं

से यहाूँ पर फले- अम्बेडकर ववचारधारा कामाकट ग करने वाले लोगों की तादाद भी उसी
े ीं


अनुपात में ज्यादा है और भारत क अन्य प्रदे शों में फलेअम्बेडकर ववचारधारा क साथ मे -




दलाल और भडवार्गर करने क मामले में महाराष्ट्र क लोग आदशख गाइड बने हुवे हैं!



सामाजजक नेतावों की इस कायखशल का क्या पररणाम हुवा? इस कायखशल क चलते आन्दोलन



चलाने वाला नेता तो सामाजजक एवीं आर्थखक रूप से मजबूत हुवा लेककन समाज, आन्दोलन क


द्रजष्ट् कोण से कमजोर ह हुवा! और इसमें काम करने वाले कायखकताख एवीं शभर्चींतक मौललक

रूप से हतोस्ताटहत हुवे है! पररणामस्वरूप बाबा साहे ब आींबेडकर का जो राजनननतक आन्दोलन

वहाीं लोग चला रहे थे वह उतने ह

रहे थ! यह पररणाम हमार आूँर्ों क सामने है! ववभाजजत होकर काम करने की प्रवजत्त हमारे


महाराष्ट्र क लोगों में अपेक्षाकृत कह ीं ज्यादा है जो ब्राह्मणों की व्यवस्था को कायम रर्ने में


सहयोगी लसद्ध हो रह है !

पुरे दे शभर में मूलननवालसयों क जो सींगठन मूलननवालसयों की सम्स्यावों क समाधान हे तु



ननमाखण हुवे वह अमक-अमुक सींघठन सामाजजक नेतावों की प्राइवे लललम े ड कपननयों /
ीं

सींघ नो में तब्द ल हो गए जजसक कारण मूलननवासी समाज क तन-मन-धन से सहयोग करने



वाले साधारण लोग ठगे से रह गए है! इन तथाकर्थत ब्राह्मणवाद छद्दम नेतावों ने लोगों की

सामाजजक भावना का दोहन करक समाज का आन्दोलन र्ड़ा करने क नाम पर पैसा लेकर



अपने आप को करोडपनत-अरबपनत बनाने का नछपा अजेंडा ननधाखररत ककया!

क्ाींनतकार सींघ न 'बामसेफ' - जजसका जनस्थान भी महाराष्ट्र है और जजसक ववचारधारा क



प्रचार-प्रसार क कारण उत्तर प्रदे श क लोगों ने वैचाररक आधार पर एक होकर एक बड़ा



राजनैनतक पररवतखन दे श में ककया - यह अपने आप में ह फले-अम्बेडकर आन्दोलन क



इनतहास की क्ाींनतकार घ ना है ! यह आन्दोलन भी महाराष्ट्र क तथाकर्थत ब्राह्मणवाद छद्दम


नेतावों की क नीनत का लशकार हुवा है! इसक सींस्थापक सदस्य व ् नीव क पत्थर मान्यवर डी




क र्ापडे साहे ब जो इस सींगठन को मलननवासी समाज की आज़ाद की लड़ाई की सफल



महान सींस्था में ववकलसत करना चाहते थे, उनक ह उत्तरार्धकाररयों ने वतखमान में इस सींघ न


को XYZ1 बामसेफ प्राइवे

लललम े ड आटद-आटद में तब्द ल कर टदया है! याद रहे जजस मानलसकता क लोगों ने RPI क



कई ु कड़े ककये उसी मानलसकता क लोगों ने बामसेफ क भी कई ु कड़े ककये!



जो लोग अपना-अपना 'ननजी' बामसेफ चला रहें हैं यह उनकी स्वाथखपनतख का, भौनतक


आवश्यक्तावों की पूनतख का साधनमात्र बन गया है! ऐसे में जो तन-मन-धन से सहयोग करने

वाले दे श भर क जो भोले-भाले लोग हैं उनको जो सपने इन नेतावों ने टदर्ाएूँ है उन सपनो


का क्या? उनको कौन पूरा करे गा? क्या उनको ब्राह्मण पूरा करे गा? - नह ! कायखकाताखवों और
ीं

ु कड़ों में ववभक्त हो गया जजतने लोग उसमे काम कर

लललम े ड, XYZ2 बामसेफ प्राइवे

समाज क शभर्चींतकों को जजन्होंने अपनी सामाजजक जजम्मेदाररयों को ऐसे स्वाथी नेतावों क
े ु


भरोसे छोड़ टदया है उनको अपनी जजम्मेदार वहन करनी होगी और लोगों को सतक करना


होगा ककसी भी पररजस्थनत से ननप ने क ललए! लोग सह नेतत्व की पहचान अगर नह ीं करें गे



तो समाज का सत्यानाश होना तय है! इसको कोई रोक नह ीं सकता है !

बहुत सारे लोग यह कहते लमल जायेंगे की हमारा बामसेफ सह है उनका गलत है, हमारा
रजजस् डख है उनका नह ीं है , फलाीं आदमी जो बामसेफ चला रहा है वह ब्राह्मणों का दलाल है

हम नह ीं हैं आटद-आटद! नेतत्व और सह सींघठन को पहचानने का यक्ष प्रश्न हमारे


मूलननवासी बहुजन समाज क लोगों क सामने है ! नेतत्व, कायखशल और सह सींघ न की




पहचान का क्या मानक है ? यह हमारे लोगों क सामने बड़ी दववधा बनी हुई है! इस पर ववचार-


ववमशख करना बहुत जरूर है ! असहमत लोगों को गाल -गलोच करक अपने सींघठन की रक्षा


करने का टदर्ावा करना अपने ह सींघठन का बेड़ा-गकख करने क बराबर होता है ! बाबा साहे ब


आींबेडकर कहते हैं की व्यजक्तपूजा/नेतत्व-अींधभजक्त यह समाज क आन्दोलन को सवखनाश की



ओर ले जाता है ! इसललए ह तथागत गौतम बुद्धा और बाबा साहे ब आींबेडकर दोनों ने ह ककसी

भी आन्दोलन में नेतत्व अींधभजक्त का ववरोध ककया है - यह बात हमारे समाज क लोगों को



बबलकल नह ीं भूलनी चाटहए!


सींघ न कसे चलता है? इस बारे में बाबा साहे ब आींबेडकर ने अपने ग्रन्थ 'Buddha and His


Dhamma' में जजक् ककया है! डा० आींबेडकर कहते है की तथागत गौतम बुद्धा ने मूलननवालसयों

को ब्राह्मणवाद ववचारधारा की गुलामी से मुक्त करने हे तु अब तक का सींसार का सबसे बड़ा

सींगठन 'लभक्क सींघ' ननमाखण ककया था और तथागत गौतम बुद्धा 'लभक्क सींघ' क ऑकफलसयल




हे ड नह ीं थे - कफर भी इतना ववशाल सींघठन बबना राष्ट्र य अध्यक्ष क कसे चलता था? इसका
े ै

सीधा सा लसधाींत था की बुद्धा जो बताते थे उस पर स्वींयीं अमल करते थे! जजन आधारभूत

गुणों क आधार पर उन्होंने धम्म की नीव र्ड़ी की थी उन गुणों को पहले अपने जीवन में


उतारा था कफर भाषण ककया था! उनकी कथनी और करनी में कोई अींतर नह ीं था! और उनक


इन गणों क अप्रत्यक्ष प्रभाव क कारण ह 'लभक्क सींघ' चल रहा था! 'लभक्क सींघ' का अध्यक्ष






बने रहने क ललए बुद्धा ने कोई प्रयास नह ीं ककया बजल्क उन मलभूत गुणों को ववकलसत ककया



जजसक कारण लोग उनको स्वींयीं ह अपना मागखदाता समझते रहे !


बद्धा कहते हैं की प्रद्नन्य (Knowledge) सींघठन चलाने क ललए जरूर आवश्यकता है लेककन



उससे भी ज्यादा जो जरूर गण है - वह है 'शील' (moral discipline)! प्रद्नन्य ववचार धम्म है


जबकक शील आचार धम्म है ! बबना शील क प्रद्नन्य उस तलवार क सामान है जजससे ककसी



की हत्या भी की जा सकती है वह ीँ प्रद्नन्य क साथ-साथ अगर नेतत्व क अन्दर शील का गुण




भी हो तो प्रद्नन्य को उस तलवार क तौर पर उपयोग ककया जा सकता है जजससे ककसी की


रक्षा भी की जा सकती है! तानाशाह नेतत्व में ज्ञान हो सकता है लेककन शील का गुण


बबलकल भी नह ीं हो सकता! और बबना शील क कोई भी ज्ञानवान व्यजक्त सामाजजक रूप से



सबसे र्तरनाक व्यजक्त होता है ! वह अपने ज्ञान को अपने ननजी स्वाथख पूनतख हे तु हमेशा

उपयोग करता है! दननया में अगर सबसे बड़ा कोई गुण है तो वह शील ह है और बबना शील


क बाकी सभी गुण बेकार होते है!


वतखमान समय में क्या हालत है मूलननवासी समाज क नेतावों की? – वह योजना-बद्द तर क से,



कोई भी तर का इस्तेमाल करक अपने-अपने सींघठन का राष्ट्र य-अध्यक्ष बने रहना चाहते हैं!


इसक ललए भले ह उनको अपने सींघ नो क सववींधान या फ्रमवक की बलल दे नी पड़े!





मूलननवासी समाज क नेतावों का चररत्र इतना ज्यादा नीचे र्गर गया है की आज-कल तो जो


नए सींघ न ननमाखण हो रहे हैं इनको ननमाखण करने वाले लोग अपने-अपने सींगठनों क


सववींधान में अपने आपको आजीवन राष्ट्र य-अध्यक्ष ललर् रहे हैं ताकक बाद में उनक लोग


उनको प्रजाताजन्त्रक व्यवस्था क तहत बदल न दे ! दसर और इन नए-ननलमखत सींघ नाओीं का



क्या उद्देश्य होता है ? – मूलननवासी समाज क अन्दर समता, स्वतींत्रता, बन्द्धुता और भाईचारे की


वयवस्था ननमाखण करना! ववरोधाभासी कायखशल और उद्देश्य क बीच में जमीन-आसमान का



अींतर होने क कारन यह आसानी से पता लगाया जा सकता है की अमुक व्यजक्त ने ककस


मकसद से फलाीं-फलाीं सींघठन का ननमाखण ककया है!

मौललक बात यह है की फले -अम्बेडकर ववचारधारा का जो उद्देश्य भारत में व्यवस्था पररवतखन


करक समता, स्वतींत्रता, बन्द्धुता और भाईचारे की वयवस्था ननमाखण करने का जो लक्ष्य पहले से


ननधाखररत है – उस लक्ष्य को उन गैर-प्रजाताजन्त्रक, गैर-न्यानयक गुणों का अवलींबन करक


तानाशाह क द्नवारा बबलकल हालसल नह ीं ककया जा सकता है जजसको हालसल करने का आज



क तथाकर्थत सामाजजक नेता हालसल करने का टदर्ावा कर रहे है ! तथागत गौतम बुद्धा ने


प्रजाताजन्त्रक और गणताींबत्रक व्यवस्था को इनतहास में अगर कायम करक टदर्ाया तो मात्र


प्रजाताजन्त्रक और गणताींबत्रक कायखशल का अवलींबन करक ह ऐसा करने में सींभव हुवे – यह


इनतहास हमारे सामने है !

अपने ह सींघठन क अन्दर वषो से काम कर रहे कयखकताखवों क साथ ववस्वासघात करना,



धोकबाज़ी करना और कयखकताखवों क टहस्साब-ककताब माींगने पर उनको ब्राह्मणवाद कहकर



बदनाम करक सींघठन से बहार का रास्ता टदर्ा दे ना और पुराने कायख-कताखवों को नेतत्व की



बदमालशयाीं पता चलने पर उनको भी एन-कन-प्रकरे ण गैर न्यानयक तर क से बदनाम करक




घर बबठा दे ना, सींघठन क अन्दर ह न्यानयक व्यवस्था को ख़त्म कर दे ना – इतना कमीना-पन


और नघनौना स्वरुप हमारे आज क सामाजजक नेतावों ने अजततयार कर ललया है ! ऐसे छदम


ब्राह्मणवाद

आवश्यकता है ! ऐसे नेत्रत्वों को यह बात नह ीं भलनी चाटहए की जो लोग समाज से पाई-पाई


इकट्ठा करक समाज आन्दोलन क नाम पर इन तताकर्थत नेत्रत्वों को दे कर नासमझी में



मलननवासी नेत्रत्वों से मूलननवासी समाज क लोगों को सावधान रहने की



धनवान बनाकर घमींडी बना सकते है वह लोग पता चलने पर ऐसे नेत्रत्वों को जते मारकर


उनका घमींड और तानाशाह का नशा भी उतार सकते हैं! लोग इस टदशा में बुद्धा क बताये


तर को से सह और गलत लोगों की पहचान करक अपने -अपने सींगठनो क माध्यम से फले-




अम्बेडकर ववचारधारा को सह रूप में स्थावपत करने का काम करें गे ऐसी मेर आशा है! सह

बात कहने में मेर बात अगर ककसी को चभती है तो इसका मुझे कोई मलान नह ीं है बजल्क


लोगों को अपनी चभन सह जानकार क प्रकाश में दर करने का प्रयत्न करना चाटहए!




जय मूलननवासी!

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