Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Monday, November 5, 2012

शूद्र विवेकानंद पर गडकरी की एक टिप्पणी बवाल वोट बैंक साधने की कवायद के अलावा कुछ नहीं!

शूद्र विवेकानंद पर गडकरी की एक टिप्पणी बवाल वोट बैंक साधने की कवायद के अलावा कुछ नहीं!

पर जिस टिप्पणी पर गौर करने लायक है,​​ वह अभी पेट्रोलियम मंत्रालय से कारपोरेट इशारे पर हटाये गये जयपाल रेड्डी ने की है। इस पर राजनेता ज्यादा बवाल करेंगे ,इसके आसार​​ नहीं है। क्योंकि इस टिप्पणी से केजरीवाल के गुरिल्ला युद्ध से कहीं ज्यादा कारपोरेट राजनीति के गठजोड़ का खुलासा होता है।पेट्रोलियम मंत्रालय से हटाकर साइंस ऐंड टेक्नॉलजी मिनिस्टर बनाए गए एस. जयपाल रेड्डी ने कहा कि जो कोई भी पेट्रोलियम ऐंड नेचरल गैस मंत्रालय चलाएगा, वह बुरी तरह परेशान रहेगा।इंटरनैशनल जैव-ऊर्जा शिखर सम्मेलन में रेड्डी ने कहा, 'मैं पेट्रोलियम ऐंड नेचरल गैस मिनिस्टर था। मेरा अनुभव कहता है कि जो कोई भी इस मंत्रालय को चलाएगा, वह बुरी तरह परेशान होगा क्योंकि कोई भी नहीं जानता कि तेल कीमतें क्यों बढ़ती हैं।'

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

शूद्र विवेकानंद पर गडकरी की एक टिप्पणी को लेकर पूरे देश में बवंडर मच गया है। हालांकि संघ परिवार को इससे कोई खास आपत्ति है, ऐसा ​​नहीं लगता और न ही गडकरी को तुरंत हटाये जाने की कोई प्रबल संभावना लगती है।महेश जेठमलानी की बगावत के बावजूद। कांग्रेस इस मुद्दे को ज्यादा तूल दे रही है सिर्फ​  इसलिए कि गुजरात में नरेंद्र मोदी विवेकानंद के नाम पर वोट मांग रहे हैं। बंगाल से कोई उल्लेखनीय प्रतिक्रिया अभी देखने को नहीं मिली। क्योंकि बंगाल में विवेकानंद के नाम पर वोट नहीं मिलते। वर्ण व्यवस्था के मुताबिक कायस्थ शूद्र होते हैं। इस हिसाब से ​​विवेकानंद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और ज्योति बसु तीनों शूद्र हैं। तीनों की भारतीय सवर्म राजनीति ने क्या गत की है, इतिहास इसका ​​मूक गवाह है। नेताजी और विवेकानंद के नाम पर संघ परिवार हिंदुत्व राष्ट्रवाद का पुनरूत्थान की रणनीति शुरु से बनाये हुए हैं। डा​ ​ अंबेडकर के खिलाफ सुतीव्र घृणा के बावजूद अनुसूचित वोट के लिए गांधी के मुकाबले अंबेडकर को तरजीह देना भारतीय राजनीति की ​​मजबूरी हो गयी है। विवेकानंद पर बवाल वोट बैंक साधने की कवायद के अलावा कुछ नहीं है। पर जिस टिप्पणी पर गौर करने लायक है,​​ वह अभी पेट्रोलियम मंत्रालय से कारपोरेट इशारे पर हटाये गये जयपाल रेड्डी ने की है। इस पर राजनेता ज्यादा बवाल करेंगे ,इसके आसार​​ नहीं है। क्योंकि इस टिप्पणी से केजरीवाल के गुरिल्ला युद्ध से कहीं ज्यादा कारपोरेट राजनीति के गठजोड़ का खुलासा होता है।पेट्रोलियम मंत्रालय से हटाकर साइंस ऐंड टेक्नॉलजी मिनिस्टर बनाए गए एस. जयपाल रेड्डी ने कहा कि जो कोई भी पेट्रोलियम ऐंड नेचरल गैस मंत्रालय चलाएगा, वह बुरी तरह परेशान रहेगा।इंटरनैशनल जैव-ऊर्जा शिखर सम्मेलन में रेड्डी ने कहा, 'मैं पेट्रोलियम ऐंड नेचरल गैस मिनिस्टर था। मेरा अनुभव कहता है कि जो कोई भी इस मंत्रालय को चलाएगा, वह बुरी तरह परेशान होगा क्योंकि  भारत अपनी जरूरत का 75 फीसद तेल आयात करता है। इसके बावजूद भगवान भी नहीं बता सकते कि तेल की कीमतें कौन बढ़ा रहा है। यह एक रहस्य है।'रेड्डी से पेट्रोलियम मंत्रालय वापस लेने के फैसले की विपक्षी दलों ने यह कहते हुए आलोचना की थी कि यह कारपोरेट जगत के हितों को बचाने के लिए किया गया। वहीं, इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने तो इसके लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया था। हालांकि रेड्डी ने इस पर कहा था कि उनका विभाग बदलने से पहले प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उन्हें विश्वास में लिया था।

नितिन गडकरी ने स्वामी विवेकानंद और दाउद इब्राहीम के आईक्यू लेवल को समान बताया है। गडकरी ने आज इस बात से इनकार किया कि उन्होंने स्वामी विवेकानंद और डॉन दाउद इब्राहिम की तुलना की थी। उन्होंने कहा कि मीडिया ने उनके विचारों को गलत तरह से पेश किया है। विवेकानंद के हिंदुत्व के बहुप्रचारित विचारों के अलावा उन्होंने यह भी कहा कि आने वाला जमाना शूद्रों का होगा। इसपर संघ परिवार कोई जचर्चा करता हो , यह हमें नहीं मालूम। रवींद्र नाथ टैगोर ने अश्पृश्यता के विरुद्ध चंडालिनी नृत्यनाटिका की रचना की, जिसका देश विदेश में व्यापक ​​पैमाने पर मंचन तो होता है पर सामाजिक न्याय और समता के टैगोर के विचारों, रूस की चिट्ठी जैसी पुस्तक पर कोई चर्चा नहीं होती। ​​बाकी बारत की कौन कहें, बंगाल में अपने महापुरूषों पर चर्चा जाति और वर्ग हितों के मुताबिक ही होती है। धूमधाम से रवींद्र की सवासौवीं जयंती मनाने के बावजूद अंबेडकर के जैसे समतावादी विचारों के लिए टैगोर या विवेकानंद की कभी चर्चा नहीं हुई। इस बात की भी जानकारी बहुत कम लोगों को होगी कि कोलकाता के मेयर रहते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पूर्वी बंगाल के सबसे बड़े दलित नेता  और अंबेडकर को संविधानसभा​ ​ भेजनेवाले जोगेंद्र नाथ मंडल को अपनी मेयर परिषद का सदस्य बनाया था। जिनका कोलकाता से कोई संबंध ही नहीं था। वाममोर्चे के पैंतीस साल के  राज में भी इतिहास का वस्तुपरक अध्ययन हुआ ही नहीं। हम लोग तो बस इतना ही जानते हैं कि  वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने अमेरिका के शिकागो में 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की भाषण क्षमता की वजह से ही पहुंचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे।हिंदुत्ववादी ताकतें इस इतिहास का इस्तेमाल मनुस्मृति व्यवस्था को कायम करने के अपने एजंडे के लिहाज से खूब करते हैं। पर शूद्र युग के बारे में विवेकानंदके विचारों के बारे में उनकी वही धारणा है जो जाति उन्मूलन के बारे में अंबेडकर की सोच के बारे में हैं। इसलिए यह भी नहीं लगया कि वैसे ही बिना मकसद गडकरी ने संघ विचारदारा के खिलाफ कुछ कह डालने की गुस्ताखी की है।

विवेकानंद का मानना था कि भूखे आदमी के लिए धर्म का कोई मतलब नहीं है। उनका कहना था कि मनुष्य का दिमाग पेट से संचालित होता है। अगर उसका पेट भरा है तो हर बात उसे अच्छी लगेगी। लेकिन पेट अगर खाली रहेगा तो उसे कुछ भी समझ में नहीं आएगा। धर्म तभी सर्वोच्च पायदान पर खड़ा होगा, जब उसके पीछे आर्थिक शक्ति होगी। उनका मानना था कि धर्म सिर्फ बातों, सिद्धांतों या पंथों के दायरे में नहीं सिमट सकता है। यह ईश्वर और आत्मा के बीच का रिश्ता है। मंदिर या चर्च का निर्माण करना या सार्वजनिक तौर पर पूजा करना ही धर्म नहीं है। इसे किताबों में भी नहीं ढूंढा जा सकता है। धर्म को भीतर से महसूस किया जा सकता है। जैसे ही आप कोई पंथ बनाते हैं, आप विश्व बंधुत्व की राह में रोड़ा बन जाते हैं।



दाउद इब्राहीम : आतंक और दहशत का दूसरा नाम है दाउद इब्राहीम। डी कंपनी के नाम से यह संगठित अपराध करता है। भारत के मोस्ट वांटेड लिस्ट में सबसे उपर इसका नाम है। इंटरपोल भी इसे पूरी दुनिया में खोज रहा है। मशहूर पत्रिका फोर्ब्स ने 2011 के सबसे खतरनाक मुजरिमों में इसका नाम शुमार किया था। पाकिस्तान में रह रहे इस आतंकी की भारत सरकार ने कई बार मांग की है।

लेकिन हकीकत यह है कि पूर्ति ग्रुप की संदेहास्पद गतिविधि के बाद स्वामी विवेकानंद की तुलना अंडरव‌र्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम से कर गडकरी बुरी तरह से फंस गए,ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है।हालांकि पार्टी सदस्य महेश जेठमलानी ने खुली बगावत कर दी है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा देकर महेश ने गडकरी के खिलाफ अंदरूनी चिंगारी को हवा दे दी है। खास तौर पर तब, जबकि गुजरात के चुनावी माहौल में उनकी टिप्पणी ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को असहज करने के साथ कांग्रेस को फिर से एक मुद्दा दे दिया है।भोपाल में रविवार को एक समारोह में विवादस्पद बयान देकर गडकरी पूरी तरह घिर गए हैं। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अलख जगाने का दावा करने वाली पार्टी के अध्यक्ष ने विवेकानंद के बौद्धिक स्तर की तुलना दाऊद से कर आलोचकों को खुला मंच दे दिया। गडकरी ने कहा कि 'दोनों का बौद्धिक स्तर एक जैसा था, एक ने सकारात्मक उपयोग किया तो दूसरे ने नकारात्मक।' विवाद गरमाया तो उन्होंने सफाई दी कि उनकी मंशा यह नहीं थी, लेकिन कोई उनसे सहमत नहीं दिख रहा है। राम जेठमलानी की ओर से की गई खुली आलोचना के बाद उनके पुत्र महेश जेठमलानी ने पत्र लिखकर कहा, 'जब तक गडकरी पार्टी अध्यक्ष हैं, मेरे लिए नैतिक और बौद्धिक रूप से पार्टी मंच पर काम करना मुश्किल है।' राम जेठमलानी पहले ही गडकरी से इस्तीफे की मांग कर चुके हैं। कभी भाजपा के थिंक टैंक रह चुके गोविंदाचार्य ने कहा, 'गडकरी शायद हालिया घटनाओं से विचलित हो गए हैं।' उन्होंने आगे जोड़ा-'जाकी रही भावना जैसी..।'पार्टी प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने जरूर गडकरी के बचाव की कोशिश की। हालांकि पार्टी मुख्यालय में मौजूद भाजपा के वरिष्ठ नेता ने छोटी सी टिप्पणी की, 'विनाश काले विपरीत बुद्धि।' पहले भी कुछ टिप्पणियों के कारण विवादों में रहे गडकरी का ताजा बयान खुद को उन्हीं को घायल कर गया है। अपना दामन बचाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पहले ही उनकी पीठ से हाथ हटा लिया था। रतलब है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने विवेकानंद के नाम की रैली से चुनावी अभियान की शुरुआत की है। ऐसे में विवेकानंद की दाऊद से तुलना ने जहां कांग्रेस को बड़ा अवसर दे दिया है, वहीं मोदी और पार्टी के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। बयान की कड़ी आलोचना करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि यह भाजपा की मानसिकता को दर्शाता है। महान विचारक की तुलना अपराधी या माफिया सरगना से कैसे की जा सकती है। उन्होंने भाजपा से माफी की मांग की। वहीं, कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने चुटकी लेते हुए ट्वीट किया कि अब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रशंसक क्या कहेंगे? एक और प्रवक्ता रेणुका चौधरी ने भी कहा कि गडकरी के दिल में अगर विवेकानंद हैं तो लोग समझ सकते हैं। तो फिर यह तुलना क्यों? क्या दोनों को वह अपने दिल में रखते हैं।

पेट्रोलियम मंत्रालय से हटाए जाने के बाद से सीधी प्रतिक्रिया से बचते आ रहे विज्ञान व तकनीकी मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने सोमवार को नाराजगी जाहिर कर ही दी। रेड्डी ने कहा कि भारत अपनी कुल तेल जरूरतों का 75 फीसदी आयात करता है। कोई भी यह नहीं बता सकता कि इंटरनैशनल मार्केट में तेल कीमतें क्यों बढ़ती हैं और कौन बढ़ाता है। खासकर ऐसे में जब डिमांड और सप्लाई के बीच कोई अंतर नहीं है।उन्होंने कहा, 'इस रहस्य को इकॉनमिस्टों को सुलझाना होगा।' 70 वर्षीय रेड्डी जनवरी 2011 में पेट्रोलियम मिनिस्टर बने थे, उन्हें 28 अक्टूबर को मंत्रिमंडल फेरबदल के दौरान साइंस ऐंड टेक्नॉलजी और अर्थ साइंस मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई।सरकार के इस कदम की भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) और सोशल वर्कर से नेता बने अरविंद केजरीवाल ने इसकी निंदा की। उनका कहना था कि रिलायंस कंपनी के दबाव में यह कदम उठाया गया। हालांकि रेड्डी ने कहा था कि प्रधानमंत्री ने उनका विभाग बदले जाने से पहले उन्हें विश्वास में लिया था।पिछले महीने कथित तौर पर कारपोरेट दबाव में रेड्डी को पेट्रोलियम मंत्रालय से हटाकर विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय सौंपा गया था। नया मंत्रालय संभालने के बाद पहली बार सार्वजनिक मंच में आए रेड्डी ने वीरप्पा मोइली [पेट्रोलियम मंत्री] को सचेत करते हुए कहा कि पेट्रोलियम मंत्रालय जिसके पास भी रहेगा, वह हताश ही रहेगा।

कारपोरेट और राजनीति के गठजोड़ के भंडाफोड़ से बेशर्म राजनीति को कोई फर्क पड़ा है, ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। पर कारपोरेट इंडिया की प्रतिक्रया में जबर्दस्त तिलमिलाहट है।आर्थिक माहौल की नकारात्मकता और उसके चलते उद्योग जगत की निराशा इसलिए भी बढ़ रही है, क्योंकि अब एक तरह से समस्त राजनीतिक नेतृत्व आरोपों की चपेट में आ गया है। नितिन गडकरी पर लगे आरोपों के बाद भाजपा भी कठघरे में खड़ी दिखने लगी है। विडंबना यह है कि आरोपों से जूझते ये दोनों राष्ट्रीय दल इस पर एकमत नहीं दिखते कि चाहे जिस पर आरोप लगें, उसकी जांच होनी ही चाहिए। यदि आरोपों की जांच ही नहीं होगी तो फिर संदेह भरा माहौल दूर होने वाला नहीं और ऐसे माहौल में तरक्की की ओर नहीं बढ़ा जा सकता। मसलन जाने-माने बैंकर दीपक पारेख ने सोशल वर्कर से नेता बने अरविंद केजरीवाल पर जमकर निशाना साधा। पारेख ने कहा कि करप्शन के मामलों को उजागर करने का केजरीवाल का तरीका ठीक नहीं है। वह कभी उनके किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देंगे।एक प्राइवेट न्यूज चैनल के एक अवॉर्ड समारोह में टॉप उद्योगपतियों और बैंकरों को संबोधित करते हुए पारेख ने कहा 'हमारे देश से करप्शन खत्म होने नहीं जा रहा है। करप्शन के मामलों को उजागर करने के अरविंद केजरीवाल के तौर-तरीके ठीक नहीं हैं। जिस तरह से केजरीवाल कर रहे हैं वह ठीक नहीं है।'पारेख से जब यह पूछा गया कि क्या वह आर्थिक मामलों पर सलाह मांगे जाने पर केजरीवाल की मदद करेंगे? जवाब में पारेख ने कहा कि वह ऐसा कभी नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें केजरीवाल के तौर-तरीके पसंद नहीं है। उन्होंने अरविंद केजरीवाल ऐंड कंपनी को लगातार कवरेज देने के लिए मीडिया को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि दूसरे कई अहम मुद्दे हैं जिन्हें मीडिया को रिपोर्ट करना चाहिए।

केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद प्रधानमंत्री ने एक विशेष बैठक में अपने सभी मंत्रियों से जो कुछ कहा उससे एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया कि अर्थव्यवस्था की हालत कितनी पतली है। इसी बैठक में अर्थव्यवस्था की दयनीय दशा को और अच्छे से स्पष्ट किया वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने। उनके अनुसार 7500 करोड़ की सैकड़ों परियोजनाएं अटकी पड़ी हुई हैं और इनमें से तमाम वर्षो से अटकी पड़ी हैं और करीब तीन सौ तो ऐसी हैं जो विभिन्न सरकारी विभागों के कारण ही आगे नहीं बढ़ पा रही हैं। उनकी मानें तो इस हालत के चलते विदेशी ही नहीं देशी उद्योगपति भी निवेश करने से कन्नी काट रहे हैं। उन्होंने यह आशंका भी जताई कि अगर हालात नहीं सुधरे तो रेटिंग एजेंसियां भारत के दर्जे को और गिरा सकती हैं।मौजूदा माहौल में विदेशी कंपनियां रिटेल कारोबार में पूंजी लगाने के लिए आगे आएंगी। लगभग सभी विरोधी दल जिस तरह रिटेल एफडीआइ का विरोध कर रहे हैं और केंद्र सरकार को अपनी बात समझाने के लिए रैली करनी पड़ रही है उससे यह नहीं लगता कि वह विदेशी पूंजी निवेशकों को आकर्षित कर पाएगी। इस संदर्भ में इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि विदेशी पूंजी निवेशक पहले से ही आशंकित हैं। वे जिस नीतिगत पंगुता का मामला उठाते रहे हैं वह अब एक हकीकत बन गया है और इसकी स्वीकारोक्ति खुद वित्त मंत्री ने मंत्रियों की महा बैठक में यह कहकर की कि लालफीताशाही ने तमाम परियोजनाओं को बाधित कर रखा है। इसी बैठक में प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों को नसीहत देते हुए यह भी कहा कि वे आरोपों की परवाह किए बिना तेजी के साथ काम करें।

वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया है कि पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर वित्तीय अनियमितता के आरोपों से इसकी (पार्टी की) छवि पर असर पड़ रहा है। महेश ने गडकरी को भेजे महज एक वाक्य के पत्र में लिखा है, जब तक आप अध्यक्ष हैं तबतक मैं पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपनी सेवा देना नैतिक और बौद्धिक रूप से उपयुक्त नहीं मानता। गौरतलब है कि महेश के पिता एवं भाजपा के राज्य सभा सदस्य राम जेठमलानी ने करीब पखवाड़े भर पहले गडकरी से पद छोड़ने को कहा था और उनके खिलाफ लगे आरोपों के मद्देनजर उन्हें दूसरा कार्यकाल नहीं लेने को भी कहा था।

गडकरी अपनी कंपनी 'पूर्ति सुगर एंड पावर' के कोष के संदिग्ध लेन-देन संबंधी खबरें मीडिया में आने के बाद से आलोचनाओं का सामना कर रहे हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि गडकरी ने खुद ही इन आरोपों पर किसी तरह की जांच का सामना करने की पेशकश है। लेकिन दबी जुबान से यह कहा जा रहा है कि उन्हें पिछले हफ्ते हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार दौरा रद्द करने के लिए मजबूर किया गया। महेश ने दिल्ली में संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि गडकरी के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला है।

महेश ने कहा, चूंकि मेरी अंतरात्मा इसमें बने रहने की इजाजत नहीं देती इसलिए मैंने राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा देने का फैसला किया है। हालांकि, मैं पार्टी की सेवा करता रहुंगा। यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने गडकरी से उनकी कंपनी के बारे में स्पष्टीकरण मांगा है, महेश ने कहा 'नहीं'। मैंने अपना व्यक्तिगत विश्लेषण किया है।'' यह पूछे जाने पर कि क्या गडकरी के खिलाफ लगाए गए आरोप से पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा है, उन्होंने कहा, ''हां । मुझे लगता है कि यह पार्टी को प्रभावित कर रहा है और हम इसमें :फैसला लेने में : देर कर रहे हैं। मैं पार्टी के नेतृत्व से कहना चाहूंगा कि इस मुद्दे का समाधान जल्द से जल्द किया जाए।'' इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने महेश द्वारा पत्र में लिखी बात सार्वजनिक किये जाने पर नाखुशी जाहिर की और यह स्वीकार किया कि इससे पार्टी को बहुत नुकसान होगा।

यह पूछे जाने पर कि क्या महेश ने गडकरी पर पद छोड़ने का दबाव बनाने के लिए यह कदम उठाया है, रूडी ने जवाब दिया, किसी तरह के दबाव का कोई सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि गडकरी के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर पार्टी के अंदर पहले ही चर्चा हो चुकी है।

मीडिया की जांच में दावा किया गया है कि वित्तीय हेरफेर के लिए कई निष्क्रिय व्यापारिक प्रतिष्ठान कागज पर बताए गए ताकि 'पूर्ति' के लिए वित्त मुहैया किया जा सके। रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के पास दर्ज इन कंपनियों के कई निदेशकों के पते कथित तौर पर फर्जी पाए गए हैं।

बहरहाल, आयकर विभाग और रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज, दोनों ने ही जांच शुरू कर दी है। इससे पहले राम जेठमलानी ने करीब पखवाड़े भर पहले गडकरी पर हमला बोलते हुए कहा था कि उन्हें पार्टी और स्वहित में इस्तीफा दे देना चाहिए।

राम जेठमलानी ने कहा था, पार्टी और अपने हित में उन्हें इस :अध्यक्ष पद: दौड़ से हट जाना चाहिए और यह पद किसी ऐसे व्यक्ति को दे देना चाहिए जो कहीं अधिक भरोसे वाला हो। उन्हें दूसरे कार्यकाल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। जेठमलानी ने इस बात का जिक्र किया था गडकरी के इस पद पर बने रहे से पार्टी की स्थिति कमजोर हुई है।

उन्होंने कहा था, बेशक, उनकी ईमानदारी के बारे में संदेह है और पार्टी एवं अपने हित में उन्हें अवश्य ही इस पद से हट जाना चाहिए। उन्होंने कहा था, इससे पार्टी की स्थिति कमजोर हुई है। आगामी चुनाव में हम भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं और हमारे पास ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो पूरी तरह से ईमानदार हो।

कांग्रेस ने वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी द्वारा भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा दिये जाने के मुद्दे पर प्रतिक्रिया जताने से इंकार कर दिया। पार्टी प्रवक्ता रेणुका चटर्जी ने महेश जेठमलानी के इस्तीफे को लेकर उठे ताजा विवाद पर यह कहते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त करने से इंकार किया कि यह भाजपा का अंदरूनी मामला है।

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors